पीपीआर रोग (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमीनेंटस / काला छेरा)

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पीपीआर रोग (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमीनेंटस / काला छेरा)

डॉ दानवीर सिंह यादव, डॉ रश्मि चौधरी, डॉ श्वेता राजोरिया और डॉ. मोहब्बत सिंह जामरा

सहायक प्राध्यापक, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू, नानाजी देशमुख वेटरनरी साइंस यूनिवर्सिटी जबलपुर (म. प्र. )

पीपीआर छोटे रोमान्थी पशुओं (भेड़ एवं बकरियों) में होने वाला एक विषाणु जनित एवं अति संक्रमक रोग है | इसलिए पीपीआर रोग को बकरियों में महामारी या बकरी प्लेग के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग सबसे पहले 1942 में पश्चिमी अफ्रीका में देखने को मिली थी | लेकिन आज यह बीमारी पूरे विश्व में फैल चुकी है | शुरुआती दौर में बकरियों में बुखार, जुकाम व डायरिया की शिकायत होती है। इसके बाद नाक व थूथन में छाले पड़ना शुरू हो जाते हैं। बकरी व भेड़ खाना-पीना छोड़ देती है। देर से इलाज करने पर कोई दवा कारगर साबित नहीं होती। यह वायरल बीमारी है जो बकरी व भेड़ में छुआछूत के जरिए फैलती है। पूरी देखभाल व इलाज न होने की हालात में 10-12 दिन में बकरी की मौत हो जाती। बाड़े की सभी बकरियों की मौत होने का भी खतरा रहता है। इस रोग में मृत्यु दर अत्यधिक रहने के कारण पशुपालकों को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है | अर्थात इस बीमारी में मृत्यु दर काफी उच्च 90% तक रहती है | जिससे न सिर्फ बकरी पालन करने वाले व्यक्ति का नुक्सान होता है | बल्कि राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर भी इसका बेहद गहरा असर पड़ता है।

रोग के लक्षण

इस रोग में प्रभावित पशुओं में तीव्र ज्वर, दस्त तथा ग्रेस्टो – इन्टेस्टाईनल ट्रेकस की म्यूक्स मेम्ब्रेन्स में इन्फ्लेमेशन तथा नेक्रोसिस के लक्षण परिलक्षित होते हैं| बकरी के शरीर का तापमान बढ़ता जाता है | बकरी के नाक और आँख से लार सी टपकने लगती है| जो लगातार निकलती रहती है,  दस्त और निमोनिया की शिकायत होने लगती है| इस रोग के कारण बकरी अपनी आँखों को हमेशा बंद करके रखती है| या वह आँखे खोल पाने में असमर्थ हो जाती है | बकरी के मुहं के अंदर छाले या जख्म होने लगते हैं, व मुहं से बुरी तरह की बदबू आने लगती है| यह छाले फैलकर पाचन तंत्र तक फैल जाते हैं, और 5 से 7 दिन के दौरान इस रोग से ग्रसित भेड़ व बकरी की मौत का शिकार हो जाती है।और अक्सर बकरियां चारा खाना बंद कर देती हैं| बकरियों के मलत्याग करते समय हो सकता है खून भी साथ में आये| उचित उपचार न मिलने पर तीसरे दिन बीमार भेड़, बकरी की जान चली जाती है।

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संचरण और  फैलाव

इसके कीटाणु सामान्यतः हवा से, खाने से, पानी पीने से बकरी के शरीर के अंदर प्रविष्ट कर जाते हैं | व्यस्क झुंड में रोग का फैलाव अधिक होता है| संक्रमित पशुओं के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने पर| दुषित जल और चारा खाना-पीना, प्रभावित पशुओं के छिकतें समय अन्य पशुओं के साँस लेने से, पशु हाट में अन्य पशुओं के संपर्क में आना , जहाँ विभिन्न स्रोत से पशुओं को साथ में लाया जाता है आदि |

नियंत्रण

रोकथाम हेतु कुछ सुझाव : स्वस्थ भेड़ एवं बकरियों को PPR जैसे रोग से बचाने के लिए समय समय पर टिके लगवाते रहें| अपने Farm को हमेशा साफ़ और कीटाणु से मुक्त रखें|
इस रोग से पीड़ित पशुओं को अलग से रख कर ही उसका उपचार करें |
नज़दीकी पशु चिकित्सालय केंद्र या पशु चिकित्सक से हमेशा संपर्क में रहें|
इस रोग से पीड़ित पशु को चारा खिलाने या पानी पिलाने के लिए जिस बर्तन का इस्तेमाल किया जाता हो और यदि पशु की मृत्यु हो जाती है तो बर्तनों को जमीन के अंदर गाड़ दें | जिससे यह सक्रामक अन्य किसी को न लगे इस बीमारी से पीड़ित पशु को किसी को बेचने या इधर उधर भेजने की कोशिश न करें|
यदि कोई बकरी या भेड़ गंभीर रूप से इस रोग की चपेट में आ चुकी है| तो उसका एकमात्र उपाय है, की आप उसको मार डालें | ताकि यह रोग अन्य पशुओं  में न फैलने पाय |

 उपचार

अपने नज़दीकी पशु चिकित्सक से सलाह लेकर इस रोग से पीड़ित भेड़ एवं बकरियों को एंटीबायोटिक एंड एंटी सीरम दवाएं दीजिये | इन दवाओं में PPR के कीटाणुओं को नष्ट करने का सामर्थ्य होता है |नियंत्रण स्वस्थ पशुओं से बीमार पशुओं का अलग करना | उनके स्थान को नियमित रूप से साफ और स्वच्छ रखना | यदि पशुओं को अलग व्यवस्थित स्थान में रखा गया है और प्रकोप फैलने के पक्ष में दिखे, तो सावधानी बरतनी चाहिए | पी.पी.आर. की रोकथाम के लिए टीकाकरण जरुर लगवायें |पीपीआर वैक्सीन की इम्युनिटी 3 साल है। इस वैक्सीन को तीन साल में एक बार लगाकर पशुओं को मरने से बचा सकते हैं। इसका पहला टीका चार महीने में लग जाना चाहिए।

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