बकरियों में पीपीआर रोग (पेस्ट–डेस–पेटिट्स) : एक घातक बीमारी
भावना फौजदार, अंजली शर्मा, सानिका सोनावणे – द्वितीय वर्ष छात्र, महात्मा गांधी वेटरनरी कॉलेज, भरतपुर (राज.)
डॉ. जयंत भारद्वाज, सहायक प्राध्यापक, पशु विकृति विज्ञान विभाग, महात्मा गांधी वेटरनरी कॉलेज, भरतपुर (राज.)।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाके में रहती है। तथा किसानों की आय का कृषि के साथ – साथ पशुपालन भी मुख्य स्त्रोत है, लेकिन कई बार पशुओं में पाए जाने वाली कुछ घातक बीमारी जैसे “पीपीआर रोग” के चलते किसानों को आर्थिक समस्या का सामना भी करना पड़ता है। आज के इस लेख में हम पशुपालक भाइयों को इस रोग से संबंधित कुछ जानकारी देंगे।
रोग क्या है :-
“पीपीआर रोग” बकरियों में पाए जाने वाली एक विषाणु जनित तेजी से फैलने वाली खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी को “बकरियों की महामारी” या “बकरी प्लेग” भी कहा जाता है।
रोग का कारण :-
यह रोग मार्बिली वायरस नामक विषाणु से होता है। तनाव, गर्भावस्था, परजीवी संक्रमण, चेचक रोग आदि के कारण बकरियां पी पी आर रोग के लिए संवेदनशील हो जाती हैं।
किसमें होता है :-
यह रोग बकरियों और भेड़ों में देखने को मिलता है।
कैसे फैलता है :-
बकरियों में यह विषाणु पहले मुँह या नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। और यह रोग बीमार जानवर के खांसने या छींकने से दूसरे जानवरों में तेजी से फैलता है।
रोग के लक्षण :-
इस बीमारी में बकरियों के मुँह, मसूड़े एवं जीभ पर छाले या घाव, दस्त, निमोनिया, खांसी आना, बुखार आना आदि जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं। कई बार इस बीमारी के दौरान बकरी का चलना फिरना कम हो जाता है, दूध की मात्रा भी कम देखने को मिल सकती है।
परिगलन निष्कर्ष :-
ऊपरी अन्नप्रणाली में, मुख की श्र्लेष्मल झिल्ली में गलन या घाव, असतत् विस्तृत क्षेत्रों का विस्तार जैसे लसिका ग्रंथि की वृद्धि आदि।
सूक्ष्मदर्शी निष्कर्ष :-
इंट्रासाइटोप्लास्मिक समावेश निकाय का छोटी और बड़ी आंत की गलने वाली ग्रंथि में मिलना इत्यादि देखा जा सकता है।
निदान :-
इस रोग का निदान लक्षण, परिगलन निष्कर्ष, सूक्ष्मदर्शी निष्कर्ष इत्यादि के आधार पर किया जा सकता है।
उपचार :-
इस रोग का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। लेकिन लक्षणों के आधार पर पशु चिकित्सक की देखरेख में उपचार किया जा सकता है। बीमार बकरियों के नाक, मुँह आदि के आसपास के घावों को दिन में तीन से चार बार साफ़ करना चाहिए। मुँह के छालों को बोरोग्लिसरीन (5 प्रतिशत) से धोना चाहिए, इससे उनको कुछ राहत मिल सकती है।
रोकथाम के उपाय :-
- इस बीमारी के विषाणु को नियंत्रित करने के लिए सुगंरी 96-स्ट्रेन नामक टीकाकरण को तीन महीने की उम्र पर अवतव्चीय किया जाता है।
- बीमार बकरियों को स्वस्थ बकरियों से अलग स्थान या बाड़े में रखना चाहिए ताकि बीमारी सभी बकरियों में ना फैले।
- बाड़े की समुचित सफाई करें और बीमार बकरियों और स्वस्थ बकरियों को एक साथ चराने ना ले जायें।
- इलाज के दौरान बकरियों को पौष्टिक और स्वच्छ चारा खिलाना चाहिए।
- संक्रमित बकरियों को छूने के बाद साबुन से अच्छी तरह हाथ साफ़ करने चाहिए।
उपरोक्त उपायों को करके हमारे पशुपालक भाई अपने पशुओं को “पीपीआर” जैसे भयंकर रोग से बचा सकते हैं, और सतत् आय प्राप्त कर अपना जीवन खुशहाली से व्यतीत कर सकते हैं।