पशु चारे का संरक्षण
डॉ. ज्योतिमाला साहू
पी. एच. डी. शोध छात्रा, पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल-132001, हरियाणा, भारत
पशुओ का दूध बढ़ाने एवं वृद्धि दर को बनाये रखने के लिए हरा चारा अत्यंत महत्वपूर्ण है| यह पोषक तत्वों का एक किफायती स्रोत होने के साथ ही सुपाच्य है| चारे को अधिकांशत: हरी अवस्था में पशुओं को खिलाया जाता है| कई बार आवश्यकता से अधिक चारे का उत्पादन हो जाता जाता है और उपयोग ना होने पर खराब हो जाता है| जब चारे के उत्पादन मे कमी हो तब इस अतिरिक्त मात्रा को संरक्षित करके भविष्य में उस समय प्रयोग में लाया जा सकता है | हरे चारे का संरक्षण एवं उनका भंडारण यदि वैज्ञानिक पद्धति से किया जाए तो उनकी पौष्टिकता भी वैसे ही बनी रहती है|
संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
- वर्ष के कुछ माह में चारे की अधिक उपलब्धता जबकि कुछ माह में अधिक आभाव|
- संरक्षित चारा खिलाने से पशु आहार मे दाने की मात्रा कम करने में सहायता मिलती है और इस तरह पशुपालन में सम्पूर्ण आहार की लागत भी कम हो जाती है|
3. यह पूरे वर्ष उच्च प्रोटीन और ऊर्जा मूल्यों के साथ उच्च सुपाच्य चारे की आपूर्ति का उपलब्ध कराता है|4. हरे चारे के आभाव के समय संरक्षित चारा, पशु मे वृद्धि एवं उत्पादन को बनाये रखता है|
हरे चारे के संरक्षण की मुख्यतः दो विधियाँ है:
- हे बनाना
- साइलेज बनाना
- हे बनाना :
घास को जानवरों के चारे के रूप में उपयोग करने के लिए उसे काटा और सुखाया जाता है, सूखे हुए घास को हे कहते हैं| हे मे पोषक तत्वों कि मात्रा पैरा, भूसी या तुड़ी की तुलना में अधिक होती है|
हे बनाने के लिए उपयुक्त फसलें : पतले तने और अधिक पत्तियों वाली फसलें हे बनाने के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती हैं| यह मोटे तनों कि अपेक्षा अधिक तेज़ी से सूखती है| इन फसलों में जई, लुसर्न, नेपियर घास, ज्वार, बाजरा, मक्का शामिल हो सकते हैं| विधि : हे बनाने के लिए उपयुक्त फसल के चुनाव के उपरान्त फसल की कटाई का समय निर्धारित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है| चारे को पूरी तरह से परिपक्व होने से पहले चारा काट दिया जाता है, ताकि अधिक पोषक मूल्य प्राप्त किया जा सके| पत्तियां, तने की तुलना में अधिक पौष्टिक होती हैं और इसलिए चारा काटते समय यह महत्वपूर्ण है कि अधिक से अधिक पत्ती और जितना संभव हो उतना कम तने के साथ काटा जाए। हे बनाने के लिए कटा हुआ चारा धूप में एक पतली परत के रूप में रखा जाता है तथा उसमें गांठ बनने से रोकने नियमित रूप से पलटा जाता है| सुखाने की प्रक्रिया 2 से 3 दिनों के बीच हो सकती है। हे को बहुत ही अत्यधिक नहीं सुखाना चाहिए क्योंकि, यह आग का खतरा भी बन सकता है। हे को ढेर बनाकर भी रखा जा सकता है। बारिश और अत्यधिक सूरज के संपर्क में आने से रोकने के लिए प्लास्टिक की चादरों से ढेर को ढंक कर रखा जाना चाहिए। हे बनाते समय यह सावधानी रखनी चाहिए कि चारा सूखने के लिए नम वातावरण में नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे फफूँद की वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। सूखने की प्रक्रिया को तेज करने और पोषक तत्वों के नुकसान को रोकने के लिए मोटे और रसदार तनो को काट कर भी सुखाया जा सकता है।
२. साइलेज बनाना: उच्च नमी की मात्रा वाली फसल का नियंत्रित अवायवीय किण्वन करने के बाद बना हुए उत्पाद साइलेज कहलाता है| साइलेज बनाना चारा संरक्षण का एक प्रभावी और सामान्य तरीका है| साइलेज को साइलेजपिट मे तैयार किया जाता है| ऐसी फसलें जिनके तने बहुत मोटी होती हैं और उन्हें सूखने में काफी समय लगता है, उन्हें हे बनाने के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है अतः इनका उपयोग सफलतापूर्वक साइलेज बनाने के लिए किया जाता है|
साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त फसलें: साइलेज बनाने में उपयोग की जाने वाली फसल में लगभग 60-70% नमी अथवा 30-35% शुष्क पदार्थ होना चाहिए| मक्का, जौ, जई, बाजरा, और संकर नेपियर जैसी फसलें साइलेज बनाने के लिए एकदम सही माना जाता है। साइलेज इन सभी घांसो से अकेले अथवा उनके मिश्रण से बनाया जा सकता है| इसके अलावा, इन फसलों से मिलने वाले साइलेज की गुणवत्ता को गुड़, यूरिया या एसिड मिलाकर बढ़ाया जा सकता है। साइलेज बनाने के लिए फसल कि कटाई फूल बनने कि अवस्था में की जानी चाहिए अर्थात् जब फसल ना तो ज्यादा पकी हो, ना ही ज्यादा कच्ची हो|
चित्र: साइलेज बनाने उपयुक्त फसल का चुनाव |
विधि: कम मात्रा में साइलेज बनाने के लिए गड्ढों, टावरों और बोरियों का उपयोग होता है। लेकिन, मुख्य रूप से बड़ी डेयरी इकाइयों मे साइलेज बनाने के लिए बड़े गड्ढों का उपयोग किया जाता है। साइलेज तैयार करने के लिए बनाया गया गड्ढा, साइलोपिट कहलाता है| साइलोपिट को ऊंचाई वाले स्थान पर तथा सीधे सूर्य के प्रकाश से दूर होना चाहिए। सबसे पहले एक गड्ढा बनाते हैं और फिर उस पर एक बड़ी पॉलिथीन शीट रखते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गड्ढे की दीवार अच्छी तरह से पॉलिथीन शीट से ढँकी हो ताकि चारा मिट्टी के संपर्क में न आए। गड्ढा पूरी तरह से पक्की कांक्रीट का भी हो सकता है| लगभग 250 किवंटल हरे चारे का साइलेज तैयार करने के लिए गड्ढे की लम्बाई 5 मी., चौडाई 2 मी. एवं गहराई 5 मी. (5 X 5 X 2 = 50 मीटर3) होनी चाहिए। ताजे फसल को लगभग 1 से 1.5 इंच लंबाई के छोटे टुकड़ों में काटकर कुट्टी बना लेते हैं ताकि किण्वन कि प्रक्रिया अच्छी तरह से हो सके। यदि बारिश हो रही है और चारा गीला है, या यदि चारा अपरिपक्व लगता है (बीज बहुत दूधिया होता है) तो इसे काटकर कुछ घंटों के लिए धूप में छोड़ देते हैं क्यूंकि बहुत ज्यादा पानी चारे को खराब कर सकता हैं|
चित्र : चारे को छोटे टुकड़ो में काटते हुए |
कटे हुए चारे को परत बनाते हुए पिट में दबाकर इस प्रकार भरते जाते हैं कि सारी हवा बाहर निकल जाए| दबाने कि क्रिया छोटे पिट में पैरों से तथा बड़े पिट में ट्रेक्टर के माध्यम से की जा सकती है| जब पिट पूरी तरह से भर जाए तो उसके उपर पैरा बिछाते हैं या प्लास्टिक शीट से ढंक देते हैं| पैरा के ऊपर तीन से चार इंच कि मिटटी कि परत लगाते हैं इसके बाद इसके ऊपर गोबर का लेप लगाया जाता है और इस तरह साइलेज पिट को बंद किया जाता है ताकि बाहर से कोई हवा ना जा सके. लगभग 45-60 दिन के बाद जब साइलेज बनकर तैयार हो जाए तब इसे पशुओं को खिलाने में उपयोग में लाया जा सकता है| ध्यान रखना आवश्यक है कि इसे एक किनारे से निकालना चाहिए और बाकी का क्षेत्र ढंका होना चाहिए अन्यथा, हवा कि उपस्थिति में साइलेज खराब हो सकता है|
छोटे पैमाने पर साइलेज उत्पादन के लिए पॉलिथीन बैग का उपयोग भी किया जा सकता है। पॉलिथीन बैग में कटे हुए चारे को अच्छी तरह हाथ से दबाकर भरते हैं यह ध्यान रखते हुए कि पॉलिथीन बैग को कोई नुक्सान ना हो| यदि बैग में कोई छेद हो जाए तो उसे प्लास्टिक टेप से सील कर देते हैं|
चित्र: साइलेज बनाने का गड्ढा व टावर |
साइलेज की गुणवत्ता :
अच्छा साइलेज हल्का हरा या हरा भूरा रंग का होना चाहिए। यदि साइलेज काला हो जाता है, तो इसका मतलब है कि यह खराब गुणवत्ता का है। अच्छी गुणवत्ता के साइलेज मे सिरका की तरह एक अच्छी गंध और अम्लीय स्वाद का होता है| यह चिपचिपी गीली और किसी भी प्रकार का फफूँद लगी नहीं होनी चाहिए। खराब किण्विण कि प्रक्रिया साइलेज कि गुणवत्ता को ख़राब कर देती है।
चित्र: साइलेज |
साइलेज खिलाने की मात्रा : पशु को उसके शरीर के वजन के आधार पर साइलेज खिलाया जाना चाहिए। 3 से 4 महीने तक की उम्र के बछड़ों को रोजाना एक से दो किलो तक साइलेज खिलाते हैं और फिर बछड़े की उम्र के प्रत्येक महीने के लिए इन राशि में लगभग 500 ग्राम प्रति दिन बढातें हैं । दुधारू गाय को 25-30 किलोग्राम प्रति पशु खिलाया जा सकता है| यह सलाह दी जाती है कि गाय को दूध पिलाने से ठीक पहले साइलेज न खिलाएं क्योंकि दूध में दुर्गंध आ सकती है। शुरूआत में गायों को साइलेज के प्रति अनुकूल करने के लिए कम दर अर्थात् लगभग पांच किलोग्राम प्रति दिन प्रति पशु खिलाया जा सकता है| धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ाते हैं| भेंड़ या बकरी को प्रतिदिन 1-1.5 किलोग्राम प्रति 45 किलोग्राम शरीर भार दर से साइलेज खिला सकते हैं| फफूंद लगा हुआ तथा खराब साइलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए|
चित्र: साइलेज खाते हुए पशु |
नोट: सभी तस्वीरें लेखक द्वारा स्वतः ली गयी है. कृपया इसका उपयोग करने पर लेखक का संदर्भ अवश्य दें I