प्रोसंक (प्रिओन) रोग
के.एल. दहिया
पशु चिकित्सक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा;
email: drkldahiya@hotmail.com
मनुष्यों और जानवरों दोनों को प्रभावित करने वाली प्रोसंक/प्रिओन (Prion) बीमारियाँ संक्रमणीय प्रोटीनयुक्त संक्रामक कणों (Proteinaceous Infectious particles) के कारण तंत्रिका तंत्र के अपक्षयी (Neurodenerative) विकारों का एक दुर्लभ समूह है। प्रारंभ में प्रोसंक रोगों को वायरस संक्रमण माना जाता था इसलिए आमतौर इन रोगों को वायरोलॉजी के अंतर्गत पठित किया जाता है।
इतिहास
18वीं शताब्दी में, भेड़ों में स्क्रैपी रोग पहली बार यूरोप (इंग्लैंड 1732 और जर्मनी 1759) में दर्ज किया गया था; लेकिन 1936 तक यह एक संक्रामक बीमारी साबित नहीं हुई थी। 1755 में, जब ऊन की आपूर्ति कम थी, ब्रिटिश संसद में भेड़ों में घातक और फैलने वाली बीमारी के आर्थिक प्रभावों और सरकार को इसके बारे में कुछ करने की आवश्यकता के बारे में चर्चा हुई (Brown 1998)।
19वीं शताब्दी के मध्य के आसपास, इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी में पशु चिकित्सकों ने स्क्रैपी के वैज्ञानिक अध्ययन की शुरुआत की, जिसमें व्यवस्थित न्यूरोपैथोलॉजिकल परीक्षण भी शामिल थीं, और एक संक्रामक रोगज़नक़ की पहचान करने के प्रयास किए।
1898 में टाउलुस (Toulouse) स्कूल ऑफ़ वेटरनरी मेडिसिन में बेस्नोइट और उनके सहयोगियों ने एक विशिष्ट विशेषता के रूप में तंत्रिका संबंधी रिक्तीकरण (Neuronal vacuolation) की पहचान की और 1898 में अपना शोधपत्र प्रकाशित किया (Takada et al. 2018)।
1901 में आनुवंशिक प्रोसंक रोगी का पहला शव परीक्षण एक ब्रिटिश मरीज हो सकता है, जिसने 38 वर्ष की आयु में गंभीर अवसाद और असामान्य व्यवहार के साथ के बाद स्मृति हानि हुई और 1901 में 44 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हो गई (Takada et al. 2018)।
1918 में, प्राकृतिक परिस्थितियों में संदेहास्पद स्क्रैपी के संक्रामक प्रसार की पहचान की गई।
1930 में, फेमिलियल क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग को पहली बार एक जर्मन किंडरेड (बैकर परिवार) में मेग्जेनडॉर्फर द्वारा औपचारिक रूप से रिपोर्ट किया गया था, जिसे बाद में एक मिसेन्स डी178एन पीआरएनपी उत्परिवर्तन (Mutation) दिखाया गया (Takada et al. 2018)।
1936 में, जे. गेरस्टमन, ई. स्ट्रॉस्लर, और आई. शेइंकर ने एक ऑस्ट्रियाई किंडरड को ‘केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की एक अजीब वंशानुगत बीमारी’ के साथ रिपोर्ट किया – पहला ज्ञात गेर्स्टमन-स्ट्रॉस्लर-शेइंकर सिंड्रोम परिवार (Takada et al. 2018)।
1954 में, प्रोसंक रोग के लिए ‘धीमा वायरस’ शब्द ब्योर्न सिगर्डसन द्वारा उपयोग किया गया था, जब वह आइसलैंड में भेड़ों के स्क्रैपी और विस्ना रोगों पर काम कर रहे थे।
1959 में, विलियम हैडलो ने सुझाव दिया था कि कुरु, न्यू गिनी पर्वतीय जनजाति के लोगों (highlanders) की एक बीमारी, स्क्रैपी के समान थी और इस प्रकार, यह भी एक धीमे वायरस के कारण हुई थी।
1966 में, ब्रिटिश प्रयोगात्मक रेडियोपैथोलॉजिस्ट टिकवाह एल्पर और उनके सहयोगियों ने पहली बार सुझाव दिया कि स्क्रैपी एजेंट के पास न्यूक्लिक एसिड की स्पष्ट कमी के बावजूद प्रतिकृति बनाने में सक्षम होने का अनूठा गुण है, जो एक पूरी तरह से क्रांतिकारी अवधारणा थी जो आज भी विवादास्पद है। उन्होंने अपने शोध में बताया “चूंकि स्क्रैपी एजेंट मेजबान जानवर में गुणित होता है, यह माना जाता है कि न्यूक्लिक एसिड इसकी संरचना का एक हिस्सा होना चाहिए। हालांकि, साक्ष्य है कि न्यूक्लिक एसिड द्वारा विशेष रूप से अवशोषित तरंगदैर्ध्य (Wavelength) की पराबैंगनी (Ultraviolet) प्रकाश की एक बड़ी खुराक के संपर्क में आने से कोई निष्क्रियता नहीं होती है, जो यह बताता है कि एजेंट बिना न्यूक्लिक एसिड के भी मात्रा में वृद्धि करने में सक्षम हो सकता है” (Alper et al. 1966)।
1982 में, अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट और बायोकेमिस्ट, स्टेनली बेंजामिन प्रूसिनर ने प्रस्तावित किया कि स्क्रैपी एजेंट, और सभी ट्रांसमिसिबल स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी, एक न्यूक्लिक एसिड-मुक्त प्रोटीनयुक्त संक्रामक अणु है जिसे उन्होंने ” प्रिओन” नाम दिया (Takada et al. 2018)।
1989 में प्रिओन प्रोटीन जीन, पीआरएनपी की पहचान की गई और इसी पीआरएनपी उत्परिवर्तन (Mutations) के कारण पारिवारिक प्रोसंक रोग आनुवंशिक साबित हुआ (Takada et al. 2018)।
मनुष्यों एवं जानवरों में प्रोसंक रोग एवं उनका कालक्रम | |||
रोग प्रकार | प्रजाति प्रभावित | प्रथम वर्णित | टिप्पणियाँ |
छिटपुट क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग (sCJD) | मनुष्य | 1920 | कोई ज्ञात संक्रामक स्रोत नहीं है, लेकिन समूहों में हुआ है |
पारिवारिक क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग (fCJD) | मनुष्य | 1924 | जीन उत्परिवर्तन के कारण; सभी पारिवारिक |
गेरस्टमन-स्ट्रॉसलर-शेइंकर सिंड्रोम (GSS) | मनुष्य | 1936 | |
घातक पारिवारिक अनिद्रा (FFI) | मनुष्य | 1986 | |
वेरिएंट क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग (vCJD) | मनुष्य | 1996 | अभिगृहीत: बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी से |
चिकित्साजनित क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग (iCJD) | मनुष्य | 1974 | चिकित्सा संदर्भ में अभिगृहीत किया गया जैसे संक्रमित प्रत्यारोपण ऊतक से |
कुरु | मनुष्य | 1957 | नरभक्षण द्वारा मनुष्यों से अभिगृहीत |
स्क्रैपी | भेड़ और बकरियां | 1732 | सबसे पहले ज्ञात प्रोसंक रोग |
बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (BSE) | गाय | 1986 | गायों को संक्रमित गोजातीय सामग्री खिलाने से फैलता है। उत्पत्ति स्थापित नहीं है |
क्रोनिक वेस्टिंग डिजीज (CWD) | सर्विड (हिरण परिवार के स्तनधारी) | 1967 | पालतू और जंगली हिरण परिवार के स्तनधारियों में पाए जाते हैं। अन्य ट्रांसमिसिबल स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी के लिए कोई ज्ञात लिंक नहीं |
ट्रांसमिसिबल मिंक एन्सेफैलोपैथी (TME) | घरेलू मिंक | 1947 | पालतू मिंक में प्रकोप (Outbreak) दर्ज किया गया। संभावित मौखिक संचरण, संभवतः स्क्रैपी से |
फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (FSE) | घरेलू और चिड़ियाघर की बिल्लियाँ | 1990 | आहार में बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी एजेंट के कारण; लंबी रोगोद्भवन अवधि के कारण कुछ मामले अभी भी सामने आ रहे हैं। |
एग्जोटिक अनगुलेट एन्सेफैलोपैथी (EUE) | हिरण | 1990 का दशक | माना जाता है कि संक्रमित हिरणों को बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी संक्रमित मांस और हड्डी का भोजन खिलाया गया था। |
स्रोत: Swire & Colchester 2023 |
प्रिओन प्रोटीन की सरंचना
प्रिओन प्रोटीन (Prion Protein) जिन्हें आमतौर पर ‘पीआरपी’ (PrP) द्वारा संदर्भित किया जाता है, एक प्रकार की ग्लाइकोप्रोटीन (सामान्यतः प्लाज्मा झिल्ली में अंतर्स्थापित कोशिका की सतह पर) होती हैं, जो कोशिकाओं (खासतौर से तंत्रिकाओें) का एक सामान्य घटक है और इन्हें कोशिकीय (Cellular) प्रिओन या सामान्य (Normal) प्रोटीन कहा जाता है जिन्हें ‘पीआरपीसी’ (PrPC) या ‘पीआरपीएन (PrPN) द्वारा दर्शाया जाता है। वहीं दूसरी ओर जब ये सामान्य प्रिओन प्रोटीन ‘असामान्य प्रिओन प्रोटीन’ में परिवर्तित हो जाती हैं, जो सामान्य प्रिओन प्रोटीन का समरूप (Isoform) है और सबसे पहले भेड़ों में स्क्रैपी (Scrapie) रोग के रूप में पाया गया था तो इन्हें ‘पीआरपीएससी‘ (PrPSc), द्वारा दर्शाया जाता है और इन्हीं असामान्य प्रिओन प्रोटीन को ‘प्रोटीन संक्रमण’ कहा जाता है। प्रोटीन संक्रमण के उपसर्गों ‘प्रो’ और ‘संक’ से हिन्दी भाषा में इस संक्रमण को ‘प्रोसंक’ रोग कहा जाता है। सामान्य (पीआरपीसी) और असामान्य (पीआरपीएससी) प्रिओन प्रोटीन में अंतर इस प्रकार है:
गुण | पीआरपीसी | पीआरपीएससी |
प्रोटीन्स | सामान्य रूप से मुड़ी (Folded) हुई यानी सर्पिलाकार (Helcal) | मिसफोल्डेड (Misfolded) यानी शीट्स/प्लेटें (Sheets/ Plates) |
कोशिकाओं में/पर स्थान | प्लाज्मा झिल्ली | साइटोप्लाज्मिक वेसिकल्स |
समरूप (Isoform) | सामान्य | असामान्य (रोगजनक) |
प्रमुख द्वितीयक संरचना | अल्फा (α) हेलिस | बीटा (β) शीट स्ट्रैंड्स |
अल्फा (α) हेलिस | 45% | 30% |
बीटा (β) शीट्स | 3% | 45% |
प्रोटीएज प्रतिरोध (Protease resistance) | नहीं | स्थिर कोर युक्त अवशेष 90-231 |
प्रोटीनएज़-के (पीके) संवेदनशीलता | संवेदनशील | आंशिक रूप से प्रतिरोधी |
गैर-आयनिक डिटर्जेंट में घुलनशीलता | हाँ | नहीं |
एकत्रीकरण की प्रवृत्ति | नहीं | हाँ |
सामान्य निर्जर्मीकरण प्रक्रियाओं का प्रतिरोध | नहीं | हाँ |
संक्रामकता | नहीं | हाँ |
उत्पादन दर (Turnover) | घंटे | दिन (से) महीने (से) वर्ष |
तलछट गुण | मोनोमेरिक[1] प्रोटीन्स के अनुरूप | मल्टीमेरिक एकत्रित प्रोटीन |
Source: Pandeya et al. 2010, Marín-Moreno et al. 2017 |
प्रोसंक (प्रिओन[2]) रोग लंबी रोगोद्भवन अवधि, तंत्रिका तंतुओं के नुकसान से जुड़े विशिष्ट स्पंज की भाँति (Spongiform) परिवर्तन करने में और शोथज प्रतिक्रिया (Inflammatory response) को प्रेरित करने में विफलता से प्रतिष्ठित हैं। ये बीमारियाँ असामान्य रूप से मिसफोल्डेड (Misfolded) प्रोटीन उत्पन्न करने वाले कारकों द्वारा संचारित की जाती हैं। प्रियन वायरस से भी छोटे होते हैं। रोग के इन कारकों को ‘संक्रामक प्रिओन’ (Infectious prions) कहते हैं।
प्रिओन स्व-आकारीय (Self-tepelating) प्रोटीन समुच्चय हैं जो अलग-अलग जैविक अवस्थाओं को स्थायी रूप से बनाए रखते हैं। फिजियोलॉजी/मेडिसिन 1997 में नोबेल पुरस्कार वितरण के अवसर पर, समिति ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित स्टेनली बेंजामिन प्रूसिनर के नेतृत्व में प्रिओन अनुसंधान सफलता की एक अच्छी परिभाषा दी (Perez et al. 2023):
क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग लोगों और जानवरों को प्रभावित करने वाली संबंधित बीमारियों में मस्तिष्क कोशिकाओं का अपक्षयन (Neudegeneration) शामिल है। 1982 में स्टेनली प्रूसिनर एक संदिग्ध संक्रामक एजेंट को अलग करने में सक्षम थे, एक प्रोटीन जिसे उन्होंने प्रिओन कहा था। उन्होंने प्रिओन प्रोटीन के पीछे के जीन की पहचान की, लेकिन यह भी निर्धारित किया कि यह स्वस्थ लोगों और जानवरों में भी मौजूद है। स्टेनली प्रूसिनर ने दिखाया कि प्रिओन के अणु (Molecules) सामान्य प्रोटीन की तुलना में अलग तरीके से मुड़े होते हैं और प्रिओन की तह (Folding) को सामान्य प्रोटीन में स्थानांतरित किया जा सकता है। यही बीमारी का आधार है।
प्रोसंक प्रोटीन वे प्रोटीन होते हैं जो गैर-एकत्रित अवस्थाओं से स्व-आकारीय उच्च आदेशित समुच्चय में बदल सकते हैं। यह गुण उन्हें जैविक अवस्थाओं में स्थिर परिवर्तन प्रदान करने की अनुमति देता है, और ऐसा करने से, जानवरों और मनुष्यों में घातक बीमारी का कारण बनता है।
प्रोसंक रोगों को उनके अंतर्निहित तंत्र द्वारा एकीकृत किया जाता है जिसमें प्रोसंक प्रोटीन के पैथोलॉजिकल रूप के संचय से स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी, न्यूरोनल लॉस, सिनैप्टिक डिसफंक्शन और मस्तिष्क की सूजन के रूप में तंत्रिका विकृति (Neurodegeneration) होता है। मेजबान के सामान्य प्रोसंक प्रोटीन के स्वतः उत्प्रेरण रूपांतरण द्वारा प्रोसंक प्रोटीन बनते हैं (Pritzkow et a. 2021)।
संचरण
प्रोसंक एजेंटों को विभिन्न सामग्रियों की एक विस्तृत श्रृंखला द्वारा अधिशोषित (Adsorb) या अवशोषित (Absorb) किया जा सकता है। 2018 में, प्रित्ज़को और टीम ने लकड़ी, चट्टानें, प्लास्टिक, कांच, सीमेंट, स्टेनलेस स्टील और एल्युमीनियम सभी में हैम्सटर-अनुकूलित स्क्रैपी प्रोसंक एजेंटों को संगठित करने और संक्रमण के लिए वाहक (वैक्टर) के रूप में कार्य करने की क्षमता पायी है; पीतल उनकी परीक्षण सामग्री का अपवाद था और एक वाहक के रूप में काम नहीं करता है। क्रोनिक वैस्टिंग डिजिज, हिरण प्रजाति के जानवरों (Cervids) को प्रभावित करने वाला प्रोसंक रोग, प्रोसंक ऐजेंटों की भण्डारागार के रूप में कार्य करने वाली चट्टानों से नमक चाटने के माध्यम से भी फैल सकता है, और इसकी संप्रेषणीयता (Transmissibility) ने अन्य प्रजातियों में फैलने की क्षमता के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है। प्रोसंक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में अधिशोषित होते हैं, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो मौखिक संचारण क्षमता को बढ़ाती है। उच्च मृत्तिका (Clay) सामग्री वाली मिट्टी में प्रोसंक के प्रति विशेष आकर्षण पाया गया है (Swire & Colchester 2023)।
अपवाहित पानी: संक्रमित सामग्री से बहने वाले पानी में प्रोसंक एजेंटों को मौजूद पाया गया है। पांच वर्ष के प्रयोग में पच्चीस महीनों के लिए बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफलाइटिस दूषित बोलस[3] के माध्यम से गुजरने वाला वर्षा जल संक्रामक पाया गया। जबकि मिट्टी के भीतर अपेक्षाकृत कम अमुख्य (Lateral) प्रवासन पाया गया, इस प्रयोग से पता चलता है कि एक वाहक के रूप में पानी के साथ, प्रोसंक एजेंट पानी के अपवाह (Runoff) में मौजूद हो सकते हैं, इस प्रकार जल स्तर (Water table) में प्रवेश कर सकते हैं। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि मिट्टी की जलीय धुलाई 29 महीनों के बाद भी संक्रामक पायी गई। इसके अलावा, जलीय वातावरण में प्रोसंकों की उच्च स्थिरता होती है और जल उपचार प्रक्रियाओं के बावजूद संक्रामकता अनुरक्षित (Maintained) रहती है, जिससे मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए संभावित जोखिम रहता है। अंत में, जल उपचार के बाद तलछट, जहां संक्रामक रोगाणु जमा होते हैं, भूमि पर उर्वरक के रूप में उपयोग की जाती है और प्रोसंक संक्रमण का जोखिम पैदा कर सकती है (Swire & Colchester 2023) ।
मिट्टी और पौधे: जहां मिट्टी में प्रोसंक मौजूद होते हैं, पौधे अंकुरों और पत्तियों के संक्रमित होने के साथ, प्रोसंक कणों को ग्रहण कर सकते हैं। वायुविलय (Aerosolled) वाले प्रोसंक कणों को संभावित रूप से संक्रामक पाया गया है, और संपर्कन (Exposure) के बाद कई सप्ताह तक पौधे के वायव (Aerial) भागों के साथ आबद्ध (Bind) हो सकते हैं (Swire & Colchester 2023)।
मध्यवर्ती वाहक: जानवरों को भी प्रोसंक संक्रमणों के लिए मध्यवर्ती वाहक के रूप में कार्य करने के लिए पाया गया है। कौवे और कोयोट सहित जानवरों को पाचन के बाद भी संक्रामक प्रोसंक कणों को मल के साथ बाहर निकालने के लिए पाया गया है। कुछ जानवर एक दिन में 100 ग्राम तक मिट्टी खा जाते हैं, संभावित रूप से प्रोसंक-संरक्षण वाली मिट्टी से संक्रमित हो जाते हैं और प्रोसंक मेजबान में परिवर्तित हो जाते हैं Johnson 2005)।
जैविक प्रक्रियाएं: हालांकि, छिटपुट (Sporadic) क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग चिकित्सा प्रक्रियाओं द्वारा मनुष्यों को हो सकता है लेकिन आजीवन शाकाहारियों में भी छिटपुट क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग विकसित होते पाया गया है (Johnson 2005)। इससे यह पता चलता है कि जैविक प्रक्रियाएं प्रारंभिक रूप से दूषित क्षेत्र से बाहर प्रोसंक कणों को वितरित कर सकती हैं, जिससे जोखिम को कम करने का महत्व बढ़ जाता है (Swire & Colchester 2023)।
चिकित्सालीय संक्रमण: प्रोसंक-संक्रमित ऊतक पारंपरिक निर्जर्मीकरण (Sterilization) के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी हैं। लोगों के बीच ट्रांसमिसिबल स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथीज (TSE) का संचरण कॉर्निया प्रत्यारोपण, ड्यूरल ग्राफ्ट, मानव पिट्यूटरी ग्रंथियों से निकाले गए हार्मोन के इंजेक्शन और दूषित न्यूरोसर्जिकल उपकरणों के साथ पाया गया है। चिकित्सालय व्यवस्था में, यदि रोगियों के बीच संक्रमित उपकरणों का पुनः उपयोग किया जाता है, तो प्रोसंक रोग संभावित रूप से एक रोगी से दूसरे में संचरित हो सकते हैं। गिब्स ने पाया कि त्रिविम स्थाननिर्धारण (Stereotactic) बहु-संपर्क विद्युतग्र (Electrodes) का उपयोग क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग के एक रोगी पर किया जाता है, जो सावधानीपूर्वक पारंपरिक निर्जर्मीकरण के बावजूद बाद के दो अन्य रोगियों को भी संक्रमित कर सकते हैं। कठोर अतिरिक्त कीटाणुशोधन के बावजूद शुरुआती शल्य चिकित्सा के बाद तीन वर्ष तक वही विद्युतग्र संक्रमित बने रहते हैं (Gibbs et al. 1994)। तंत्रिका ऊतक प्रभावित रोगियों में सबसे अधिक संक्रामक भार वहन करते हैं, तंत्रिकाशल्यक (Neurosurgical) प्रक्रियाओं में प्रोसंक रोगों की सबसे अधिक संचरण दर की संभावना होती है (Johnson 2005, Thomas et al. 2013)।
अंत्येष्टि स्थल: अंत्येष्टि स्थलों पर काम करने वाले व्यक्तियों में रोग के संकुचन का उच्च जोखिम होता है। भूमि को उलट-पुलट करना और विध्वंसक सामग्री जो प्रोसंक कणों को शरण दे सकती है, अपने साथ संचरण जोखिम को बढ़ावा देती है, क्योंकि धूल संक्रामक कणों को प्रलंबित (Suspended) कर सकती है, और सुरक्षित निपटान की आवश्यकता वाले संक्रामक कचरे को उत्पन्न कर सकती है (Gough et al. 2015; Nichols et al. 2013)।
प्रोसंक प्रोटीन द्वारा रोगजनन
- मिसफोल्डेड प्रोटीन (पीआरपीएससी) अंतर्जात (Endogenously) रूप से उत्पन्न होता है या संक्रमित जानवरों या मानव से बहिर्जात (Exogenous) स्रोतों के माध्यम से शरीर के अंदर प्रवेश करता है। लेकिन, प्रोसंक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक कैसे पहुंचते हैं, अभी तक पूरी तरह नहीं ज्ञात है। हालांकि, यह माना जाता है कि प्रोसंक वक्षीय रीढ़ की हड्डी के स्तर पर और मस्तिष्क से जुड़ने वाले पैरासिम्पेथेटिक फाइबर के माध्यम से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंच सकते हैं।
- पीआरपीएससी तंत्रिका कोशिकाओं और भक्षकाणुओं (Phagocytes) द्वारा ग्रहण किया जाता है, लेकिन बिना ख़राब हुए यथावत रहता है।
- पीआरपीएससी के संपर्क में आने वाला हेलिकल प्रोटीन (पीआरपीसी) भी इसी की तरह अर्थात पीआरपीएससी में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार रोगणणुकारक पीआरपीएससी शरीर में गुणात्मक वृद्धि दर से अपनी प्रतिकृतियां (Replicas) बढ़ाता है।
- पीआरपीएससी तंत्रिका कोशिकाओं में रिक्तीकरण (Vacuolization) करता है, जो कि प्रोसंकों के कारण होने वाले मस्तिष्कशोथ (Encephalitis) में देखा जाने वाला एक प्रमुख रोग परिवर्तन है।
- इसके अलावा, अधिक मात्रा में प्रोसंकों के संचय से मस्तिष्क के ऊतकों को नुकसान होता है।
- इनमें अमाइलॉइड युक्त पट्टिकाओं (Plaques) और फाइब्रिल्स का निर्माण, एस्ट्रोसाइट्स (Astrocytes[4]) का प्रसार और अतिवृद्धि, और तंत्रिका कोशिकाओं और निकटस्थ ग्लियल कोशिकाओं का संलयन (Fusion) शामिल है।
मानव प्रोसंक रोग
- कुरु (Kuru)
पूर्ववर्ती भाषा[5] में “कुरु” शब्द का अर्थ बुखार या सर्दी से कांपना है। इस रोग से पीड़ित खासतौर से महिलाएं संयमहीनता स्वरूप अत्यधिक हंसा करती थीं और अक्सर उन्हें मूर्ख कहा जाता था, इसलिए कुछ लोग इस बीमारी को ‘नेगी-नागी’ भी कहते थे, जिसका अर्थ ‘मूर्ख या मूर्ख व्यक्ति’ होता है। एक परिकल्पना है कि लगभग 45,000 से 30,000 वर्ष पूर्व होमो सेपियन्स के साथ सह-अस्तित्व में निएंडरथल का विलुप्त होना नरभक्षण द्वारा फैली “कुरु जैसी” महामारी के प्रकट होने से जुड़ा है (Liberski et al. 2019)। कुरु मानव का पहला स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी रोग था जो गैर-मानव प्राइमेट्स में प्रायोगिक रूप से प्रसारित पाया गया। हालांकि, ऑस्ट्रेलियाई मानवविज्ञानी रोनाल्ड और कैथरीन बेरंड्ट के 1951-1952 के अध्ययन के परिणामस्वरूप पहली बार कुरू रोग वैज्ञानिक दुनिया के ध्यान का केन्द्र बना बन गया था (Poser 2002) लेकिन कुरु रोग को 1957 में न्यू गिनी के एक दूरस्थ क्षेत्र में वर्णित किया गया था। पूर्ववर्ती भाषाई समूह के लोग, जिनकी संख्या लगभग 30000 थी, जो अभी पाषाण-युगीन सभ्यता से उभर रहे थे और एक ऐसी संस्कृति में रहते थे जिसमें वे पड़ोसियों के साथ युद्ध करते थे, टोना-टोटका में विश्वास करते थे, और अनुष्ठान के रूप में स्व-समूह सजातिभक्षण (एंडोकैनिबलिज़्म[6]) का पालन किया करते थे। बाह्य-समूह सजातिभक्षण (एक्सोकैनिबिलिज्म) बाहरी दुश्मनों को खाने को संदर्भित करता है। कुरु एक तेजी से फैलने वाला अनुमस्तिष्क गतिभंग (Cerebellar ataxia) रोग है जिसमें कुछ महीनों के भीतर ही पीड़ित असहाय हो जाते थे; संज्ञानात्मक (Cognitive) परिवर्तन केवल रोग के उन्नत चरणों में विकसित हुए पाये गये। इस रोग में कभी भी किसी जीवित बचे रोगी की घटना दर्ज नहीं है। इस बीमारी से ग्रस्त महिलाओं और पुरुषों का वयस्क अनुपात लगभग 10 : 1 था; 5 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे मध्यम दर पर प्रभावित हुए, जिसमें लड़के और लड़कियां समान रूप से संक्रमित हुए पाये गये (Johnson 2005)। 1960 के बाद से (जब नरभक्षण प्रथा समाप्त हो गई थी) यह स्पष्ट हो गया था कि किसी भी व्यक्ति की इस रोग से मृत्यु का मामला प्रकाश में नहीं आया था, जिससे इस परिकल्पना की पुष्टि होती है कि मृतकों के शव को खाने से इस रोग का संचरण होता था। इस प्रकार देखा जाए तो इस रोग ने पूर्वीवर्ती लोगों (Fore people) के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया था। 2009 में कुरु का आखिरी मामला आया जिसे इस महामारी का अंत कहा जाता है (Lindenbaum 2015)।
- क्रुट्ज़फेल्ट–जैकब रोग (CJD)
1920 में हंस-गेरहार्ड क्रुट्ज़फेल्ट द्वारा एक युवा महिला में और 1921 और 1923 में अल्फोंस जैकब द्वारा मानव प्रोसंक रोग के पहले मामलों का वर्णन किया गया (Geschwind 2015) और उन्हीं के नाम पर इस रोग का नाम “क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग” रखा गया। यह विशिष्ट लाक्षणिक (Clinical) और नैदानिक (Diagnostic) विशेषताओं वाला तंत्रिका अपक्षयी विकार है। यह रोग तेजी से बढ़ता है और हमेशा घातक होता है। इस बीमारी के संक्रमण से आमतौर पर बीमारी की शुरुआत के एक वर्ष के भीतर मौत हो जाती है (CDC 2021b)।
- छिटपुट क्रुट्ज़फेल्ट–जैकब रोग (SCJD)
माना जाता है कि विश्वभर में पाये जाने वाले इस रोग के अधिकांश मामले (लगभग 85%) छिटपुट (Sporadic) रूप से घटित होते हैं, जो सामान्य प्रोसंक प्रोटीन के असामान्य प्रोसंक प्रोटीन में स्वतःस्फूर्त (Spontaneous) परिवर्तन के कारण होता है (Johnson 2005, CDC 2021b)। यह रोग पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है, औसत आयु 60 वर्ष है, और यह 40 वर्ष से कम या 80 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में दुर्लभ है (Johnson 2005, Sitammagari & Masood 2018)।
लगभग एक-तिहाई मामलों में शुरुआती लक्षण थकान, अव्यवस्थित नींद और भूख में कमी की दैहिक (Systemic) लक्षण होते हैं। लगभग दूसरे एक-तिहाई रोगियों में व्यवहार या ज्ञानात्मक (Cognitive) परिवर्तन पाये जाते हैं। प्रमुख ज्ञानात्मक परिवर्तन में कमी और पेशीऐंठन (Myoclonus) विकसित होने के साथ रोग तेजी से बढ़ता है, विशेष रूप से चौंकाने वाला पेशीऐंठन लक्षण। तीसरे एक-तिहाई रोगियों में दृश्य हानि, अनुमस्तिष्कीय (Cerebellar) गतिभंग, वाचाघात (Aphasia), या गतिक घाटा (मोटर डेफिसिटः तंत्रिका तंत्र के विकार जो असामान्य और अनैच्छिक गतिविधियों का कारण बनते हैं) जैसे मुख्य लक्षण हैं (Johnson 2005)।
कोविड-19 वैक्सीन के बाद नया क्रुट्ज़फेल्ट–जैकब रोग? (कोविड–19 “वैक्सीन” के “दुष्प्रभाव“)
क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग, मनुष्यों में एक दुर्लभ लेकिन सार्वभौमिक रूप से घातक प्रोसंक रोग है जो आमतौर पर मृत्यु पूर्व कई वर्षों तक बढ़ता है लेकिन पेरेज़ एवं सहयोगियों (2023) के अनुसार 2021 में तेजी से विकसित होने वाले क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग के नए रूप के 26 मामलों में किए गए अध्ययन के अनुसार, प्रारंभिक लक्षण कोविड-19 टीका (फाइज़र, मॉडर्ना या एस्ट्राजेनेका) के दो अंतःक्षेपणों (Injections) के बाद औसतन 11.38 दिनों के भीतर दिखाई दिये हैं)। शोधकर्ताओं की टीम के अनुसार, “यह अनुमान लगाना सही है कि इन 26 मामलों में अंतःक्षेपण से बीमारी हुई। यदि ऐसा है, तो उन्होंने शायद कई अन्य मामलों का भी कारण बना दिया है, रोगियों की जल्दी मृत्यु होने के कारण उनका निदान नहीं किया जा सका। 2021 के अंत तक, टीका लगने के 4.76 महीनों के भीतर 20 की मौत हो गई थी। उनमें से, 2.5 महीने के भीतर अचानक 8 की मृत्यु हो गई, जो क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग के इस त्वरित रूप की तीव्र प्रगति की पुष्टि करता है। जून 2022 तक, 5 और रोगियों की मृत्यु हो गई थी, और इस वर्तमान लेखन के समय, केवल एक ही जीवित बचा है।” इससे पता चलता है कि टीकाकरण क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब प्रोसंक रोग के एक त्वरित रूप का कारण बन रहा है, और इससे भी बुरा क्या है, यदि यह संभव है कि चीजें वास्तव में बुरी हो रही हों, और पीड़ित व्यक्ति को पहली बार शिष्टतापूर्ण रूप से कोविड-19 वैक्सीन के ‘दुष्प्रभाव’ बताये जाते हैं जो टीका लगने के छः महीने बाद अधिक गंभीर प्रतीत होते हैं (Oller 2023)।
- वंशानुगत सीजेडी (Inherited CJD)
प्रोसंक प्रोटीन जीन के वंशानुगत उत्परिवर्तन के कारण 5-15 प्रतिशत रोगियों में क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग विकसित होता है। इन वंशानुगत रूपों में निम्नलिखित रोग शामिल हैं (CDC 2021b):
- गेरस्टमन–स्ट्रॉसलर–शेइंकर सिंड्रोम
गेरस्टमन-स्ट्रॉस्लर-शेइंकर सिंड्रोम (Gerstmann-Straussler-Scheinker Syndrome) आमतौर पर 40-50 वर्ष की आयु के भीतर अनुमस्तिष्क शिथिलता की घातक शुरुआत के साथ शुरू होता है, जो अस्थिर चाल और/या हल्के उच्चारण दोष (Dysarthria) के रूप में प्रकट होता है। हो सकता है कि ज्ञानात्मक (Cognitive) अक्षमता शुरू में मौजूद न हो; हालांकि, रोग की वृद्धि के साथ, ब्रैडीफ्रेनिया (विचार प्रसंस्करण की धीमी गति), और स्पष्ट ज्ञानात्मक हानि अंततः स्पष्ट हो जाती है। पिरामिड[7] संबंधी भागीदारी, अतिपेशीतानता (Spasticity) और/या पिरामिडेतर (एक्स्ट्रापिरामिडल) भागीदारी के रूप में प्रकट होती है, जिसके परिणामस्वरूप गति का धीमा होना (ब्रैडीकेनेसिया), मांसपेशियों की टोन में वृद्धि, और चेहरे की अभिव्यक्ति कम होना (Masked facies) भी आम लक्षण हैं। मनोरोग या व्यवहार संबंधी लक्षण असामान्य होते हैं। लाक्षणिक विशेषताओं में परिवर्तनशीलता के बावजूद, यह सिंड्रोम तीन से सात या अधिक वर्षों के दौरान अपेक्षाकृत धीमी गति से, लेकिन निरंतर गति से फैलता है (Mastrianni 2023)।
- पारिवारिक क्रुट्ज़फेल्ट–जैकब रोग (Familial CJD):
पारिवारिक क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग के मामले प्रोसंक प्रोटीन जीन में अलिंग गुणसूत्री (ऑटोसोमल) उत्परिवर्तन के प्रमुख वंशानुक्रम को दर्शाते हैं। प्रारंभिक अधिकांश नैदानिक लक्षणों में स्मृति हानि शामिल है; बाद में, व्यवहार और व्यक्तित्व में क्रमिक कमी; सामाजिक रूप से पीछे हटना और उदासी; कभी-कभी मनोदशा (Mood) बदलने और भावनात्मक दायित्व के साथ चिड़चिड़ापन और यहां तक कि आक्रामकता; शब्द बोलने और संवाद करने की क्षमता में प्रत्यक्ष कमी; रोगी बार-बार शब्दों को दोहराता है और सामान्य प्रत्यय (Suffix) के साथ परिवार के सदस्यों को संबोधित करता है; व्यक्तिगत सौंदर्य और स्वच्छता में कमी; स्थितिभ्रान्ति (Disorientaion), बोलने में बहुत कठिनाई के साथ बिस्तर से आबद्ध (Bed-bound), हाथ कांपना, और मूत्र और मल की असंयमिता (Incontinence); जबरन हाथों से छूने/टटोलने (Groping) और मुंह से बोलने/छूने (Mouthing) के साथ-साथ उपकरणों को अकारण प्रसक्ति (Perseveration) एवं अत्यावश्यक (Compulsive) रूप से पकड़ना/छेड़ना; अतिसक्रियता जिसमें बिना किसी विचार के वस्तुओं को पकड़ना और पलकों का अनियंत्रित रूप से दबना या फड़कना (Exaggerated blepharospasm) शामिल हैं; गालों और चेहरे का चलाघात (Bucco-facial apraxia); और चौंकने या डरने पर पेशीऐंठन हो सकता है और अंततः रोगी की मृत्यु हो जाती है (Katrak et al. 2019).
- घातक पारिवारिक अनिद्रा
घातक पारिवारिक अनिद्रा (Fatal familial insomania) आमतौर पर मध्य जीवन (40-50 वर्ष) में अनिद्रा की शुरुआत के साथ प्रस्तुत होता है, शुरू में हल्के, फिर अधिक गंभीर, समग्र नींद के समय में कमी के रूप में प्रकट होता है। जब नींद पूरी हो जाती है, तो ज्वलंत सपने आना आम बात है। और फिर स्वायत्त (Autonomic) कार्य में गड़बड़ी उभरती है और उच्च रक्तचाप, वृतांत्तिक अतिवातायनता (एपिसोडिक हाइपरवेंटिलेशन), अत्यधिक अश्रुपात, यौन और मूत्र पथ की शिथिलता और/या आधारीय (Basal) शरीर के तापमान में बदलाव के रूप में प्रकट होता है। मस्तिष्क स्तंभ (Brainstem) की भागीदारी के लक्षण, जिसमें ऊपर की ओर टकटकी लगाने की क्षमता में कमी, दोहरी दृष्टि, झटके के साथ आंखें झपकने के साथ ही पीछे करने की गति, या उच्चारण दोष विकसित हो सकते हैं। अगले कई महीनों में निरंतर रोग बढ़ने के साथ, व्यक्तियों में मध्यशरीर (Truncal) और/या उंडुक पुच्छ (Appendicular) गतिभंग विकसित हो जाता है। घातक पारिवारिक अनिद्रा रोग आमतौर पर 12-16 महीने तक चलता है (Mastrianni 2023)।
- अभिगृहीत (Acquired) सीजेडी
एक प्रतिशत से भी कम मामलों में प्रोसंक रोग का यह रूप आमतौर पर मानव या पशु से मौखिक या चिकित्सकजनित; कुछ शल्य प्रक्रियाओं के माध्यम से, संक्रमित मस्तिष्क या तंत्रिका ऊतकों के संपर्क में आने पर संचारित होता है। आमतौर पर यह रोगऔसतन 29 वर्ष के युवा वयस्कों में देखा जाता है। एमआरआई में पुल्विनर[8] चिन्ह (पूर्वकाल प्यूटामेन[9] के सापेक्ष पुल्विनार की उच्च तीव्रता) का उल्लेख किया गया है (Sitammagari & Masood 2018)।
- वेरिएंट क्रुट्ज़फेल्ट–जैकब रोग (VCJD): वैरिएंट क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग (vCJD) एक प्रोसंक रोग है जिसे पहली बार 1996 में ब्रिटेन में वर्णित किया गया था। अब इस बात के पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि गायों में प्रोसंक रोग के प्रकोप के लिए जिम्मेदार एजेंट, बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (बीएसई या ‘मेडकाऊ’ रोग), वही एजेंट है जो मनुष्यों में इस के प्रकोप के लिए जिम्मेदार है (CDC 2021C, Mastrianni 2023)। विशिष्ट नैदानिक लक्षणों में व्यवहार परिवर्तन (उदासीनता और अवसाद) और/या शरीर के निचले छोरों में दर्द शामिल होता है जो अंततः गतिभंग और पेशीऐंठन के साथ मनोभ्रंश (Dementia) का कारण बनता है (Mastrianni 2023)।
- चिकित्साजनित (Iatrogenic) क्रुट्ज़फेल्ट–जैकब रोग (ICJD): इस प्रकार का प्रियन रोग एक जैविक अर्क या प्रोसंक से दूषित ऊतकों के संपर्क में आने के परिणामस्वरूप होता है। इस तरह के स्रोतों में मानव विकास हॉर्मोन के इंजेक्शन (1980 से पहले उपयोग किए गए), अनुचित रूप से शरीर के अन्दर गहराई जांच करने वाले विद्युतग्र (Electrodes) जो पहले क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग वाले व्यक्तियों में उपयोग किए जाते थे, क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग वाले व्यक्तियों से प्राप्त कॉर्निया का प्रत्यारोपण, ड्यूरा मेटर[10] प्रत्यारोपण, और कुछ न्यूरोसर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल हैं (Mastrianni 2023)।
पशु प्रोसंक रोग
- बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी (BSE)
1985 में, ब्रिटेन में बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी के पहले मामले देखे गए; अगले दशक (1990) में पूरे देश में एक व्यापक महामारी के कारण लगभग दस लाख गायों को संक्रमण हुआ। गौवंश और चारे के निर्यात से यह बीमारी यूरोप और विश्व के कुछ देशों में फैली (Johnson 2005)। दूषित मांस और अस्थि आहार (MBM) और अन्य गौवंश उप-उत्पादों के माध्यम से मौखिक संचरण और अजातिक (Atypical) मामले स्वतःस्फूर्त (Spontaneous) पाये गये (Richt & Haley 2022)।
बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी वयस्क मवेशियों की एक प्रगतिशील, घातक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। मानसिक विकार, गतिभंग, दृष्टि, स्पर्श और श्रवण के प्रति अतिसंवेदनशीलता इस रोग की विशेषता है। हिस्टोपैथोलॉजिकल विशेषताएं मस्तिष्क के स्पंजी वेसिकुलर डिजनरेशन हैं (Prusiner 1991)। इस बीमारी के लिए रोगोद्भवन अवधि आमतौर पर 2-8 वर्ष होती है (Spickler 2016C)। रोग की विशेषता लंबी रोगोद्भवन अवधि और धीमी प्रगति है। बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी के विकास को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है: जैविक शुरुआती चरण, पूर्व लाक्षणिक (प्रीक्लिनिकल) चरण, लाक्षणिक चरण और संक्रमण चरण। बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी से संक्रमित गौवंश में मानसिक विकार हो सकते हैं, जैसे भय या व्यक्तियों द्वारा संपर्क किए जाने पर आक्रामक हो जाना, गतिक (Motor) विकार जैसे गतिभंग, कंपकंपी और स्पर्श, ध्वनि और प्रकाश के प्रति अतिसंवेदनशीलता सहित संवेदी विकार। संक्रमित गायें हंस की तरह लंबे-लंबे कदम रखती (limbs over-extended) हैं जिसे ‘हंस कदम’ (Goose step) चाल कहा जाता है (Spickler 2016C, Wu et al. 2021)।
- क्रोनिक वेस्टिंग डिजीज (CWD)
हिरणों (Cervids) की क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज पहली बार 1960 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो में एक वन्यजीव अनुसंधान सुविधाकेन्द्र में बंदी खच्चर हिरण में पाई गई थी और 1980 में इसकी प्रोसंक रोग होने की पुष्टि हुई थी। क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज मुक्त रेंजिंग रेनडियर (Rangifer tarandus), यूरोपीय मूस (Alces alces) में भी पाया गया था। बंदी और वन्य दोनों सरविड्स में, क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज अत्यधिक संक्रामक पाया गया है (Houston & Andréoletti 2018)। मल-मूत्र और पर्यावरण संदूषण के माध्यम से मौखिक संचरण को भी प्रलेखित किया गया है (Richt & Haley 2022)।
न्यूनतम रोगोद्भवन अवधि लगभग 16 महीने मानी जाती है, और औसत रोगोद्भवन अवधि संभवतः 2 से 4 वर्ष है। सबसे अधिक घटनाएं 2-7 वर्ष की उम्र के बीच होती हैं। अधिक लंबी रोगोद्भवन अवधि भी संभव हो सकती है; ऐसे पशुसमूह जहां क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज स्थानिक (Endemic) है, ऐसे जानवरों में मामले सामने आए हैं जो 15 वर्ष से अधिक पुराने थे (Spickler 2016F)। नैदानिक बीमारी 2.5-4.0 वर्ष के आयु वर्ग के हिरणों में प्रवेश करने के बाद या युवा वयस्कों के रूपों में हुई पायी गई। पशु क्षीण हो गए, और उनमें व्यवहार परिवर्तन, अस्थिरता और अत्यधिक लार आना विकसित हो गया। मृत्यु हफ्तों से लेकर महीनों के भीतर हुई, और दिमाग की पैथोलॉजिकल जांच में ग्रे-मैटर में व्यापक स्पॉन्जिफॉर्म परिवर्तन पाया गया। खच्चर-हिरण के संपर्क में एक एल्क ने रोग विकसित किया, और रोग को प्रायोगिक रूप से विभिन्न प्रजातियों में प्रसारित किया गया, जिसमें गिलहरी बंदरों और गायों को संचरण के सीमित प्रमाण शामिल थे (Johnson 2005)।
- स्क्रैपी
स्क्रैपी लगभग विश्वभर में (ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर) भेड़, बकरियों और मौफलों (Moufflons) में स्वाभाविक रूप से होने वाला प्रोसंक रोग है और लगभग 270 वर्षों से जानी जाती है। यह क्लासिकल (Classical) और अजातिक (Atypical) दो प्रकार का रोग होता है (Fast & Groschup 2023)।
- क्लासिकल स्क्रैपी स्पष्ट रूप से प्राकृतिक रूप से होने वाला संक्रामक रोग है। क्लासिकल रूप के लिए मलमूत्र, अपरा (Placental) के ऊतकों, शवों और पर्यावरण संदूषण के माध्यम से मौखिक संचरण जबकि अजातिक का संचरण स्वतःस्फूर्त (Sppntaneous) होता है (Richt & Haley 2022)। क्लासिकल स्क्रैपी के लिए रोगोद्भवन अवधि रोग जानवरों में 2-7 वर्ष होने का अनुमान है, लेकिन 2-5 वर्ष की आयु वाले जानवरों में चरम घटनाएं होती हैं। एक वर्ष से कम आयु के जानवरों में बीमारी के लक्षण दुर्लभ हैं।
- अजातिक स्क्रैपी संभवतः गैर-संक्रामक है और प्रिओन प्रोटीन की आयु से संबंधित स्वतःस्फूर्त मिसफॉल्डिंग के कारण होता है। अजातिक स्क्रैपी के लिए रोगोद्भन अवधि अनिश्चित है, लेकिन यह आमतौर पर क्लासिकल स्क्रैपी की तुलना में बूढ़े जानवरों में देखा जाता है। प्रयोगशाला में, हालांकि, मौखिक रूप से टीका लगाए गए कुछ नवजात मेमनों में 2 वर्ष की उम्र तक स्नायविक (Neurological) लक्षण दिखाई देते हैं (Spickler 2016G)। चिकित्सकीय रूप से, इस रोग की पहचान ऊन का आखुरण (Scraping), लड़खड़ाना और व्यवहार में बदलाव से होती है और इसका रोग काल प्रगतिशील होता है, जिससे 3-6 महीनों में मृत्यु हो जाती है।
- ट्रांसमिसिबल मिंक एन्सेफैलोपैथी
ट्रांसमिसिबल मिंक एन्सेफैलोपैथी मिंक रैंच में सीमित प्रकोप के रूप में दर्ज हुई है। पहली बार यह रोग विस्कॉन्सिन, संयुक्त राज्य अमेरिका में दर्ज किया गया, अधिकांश प्रकोपों को मिंक फ़ीड आपूर्तिकर्ताओं को इस धारणा के साथ खोजा गया कि स्क्रैपी रोगजनक संक्रमित भेड़ फ़ीड में शामिल हो सकते हैं। कुछ मामलों में महामारी उन वयस्कों को खिलाने से बढ़ गई, जिनकी चमड़ी को युवा मिंक से हटा दिया गया था (Johnson 2005)। ट्रांसमिसिबल स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथीज में महीनों या वर्षों की रोगोद्भन अवधि होती है। ट्रांसमिसिबल मिंक स्पॉन्जिफॉर्म की सबसे कम अनुमानित रोगोद्भन अवधि 6-12 महीनों होती है, जबकि स्क्रैपी, बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी, फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी और क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज आमतौर पर अपने प्राकृतिक मेजबानों में 2 वर्ष या उससे अधिक आयु के बाद स्पष्ट हो जाते हैं। लाक्षणिक मामले इस अवधि से पहले हो सकते हैं, लेकिन असामान्य हैं (Spickler 2016E)। ट्रांसमिसिबल स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी आमतौर पर शुरुआत में घातक होती है और धीरे-धीरे प्रगति करती है। नैदानिक (Clinical) लक्षण मुख्य रूप से तंत्रिका तंत्र से संबंधी होते हैं, और आमतौर पर व्यवहार में परिवर्तन के साथ-साथ कंपकंपी, गतिभंग और उत्तेजनाओं से संबंधी अतिसक्रियता जैसे स्पष्ट तंत्रिकीय (Neurological) लक्षण होते हैं। क्लासिकल स्क्रैपी वाली भेड़ों में तीव्र खुजली (Pruritus) आम है; हालाँकि, बकरियों में कम गंभीर या अनुपस्थित होती है, और यह अजातिक स्क्रैपी प्रिओन से संक्रमित अधिकांश भेड़ या बकरियों में न्यूनतम या असामान्य (Uncommon) होती है।
बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी, क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज या ट्रांसमिशन मिंक एन्सेफैलोपैथी में खुजली एक सामान्य लक्षण नहीं है। शरीर की स्थिति का नुकसान सभी ट्रांसमिसिबल स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथीज में देखा जा सकता है; हालांकि, क्रॉनिक वेस्टिंग डिजीज वाले सरविड्स में अपक्षय (Wasting) विशेष रूप से प्रमुख है, और कुछ जानवर मरने से पहले गंभीर रूप से क्षीण हो जाते हैं। कुछ सरविड्स मुख्य रूप से वजन कम होने, और कुछ में स्नायविक लक्षण मौजूद होते हैं। एक बार जब कोई जानवर रोगसूचक हो जाता है, तो सभी संचरित होने वाले स्पॉन्जिफ़ॉर्म एन्सेफैलोपैथीज आमतौर पर हफ्तों से लेकर महीनों तक लगातार प्रगतिशील और घातक होते हैं, (Spickler 2016E)।
- फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी
1990 में घरेलू बिल्लियों में पहला फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी मामला दर्ज किया गया था। 1990 से 2007 तक, फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी को ब्रिटेन, अन्य यूरोपीय देशों और ऑस्ट्रेलिया में घरेलू बिल्लियों, चीता, शेर, प्यूमा, बाघ, लेटिन अमेरिकन बिल्ला (Ocelots), एशियाई तेंदुओं और एशियाई सुनहरी बिल्लियों सहित विभिन्न बिल्ली के समान जानवरों में रिपोर्ट किया गया था (Kim et al. 2021)। चीतों में फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी की रोगोद्भवन अवधि 4.5-8 वर्ष होने का अनुमान है। घरेलू बिल्लियों में रोगोद्भवन अवधि निर्धारित नहीं की गई है। हालाँकि, सभी घरेलू बिल्लियों में रोगोद्भवन अवधि कम से कम दो वर्ष की रही है, और अधिकांश 4-9 वर्ष की आयु के बीच थी (Spickler 2016D)।
फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी के नैदानिक लक्षण घरेलू बिल्लियों में धीरे-धीरे विकसित होने की सूचना है। व्यवहारिक परिवर्तन, जैसे कि अनैच्छिक आक्रामकता, या असामान्य कायरता और छिपना, आमतौर पर प्रारंभ में देखे जाते हैं। गति असामान्यताएं और गतिभंग भी आम हैं, और आमतौर पर सबसे पहले पिछले पैर प्रभावित होते हैं। प्रभावित बिल्लियाँ अक्सर दूरी का खराब निर्णय प्रदर्शित करती हैं। कुछ बिल्लियाँ तीव्र, दुबक कर बैठना (Crouching), हाइपरमीट्रिक[11] (Hypermetric) चाल विकसित कर लेती हैं। अतिसंवेदिता (Hyperesthesia) आम है, खासकर जब बिल्लियाँ ध्वनि या स्पर्श से अचानक उत्तेजित हो जाती हैं। कुछ बिल्लियों में असामान्य सिर झुकाव (Head tilt) हो सकता है, कंपकंपी विकसित हो सकती है, रिक्तिक रूप से घूरना या घूमना। अत्यधिक लार, आत्म संवरने (Grooming) में कमी, अतिभोजी (Polyphagia), अतिपिपासा (Polydypsia) और फैली हुई पुतलियां भी हो सकती हैं। रोग के देर के चरणों में, उनींदापन (Somnolence) आम है और आक्षेप (Convulsions) हो सकता है। चिड़ियाघर की बिल्लियों में भी इसी तरह के नैदानिक लक्षण देखे गए हैं। एक बार जब फेलाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं, तो यह रोग निरंतर प्रगतिशील और घातक होता है। मृत्यु (या दुर्बलता के कारण इच्छामृत्यु) आमतौर पर कुछ हफ्तों से 3 महीने के भीतर होती है (Spickler 2016D)।
- अनगुलेट स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी:
एग्जोटिक (Exotic) अनगुलेट स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी एक दुर्लभ न्यूरोडीजेनेरेटिव मस्तिष्क विकार है, जो खुरों वाले स्तनधारियों में पाए जाने वाले प्रिओन के कारण होता है। अनगुलेट स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी रोग के मामले ब्रिटेन में बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्फेलाइटिस महामारी के साथ अतिव्यापी (Ovelapping) अवधि के दौरान 6 ग्रेटर कुडू, 6 ईलैंड्स, दो-दो मामले अरेबियन ऑरिक्स और एंकोल गायों, और एक-एक मामला जेम्सबोक, न्याला, स्किमिटर-हॉर्न्ड ऑरिक्स और बाइसन में नैदानिक लक्षणों के साथ देखे गए। प्रभावित जानवरों को जुगाली करने वाले जानवरों से प्राप्त मांस और हड्डी का भोजन (एमबीएम) खिलाया गया था। अनगुलेट स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी के सभी मामले घातक होते हैं। नैदानिक लक्षण प्रजातियों के अनुसार अलग-अलग होते हैं और बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्फेलाइटिस और स्क्रैपी से भिन्न होते हैं। सभी अनगुलेट स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी से पीड़ित जानवर इस बीमारी से मर गए (Imran & Mahmood 2011, Bedi et al. 2022)।
विभेदक निदान
मनुष्यों में, तेजी से प्रगतिशील मनोभ्रंश (dementia) में संवहनी (vascular), तंत्रिकाकोशिका अपक्षयी (Neurodegenerative), ऑटोइम्यून, संक्रामक, थ्रोम्बोम्बोलिक, मेटास्टेसिस/नियोप्लाज्म, चिकित्सकजनित (iatrogenic) और विषाक्त चयापचय स्थितियों सहित एक व्यापक अंतर है।
संवहनी स्थिति जैसे स्ट्रोक (Stroke) या एकाधिक रोधगलन (Infarction) या सेरेब्रल माइलॉयड एंजियोप्लास्टी, या उच्च रक्तचाप से ग्रस्त एन्सेफैलोपैथी तेजी से प्रगतिशील मनोभ्रंश का कारण बन सकती है। संवहनीशोथ (Vasculitis) और अंतःसंवहनी लसीकार्बुद (इंट्रावास्कुलर लिंफोमा) भी तेजी से प्रगतिशील मनोभ्रंश का कारण बन सकता है। ब्रेन एमआरआई और वैस्कुलर इमेजिंग अध्ययन जैसे एमआरआई एंजियोग्राफी और सीटी एंजियोग्राफी वैस्कुलर एटियलजि का निदान करने में मदद कर सकते हैं।
वायरस मस्तिष्कशोथ, हर्पिस सिंप्लेक्स वायरस, एचआईवी मनोभ्रंश, प्रोग्रेसिव मल्टीफोकल ल्यूकोएन्सेफैलोपैथी, एस्परजिलोसिस, सिफलिस, लाइम डिजीज, सबएक्यूट स्क्लेरोसिंग पैनेंसेफलाइटिस जैसे संक्रामक कारण तेजी से प्रगतिशील मनोभ्रंश का कारण बन सकते हैं।
उपयुक्त रक्त और सीरोलॉजिकल अध्ययन तेजी से प्रगतिशील मनोभ्रंश के संक्रामक कारणों का निदान करने में मदद कर सकते हैं। क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग (चिकित्सकजनित, पारिवारिक), अल्जाइमर रोग, लेवी बॉडीज के साथ मनोभ्रंश, प्रगतिशील सुपरन्यूक्लियर पाल्सी, कॉर्टिकोबेसल अध:पतन (Degeneration), न्यूरोफिलामेंट समावेशन शरीर रोग, और प्रगतिशील सबकोर्टिकल ग्लियोसिस जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियां भी तेजी से प्रगतिशील मनोभ्रंश का कारण बन सकती हैं (Sitammagari & Masood 2018)।
उपचार
प्रोसंक रोगों का कोई निश्चित उपचार नहीं है। उपचार का मुख्य आधार रोगसूचक और सहायक देखभाल है। शोधकर्ताओं ने क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग पर कुछ दवा परीक्षण किए हैं, लेकिन उनमें से किसी ने अभी तक कोई स्पष्ट लाभ नहीं दिखाया है। इस घातक स्थिति का इलाज खोजने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
प्रोसंक रोगों का सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्व
जानवरों के प्रोसंक रोगों से जुड़े उपभेदों की विविधता और प्राणीरूजीय क्षमताओं का लाक्षणिक वर्णन काफी हद तक अधूरा है। हालांकि, मानव प्रिओन प्रोटीन को व्यक्त करने वाले गैर-मानव प्राइमेट्स और ट्रांसजेनिक चूहों में संचरण प्रयोगों से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि क्लासिकल स्क्रैपी और अजातिक (Atypical) बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफलाइटिस या क्रोनिक वेस्टिंग डिजीज के कुछ रूपों में मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता हो सकती है। जानवरों के प्रोसंक रोगों के बीच उत्पत्ति और संबंधों के बारे में शेष अनिश्चितताएं इन संभावित प्राणीरूजीय कारकों के लिए मानव जोखिम को सीमित करने के लिए लागू किए गए उपायों के महत्व पर जोर देती हैं, और दोनों जानवरों और मानव प्रोसंक रोगों के लिए निरंतर निगरानी करती हैं (Houston & Andréoletti 2018)।
बोवाइन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफलाइटिस महामारी के लिए जिम्मेदार एक ही प्रोसंक उपभेद के कारण वैरिएंट क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग साबित होने के बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं में स्पष्ट रूप से वृद्धि हुई। निएंडरथल आबादी के विलुप्त होने में प्रोसंक रोग ‘कुरु’ की संभावित भूमिका मानी जाती है। कुरु को गैर-प्राइमेट्स अर्थात बकरी, गिनी पिग, ओपस्सम, घरेलू बिल्ली, गेरबिल्स, हैम्स्टर, माउस, फेरेट्स, मिंक और भेड़; और गैर-मानव प्राइमेट्स जैसे कि चिंपैंजी, गिब्बन, पुरानी और नई दुनिया के बंदरों के लिए संचरित पाया गया है (Liberski et al. 2019)। एक जिज्ञासु मामला है, जहां 1998 में एक बिल्ली और उसके मालिक में स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफैलोपैथी की घटना एक साथ रिपोर्ट की गई थी, और आदमी और बिल्ली दोनों में पाए जाने वाले प्रोसंक समान पाये गये थे। हालांकि, ये प्रोसंक बोवाईन स्पॉन्जिफॉर्म एन्सेफलाइटिस से भिन्न थे, और मालिक को बाद में क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग का छिटपुट (Sporadic) रूप पाया गया, जिसे एक स्वतःस्फूर्त (Spontaneous) आनुवंशिक रोग माना जाता है। मनुष्यों में स्नायविक (Neurological) रोग के संदिग्ध मामलों की जांच के अनुसार, निगरानी और महामारी विज्ञान के अध्ययन में कोई सबूत नहीं मिला है कि क्रॉनिक वेस्टिंग डिजिज को प्रभावित कर सकती है। लोगों को स्क्रैपी के लिए अतिसंवेदनशील नहीं माना जाता है, हालांकि, कुछ शोधकर्ताओं ने मानवीकृत ट्रांसजेनिक चूहों और गैर-मानव प्राइमेट्स में इंट्रासेरेब्रल इनोक्यूलेशन के बाद बीमारी के प्रदर्शन के आधार पर स्क्रैपी की प्राणीरूजीय क्षमता के बारे में अनुमान लगाया है। फिर भी, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रोसंक एजेंट प्राणीरूजीय हैं।
नियंत्रण एवं बचाव
सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला उपचार सोडियम हाइड्रॉक्साइड (कास्टिक सोडा) या ब्लीच का उपयोग एक मजबूत समाधान है, जिसके बाद भाप वाष्पदावी (स्टीम ऑटोक्लेविंग) होता है, जो पर्याप्त प्रोसंक किटाणुनाश्न का कार्य करता है, लेकिन पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं है और सभी उपकरणों पर इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। वैकल्पिक तरीकों का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें अल्ट्रासोनिक रूप से सक्रिय ठंडे पानी की एक धारा में उपचार, जैवझिल्ली (Biofilm) निर्माण को रोकने के लिए नई विलेपन (Coating), और आर्द्रता प्रतिधारण बैग (Humidity retention bags) में उपकरणों को रखना शामिल है। ये विधियां प्रोसंक संक्रामकता और संक्रमण जोखिम को कम कर सकती हैं लेकिन पूरी तरह प्रभावी नहीं हैं, और चिकित्साजनित संचरण चिंता का विषय बना हुआ है (Swire & Colchester 2023)।
हालांकि, कई तरीकों (एंजाइमी डिग्रेडेशन, मैंगनीज ऑक्साइड, हाइपोक्लोरस एसिड, ओजोनाइजेशन) की जांच की गई है और संभावित रूप से विसंक्रमित पाया गया है लेकिन एक व्यापक क्षेत्र के लिए अव्यावहारिक लगते हैं। हालांकि, कंपोस्टिंग एकत्रित कचरे की संक्रामकता को कम कर सकती है (Xu 2012) लेकिन संक्रमण के बने रहने, प्रयोग करने योग्य और प्रभावी किटाणुनाशन विधियों की कमी, और आसपास के संयंत्रों और अपशिष्ट जल सहित मध्यवर्ती वाहकों और इन स्थलों की संभावित भूमिका के साक्ष्य को ध्यान में रखना आवश्यक है (Adkin et al. 2013)।[फरवरी 10, 2023]
[1]Monomeric is (biochemistry) a protein that has a single polypeptide chain while Multimeric is (biochemistry) a protein that has multiple polypeptide chains.
[2]Prion diseases are distinguished by long incubation periods, characteristic spongiform changes associated with neuronal loss, and a failure to induce inflammatory response. (CDC, 2021: https://www.cdc.gov/prions/index.html)
[3] a small rounded mass of a substance, especially of chewed food at the moment of swallowing
[4] A star-shaped glial cell of the central nervous system
[5] पूर्ववर्ती भाषा (Fore language) न्यू गिनी के पूर्वी हाइलैंड्स जिले में ओकापा पैट्रोल पोस्ट के आस-पास के पूर्ववर्ती-क्षेत्र में बोली जाती है। (Scott, G.K., 1963. The dialects of Fore. Oceania, 33(4), pp.280-286.)
[6] एंडोकैनिबलिज़्म (Endocannibalism): अपने ही समूह के सदस्यों को खाना; एक्सोकैनिबिलिज्म (Exocannibalism): बाहरी दुश्मनों को खाने खाना
[7] एक्सट्रापिरामिडल और पिरामिडल पथ वे पथ हैं जिनके द्वारा गतिक संकेत (मोटर सिग्नल) मस्तिष्क से निचली गतिक तंत्रिका कोशिकाओं तक भेजे जाते हैं। निचली गतिक तंत्रिका कोशिकाएं फिर गति उत्पन्न करने के लिए सीधे मांसपेशियों को स्नायु-शक्ति प्रदान करते हैं। पिरामिडल ट्रैक्ट्स: सेरेब्रल कॉर्टेक्स से शरीर और चेहरे की मांसपेशियों तक मांसपेशियों का सचेत नियंत्रण। एक्सट्रापरामाइडल ट्रैक्ट्स: ब्रेनस्टेम में उत्पन्न होते हैं, मोटर फाइबर को रीढ़ की हड्डी तक ले जाते हैं। ये पेशीसमूह के अचेतन, प्रतिवर्त (रिफ्लेक्सिव) या अनुक्रियाशील नियंत्रण, उदाहरण के लिए मांसपेशियों की तानता, संतुलन, मुद्रा और गति के लिए जिम्मेदार हैं। निचले गतिक तंत्रिका कोशिकाओं की गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए रेटिकुलोस्पाइनल पथ सबसे महत्वपूर्ण अतिरिक्त-पिरामिड पथों में से एक है।
[8] The pulvinar is an accumulation of fat and fibrous tissue in the space next to the medial wall of the acetabulum, which can keep the femoral head lateralized during a reduction attempt.
[9] Putamen: An area in the brain within a structure called the lentiform nucleus.
[10] Dura mater: The tough outer layer of tissue that covers and protects the brain and spinal cord and is closest to the skull.
[11] Hypermetric: condition of cerebellar dysfunction in which voluntary muscular movements tend to result in the movement of bodily parts (as the arm and hand) beyond the intended goal