आज के परिवेश में दुधारू पशुओं में बढ़ती अनुउर्वरता एवं बांझपन की समस्या से कैसे निजात पाएं ?

0
233

आज के परिवेश में दुधारू पशुओं में बढ़ती अनुउर्वरता एवं बांझपन की समस्या से कैसे निजात पाएं ?

डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा

दुधारू पशु हमारे गांव की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है वे वास्तव में गांव की तरक्की की कुंजी है। पशुपालक भाइयों के लिए पशुधन से बड़ा कोई धन नहीं होता है। पशुपालन पशुपालकों की आमदनी और रोजगार का विश्वस्त माध्यम है। पशुओं द्वारा ही ग्रामीण आबादी के लिए सस्ते पोषक आहार उपलब्ध हो पाते हैं। दुधारू पशु पशुपालकों के लिए तभी लाभकारी साबित होंगे जब वह समय पर गर्भित होकर स्वस्थ बच्चे को जन्म देकर भरपूर दुग्ध उत्पादन करेंगे। पशुपालक बंधुओं को प्रतिवर्ष बच्चा एवं भरपूर दूध पाने के लिए अपने पारंपरिक ज्ञान के साथ ही वैज्ञानिक तकनीक व प्रबंध कौशल को अपनाकर कठिन परिश्रम के साथ निम्नलिखित सुझाए गए उपायों पर चलकर अपने लक्ष्य को पा सकते हैं।

पशुओं की सामूहिक समुचित व छायादार आवास की व्यवस्था:
अधिकांशतः ऐसा देखा गया है जो पशु अकेले पाले जाते हैं वह देर से परिपक्व होते हैं फल स्वरुप देर से ही गर्भित होते हैं जबकि पशुओं को सामूहिक रूप से एक साथ रखने पर वह आसानी से परिपक्व एवं गर्भित हो जाते हैं। दुधारू पशु गर्म मौसम के प्रति अति संवेदनशील होते हैं एवं गर्मी के कारण पूरा आहार नहीं खा पाते हैं। जल्दी-जल्दी बीमार हो सकते हैं और समय पर गर्मी में नहीं आते हैं। ऐसे पशुओं में गर्भपात भी हो सकता है अता पशुपालक भाइयों को पशुओं की आवास व्यवस्था ठीक रखनी चाहिए व पशुशाला में छायादार वृक्षों को अवश्य लगाना चाहिए।

READ MORE :  भैंस के नवजात बच्चों का रख रखाव

पानी की उपलब्धता:
दुधारू पशुओं को दिन में एक से दो बार पानी पिलाने से काम नहीं चल सकता है। जितने सहज ढंग से पशुओं को चारा उपलब्ध हो उससे भी अधिक आसानी से पानी प्राप्त होना चाहिए तभी उनका शरीर समुचित ढंग से कार्य कर पाएगा व भरपूर दूध उत्पादन होगा।

परिपक्वता की उम्र:
भारतीय परिवेश में गाय ढाई वर्ष एवं भैंसे तीन वर्ष में गर्भित होने योग्य हो जाती हैं । यदि पशुपालकों द्वारा जन्म से ही उचित आहार व्यवस्था बीमारियों से बचाव व समुचित आवास व्यवस्था पर ध्यान न दिया गया तो पशु का शारीरिक विकास धीमा हो सकता है जिससे पशु अपेक्षित शारीरिक भार व पूर्ण शारीरिक विकास को प्राप्त नहीं कर पाने के कारण गर्मी में नहीं आएगा।

अंत: व बाहय परजीवियों, से बचाव:
जागरूक पशुपालकों को बच्चे के जन्म के 15 दिन के अंदर ही प्रथम बार अंतः परजीवी नाशक औषधियों को दे देना चाहिए इसके पश्चात क्रमशः 2 माह 4 माह 6 माह व उसके बाद प्रति 4 माह पर पेट में, पाए जाने वाले परजीवियों को मारने हेतु, पशुचिकित्सक की सलाह से औषधि देनी चाहिये। पशुओं के शरीर पर भी लगातार निगरानी रखनी चाहिए ताकि उनके शरीर पर किलनी जुंआ आदि न पनप सकें। विशेषकर कान के पास पूंछ के नीचे छिपे हुए स्थानों पर एवं पैरों के अंदर की तरफ तथा आवश्यक होने पर तत्काल वाहय परजीवी नाशक, औषधियों का प्रयोग पशुचिकित्सक की सलाह से करना चाहिए। अंत: एवं वाहय, परजीवी पशु को न केवल पोषक तत्वों से वंचित करते हैं बल्कि वे विभिन्न बीमारियों के वाहक भी होते हैं एवं पशुओं को बीमार तथा बांझ बनाने के लिए उत्तरदाई होते हैं।

READ MORE :  पशुओं में साइनाइड विषाक्तता के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव

हरे चारे की उपलब्धता:
पशुओं का आहार बिना हरे चारे के पूर्ण नहीं होता है। विभिन्न खनिज तत्व एवं विटामिंस विशेषकर विटामिन “ए” जो पशु के पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है भूसे व दाने से प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं। अतः पशुपालकों को छोटे बच्चों, दूध देने वाले पशुओं, गर्भित पशुओं को वर्षभर हरा चारा अवश्य उपलब्ध कराना चाहिए ताकि बांझपन से बचाव संभव हो सके।

खनिज लवणों का मिश्रण:
कृषि क्षेत्र में लगातार पैदावार बढ़ने से भूमि में खनिज तत्वों की कमी आ जाती है। जिससे पशुओं के हरे चारे एवं दाने में भी खनिज तत्वों की कमी हो जाती है। अतः पशु आहार में खनिज लवण मिश्रण को अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए तभी वह भरपूर दुग्ध उत्पादन व प्रजनन क्षमता को बनाए रख पाएंगे।

गर्भित पशु का दूध निकालना बंद करना:
दुधारू पशु को उसके ब्याने के समय से 2 माह पूर्व दूध दुहना बंद कर देना चाहिए ताकि अगले ब्यांत से पूर्व, उसके अयन के ऊतकों को पूर्ण विकसित होने का मौका मिल सके एवं पशु अपने शरीर में आवश्यक वसा व अन्य पोषक तत्वों का संग्रह कर सके जिससे कि अगली बार ब्याने के बाद भरपूर दूध दे सके एवं दुग्ध स्राव के कारण आयी शारीरिक कमी को वहन कर सके।

बच्चा देने के समय की सावधानियां:
पशुओं में भी बच्चा देते समय साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि इस समय पशु का शरीर बीमारियों से ग्रसित होने के लिए माकूल होता है। पशु का गर्भाशय पूर्ण रूप से खुला हुआ होता है जिससे संक्रमण के होने की बहुत संभावना होती है एवं पशु के बांझ होने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है।

READ MORE :  दूध की गुणवत्ता को अधिक समय तक बनाए रखने के लिए अपनाई जाने वाली पद्धति तथा उनका स्वच्छ दूध उत्पादन मे भूमिका

ब्याने के बाद गर्भाधान:
पशु के सामान्य रूप से ब्याने एवं सामान्य रूप से जेर डालने के बाद सामान्यत: 45 दिन के अंदर पशु को प्रथम बार गर्मी में आ जाना चाहिए। पशु को प्रथम गर्मी में गर्भित नहीं कराना चाहिए परंतु दूसरी गर्मी को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए।

गर्भाधान का उचित समय:
दुधारू पशु सायंकाल से प्रातः तक ही आमतौर पर गर्मी में आते हैं अतः जो पशु शाम से सुबह 6:00 बजे तक गर्मी में आते हैं उन्हें दोपहर तक गर्भित कराना चाहिए एवं जो पशु सुबह 6:00 बजे के बाद गर्मी में देखे गए हो उन्हें सायंकाल में गर्भित कराना चाहिए।

भारत में दुधारू पशुओं की सबसे बड़ी समस्या बांझपन : कारण एवं उनका निवारण

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON