केंचुआ जैविक खाद उत्पादन
डॉ. महेन्द्र कुमार मीणा, डॉ. अभिलाषा सिंह, डॉ. सौरभ सिंह, दिलीप शर्मा सहायक आचार्य, पशुधन फार्म परिसरअपोलो कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन, जयपुर
Corresponding Author : Dr. Mahendra Kumar Meena
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यद्यपि भारत ने हरित क्रान्ति तथा श्वेत क्रान्ति के पश्चात खाद्य और दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है लेकिन किसान अधिक उत्पादन करने के लिये अन्धाधुन्ध रसायनिक खाद, कीटनाशी, खरपतवारनाशी और विभिन्न तरह की दवाईयों का प्रयोग कर रहे हैं। जिससे हमारे देश की ऊपजाऊ जमीन की उर्वरा शक्ति में निरन्तर कमी आ रही है। किसान केवल नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश का फसलों में प्रयोग कर रहे हैं जबकि फसलों को उगाने के लिये 15 पादप पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती हैं। रसायनिक खादों के प्रचलन से धीरे-धीरे किसानों ने अपने खेतों में गोबर की खाद, हरी खाद और कम्पोस्ट खाद लगाना बहुत कम कर दिया है और सघन खेती अपनाने से भूमि की उर्वरता शक्ति तथा सिंचाई के लिए जल में भारी कमी हुई हैं।
यदि किसी देश की जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, चाहे हम कितनी भी अधिक उत्पादन करने वाली फसलों, घरेलू जानवरों और मुर्गीयों की उन्नत किस्म तथा प्रजाति जैवतकनीकी का प्रयोग करके विकसित कर लें, यह सभी प्रयास बेकार हो जायेंगे, इसलिए आवश्यक है कि किसान सन्तुलित खादों का प्रयोग करें। वर्तमान में हमारे देश में 300 करोड़ टन प्रति वर्ष गोबर और जैविक कूड़े का उत्पादन होता हैं इसको केंचुआ जैवतकनीकी के प्रयोग के द्वारा 100 से 120 करोड़ टन केंचुआ जैविक खाद तथा एक करोड़ टन केंचुआ का बीज और लाभकारी सूक्ष्म जीवीयों का उत्पादन कर सकते है। प्राचीन काल से केंचुओं को किसान का मित्र, प्राकृतिक हलवाहा, भूमि की आँते तथा जैव पारिस्थकी के पुनःचक्रण का इंजीनीयर कहा जाता है। केंचुआ जैविक खाद बनाने की एक बहुत सस्ती प्रयोगशाला हैं यह मृदा के लिए लाभकारी सूक्ष्मजीवियों में वृद्वि करने के लिये एक माध्यम का कार्य करता है। अतः केंचुआ खाद बनाना पर्यावरण प्रिय व रोजगार परक है।
केंचुआ जैविक खाद उत्पादन के लाभ
1. ग्रामीण अशिक्षित तथा शिक्षित युवकों, महिलाओं और किसानों के लिये स्वरोजगार सृजन।
2. सस्ती पर्यावरण प्रिय और टिकाऊ कृषि का आधार।
3. खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार।
4. पशुओं और मानवों में जैविक खाद पदार्थों के उपयोग से रोगरोधक क्षमता में वृद्वि।
5. स्वच्छ वातावरण वृद्वि में सहायक।
6. ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी।
7. जल, जन, जमीन, जानवर और जंगल के संरक्षण एवं संवर्धन में सहयोगी।
8. पौधों के सभी आवश्यक 15 पोषक तत्वों के साथ लाभकारी सूक्ष्मजीवीयों की केंचुआ जैविक खाद में उपलब्धता।
केंचुआ खाद उत्पादन के लिए परियोजना स्थल का चुनाव
परियोजना स्थल गोबर और जैविक कूड़ा की उपलब्धता के नजदीक ऊँचाई पर होना चाहिए। तथा पानी निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।
केंचुआ की प्रजाति का चुनाव
केंचुआ खाद बनाने के लिए केंचुआ की भारतीय प्रजाति का ही चयन करना चाहिए, प्रजाति की प्रजनन क्षमता, ताप सहनशीलता, वृद्वि, गोबर और जैविक कूड़ा खाने की क्षमता और जैविक खाद की गुणवत्ता में श्रेष्ठ तथा देश के पर्यावरण के अनकूल हो।
केंचुआ जैविक खाद बनाने की विधि तथा आवश्यक सामिग्री
कंेचुआँ जैविक खाद को चार विधियों से बनाया जा सकता है जैसे टैंक, गढडे, रिंग और खुले में ढेर लगाकर। इनमें से वर्मी टैंक विधि सबसे श्रेष्ठ है क्योकिं उसमे कंेचुओं और सूक्ष्मजीवों के लिए उत्तम वातावरण मिलता है और पादप पोषक तत्वों का ह्ास नहीं होता है। वर्मी टैंक की उँचाई एक फीट, दीवालो के बीच की चैडाई तीन फीट और लम्बाई आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है। एक फीट से अधिक टैंक की उँचाई रखने पर वायुवीय जीवाणु और केचुआॅ अच्छा कार्य नहीं करते हैं। टैंक की दीवालों की तीन फीट की चैडाई रहने पर दोनो ओर से टेंक में भरे सड.े पादप अवशेष और गोबर की आसानी से उलट पलट की जा सकती है। एक टैंक से दूसरे टैंक के बीच में 2 फीट की दूरी छोड़नी चाहिये जिससे आवागमन और विभिन्न क्रिया कलापों में आसानी रहती है। टैंक के फर्श का निर्माण पट्ट ईटों से करना चाहिये उसकी दराजों को सीमेन्ट से प्लास्टर नहीं करना चाहिये क्योंकि पानी के अधिक भरने पर निकास नहीं होता है। वर्मी आवास की दीवारों की ऊँचाई तीन फीट तथा उस पर 4 फीट ऊँचाई की लोहे के मोटे तारों की जाली जिसमें चिड़िया अंदर प्रवेश नहीं कर सके लगानी चाहिये। छप्पर या ऐसवेस्टस की छत बनाना उत्तम रहता है। वर्मीशेड की मध्य में ऊचाई 10-11 फीट तथा दीवालों की तरफ 3-4 फीट का ढलान देना चाहिए। शेड में हवा का आवागमन उचित होना चाहिए।
केंचुओं के उपयुक्त आहार
केंचुआ हरी पत्तीयों को नहीं खाते हैं। ये गोबर और अपघटित कार्बनिक पदार्थों को बड़ी रूचि से खाते हैं। अतः हरे जैविक कूड़े को पहले सूखा कर उसको श्रेडर के द्वारा छोटे-छोटे टुकड़े (2-4 से.मी. की लम्बाई) के करके गोबर में मिश्रित करके गर्मियों के मौसम में 10-12 दिन तक एक मीटर ऊँचाई के ढेर में पर्याप्त मात्रा में नमी (40 प्रतिशत) की उपस्थिति में अपघटन के लिए छोड़ देते हैं। एक सप्ताह के बाद इस ढेर में फाबड़े से पल्टी लगाना उचित रहता है यदि नमी की कमी है तब पानी का छिड़काव करना चाहिए। जैविक कूड़े के ढ़ेर में वायु का उचित संचार होना अति आवश्यक हैं। उचित नमी, वायुजीवीय सूक्ष्म जीवीयों की उपस्थिति तथा अधिक तापमान से फसलों के अवशेष, जैविक कूड़े और गोबर में उपस्थित लिगनिन, सेलूलोज तथा हेमीसेलूलोज का जैविक क्रियाओं के द्वारा अपघटन होता है। उसके पश्चात यह केंचुओं का खिलाने के योग्य हो जाता है। केंचुआ पालन के लिए उचित तापक्रम 20-250 से. है अतः जाड़ों के दिनों में जब औसत तापक्रम 150 से. से कम हो जाता है उस समय तापक्रम बढ़ाने के लिये तीन-चार दिन के बाद ही गोबर और अपघटित आहार को केंचुओं को खिलाने के लिए वर्मी बेड में डाल देना चाहिए।
केंचुआ जैविक खाद बनाने के योग्य जैविक कूड़े निम्न हैं
1. पशुओं का गोबर
2. फसल और चारे के अवशेष
3. कृषि आधारित उद्योगों का जैविक कूड़ा
4. शहरों के ठोस जैविक पदार्थ
केंचुओं के लिए उपयुक्त वातावरण
1. केंचुओं के श्वसन के लिये वर्मी बेडों में वायु के पर्याप्त संचार की अत्यन्त आवश्यक हैं। क्योंकि केंचुआ अपने पूर्ण नमयुक्त शरीर से आक्सीजन शोषित करता है। वर्मी बेड में जैविक कूड़े को दबाकर नहीं भरना चाहिए। अधिक वायु संचार के लिए वर्मी बेड़ की चैडाई 2/3 भाग में केंचुओं के आहार की भराई तथा 1/3 भाग में निर्मित खाद में उपस्थित बीजाणुओं से केंचुओं के बच्चे निकलने का इंतजार करना चाहिए। किसी भी स्थति में वर्मी टैंक की ऊँचाई एक फीट से अधिक नहीं होना चाहिए।
2. किसानों को केंचुओं के आहार का लड्डू बनाकर देखना चाहिए यदि लड्डू में से पानी रिसता है तब पानी अधिक मात्रा में हैं यदि लड्डू बन जाता है तब नमी उचित है। यदि लड्डू नहीं बनता है तब पानी की कमी है। वर्मी टैंक में पानी का छिड़काव पानी के पाइप पर फब्बारा लगाकर करना चाहिए। निर्मित खाद पर पानी का छिड़काव नहीं करना चाहिए।
3. केंचुआ पालन के लिए उचित तापक्रम 20 से 300 से. के प्रबन्धन के लिए जैविक कूड़े का अपघटन गर्मियों के दिनों में उपयुक्त नमी की उपस्थिती में 10 से 12 दिन तक एक मीटर तक ऊँचे वर्मी बेड़ के ढ़ेर में करना चाहिए जिससे बढ़ा हुआ तापक्रम गिरकर धीरे-2 30 से 350 सेआ जाता है। गर्मियों के मौसम में अपघटन छायादार स्थान पर करना उचित रहता हैं। जैविक कूड़े और गोबर में नमी की अधिकता अधिक नहीं होनी चाहिए उस स्थिति में गोबर की मक्खी अपने अंडे वर्मी बेड़ में देती है जिससे मैगेट पड़ जाते हैं। इसकी सावधानी वरतनी चाहिए। 15 नवम्बर के बाद उत्तरी भारत में ठंड बढ़ने लगती है अतः तापक्रम बढाने के लिए तीन-चार दिन के उपरान्त गोबर में आवश्यकता अनुसार पानी मिश्रित करके केंचुओ के आहार को वर्मी बेड़ में 2/3 भाग में भर देते हैं। इसके अपघटन से बेड़ का तापक्रम बढ़ जाता है। जिससे केंचुओ की तथा सूक्ष्मजीवीयों की वायु का उचित क्रियाशीलता बढ़ जाती हैं। संचार न होने तथा अधिक नमी की स्थिती में बेड़ का तापक्रम बढ़ जाता है जिससे केंचुओं की क्रियाशीलता में कमी आ जाती है। अतः इस स्थिती में वर्मी टैंक में उपलब्ध केंचुओं के आहार को उलट-पलट पंचाली की सहायता से कर देना चाहिए।
4. आहार में नमकीन और विषयुक्त पदार्थों की उपस्थिति भी केंचुआ की सक्रियता पर प्रभाव डालती है। देश के कुछ भागों में पानी खारा होता है इससे केंचुओं के उत्पादन पर हानिकारक असर होता है।
5. हमारे देश की जलवायु में तापक्रम को बहुत उतार-चढ़ाव रहता है। जब मौसम का न्यूनतम तापक्रम 150 से. से कम होना शुरू हो जाता है उस समय से वर्मी बेड़ांे को पुआल, पुरानी बोरी या सूखी पत्तीयों से ढकना चाहिए तथा जैसे ही न्यूनतम तापक्रम 150 से. बढ़ जाता है तब मल्ंिचग को हटा देना उचित है (यदि केंचुआ पालन वर्मी शेड़ के अन्दर किया जा रहा है)।
केंचुओं को उनके भक्षकों से बचाव
चिडियाँ, मेढक, छंछूदर, पर्वती चूहा और नेवला वर्मी शेडो में आकर्षित होते हैं। इनसे बचाव के लिये शेड के आस पास सफाई का ध्यान रखें जिससे केंचुओं के शत्रु छिप न सकें। चिड़ियों से बचाव के लिए शेड में उपयुक्त जाली की व्यवस्था करें। मेढ़कों को हाथ से पकड़कर दूर फेंक दें।
पर्वती चूहा के लिए रेट किल विस्किट रख दंे जिनकों खाकर चूहे भाग जायेगंे। छछूँदर को पकड़ने के लिए एक टब, जिसकी गहराई 30 से 40 से.मी. हो उसमें देशी गाय का गोमूत्र भरकर शेड में रख दें। छछूँदर केंचुआ खाकर गोमूत्र की गंध पर आकर्षित होकर उसमें फँस जाती है। गर्मियों में चीटीयों से बचाव के लिए वर्मी बाड़े के चारो तरफ राख की लाइन बनाने से बचाव किया जा सकता है। दीमक से बचाव के लिये शेड के आस पास दीमकनाशी दवाओं से उपचार कर लेना चाहिए। सावधानी बर्तनी चाहिए कि आहार में दीमक न मिली हो।
केंचुआ जैविक खाद की बिक्री के लिये छनाई तथा पैकिंग
केंचुआ जैविक खाद 45-50 दिन में बन जाता है। खाद बनने के बाद पानी छिड़कना बन्द कर देते है और बगल में नया केंचुओं का आहार भर देते हैं जिससे बने हुए केंचुआ खाद से सभी केंचुआ और कोकून से बच्चे निकलकर नये आहार की तरफ चले जाते है। ताजे कोकून से सभी बच्चे 16 से 18 दिन के बीच में मौसम के अनुसार निकल आते हैं। जब इसमें नमी 30-35 प्रतिशत रह जाती है उस समय छनाई करके लेमिनेटिड थैलों में केंचुआ जैविक खाद भरकर थैलों की सिलाई कर देते है। थैलों के ऊपर उद्यमी को अपनी ब्रान्ड का नाम, भरते समय वजन, तिथि, कीमत तथा खाद में उपलब्ध पोषक तत्वों और सूक्ष्मजीवीयों को थैले या टैग पर इंगित करना चाहिए। इसकी बिक्री जिला कृषि अधिकारी से परमिट लेकर कर सकते हंै। एक वर्ष में एक गाय या भंैस के गोबर से रू. 15,000 से 18000 तक एक उद्यमी कमा सकता है।
वर्मी कल्चर की बिक्री के लिये पैकिंग
उद्यमी को केंचुआ का बीज (वर्मी कल्चर) की बिक्री के लिये वर्मी बेड में 20-25 दिन पूर्व डाले गये आहार (50 प्रतिशत नमी) जहाँ पर केंचुआ खा रहे हो उस परत को केंचुओं के सहित महीन जाली नुमा कपड़े के बैगों या जूट बैगों को भर कर पैकिंग करनी चाहिए। बैग के अन्दर 12 से 15 दिन तक केंचुआ जीवित रहेंगे। उद्यमी को बैग के उपर केंचुआ की प्रजाति, पैकिंग की तिथि, वनज और कीमत इंगित करनी चाहिए।
https://www.jaivikkheti.in/DMS/Kenchua%20Khad_Hindi.pdf