डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा
जब भी अत्याधिक गर्म-नम या गर्म-शुष्क वातावरण होता है तब पशु सामान्य तौर पर अपनी जीभ बाहर निकाल कर अधिक से अधिक पसीना निकाल कर अपनी उर्जा का उत्सर्जन करते हैं लेकिन कभी-कभी पशुओं के शरीर की ऊष्मा छय करने की क्षमता, पसीना निकलना, जीभ का बाहर निकलना जैसी प्राकृतिक क्रियाओं से भी शारीरिक तापमान नियंत्रित नहीं हो पाता तो उसे उष्मीय तनाव कहा जाता है ।
वातावरण का तापमान जिसके ऊपर उष्मीय तनाव हो सकता है।
शंकर तथा विदेशी नस्ल की गायों में 24 से 26 डिग्री सेल्सियस से ऊपर, देसी नस्ल की गायों में 33 डिग्री सेल्सियस से ऊपर एवं भैंसों में 36 डिग्री सेल्सियस से ऊपर उष्मीय तनाव होता है। निम्नांकित लक्षणों द्वारा ऊष्मीय तनाव की पहचान की जा सकती है:
शरीर का तापमान३९.२ डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक हो जाता है। पशु के हांफने की दर 30 स्वास् प्रति मिनट से अधिक हो जाती है। पशु की कार्य क्षमता में कमी तथा पशु सुस्त हो जाता है। दुग्ध उत्पादन भी 10 से 20% या इससे अधिक कम हो जाता है।
उष्मीय तनाव से पशु पालकों को होने वाले आर्थिक नुकसान-
दुग्ध उत्पादन में कमी। प्रजनन क्षमता मैं कमी विशेषकर कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भधारण की दर अत्याधिक कम हो जाती है। मदहीनता या गर्मी में ना आना ।
संवेदनशील पशु-
देसी नस्ल की गायों की अपेक्षा शंकर एवं विदेशी नस्ल की गाय उष्मीय तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। भैंसों की मोटी व काली चमड़ी होने एवं गायों की तुलना में कम पसीना ग्रंथियों के होने के कारण भैंस ऊष्मा का उत्सर्जन भली-भांति नहीं कर पाती जिससे उनमें उष्मीय तनाव का अत्याधिक प्रतिकूल असर पड़ता है।
ऊष्मीय तनाव से बचाव एवं उत्पादन में वृद्धि हेतु उचित प्रबंधन-
पशुशाला की ऊंचाई बीच से 15 फीट एवं किनारे से 10 फीट होनी चाहिए एवं उसकी लंबाई, पूर्व पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। पशु शाला की बाहरी छत की पुताई सफेद सीमेंट से करने से सूर्य की किरणें परावर्तित होगी एवं पशुशाला में ठंडक बनी रहेगी। पशुशाला के आसपास पेड़ पौधे लगाना। पशुशाला की दीवारों पर घूमने वाले पंखे लगाना।पंखों के आसपास एक छल्ले के रूप में फव्वारे लगाना। पशुओं को दोपहर में नहलाना। टाट के पर्दे लगाना एवं उन पर पानी छिड़कना। ठंडे एवं स्वच्छ पीने योग्य पानी की पर्याप्त व्यवस्था। पशुओं के नहाने के लिए टैंक की व्यवस्था। पशुओं को सुबह एवं शाम के समय ही चारा देना चाहिए। अच्छी गुणवत्ता का रेशे वाला भोजन रूमेन एवं पशु के स्वास्थ्य को ठीक रखता है। गर्मी के दिनों में अधिक सांद्र मिश्रण देना चाहिए तथा दिन में पांच से छह बार ठंडा पानी देना चाहिए। पशु आहार में ऊर्जा बढ़ाने के लिए दानों एवं वसा युक्त पदार्थों का उपयोग किया जाना चाहिए। खनिज मिश्रण एवं विटामिन मिश्रण के प्रयोग द्वारा भी उष्मीय तनाव के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
ग्रीष्माघात होने की अवस्था में पशु को पशु चिकित्सक द्वारा उचित चिकित्सा उपलब्ध करानी चाहिए।
हार्मोन चिकित्सा के प्रयोग से उष्मीय तनाव से प्रजनन क्षमता में होने वाली कमी के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जिन पशुओं में गर्मी की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है उनमें ओव्यूलेशन सिंक्रोनाइजेशन एवं कृत्रिम गर्भाधान प्रोटोकॉल का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें पशु को गोनेडोटरोफिन रिलीजिंग हार्मोन के समकक्ष रिसेप्टल या गायनारिच एवं प्रोस्टाग्लैंडइन के समरूप प्रैग्मा या वेटमेट इंजेक्शन का प्रयोग पशु चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए। इस प्रकार ओवुलेशन सिंक्रोनाइजेशन द्वारा पशु के गर्मी की अभिव्यक्ति न किए जाने के बावजूद भी एक निश्चित समय पर कृत्रिम गर्भाधान कर दिया जाता है।
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर पशु को उष्मीय तनाव से बचाकर उत्पादन क्षमता एवं प्रजनन क्षमता में होने वाली कमी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।