बरसात के मौसम में पशुओं का समुचित प्रबंधन

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बरसात के मौसम में पशुओं का समुचित प्रबंधन

डॉ संजय कुमार मिश्र १ और डॉ मुकेश कुमार श्रीवास्तव २
१.पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा
२. सहायक आचार्य, पशु औषधि विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा

गर्मी के उपरांत बरसात के मौसम में पशुओं को गर्मी से छुटकारा तो मिलता है एवं साथ ही साथ हरी घास एवं चारे की उपलब्धता भी बढ़ जाती है किंतु बरसात के मौसम में वातावरण में आर्द्रता बढ़ जाने के कारण विभिन्न प्रकार के जीवाणु, विषाणु, एवं परजीवी उत्पन्न हो जाते हैं जो कि पशुओं के स्वास्थ्य एवं उत्पादन पर बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस मौसम में उनको बहुत सी बीमारियां हो सकती हैं जिन के प्रमुख कारण एवं प्रभाव निम्नांकित है:-

1.चारा:
बरसात के समय रखे हुए चारे में फफूंद लग जाती है जो चारे की गुणवत्ता को कम कर देती है , कुछ फफूंद की प्रजाति जहरीली भी होती है जो पशु के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालती है।
2. जल:-
बरसात के समय तालाबों एवं नहरों का जल प्रदूषित हो जाता है जिससे इन का जल, सेवन करने से पशुओं में दस्त जैसी बीमारियां फैल जाती है। इस मौसम में पानी पर काई अर्थात हरे शैवाल उग आते हैं जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है और यह कई बीमारियों को जन्म देता है।
3.जीवाणु जनित रोग:-
अधिकांश जीवाणु इस मौसम में पनपते हैं यहां तक की कई वर्षों तक सुसुप्त अवस्था में पड़े रहने वाले जीवाणु भी इस मौसम में एवं इसके बाद में भी सक्रिय हो जाते हैं जिससे इस मौसम में जीवाणु जनित रोग एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में सामने आते हैं, जैसे निमोनिया, सालमोनेलोसिस, गलाघोंटू, लंगड़ा बुखार इत्यादि। इस मौसम में थनैला की समस्या भी बढ़ जाती है। अधिक पानी भर जाने से पशुओं में लैपटोस्पायरोसिस, नामक बीमारी की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। बरसात के मौसम में कीचड़ हो जाने से पशुओं के खुर खराब हो जाते हैं और इनके पैरों में सड़न अर्थात फुट रॉट हो जाती है। इससे बचने के लिए पशुओं को सूखे स्थान पर रखना चाहिए और हो सके तो 10% जिंक सल्फेट का घोल बनाकर फुट बाथ की तरह इस्तेमाल करना चाहिए।
४. विषाणु जनित रोग:-
बरसात के मौसम में जलभराव एवं कीचड़ के कारण खुर पका मुंह पका रोग फैलने की संभावना अधिक रहती है।
५. परजीवी जनित रोग:-
इस मौसम में खेतों में विभिन्न प्रकार के परजीवीयों के लारवा एवं विभिन्न प्रकार के क्रमी उत्पन्न हो जाते हैं जो हरे चारे एवं जल के माध्यम से पशुओं में कई प्रकार की बीमारियां उत्पन्न करते हैं।
6. विभिन्न प्रकार के बाहरी परजीवीयों का प्रकोप:-
इस मौसम में में विभिन्न प्रकार के बाहरी परजीवी निकल आते हैं और इनकी संख्या भी अधिक रहती है और यह हर जगह उपस्थित रहते हैं। तापमान एवं आद्रता के साथ इनकी संख्या और भी बढ़ जाती है और इनसे जनित बीमारियां भी पशुओं में फैल जाती है।
१.इस मौसम में मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है जो पशुओं का खून चूसते हैं और रक्ताल्पता अर्थात एनीमिया का कारण बनते हैं। मच्छर एक पशु से दूसरे पशुओं में संक्रमण फैलाने का काम भी करते हैं।
२.पशुओं में कीट जनित बीमारियां बढ़ जाती है जैसे एफीमोरल फीवर, अर्थात अढैया बुखार ।
३. पशुओं के शरीर में किलनी एवं जूं की संख्या बढ़ जाती है, जो उनके शरीर से रक्त चूसते हैं और पशुओं में एनीमिया हो जाता है। इसके अतिरिक्त किलनी कई प्रकार के रक्त परजीवीयों को एक पशु से दूसरे पशु में फैलाती हैं , जैसे थेलेरिया।
४. मौसम में विभिन्न प्रकार की मक्खियों की संख्या भी बढ़ जाती है जो पशुओं का रक्त चूसती है एवं भेड़ों में इन मक्खियों के कारण ऊन की गुणवत्ता खराब हो जाती है, तथा उनकी त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
५.इस मौसम में इनके दुष्प्रभावों से बचने के लिए बाहरी परजीवी की संख्या को नियंत्रित करना चाहिए।
7. विषाक्त पौधे:-
इस मौसम में कई तरह के पौधे उग आते हैं जिनमें से कुछ जहरीले भी होते हैं जिनको खाने से पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है। ऐसे पौधों की पहचान रखनी चाहिए और पशुओं को ऐसे स्थानों पर नहीं चराना चाहिए।
8. अफरा:-
इस मौसम में हरे चारे की उपलब्धता अधिक होने के कारण पशु अधिक हरा चारा खा लेते हैं परंतु कई प्रकार के हरे चारे पशुओं में अफरा की समस्या उत्पन्न करते हैं जैसे बरसीम एवं लूसर्न आदि।
उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए बरसात के मौसम में पशुओं की उचित देखभाल करनी चाहिए क्योंकि गर्मी के बाद इस मौसम में हरे चारे की उपलब्धता अधिक होने के साथ ही कई प्रकार की बीमारियां भी फैलती हैं जिससे हमें जागरुक होकर सावधानी पूर्वक बचाव करना चाहिए :-

१. बरसात के बाद पशुओं को पेट के कीड़ों की दवा, पशु चिकित्सक की सलाह से अवश्य देनी चाहिए।
२. पशुओं को यथासंभव सूखे स्थान पर बांधना चाहिए।
३. हरा चारा हमेशा भूसे के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए।
४. किलनी एवं जूं, आदि को नियंत्रित करने के लिए पशु चिकित्सक की सलाह से औषधि देनी चाहिए।
५. गला घोटू का टीका प्रतिवर्ष समय से लगवाना चाहिए।
६. खुर पका मुंह पका रोग का टीका वर्ष में दो बार समय से लगवाना चाहिए।

बरसात के मौसम में पशुओं का बेहतर प्रबंधन एवं देखभाल हेतु पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सुझाव

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