PROSPERITY OF FARMERS THROUGH GOAT REARING.

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आधुनिक बकरी पालन से किसानो मे समृद्धि

संकलन –डॉ राजेश कुमार सिंह , जमशेदपुर
Post no 1092 Dt 11/02/2019
Compiled & shared by-DR. RAJESH KUMAR SINGH, (LIVESTOCK & POULTRY CONSULTANT), JAMSHEDPUR, JHARKHAND,INDIA
9431309542, rajeshsinghvet@gmail.com

भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विगत 2-3 दषकों में ऊंची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासषील देषों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृध्दि, इनके सामाजिक और आर्थिक महत्व का दर्षाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिध्द हो रहे हैं।
• बकरी का मानव व पशु प्रजातियों के अयोग्य खाद्य पदार्थों को उच्च कोटि के पोषक पदार्थों (मांस, दूध) और अन्य उत्पादों / उपत्पादों (रेषा, बाल, खाल) में परिवर्तित करने की क्षमता रखना।
बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे व महिलाएं आसानी से पाल सकते हैं। वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता की अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देष के विभिन्न प्रान्तों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रषिक्षण प्राप्त आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
• बकरी का विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अपने को ढालने की क्षमता रखना। इसी गुण के कारण बकरियां देष के विभिन्न भौगोलिक भू-भागों में पाई जाती हैं।
• बकरी की अनेक नस्लों का एक से अधिक बच्चे की क्षमता रखना।
• बकरी की व्याने के उपरांत अन्य पशु प्रजातियों की तुलना में पुन: जनन के लिए जल्दी तैयार हो जाना।
• बकरी मांस का समाज में सभी वर्गों द्वारा बिना किसी धार्मिक बंधन के उपयोग किया जाना।
• बकरी उत्पादों की बढ़ती मांग और षीघ्र विपणन।
वर्तमान परिस्थितियों में कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है और चारागाह सिकुड़ रहे हैं। ऐसे में बड़े पालतू पशुओं का पालन ज्यादा मुनाफं का व्यवसाय नहीं है। अत: बकरी जैसा छोटा पशु इस कसौटी पर खरा उतरता है। बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे व महिलाएं भी आसानी से पाल सकते हैं। वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देष के विभिन्न प्रांतों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रषिक्षण प्राप्त आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
बकरियों के प्रजनन के लिए सबसे उपयुक्त समय मई के दूसरे सप्ताह से जुलाई तक होता है। ये बकरियां अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से दिसम्बर की प्रथम सप्ताह तक बच्चा दे देती हैं। इसी तरह नवम्बर व दिसम्बर का मौसम प्रजनन के लिए अनुकूल है। इस मौसम में गर्भधारण करने वाली बकरियां मार्च-अप्रैल तक बच्चा दे देती हैं।
किसी भी पशु उत्पादन आधारित व्यवसाय की सफलता पशु की क्षमता से जुड़े जनन चक्र की नियमितता और सततता पर निर्भर करती है। अत: जनन चक्र का अपना कर पशु की जनन क्षमता में कई गुना वृध्दि की जा सकती है। भारतीय नस्ल की बकरियों के जनन अभिलक्षणों में विभेद होने के कारण इनकी जनन क्षमता में समानता नहीं है। सम्पूर्ण जनन को अगर एक चक्र से रूप में माने तो इससे जुड़ी प्रक्रियाओं को मुख्यरूप से चार चरणों में बांटा जा सकता है जो एक-दूसरे से जुड़ी हैं। इन्हीं प्रक्रियाओं का वर्णन प्रस्तुत आलेख में किया गया है।

बकरियो मे प्रजनन —–

जनन चक्र के प्रथम चरण का आरम्भ बकरी के प्रजनन से होता है उत्ताम प्रजनन ही सफल बकरी पालन की कुंजी है। प्रत्येक नस्ल की बकरी एक निष्चित उम्र तथा षारीरिक भार (लैंगिक परिपक्वता) प्राप्त करने के बाद ही गर्भधान के योग्य होती है। अन्य पशु प्रजातियों की भांति बकरियों की प्रजनन क्षमता उम्र बढ़ने की साथ बढ़ती है। यहां 2-5 वर्ष की आयु अधिकतम होती है। बकरियों में प्रजनन की क्षमता सात वर्ष की आयु तक बनी रहती है। इसके बाद इसमे कमी आने लगती है। बकरी 10 वर्ष की आयु तक बच्चे देने में सक्षम है परन्तु अधिकांष बकरी पालक इन्हे 7-8 वर्ष की आयु के बाद अपने रेवड़ से हटा देते हैं। नर बकरे 2-6 वर्ष की उम्र तक गर्भधान करने योग्य बने रहते हैं। दूध देने वाली बकरी की नस्लों में प्रति ब्यांत बच्चे देने की दर मांस के लिए पाली जा रही बकरियों की तुलना में कम होती है। भारतीय नस्ल की बकरियां लगभग पूरे वर्ष ही ऋतु (गर्मी) में आती रहती हैं, हालांकि इसकी आवृति घटती-बढ़ती रहती है। रेवड़ की स्वस्थ बकरियां गर्भ न ठहरने पर 17-21 दिन के अंतराल पर नियमित ऋतु चक्र (मदचक्र) में आती रहती हैं। इसके फलस्वरूप् प्रजनन प्रक्रिया वर्ष भर चलती रहती है। यह प्रभावी पशु प्रबंध व आर्थिक दृष्टि से व्यवहारिक नहीं है। बकरी पालक पालक प्रजनन को इस प्रकार सामायोजित करें कि नवजात मेमनों के स्वास्थ्य के लिए मौसम अनुकूल रहे, चारा संसाधनों की उपलब्धता बनी रहे, जिससे आगे चलकर बिक्री के लिए बाजार मांग की पूर्ति होती रहे। बकरियां 24-28 घंटे तक गर्मी (मदकाल) में रहती हैं तथा इसी सीमित अवधि में बकरे को समागम का अवसर देती हैं। इस अवधि में गर्भाधान (नैसर्गिक या कृत्रिम) कराने पर वह गर्भित होती हैं। मदकाल में आई बकरियों का पता करने के लिए बकरी पालक 50-60 बकरियों का समूह में एक टीजर बकरा सुबह-षाम आधा-आधा घंटा घुमाएं। मदकाल में आई बकरियों में निम्न लक्ष्ण स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।
• अधिक उत्तोजना, दाना-पानी कम खाना व मिमयाना।
• बार-बार पेषाव करना व तेजी से पूंछ हिलाना।
• झुंड की दूसरी बकरियों पर आरोहरण (चढ़ना) तथा दूसरी बकरियों को अपने ऊपर आरोहरण करने देना।
• योनि में सूजन तथा योनि मार्ग से थोड़ी मात्रा में पारदर्षी तोड़ गिरना, जो कभी-कभी पूंछ पर लगा भी देखा जा सकता है।
• दूधारू बकरियों में दूध की मात्रा में कमी होना।
प्रसव पीड़ा आरम्भ में हलकी व बाद मे तीव्र होने लगती है। यह सभी लक्षण इस बात का संकेत हैं कि बकरी षीघ्र ब्याने वाली है। आमतौर पर प्रसव वेदना षुरू होने के 3-4 घंटे में बकरी बच्चे को जन्म दे देती है। पहली बार ब्याने वाली बकरी कुछ ज्यादा समय लेती है। बच्चा निकलने से पहले एक झिल्लीनुमा चमकीला गुब्बारा निकलता है। अधिकतर बकरियां लेटकर बच्चा देती हैं।
यह आवष्यक नहीं कि उपरोक्त सभी लक्षण एक साथ प्रकट हों। दो-तीन लक्षणों के आधार पर भी ऋतुमयी बकरियों को पहचाना जा सकता है। प्रजनन से 15-20 दिन पहले से अगर बकरियों के दाने की मात्रा 250-500 ग्राम प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ा दी जाए तो इसका प्रजनन प्रतिषत तथा गर्भधारण की दर पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप प्रति ब्यांत अधिक बच्चे पैदा होते हैं। ऋतु में आई बकरी का सामयिक प्रजनन भी उतना जरूरी है, जितना कि ऋतुमयी बकरियों की पहचान। ऋतु में आई प्रत्येक बकरी को ऋतु (गर्मी) के लक्षण प्रकट करने के 10-12 घंटे बाद पहली बार उत्ताम नस्ल के बीजू बकरे से या कृत्रिम गर्भाधान विधि से गाभिन कराएं। अगर बकरी 24 घंटे बाद भी गर्मी में रहती है तो उसे पुन: 10-12 घंटे के अंतराल पर उसी बकरे से गाभिन कराए। बकरियों के प्रजनन के लिए सबसे उपयुक्त समय मई के दूसरे सप्ताह से जुलाई तक होता है। ये बकरियां अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से दिसम्बर की प्रथम सप्ताह तक बच्चा दे देती हैं। इसी तरह नवम्बर व दिसम्बर का मौसम प्रजनन के लिए अनुकूल है। इस मौसम में गर्भधारण करने वाली बकरियां मार्च-अप्रैल तक बच्चा दे देती हैं। इस प्रकार एक वर्ङ्ढ में दो बार बकरियों का गाभिन कराने पर करीब 60-75 प्रतिषत बकरियां बच्चा देती हैं।
भारतीय नस्ल की बकरियों के जनन अभिलक्षणों में विभेद होने के कारण इनकी जनन क्षमता में समानता नहीं है। सम्पूर्ण जनन को अगर एक चक्र से रूप में माने तो इससे जुड़ी प्रक्रियाओं को मुख्यरूप से चार चरणों में बांटा जा सकता है जो एक-दूसरे से जुड़ी हैं।
गर्भ निदान के अभाव में बकरियों को गर्भावस्था में उचित आहार और पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है जो गर्भपाता की संभावना को बढ़ा देता है और कमजोर बच्चे पैदा होते हैं। इसके साथ-साथ खाली (गैर गाभिन) बकरियों के रखरखाव पर अनावष्यक खर्चा करना पड़ता है तथा समय रहते पुन: गर्भधान न कराने से बकरी पालन व्यवसाय से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है।

सामयिक गर्भ निदान———–

गाभिन बकरियों के गर्भ की जांच, जनन चक्र का दूसरा चरण है। इसकी उचित समय पर पुष्टि प्रभावी प्रक्षेत्र प्रबंध तथा लाभकारी बकरी पालन की दृष्टि से आवष्यक है। बकरी का गर्भकाल लगभग 5 माह (145-152दिन) होता है। बकरी के गर्भाधान के 18-21 दिन के बाद गर्मी में न आने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। गर्भ निदान के अभाव में बकरियों को गर्भावस्था में उचित आहार और पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है जो गर्भपाता की संभावना को बढ़ा देता है और कमजोर बच्चे पैदा होते हैं। इसके साथ-साथ खाली (गैर गाभिन) बकरियों के रखरखाव पर अनावष्यक खर्चा करना पड़ता है तथा समय रहते पुन: गर्भधान न कराने से बकरी पालन व्यवसाय से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है। एक स्वस्थ रेवड़ में गर्भधारण की दर 70-75 प्रतिषत होती है। बकरियों में गर्भध्निदान के अनेक तरीके हैं, परन्तु उसमें सक कुछ ही व्यावहारिक तथा उपयुक्त हैं जिन्हें बकरी पालक आसानी से अपना सकते हैं। बकरी का गर्भाधान के बाद तीन सप्ताह बाद पुन: मद (गर्मी) के लक्षण प्रकट न करना, गर्भधारण पता करने का एक तरीका है। जिसे अधिकतर बकरी पालक अपनाते हैं। इसके साथ-साथ गर्भ की सही जांच गर्भाधान के 80-90 दिन उपरांत पेट का उभार देखकर (उदर विधि) पशु चिकित्सा द्वारा करा लेनी चाहिए।

गर्भकाल व प्रसव क्रिया—————

गर्भावस्था व उसके उपरांत प्रसव, जनन का तीसरा चरण है। गर्भावस्था में की गई देखभाल तथा पोषण आगे आने वाली संतति के भविष्य का निर्धारण करते हैं। गर्भकाल का समय ऐसा होता है जब बकरी को अपने षरीर के साथ-साथ गर्भ में पल रहे मेमनों का भी पोषण करना पड़ता है। गाभिन बकरी को गर्भावस्था के अंतिम 45 दिनों में उचित आहार देना आवष्यक है। इस अवधि में बकरी का दूध नहीं दूहना चाहिए, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को उचित पोषण मिलता रहे। प्रत्येक गाभिन बकरी को प्रतिदिन 150-250 ग्राम दाना मिश्रण, चना व अरहर भूसे में मिलाकर देना आवष्यक है। पर्याप्त हरा चारा न मिलने पर विटामिन ए भी देना चाहिए क्योंकि ऊर्जा व विटामिन ए की कमी से गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। बकरियों में प्रसव का समय अन्य पशु प्रजातियों के समान महत्वपूर्ण है। रेवड़ में जहां बकरियाें को नैसर्गिक विधि से गर्भाधान कराया जाता है उनमें प्रसव क्रिया का ज्ञान और भी आवष्यक हो जाता है, क्योंकि इसमें प्रसव की तिथि की निष्चित गणना संभव नहीं है। बकरियों में सन्निकट प्रसव के लक्षण स्पष्ट न होने के कारण गर्भावस्था के अंतिम पखवाड़े में ज्यादा ध्यान की आवष्यकता होती है। इस समय उनको हलका, सुपाच्य दाना-चारा दिया जाए। उनके षरीर के पिछले भाग विषेषकर बाह्य जननांगों के आसपास के अनावष्यक बालों को काट दें। ब्याने से एक सप्ताह पूर्व उन्हें ऊंचे-नीचे स्थानों पर न चराएं। अच्छा यही रहेगा कि इस समय उन्हे बाड़ों के आसपास ही चराया जाए या फिर बाड़े में ही रखा जाए। ब्याने की संभावित तिथि से एक पखवाड़े पूर्व निम्न तैयारियां कर लेनी चाहिए।
• ब्याने के लिए काम में आने वाले बाड़े (4′ गुणा 4′) को अच्छी तरह से साफ करके सूखने दें। इसमं एक सप्ताह बाद चूना डालकर सूखी घास या पुआल का बिछौना दें। इन बाड़ों को प्रत्येक ब्याने वाली बकरी के लिए उपयोग में लाएं।
• ब्याने वाली प्रत्येक बकरी को बकरी के साथ रखने के लिए 21′ गुणा 21′ गुणा 21′ आकार का लकड़ी का बक्सा रखें। इसमें भी सूखी घास या जूट के बोरे का बिछौना बनाएं।
• बकरी पालकों को चाहिए कि वह ब्याने वाली बकरियों को सुबह-षाम अवष्य देखें जिससे ब्याने के समय का आसानी से पूर्वानुमान हो सके। बकरी में जैसे-जैसे ब्याने का समय नजदीक आता है, उसमें अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। जैसे –
o बकरी की बेचैनी बढ़ जाती है।
o बकरी के अयन का आकार एकाएक बढ़ जाता है। थनों में चमक और फूलापन दिखाई देता है। पहली बार ब्याने वाली अधिकांष बकरियों के थनों में दूध आता है।
• बकरी के योनि मार्ग से पीले रंग का लसलसा और गाढ़ा स्त्राव निकलना आरम्भ हो जाता है।
• बकरी रेवड़ में एकान्त स्थान पर उठती-बैठती है।
• बकरी ब्याने के कुछ घंटे पूर्व बार-बार उठती-बैठती तथा अनमनी हो जाती है।
बकरियों की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए जनन चक्र की निरंतर आवष्यक है, जिससे प्रसवोपरांत बकरियों को जल्दी ऋतुमयी होने से उन्हें पुन: प्रजनित किया जा सके। इस प्रक्रिया को अपनाने से दो ब्यांतों के बीच अंतराल (ब्यांत अंतराल) में कमी आती है तथा क्षमता में वृध्दि होती है।
प्रसव का समय सन्निकट आने पर बकरी के उदर वाले भाग में प्रसव वेदना षुरू हो जाती है। प्रसव पीड़ा आरम्भ में हलकी व बाद मे तीव्र होने लगती है। यह सभी लक्षण इस बात का संकेत हैं कि बकरी षीघ्र ब्याने वाली है। आमतौर पर प्रसव वेदना षुरू होने के 3-4 घंटे में बकरी बच्चे को जन्म दे देती है। पहली बार ब्याने वाली बकरी कुछ ज्यादा समय लेती है। बच्चा निकलने से पहले एक झिल्लीनुमा चमकीला गुब्बारा निकलता है। अधिकतर बकरियां लेटकर बच्चा देती हैं। प्रसव के समय बकरी से छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। बकरी की स्वाभाविक रूप से जनने दिया जाएं सामान्य प्रसव में मेमने के आगे के दोनों पैर व सिर बाहर आते हैं इसके बाद षरीर का बाकी हिस्सा बाहर आ जाता है। अन्य मेमने भी इसी क्रम में बच्चे दानी से बाहर आते हैं। सामान्यत: बकरी का जोर ब्याने के 3-6 घंटे के अंदर निकल आता है। प्रसव क्रिया अगर सामान्य न हो तो पशु चिकित्सक की सहायता लें।

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प्रसवोपरान्त प्रजनन—————-

एक जनन चक्र सफल प्रजनन से आरम्भ होकर सामान्य प्रसव के साथ पूर्ण हो जाता है। बकरियों की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए जनन चक्र निरन्तर आवष्यक है, जिससे प्रसवोपरान्त बकरियों को जल्दी ऋतुमयी होने से उन्हें पुन: प्रजनित किया जा सके। इस प्रक्रिया का अपनाने से दो ब्यांतों के बीच अंतराल (ब्यांत अंतराल) में कमी आती है तथा क्षमता में वृध्दि होती है। प्रसव व प्रसवोपरान्त ऋतुचक्र में आने का अंतराल छोटी नस्लों (जखराना, जमुनापारी, बीटल) 130-171 दिन तक होता है जनन चक्र की पुनरावृति के लिए बकरी पालक अपने रेवड़ में नस्ल के अनुसार पुन: गर्भाधान करा कर बकरी की उत्पादन क्षमता का दोहन कर सकते हैं। बकरी 10 वर्ङ्ढ की आयु तक बच्चे देने में सक्षम है परन्तु उम्र बढ़ने के साथ इनकी जनन क्षमता में कमी आने से अधिकांष बकरी पालक इन्हे 7-8 वर्ष की उम्र में बकरियों को रेवड़ से अलग कर देते हैं। बकरी पालक इनकी जगह नई बकरियों से उत्पादन लेना बेहतर मानते हैं।

1. Black Bengal Bakri:———-

ब्लैक बंगाल बकरी सामन्यतः बांग्ला देश में पायी जाती है | लेकिन इंडिया के कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा में भी इनका पालन किया जाता है | इनका पालन मीट के उत्पादन हेतु किया जाता है | क्योकि दूध उत्पादन करने के मामले में यह नस्ल थोड़ी कमज़ोर होती हैं | ध्यान रहे ब्लैक बंगाल नाम हो जाने से ये बकरियां केवल काले रंग की नहीं होती, बल्कि इनका रंग भूरा, सफ़ेद इत्यादि भी हो सकता है | इस नस्ल की बकरियों को परिपक्व होने में अन्य बकरियों की तुलना में कम समय लगता है | और परिपकवता में बकरे का भार 25 से 30 किलो, और बकरी का भार 20 से 25 किलो तक होता है |

ब्लाक बंगाल बकरी की विशेषतए :———-

• एक बार में दो या तीन बकरियों को जन्म देने का सामर्थ्य रखती हैं |
• किसी भी वातावरण में अपने आप को जल्दी ढाल लेती हैं ।
• आकार में छोटी होने के कारण, खाना कम खाती हैं । जिससे खाने का खर्चा कम आता है ।
• आकार छोटा होने के कारण अन्य बकरियों की तुलना में कम जगह लेती हैं । जिससे इनका पालन छोटी सी जगह से भी शुरू किया जा सकता है ।
• एक साथ दो या तीन बकरियों को जन्म देने के कारण आपका Goat Farm बहुत जल्दी बड़े Farm के रूप में तब्दील हो सकता है |
• इस नस्ल की बकरियों में एक साल में दो बार प्रजनन करने की क्षमता होती है |

2. Boer Bakri———–

यह बोअर बकरी नस्ल साउथ अफ्रीका में पाई जाने वाली बकरियों की एक नस्ल है | लेकिन चूंकि इनका पालन भी मांस उत्पादन हेतु किया जाता है | इसलिए इंडिया में भी इस नस्ल की बकरियों का पालन किया जाता है | कहते हैं की Boer शब्द को डच भाषा से लिया गया है | जिसका मतलब किसान होता है | जहाँ 3 महीने के समय में इस नस्ल की बकरियों का भार 12 से 18 किलो तक होता है | वहीँ छह महीने में इनका भार 18 से 30 किलो तक हो जाता है | और पूर्ण रूप से परिपक्व होने पर इस नस्ल के बकरे का भार 75 से 90 किलो, वही बकरी का भार 45 से 55 किलो के बीच रहता है |

बोअर बकरी की विशेषतए———————–

• इस नस्ल की बकरियां हर प्रकार के वातावरण ठंडा हो या गरम में आसानी से ढल जाती हैं | अर्थात बकरियों की तबियत ठीक ठाक रहती हैं, वे बीमार नहीं पड़ती |
• इस नस्ल की बकरियां खाना अच्छा अर्थात अधिक खाती हैं | उसी प्रकार जल्दी से बढ़ती भी हैं |
• अन्य बकरियों की तुलना में बहुत कम समय में इनका भार बहुत अधिक हो जाता है |
• चूंकि इस नस्ल की बकरियों में बीमारी रोधक क्षमता अधिक होती है | इसलिए बहुत कम ख्याल रख के भी इनका पालन किया जा सकता है |

3.जामुनपारी बकरी ——————–

बकरियों की इस नस्ल को आप इंडिया उत्पादित नस्ल कह सकते हैं | कहते हैं की इस नस्ल का नाम Jamuna Pari जमुना नदी के नाम से रखा गया है | और इस नस्ल की बकरियों का पालन मांस की आपूर्ति के अलावा दूध की आपूर्ति हेतु भी किया जाता है | अर्थात इस नस्ल की बकरियों की दूध देने की क्षमता भी अच्छी होती है | इस प्रजाति की बकरियां आपको इंडिया में अधिकतर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों में देखने को मिल जाएँगी | परिपकवता में इस नस्ल के बकरे का भार 50 से 60 किलो, वही बकरी का भार 40 से 50 किलो होता है |

जामुनपारी बकरी की विशेषताए :——-

• इस नस्ल की बकरियां साल में एक ही बार प्रजनन करने की क्षमता रखती हैं | लगभग 60% बकरियां सिंगल बकरी को ही जन्म देती हैं | जबकि लगभग 40% बकरियां दो बकरियों को जन्म देती हैं |
• बकरियों में औसतन एक दिन में दूध देने की क्षमता दो लीटर तक होती है | और दूध देने की समय सीमा तीन साढ़े तीन महीने होती है |
• इस नस्ल की बकरियों का मांस स्वादिष्ट होने के साथ साथ, cholesterol भी कम होता है |
• इस नस्ल की बकरियों में लगभग 18 महीने में ही गर्भधारण करने की क्षमता आ जाती है |

4 . सिरोही बकरी की विशेषताए —————–

इस नस्ल का नाम सिरोही राजस्थान राज्य के एक जिले सिरोही के नाम से रखा गया है | इस नस्ल की बकरियों का पालन पहले राजस्थान में ही अधिक मात्रा में किया जाता था | लेकिन अब सम्पूर्ण इंडिया में इस नस्ल की बकरियों का पालन किया जाता है | इस नस्ल की बकरियों का पालन भी मांस की आपूर्ति हेतु ही किया जाता है | हालांकि ये दूध भी देती हैं लेकिन इनकी दूध देने की क्षमता प्रत्येक दिन केवल आधा लीटर तक होती है |
सिरोही बकरी
• इस नस्ल की बकरियां अपनी उम्र के 20 महीने या 22 महीने में पहला गर्भ धारण करती हैं |
• इस नस्ल की बकरियां एक साल में दो बार गर्भ धारण कर सकती हैं | लगभग 40% बकरियाँ सिंगल बकरी और लगभग 60% बकरियां दो बकरियों को जन्म देती हैं |
• परिपकवता में इस नस्ल के बकरे का भार लगभग 30 किलो और बकरी का भार लगभग 32 किलो होता है | इस नस्ल में बकरियों का भार बकरे की तुलना में अधिक होता है |

5.बीटल बकरी ———————

इस नस्ल की बकरियों का पालन इंडिया और पाकिस्तान में किया जाता है | और इनका पालन दूध और मांस दोनों की आपूर्ति हेतु किया जाता है | क्योकि इस नस्ल की बकरिया एक दिन में 1 या दो लीटर दूध देने की क्षमता भी रखती हैं | इस प्रकार की नस्ल की बकरियां अपने आपको किसी भी वातावरण में ढालने की क्षमता रखती हैं |

बीटल बकरी की विशेषताए —————–

• इस नस्ल की बकरियों का पालन मांस और दूध दोनों की आपूर्ति हेतु किया जा सकता है |
• यदि हम Jamna Pari से इनकी तुलना करें तो यह उनसे छोटी होती हैं |
• जन्म के समय इस नस्ल की बकरी का भार लगभग 2.5 किलो होता है |
• परिपक्व होने पर इस नस्ल के बकरे का भार 50 से 65 किलो और बकरी का भार 40 से 45 किलो होता है |
• इस नस्ल की बकरियां अपनी उम्र के 23 से 25 महीनो में पहला गर्भधारण करती हैं |
• इन बकरियों में प्रत्येक दिन औसतन दूध देने की क्षमता 1.5 से 2.5 लीटर के बीच होती है | और दूध देने की समय सीमा लगभग 6 महीने होती है |

Land Selection :—————

भारतवर्ष से जुड़ा हर एक क्षेत्र Bakri Palan Business करने के लिहाज से उपयुक्त क्षेत्र माना गया है | बस आपको अपना Bakri Palan बिज़नेस शुरू करने के लिए आपके घर के आस पास ही कोई ऐसी जगह तलाश करनी है | जहाँ से आप इस बिज़नेस को आसानी से क्रियान्वित कर सको | लेकिन इसके अलावा जमीन का चुनाव करते वक़्त निम्न बातो का ध्यान रखा जाना बेहद आवश्यक है |
• ऐसी जगह जमीन की तलाश कीजिये जहाँ पर शुद्ध हवा, पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो |
• जिस जगह पर हरी घास, कुछ अनाज आसानी से पैदा किया जा सके | क्योकि इस जमीन द्वारा उत्पादित हरी घास, अनाज इत्यादि बकरियों को खिलाकर आप इनके खाने का खर्च कम कर सकते हैं |
• ध्यान रहे की आपके Bakri Palan business करने की जगह के आस पास कोई ऐसी मार्किट हो जहाँ पर आपको आपकी बकरी पालन बिज़नेस से सम्बंधित वस्तुएं और दवाएं आसानी से मिल जाएँ |
• ग्रामीण भारत में ही Bakri Palan बिज़नेस की सोचें | क्योकि शहरो के मुकाबले गांवों में जमीन और लबोर बहुत सस्ते दामों में उपलब्ध रहते हैं |
• ध्यान रहे आपकी Goat Farming का क्षेत्र ऐसा होना चाहिए जहाँ पशु चिकित्सा सम्बन्धी सारी सेवाएं उपलब्ध हों | यदि नहीं है, तो आपको सारी दवाएं और टीके अपने फार्म में ही रखने पड़ेंगे |
• यातायात की सुविधा का होना जरुरी है ताकि जरुरत पड़ने पर आप अपनी जरुरत की वस्तुएं किसी नज़दीकी मार्किट से खरीद सको | और अपने Goat Farm द्वारा उत्पादित उत्पाद को आसानी से बेच सको |

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Housing:———————–

Housing को Hindi में घर बनाना कहते हैं | चूँकि यहाँ पर Goat Farming की बात हो रही है, इसलिए इस वाकये में हाउसिंग का अर्थ Bakri Palan के लिए घर बनाने से लगाया जाना चाहिए | बकरी पालन करने के लिए बकरियों के लिए घर बनाना एक बहुत ही महत्व्पूर्ण काम है | लेकिन ग्रामीण भारत में इस क्रिया को महत्व्पूर्ण स्थान शायद नहीं दिया जाता | क्योकि जो लोग छोटे पैमाने पर Bakri Palan करते हैं | वे बकरियों के लिए कोई अलग सा घर ना बनाकर, उन्हें अन्य पशुओं के साथ ही ठहरा देते हैं | जिससे उनकी उत्पादकता पर इसका असर साफ़ तौर पर दिखाई देता है | व्यवसायिक तौर पर बकरी पालन करने के लिए बेहद जरुरी हो जाता है | की बकरियों के रहने के लिए एक अलग सा स्थान तैयार किया जाय, और निम्न बातों का ध्यान विशेष तौर पर रखा जाय |
• अपने बिज़नेस को लाभकारी बनाने हेतु आपको बकरियों के रहने के स्थान का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा | बकरियों के रहने के स्थान पर नमी, सीलन नहीं होनी चाहिए | चूहों, मक्खियों, जूँ इत्यादि कीट पतंगे बकरियों के रहने के स्थान पर बिलकुल नहीं होने चाहिए |
• बकरियों के लिए घर बनाते समय हवा के आने जाने वाले मार्गो का उचित ध्यान रखे | अर्थात शुद्ध हवा अंदर आने के लिए कोई न कोई स्थान अवश्य छोड़ें |
• बकरियों के रहने के स्थान से पानी निकास की उचित व्यवस्था पहले से ही कर के रखे | ताकि जब आप अपने Farm की सफाई पानी से करें, पानी आसानी से बाहर चला जाय |
• कोशिश करें की बकरियों के रहने का स्थान जमीन से दो तीन फ़ीट ऊँचा हो | इसके लिए आप तख़्त वगैरह का इस्तेमाल कर सकते हैं | क्योकि गीलेपन और नमी से बकरियों में बीमारी पैदा हो सकती है | इसलिए बकरियों के रहने के स्थान को हमेशा सूखा रखे |
• ध्यान रहे बकरियों के रहने के स्थान पर किसी प्रकार का पानी चाहे वह बारिश का हो या किसी अन्य वजह से, आने न पाए | यह पानी बकरियों को परेशान करता है |
• तापमान को नियमित संयमित करने के लिए अच्छे ढंग से तापमान नियंत्रण सिस्टम होना चाहिए | ताकि आप सर्दियों में अपने Farm को गरम और गर्मियों में संयमित रख सको |
• अपने Bakri Palan बिज़नेस से जुड़े सभी उपकरणों, बर्तनों की सफाई का विशेष ध्यान रखें |

Feeding :———-

इन सबके अलावा आपको अपने Bakri Palan बिज़नेस के लिए उनके खाने पीने का विशेष ध्यान रखना पड़ेगा | आप चाहें तो बकरियों के खाने का खर्च कम करने के लिए खुद भी उनका खाना घर में बना सकते हैं | इसके लिए आपको निम्नलिखित सामग्री चाहिए होगी |
चोकर: चोकर अनाज के भूसे में थोडा बहुत आटा मिलाकर बनाया जाता है |
मक्के का दर्रा, बादाम खली, चने का छिलका, मिनरल मिक्सचर, नमक इत्यादि |
आपको 100 किलो बकरियों का खाना बनाने के लिए 45 किलो चोकर, 25 किलो मक्के का दर्रा, 15 किलो बादाम खली, 12 किलो चने का छिलका, 2 किलो मिनरल मिक्सचर एवं 1 किलो नमक मिलाना होगा |
Some Extra tips :————-
• चूँकि आपके Bakri Palan Business की रीढ़ की हड्डी बकरियां हैं | इसलिए बकरियों का हमेशा अच्छे से ध्यान रखें |
• अपनी बकरियों को पहचानिए, और जो बकरी आपको कमजोर या अस्वस्थ नज़र आती है | उसको तंदुरुस्त करने के लिए जरुरी दवाएं, टीके अवश्य लगायें |
• अपनी बकरियों को हमेशा तंदुरुस्त रखने और अपने Bakri Palan Business को सफल बनाने हेतु | बकरियों का समय समय पर टीकाकरण करवाते रहें |
• ध्यान रहे बकरियों को कभी भी दूषित गन्दा खाना देने से बचें | दूषित खाना खाने से बकरियों की तबियत बिगड़ सकती है |
• बकरियों के बच्चो का बकरियों की तुलना में अधिक ध्यान रखें |
• अपने Bakri Palan Business का आय और व्यय दोनों का अच्छे ढंग से रिकॉर्ड मेन्टेन करके रखें |

Bakri Palan Business में आने वाली कठिनाइयां————–

Bakri Palan Business को करने में लोगो को कुछ कठिनाइयां आती हैं | जिससे उनकी रुचि इस Business में कम होती जाती है |
• वास्तव में जो लोग Bakri Palan बिज़नेस कर रहे होते हैं | अधिकतर लोगो को इस बिज़नेस की पर्याप्त मात्रा में जानकारी नहीं होती है | जिससे वे इस बिज़नेस को पारम्परिक तरीके से ही कर रहे होते हैं |
• इंडिया में जिन्दा बकरियों को एक स्थान से दुसरे स्थान ले जाने हेतु | विशेष तौर पर कोई वाहन नहीं है | अगर कोई बकरियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले भी जाता है, तो वही ट्रक और टेम्पो में ही भरकर ले जाता है | जिससे बकरियों की तबियत खराब भी हो सकती है |
• ग्रामीण भारत में Bakri Palan करने वाले किसान, नए नए बकरी पालन का बिज़नेस शुरू करने वाले लोगो में बकरियों की बीमारी सम्बन्धी जानकारी के अभाव के कारण, बकरियों की मृत्यु दर काफी उच्च स्तर पर पहुँच जाती है |
• बकरी पालने वाले व्यक्ति यह बिज़नेस शुरू करने से पहले बकरियों की नस्ल का चुनाव करना भूल जाते हैं | जिससे उनका बिज़नेस बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ता है | और इस बीच अगर बकरियों को कोई जानलेवा रोग जैसे PPR (Pests des petits ruminants) लग गया | तो वह व्यक्ति अपनी जिंदगी में कभी भी बकरी पालने की हिम्मत नहीं कर पाता | अच्छी नस्ल का चयन बिज़नेस को जल्दी आगे बढ़ने में मदद करता है |
• बकरियों के प्राणघातक रोगों के लिए टीके न होना, और पशुचिकत्सकीय सेवा का हर जगह उपलब्ध न होना, भी इस बिज़नेस में आने वाली एक कठिनाई है |
• लोगो के पास एक अच्छी आय देने वाला Farm खोलने के लिए वित्त का न होना भी एक कठिनाई है | लोग वित्त न होने के कारण 15-20 बकरियों से शुरुआत करते हैं | जिससे उन्हें लाभ कमाने में बहुत अधिक समय लग जाता है | यदि 100 बकरियों से शुरुआत हो, तो परिणाम जरां जल्दी आने की सम्भावना रहती है |
• भारतवर्ष में बहुत सारे क्षेत्र ऐसे हैं | जहाँ Bakri Palan करने वालो को उनकी अपेक्षा के हिसाब से दाम नहीं मिल पाते | इस कारण उनकी रूचि इस बिज़नेस में खत्म होने लगती है |
अगर आप Bakri palan के बारे मेें सोच रहे है और bakri palan बिजेनस प्रारम्भ करना चाहते है तो आपके लिए खुशखबरी है। Goat Farming in India ऐसा बिजनेस हॅै जिसे कोई भी थोड़ी सी लागत/पूंजी और जानकारी के साथ शुरू कर सकता है। साथ ही साथ बकरी पालन में जोखित और दूसरो बिजेनस से काफी कम है। वैसे तो आपको Bakri palan के अनेक बिजनेस प्लान मिल जायेंगे परन्तु जब तक व्यवहारिक ज्ञान नहीं होगा तब तक कोई भी बिजनेस को बड़ा रूप नहीं दिया जा सकता है।
गोट मीट की मांग India में हर जगह है तथा और मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है।
जहाॅ तक भारत में bakri palan ki jankari की व्यापकता का सवाल है हमें उसका जबाव सिर्फ इसी बात से मिल जाता है कि बकरे का मीट किसी भी धार्मिक विचारधारा या प्रतिबंध से मुक्त है अर्थात बकरे का मीट को सभी धर्मों, जातियों तथा सम्प्रदायों द्वारा खाने में व्यपकता से उपयोग किया जाता है। किसी तरह की धार्मिक पाबन्दी न होने के कारण बकरे का मीट अन्य मीटों की तुलना में अधिक लोकप्रिय है।

Bakri Palan आरम्भ कैसे करें———–

हमारे देश में Bakri Palan के अत्यधिक लाभ हैं जिनमें से प्रमुख हैं:-
• यदि हम Bakri palan की तुलना अन्य पशुपालन जैसे गौ पालन या भैंस पालन से करें तो हमें पहला लाभ ये मिलता है कि इसके लिए गौ या भैंस पालन के मुकाबले काफी कम जगह चाहिए। दूसरी लाभ जितनी जगह में आप 1 भैंस या गाय पाल सकते हैं उतनी जगह में 5-7 बकरियाॅ आराम से पाली जा सकती हैं।
• अधिकतर नस्ल की बकरियाॅ को गर्मी हो या ठण्ड या बारिश किसी भी वातावरण में ढलने की अद्भुत क्षमता होती है।
• बकरियाॅ अन्य बडे़ पशुओं के मुकाबले बहुत छोटी होती हैं लेकिन ये परिपक्व बहुत जल्द हो जाती हैं।
• बकरी का जीवित तथा मृत्यु के उपरान्त केवल एकमात्र ही उपयोग नहीं है। जहाॅ इसके माॅस का उपयोग लोग खानें में करते हैं वहीं इसके दूध का उपयोग पीने तथा 36 प्रकार की बीमारियों को दूर करने में किया जाता है।
• बकरी के दूध का महत्वपूर्ण उपयोग डेंगू बीमारी को दूर करना हैं।
• बकरी के बालों का उपयोग फाइबर बनाने में तथा खाल का उपयोग विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र बनाने में किया जाता है।
• Bakri palan को बहुत कम पूॅजी में भी शुरु किया जा सकता है। चूॅकि बकरियों के अनेकों नस्ल होती हैं जो साल में 2 बार बच्चे देती हैं और हर बार 2 से 3 बच्चे देती हैं। इसलिए इस व्यापार के जल्द से जल्द बढ़ने की अधिक सम्भानाएं होती हैं।
• Goat farming को व्यवस्थित ढंग से चलाना अन्य फार्मों की तुलना में अधिक सरल होता है।
• यदि आप पहले से कोई पशुपालन कर रहे हैं और Goat farming Training in India भी करना चाहते हैं तो आप बकरियों को वही जगह दे सकते हैं, जिस जगह पर आप पहले से पशुपालन कर रहे हैं।

जमीन का चुनाव:——————

हमारे देश का हर कोना Goat Farm का व्यवसाय करने के लिए उपयुक्त माना गया है। हमें यह व्यवसाय शुरु करने के लिए अपने घर के आस-पास ही कोई जगह तलाश करनी है, जहाॅ से हम इस व्यवसाय को आसानी से क्रियान्वित कर सकें। इसके अतिरिक्त जमीन का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाना बेहद आवश्यक
है:-
• ऐसी जगह जमीन की तलाश करनी चाहिए जहाॅ शुद्ध पानी और हवा की प्रचुरता हो।
• आस-पास के क्षेत्र में खेत हों ताकि आप आसानी से घास और अनाज पैदा कर सकें ताकि बकरियों को खिलाने का खर्च कम किया जा सके।
• आस-पास के क्षेत्र में ऐसा मार्केट हो जहाॅ बकरी पालन से संबंधित वस्तुएं और दवाईयाॅ आसानी से उपलब्ध हो।
• गाॅव के आस-पास ही Goat farming शुरु करने का सोचें क्यांेकि शहरों के मुकाबले गांवों में जमीन और लैबर बहुत सस्ते दामों में उलपब्ध रहते हैं।
• बकरी पालन को क्षेत्र ऐसा हो जहाॅ आस-पास कोई पशु चिकित्सालय हो ताकि आपको टीके व अन्य दवाईयाॅ आसानी से उपलब्ध हो सके न हीं तो आपको सारी दवाईयाॅ और टीके अपने फार्म पर ही रखने पड़ेगें।
• यातायात की सुविधा का होना जरुरी है ताकि जरुरत पड़ने पर आप अपनी जरुरत की वस्तुएं किसी नजदीकी मार्केट से खरीद सकें तथा अपने फार्म के उत्पादों को आसानी से बाजार में पहॅुचा और बेच सकें।

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शेड निर्माणः—————–

Bakri palan करने के लिए बकरियों के लिए घर या शेड का निर्माण बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। लेकिन हमारे देश में अभी तक इस क्रिया को एक महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया जाता क्यांेकि जो लोग छोटे पैमाने पर goat farming करते हैं वे बकरियों के लिए अलग सा घर न बना कर उन्हें अन्य पशुओं के साथ ही ठहरा देते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता पर असर स्पश्ट तौर पर देखा जा सकता है। व्यवसायिक रुप से bakri palan ki jankari बहुत ही जरुरी हो जाता है कि बकरियों के रहने के लिए एक अलग मानक स्थान तैयार किया जाए और निम्न् बातों का स्पश्ट ध्यान रखा जाए कि:——–

• कोशिश करें कि बकरियों के रहने का स्थान जमीन से दो-तीन फीट ऊँचा हो। इसके लिए आप तख्त इत्यादि का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि गीलेपन और नमी से बकरियों मे बीमारी पैदा हो जाती है।
• चूहों, मक्खियों, जूँ इत्यादि कीट पतंगे बकरियों के आवास पर बिलकुल नहीं होने चाहिए।
• आवास को हमेशा पूर्व-पष्चिम दिशा में बनवाना चाहिए, ताकि हवा का आवागमन आसानी से हो सके।
• आवास से पानी निकास की उचित व्यवस्था पहले से ही करके रखें, ताकि फार्म की साफ-सफाई के दौरान पानी की निकास बाहर की ओर आसानी से हो सके।
• इस बात की उचित व्यवस्था करें कि बकरियों के आवास में किसी भी प्रकार का पानी चाहे वो बारिश का हो या कोई अन्य, अन्दर न आने पाए। यह पानी बीमारियों की जड़ है।
• आवास में तापमान को स्थिर रखने के लिए उचित प्रबन्ध करें। गर्मी तथा सर्दियों के लिए आवास में तापमान नियंत्रण के लिए उचित प्रबन्ध करें।
• बकरी पालन से सम्बन्धित सभी तरह के उपकरणों, बर्तनों की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
चारे की व्यवस्था
इन सबके अलावा Goat farming training in India व्यवसाय के लिए बकरियों के खान-पान का उचित प्रबन्ध रखना होगा।
• बकरियों के लिए हरा चारा, गेंहॅू का भूसा (यदि संभव हो तो चना, अरहर तथा मसूर की दाल के भूसे का इंतजाम किया जा सकता है) आदि का प्रबन्ध कराना चाहिए।
• दानें के रुप में बकरियों को गेंहॅू और टूटी हुई मक्का देना चाहिए।
• इसके अलावा कटहल, नीम, पीपल, पाकड़ की पत्तियों को समय-समय पर हरे चारे के रुप में दे सकते हैं।

अतिरिक्त सलाह——–

• बकरियाॅ बकरी पालन व्यवसाय की रीढ़ की हड्डी होती हैं इसलिए उनका अच्छी तरह से ध्यान रखें।
• बकरियों के रोजमर्रा के असामान्य लक्षणों को पहचानिए, जो भी बकरी आपके सुस्त, कमजोर या चारा नहीं खा रही है उसका अतिरिक्त ध्यान रखें तथा किसी भी तरह की बीमारी को पहचान कर उचित इलाज की व्यवस्था करंे।
• बकरियों को समय-समय पर टीका अवश्य लगवाएं।
• बकरियों के बच्चों का बकरियों की तुलना में अधिक ध्यान रखें।
• बकरी पालन से सम्बन्धित समस्त रिकार्ड को मेन्टेन करके रखें।

जब हम बकरी पालन करने का विचार करते हैं तो मन में अनेक तरह के सवाल आते हैं जैसे :
बकरी के शेड को कैसा बनाये ? कितना बड़ा बनाये ? कितना खर्चा आएगा ?
सही नसल के अच्छे और सस्ते बकरे कहाँ से खरीदें ?
बकरियों को आहार कैसा देना चाहिए की वह जल्दी बड़े हों अथवा कितने दिन में वह बाजार में बेचने के लायक हो जाते हैं
अगर बकरी बीमार हो तो क्या करें कौन सी दवाई दें इत्यादि वैसे तो और भी अनेक प्रश्न हैं जो मैं आपको इस लेख में बताने का प्रयत्न करूँगा
दोस्तों किसी भी व्यवसाय को करने के लिए उसके रिस्क मैनेजमेंट को अच्छे तरह से जान लेना चाहिए ताकि हमें कोई नुकसान न ह।

■ बकरी पालन करने से पहले इन बातों का ध्यान जरूर रखें,

बकरी पालन के लिए सबसे पहले जरुरत पड़ती है बकरी के शेड की जिसमें हमारी बकरियां रहेंगी, मैं आपको छोटे पैमाने पर शुरू करने का सलाह दूंगा क्यूंकि मैंने अपने कई मित्रों को देखा है के वह ज़्यादा पैसा इन्वेस्ट कर देते हैं और फिर फार्म को संभाल नहीं पाते और उन्हें फार्म बंद करना पड़ता है।

ऐसा कोई भी नियम नहीं है के बकरी पालन में आपका शेड बड़ा ही हो आप छोटे से भी शुरुआत कर सकते हैं जिसमें 10 बकरी और एक नर बकरा रखें। अगर आप की ज़मीन अपनी है तो बहुत अच्छी बात है अगर अपनी नहीं है तो लीज पर लें उसमे छोटा सा शेड बनायें और बांस के बाड़े बना दें ताकि बकरिया जब बाहर आये तो उन्हें धूप मिल सके ।

छोटे से शुरू करने में फायदा यह है के आपकी लागत कम लगती है और आपको बकरियों के रख रखाव और स्वभाव का भी पता चल जाता है
उनके खाने में कितना खर्चा आ रहा है इत्यादि और सब कुछ अगर सही रहा तो आने वाले एक साल में आप के फार्म का प्रोडक्शन बढ़कर 30 हो जायेगा जिसमें कम से कम 20 नए बच्चे और पहले के 10 यह मिला के 30 हो जायेंगे।

छोटे से फार्म और कम लागत से शुरुआत करनेें से हो सकता है कि, आपको पहले साल कोई मुनाफा न हो। आपको अभी अपने फार्म के प्रोडक्शन को बढ़ाना है।

■ अब बात करते हैं अच्छे नसल के बकरी के बच्चे की, उन्हें कहाँ से ख़रीदे। दोस्तों सबसे अच्छा तो यह है की, आप अपने जलवायु के अनुकूल ही बकरियों के नसल का चयन करें मगर, कुछ लोगो को अच्छे और खूबसूरत नसल के बकरियां पालने का शौक होता है, वह भी सही है लेकिन थोड़ा उनका देख रेख ज़्यादा करना पड़ता है, उदाहरण के रूप में सिरोही बकरा राजस्थान के जलवायु के अनूकोल है लेकिन उसे वेस्ट बंगाल और झारखण्ड में भी लोग पालते हैं थोड़ा केयर करना पड़ता है।

■ अब बात करते हैं की अच्छे नसल के बकरे कहाँ से खरीदें, वैसे तो कई व्यापारी हैं जो बकरियों का सप्लाई करते हैं और ट्रांसपोर्ट में आपको माल भिजवा देते हैं, लेकिन मैं आपको सलाह दूंगा के आप अगर बकरी मंडी से ख़रीदे तो ज्यादा फायदा होगा। बकरियों का सबसे अच्छा और सस्ता मंडी देवनार महाराष्ट्र है जोकि शनिवार और मंगलवार को मार्किट लगती है। जिन भाइयों को खरीदना है वहा मार्किट डे से एक दिन पहले चले जाएँ और अपने मनपसंद बकरे बकरी को चुन लें, उनका रेट भी बहुत जेन्युइन होता है मैंने देखा है के छोटे अच्छे नसल के बच्चे आपको 3500 -4000 तक आसानी से मिल जाता है। देवनार बकरा मंडी में पहले आप अपने व्यापारी से ट्रांसपोर्टिंग का बात अवश्य कर लें। जो महाराष्ट्र से बाहर राज्य के हैं, उनके लिए महाराष्ट्र से ट्रांसपोर्टिंग थोड़ा कॉस्टली पड़ सकता है उनके लिए बेहतर है आप अपने गाँव के नजदीकी लगने वाले बाजार से ले लें।

■ मैं आपको सिरोही, बीटल , सोजत , तोतापारी , andul बकरे पालने की सलाह दूंगा मुझे सोजत बकरे काफी पसंद हैं यह देखने में बहुत खूबसूरत और जल्दी बड़े साइज के हो जाते हैं, इनकी खास बात यह है की 12 महीने के बाद यह बहुत जल्दी वेट गेन करने लगते हैं और २-३ महीने में डबल हो जाते हैं।

■ बकरी पालन में इन बातों का अवश्य रखे ध्यान ■

१) शेड बनाते समय बाउंड्री वाल अवश्य करवा लें, पीने के पानी के लिए एक बोरवेल, रखवाली करने के लिए स्टाफ का एक कमरा, अपने स्टाफ पर कभी फार्म को पूरा न छोड़े आप अपना पूरा समय दें, अपने निगरानी में फार्म को रखे हो सके तो एक cctv कैमरा इनस्टॉल करवा लें और अपने मोबाइल पर अपने फार्म को देखते रहे। अगर आप बड़े पैमाने पर सुरु करते है तो ये सब जरूरी है, अगर आप छोटे से सुरुवात करते है तो आप खुद ही पूरा संभाल सकते है।

२) हरा चारा का व्यवस्था जरूर कर लें, बकरियों की संख्या के अनुसार जमीन लीज पर लें ले, अगर आपकी खुद की जमीन हो तो बहुत अच्छा है, और उसमे हरा चारा लगाएं। कुछ लोग Hydroponic System से चारा उगाकर बकरियो को खिलाते है।

३) बकरियों को बाहर चराने की वैसे आवशकता नहीं है स्टाल फीडिंग ही पर्याप्त है, अगर चराना है तो हफ्ते में २-३ बार बाहर चरा दें

४) बकरा मंडी से बकरा लेने के बाद फार्म में रखते ही उनका डीवॉर्मिंग और वक्सीनशन करवा लें।

५ ) बकरियों के बीमार पड़ते ही वेटनरी डॉक्टर को बुला कर फार्म विजिट करवा लें और बेसिक इंजेक्शन जैसे बुखार , बदहजमी , दर्द , लूज़ मोशन इत्यादि का इंजेक्शन अपने पास रखें और जरुरत पड़ने पर उसे स्वयं दें, बार बार डॉक्टर बुलाने के चक्कर में कई बार देरी भी हो जाती है, बकरियां यदि सुस्त दिखे तो तुरंत उसका फीवर चेक करें अगर फीवर है तो सही डोज़ में पेरासिटामोल इंजेक्शन दें। इमरजेंसी में सारी दवाई डॉक्टर से पूछ कर रखें और बीमार पड़ने पर स्वयं दें।

६) हरे चारे के साथ सूखा चारा और दाना भी अवश्य दें।

फार्म के सही प्रोडक्शन को ध्यान में रखें और बकरे को उचित रेट में ही बेचें अपने फार्म का प्रचार प्रसार खूब करें, अपने फार्म का वीडियो यूट्यूब पर डालें लोग आप से खुद बकरी खरीदने के लिए कॉल करेंगें।

इन बातों को ध्यान में रखते ही बकरी पालन करें और शुरुआत करें छोटे फार्म से 10 -1 या 20 -1 से शुरू करें 2 – 3 pure ब्रीड जरूर रखें, सोजत है तो सोजत नर बकरा , बीटल है तो बीटल , सिरोही है तो सिरोही बकरा , अगर ब्लैक बंगाल छोटी नसल है तो उसे नसल सुधार के लिए बीटल या सिरोही से क्रॉस करवाएं ,

बकरी पालन बहुत ही अच्छा और ज्यादा मुनाफा देने वाला व्यवसाय है बस जरुरत है सही तकनीक और सच्चे लगन से करने की आप जरूर success करेंगे।

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