बटेर पालन : किसानो की आय बृद्धि की सर्वोतम जरिया

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बटेर पालन : किसानो की आय बृद्धि की सर्वोतम जरिया

Praween Srivastawa,CEO-LBCS

बटेर पालन का व्यवसाय मूर्गी पालन से मिलता जुलता  है। लेकिन मूर्गी पालन से कम खर्च वाला और ज्यादा मुनाफा देनेवाला है। बटेर भोजन के रुप में प्राचिन काल से प्रचलित है। अपने स्वादिष्ट मांस और पौष्टिकता के मामले में बटेर मांसाहारी लोगों की पहली पसंद है। बटेर 5 हफ्ते में परिपक्व हो जाते है और बाजार में आसानी से बेचे जा सकता है। बटेर में रोग या बीमारी न के बराबर होती है। जिसकी वजह से बटेर पालनेवालों को इसका फायदा मिलता है। बटेर को कोई टीका या दवा देने की जरुरत नही है जिससे पालनेवालों के पैसे बचते है।

देश में इन दिनों बटेर पालन को एक अच्छा रोज़गार का विकल्प माना जा रहा है. गौर तलब है कि बटेर जिसे अंग्रेज़ी में Quail कहा जाता है, एक जंगली पक्षी है, जिसका माँस बहुत स्वादिष्ट होता है. बटेर का माँस हमेशा से ही मांसाहार करने वाले लोगों की ख़ास पसंद रहा है. बाज़ार में मांग ज़्यादा होने के कारण बटेर का बड़े पैमाने पर अवैध रूप से शिकार होता रहा है. अवैध शिकार की वजह से ही इसकी जनसँख्या में भाड़ी गिरावट आई है. सरकार ने बटेर की लुप्त होती जनसँख्या को देखते हुए इसके संरक्षण हेतु बटेर का शिकार वन्य जीवन संरक्षण कानून, 1972 के तहत प्रतिबंधित कर दिया था.लेकिन अब यह प्रतिबंध 2014 से हटा ली गयी है ।

आज देश में जापानी बटेर की फार्मिंग की जा रही है. बटेर पालन का व्यवसाय मुर्ग़ी पालन जैसा ही है. बटेर का माँस और अंडा दोनों ही सेहत की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी हैं. मुर्ग़ी के अंडे के मुक़ाबले बटेर का अंडा ज़्यादा गुणकारी होता है. इसके अलावा बटेर का माँस भी बहुत स्वास्थ्य वर्धक होता है. बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए बटेर का माँस लाभप्रद माना जाता है. गुणों के अलावा बटेर के माँस की बाज़ार में माँग उसके स्वाद के कारण है.

 

आजकल भारतवर्ष में 72 मिलियन जापानी बटेर का व्यावसायिक पालन हो रहा है। दुनिया में आज जापानी बटेर पालन में भारतवर्ष का मांस उत्पादन में पाँचवाँ स्थान तथा अण्डा उत्पादन में सातवाँ स्थान है। व्यावसायिक मुर्गी पालन चिकन फार्मिंग के बाद बत्तख पालन और तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है।

भारत वर्ष में सन 1974 में जापानी बटेर सर्वप्रथम यूएसए पशु विज्ञान विभाग कैलिफोर्निया डैविस से लाई गयी थी तथा कुछ वर्षों के बाद में जर्मनी और प्रजातांत्रिक कोरिया (साउथ कोरिया) से लाया गया था। बताते चलें कि ब्रिटेन में जितने उपनिवेश देश थे उन्हीं देशों में यूएनडीपी के सहयोग से परंपरागत चिकन फार्मिंग के लिये विकल्प के रूप में (विविधीकरण में) जापानी बटेर का जननद्रव्य उपलब्ध कराया गया जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बांग्लादेश मैसीडोनिया, इजिप्त, सूडान इत्यादि।

भारतवर्ष में जब इन जापानी बटेर के अंडे को प्राप्त किया गया था तब इनका वजन 7-8 ग्राम तथा चूजों का शारीरिक भार 70-90 ग्राम पाँच सप्ताह में तथा प्रस्फुटन 35-40 प्रतिशत था। करीब-करीब 38 वर्षों के अंतराल के बाद सघन व वृहत रूप से शोध व उन्नयन के कार्य किये गये हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज छ: विभिन्न पंखों के रंगों के मांस व अंडा उत्पादन के लिये शारीरिक भार 130-250 ग्राम पाँच सप्ताह में तथा 240-305 अण्डे प्रतिवर्ष देने वाली प्रजातियों का विकास किया गया है।
हम अपने कुक्कुट पालकों को बताते चलें कि बटेर पालन आजकल के परिवेश में ग्रामीण व्यवस्था में श्रेष्ठतम व्यावसायिक पालन की श्रेणी में आता है जिन्हें निम्न बिंदुओं से भली-भाँती समझा जा सकता है :

1. व्यावसायिक बटेर पालन में टीकाकरण कि आवश्यकता नहीं है तथा बीमारियाँ न के बराबर होती हैं।

2. 6 सप्ताह (42 दिनों) में अंडा उत्पादन शुरू कर देती हैं जबकि कुक्कुट पालन (अंडा उत्पादन की मुर्गी) में 18 सप्ताह (120 दिनों) के बाद अंडा उत्पादन शुरू होता है।

3. बटेरों को घर के पिछवाड़े में नहीं पाला जा सकता है। हमारा आशय है कि यह तीव्र गति से उड़ने वाला पक्षी है, अत: इसकी व्यवस्था बंद जगह में ही की जा सकती है।

4. ये तीन सप्ताह में बाजार में बेचने के योग्य हो जाते हैं।

5. जापानी बटेर के अंडो की पौष्टिकता मुर्गी के अंडों से कम नहीं होती है।

6. गाँव में बेरोजगार युवक व महिलायें घर में 100 बटेरों को एक पिंजड़े में जिसकी लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई – 2.5 × 1.5 × 0.5 मीटर हो, आसानी से रखे जा सकते हैं। अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती है जबकि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 25 से 28 ग्राम दाना खाती है। पाँच सप्ताह की उम्र तक एक किलो ग्राम मांस पैदा करने के लिये 2.5 किलो ग्राम दाना कि आवश्यकता पड़ती है, साथ ही एक किलोग्राम अंडा उत्पादन के लिये करीब 2 किलो ग्राम दाना कि आवश्यकता पड़ती है।

7. बटेर का अण्डा वजन में 8-14 ग्राम में पाया जाता है जो कि 60 पैसे से लेकर 2 रुपये तक बाजार में आसानी से मिल जाता है तथा एक अंडा उत्पादन में मात्र 30 पैसे दाना खर्च तथा 10 पैसा मानव श्रम व अन्य खर्चे लगते हैं। अत: 40 पैसा प्रति अंडा उत्पादन में खर्च आता है। प्रतिदिन एक महिला आधा घंटा सुबह तथा आधा घंटा शाम को समय देकर 50-100 रुपये प्रतिदिन 100 मादा बटेरों को रखने से कमाए जा सकते हैं तथा परिवार के लिये पौष्टिक आहार व कुछ मात्रा में प्रोटीन खनिज लवण और विटामिन्स मिलते हैं।

8. प्रथम दो सप्ताह इनके लालन पालन में बहुत ध्यान देना होता है जैसे कि 24 घंटे रोशनी, उचित तापमान, बंद कमरा तथा दाना पानी इत्यादि। तीसरे सप्ताह से तंदूरी बटेर व अन्य मांस और अण्डे के उत्पाद बनाकर नकदीकरण किया जा सकता है।

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9. एक ग्रामीण बेरोजगार युवक व महिला मात्र 200 बटेरों की रखने कि व्यवस्था कर लेता है तो इनके रखने के स्थान की आवश्यकता लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई 3 × 2 × 2 मीटर जगह कि आवश्यकता होती है और प्रति पक्षी 18-25 रुपये लागत आती है तथा बाजारी मूल्य 40-70 रुपये प्रति पक्षी मिल जाता है। अत: गाँव के बेरोजगार युवक और युवतियों द्वारा मात्र एक घंटा सुबह और शाम देने से 2500-4000 रुपये प्रति माह अपने खेती-वाड़ी के क्रियाकलापों के साथ-साथ जापानी बटेर का उत्पादन कर प्राप्त कर सकते हैं।

बटेर एक ऐसा जंगली पक्षी है, जो ज्यादा दूरी तक नहीं उड़ सकता और जमीन पर ही अपने घौंसला बनाता हैं. इनके स्वादिष्ट एवं पौष्टिक गुणवत्ता वाले मांस (Meat) के कारण यह अधिक पसंद किया जाता है. वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत इनका शिकार करना प्रतिबंधित है, लेकिन सरकार से लायसेंस लेकर बटेर का पालन किया जा सकता है. बटेर पालन से ना केवल अच्छी कमाई की जा सकती है बल्कि बटेर की घटती संख्या को रोकने में मदद भी मिलेगी. इस बिजनेस की खासियत ये है कि ये कम लागत शुरू हो जाता है. इतना ही नहीं, बटेर बेचने लायक भी एकदम हो जाती है क्योंकि इनकी बढ़वार तेजी से होती है, अधिक अंडे उत्पादन और सरल रख-रखाव के कारण इसका पालन व्यावसाय के रूप में तेजी से बढ़ रहा है. देश में व्यावसायिक मुर्गी एवं बतख पालन के बाद बटेर पालन (जापानी बटेर) का व्यवसाय तीसरे स्थान पर आता है. जापानी बटेर के अंडे का वजन इसके शरीर के वजन का 8 प्रतिशत होता है, जबकि मुर्गी का 3 प्रतिशत ही होता है. बटेर पालन में लगभग ढाई दशक के लम्बे प्रयासों के बाद इसकी पालतू प्रजाति का विकास मांस और अंडे उत्पादन (Meat & egg production) के लिए किया जा रहा है.

बटेर पालन के लाभ (Benefits of Quail farming)

  • बटेर आकार में छोटे होते हैं तथा उन्हें आवास के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है.
  • बटेर जल्दी परिपक्व (Mature) हो जाते हैं मादा बटेर 6 से 7 सप्ताह में ही अण्डे देना शुरू कर देती है तथा बटेर की बाजार में 5 सप्ताह बाद ही बेचने की आयु हो जाती है.
  • एक मादा बटेर (Female Quil) एक साल में लगभग 250-300 तक अंडे दे देती है.
  • मुर्गी के मांस की तुलना में बटेर का मांस बहुत स्वादिष्ट होता है, वसा (Fat) की मात्रा भी कम होती है. जिससे मोटापा (Obesity) नियंत्रण में मदद मिलती है.
  • बटेर पालन में आहार और रख रखाव लागत बहुत कम होती है.
  • मुर्गी पालन और पशुपालन के साथ कुछ संख्या में बटेर पालकर किसान इस व्यवसाय को आगे बढ़ा सकते हैं.
  • मनुष्य आहार (Human diet) को संतुलित बनाने के लिए मांस और अंडे की जरूरत होती है. इसलिए यह कहना सही होगा कि बटेर पालन से अनेक लाभ लिए जा सकते हैं.

बटेर पक्षियों की नस्लें (Breeds of Quail birds)

पूरी दुनिया में बटेर की लगभग 18 नस्लें उपलब्ध है, उनमें से अधिकांश भारत की जलवायु (Indian climate) में पाली जा सकती हैं. इन नस्लों में कुछ नस्लें बड़े स्तर पर मांस और अंडे उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. किसान अपने उत्पादन उद्देश्य के अनुसार किसी भी नस्ल का चयन कर सकता है.

बोल व्हाइट: यह मांस उत्पादन (Meat production) के लिए अच्छी मानी जाती है| यह अमरीकी नस्ल की बटेर है.

व्हाइट बेस्टेड: यह भारतीय प्रजाति का ब्रायलर बटेर है. जो मांस उत्पादन के लिए उपयुक्त है.

अधिक अण्डे देने वाली नस्ल: इनमें ब्रिटिश रेंज, इंग्लिश व्हाइट, मंचूरियन गोलन फिरौन एवं टक्सेडो है.

बटेर पालन में आवास व्यवस्था कैसे करें (How to arrange Housing system in Quail farming)

यदि व्यावसायिक बटेर पालन (Quail farming Commercial quail farming) करना चाहते है तो आवास बहुत महत्वपूर्ण है. आवास में बिछावन प्रणाली (Laying system) और पिंजरा विधि से बटेर पालन किया जा सकता है, इसमें पिंजरा विधि का उपयोग से अधिक लाभ और सुविधाजनक होता है. दो सप्ताह की आयु के बाद पक्षियों को पिंजरे में रखा जा सकता है. 3 X 2.5 X 1.5 वर्ग फीट आकार वाले पिंजरे में इन्हे रखना उचित रहता है. व्यावसायिक अंडों के लिए कई पिंजरे रखे जाते हैं, और प्रत्येक पिंजरे में 10-12 अंडे देने वाली बटेर को रखा जाता है. प्रजनन के लिए तीन मादा पक्षियों के लिए एक नर रखा जाना चाहिए. आवास के अन्दर ताजी हवा और प्रकाश की उचित व्यवस्था रखनी जरूरी है.

चूजा आवास में खिड़कियां और रोशनदान होना बहुत जरूरी है ताकि एक समान रोशनी और हवा चूजों को मिलती रहे. बटेर के चूजों को पहले दो सप्ताह तक 29 घंटे प्रकाश की जरूरत रहती है, गर्मी पहुंचाने के लिए बिजली की व्यवस्था करनी चाहिए. एक दिन के चूजों के लिए बिजली ब्रूडर का तापमान पहले सप्ताह में 950 फोरेनहाइट से बढ़ाकर 50 फोरेनहाइट प्रति सप्ताह कम करते रहना चाहिए.

बटेर पालन में आहार व्यवस्था (Dietary plan in Quail farming)

एक किलो बटेर का उत्पादन करने के लिए 2-2.5 किलो आहार की जरूरत होती है ताकि अच्छी शारीरिक विकास व स्वास्थ्य से उत्पादन को बढ़ाया जा सके. अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला संतुलित आहार खिलाना बहुत जरूरी है. एक व्यस्क बटेर को प्रतिदिन 20-35 ग्राम आहार की आवश्यकता होती है. एक नवजात शिशु बटेर के राशन में लगभग 27% प्रोटीन तथा व्यस्क के लिए 22-24 % प्रोटीन का होना जरूरी है.

बटेर पक्षियों में लिंग पहचान (Gender identification in Quail birds)

बटेरों के लिए लिंग की पहचान एक दिन की आयु के आधार पर की जाती है. मगर तीन सप्ताह की आयु पर पंखों के रंग के आधार पर भी लिंग का पता लगाया जा सकता है. इसके लिए गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल भूरा एवं धूसर होने पर पक्षी के नर होने का तथा गर्दन के नीचे पंखों का रंग हल्का लाल और काले रंग के घब्बे होना, पक्षी के मादा होने का प्रमाण है. मादा बटेर का शरीर भार (Body weight) नर से लगभग 15-20 % अधिक होता है.

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बटेर पक्षियों में प्रजनन (Breeding in Quail birds)

बटेर में प्रजनन विधि आसान एवं सरल है. सामान्य रूप से बटेर 5 से 7 सप्ताह की आयु में प्रजनन के लिए परिपक्व हो जाते हैं. मादा बटेर (लेयर) 6-7 सप्ताह की आयु में ही अंडे देना शुरू कर देती है. 8 सप्ताह की आयु में ही लगभग 50 प्रतिशत तक अंडे उत्पादन की क्षमता ये पक्षी प्राप्त कर लेते हैं. व्यावसायिक बटेर पालन के लिए नर एवं मादा बटेर का अनुपात 1:5 रखना चाहिए यानि पाँच मादाओं में एक नर रखा जाता है. अंडों से चूजे निकलने में लगभग 17 दिन लगते हैं, तथा एक दिन के चूजों का वजन लगभग 8- 10 ग्राम होता है.

बटेर पक्षियों की देखभाल एवं प्रबंधन (Care and management of Quail birds)

दूसरे पक्षियों की तुलना में बटेर रोगों के प्रति बहुत प्रतिरोधी (Resistant) है इसलिए बटेर में टीकाकरण (Vaccination) की आवश्यकता नहीं या कम होती है. बटेर की अधिक उत्पादन एवं रोगों से बचाने के लिए अच्छी देखभाल, अच्छे आवास एवं संतुलित आहार ही काफी है. नियमित आहार में विटामिन एवं खनिज मिश्रण पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए.

बटेर का विपणन (Quail marketing)

बाजार में बटेर के मांस एवं अंडों की मांग बहुत अधिक है. बटेर से प्राप्त उत्पादों को आसानी से नजदीकी स्थानीय बाजार में या नजदीकी शहरों में बेचा जा सकता है. इसलिए देश में व्यावसायिक स्तर पर बटेर पालन आय एवं रोजगार का एक अच्छा विकल्प हो सकता है. इसके पालन में अंडों और मांस को बेचने के लिए नजदीकी बाजार सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि यह कम समय और कम ट्रांसपोर्ट का खर्चा बचाएगा. विभिन्न दुकानों, ढेलों और होटलों पर अंडे और मांस बिक जाते है. ट्रांसपोर्ट के लिए यदि आपको निजी वाहन हो तो सबसे उत्तम है.

बटेर पालन के लिए प्रशिक्षण कहाँ से ले (Where to get Quail farming training)

उत्तर प्रदेश के बरेली (इज्जतनगर) में स्थित केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (Central Avian Research Institute) जाकर या इन नंबरों पर बात कर ट्रेनिग और संबन्धित जानकारी ली जा सकती है= 0581-2300204, 0581-2301220, 18001805141

 

कैसे करें रखरखाव

बटेर को रखने के लिए अलग घर की जरुरत नही।

इसे घर की छत, आंगन या घर के पिछे के हिस्से में पाल सकते हैं।

मूर्गीयों के पालने की जगह में भी बटेर पाले जा सकते हैं। मूर्गीयों के लिए बनाएं गएं जालीदारपिंजड़े में या फिर मूर्गी फार्म में भी इसे रख सकते हैं।

बटेर पालने के लिए सबसे पहले जमीन के उपर लकडे का बुरादा या धान की भूसी को बिछा दें

उस बिछावन के उपर बटेर को रखें ताकि बटेर को बिमारी से बचाया जा सके

चारा के लिए बाजार में मिलनेवालें मूर्गी के दाने को ही इस्तमाल कर सकते है

बटेर मांस और अंडे उत्पादन के लिए अच्छा स्त्रोत है

बटेर जल्द अंडे देती है। चूजे 6-7 हफ्ते में ही अंडे देने लगते है

मादा प्रतिशत 250 से 300 अंडे देती है। अंडे 10 से 15 ग्राम के वजन के होते है। अंडे दिखने में चितकबरे रंग के होते है।

इन अंडों की गांव में ही खपत हो सकती है

बटेर के अंडो में मूर्गीयों के अंडे से ज्यादा पोषक तत्व पाये जाते है। बटेर के अंडे में से विटामीन ए और प्रोटिन भरपुर मिलता है। बटेर के अंडो का बाजार मूल्य भी ज्यादा मिलता है। बटेर के अंडे खाने में स्वादिष्ट होते है। घर के लिए भी अंडा इस्तमाल कर कम पैसे में पोषक तत्व पा सकते है

मांस के लिए बटेर का उत्पादन कर सकते है। 45 दिनों में ही बटेर वयस्क हो जाते है। इसका वजन 200 से 250 ग्राम होता है। बाजार मूल्य 60 रुपये

लागत और आमदनी

बटेर का आकार छोटा होता है इसलिए उसे जगह कम चाहिए यानि आपकी जगह का खर्चा कम

जहां आप 1000 मूर्गे पालते है वहां 6000 बटेर पाल सकते है

बटेर का चूजा कम दामों में मिलता है

अगर आपकों बटेर के लिए चूजा नही मिल रहा तो पटना वेटरनरी कॉलेज से संपर्क कर सकते है

दवा पर खर्च नही

इसे घर में पाला जाता है तो घर के शिक्षित बेरोजगार युवा और महिलाएं भी पाल सकती है

यानि कुल मिलाकर बटेर कम लागत में ज्यादा आमदनी करा सकता है।

विशेष ध्यान – बटेर के चूजे बहुत छोटे और नाजूक होते है। पहले हफ्ते में उनका विशेष ध्यान रखना पडता है। कड़ी ठंड या बहुत ज्यादा गर्मी में चूजे मर जाते है। पहले हफ्ते में मृत्यु दर 2 से 3 प्रतिशत होती है। अगर पहला हफ्ता सही देखभाल से निकल गया तो दूसरे हफ्ते में मृत्यु दर कम हो जाती है।

 

 

माँग और आपूर्ति में अंतर  

बटेर के माँस के बाज़ार में माँग और आपूर्ति में ज़बर्दस्त अंतर है. माँग के मुक़ाबले आपूर्ति काफ़ी कम है. इसलिए बटेर पालकों को बाज़ार में अपना माल बेचने में किसी ख़ास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा है.

बटेर (QUAIL) पालन बन रहा है लोकप्रिय व्यवसाय

विदेशों में बटेर (QUAIL) पालन एक विकसित और लोकप्रिय व्यवसाय है. अब भारत में भी यह एक लाभकारी व्यवसाय साबित हो रहा है.

बटेर (QUAIL) पालन किन लोगों के लिए आय कमाने का बेहतर ज़रिया है:

  • बेरोज़गारों  के लिए बटेर पालन रोज़गार का अच्छा विकल्प हो सकता है.
  • नौकरी या व्यवसाय कर रहे लोग भी लघु स्तर पर बटेर पालन कर के अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं.
  • मुर्ग़ी पालन का व्यवसाय कर रहे लोग बटेर पालन कर के अपने व्यापार को बढ़ा सकते हैं.
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बटेर पालन का व्यवसाय कम लागत में शुरू किया जा सकता है. बहुत अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती है

बटेर पालन का बिज़नेस मुर्ग़ी पालन जैसा ही है. मुर्ग़ी पालन के मुक़ाबले बटेर पालन में कम पूँजी की ज़रुरत होती है. मगर मुनाफ़ा ज़्यादा होता है.

कम जगह में हो सकता है यह व्यवसाय

  • बटेर छोटे आकार का पक्षी होता है. एक मुर्ग़ी रखने की जगह में 8 से 10 बटेर के बच्चे रखे जा सकते हैं. इसे घर के आंगन, छत या पिछवाड़े में पाला जा सकता है.
  • बटेर का चूज़ा मुर्ग़ी के चूज़े से सस्ता होता है.
  • चारे की भी लागत कम होती है.
  • एक व्यस्क बटेर प्रतिदिन 25 से 28 ग्राम दाना खाता है.
  • बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता मुर्ग़ी के मुकाबले अधिक होती है जिसके कारण बटेर की मृत्यु दर कम होती है.
  • बटेर को किसी भी प्रकार का रोग निरोधक टीका लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है.
  • बहुत अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती है. इसीलिए इसे कम ज़ोखिम वाला व्यवसाय माना जाता है

कम समय में लाभ प्राप्त होने लगता है 

  • बटेर बहुत तेज़ी से बढ़ने वाला पक्षी है.
  • 45 से 50 दिनों में ही बाज़ार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है.
  • बटेर अंडे भी जल्द देती है. चूज़े 45 दिनों में अंडे देने लगते हैं.
  • एक मादा प्रतिवर्ष 280 से 300 अंडे देती है.
  • एक साल में मांस के लिए बटेर का 8 से 10 उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.

 

बटेर पक्षी का मांस और अंडे बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं। बटेर पालन एक तरफ अंडे और मांस की मांग को पूरा कर रहा है साथ ही किसानों को अधिक मुनाफा भी दे रहा है। , इस वजह से अधिक से अधिक लोग बटेर पालन की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

 

सात महीने में आमदनी आना शुरू :

बटेर पक्षी का जीवन काल 3 से 4 साल का होता है। एक वयस्क बटेर का वजन लगभग 150 से 200 ग्राम तक होता है। एक मादा बटेर पक्षी आमतौर पर अपने 6 वें से 7 वें सप्ताह तक अंडे देना शुरू कर देती है। उनके अंडे 7 से 15 ग्राम वजन  के बीच बहुत सुंदर होते हैं। एक स्वस्थ बटेर हर साल 300 अंडे दे सकता है।

एक अंडे से नवजात चूजे को पैदा होने में 16-17 दिन लगते हैं जो लगभग 7-8 ग्राम तक वज़न का होता है। सफल प्रजनन के लिए 1 नर को 5 मादा बटेर के साथ रखना जरूरी है। । कठोर, चिकने और 9-11 ग्राम के अंडे बहुत अच्छे माने जाते है।

 

अंडा उत्पादन पर एक नज़र

 

अगर हम अंडे के उत्पादन के बारे में बात करें तो प्रकाश यानि रोशनी बटेर पक्षी पालन में प्रजनन के लिए एक आवश्यक तत्व है। एक अध्ययन के अनुसार प्रकाश की उपस्थिति में बटेर अधिक अंडे देते हैं। यदि उचित धूप उपलब्ध नहीं है तो कृत्रिम प्रकाश और गर्मी का उपयोग विभिन्न बिजली के बल्ब (40 से 100 वाट) और हीटरों के साथ किया जा सकता है। मौसम के अनुसार प्रकाश और गर्मी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि 5 मादा बटेरों के साथ 1 नर बटेर रखने से सफल प्रजनन किया जा सकता है। हमेशा अत्यधिक उत्पादक नस्ल को पालें और जगह को साफ एवं सूखा रखें।

अंडे के उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारको मे – तापमान, प्रकाश, भोजन, पान के अलावा उनकी देखभाल, और अच्छा प्रबंधन करना भी हैं।

 

बटेर चूजों की परवरिश

 

आप मुर्गियों के माध्यम से या कृत्रिम रूप से अंडों से बटेर चूजों को निकाल सकते हैं क्योंकि बटेर कभी भी अपने अंडे सेते नहीं हैं। उनके अंडों की ऊष्मायन अवधि लगभग 16 से 18 दिन है। नए-नवेले चूजों को हमेशा हमेशा ब्रूडर हाउस में रखें क्योकि इनको वयस्कों की तुलना में कुछ अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। कृत्रिम गर्मी प्रणाली और तापमान प्रबंधन प्रणाली उनके जन्म से पहले 14 से 21 दिनों में बहुत आवश्यक है क्योंकि वे बहुत संवेदनशील हैं। चूजों की उचित देखभाल के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना जरूरी है ।

  1. a) पर्याप्त तापमान
  2. b) पर्याप्त प्रकाश
  3. c) उचित हवा की आवा-जाही
  4. d) चूजों का घनत्व
  5. e) भोजन और पानी की आपूर्ति
  6. f) साफ सुधरा सूखा परिवेश।

 

बटेर पालन शुरू करने पर होने वाले कुछ लाभ: –

 

1) चूंकि बटेर बहुत छोटे पक्षी हैं, इसलिए उन्हें रहने के लिए बहुत अधिक जगह की आवश्यकता नहीं होती है।

2) अन्य पोल्ट्री पक्षियों की तुलना में बटेरों की फीडिंग (भोजन) लागत बहुत कम है।

3) बटेर पक्षियों में पाए जाने वाले रोग बहुत कम हैं, क्योंकि वे बहुत मजबूत पक्षी हैं।

4) वे किसी भी अन्य पोल्ट्री पक्षी की तुलना में तेजी से बढ़ते हैं।

5) उनके अंडों को फोड़ने में केवल 16 से 18 दिन लगते हैं।

6) जब वे 6 से 7 वें सप्ताह के होते हैं, तो अंडे देना शुरू कर देते हैं।

7) बटेर पक्षी का मांस और अंडा बहुत स्वादिष्ट और पोषण से भरा होता है।

8) इसके लिए छोटी पूंजी और कम श्रम लागत की आवश्यकता होती है।

9) बटेर पक्षी के मांस और अंडे की मांग निरंतर बड़ती जा रही है।

 

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