खरगोश पालन एक लाभकारी व्यवसाय

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खरगोश-पालन
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खरगोश पालन एक लाभकारी व्यवसाय

खरगोश पालन एक लाभकारी बिज़नेस है | इसका पालन मीट उत्पादन और घरेलु जानवर हेतु किया जाता है | खरगोश मुख्यत: मांस, चमड़ा, ऊन तथा प्रयोगशाला में शोध एवं मनोरजंन हेतु पाला जाता है। खरगोशों का पालन  भारत में लम्बे अरसे से होता आ रहा है | इसलिए फार्मिंग बिज़नेस के लिए खरगोश पालन को चयनित करना एक लाभकारी कदम है | भारतवर्ष की जलवायु और मौसम खरगोश पालन के लिए उपयुक्त मानी जाती है |

खरगोश एक शाकाहारी एवं सुन्दर प्राणी होता है, जिसे अधिकतर लोग घर में पालना पसंद करते है | यह एक पालतू जानवर होता है, जिसे लोग बाजार से खरीदकर घर में पालते है | बहुत से लोग खरगोश पालने का व्यवसाय करते है, और अच्छा लाभ भी प्राप्त करते है | आज के समय में खरगोश पालन एक लाभकारी व्यवसाय बन गया है, जिस वजह से किसानो की रुचि भी खरगोश पालन की और अधिक देखने को मिल रही है | कुछ किसान खरगोश पालन कर प्रति वर्ष 10 से 12 लाख की कमाई भी कर रहे है | इसके भारी मुनाफे को देखते हुए पढ़े-लिखे नौजवान भी इस व्यवसाय में हाथ आजमा रहे है |

खरगोश पालन (Rabbit Farming) एक लाभकारी बिजनेस है, जिससे किसान भाई हर साल 10 से 12 लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं. आज भारत में खरगोश पालन के प्रति किसानों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है. भारी मुनाफे को देखते हुए इस बिजनेस को गांव के पढ़े-लिखें नौजवान भी बेझिझक अपना रहे हैं. पिछले कुछ सालों में खरगोश के मांस की अच्छी खासी डिमांड बढ़ी है जिसके वजह से क्षेत्र में रोजगार की अच्छी संभावनाएं बढ़ गई है. छोटे व मंझोले किसान इस बिजनेस को करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. खरगोश पूरी तरह से शाकाहारी जानवर है, इस वजह से भी लोग इसके मांस को पसंद करने लगे हैं. आज गांवों और शहरों में मांस के प्रमुख स्त्रोत ब्रायलर मुर्गी व देशी मुर्गे, बकरे व मछलियां है. ऐसे में इस बिजनेस में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा भी नहीं है. ऐसे में खरगोश पालन के जरिए लाखों की कमाई का पूरा गणित समझना बेहद आवश्यक है-

पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े पशुओं की तुलना में छोटे पशु अधिक लाभकारी हो सकते हैं। अंगोरा खरगोश पालन इसी तरह का एक अत्यंत लाभकारी व्यवसाय है जिसे अपनाकर पर्वतीय क्षेत्रों के बेरोजगार युवा अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में स्वरोजगार की श्रेणी में भी यह लघु व्यवसाय के रूप में सफल सिद्ध हो सकता है।
पर्वतीय क्षेत्रों के आर्थिक निर्भरता मुख्य रूप से खेती एवं पशुपालन पर आधारित है। मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण खेती से प्राप्त कम उपज तथा पशुओं के लिए चारे दाने की कमी तथा पशुओं की उन्नत नस्लें ना होने के कारण इन से संतोषजनक आय प्राप्त नहीं हो पाती।

अंगोरा खरगोश पालन को पर्वतीय क्षेत्रों में आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए कम स्थान एवं कम चारे दाने की आवश्यकता होने के कारण चारागाह एवं वन संपदा पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। अंगोरा खरगोश बहू प्रजनक होने से इसकी प्रतिवर्ष अनुमानत 10 से 12 गुनी उत्पादन क्षमता हो सकती हैं। उत्तरांचल के मध्य हिमालय क्षेत्रों की जलवायु अंगोरा खरगोश पालन के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाएं इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

यद्यपि अंगोरा खरगोश पालन 10 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान तक आसानी से किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए 15 डिग्री सेल्सियस से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान अधिक उपयुक्त रहता है। अंगोरा खरगोश पालन सामान्यतः उनके लिए किया जाता है। अंगोरा ऊन पश्मीना जैसी ही मुलायम कोमल गर्म तथा अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। उनके रेशे की लंबाई जर्मन नस्ल में 8.25 सेंटीमीटर तथा रेशे की बारीकी 11.50 माइक्रोन तथा गार्ड हेयर का प्रतिशत 1.2 पाया जाता है, जो पश्मीना से मिलता जुलता है। पश्मीना ऊन को मैरिनो ऊन, सिल्क नाइलोन तथा कृत्रिम रेशों के साथ मिलाकर धागे बनाए जा सकते हैं। पश्मीना ऊन सिर्फ देश में अधिक ऊंचाई (10000 फिट से अधिक) वाले क्षेत्रों में ही पैदा की जा सकती हैं। वह भी कम मात्रा में उपलब्ध होती हैं। जब कि अंगोरा ऊन पश्मीना ऊन की तुलना में अधिक मात्रा में तथा 1500 से 2000 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अंगोरा खरगोश पालन कर पैदा की जा सकती हैं।

खरगोश के मांस की काफी मांग

बता दें कि खरगोश के मांस में बेहद कम वसा होता है. प्रोटीन तथा कोलेस्ट्रॉल की भी अच्छी मात्रा होती है. इसके अलावा, इसका मांस बेहद स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है,  जिसे लोग चाव से खाना पसंद करते हैं. माना जाता है कि इसका मांस हार्ट पेशेंट के लिए बेहद उपयोगी होता है. इस वजह से इस बिजनेस में घाटे की कोई संभावना नहीं है. खरगोश का पालन मांस के अलावा चमड़ा उत्पादन के लिए भी किया जाता है. दरअसल, इसकी मुलायम खाल से निर्मित डिजाइनर टोपियों, दस्ताने, पर्स व जैकेट की बाजार में हमेशा मांग  रहती है.

खरगोश पालन के लाभ

  • खरगोश में बच्चे देने की अधिक क्षमता अधिक होती है। एक मादा खरगोश एक बार में 5-8 बच्चों को जन्म देती है।
  • खरगोश के शावक 3-4 महीने की उम्र में प्रजनन के लिए तैयार हो जाती हैं। एक वर्ष में 3-4 बार बच्चे दे सकती हैं।
  • खरगोश को रसोई के चारे, गाजर, मूली, हरी घास और अन्य दाने खिलाकर आसानी से पाला जा सकता है।
  • इसे शुरू करने के लिए किसी विशेष योग्यता की कोई जरूरत नहीं होती है। इसे कम-पढ़े लिखे लोग भी आसानी से कर सकते हैं।
  • खरगोश पालन के लिए बहुत अधिक स्थान और पूंजी की जरूरत नहीं होती है।
  • यह आय का एक बड़ा स्रोत है। मांस और ऊन के अलावा, आप किट, मांस और उनकी खाद बेचकर भी बड़ी आय प्राप्त कर सकते हैं।

 मुझे रैबिट फार्म क्यों शुरू करना चाहिए?

कम जगह और कम लागत वाला व्यवसाय: रसोई के कचरे को चारे के रूप में उपयोग करके पिछवाड़े के बगीचे में पार्ट-टाइम के रूप में छोटे पैमाने पर इस व्यवसाय को भी शुरू किया जा सकता है।

  • योग्यता की कोई आवश्यकता नहीं: कोई भी इस व्यवसाय को शुरू कर सकता है जैसे कि एक किसान, एक गृहिणी, एक मजदूर, आदि और साथ ही, खरगोश फार्म शुरू करने के लिए बहुत अधिक जगह और पूंजी की आवश्यकता नहीं होती है।
  • तत्काल आय: खरगोश पालने से, आप फार्म स्थापित करने के लगभग 6 महीने में अच्छा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
  • सफेद मांस: खरगोश के मांस की बाजार में बहुत मांग है क्योंकि इसे सफेद मांस के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि यह पॉली-अनसैचुरेटेड फैटी एसिड से भरा होता है।
  • बड़े ऊन उत्पादक: शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम ऊन के उत्पादन के आधार पर भी खरगोश सबसे अच्छे ऊन उत्पादक हैं क्योंकि भेड़ की तुलना में खरगोश को ऊन के उत्पादन के लिए लगभग 30% कम पचने योग्य ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • ग्रेट मार्केट स्कोप्स: तत्काल रिटर्न के कारण, कम समय अवधि के भीतर, आप सभी प्रारंभिक लागतों का पुनर्भुगतान कर सकते हैं।
  • कमाई का बड़ा जरिया : मीट और ऊन के अलावा आप किट, पेल्ट, मीट और उनकी खाद बेचकर भी मोटी कमाई कर सकते हैं.
  • अच्छी खाद: आमतौर पर खरगोश की खाद के साथ मिश्रित खरगोश का अवशिष्ट चारा कृषि के लिए उत्कृष्ट खाद पैदा करने के लिए कृमि खाद के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
  • उच्च गुणवत्ता वाला ऊन: भेड़ की ऊन की तुलना में खरगोश से प्राप्त ऊन लगभग आठ गुना गर्म होती है। इसके अलावा, उच्च गुणवत्ता वाले हथकरघा प्राप्त करने के लिए इसे भेड़ की ऊन, रेशम, रेयॉन, पॉलिएस्टर, नायलॉन और अन्य फाइबर के साथ अच्छी तरह मिलाया जा सकता है।
  • भोजन की कोई लागत नहीं: आप अपने खरगोशों को सभी उपलब्ध साग के साथ-साथ सब्जियों, चारे आदि के कचरे को भी खिला सकते हैं। इसलिए, उनके लिए चारे की कोई कीमत नहीं है।
  • कुछ समय लें और सोचें, किसी अन्य व्यवसाय के लिए जाने के बजाय नई पशुपालन शुरू करना सबसे अच्छा है।
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 खरगोश पालन के लिए आवश्यक जलवायु

खरगोश बहुत ही नरम जानवर है। इसको पालने के लिए सामान्य जलवायु की जरूरत होती है। इसके लिए अधिक गर्म जलवायु हानि पहुंचा सकती है। इसे आप ठंडी जलवायु में ही पालें तो अधिक लाभ मिल सकता है।

आवास प्रबंधन

खरगोश को आप तीन तरह से पाल सकते हैं।

  1. खुली या बाड़े विधि
  2. डीप लिटर विधि
  3. पिंजरा विधि

खुली विधि (Open Method)

यदि आप शौक या घरेलु उपयोग के लिए खरगोश पालन करना चाहते हैं, तो खुली विधि आपके लिए बहुत ही उपयुक्त है। इस विधि में आंगन, छत या खेत में खरगोश के लिए आवास प्रबधंन कर सकते हैं।

डीप लिटर विधि (Deep Litter Method)

यदि आप कम मात्रा में खरगोश पालन (rabbit farming) करना चाहते है, तो यह विधि अपना सकते हैं।  इस विधि में ठोस कंक्रीट से घरनुमा आवास बनाई जाती है। इस विधि में आप अधिकतम 30 खरगोश रखे सकते हैं। इस विधि में बीमारी लगने की ज्‍यादा सम्‍भावना होती हैं। अतः किसान भाइयों को मेरी सलाह है कि आप खुले या पिंजरे विधि में खरगोश पालन करें।

पिंजरा विधि (Cage Method)

पिंजरा विधि में खरगोश पालन (rabbit farming) व्‍यवसायिक दृष्टि से सबसे उपयुक्‍त है। इस विधि में खरगोश एक पिंजरे में रखे जाते हैं, जो तार या लोहे की प्लेट से बने होते हैं। पिंजरा विधि खरगोश की अधिकतम संख्या बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी है। प्रत्येक पिंजरे के अंदर पर्याप्त जगह और आवश्यक सभी सुविधाएं होती है।

इस विधि में आप नर, मादा और बच्चे को अपने सुविधा और प्रजनन के हिसाब से रख सकते हैं।

खरगोश के लिए भोजन प्रबंधन

खरगोश पालन में शावकों के लिए भोजन में विशेष ध्यान रखनी चाहिए, जिससे शावकों का अच्छा विकास हो। खरगोश हरी चीजों को बड़ी चाव से खाते हैं।

खरगोश के खाने में पोषक तत्‍व जरूर होने चाहिए। खरगोश को विटामिन, खनिज-लवण युक्त भोजन जरूर दें। इन्हें हमेशा ताजा पानी ही दें।

खरगोश की प्रमुख नस्लें

  • सफेद खरगोश (white giant)
  • वियना ब्लू
  • भूरा खरगोश (Grey giant)
  • न्यूजीलैंड सफेद
  • न्यूजीलैंड लाल
  • कैलिफोर्नियन खरगोश
  • अंगोरा
  • सजावटी और बौने खरगोश

खरगोश पालन में ध्यान देने योग्य बातें

  • 10 मादा खरगोशों के लिए एक नर खरगोश रखें।
  • गर्भवती और शावकों पर विशेष ध्यान दें।
  • खरगोश के आवास में हवा और रोशनी की समुचित व्यवस्था रखें।
  • पिंजरों को हमेशा साफ-सुथरा रखें।
  • शेड के आसपास पेड़-पौधे जरूर होने चाहिए।
  • शेड की चूने से पुताई कम से कम साल में दो बार करें।
  • गर्मियों में खरगोशों पर पानी छिड़काव और शेड को ठंडा रखें।
  • खरगोश के बीमार पड़ने पर पशु विशेषज्ञ या चिकित्सक से संपर्क करें।

खरगोश पालन में लागत और कमाई

खरगोश पालन (rabbit farming) की शुरूआत आप 10 मादा और 1 नर खरगोश से कर सकते हैं। इसके लिए आपको सर्वप्रथम 50-60 हजार रुपए खर्च करने होंगे। बाद में लाभ मिलने इस व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं।

यदि आप खरगोश पालन (rabbit farming) को उन्नत विधि से करें तो बिजनेस से आप बहुत अधिक लाभ कमा सकते हैं। अगर आप 10 शावक से इस बिजनेस की शुरूआत करते हैं। सालभर में आप 100-120 खरगोश प्राप्त कर सकते हैं। जन्म के बाद एक खरगोश केवल 4 महीने में ही बड़ा हो जाता है। इस व्यवसाय में लागत निकालकर 10 शावक से 50 हजार सालाना कमा सकते हैं।

उपयुक्त नस्ल:-

ऊन उत्पादन हेतु अनेक नस्ले जैसे रशियन अंगोरा, इंग्लिश अंगोरा एवं जर्मन अंगोरा आदि पाली जाती है। उत्पादन एवं ऊन की गुणवत्ता के आधार पर उपरोक्त नस्लों में सर्वाधिक उपयुक्त है जर्मन में अंगोरा नस्ल से औसत उत्पादन 1000 से 1200 ग्राम ऊन प्रतिवर्ष मिल जाता है। अतः उक्त नस्ल ऊन की मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर व्यवसायिक अंगोरा पालन के लिए सर्वथा उपयुक्त है।

आवास प्रबंधन:-

प्रबंधन संबंधित समस्याओं में खरगोश की आवास व्यवस्था का सबसे अधिक महत्व है। सुनियोजित एवं पर्याप्त आवास व्यवस्था के बिना खरगोश का कुशल प्रबंधन अधूरा ही रह जाता है। एक कुशल प्रबंधन को यह चाहिए कि कम से कम जगह में अधिक से अधिक खरगोश रखे जा सके। सामान्यतः खरगोशों को पिंजरों में पाला जाता है। पिंजरों का आकार खरगोश की उम्र अवस्था एवं आकार पर निर्भर करता है।

सामान्यतः एक व्यस्क खरगोश को 60x45x45 सेंटीमीटर आकार का पिंजरा चाहिए। ब्याने वाली मादाओं के लिए 90x45x45 सेंटीमीटर के पिंजरे रखे जाते है। ताकि उन में नेस्टबॉक्स रखे जा सके। सामान्यतः खरगोश के पिंजरे एक दर्जा, दो दर्जा, तीन दर्जा आदि प्रकार के बनाए जाते हैं। स्वस्थ्य संबंधी बिंदुओं की दृष्टि से आवास एवं सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जीवाणु एवं विषाणु जनित रोगों की रोकथाम हेतु 10 दिन के अंतराल पर पिंजरों की वर्नीस करते रहना चाहिए।

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आहार प्रबंधन:-

खरगोश पालन में आहार प्रबंधन अत्यधिक महत्वपूर्ण पहलू है। अपने खानपान के मामले में खरगोश एक अद्भुत प्राणी है। पाचन तंत्र की विशेष रचना के कारण यह घास तथा अन्य हरे चारों को आसानी से पचा लेता है। यहां तक कि यह अपने मल में त्यागे गए पौष्टिक तत्वों को पुनः उपयोग कर लेता है।

एक वयस्क खरगोश को कम पोषक माने जाने वाले हरे चारे जिनमें मात्र 10% प्रोटीन को खाया जा सकता है। परंतु सफल खरगोश पालन के लिए 18-20% प्रोटीन 22000 किलोग्राम कैलोरी ऊर्जा तथा 15-20% रेशे वाला आहार देना चाहिए। व्यवसायिक स्तर पर गोलियों के रूप में तैयार संतुलित आहार देना चाहिए।

एक वयस्क खरगोश की 100-120 ग्राम प्रतिदिन आहार की आवश्यकता होती है। अगर इसके साथ दिन में कोई एक हरा चारा दे तो आहार की मात्रा 25% तक कम की जा सकती हैं।
चारे दानों में कभी भी अचानक है बदलाव नहीं करना चाहिए साथ ही दाने का भंडार नमी से बचाकर सुखी जगह पर करना चाहिए। जिससे दाने को फफूंदी एवं अफ्लाटॉक्सिन जैसे विषैले पदार्थों के संक्रमण से बचाया जा सके।

 प्रमुख रोग एवं उनकी रोकथाम:-

खरगोश बहुत ही सीधा डरपोक एवं निरीह प्राणी है। वह रोगों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। यदि इसकी प्रबंधन भरण-पोषण पानी आदि पर सावधानी ना बरती जाए तो शीघ्र ही अनेक रोगों का घर कर लेता है। खरगोश में अनेक जीवाणु विषाणु एवं परजीवी जनित रोग होते हैं।

जिनसे पाश्चुरीलोसिस जीवाणु जनित, मिक्सोमेटिक्स एवं आंत्रशोध विषाणु जनित, काक्सीडियोसिस प्रोटोजोमा जनित एवं कुछ अन्य रोग जैसे- कैंकर, सोरहाक थनैला अफरा रोग खरगोश को अधिक प्रभावित करते हैं। इन सभी रोगों की रोकथाम के हेतु आवास, सफाई, पिंजरों की वर्नीस, संतुलित आहार एवं स्वच्छ पानी पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

त्वचा संबंधी रोगों के होने पर एंटीसेप्टिक क्रीम का प्रयोग करें। खाज-खुजली, कैंकर आदि की रोकथाम हेतु बेजोइल बेंजोइट, एस्केवियाल में से कोई भी दवा उपलब्ध्ता अनुसार उपयोग करें। कैंकर के उचित उपचार हेतु आइवरमेक्टिन/हाईटेक इंजेक्शन 0.1-0.2 मिलीलीटर प्रति खरगोश प्रयोग करना चाहिए। सरहक की रोकथाम हेतु पिंजरों की वर्निक्स नियमित अंतराल पर करें।

किसी भी जीवाणु एवं विषाणु जनित रोग पर उचित उपचार पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार करना चाहिए। खरगोशों में कोक्सीडीपोसिस रोग नवजात बच्चों एवं खरगोशों में अधिक हानि पहुंचाता है। इसके उपचार हेतु इम्प्रोलियम, सुपरकॉक्स, कार्डीनल, काक्सीमार आदि दवा में से कोई एक दवा 5-7 दिन पीने वाले पानी में(2.5-3.0 ग्रा.म.) देनी चाहिए।

पाचन संबंधी रोगों की रोकथाम हेतु संतुलित आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए साथ ही समय समय पर पानी में बी कॉन्प्लेक्स एवं अन्य पाचन संबंधी दवाएं देते रहना चाहिए। उपरोक्त सभी रोगों के बचाव हेतु खरगोश पालन आवास की सफाई, संतुलित आहार एवं केजों कि वर्नीस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

खरगोश में होने वाली बीमारियों के लक्षण

स्वस्थ खरगोश कैसा दिखता है?

  • उनके बाल स्वस्थ और चमकदार दिखते हैं।
  • स्वस्थ खरगोश खाना अच्छे से और जल्दी खा लेते है
  • उनकी आँखें चमकदार दिखती हैं।
  • स्वस्थ खरगोश का वजन भी तेजी से बढ़ता है।

बीमार खरगोश के लक्षण / बीमार खरगोश की पहचान

  • बीमार खरगोश कमजोर और उदास दिखाई देते हैं
  • उनका वजन घटने लगता है।
  • बीमार खरगोश के बाल तेजी से झड़ने लगते हैं।
  • खाना खाने में कमी हो जाती है।
  • खरगोश की आँखें, नाक और मुंह से पानी आने लगता है।
  • जब खरगोश को लगातार खांसी और छींक आती है।

रोग नियंत्रण / बीमारियों का नियंत्रण

मास्टाइटिस: यह रोग खरगोश के बच्चे की देखभाल करने वाली माँ को होता है। इस रोग से बचने के लिए एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जा सकता है।

खरगोशों में फंगस द्वारा होने वाली बीमारियों के कारण उनके कान और नाक के पास के बाल झड़ने लगते हैं। खुजली के कारण उस जगह पर घाव होने लगता है। इसके उपचार हेतु घावदार हिस्से पर Grisioflvin या benzyl benzoate cream लगा सकते हैं।

इसके अलावा, खरगोशों को बीमारी से दूर रखने के लिए उनके घर को हवादार बनाना चाहिए। उनके चारों तरफ पेड़-पौधे लगे होने चाहिए और उनके पिंजरे को हमेशा साफ रखना चाहिए।

गर्मी के समय में खरगोशों को समय-समय पर पानी छिड़कते रहना चाहिए और उन्हें ठंडी जगह रखनी चाहिए।

खरगोशों में होने वाली बीमारियाँ एवं उनकी रोकथाम 

बीमारियाँ  लक्षण  उपचार 
कॉक्सीडियोसिस भूख बंद होना, बालों के आवरण का खुरदरा होना,वजन का घटना साफ़ सफाई, पानी में सल्फा औषधि
वेंट डिजिज वेंट में सूजन, जलन, पपड़ीनुमा हो जाना पपड़ी हटाना एवं एंटीबायटिक मलहम
सॉर आइज आँखों के चारों तरफ पानी जैसा एवं दूधनुमा स्व्राव विटामिन ए की मात्रा को बढ़ाना एवं आँखों में ऑफ़थेलेमिक एंटीबोयटिक डालना
सॉर हाक्स हौंक जोड़ में सॉर होना एंटीबोयटिक्स
स्लोबरस अत्यधिक लार गिरना हरी घास की मात्रा कम कर देना

 

मादा खरगोश की पहचान 

सामान्यतया शारीरिक रूप से एक मादा खरगोश अपने बड़े सिर के कारण एक नर खरगोश से आकार में बड़ी होती है. नर खरगोश में लैंगिक अंग गोलाकार आकृति लिए हुए बाहर निकला होता है. जबकि मादा खरगोश में लैंगिक अंग v आकार या स्लीट आकार का होता है. जब नर खरगोश के लिंग व वृषण परिपक्व हो जाते है. तो उसे आसानी से प्रेक्षित किया जा सकता है.

मादा खरगोश के ऋतु लक्षण कैसे जाने 

खरगोशों में कोई विशिष्ट ऋतुचक्र नही होता है. जब कभी मादा खरगोश नर खरगोश को सम्भोग के लिए छूट देती है. तभी मादा खरगोश का ऋतुचक्र होता है. कभी-कभी यदि मादा खरगोश उत्तेजक होती है. तो उसकी योनि संकुचित होती है. जब नर खरगोश उत्तेजना या ऋतुचक्र में मादा खरगोश उदासीनता दिखाती है. और अपने शरीर के पिछले हिस्से को ऊपर नही उठाती है. उसी समय यदि मादा खरगोश उत्तेजक नही होती, तो वह पिंजरे के एक कोने में चली जाती है. और नर खरगोश पर हमला कर देती है. उत्तेजक संकेत देने वाली मादा खरगोश को नर खरगोश के पिंजरे में रखा जाता है.

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खरगोशों में प्रजनन काल 

नर : मादा अनुपात 7:3
पहले सम्भोग के समय आयु 6-8 महीने | नर खरगोश पहले सम्भोग के दौरान अच्छे लेयर आकार के लिए आमतौर पर 1 : 1 वर्ष के होते है.
सम्भोग के समय मादा खरगोश का वजन 2 से 2.5 किलोग्राम
वृध्दि का समय (गर्भकाल) 28 से 31 दिन
दूध छुडाने की उम्र 3-4 सप्ताह
किडलिंग के बाद सम्भोग का समय किडलिंग के 4 सप्ताह बाद या छोटे खरगोशों के दूध छुडाने के बाद
बेचने का समय/आयु 12 सप्ताह
बेचते समय का वजन लगभग 12 किलों या उससे ज्यादा

 

उपरोक्त सभी पहलुओं के अलावा इस व्यवसाय को सफल बनाने एवं व्यवसाय से अच्छी आय अर्जित करने हेतु निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए जैसे:-

  • ऊन वाले खरगोशों को हमेशा 1500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही पालना चाहिए।
  • खरगोशों के चारे दाने में अचानक फेरबदल नहीं करना चाहिए।
  • नर एवं मादा खरगोशों को अलग-अलग पिंजरों में रखना चाहिए।
  • मादा खरगोशों को 4 -5 माह की उम्र पर ही प्रजनन हेतु उपयोग करना चाहिए।
  • मादा खरगोशों के ब्याने के बाद 45 दिन पर बच्चों को माता से अलग (विनिंग) कर देना चाहिए।
  • अन्य पशु फार्म से खरगोश पालन दूर करना चाहिए एवं जहां तक हो सके खरगोशों को संतुलित आहार पर पालना चाहिए।
  • आहार दाने को नमी एवं चूहों से बचा कर रखना चाहिए।
  • रोगी खरगोशों का पता चलते ही उनको अन्य खरगोश से अलग कर तुरंत उपचार करना चाहिए। खरगोश के जनन, प्रजनन एवं उत्पादन सम्बन्धी अभिलेख रखना चाहिए।
  • प्रारंभ में एक छोटी इकाई (2नर एवं 8 मादा) खरगोश पालन शुरू करना चाहिए। 10 शावकों की छोटी इकाई से व्यवसाय प्रारंभ कर ऊन एवं संतति बेचकर खरगोश पालन अनुमानित 3000-4000 प्रतिमाह अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है।
  • खरगोश पालन में सफाई का विशेष महत्व है। अतः खरगोशों के आवास, पिंजरे, दाना पानी के बर्तनों की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

खरगोश पालन के लिए प्रमुख सावधानियां

फर्श- इसके पालन के लिए फर्श पर लकड़ी के बुरादे की 3-4 इंच ऊंची निर्मित की जाती है. इस तह पर खरगोश को मुर्गियों की तरह खुला छोड़ दिया जाता है. जहां वे आसानी घूम फिर सकें. बता दें कि में बिल बनाने की आदत होती है. इसलिए बुरादे का खोदते रहते हैं. इस तरह बेहद कम जगह में ही इन्हीं आसानी से पाला जा सकता है. हालांकि, इनमें एक दूसरे से लड़ने की आदत होती है जिससे ये एक दूसरे को जख्मी कर देते हैं. ऐसे में इनकी परवरिश के लिए पिंजरे का उपयोग किया जाना चाहिए.

पिंजरा-यदि आप खरगोश का व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पालन करना चाहते हैं, तो इसके लिए पिंजरों का प्रयोग करें. पिंजरों में खरगोश का साफ सुथरे तरीके से पालन किया जा सकता है. इसके लिए 14 गेज (जाली) के पिंजरे का निर्माण करवाए जिसका आकार 3X4 मीटर का हो. इस पिंजरे की जाली में खरगोश के पैर फंसने की संभावना नहीं रहती है. इसके अलावा 12 गेज के पिंजरे का भी निर्माण करवाया जा सकता है. जिसका आकार 2X1 मीटर होना चाहिए. वहीं चूजों के लिए अलग आकार के पिंजरे का निर्माण करवाना चाहिए.

खरगोश पालन के लिए प्रजनन

6 महीनों में नर व मादा खरगोश प्रजनन करने के योग्य हो जाते हैं. प्रजनन के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नर खरगोश को ही मादा खरगोश के पिंजरे में ले जाना चाहिए. वहीं साल में चार बार भी इनसे बच्चे लेना चाहिए. यह एक बार में 6 से 8 बच्चे को जन्म दे सकते हैं. वहीं प्रजनन के 30 दिनों बाद ही मादा खरगोश बच्चों को जन्म दे देती है.

खरगोश पालन के लिए प्रमुख नस्लें

खरगोश पालन के लिए प्रमुख उन्नत नस्लें इस प्रकार है- सोवियत चिंचिला, व्हाईट जाईंट, ब्लैक ब्राउन, न्यूजीलैंड व्हाईट, ग्रे जाईंट, अंगोरा, डच आदि.

कौन-सी नस्ल के खरगोश पालें 

आजकल न्यूजीलैंड रेड, न्यूजीलैंड व्हाइट, मिनिरेक्स व डच नस्ल के खरगोश की खूब डिमांड है. इन नस्लों का पालन करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

खरगोश पालन के लिए आहार

खरगोश शुद्ध शाकाहारी जानवर है और यह अपना आहार गोली, दाना या चूरे के रूप में ग्रहण करता है. इसके चूजों को जन्म के 15 दिनों बाद दाने को दरड़कर देना चाहिए. हरे चारे में खरगोशों को जई, बरसीम, राई घास आदि आहार दिए जा सकते हैं. वहीं खरगोशों को दाना देते समय इस बात का ध्यान रखें कि अनाज पर फफूंद न हो. दरअसल, फफूंद वाले अनाज में एफ्लाटॉक्सिन नाम का जहर पाया जाता है. इसके कारण खरगोशों में महामारी फैलने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे आपको आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.

खरगोश पालन से कमाई का गणित 

यदि किसान भाई इस बिजनेस से मोटी कमाई करना चाहते हैं तो बड़े पैमाने पर खरगोश पालन करें. इसके लिए 100 मादा और 20 नर खरगोश से अपना बिजनेस शुरू करें. मादा एक बार में 6 से 8 बच्चों को जन्म दे सकती है. वहीं साल में चार बार बच्चे देने में सक्षम होती है. ऐसे में एक बार में 600 से 700 खरगोश बेच सकते हैं. जिससे एक बार में खर्च काटकर 2 से 2.5 लाख की कमाई हो जाती है. वहीं साल में किसान भाई 8 से 10 लाख रुपए शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं. इसके अलावा, आप खरगोश के जोड़े को बेचकर भी बढ़िया कमाई कर सकते हैं.

डॉ राजेश कुमार सिंह, प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी, बहरागोड़ा, पूर्वी सिंहभूम

डॉ आरती विना एका

कृषि वैज्ञानिक -सह- निदेशक ,कृषि विज्ञान केंद्र, दारिसाई ,पूर्वी सिंहभूम

Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

Image-Courtesy-Google

Reference-On Request.

खरगोश पालन एक लाभकारी व्यवसाय

खरगोश पालन एक लाभकारी व्यवसाय

खरगोश पालन : एक लाभकारी व्यवसाय

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