डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां, मथुरा
उपनाम: हड़किया, पागलपन या हाइड्रोफोबिया
रेबीज ऐसी भयानक बीमारी है जो 100% जानलेवा है। आमतौर पर मानव के शरीर में रेबीज के विषाणु रेबीज से संक्रमित किसी पशु के काटने से पहुंच जाते हैं। एक बार इन विषाणु के मनुष्य या किसी पशु की नसों में घुस जाने के बाद मृत्यु निश्चित है।
लेकिन सामान्य उपायों के द्वारा इस बीमारी को शुरू होने से पहले ही रोक सकते हैं। यह उपाय याद रखे जाने चाहिए और किसी भी पशु द्वारा काटने पर इन कदमों को तुरंत उठाया जाना चाहिए। यही है रेबीज के विरुद्ध हमारी एकमात्र सुरक्षा।
कारण: रेबीज रेबडो वायरस, के कारण होता है।
लक्षण: मानव शरीर में रेबीज किसी पागल पशु के काटने पर उसकी लार के जरिए किसी खुले घाव के स्पर्श में आ जाने से पहुंचता है। पशु को रेबीज होने के विशेष लक्षण उसकी लार बहना, मुंह खुला रखना, पूछ सिमटी होना। उसकी आवाज के स्वर में बदलाव और कानों का सामान्य ढंग से लटक जाना , पशु को अंधेरे कमरे में ले जाकर टॉर्च द्वारा उसकी आंखों पर रोशनी डालने से भी पुतलियों का न सिकुड़ना। कभी-कभी स्वस्थ दिखने वाले पशु भी रेबीज के शिकार हो सकते हैं। गर्म खून वाले सभी पशु कुत्ते बिल्लियां बंदर आज रेबीज फैला सकते हैं इसीलिए इन पशुओं से खासतौर पर आवारा पशुओं से सावधान रहना चाहिए। ऐसे पशुओं द्वारा काटे जाने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
यह रोग मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं ।
प्रथम उग्र अवस्था में पशु भयानक पागल हो जाता है। दूसरा रोगी पशु शांत व गूंगा हो जाता है।
इस रोग के लक्षण तीन भिन्न-भिन्न स्थितियों में प्रकट होते हैं।
प्रथम अवस्था में कुत्ते के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। इसमें शरीर का तापमान बढ़ जाता है। आंखें लाल नजर आती हैं।
दूसरी अवस्था में कुत्ता बेचैन वह गुस्सैल हो जाता है।पागल जैसा दिखने लगता है व काटने को दौड़ता है। लकड़ी, कंकड़ ,पत्थर जो भी सामने आए मुंह में डालने की कोशिश करता है। यह अवस्था 3 से 7 दिन तक रहती है। इसमें कुत्ता पानी नहीं पीता, व लार बहती रहती है।
तीसी और अंतिम अवस्था में शरीर में लकवा पड़ जाता है व रोगी की मृत्यु हो जाती है। लक्षण पूर्ण प्रकट होने के 3 से 10 दिन के अंदर रोगी पशु मर जाता है।
चिकित्सा एवं बचाव: किसी पागल पशु द्वारा काटे जाने पर तुरंत प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए। क्योंकि कुछ रेबीज ग्रस्त पशु 10 दिन से 2 महीने या उससे भी ज्यादा जीवित रह सकते हैं, यह देखने के लिए इंतजार मत कीजिए कि पशु मरता है या नहीं। हो सकता है कि तब तक काटे गए व्यक्ति की जान बचाने के लिए बहुत देर हो चुकी हो, तो याद रखिए तुरंत प्राथमिक उपचार और समय रहते टीकाकरण से रेबीज होने का खतरा लगभग हर बार टाला जा सकता है।
यदि कोई पागल पशु काट ले तो यह आसान से प्राथमिक उपचार करें:
घाव को खूब सारे पानी से धोएं घाव पर कोई एंटीसेप्टिक या अल्कोहल लगाएं घाव को ढके नहीं और नहीं उस पर हल्दी, बाम आदि जैसी कोई चीज लगाएं क्योंकि इससे कोई फायदा नहीं होता है।
पालतू कुत्ते को एंटी रेबीज का टीका लगवाएं।
कुत्ते या रोगी पशु या सियार नेवला आदि के काटने के तुरंत बाद घाव को साबुन से धोएं तथा जीवाणु नाशक औषधियां लगाएं।
यदि रोगी पशु या कुत्ता सियार, बिल्ली, बंदर, नेवला मनुष्य को काट ले तो तुरंत चिकित्सा करवाएं तथा पोस्ट बाइट एंटीरैबीज का टीकाकरण करवाएं।
पालतू पशुओं के साथ बरती जाने वाली सावधानियां:
पालतू पशु आपको प्रेम करते हैं और आपको आनंदित करते हैं। आपको भी उनकी ओर पूरा ध्यान देना चाहिए उन्हें नियमित जांच और रेबीज वैक्सीनेशन के लिए चिकित्सक के पास ले जाएं उन्हें आवारा पशुओं से दूर रखें क्योंकि वे उनसे संक्रमित होकर यह बीमारी आप तक पहुंचा सकते हैं। अपने पालतू पशु को स्वस्थ रखिए रेबीज से बचाव का यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है।
सामाजिक जानकारी और नागरिक की जिम्मेदारी:
रेबीज की रोकथाम की आपकी जिम्मेदारी बनती है यदि आपके पास कोई पालतू पशु ना हो तब भी अनजाने में ही आवारा कुत्तों को कुछ खाने को दे कर या रिहायशी इलाकों में कूड़ा कचरा डालकर आप भी रेबीज के प्रसार में योगदान करते हैं , इसे रोकने के लिए आपको कुछ तो करना होगा । कूड़े कचरे के ढेरों और आवारा कुत्तों से संभावित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की ओर नगर पालिका /नगर निगम अधिकारियों का ध्यान आकर्षित कीजिए।
भारत में लोगों को रेबीज के बारे में पर्याप्त जानकारी ना होना एक गंभीर समस्या है यदि लोगों को इस बारे में अधिक ज्ञान हो तो वह पशु के काटने का बिना घबराए तुरंत उपचार करा ले अपने परिवार और मित्रों को इस बारे में जानकारी दीजिए समाज में इस बारे में जानकारी के साथ हमारे देश से रेबीज की समाप्ति संभव हो सकेगी। इस लक्ष्य की प्राप्ति में आप सब का योगदान महत्वपूर्ण है यह वह योगदान होगा जो अनेकों अमूल्य जीवन बचाने में सहायक होगा।
कृपया इस लेख को अपने मित्रों और संबंधियों से भी साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें। और अधिक जानकारी के लिए अपने निकटतम पशु चिकित्सा अधिकारी से संपर्क करें।