रैबीज (RABIES): कुत्तों का एक प्रमुख रोग
दीपक कुमार1, सविता कुमारी2, संजय कुमार3, रजनी कुमारी4
1सहायक प्राध्यापक, पशुव्याधि विज्ञान विभाग
2सहायक प्राध्यापक, पशु सूक्ष्मजीवविज्ञान विभाग
3सहायक प्राध्यापक, पषु पोषण विभाग
4वैज्ञानिक, आई.सी.ए.आर – आर.सी.ई.आर, पटना
बिहार पषु चिकित्सा महाविद्यालय, बिहार पषु विज्ञान विष्वविद्यालय, पटना
रैबीज एक जानलेवा, वाइरल संक्रामक रोग है जो रोगी कुत्ते द्वारा स्वस्थ कुत्ते या मनुष्य को काटने या चाटने से फैलता है। यह मनुष्य व सभी तरह के पशुओं में पाया जाता है। इसमें रोगी के व्यवहार में बदलाव, अधिक उत्तेजना, पागलपन, पैरालाइसिस व मौत हो जाती है। यह एक जूनोटिक, रोग है जो पशु से मनुष्य व मनुष्य से पशु में फैलता है। कुत्तों में इसे लाइसा अलर्क या हिड़क्या रोग भी कहते हैं। मनुष्य में इसे हाइड्रोफोबिया या जलटांका कहते हैं, क्योंकि रोग में गले की मांसपेशियों में ऐंठन से रोगी पानी नहीं पी पाता है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग पचास हजार लोग रैबीज के कारण बेमौत मारे जाते हैं।
रैबीज प्रमुख रूप से कुत्ते व बिल्ली प्रजाति के पशुओं का रोग है, लेकिन यह मनुष्य व गर्म खून वाले सभी पशुओं में पाया जाता है। ईसा से 500 वर्ष पहले भी कुत्तों में इस रोग का वर्णन मिलता है। पहली सदी में पशुओं व मनुष्य की रेबीज का संबंध मालूम हुआ और कुत्तों के काटने के स्थान पर गर्म लोहे से दागने की सलाह दी। सन् 1880 में लुईस पाश्चर ने इसका विस्तृत अध्ययन कर मनुष्य की जीवनरक्षा हेतु टीके के बारे में बताया। सन् 1903 में वैज्ञानिक निग्री ने दिमाग में रैबीज कोशिकाओं का पता लगाया तथा डायग्नोसिस के मामले में महत्वपूर्ण खोज की। ये कोशिकाएं नेग्री बॉडीज कहलाती हैं, जो केवल रैबीज ग्रस्त पशु व मनुष्य के ब्रेन में मिलती हैं।
रैबीज कुछ देशों को छोड़कर दुनिया के सभी भागों में पाया जाता है। सख्त नियमों तथा रोकथाम के प्रभावशाली उपायों के कारण ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, डेनमार्क, ब्रिटेन जैसे देशों में रैबीज का नामोनिशान नहीं है। इन देशों में बाहर से पशुओं के प्रवेश में कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। भारत में रैबीज एक विकराल रूप में हैं क्योंकि यहां समाज में मनुष्य का कुत्तों के साथ काफी सम्पर्क रहता है। रैबीज रोगी कुत्तों के काटने से प्रतिवर्ष हजारों लोगों की मौत हो जाती है।
रोग का कारण
वाइरस (रैबडोवायरस)- ये वाइरस नर्वस टिश्यू, लार ग्रंथि व लार में पाये जाते हैं। बहुत कम बार ये लिम्फ, दूध व मूत्र में भी पाये जाते हैं। विचित्र बात यह है कि ये वाइरस ब्लड में नहीं पाये जाते हैं। यह एक बड़े आकार का वाइरस है, जो तेज धूप, गर्म पानी, क्लोरोफार्म, फॉर्मेलिन, लाल दवा, एल्कली उत्पाद आदि से नष्ट हो जाते हैं। ग्लिसरीन में इसे काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। हालांकि रैबीज मनुष्य तथा सभी गर्म ब्लड के एनिमल्स में पाया जाता है लेकिन कुत्ते, लोमड़ी, भेड़िया, बिल्ली, चूहे तथा वेम्पायर प्रजाति की चमगादड़ में अधिक पाया जाता है और इन्हीं के जरिए अन्य जीवों में अधिक फैलता है।
रैबीज कैसे फैलता है
हमेशा रैबीजग्रस्त पशु से ही रोग फैलता है, पशुओं में अधिकतर कुत्तों के काटने से रोग फैलता है। पशु की लार त्वचा के घाव, खरोंच आदि पर लगने से इन्फेक्शन शरीर में प्रवेश करता है। ब्राजील, वेनेजुएला, अमेरिका में वेम्पायर चमगादड़ के काटने से भी रोग फैलता है जहाँ प्रतिवर्ष चमगादड़ के काटने पर लाखों गायों को स्लॉटर कर दिया जाता है।
कुत्ता रैबीज का एक प्रमुख कैरियर है। कुत्तों में रोग के लक्षण प्रकट होने से पांच दिन पहले ही लार में वाइरस मौजूद रहते हैं। रैबीज अधिकतर गर्मियों के दिनों में होता है क्योंकि इस दौरान प्रजनन काल होता है तथा आहार, पानी की तलाश में जंगली पशुओं की गतिविधियां काफी बढ़ जाती हैं। ये जानवर डॉग्स के सम्पर्क में अधिक आते हैं। यह आवश्यक नहीं कि रैबीज रोगग्रस्त कुत्तों के काटने से प्रत्येक पशु को रैबीज होती है, क्योंकि कई बार लार स्वस्थ पशु के शरीर पर लगते ही साफ हो जाती है। बहुत कम मामलों में रोगीपशु का बिना गर्म किया दूध, मांस तथा रोगी स्त्री का शिशु द्वारा दूध पीने से रैबीज होता है।
जब रैबीजग्रस्त कुत्ता स्वस्थ कुत्ता को काटता है तो लार के साथ वाइरस घाव की गहराई में पहुँच जाते हैं। यहाँ से नर्व के जरिए सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम तक पहुँचते हैं फिर स्पाइनल कोर्ड तथा ब्रेन में पहुँचते हैं। फिर लार ग्रंथियों तक पहुँचते हैं, इसके साथ ही लिम्फ नोड, टेस्ट बड ओरल व नेजल डिस्चार्ज में भी पहुँच जाते हैं। वाइरस दूध के साथ भी बाहर निकल सकते हैं लेकिन प्रायः दूध के हैं। उपयोग से रैबीज नहीं फैलता है।
वाइरस ब्रेन में पहुँचने के बाद वहां कई भागों को नुकसान पहुँचाते हैं। इससे नर्व कोशिकाएं उत्तेजित होने से पशु उग्र हो जाता है। नर्व कोशिकाओं के गलने से कई मांसपेशियों का पैरालाइसिस हो जाता है। इसी तरह गले की मांसपेशियों के पैरालाइसिस से जबड़ा बंद नहीं हो पाता है और लटकता रहता है। अंत में श्वसनतंत्र के पैरालाइसिस से सांस नहीं ले पाता है और सांस लेने में तकलीफ (asphyxia) से कुत्तों की मौत हो जाती है।
त्वचा के घाव से नर्व कोशिकाओं के जरिए सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम फिर ब्रेन में वाइरस कितने समय में पहुंचेंगे तथा रोग के लक्षण कितने जल्दी प्रकट करेंगे, यह कई बातों पर निर्भर करता है।
पशु की उम्र – अधिक उम्र के अपेक्षा युवा पशुओं में यह जल्दी होता है।
- काटने के स्थान व ब्रेन के बीच की दूरी जितनी कम होगी वाइरस उतना ही जल्दी ब्रेन तक पहुँचेगा। मनुष्य में चेहरे पर काटने पर यहां से ब्रेन तक पहुँचने में लगभग 30 दिन, हाथों से ब्रेन तक पहुँचने में 40 दिन तथा पैरों से ब्रेन तक पहुँचने में लगभग 60 दिन लगते हैं।
- काटने के स्थान पर घाव से शरीर में जितनी अधिक संख्या में व ताकतवर वाइरस प्रवेश करते हैं, लक्षण उतने ही जल्दी प्रकट होंगे।
- शुरुआती शांत अवस्था के बजाय उग्र रैबीज अवस्था में लार में वाइरस की संख्या अधिक होती है, इसलिए इस अवस्था के पशु द्वारा काट जाने पर रोग फैलने तथा लक्षण जल्दी प्रकट होने की संभावना अधिक होती है।
रोग के लक्षण (SYMPTOMS)
इन्क्यूबेशन पीरियड-20-60 दिन (मनुष्य) तथा 15-60 दिन (कुत्ता) में होता है।
हालांकि काटने के बाद लक्षण प्रकट होने में दो सप्ताह से कई महीने लग सकते हैं, लेकिन पशुओं में प्राय: तीन महीने में लक्षण प्रकट हो जाते हैं। मनुष्य में अधिकतर मामलों में 30-60 दिन में लक्षण प्रकट हो जाते हैं। कुछ मामलों 3 महीने में तथा सौ में से औसत एक मामले में एक वर्ष बाद लक्षण प्रकट हो सकते हैं। एक बार एक औरत को कुत्ता काटने के लगभग 20 वर्ष बाद लक्षण प्रकट हुए हैं।
सभी पशु रैबीज के कुछ खास एक जैसे लक्षण प्रकट करते हैं जो 1 से 3 दिन तक रहते हैं। रोगी पशु के व्यवहार में एकाएक बदलाव आ जाता है। शरीर का तापमान बढ़ भी सकता है, और नहीं भी, लार गिरना, खाना व पानी पीना बंद कर देता है। मूत्र-जन्म अंगों में उत्तेजना से बार-बार मूत्र करता है। मादा पशु में सेक्सुअल डिजायर बढ़ जाती है। ग्यापन होने के बावजूद पशु हीट में आ जाता है। नर में लिंग उत्तेजना बढ़ जाती है।
कुत्तों में रोग के लक्षण –
प्राय: कुत्तों में दो तरह की अवस्थाएं मिलती है, शांत व उग्रावस्था
1.शांत अवस्था (DUMB FORM)
निचले जबड़े की मांसपेशियों में पैरालाइसिस से जबड़ा नीचे लटक जाता है, मुंह बंद नहीं कर पाता है। मुंह खुला रखने से ऐसा लगता है मानो मुंह में कोई चीज फंस गई हो।
आंखें लाल हो जाना, आंसू गिरना तथा आंख की गुलाबी थर्ड आइलिड बढ़ जाती है। आंखें लोमडी की तरह चालाक दिखाई देती है। गले की मांसपेशियों में पैरालाइसिस के कारण आवाज बदल जाती है। कम आवाज के बीच भौंकने की तीखी आवाज (voice pitch) आती है। कमजोरी के कारण कुत्ता कभी गिरता है तो कभी खड़ा होता है तथा किसी काल्पनिक चीज को पकड़ने भागता (snapping of objects). है। आखिर में अधिक पैरालासिस के कारण कुत्ता गिर जाता है। गहरी सांस लेता है तथा 1-3 दिन में मौत हो जाती है। कभी-कभी सात दिन में मौत होती है।
- उग्र अवस्था
(MAD DOG SYNDROME OR FURIOUS FORM)
इस अवस्था में कुत्ते के व्यवहार में बदलाव आ जाता है, अपने मालिक को नहीं पहचानता है तथा आज्ञा पालन भी नहीं करता है।
जो कुत्ते बंधे होते हैं, वे घर की व आसपास की चीजों को तथा जो खुले होते हैं, वे अपने रास्ते में आने वाली हर चीज, पशु, मनुष्य को काटने भागते हैं। पशु की मौत तक काटने की यह प्रवृत्ति बनी रहती है।
कुत्ता एक गांव से दूसरे गांव उद्देश्यहीन सीधा चलता रहता है। चेहरे से काफी सचेत लगता है, एक या दोनों आंखों से गीड निकलते हैं। शुरु में लार गिरती भी है, और नहीं भी। भूख भी प्रभावित नहीं होती है। बाद में अखाद्य चीजों, जैसे पत्थर, लकड़ी, कीचड़, घास आदि को चबाता है या काटने भागता है। खाना नहीं निगल पाता है। पशु की उत्तेजना बढ़ती जाती है और न खा पाता है, न पानी पी पाता है। लार गिरते समय नीचे तक लटकी रहती है। भूखा, प्यासा डॉग काफी कमजोर हो जाता है। लेकिन बहुत उग्र रहता है। कुत्ता के मुँह, दांतों, मसूढ़ों व जीभ को काफी चोट पहुँच जाती है। कुत्ता लड़खड़ाने लगता है। मेल डॉग लिंग को चाटता है और बिच हीट के लक्षण प्रकट करती है।
अंत में कुत्ता भौक भी नहीं पाता है, निचला जबड़ा लटक जाता है, जीभ बाहर निकली होती है, चलने में लड़खड़ाता है, फिर जमीन पर गिर जाता है। पैरालाइसिस व सांस में तकलीफ के कारण दस दिन के अंदर ही कुत्ते की मौत हो जाती है।
मनुष्य में रैबीज के लक्षण (SYMPTOMS IN MAN)
कुत्ते के काटने के स्थान पर व्यक्ति को अजीब सी झनझनाहट महसूस होती है। हल्का बुखार, सिरदर्द (headache), उबकाई आना (nausea), अधिक संवेदनशीलता, बैचेनी, मांसपेशियों में अकडन (spasm), आंख के प्युपिल का फैलना, आंखों से आंसू गिरना। मुंह से लार गिरना तथा तेज पसीना आना (perspiration), आखरी अवस्था में सांस की मांसपेशियों में जोरदार ऍठन से खाना, पानी नहीं निगल पाना तथा सांस में भारी तकलीफ होना। विभिन्न अंगों में पेरालाइसिस, कंपकंपाहट, ऐंठन तथा Respiratory Paralysis से व्यक्ति की मौत होती है। प्रायः मनुष्य में रैबीज शांत रूप (dumb form) की ही होती है। कुत्ते की तरह उग्रपन (furious form) नहीं दिखाई देता है।
डायग्नोसिस (DIAGNOSIS) – रैबीज का डायग्नोसिस लक्षणों के आधार पर तथा रोगी कुत्ते के ब्रेन की निग्री बॉडी (Negri Bodies) के लिए जांच द्वारा किया जाता है।
डायग्नोसिस के लिए ब्रेन को प्रयोगशाला में कैसे भेजें?
जिस पशु में रैबीज का शक हो, उसे बांध कर दस दिन तक निगरानी में रखें। रैबीज होने पर रोगी दस दिन के अंदर मर जाता है। यदि बांधकर निगरानी में नहीं रख सकें, तो उसे गोली से मार दें। मृत पशु के ब्रेन को निकाल कर चौंडे मुंह की कांच की बोतल में 50 प्रतिशत ग्लिसरोल सेलाइन या ग्लिसरीन में डुबो कर पैक करें। कहीं से लिकेज नहीं हो इसके लिए बोतल के ढक्कन वाले भाग पर पिघला हुआ पैराफिन लगा लें। इसे National Institute of Communicable Disease Delhi (NICD) या कसौली (उ.प्र.) भेजते हैं, जहां ब्रेन में निग्री बॉडी (negri bodies) की जांच की जाती है।
इलाज (TREATMENT)
रैबीज का कोई इलाज नहीं है। एक बार रोग के लक्षण प्रकट हो जाने पर रोगी पशु या मनुष्य की मौत निश्चित होती है। इसलिए इसकी रोकथाम ही एक मात्र उपाय है। पागल पशु के काटने पर वैक्सीन का पूरा कोर्स लगवाएं।
रोकथाम (CONTROL)
भारतीय समाज में लावारिस कुत्तों की बढ़ती संख्या एक सबसे बड़ी समस्या है। इनकी अंधाधुंध बढ़ती संख्या के रोकथाम के लिए कुत्तों का नसबंदी ऑपरेशन बड़े पैमाने पर चलाया जाना चाहिए या मार देना (kind killing) चाहिए। पालतू कुत्तों का भी हर वर्ष बड़े पैमाने पर टीकाकरण करना चाहिए। देश, प्रदेश या किसी क्षेत्र में बाहर से नये कुत्ते के प्रवेश के समय रैबीज हेतु जांच होनी चाहिए तथा 4-6 महीने तक निगरानी में रखना चाहिए। एक बार किसी रैबीजग्रस्त कुत्ते द्वारा अन्य कुत्ते को काट लेने पर एंटीरैबीज टीकों का पूरा कोर्स लगवाना चाहिए ।
कुत्तों के काटने पर क्या करें ?
शरीर के जिस भाग पर कुत्ते ने काटा है जितना जल्दी हो सकें उस घाव को कपड़े धोने के साबुन और पानी से काफी देर तक धोएं। इससे कुत्ते की लार द्वारा घाव पर छोड़े गए अधिकांश वाइरस मर जाते हैं। पानी और साबुन रैबीज वाइरस के दुश्मन हैं इसलिए जिस साबुन में जितना अधिक कॉस्टिक सोडा होता है वह उतना ही अधिक प्रभावशाली होता है। घाव को लगभग दस बार धोने के बाद स्प्रिंट टिंक्चर या अन्य एंटीसेप्टिक घोल लगा सकते हैं। घाव पर चूना या मिर्च कतई नहीं लगाएं इससे लाभ की बजाय नुकसान ही होता है। यदि पास में साबुन नहीं हो तो सिर्फ पानी से ही घाव को बार-बार धोने से काफी वाइरस मर जाते हैं।
प्राय: काटी हुई जगह के घाव पर टांके नहीं लगाए जाते हैं। यदि घाव बड़ा हो और टांके लगाना जरुरी है तो उसमें एंटीरेबीज सिरप भरकर टांके लगाए जाते हैं। घाव को प्लपस्टर या पट्टी से बांधकर भी ढंकना नहीं चाहिए। छोटे घाव को ढंक देने या टांकों से बंद करने से रैबीज वाइरस के जिंदा रहने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा एंटीटेटेनस टीका भी जरुर लगवाएं तथा डॉक्टर की सलाह पर रैबीज के वैक्सीन का पूरा कॉर्स लगवाएं। एक रैबीज रोगग्रस्त कुत्ता दस दिन में अवश्य मर जाता है। इसलिए उस पर निगरानी रखें। • यदि दस दिन में वह नहीं मरता है तो टीके लगवाने की जरुरत नहीं होती है। जिस पालतू कुत्ता के एंटीरैबीज वैक्सीन लगवाया हुआ होता है उसके काटने पर रैबीज होने की संभावना नहीं रहती है। लेकिन दस हजार में एक मामले में ऐसे कुत्ते से भी रैबीज हो सकती है। कुत्ता के काटने के बाद नौ साल तक रोग के वाइरस अपना असर दिखा सकते हैं और कुछ मामलों में काटने के पच्चीस साल बाद भी ऐसा हो सकता है लेकिन ऐसा हजारों में एक बार होता है।
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