मुर्गिओं मे रानीखेत रोग: पोल्ट्री उद्योग के लिए एक प्रतिद्वंद्वी
मृदुल सोनी, राकेश कुमार*, राहुल सिंह, साहिल चौधरी, आर के असरानी
पशु विकृति विज्ञान विभाग,
हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर, 176062
मुर्गी में रानीखेत रोग एक अत्यधिक घातक और एक संक्रामक रोग है, यह रोग मुर्गी-पालन की सबसे गंभीर विषाणु बीमारियों में से एक है ।सर्वप्रथम डोयल ने 1926 में इस रोग का पता न्यूकैसल प्रदेश (आस्ट्रेलिया) में लगाया था,इसलिए इसे न्यूकैसल डिजीज भी कहतें हैं। इस रोग में श्वास नहीं ले पाने के कारण 100 % मुर्गियों की मृत्यु हो जाती है।मुर्गी में रानीखेत विषाणुओं के द्वारा फैलती है । इस रोग के होने पर अंडे देने वाली मुर्गियां लगभग अंडा देना बिलकुल बंद कर देती है ।इस रोग के विषाणु ‘पैरामाइक्सो’ को सबसे पहले वैज्ञानिकों ने वर्ष1639-40 में उत्तराखंड (भारत) के ‘रानीखेत’ शहर में चिन्हित किया था।मुर्गी में रानीखेत रोग बहुत से पक्षियों जैसे मुर्गी, टर्की, बत्तख, कोयल, तीतर, कबूतर, कौवे, गिनी, आदि में देखने को मिलता है, लेकिन यह रोग मुर्गियों को प्रमुख रूप से प्रभावित करता है ।मुर्गी में रानीखेत रोग अक्सर किसी भी उम्र तक हो सकता है, परन्तु इस रोग का प्रकोप प्रथम से तीसरे सप्ताह ज्यादा देखने को मिलता है ।
मुर्गियो में रानीखेत रोग की विस्तृत जानकारी :
मुर्गी में रानीखेत रोग का कारक एक नकारात्मक और एकल असहाय आर.एन.ए. विषाणु (RNA Virus) है और इस रोग का मुख्य कारण Avian paramyxovirus type-1(APMV-l) विषाणु है।रानीखेत रोग का संचारण पक्षियों में अन्य संक्रमित पक्षियों के मल, दूषित वायु और उनके दूषित पदार्थ (दाना, पानी, उपकरण, दूषित वैक्सीन, कपडे आदि) के स्पर्श से फैलता है।इस रोग के लक्षण दिखाई देने के कुछ दिनों बाद पक्षियों की मौत हो जाती है।अगर यह रोग उच्च स्तर पर आता है, तो 100 प्रतिशत तक मुर्गियों की है।रानीखेत रोग कुक्कुट-पालन को विभिन्न प्रकार से आर्थिक नुकसान पहुँचाता है जैसे मुर्गियों की मृत्यु-दर तेज होती है, शरीर भार में कमी होती है, अंडा उत्पादन में कमी होता है, प्रजनन सम्बधी हानि होती है और उपचार सम्बधित लागत आदि।
मुर्गियो में रानीखेत रोग के लक्षण:
- मुर्गियों का दिमाग (ब्रेन) प्रभावित होते ही शरीर का संतुलन लड़खड़ता है, गर्दन लुढ़कने लगती है।
- साँस के नली के प्रभावित होने से साँस लेने में तकलीफ, मुर्गियाँ मुँह खोलकर साँस लेती है।
- कभी-कभी शरीर के किसी हिस्से को लकवा मार जाता है।
- प्रभावित मुर्गियों का आकाश की ओर देखना।
- पाचन तंत्र प्रभावित होने पर डायरिया की स्थिति बनती है और मुर्गियाँ पतला और हरे रंग का मल करने लगती है।
- डायरिया के चलते लीवर भी ख़राब हो जाता है।
- इस रोग में गैस्पिंग खांसी, गले की खराश , रैटलिंग की आवाज मुख्य रूप से पाये जातें हैं ।
- मुर्गियां दाना खाना कम कर देतीं हैं और मुर्गियों को प्यास काफी अधिक लगती है।
- पंख तथा पैर में लकवा लग जाता है ।
- मुर्गियां विकृत रूप की अंडे देतीं हैं।
मुर्गियो में रानीखेत रोग का उपचार:
निम्नलिखित दवाईयों (वेक्सिन) के उपयोग से मुर्गी में रानीखेत का उपचार और रोकथाम की जा सकती है ।
- मुर्गी मेंरानीखेत रोग से बचाव के लिए मुर्गी पालकों के पास सिर्फ वैक्सीनेशन प्रोग्राम यानी टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है।
- यह टीकाकरण स्वस्थ पक्षियों मे सुबह के समय करना चाहिए और उन्हें रोग से प्रभावित पक्षियों से अलग कर देना चाहिए।
- सबसे पहले हमें ‘फ-वन लाइव’ (F-1 Live) या ‘लासोता लाइव’ (Lasota) स्ट्रेन वैक्सीन की खुराक (Dose) 5 से 7 दिन पर देनी चाहिए, और दूसरी आर-बी स्ट्रेन (RB starin) की बोअस्टर डोस 8 से 9 हफ्ते और 16-20 हफ्ते की आयु पर वैक्सीनेशन करना चाहिए।
- वैक्सीन की खुराक हमें पक्षियों की आँख और नाक से देनी चीहिए, अगर मुर्गी-फार्म बड़े भाग में किया गया है तो वैक्सीन को पानी के साथ मिलाकर भी दे सकते हैI
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मुर्गियो में रानीखेत रोग का रोकथाम और नियंत्रण:
वर्तमान समय मे इस रोग को जड़ से ख़त्म करने वाली कोई भी दवा विकसित नही हो सकी है, परन्तु कुछ दवाईयों (वेक्सिन) के प्रयोग से इस रोग को बड़े क्षेत्र में फैलने से रोका जा सकता है और इस रोग से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता है।
- मुर्गीपालन शुरु करने से पहले क्षेत्र की जलवायु आदि का अध्धयन अच्छी तरह से कर लेना चाहिए और यह भी मालूम कर लेना चाहिए की कभी भूतकाल में यह रोग ज्यादा प्रभावी तो नही रहा है।
- मुर्गी-घर के दरवाजे के सामने पैर धोने (Foot-Bath) के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
- मुर्गी-पालक कुछ सफाई सम्बन्धी कार्य करने से इस रोग को काफी हद तक’ रोक सकते है, जैसे मुर्गी घर की सफाई, इन्क्यूबेटर की सफाई, बर्तेनो की सफाई आदि। फीडर और ड्रिंकर की सफाई।
- रोगित पक्षियों पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और उनका उचित टीकाकरण करना चाहिए।
- रोग से प्रभावित पक्षियों को स्वस्थ पक्षियों अलग कर देना चाहिए।
- बाहरी लोगो (Visitor) का फार्म के अंदर प्रवेश वर्जित होना चाहिए।
- रोग से मरे हुए पक्षियों को गड्ढे में दबा देना या जला देना चाहिए।