नीखेत रोग: लक्षण, उपचार और रोकथाम

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“रानीखेत रोग: लक्षण, उपचार और रोकथाम”

Dr. Vijay1 and Dr. Deepak2

  1. PhD, Department of Veterinary Microbiology, LUVAS, Hisar
  2. MVSC, Department of Animal Genetics and Breeding. LUVAS, Hisar

 

Keywords: Ranikhet disease, New Castle Disease, Poultry Disease, Veterinary Disease

रानीखेत रोग, जिसे पश्चिमी देशों में न्यूकैसल रोग (New Castle Disease; NCD) कहा जाता है, पोल्ट्री उद्योग के लिए एक बहुत ही घातक और संक्रामक बीमारी है। इसका कारण न्यूकैसल रोग वायरस (Newcaste Disease Virus; NDV) है, जिसे एवियन पैरामाइक्सोवायरस (Avian Paramyxovirus) भी कहते हैं। यह वायरस अवुलावायरस जीनस (Avulavirus genus) से संबंधित है। सबसे पहले इस वायरस को उत्तराखंड के रानीखेत शहर से वैज्ञानिकों द्वारा खोजै गया था। यह वायरस बहुत तेजी से फैलता है और अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो यह महामारी का रूप ले सकता है।

यह रोग विश्वव्यापी समस्या है और मुख्यतः श्वसन संबंधी रोग के रूप में प्रकट होता है, हालांकि इसमें अवसाद, तंत्रिका संबंधी लक्षण और दस्त भी शामिल हो सकते हैं। यह रोग मुख्यतः मुर्गियों को प्रभावित करता है और इससे मुर्गियों की मृत्यु दर बहुत अधिक होती है। रानीखेत रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है और पोल्ट्री फार्मिंग को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, जिससे आर्थिक नुकसान भी होता है। इस लेख में हम रानीखेत रोग के लक्षण, उपचार और रोकथाम के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

रानीखेत रोग के लक्षण: रानीखेत रोग के लक्षण बहुत ही स्पष्ट और गंभीर होते हैं। रानीखेत रोग के लक्षण बहुत ही स्पष्ट और गंभीर होते हैं। रोग से प्रभावित होने पर विभिन्न मुर्गियों में लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। ज्यादातर मुर्गियों में यह वायरस तंत्रिका, श्वसन या पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। मुर्गियों में जो लक्षण दिखाई देते हैं वो इस प्रकार हैं:

  • इसरोग के कारण मुर्गियों का दिमाग प्रभावित होता है, जिससे उनके शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है और चलने में असंगति और असंतुलन दिखाई देता है । प्रभावित मुर्गी की गर्दन भी लुढ़कने लगती है जिसकी वजह से सिर और गर्दन  असामान्य स्थिति में दिखाई देते हैं।
  • कईमुर्गियों में तंत्रिका तंत्र के प्रभावित होने की वजह से पैर और पंख में लकवा भी हो सकता है ।
  • इसकेअलावा, मुर्गियों को छींक और खांसी आने लगती है। रोग के उभरने पर मुर्गियां सांस नहीं ले पाती हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। अन्य लक्षणों में हरे रंग का दस्त, खाना-पीना छोड़ देना, और वजन कम होना शामिल है।।
  • कुछमुर्गियों में कोई भी लक्षण नहीं दिखाई देता बस केवल कमजोरी दिखती है ।

रोग की गंभीरता निम्न चीजों पर निर्भर करती है:

  • वायरस कीशक्ति ।
  • वायरसकिस क्षेत्र या अंग को प्रभवित कर रहा है ।
  • मुर्गीकी आयु, प्रतिरक्षा स्तर, और संक्रमण की संवेदनशीलता।
  • तनाव, पर्यावरणीयतापमान, और मौसम रोग के प्रवाह पर कम प्रभाव डालते हैं।

 रोग का प्रकोप और मृत्यु दर: रानीखेत वायरस संक्रमित पक्षियों व उनके अंडों  से फ़ैल सकता है क्योंकि यह वायरस संक्रमित पक्षी के मल, शरीर के तरल पदार्थों (जैसे कि नाक, मुंह और आंखों से निकलने वाले श्वसन स्राव), और अंडों से बाहर आता है जिससे दूसरे पक्षी भी संक्रमित हो सकते हैं । आमतौर पर  झुंड के सभी सदस्य 2 से 6 दिनों के भीतर ही संक्रमित हो जाते हैं। रानीखेत रोग का प्रकोप मुख्यतः प्रथम से तीसरे सप्ताह में ज्यादा देखने को मिलता है और इस दौरान मृत्यु दर 50 से 100 प्रतिशत तक हो सकती है। यह रोग किसी भी उम्र के मुर्गियों को प्रभावित कर सकता है । भारत में यह रोग विभिन्न राज्यों में देखने को मिलता है विशेषकर: आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक में।

उपचार और नियंत्रण: रानीखेत रोग का कोई निश्चित उपचार नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और रोग को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। रोग से प्रभावित पक्षियों को स्वस्थ पक्षियों से अलग कर देना चाहिए और मरे हुए पक्षियों को गड्ढे में दबा देना या जला देना चाहिए।

रोग के उभरने के बाद यदि तुरंत ‘रानीखेत एफ-वन नामक वैक्सीन दी जाए तो 24 से 48 घंटे में पक्षी की हालत सुधरने लगती है। इसके अलावा, नियमित टीकाकरण प्रोग्राम यानी वैक्सीनेशन ही इस रोग से बचाव का एकमात्र प्रभावी उपाय है।

रोकथाम के उपाय: रानीखेत रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  1. टीकाकरण: नियमितवैक्सीनेशन प्रोग्राम अपनाना चाहिए ताकि मुर्गियों को इस घातक रोग से बचाया जा सके।
  2. स्वच्छता: पोल्ट्रीफार्म में स्वच्छता बनाए रखना और संक्रमित पक्षियों को अलग करना आवश्यक है।
  3. निगरानी: मुर्गियोंकी नियमित निगरानी करना और किसी भी असामान्य लक्षण को तुरंत पहचानना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष: रानीखेत रोग पोल्ट्री उद्योग के लिए एक गंभीर चुनौती है, लेकिन उचित रोकथाम और नियंत्रण उपायों के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। टीकाकरण, स्वच्छता, और नियमित निगरानी इस रोग से बचाव के प्रमुख उपाय हैं। मुर्गी पालकों को इस रोग के प्रति जागरूक रहना चाहिए और समय पर उचित कदम उठाने चाहिए ताकि मुर्गियों की जान बचाई जा सके और आर्थिक हानि से बचा जा सके।

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