मादा पशुओं मे फिरावट की समस्या के कारण एवं उनका निराकरण
1.डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमूहां मथुरा
2. डॉ राजेश कुमार सिंह
पशु चिकित्सा पदाधिकारी जमशेदपुर
ऐसी गाय एवं भैंस जिसका मदकाल चक्र निश्चित अवधि का होता है अर्थात दो गर्मियों के बीच का अंतराल समान होता है और जिनके जननांग सामान्य लगते हैं एवं उनमें किसी प्रकार का संक्रमण नहीं होता है और वह कम से कम एक बार बच्चा दे चुकी होती है और उसकी उम्र 10 वर्ष से ऊपर नहीं होती है को उच्च प्रजनन क्षमता वाले सांड से प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान 3 बार कराने पर भी गर्भधारण नहीं करती है, फिरावट की श्रेणी में आती है।
फिरावट के मुख्य कारण:
१. निषेचन का नहीं होना।
२. भ्रूण की जल्दी मृत्यु हो जाना।
१. निषेचन का नहीं होना:
1.यदि अंडवाहिनी में कोई रुकावट है तो अंड व शुक्राणु का मिलन नहीं हो, पाएगा और निषेचन की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाएगी।
2.अंडछरण का ना होना।
3.अंडछरण का देरी से होना।
4.पशुओं में फास्फोरस की कमी से अंडाणु की परिपक्वता में कमी हो जाती है एवं अंडोत्सर्ग में भी कमी हो जाती है जोकि आगे चलकर पशुओं में फिरावट का कारण बन सकती है। पशुओं के व्यवहार का अगर हम बारीकी से निरीक्षण करें तो उनकी बहुत सी बीमारियों का पता हम बिना किसी डॉक्टरी जांच के कर सकते हैं। कुछ पशु मिट्टी और दीवाल चाटते हैं एवं दूसरे पशु का मूत्र पीने का प्रयास करते हैं और अखाद्य पदार्थ खाने की कोशिश करते हैं, ऐसा तब होता है जब पशुओं में फॉस्फोरस की कमी हो जाती है तो ये सब लक्षण दिखाई देने लगते हैं। पशु चारा उगाने की जमीन में अगर फॉस्फोरस की कमी हो जाएगी तो उस भूमि में उगी चारा फसलों में भी फॉस्फोरस की कमी हो जाएगी और उन चारा फसलों को खाने वाले पशुओं में भी फॉस्फोरस की कमी हो जाएगी और उपरोक्त सभी लक्षण दिखाई देने लगेंगे। अगर पशु के रातिब मिश्रण में चोकर नहीं मिलाया गया है तो भी फॉस्फोरस की कमी हो सकती है।फॉस्फोरस चूंकि दूध में भी स्रावित होता है इसलिए दुधारू पशुओं के चारे दाने में उचित मात्रा मैं फॉस्फोरस मौजूद ना होने पर भी उन पशुओं में फॉस्फोरस की कमी हो जाती है।चारा फसलों और अनाजों के छिलकों में फॉस्फोरस बहुतायत में पाया जाता है या फिर रातिब मिश्रण में मिलाया जाने वाला मिनरल मिक्सचर इसका अच्छा स्रोत हैlपशुओं में फॉस्फोरस की कमी होने पर पशुओं की भूख कम हो जाएगी, पशु उन सभी चीजों को खाने की कोशिश करेगा जो उसे नहीं खानी चाहिए। वास्तव में वह दीवार चाट कर, मिट्टी खाकर या दूसरे पशुओं का मूत्र चाटकर अपनी फॉस्फोरस की कमी को पूरा करना चाहता है।
वृद्धिशील पशुओं की बढ़वार कम हो जाएगी। फॉस्फोरस की कमी होने पर पशु की प्रजनन क्षमता प्रभावित होगी। पशु मद या गर्मी में नहीं आएंगे।पशुओं की हड्डियां कमजोर हो जाएंगी।
२. भ्रूण की जल्दी मृत्यु हो जाना:
1. जन्मजात आनुवंशिक कारणों से निषेचन के बाद भ्रूण की जल्दी मृत्यु हो जाती है। सांड को बदलकर समस्या का समाधान किया जा सकता है।
2. अंडाणु व शुक्राणु के गुणसूत्रों में विकार उत्पन्न होने पर भी निषेचन क्रिया के बाद भ्रूण की आगे वृद्धि नहीं हो पाती है और भ्रूण की मृत्यु जल्दी हो जाती है।
3. निषेचन के पश्चात भ्रूण के आसपास का वातावरण भ्रूण की वृद्धि के अनुकूल नहीं होता है। ऐसा मादा के जननांगों में संक्रमण व सूजन के कारण होता है। इसका समुचित उपचार आवश्यक है।
4. पीतपिंड या कार्पस लुटियम द्वारा समुचित मात्रा में प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का उत्पादन न कर पाने की स्थिति में भी भ्रूण की मृत्यु जल्दी हो जाती है।
यदि भ्रूण की मृत्यु मदकाल चक्र के, 16 दिन के अंदर हो जाती है तो मदकाल चक्र की अवधि प्रभावित नहीं होती है परंतु यदि भ्रूण की मृत्यु मदकाल चक्र के 16 दिन के बाद होती है तो मदकाल चक्र की अवधि बढ़ जाती है।
निराकरण:
१. निषेचन नहीं होने के अधिकांश मामलों में कृत्रिम गर्भाधान का गर्मी के उचित समय पर नहीं होना है। यदि पशु सुबह गर्मी में आता है तो कृत्रिम गर्भाधान शाम को कराना चाहिए और यदि पशु शाम को गर्मी या ऋतु में आती है तो कृत्रिम गर्भाधान अगले दिन सुबह कराना चाहिए।
२. अंडछरण के नहीं होने अथवा देर से होने की स्थिति में मदकाल की अवधि 2 से 3 दिन की हो जाती है । इसमें अगले ऋतु चक्र में कृत्रिम गर्भाधान के समय एच सी जी या जी एन आर एच हार्मोन का इंजेक्शन दिया जाता है और 12 घंटे के बाद दोबारा कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है।
३. मदकाल मैं भग द्वार से स्वच्छ पारदर्शक रस्सीवत, कांच जैसा श्लेष्मा लटकता दिखाई देता है परंतु कई बार इसमें मवाद के बहुत बारीक थक्के दिखते हैं। ऐसा बहुत हल्की अंत:गर्भाशय कला शोथ के कारण होता है । जिसका समुचित उपचार करवाने के बाद ही अगले ऋतु चक्र में कृत्रिम गर्भाधान कराया जाना चाहिए।
४. जहां पर प्रोजेस्ट्रोन की कमी से भ्रूण की जल्दी मृत्यु होती है वहां पर कृत्रिम गर्भाधान के समय एच सी जी या जी एन आर एच हार्मोन का इंजेक्शन दिया जाना चाहिए।
५. यदि पशु 24 घंटे के बाद भी गर्मी में रहता है तो पुनः कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए।
पशु का रखरखाव समुचित होना चाहिए एवं पशु को उच्च तापमान व नमी से बचाएं।
६. पशु को पौष्टिक एवं संतुलित आहार पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।
७.पशुओं में फॉस्फोरस की कमी ना होने देने के लिए निम्नलिखित उपाय करें- चारा फसलें उगाते समय खेत में उचित मात्रा में N:P:K डालिये।पशुओं के लिए रातिब मिश्रण बनाते समय उसमें 30 से 40 प्रतिशत चोकर जरूर रखिए।रातिब मिश्रण बनाते समय उसमें 2 प्रतिशत की दर से उत्तम गुणवत्ता के खनिज लवण कामिक्सचर जरूर मिलाइए।पशुओं को बहुत अधिक मात्रा में कैल्शियम देने पर भी फॉस्फोरस की कमी हो जातीहै इसलिए पशुओं को केवल कैल्शियम ही कैल्शियम नहीं खिलाते रहना है।पशुओं में अगर ऊपर बताये गए लक्षण दिखाई दें तो पशुओं को कम से कम पांच दिन तक पशु चिकित्सक की सलाह से फॉस्फोरस के इंजेक्शन लगवाए।
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