कोविड-19 महामारी के दौरान पशु चिकित्सा कर्मियों की कर्तव्यपरायणता

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RESPONSE TO VET DURING COVID CRISIS
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कोविड-19 महामारी के दौरान पशु चिकित्सा कर्मियों की कर्तव्यपरायणता

के.एल. दहिया1, जसवीर सिंह पंवारएवं प्रेम सिंह3

1पशु चिकित्सक, 2उपमण्डल अधिकारी, 3उपनिदेशक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, हरियाणा

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Email: drkldahiya@hotmail.com

Permanent address:

Dr. K.L. Dahiya

E-681, Kurukshetra Global City,

Sector 29, Kurukshetra

State Haryana

Pin Code 136 118

 

सार

कोरोनावायरस से जहां एक ओर 2002 में सार्स और 2012 में मर्स रोग उत्पन्न हुए तो वहीं 2020 से संपूर्ण कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है। दिसंबर 2019 के प्रारंभिक दिनों में चीन के हुबेई प्रांत में कोरोनावायरस के कुछ मामले सामने आये जो बहुत शीघ्र और तीव्र गति से विश्व के अन्य भागों में कोविड-19 महामारी के रूप में फैल गया। मौजूदा विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी का अंदाजा लगाया जा रहा था कि यह वर्ष 2020 की गर्मियों में समाप्त हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दोबारा वर्ष 2021 की गर्मियां शुरू होते ही इसके संक्रमण ने गति पकड़ ली है। मध्याह्न अप्रैल 14, 2021 तक कोविड-19 से विश्वभर में 29,44,827 व्यक्ति मृत्यु का ग्रास बन चुके हैं (ECDC 2021)। अब यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि इसका प्रकोप कब खत्म होगा। लेकिन, इतना अवश्य है कि इस वायरस के संक्रमण ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमर जरूर तोड़ दी है जिसका प्रभाव आगे भी दिखायी देने लगा है। पिछले वर्ष जब सभी औद्योगिक संस्थान बंद हो गये थे और बहुत से लोग बेरोजगार हो चुके थे, तब कृषि और पशुपालन ने ही राष्ट्र की अर्थ-व्यवस्था को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनका कोविड-19 की दूसरी लहर आने पर महत्वपूर्ण योगदान रहेगा और पशु चिकित्सा कर्मी पहले की भांति अपना योगदान देते रहेगें।

महामारी का हेतुविज्ञान

वैश्विक कोविड-19 महामारी वर्ष 2019 में खोजे गये नोवेल कोरोना वायरस (2019-nCoV) के संक्रमण से होती है जो अभी भी बहुत तेज गति से मनुष्यों से मनुष्यों में फैल रहा है (OIE 2020)। इस वायरस का 75 से 80 प्रतिशत जिनोम सार्सवायरस के समान है और इसके जैसे लक्षण उत्पन्न करता है जिस कारण इस वायरस को सार्स-कोरोनावायरस-2 (सार्स-कोवि-2) भी कहा जाता है (Zhou et al. 2020)।

सार्स-कोवि-2 वायरस आर.एन.ए. (राइबोन्यूक्लिक एसिड) वायरस का एक परिवार है जिनके बाहरी आवरण के ऊपर स्पाइक प्रोटीन की एक विशेष ‘क्राउन’ (कोरोना) जैसी सरंचना होती है और इसी कारण इस समूह के वायरसों को कोरोनावायरस कहा जाता है। आमतौर पर पशुओं और मनुष्यों में कोरोनावायरस का संक्रमण सामान्य घटना है जिनमें से कुछ वायरस नुकसान नहीं पहुंचाते हैं तो कुछ बहुत ही घातक होते हैं। कोरोनावायरस के कुछ उपभेद जूनोटिक हैं, जिसका अर्थ है कि ये पशुओं और मनुष्यों के बीच फैल सकते हैं, लेकिन कई उपभेद (स्ट्रेन) जूनोटिक नहीं हैं (OIE 2020)।

कोविड-19 का पशुजन्य संबंध

अधिकतर (70 प्रतिशत) उभरते हुए संक्रामक रोग (जैसे कि इबोला, ज़िका, निप्पा इन्सेफेलाइटिस) और सभी ज्ञात महामारियाँ (जैसे कि इन्फ्लुएंजा, सार्स, मर्स, एड्स) पशुजन्य (जूनोटिक) रोग हैं, जो मुख्य रूप से वन्यजीवों से उत्पन्न हुये हैं (Daszak et al. 2020)। हालांकि, इस बात के पुख्ता साक्ष्य हैं कि सार्स-कोवि-2 वायरस के चमगादड़ (पशु) स्त्रोत हैं फिर भी, महामारी विज्ञान के अनुसार रोगवाहक पशु प्रजातियों और सार्स-कोवि-2 वायरस के पशुओं से मुनष्यों में संचरण के बारे में अनिश्चितताएँ हैं (Ferri & Lloyd-Evans 2021)।

चीन के हुबेई प्रांत के वुहान दिसंबर 2019 के अंत में पाये गए कोविड-19 के प्रारंभिक मामलों की महामारी संबंधी जांच में सामुद्रिक आहार और जीवित पशुओं के व्यापार के थोक बाजार के साथ सार्स-कोवि-2 संक्रमण के साथ संबंध पाया गया है (Perlman 2020, Zhu et al. 2020)। हालांकि प्रत्यक्ष पशु नमूने में वायरस की गैर-मौजूदगी ने इस स्थान पर किसी भी पशु संग्राहक की सही पहचान करना मुश्किल बना दिया था (Zhang & Holmes 2020)। इसके अतिरिक्त, पहली लहर में कोविड-19 के 41 पुष्ट मामलों में से 13 का बाजार से कोई संबंध नहीं था (Li et al. 2020)।

सभी वायरस उत्परिवर्तित होते हैं और उनके नए उपभेद नियमित रूप से बनते हैं। विश्वभर में अब तक लगभग 4000 से भी अधिक उपभेद पाये गये हैं (Dean 2021)। इनमें से भारत में यू.के. वैरिएंट (बी.1.1.7), दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट (बी.1.351) और ब्राजीलियन वैरिएंट (पी1) के अतिरिक्त ‘एन501वाई’, ‘ई484क्यू’, ‘एल452आर’ और ‘एन440के’ म्यूटेंट भी पाये गये हैं (IndianExpress 2021)। इन उपभेदों में से यू.के. वैरिएंट की संचारण क्षमता सबसे अधिक है। ऐसा माना जा रहा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर में इन उपभेदों के कारण संक्रमण दर में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ लक्षणों में भी भिन्नता देखी जा रही है।

मनुष्यों में रोग के लक्षण

कोविड-19 रोग के कारण मनुष्यों में श्वास नली में संक्रमण होने पर बुखार, खाँसी, गले में खराश, सिर दर्द इत्यादि सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं। इसके बाद रोगी को सांस लेने में परेशानी या तेज-तेज सांस चलना, खाँसी जैसे लक्षण दिखायी देते हैं जो आमतौर पर बच्चों में ज्यादा दिखायी देते हैं। लेकिन ज्यादातर व्यस्कों में बुखार, सांस संबंधी लक्षण होते हैं। यदि यह स्थिति बच्चों में हो जाती है तो उन्हें खाँसी, माँ का दूध और पेय पदार्थ लेने असक्षमता, शारीरिक थकान और तेज सांस इत्यादि लक्षण दिखायी देते हैं। रोगी की शारीरिक स्थिति और गंभीर होने पर एक्युट रेस्पायरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो जाता है। रोगी की स्थिति बिगड़ने पर उसके शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होने लगते हैं। वयस्कों में मानसिक स्थिरता भंग होना, सांस लेने में परेशानी, मूत्र विसर्जन में कमी, तेज हृदय गति या निम्न रक्तचाप, ठण्ड लगना इत्यादि सम्मिलित हैं। वहीं बच्चों में बुखार और श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या में असमानता दिखायी देती है। अत्याधिक गंभीर अवस्था के दौरान वयस्कों में उच्च रक्तचाप बने रहना, तो वहीं बच्चों में मानसिक भ्रम एवं उच्च रक्तचाप लक्षण होते हैं।

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पशुओं में रोग के लक्षण

पशुओं में सार्स-कोवि-2 वायरस संक्रमण के लक्षण काफी हद तक अपरिभाषित हैं। पालतु पशुओं में, अन्य कोरोनावायरस संक्रमण की तरह सार्स-कोवि-2 संक्रमण के भी श्वसन या जठरांत संबंधी नैदानिक लक्षण हो सकते हैं। पशुओं में बुखार, खांसी, सांस लेने में परेशानी, सुस्ती, छींक आना, नाक और आंख से तरल स्त्राव, दस्त और उल्टी के लक्षण होने पर सार्स-कोवि-2 वायरस संक्रमण होने की संभावना हो सकती है (CDC 2020)।

लॉकडाउन – वरदान या अभिशाप

हालांकि, चीन के हुबेई प्रांत का वुहान शहर कोविड-19 संक्रमण का उत्केन्द्र था (Nacoti et al. 2020), लेकिन वहां पर 76 दिनों के लॉकडाउन ने इसे सफलतापूर्वक आगे फैलने से रोकने की कोशिश की जिसके परिणाम वहां पर देखने को भी मिले (PuneMirror 2020)। वुहान शहर में अभूतपूर्व लॉकडाउन ने कोविड-19 के साथ विश्वभर में लड़ने वाले विभिन्न राष्ट्रों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य किया। इसी प्रकार, भारत में लॉकडाउन करने में भी इसमें सफलता मिली। वर्ष 1918-1919 में स्पेनिश फ्लू में करोड़ों लोगों की मृत्यु की तुलना में कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लगाये लॉकडाउन ने मृतकों की संख्या पर नियंत्रण किया है।

रोग से बचाव

कोविड-19 के संक्रमण के कारण मनुष्यों में तीव्र गति से संक्रमण होता है लेकिन आंकड़ों के अनुसार मृत्युदर बहुत कम है। किसी भी व्यक्ति विशेष को इस महामारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि दुनियाभर में कोविड-19 के चल रहे परीक्षणों में अलाक्षणिक मरीजों का अनुपात काफी संख्या में पाया गया है। ऐसे व्यक्ति अधिकतर व्यस्क ही होते हैं। इस रोग के संक्रमण से बचने लिए फेस मास्क पहनने के साथ-साथ एक-दूसरे से 2 गज की दूरी, बार-बार कम-से-कम 20 सेकण्ड तक हाथों को साबुन-पानी से धोना, आवश्यक हो तो हाथों में दस्ताने भी पहनें, भीड़ वाले क्षेत्रों से जाने से बचना, अफवाहों की ओर ध्यान न देना इत्यादि से ही बचाव संभव है। सभी हिदायतों को ध्यान में रखते हुए टीकाकरण भी अवश्य है।

महामारी के दौरान पशु चिकित्सा कर्मियों की कर्तव्यपरायणता

  1. पशुओं से संबंधित संभावित अफवाहों को दूर करनाः जैसा कि कोविड-19 संक्रमण मनुष्य से मनुष्य में फैलने वाला रोग है लेकिन प्रारंभिक शोधों के अनुसार यह पशुजन्य रोग है, ऐसे में सभी पशु चिकित्सा कर्मी अपने-अपने क्षेत्रों में सचेत रहे और पशुपालकों सहित जनसाधारण में पशुओं में कोविड-19 संक्रमण की अफवाहों को दूर करने में सक्षम भूमिका निभाते रहे हैं।
  2. पशुस्वास्थ्य कर्मियों की पशु सेवाः हालांकि, वर्ष 2020 और 2021 में बहुत से पशु स्वास्थ्य कर्मी कोविड-19 से संक्रमित हुए हैं फिर भी उन्होंने इस महामारी के दौरान पशुओं को होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए सामान्य दिनों की तरह ही विशेष भूमिका निभायी है जो विश्वव्यापी महामारी की दूसरी लहर आने पर भी बेजुबान पशुओं की सेवा करके पशुपालकों को पूर्ण सहयोग दे रहे हैं।
  3. पशुओं में टीकाकरणः टीकाकरण एक ऐसा निर्धारित कार्य है जिसे समय बीत जाने पर करने से पशु हानि होने के साथ-साथ पशुपालकों को अर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है। अतः पशुधन को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए निर्धारित समयानुसार पशुपालकों के घर-घर जाकर टीकाकरण के कार्य को पूरा किया गया।
  4. पशुपालकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ीकरणः कोविड-19 महामारी के दौरान पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए हरियाणा सरकार ने पशुधन किसान क्रेडिट कार्ड बनाने का निर्णय लेते हुए बहुत बड़े पैमाने पर पशुपालकों के आवेदन पत्र भरने का कार्य पशु चिकित्सा कर्मियों को दिया गया। हालांकि, आवेदन भरते समय ऐसे हालात भी बने रहे जिसमें मास्क और दो गज की दूरी के नियम भी टूटते नजर आये फिर भी पशु चिकित्सा कर्मियों ने सावधनीपूर्वक इस कार्य को पूरा किया और फिर स्वीकृत आवेदकों के पशुओं के स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और बीमा करवा कर पशुधन किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने में पशुपालकों की सहायता की।
  5. जनहित योजनाओं का क्रियान्वयनः सरकार का लक्ष्य जनहित योजनाओं को लागू करके जनसाधारण लाभ पहुंचाना होता है जिन्हें क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करने वाले कर्मचारी पूर्ण सहयोग देते हैं। पशुपालन विभाग के माध्यम से सरकार की बहुत सी योजनाएं जैसे कि बीमार पशुओं का उपचार, कृत्रिम गर्भाधान, एकीकृत मुर्राह विकास परियोजना, गौसंवर्धन, दुधारू पशु डेयरी, भेड़-बकरी, सुअर पालन योजनाएं क्रियान्वित हैं जिन्हें पशु चिकित्सा कर्मियों द्वारा समय पर पूरा किया गया।
  6. जागरूकता शिविरों का आयोजनः प्रतिवर्ष की तरह वैश्विक कोविड-19 महामारी के दौरान सावधनियों को ध्यान में रखते हुए जनसाधारण को पशुपालन संबंधी जानकारी देने के लिए जागरूकता शिविर आयोजित करके उनका ज्ञानवर्धन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  7. पशुओं में महामारी के दौरान उपचारः यह कह पाना कि कब, कहां और कौन सा रोग किसी को हो जाये, आसान नहीं है। मनुष्यों में होने वाली कोविड-19 महामारी के दौरान पशुओं में लम्पी स्कीन डीजिज का संक्रमण भारत के महाराष्ट्र, ओडिशा और मध्यप्रदेश में हुआ। हालांकि, कोविड-19 के कारण इस रोग से निपटना आसान नहीं था फिर भी पशु चिकित्सा कर्मियों की सहायता से पशुपालन विभाग ने इस रोग के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  8. रोगी पशुओं का उपचारः रूग्णावस्था जीवन की एक ऐसी घटना है जिसकी कोई निर्धारित समयावधि नहीं होती है, यह कभी भी हो सकती है। इस महामारी के दौरान पशुओं में होने वाली बीमारियों के उपचार हेतु पशु चिकित्सा कर्मियों ने नियमित रूप से अपनी सेवाएं देकर पशुधन को बचाने में मुख्य भूमिका निभायी।
  9. पशुओं के लिए आहारीय व्यवस्थाः हालांकि ग्रामीण आंचल में पशुओं के लिए हरे चारे की परेशानी प्रतीत नहीं हुई लेकिन दाना-मिश्रण के लिए उनको बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है जहाँ उनको आसानी से कोविड-19 का संक्रमण होने का खतरा है और उनके संपर्क में आने से पशु स्वास्थ्य कर्मी भी इस रोग की चपेट में आ सकते थे फिर पशु स्वास्थ्य कर्मियों ने पशुधन सेवा के लिए हमेशा ही अपने कदम आगे बढ़ा कर रखे हैं। कोविड-19 की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन के समय ऐसे हालात भी हुए जब पशुओं के लिए खासतौर से पोल्ट्री फार्मों के लिए खाद्य आहार की समस्या आ गई थी, तब पशुपालन विभाग ने उनकी सहायता में कदम बढ़ाते हुए उनके पशुधन के लिए आहार की व्यवस्था करके नवजीवन देने का कार्य किया।
  10. पशुस्वास्थ्य कर्मियों का पशुपालक प्रेमः यह सर्वविधित है कि ‘जान है तो जहान’ इसी प्रकार ‘पशु हैं तो पशुपालक हैं’। जब कोई भी स्वास्थ्य कर्मी अपने क्षेत्र में कार्य करता है तो पशुपालकों के साथ उसके पारिवारिक संबंध जैसे हो जाते हैं। पशु स्वास्थ्य कर्मी हमेशा ही अपने पशुपालकों के साथ एक परिवार के सदस्य के रूप में खड़े रहे और उनको कोविड-19 संक्रमण के बारे में सचेत करते रहे हैं। शायद यही कारण है कि ग्रामीण आंचल में कोविड-19 संक्रमण के मामले कम ही देखने में आये हैं और जो थोड़े-बहुत आये भी हैं तो वे शहरी क्षेत्र से आने वाले सगे-संबंधियों के मिलने से आये हैं।
  11. टेलीमेडिसिन के रूप में परंपरागत पशु चिकित्साः पशुओं की ऐसी कई व्याधियों जैसे कि अपच, अफारा, सामान्य बुखार इत्यादि का सफल इलाज टेलीमेडिसिन के माध्यम से पशुपालकों के घर में मसालों के रूप में मौजूद जड़ी-बूटियों के उपयोग से बहुत कम खर्च पर करके पशुधन को बचाने में पशु चिकित्सकों ने योगदान दिया।
  12. ज्ञान वर्धक वेबीनारः आमतौर पर किसी भी सेमीनार का आयोजन किसी एक स्थान पर होता था जिसमें दूर-दराज से भागीदार को अपने गृह स्थान से गन्तवय स्थान पर जाकर शामिल होते थे। लेकिन कोविड-19 महामारी ने इसके अर्थ बदल कर सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से घर या अपने गृह क्षेत्र से उस सेमिनार, ट्रेनिंग में उपस्थित हुए और ज्ञान अर्जित करने के साथ-साथ ज्ञान भी बांटने में विशेष भूमिका निभाई।
  13. पशुधन उत्पादों को बढ़ावाः पशु चिकित्सा कर्मी मुश्किल दौर में भी पशुपालकों की सेवा के लिए उनके पशुधन उत्पादों को बढ़ावा देते रहें। जब लोगों को इस बात का पता लगा कि कोविड-19 वायरस पशुओं खासतौर से चमगादढ़ों से मनुष्यों में आया है तब ऐसे हालात बने कि आम जनता ने पशु उत्पादों जैसे कि दूध और अण्डों का सेवन बंद कर दिया था। ऐसे में पशु चिकित्सा अनुसंधान क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की कि यह वायरस बेशक कुछ पशु प्रजातियों में मिला है लेकिन यह वायरस गाय, भैंस, मुर्गियों को संक्रमित नहीं करता है और न ही इन पशुओं से मनुष्यों में फैलता है। क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करने वाले चिकित्सा कर्मियों ने भी अपने स्तर और समाचार माध्यमों से जनसाधारण को अवगत कराया कि दूध और अण्डों का सेवन शरीर में रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए आवश्यक है, अतः इनका सेवन अवश्य करें।
  14. शहरी क्षेत्र में आहार व्यवस्था में सहयोगः शहरी क्षेत्र में रहने वाली आबादी खाद्यान्न आपूर्ति के लिए ग्रामीण आंचल पर निर्भर होती है। अनाज के अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग किया जाना वाला दूध प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में पहुंचता है। लॉकडाउन के प्रारंभिक चरण में दूध की आपूर्ति कुछ दिनों के लिए आंशिक रूप से प्रभावित रही है जिसे शहरी क्षेत्र में दूध वितरित करने वाले दूधियों को परमिट देकर दूर किया गया। इसमें पशुपालन विभाग के कर्मियों की मुख्य भूमिका रही है।
  15. कोविड-19 निदान में सहयोगः पशु चिकित्सा से संबंधित प्रयोगशालाएं पशुजन्य अर्थात पशुओं से मनुष्यों में होने वाले रोगों के निदान के लिए कार्य करती हैं। बरेली में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, नागपुर पशु चिकित्सा महाविद्यालय और उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान संस्थान, मथुरा सहित राष्ट्र के कई पशु चिकित्सा संस्थानों ने कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों में रोग निदान के लिए पूर्ण सहयोग दिया।
  16. कोविड-19 वैक्सीन विकास में योगदानः कई पशु चिकित्सकों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोविड-19 वैक्सीन के विकास में योगदान दिया है। सीरिया के हम्सटर मॉडल में कोवाक्सिन के पशु परीक्षण करने वाली एक महत्वपूर्ण पशु चिकित्सक डॉ. श्रीलक्ष्मी मोहनदास ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली, उत्तर प्रदेश से पशु चिकित्सा विकृति विज्ञान में पीएचडी पूरी की, और वर्तमान में आईसीएमआर-एनआईवी, पुणे, महाराष्ट्र में एक वैज्ञानिक के रूप में काम कर रही है। उन्होंने प्रयोगशाला के जानवरों में कोविड-19 के बारे में कई शोध पत्र भी प्रकाशित किए।
  17. कोविड-19 वैक्सीन का वितरणः चूंकि पशु चिकित्सकों को पशु वैक्सीन के उत्पादन, हैंडलिंग, भंडारण, परिवहन और टीकाकरण के क्षेत्र में व्यापक अनुभव होता है, इसलिए कोविड-19 वैक्सिन के वितरण और लगाने के लिए उनकी सेवाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका के कुछ भागों में अमेरिकी सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन वितरण के लिए पशु चिकित्सकों को अस्थायी आपातकालीन प्राधिकृत किया है (AVMA 2021)।
  18. भविष्य की महामारियों की रोकथामः पशु चिकित्सकों ने घरेलू और जंगली जानवरों में संक्रामक और स्पर्शजन्य रोगजनकों के कारण होने वाली महामारी के प्रबंधन और नियंत्रण का अनुभव संचित किया है। वे पशुजन्य रोगों को नियंत्रित करने के विशेषज्ञ भी हैं। वे सार्स-कोवि, और मर्स-कोवि वायरस के कारण होने वाली पशुजन्य रोगों के उद्भव को रोकने में मदद की है और सार्स-कोवि-2 संक्रमण में भी कर रहे हैं।
  19. रोजगार सृजनः लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुई जनता के सामने रोजी-रोटी की समस्या देखने में आयी। ऐसे विपरित हालात में कृषि और पशुपालन ने जनसाधारण के लिए रोजगार सृजित कर इस समस्या को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  20. अर्थ व्यवस्था में सहयोगः जैसा कि कोविड-19 महामारी के कारण सभी औद्योगिक क्षेत्र बंद हो गये थे लेकिन कृषि और पशुपालन ऐसे क्षेत्र रहे हैं जिसमें कोई बाधा नहीं हुई और उनमें सभी कार्य समयबद्ध हुए हैं। इस महामारी के दौरान सभी राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। भारत जैसे कृषि प्रधान राष्ट्र में कृषि और पशुपालन जैसे इसके अभिन्न अंगों ने भारत की अर्थ व्यवस्था में पूर्ण सहभागिता प्रदान की है।
  21. मानसिक दशा सुधारने में सहयोगः किसी भी असामान्य घटना में किसी भी जनसाधारण पर मनोवैज्ञानिक रूप से कुप्रभाव पड़ता है। कोविड-19 महामारी के दौरान भी जनसाधारण में ऐसे हालात देखने में आये हैं। ऐसे हालात में पशु चिकित्सा कर्मियों ने स्वयं को बचाते हुए पशुपालकों की मानसिक दशा को भी सुधारने में कार्य किया।
  22. पारिवारिक जिम्मेवारी का निर्वहनः कोविड-19 महामारी के दौरान पशु चिकित्सा कर्मियों को स्वयं संक्रमण का खतरा होने के साथ-साथ उनके परिवारों को भी पूर्ण खतरा रहा जिसमें बहुत से चिकित्सक और उनके परिवार के सदस्य भी इस गंभीर रोग की चपेट में आये। फिर भी, सभी पशु चिकित्सा कर्मियों ने महामारी से बचाव करते हुए न केवल स्वयं और पशुपालकों को बचाया बल्कि अपने परिवारों को बचाने में अहम् भूमिका निभाने में सक्षम रहे।
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पशुओं में कोविड-19 संक्रमण और एक स्वास्थ्य परिकल्पना

हालांकि, कोविड-19 महामारी विशेष रूप से एक मानवीय संक्रमण है, लेकिन सार्स-कोवि-2 कुत्ते, बिल्लियों, शेर, बाघ, मिंक, चूहे, फेरेट्स, हैम्स्टर, प्राइमेट्स इत्यादि पशुओं को भी संक्रमित करता है (Leroy et al. 2020, Jo et al. 2020, OIE 2021)। हालांकि, पशुओं से मनुष्यों में फैलने के कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मिले हैं लेकिन पशुओं में अन्य कई तरह के कोरोनावायरस अवश्य हैं जो आसानी से पशुओं एवं मनुष्यों को प्रभावित करते आये हैं। अतः यह ध्यान देने योग्य बात है कि कोविड-19 संक्रमित रोगियों को पशुओं के संपर्क में आने से बचना चाहिए अन्यथा इस वायरस के पशुओं में प्रवेशोप्रांत आनुवंशिक परिवर्तन होने के बाद गंभीर उपभेद पैदा होने की संभावना से नहीं नकारा जा सकता। कोविड-19 महामारी के दौरान पशुओं की सार्स-कोवि-2 के प्रति संवेदनशीलता पाया जाना ‘एक स्वास्थ्य’ परिकल्पना की ओर संकेत करती है जिसमें पशु चिकित्सा कर्मियों की मुख्य भूमिका हो सकती है।

सारांश

कोविड-19 महामारी के दौरान, हर जगह ऐसे हालात थे कि सभी अपने-आपको बचाने में लगे हुए थे तो वहीं दूसरी ओर पशु चिकित्सा कर्मी पशुपालकों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़े दिखायी दिये। जनसाधारण के लिए दूध और अण्डा जैसे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में सहयोग दिया और ‘एक विश्व’ – ‘एक स्वास्थ्य’ परिकल्पना को परिपूर्ण किया है।

टला नहीं है अभी खतरा कोरोना के वार का,

करें निष्क्रिय कोरोना के प्रहार को,

पहने फेसमास्क, इक-दूजे से दो गज दूरी,

साबुन-पानी से धोयें हाथ बार-बार, टीकाकरण भी है जरूरी।

विशेषः लेख के संदर्भ drkldahiya@hotmail.com से प्राप्त किये जा सकते हैं।

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