भारत में उपलब्ध विभिन्न चारा संसाधनों के पोषक मूल्य का अवलोकन
डॉ. पूजा तम्बोली, डॉ. अमित कुमार चौरसिया, डॉ. निष्ठा कुशवाह, डॉ.सोनाली नामदेव एवं डॉ. पवन चौरसिया
भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी (उ.प्र.)
* *Corresponding author: tamboli.pooja307@gmail.com
भारतीय कृषि की आजीविका, पोषण, पर्यावरण सुरक्षा और वृद्धि को बनाए रखने में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पिछले दशकों में पशुधन क्षेत्र में विशाल स्तर पर किए गए कार्य, कृषि में दर्ज सकारात्मक विकास दर के प्रमुख कारण हैं। हमने पशु संख्या के संदर्भ में तो विकास हासिल किया है परन्तु उत्पादकता के संदर्भ में सुधार करने की आवश्यकता है। पशुपालन मे होने वाले व्यय का 50-70% उनके खान-पान मे खर्च होता है। चारा पशुओं का मुख्य भोजन होता है तथा दुधारू पशुओं के भोजन में हरा चारा प्रमुख भूमिका निभाता है, इसमें दुग्ध उत्पादन और डेयरी पशुओं के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। कोई भी चारा जो हरी फसल जैसे फलियां, घास की फसल, अनाज की फसल या पेड़ आधारित फसलों से बनता है, हरा चारा कहलाता है।
चारा अपेक्षाकृत कम सुपाच्य सामग्री वाला होता हैं, कुल पाच्य सामग्री (टीडीएन) शुष्क आधार में 18% से कम और क्रूड फाइबर लगभग 60% से अधिक होता है। चारा में अधिकांश भाग कोशिका भित्ति होती है जो कि हेमिसेलुलोज, पेक्टिन, सिलिका और अन्य घटक से मिल कर बनी होती हैं। अनाज के विपरीत, चारा में आमतौर पर उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट कम होते हैं। पाचनशक्ति के संबंध में लिग्निन की मात्रा एक महत्वपूर्ण कारक है। लिग्निन एक अनाकार सामग्री है जो पौधे की ऊतक की कोशिका भित्ति के रेशेदार कार्बोहाइड्रेट के साथ निकटता से जुड़ी होती है जिससे पाचन एंजाइम अपना प्रभाव नहीं दिखा पते और पाचनशक्ति सीमित हो जाती है। चारों के प्रोटीन, खनिज और विटामिन अत्यधिक परिवर्तनशील होते हैं। दलहनी फसलों में 20% या अधिक क्रूड प्रोटीन हो सकती है, हालांकि अधिकांश गैर प्रोटीन नाइट्रोजन (एनपीएन) के रूप में हो सकती है। पुआल जैसे अन्य चारों में केवल 3-4% क्रूड प्रोटीन होता है। खनिज पदार्थ भी अत्यधिक परिवर्तनशील हो सकती है। दलहनी चारे कैल्शियम और मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत होते हैं जबकि गैर दलहनी चारोँ में फास्फोरस ज्यादा पाया जाता है। औद्योगिक उप-उत्पाद, बागवानी एवं सब्जी अपशिष्ट, स्थानीय घास, पेड़ के पत्ते, खरपतवार और अन्य गैर-पारंपरिक खाद्य संसाधन भी चारे के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं। उपलब्ध खाद्य संसाधनों की पूर्ण जानकारी के साथ पशुओं की आवश्यकता के अनुसार सही अनुपात में खिलाया जाना चाहिए जिससे राशन में पोषक तत्व संतुलित रहते है। यदि उपलब्ध खाद्य संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो दाने की कमी के बावजूद, दूध उत्पादन और डेयरी जानवरों के उत्पादक जीवन में काफी सुधार किया जा सकता है ।
चारे निम्नलिखित प्रकार के होते हैंः
- दलहनीफसल का चारा।
- अनाजका चारा।
- घासका चारा।
- पेड़का पत्ता।
दलहनी फसलों द्वारा हरा चारा उत्पादन
- बरसीम(ट्राइफोलियम अलेक्जेंड्रिनम)
बरसीम सबसे महत्वपूर्ण चारा फसलों में से एक है और इसे चारा के राजा के रूप में वर्णित किया गया है। इसका पूरे देश में पशुपालन कार्यक्रमों में विशेष स्थान है। दस से पंद्रह किलो बरसीम पुआल के साथ रख-रखाव राशन (मेंटेनेंस राशन) बनाता है। इस चारा को पुआल के साथ संतुलित करके पर्याप्त मात्रा में खिलाये जाने पर यह मवेशियों के विकाश और दुग्ध उत्पादन को संभाल लेता है। यह अम्लीय मिट्टी को सहन नहीं करता है, लेकिन बंजर भूमि को छोड़कर दूसरे प्रकार की मिट्टी में बढ़ता है। मैदानी क्षेत्रों में यह फसल सितंबर के मध्य से अक्टूबर के अंत तक और पहाड़ियों में अगस्त के मध्य से सितंबर के पहले सप्ताह तक बोई जाती है। बरसीम अब एक और रूप में उपलब्ध है जिसे जायंट बरसीम कहा जाता है। जायंट बरसीम का लाभ यह है कि कम सिंचाई की आवश्यकता होती है।पहली कटाई के लिए बुवाई के 55-60 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। सर्दियों और बसंत ऋतू के दौरान 30 दिनों के अंतराल पर बाद की कटिंग ली जाती है। बरसीम अत्यधिक स्वादिष्ट चारा है और इसमें 17% क्रूड प्रोटीन और 25.9% क्रूड फाइबर होता है। कुल सुपाच्य पोषक तत्वों (टी. डी. एन.) की मात्रा 60-65% है। बरसीम में सैपोनिन होता है, यदि उच्च मात्रा में जुगाली करने वाले पशुओं को खिलाया जाता है, तो ब्लोट हो सकता है।
- लोबिया,काउपी (विग्ना अंगूइकुलाटा)
लोबिया एक वार्षिक फसल है और इसे उष्णकटिबंधीय, उप-उष्णकटिबंधीय और गर्म तापमान क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। लोबिया को ज्वार एवँ मक्के के साथ मिश्रण करके उत्तम गुड़वत्ता का साइलेज बनाया जा सकता है। काउपी के चारा का मूल्य अधिक होता है। यह कम फाइबर और पशुओं को खिलाने में न्यूनतम अपव्यय के कारण सोयाबीन जैसे अन्य फलियों से बेहतर है। यह एक दोहरे उद्देश्य वाली फसल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। मनुष्यों के खाने के लिए हरी परिपक्व फली का उपयोग किया जाता है जबकि अवशेष चारा का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जाता है। अवशेष चारा उत्कृष्ट होती है जो कि किसी भी फलियां के साथ तुलनीय होती है। यह बिना दाना के पशुओं के वृद्धि और प्रतिदिन 5 किलोग्राम तक दूध उत्पादन में सहायक है। शुरुआती ताजी पत्तियों और डंठल में 18.0% क्रूड प्रोटीन, 3.0% वसा और 26.7% क्रूड फाइबर होता है। कुल पचने योग्य पोषक तत्व प्रारंभिक अवस्था में 59.0% और परिपक्व काउपी चारे में 58.0% होती है। कैल्शियम और फास्फोरस की मात्रा क्रमशः 1.40 और 0.35%% है।
- स्टाइलो(स्टाइलोसेन्थीज हमाटा)
स्टाइलो गर्मी में बढ़ने वाला बारहमासी दलहनी चारा है जो 60-90 सेमी की ऊंचाई तक बढ़ता है। यह आमतौर पर उत्तर और दक्षिण अमेरिका के तटीय क्षेत्रों से सटे भागों में पाया जाता है।स्टाइलो सूखा प्रतिरोधी और एक अच्छा चारागाह दलहनी फसल है और इसे कम पानी या बारिश की आवश्यकता होती है। स्टाइलो को उष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जा सकता है। यह फसल कम उपजाऊ मिट्टी, अम्लीय मिट्टी और कम जल निकासी वाली मिट्टी के प्रति सहनशील है।स्टाइलो के लिए सबसे अच्छा मौसम जून-जुलाई से सितंबर- अक्टूबर महीने है। स्टाइलो की कटाई फूलों की अवस्था पर बुवाई के 70 से 75 दिन बाद किया जा सकता है और आगामी कटाई फसल की पैदावार पर निर्भर करती है। हालांकि प्रारंभिक अवस्था में यह बहुत स्वादिष्ट नहीं होता है, परन्तु एक बार जब जानवर इसके आदी हो जाते हैं, तो वे पौधे को आसानी से खा लेते हैं। स्टाइलो में क्रूड प्रोटीन की मात्रा 16 से 18% तक होती है। 0.61-1.72% कैल्शियम, 0.10-0.12% फॉस्फोरस और 7.0-14.2% खनिज होते है।
- डेस्मैनथस
यह एक बारहमासी फसल है और पूरे वर्ष में उगाई जा सकती है। यह फसल वर्षा आधारित और सिंचित परिस्थितियों में उगाई जा सकती है। वर्षा ऋतु में इसे किसी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।यह फसल बुवाई के लगभग 3 महीने में पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। 80-90 टन/हेक्टेयर/ वर्ष की दर से हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।
- ल्यूसर्न(मेडिकैगो सैटिवा):
ल्यूसर्न को लोकप्रिय रूप से चारों की रानी के रूप में जाना जाता है। इस फलीदार फसल की जड़ें गहरी होती हैं, जो उष्णकटिबंधीय से लेकर अल्पाइन तक की व्यापक परिस्थितियों में उगाई जा सकती हैं। ल्यूसर्न बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक हरा चारा है और इसमें शुष्क पदार्थ के आधार पर लगभग 15 से 20% प्रोटीन होती हैं। इन सभी लाभों के अलावा, ल्यूसर्न मिट्टी में नाइट्रोजन जोड़ता है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है। यह फसल आमतौर पर हरा चारा, हे व साइलेज के लिए उगाई जाती है। पर्याप्त मात्रा में खिलाने पर 8 किलो तक दूध उत्पादन भी कर सकता है। इसमें परिपक्वता के समय 18-22% क्रूड प्रोटीन और 25-35% क्रूड फाइबर पाया जाता है।
अनाज की फसलों द्वारा हरा चारा का उत्पादन: –
- मक्का(मकई) चाराः
मक्का दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण अनाज है। मूल रूप से मक्का एक वार्षिक फसल है और इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर की जा सकती है। मक्का एक उच्च ऊर्जा वाला अनाज है क्योंकि इसमें स्टार्च और तेल अधिक जबकि फाइबर कम होता है। मक्का में लगभग 70 स्टार्च, 85-90% टीडीएन, 4% तेल और लगभग 8-12% प्रोटीन होता है। इस अनाज को रोमंथी पशुओ को खिलाने से पहले अच्छी तरह से पीसना चाहिए अन्यथा उनका पाचन ठीक से नहीं हो पाता। यह किटोसिस जैसी स्थितियों में लाभदायक हो सकता है। आमतौर पर यह 2 महीने में कटाई के चरण में आ जाता है। पीला मक्का में जैंथोफिल होता है जो कि पोल्ट्री उत्पादन में महत्वपूर्ण हैं यह अंडे की जर्दी (एग योक) और ब्रॉयलर की त्वचा को पीला रंग प्रदान करना। मक्का विटामिन ई का एक उचित स्रोत है। इसमें विटामिन डी और बी कॉम्प्लेक्स कम होता है। सभी पौधों के जैसा ही मक्का विटामिन बी 12 रहित होता है।
- सोरघमचारा ज्वार या सोरघम (सोरघम बाइकलर)
इस फसल की खेती अनाज और चारे दोनों के लिए की जाती है , सोरघम सूखा प्रतिरोधी वार्षिक फसल है और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 25-36 डिग्री सेल्सियस के तापमान के साथ अच्छी तरह विकसित होती है। इस फसल को 300-400 मिमी की वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मृदा पर की जा सकती है, हालाँकि बहुत अधिक रेतीली मिट्टी का उपयोग नहीं करना चाहिए। हरे चारे के लिए फूलों की अवस्था के बाद इस फसल की कटाई की जा सकती है। यदि यह एक कट है, तो इसे बुवाई के 60-65 दिनों (50% फूल) पर काटा जाना चाहिए और यदि यह बहु-कट है, तो पहली कटाई बुवाई के 2 महीने बाद और बाद में 45 दिनों में एक बार करनी चाहिए। ज्वार आहार मूल्य में मक्का से मिलता जुलता है। यह मक्का से अधिक सूखा प्रतिरोधी है। इसमें आम तौर पर मक्का की तुलना में अधिक प्रोटीन लेकिन कम तेल होता है और इसमें कोई जैंथोफिल्स वर्णक नहीं होता है। सोरघम में लगभग 65% स्टार्च, 80-85% टीडीएन, 2-3% तेल और लगभग 8-12% प्रोटीन होता है। टैनिन की उपस्थिति के कारण यह अनाज मक्का की तुलना में थोड़ा कम स्वादिष्ट होता है। जुगाली करने वाले पशुओ (रोमांथी) को खिलाने से पहले अनाज को पीसना चाहिए, अन्यथा उसका पाचन नहीं हो सकता। ज्वार में लाइसिन, थ्रेओनीन और मेथियोनीन सीमित (लिमिटिंग) अमीनो एसिड हैं। इस अनाज में आमतौर पर कैल्शियम बहुत कम और फाइटेट फास्फोरस अधिक होता है, विटामिन बी 12 नहीं होता और विटामिन ए बहुत कम होता है।
- बाजराया पर्ल मिलेट (पेन्नीसेटम टाईफॉइडेस)
बाजरा अफ्रीका में उत्पन्न हुआ था और बाद में भारत में इसकी खेती की शुरुआत हुई। बाजरा शुष्क, कम उपजाऊ मिट्टी और उच्च तापमान वाली उत्पादन प्रणालियों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित होते है। उच्च लवणता या अम्लीय मिट्टी में इसकी उपज अच्छी होती है। कठिन परिस्थितियों में इसकी सहनशीलता के कारण, इसे उन क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, जहाँ अन्य अनाज की फसलें, जैसे कि मक्का या गेहूँ, नहीं उगाये जा सकते है। भारत बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।इसमे क्रूड प्रोटीन 12-15% और टीडीएन 70-75% होता है। यह टैनिन में भी समृद्ध है। इसका उपयोग मक्के के स्थान पर मवेशियों के लिए चारे के रूप में किया जा सकता है।
- जईया ओट (एवेना सटाइवा)
ओट विशेष रूप से दुनिया भर में हे के रूप में संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण चारा है , इसकी सहायता से ज्यादातर वर्ष की मंदी अवधि (लीन पीरियड) में पशुओं के लिए चारा का व्यवस्था किया जा सकता है। इसके हरे चारे की रासायनिक संरचना फसल के कटाई के चरण के साथ बदलती है। जई जिसमें लगभग 7-9% क्रूड प्रोटीन होता है वह पशुओं के पालन पोषण में सहायक होता है, इसे नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग द्वारा 11% तक बढ़ाया जा सकता है, जिस स्थिति में इसे उत्पादक चारा माना जा सकता है। यह भेड़ सहित अन्य प्रकार के पशुधन के लिए अत्यधिक स्वादिष्ट होता है। यह आमतौर पर सितंबर के अंत में बोया जाता है लेकिन कुछ किस्मों को दिसंबर में बोए जा सकते हैं। इसे अकेले या बरसीम के साथ मिश्रण में बोया जा सकता है। ओट में प्रोटीन पाचन को रोकने वाले तत्व (प्रोटीएस इन्हीबिटर) पाये जाते है।
घास की फसल द्वारा हरा चारा उत्पादनः
- हाइब्रिडनेपियर चाराः
मूल रूप से, यह एक बारहमासी घास चारा है और नेपियर घास की तुलना में इसके पास अधिक पत्तियाँ होती है। यह अधिक स्वादिष्ट होता है और इसकी उपज और गुणवत्ता भी अधिक होती है। पहली कटाई रोपण के 70 से 80 दिन बाद और आगामी कटाई 40 से 45 दिनों के अंतराल पर की जानी चाहिए। हाइब्रिड नेपियर घास को 3:1 के अनुपात में डेसमेनथस के साथ अंतर-फसल के रूप में लगाया जा सकता है। दोनों फसलों की कटाई एक साथ किया जा सकता है और पशुधन को खिलाया जा सकता है। संकर नेपियर में हरे चारे में शुष्क पदार्थ की मात्रा 21.4%, प्रोटीन 10.38%, वसा 2.05%, पोषक डिटर्जेंट फाइबर 64.38%, एसिड डिटर्जेंट फाइबर 39.57, कैल्शियम 0.5 और फॉस्फोरस 0.4% होता है।
- गिनीघासः गिनी घास (पैनिकम मैक्सिमम)
यह घास लगभग 5 मीटर लम्बी और गुच्छेदार होती है। यह तेजी से बढ़ने वाली अत्यधिक स्वादिष्ट बारहमासी घास है। इसमें छोटे रेंगने वाले प्रकंद (राइजोम) होते हैं। इसे बीज या जड़ वाली डाली से आसानी से रोपण किया जा सकता है। इस घास में 4-15% प्रोटीन होता है। इस घास की मुख्य खेती में हैमिल, PPG -14, मकुनी और रिवर्स-डेल शामिल हैं। यह घास अच्छी जल निकासी वाले सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है। हालांकि, यह भारी चिकनी मिट्टी या बाढ़ या ठहराव की स्थिति पर अच्छी तरह से नहीं बढ़ता है। आमतौर पर, पहली फसल अंकुरण के 70-80 दिनों में या डाली के रोपण के 40 से 45 दिन बाद तैयार हो जाती है। बाद में कटाई 40 से 45 दिनों के अंतराल पर की जानी चाहिए। 8 बार की कटाई में प्रति वर्ष 17-180 टन/ हेक्टेयर की दर से हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। गिनी घास को ल्यूसर्न के साथ 3:1 अनुपात में अन्तः फसल के रूप में रोपित किया जा सकता है। इन फसलों को एक साथ काटा जा सकता है और पशुधन को खिलाया जा सकता है। यह जाना पहचाना बारहमासी घास है जो की उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अनुकूल है और यह अधिक उपज देने वाली है। इसमें सामान्य रूप से 8-12% क्रूड प्रोटीन और 31% क्रूड फाइबर होता है।
- पैराघासः (ब्राचिएरिआ म्यूटिका)
यह घास बारहमासी है और आर्द्र जलवायु परिस्थितियों में बढ़ने के लिए आदर्श चारा है। इसकी खेती मौसम के अनुसार जलमग्न वाली घाटियों और तराई क्षेत्रों में की जा सकती है। यह घास पानी के ठहराव और लंबे समय तक बाढ़ का सामना कर सकती है। शुष्क या अर्ध शुष्क क्षेत्रों के शुष्क भूमि में इसे नहीं उगाना चाहिए क्योंकि यह इस प्रकार की मिट्टी में नहीं पनपती है। यह घास ठंड के प्रति संवेदनशील है और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसके पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हरे चारे की अधिक पैदावार के लिए जल से भरी हुई मिट्टी अच्छी होती है। यह रेतीली मिट्टी में भी पनप सकता है। बीज की स्थापना बहुत कमजोर होती है और यह विशेष रूप से तना कलम (स्टेम कटिंग) द्वारा प्रसारित किया जाता है। यह इस घास की खेती का नुकसान है। यह वर्ष के दौरान कभी भी लगाया जा सकता है बशर्ते पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध हो। पहली फसल बोने के 70-80 दिनों में तैयार हो जाएगी और बाद की कटाई 40 से 45 दिनों के अंतराल पर की जानी चाहिए। एक साल में पूरी तरह से 6 से 9 कटौती की जा सकती है, जिसमें हरे चारे की उपज औसतन 90-100 टन/ हेक्टेयर होती है। आमतौर पर, इस घास को हरे चारे के रूप में खिलाया जाता है और यह हे या साइलेज के रूप में संरक्षण के लिए अच्छा नहीं है। यह घास अत्यधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक है। ताजी घास में 10.2% क्रूड प्रोटीन और 23.6% क्रूड फाइबर होता है।
- ब्लू–बफेलघासः अंजन घास (सेन्क्रस सिलिएरिस)
स्थानीय नामः बुफेल घास है। इस प्रकार की घास चरागाह के लिए उपयुक्त है और यह बारहमासी होती है। उच्च कैल्शियम युक्त मिट्टी इस घास की खेती के लिए उपयुक्त है। आमतौर पर, पहली कटाई बुवाई के 70 से 75 दिन बाद और बाद में 4 से 5 कटाई के आधार पर की जा सकती है। अंजन घास एक सबसे महत्वपूर्ण बारहमासी घास है और यह मानसून में सबसे अच्छी वृद्धि करता है। यह सूखा स्थिति झेल सकता है और उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय में गर्म शुष्क क्षेत्रों के लिए यह उत्कृष्ट चराई घास है। यह अच्छी तरह से मिट्टी बांधने की क्षमता रखता है और इसलिए मिट्टी और जल संरक्षण के लिए बांधो पर एक आवरण (कवर) फसल के रूप में उपयोग किया जाता है। वर्षा के आधार पर, उपज भिन्न होती है 300 मिमी से कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में, एक अच्छी तरह से स्थापित इस घास की चरागाह 90-110 टन/ हेक्टेयर हरे पदार्थ का उत्पादन करता है। यह घास की फसल 4 से 5 कटों में 35 टन/ हेक्टेयर/ वर्ष तक प्राप्त कर सकती है। अंजन घास पशुधन के सभी वर्गों द्वारा पसंद किया जाता है। यह उत्कृष्ट प्रकार का चारा है और पशुओं के रख रखाव राशन के लिए उपयुक्त होता है। यह चारा एक सीमित सीमा तक बिना दाना के दूध उत्पादन में सहायक होता है। इसमें कैल्शियम और फास्फोरस के उपयुक्त अनुपात के साथ 11% क्रूड प्रोटीन होता है। न्यूट्रल डिटर्जेंट फाइबर और एसिड डिटर्जेंट फाइबर सामग्री क्रमशः 72.0 और 38.0% है।
- दीनानाथघास (पेनीसिटम पेडीसिलेटम) देर का वानस्पतिक (लेट वेजेटेटीव)
दीनानाथ घास में क्रूड प्रोटीन 2-9%, वसा 1.6%, क्रूड फाइबर 35.8%, नाइट्रोजन मुक्त अर्क 49.6%, राख 10.1%, न्युट्रल डिटर्जेंट फाइबर 75.8%, एसिड डीटर्जेंट फाइबर 47.4%, चयापचय ऊर्जा (ME) 1.8 Mcal/Kg होता है।
पेड़ द्वारा हरा चारा उत्पादनः
- सुबबुलचाराः
यह सबसे तेजी से बढ़ने वाले चारे के पेड़ों में से एक है और अधिकतम बीज पैदा करता है। इन पौधों को बोने का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई के महीने में होता है। बीज बोने के 6 महीने बाद ये पौधे पहली कटाई के लिए तैयार हो जाएंगे। हालांकि, प्रारंभिक कटाई तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि ट्रंक कम से कम 3 सेमी व्यास में न मिल गया हो या पौधे ने एक बीज उत्पादन चक्र पूरा कर लिया हो। बाद की कटिंग को 45-80 दिनों में एक बार ग्रोथ और सीजन के आधार पर किया जा सकता है। सूखा क्षेत्रों के मामले में, गहरी जड़ें सुनिश्चित करने के लिए पेड़ों को 2 साल तक बढ़ने दें। पेड़ जमीनी स्तर से 95 से 100 सेमी की ऊंचाई पर होने चाहिए। सिंचित परिस्थितियों में, 90 से 100 टन/ हेक्टेयर का हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। वर्षा आधारित परिस्थितियों में 40 टन/ हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।
- सिसबनियाचारा–अगाथी:
अगाथी के पेड़ों की पत्तियां अत्यधिक स्वादिष्ट होती हैं और ज्यादातर बकरियों द्वारा पसंद की जाती हैं। इस पेड़ की पत्तियों में 20 से 25% तक प्रोटीन की मात्रा होती है। इन पेड़ों को पूरे साल उगाया जा सकता है बशर्ते पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध हो। ये पेड़ अच्छी जल निकासी और कार्बनिक पदार्थों से परिपूर्ण मिट्टी में सबसे अच्छा पनपते हैं। पहली फसल 7 से 8 महीने के बाद तैयार हो जाएगी और बाद की कटाई विकास के आधार पर 70-80 दिनों के अंतराल पर की जा सकती है। ये पेड़ 90 से 100 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हरा चारा पैदा कर सकते हैं। सेस्बनिआ की कई प्रजातियां हैं जो छोटे झाड़ी/पेड़ से लेकर लंबे पेड़ तक हैं। भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में आमतौर पर सेस्बनिआ एजिप्टिएका और सेस्बनिआ ग्रैंडीफ्लोरा पाया जाता हैं। इसमें 25-30% क्रूड प्रोटीन होता है। बकरियों को गिनी घास के साथ सेस्बनिआ ग्रैंडीफ्लोरा मिलाकर खिलाने से वे 25% अधिक भोजन ग्रहण करते है और यह सकारात्मक रूप से नाइट्रोजन के संतुलन बनाने में सहायक होता है।
- ग्लिरिसिडियाचाराः
यह पेड़ एक छोटा और अर्द्ध पर्णपाती पेड़ है जिसमें हलके रंग की छाल होती है। ग्लाइरीसिडिया सेपियम और ग्लिरिसिडिया मैक्यूलटा दो प्रजातियां उपलब्ध हैं। ग्लिसरीडिया मैक्यूलटा की हरी पत्तियां खाद के रूप में अधिक उपयोगी होती है। यह मिट्टी में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थापित करता है। ग्लाइक्रिडिया सेपियम बिभिन्न जलवायु परिस्थितियों को सहन कर सकता है। इस वृक्ष का विकास उन क्षेत्रों में तेजी से होता है जहाँ वार्षिक वर्षा 850 मिमी से अधिक होती है, लेकिन यह वहाँ भी अच्छी तरह से बढ़ सकता है जहाँ वर्षा 400 मिमी से कम होती है। यह पत्तियों के हर बार काटने के बाद ताजा पत्तियों का विकास करता है।