भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्राम पंचायत और पशु पालन समिति की भूमिका

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भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्राम पंचायत और पशु पालन समिति की भूमिका

ग्राम पंचायत की गतिविधियाँ

पिछले अध्यायों में हमें पशु पालन से संबंधित जानकारी मिली। वैज्ञानिक पशु पालन को प्रोत्साहित करने के लिए ग्राम पंचायत ग्राम की पशु पालन समिति के सहयोग से निम्नलिखित गतिविधियाँ प्रारंभ कर सकती हैं:

  • आम चरागाह भूमि को फिर से जीवंत करने के लिए विकास, प्रबंधन और विनियामक उपाय।
  • फसल अवशेषों की बिक्री को विनियमित करना, चारा बैंको की शुरुआत, बाहरी एजेंसियों के साथ समझौते से सूखे के दौरान चारे की व्यवस्था ।
  • निजी, राजस्व और वन भूमि में चारा प्रजाति के वृक्षों के रोपण को बढ़ावा देना।
  • चारा फसलों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • समय पर टीकाकरण और डीवार्मिग करना और पशुओं के स्वास्थ्य की पर्याप्त देखभाल के लिए सभी परिवारों की पहुंच सुनिश्चित करना।
  • राज्य प्रजनन नीति के अनुसार (एक समयबबद्ध ढंग से) नस्ल सुधार को बढ़ावा देना ।
  • पशुजन्य रोगों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • खाद के उपायों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक स्थानों में उचित स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना।
  • पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरत, प्रजनन, और बांझपन के कारणों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • दुग्ध सहकारी समितियों के सहायता और सुनिश्चित करना कि ग्राम पंचायत से आपूर्ति किया गया दूध मिलावट से मुक्त है ।
  • घरेलू पोषण, चारे की फोर्टीफिकेशन विधि और अन्य उपायों को बढ़ावा देना ।
  • वैज्ञानिक बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन और सुअर पालन को बढ़ावा देना ।
  • पशुधन बीमा शुरू करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना ।
  • पशुपालन के लिए बैंक संपर्क को बढ़ावा देना ।
  • पशु बाजारों और मेलों की सुविधा ।

पशु पालन समिति को उपरोक्त गतिविधियों की शुरुआत और एक ग्राम पंचायत पशुधन सुधार योजना (एलआईपी) विकसित करने का कार्य सौंपा जा सकता है । लोगों और पशुपालन विभाग के साथ चर्चो के आधार पर अगले चार साल के लिए पशुधन सुधार योजना में निम्न लक्ष्य सम्मलित किए जा सकते हैं:

  • गायों और भैंसों का नस्ल सुधार ।
  • बकरियों का नस्ल सुधार ।
  • सभी पशुओं को बीमा कवर के अंतर्गत लाना ।
  • सभी पशुओं का 100 प्रतिशत टीकाकरण, डीवर्मिग और पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल।
  • प्रत्येक घर में पर्याप्त कंपोस्टींग सुनिश्चित करना ।
  • सुनिश्चित करना किपोषण और खनिज पदार्थ की कमी के कारण कोई नुकसान न हो ।
  • डेयरी, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन और सुअर पालन आजीविका गतिविधि प्रारंभ करने में रूचि रखने वाले सभी परिवारों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहयोग और विभागीय सहायता प्रदान कराना ।
  • डेयरी सहकारिता का सुदृढ़ीकरण और मिलावट के प्रति शून्य सहनशीलता ।
  • डेयरी सहकारी संघ के माध्यम से (बाड़े की स्वच्छता सहित) स्वच्छ दूध सुनिश्चित करना।
  • विभिन्न विभागों के साथ अभिसरण ।
  • पैरा श्रमिकों के रूप में पशुपालन पर (महिलाओं सहित) मानव संसाधन का क्षमता निर्माण ।

योजना एवं गतिविधियाँ

योजना को लागू करने के लिए निम्नलिखित गतिविधियाँ आरंभ की जा सकती है:

संवेदीकरण और जागरूकता

पशुओं के प्रबंधन में वैज्ञानिक पद्धतियों के बारे में जागरूकता और जानकारी को पैदा करने, विशेष रूप से टीकाकरण और पर्याप्त पशु स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायत की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

इसके लिए मवेशी/भेड़/बकरी/मुर्गी/सूअरों में महामारी, मौसन जिसमें बीमारी होती है, टीका और टीकाकरण कार्यक्रम की उपलब्धता इत्यादि के बारे में बताते हुए पोस्टर/चार्ट तैयार किए जा सकते हैं और उन्हें ग्राम पंचायत परिसर में लगाया जा सकता है ।

इन चार्ट को स्थानीय पशु पालन अधिकारियों की मदद से तैयार किया जा सकता है। पशुधन सुधार/पशु पालन समिति स्वयं सहायता समूहों के साथ, समुदाय आधारित संगठनो (सीबीओ) और गैर-सरकारी संगठनो (एनजीओ) को भी जागरूकता उत्पन्न करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है ।

पशुपालन विभाग के साथ समन्वयन में कार्य करना

किसी भी ग्राम पंचायत में पशु पालन आजीविकाओं पर पहल की सफलता इस पर निर्भर करती है कि ग्राम पंचायत पशु चिकित्सा विभाग के साथ कितनी अच्छी तरह समन्वय करता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत पशु पालन विभाग की सेवाओं का उपयोग, योजनाओं तक पहुंच, जागरूकता उत्पन्न करने से लेकर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण इत्यादि तक प्रत्येक परिवार की पहुंच सुनिश्चित कर सकती है ।

विभिन्न विभागों एवं संगठनों के साथ अभिसरण

ऊपर चर्चा की गई गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायत को डेयरी सहकारी समितियों, कृषि विभाग और ब्लॉक एवं जिला पंचायतों सहित विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी । ग्राम पंचायत को कृत्रिम गर्भाधान (एआई) की सुविधा के लिए सेवा प्रदाताओं से संपर्क स्थापित करने की भी आवश्यकता होगी। नाड़ेप गड्ढ़े कीड़ा खाद गड्ढ़े और बाड़ों के निर्माण की गतिविधियों को मनरेगा के अंतर्गत किया जा सकता है ।

पशु पालन समिति का गठन और एक वार्षिक कार्य योजना का विकास

ग्राम पंचायत को स्वयं पशुपालन गतिविधियों के दैनिक कार्यान्वयन करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह ग्राम पंचायत की विभिन्न जिम्मेदारियों में से केवल एक है । इसके लिए ग्राम पंचायत को एक पशु पालन समिति के गठन, समिति द्वारा की गई गतिविधियों की एक कार्य योजना और समीक्षा एवं निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । ग्राम पंचायत को यह देखना चाहिए कि समिति यह सुनिश्चित करती है:

  • टीकाकरण और डीवर्मिग कैलेंडर का कार्यान्वयन ।
  • नस्ल सुधार योजना का कार्यान्वयन और पालन ।
  • दुग्ध सहकारी संघ के काम की समीक्षा ।
  • दुग्ध में हो रही मिलावट की जाँच ।
  • आवश्यक परिश्रम उपायों का कार्यान्वयन ।
  • पशु शेड में और आम जगहों पर स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना ।
  • पशुजन्य रोगों की पहचान और उनके रोकथाम और नियंत्रण के लिए उपाय करना ।
  • आवारा पशुओं की समस्या का समाधान उपलब्ध कराना ।
  • चरागाह भूमि पर चराई और प्रबंधन के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • पूरे वर्ष और विशेष रूप से सूखे के दौरान चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • नस्ल सुधार नीति के अनुसार बकरों, बैल और कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था ।
  • आपदाओं के दौरान शवों को हटाने के लिए स्वयंसेवकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना ।
  • महिलाओं सहित पशु पालकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण ।
  • जानवरों के लिए पीने के पानी के विभिन्न स्रोतों के संदूषण की रोकथाम ।
  • संचारी रोगों की सूचना देना और उपचार ।
  • पशुधन से जुड़े कोई भी अन्य कार्य/गतिविधियाँ ।

वैज्ञानिक पशुपालन को प्रोत्साहित कर ग्राम पंचायत उनके क्षेत्र में परिवारों की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव ला सकती है ।

ग्राम सभा के सदस्य के रूप में आपकी भूमिका और जिम्मेदारियां

प्रत्येक ग्राम सभा सदस्य को वैज्ञानिक तौर पर पशु पालन को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी । प्रत्येक घर के सक्रिय समर्थन के बिना पशुपालन से आर्थिक बदलाव लाना संभव नहीं है ।

बुनियादी सिद्धांत यह है कि पूरे ग्राम पंचायत को एक इकाई के रूप में कार्य करना है । चरागाह भूमि पर चराई, पशुओं का समय पर उपचार, टीकाकरण और स्वच्छता, मवेशियों का विपणन, डेयरी आदि से संबंधित मानदंडो को बनाए रखना तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब सभी परिवार इसमें अपनी सहभागिता देते हैं । जब हर कोई इन गतिविधियों में भाग लेता है तो ये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो जाती है ।

ग्राम सभा सदस्यों की जिम्मेदारियां

इसलिए ग्राम पंचायत के प्रयासों को सफल करने के लिए, हर ग्राम सभा सदस्य को:

  • ग्राम पंचायत द्वारा आयोजित प्रत्येक ग्राम सभा की बैठक और अन्य बैठकों में भाग लेना।
  • सामूहिक मानदंडो और निर्णय का पालन (यहाँ तक कि अगर खुली चराई पर रोक से त्याग करना पड़े)।
  • साझी संपत्ति पर अतिक्रमण न करें और दूसरों को अतिक्रमण न करने दें।
  • साझी संपत्ति पर अतिक्रमण को रोकने और हटाने में ग्राम पंचायत की सहायता।
  • खेत की मेड़, निजी चरागाह भूमि और कृषि जोत पर चारा प्रजाति के वृक्षों का रोपण करना ।
  • पशुओं के पीने के पानी के स्रोत को दूषित नहीं करने के लिए नियमों का पालन।
  • जागरूकता उत्पन्न करने वाले कार्यक्रमों में भाग लेना।
  • पर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराने में ग्राम पंचायत और इसकी स्थायी समिति की सहायता।
  • पशु बाड़े की पर्याप्त स्वच्छता और साफ़-सफाई सुनिश्चित करना।
  • कार्यक्रम के अनुसार सभी पशुओं का टीकाकरण और डीवार्मिंग/ कृमिनाशक करने का कार्यक्रम चलाना।
  • ग्राम पंचायत की योजना के अनुसार नस्ल सुधार कार्यक्रम में भाग लेना।
  • पशुपालन और ग्राम पंचायत की स्थायी समिति को किसी भी संक्रामक रोगों के बारे में सूचित करना।
  • पशुधन का समय पर उपचार करना।
  • पशु शव का उचित निपटान सुनिश्चित करना।
  • मिलावट सहित स्वच्छ दूध के सभी घटकों को सुनिश्चित करना।
  • सभी पशुओं के लिए चारा, आहार और खनिज पदार्थ (मिनरल) के लिए पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करें।

पशुओं का बीमा कराना।

ग्राम पंचायत के साथ सहयोग कर और उपरोक्त जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करके प्रत्येक ग्राम सभा सदस्य लाभकारी पशुपालन को बढ़ावा देने में ग्राम पंचायत की सहायता कर सकती हैं।

नस्ल सुधार, प्रजनन और उत्पादकता

अनुत्पादक पशुओं की बड़ी संख्या की समस्या पशुपालन से लाभप्रदता प्रभावित करती है | हमारे देश में, पशुधन की उत्पादकता संभावित की तुलना में बहुत कम है | उत्पादकता में गिरावट की समस्या को उचित देखभाल, पोषण और उचित नस्ल सुधार के उपायों के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है | पशुओं में बांझपन, देर से यौवन, अनियमित कामोत्तेजना, मूक गर्मी, भ्रूण की जल्दी मौत, गर्भपात, गर्भाधान को दोहराना, प्रसवोत्तर कामोत्तेजना के कई जैव भौतिक कारक हो सकते है | इसके अलावा, जानवर पोषक तत्वों की कमी की वजह से बाँझ हो सकता है | जानवरों की कम उत्पादकता के, दोषपूर्ण प्रजनन अभ्यास, विभिन्न चरणों (बढ़ने, गर्भवती, दुहने, प्रसवोत्तर, शुष्क अवधि), में लापरवाही, उचित स्वास्थ्य दे खभाल की कमी (टीकाकरण में अपर्याप्त पोषण, स्वच्छ) और अनुचित प्रबंधन जैसे एक या एक से अधिक कारकों के परिणाम स्वरूप हो सकती है |

राष्ट्रीय पशुधन नीति 2013

राष्ट्रीय पशुधन नीति, 2013 मवेशी और भैस की प्रजनन नीति के लिए निम्नलिखित उपायों पर केंद्रित है:

  • उनके प्रसार, संरक्षण और आनुवंशिक उन्नयन के लिए पशुओं का चिन्हित स्वदेशी नस्लों के चयनात्मक प्रजनन | उनके परिभाषित प्रजनन क्षेत्रों में संकर प्रजनन की घुसपैठ से परहेज किया जाएगा |
  • आदि चारा और पशु आहार तथा विपणन सुविधाओं की पर्याप्त सुविधा वाले चयनित क्षेत्रो में अवर्णित और कम उत्पादक मवेशियों का संबंधित कृषि जलवायु स्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च उत्पादक विदेशी नस्लों के साथ संकर-प्रजनन प्रोत्साहित किया जाएगा |
  • संसाधन की कमी वाले क्षेत्रों में अवर्णित और कम उत्पादक मवेशियों का परिभाषित स्वदेशी नस्लों के साथ उन्नयन और परिभाषित स्वदेशी नस्लों के प्रजनन को प्रोत्साहित किया जाएगा |
  • भैसों की स्थापित देशी नस्लों का चयनात्मक प्रजनन |
  • परिभाषित उच्च दूध देने वाली नस्लों के साथ प्रजनन के माध्यम से कम उत्पादन करने वाली भैंसों का उन्नयन |
  • जहाँ उचित समझा जाए, गैर वर्णित भैंसों की आबादी का उन्नत स्वदेशी नस्लों के साथ संकरण किया जाएगा |
  • वित्तीय, तकनीकी और संगठनात्मक सहायता उपलब्ध कराने के द्वारा उच्च आनुवंशिक क्षमता वाले प्रजनन नर पशुओं के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा |

राज्य नीति

प्रत्येक राज्य की पशुधन में सुधार के लिए नीति है | ग्राम पंचायत को राज्य की नीति प्राप्त करना चाहिए और इस पर चर्चा करने के लिए पशुपालन विभाग के किसी अधिकारी से मिलना चाहिए | हम पशुओं के विभिन्न प्रकारों के लिए महाराष्ट्र राज्य की नीति पर चर्चा करेंगे |

महाराष्ट्र राज्य की नीति, नस्ल सुधार द्वारा गायों की उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ देशी नस्लों और गुणवत्ता बैलों का संरक्षण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करती है | दूध उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के इए, आनुवंशिक रूप से उन्नत जानवरों के अनुपात के मामले में गैर वर्णित आबादी के वर्तमान 37 प्रतिशत की (2009) के स्तर को 2017 के अंत तक 60 प्रतिशत पर, आगे 2025 तक 80 प्रतिशत करने का उद्देश्य है |

संकर नस्लों पर नियंत्रण (इष्टतम विदेशी रक्त)

अनुत्पादक और गैर-वर्णित गायों और भैंसों की बड़ी संख्या एक प्रमुख समस्या है जिसका ग्राम पंचायतों को सामना करना पड़ता है | अंधाधुंध प्रजनन मवेशियों और भैंसों में कम उत्पादकता के मुख्य कारणों में से एक है | एक ओर, बहुत ही उत्पादक स्वदेशी नस्लें विलुप्त होने की समस्या का सामना कर रही हैं वही अन्य कई शुद्ध नस्ल के पशुओं को गलत तरीके से संकर किया गया है | इन सबकी वजह से औसत उत्पादकता में गिरावट आई है | इसलिए, हर ग्राम पंचायत निम्नलिखित सामान्य सिद्धांतों पर अपनी ग्राम पंचायत के लिए एक समयबद्ध प्रजनन योजना पर कार्य कर सकती है:

  • वर्णित नस्लों वाली गायों और भैंसों के मामले में शुद्ध प्रजनन आवश्यक है | विदेशी गायों के लिए भी यही नियम लागू है | शुद्ध नस्ल की किसी भी गाय या भैंस का अन्य देशी या विदेशी नस्ल के साथ संकर प्रजनन नहीं कराना चाहिए |
  • जिनका वर्णन प्राप्त न हो ऐसी सभी गायों में संकर प्रजनन का सुझाव दिया गया है | जहाँ सिंचित कृषि और हरी पैदावार की उपलब्धता का आश्वासन दिया जा सकता है, ऐसे क्षेत्रों में सभी अवर्णित गायों के लिए हॉल्स्टीन फ्रिसियाई के साथ संकर प्रजनन अपनाना चाहिए | जबकि, (पहाड़ी मार्ग सहित) हरे चारे की कमी और वर्षा सिंचित क्षेत्रों में सभी वर्णनातीत गायों के लिए जर्सी नस्ल के साथ संकर प्रजनन को अपनाना चाहिए |
  • संकर गायों (विदेशी रक्त स्तर 50-75 फीसदी सीमा के भीतर बनाए रखा जा सकता है) का गर्भाधान संकर सांडों के वीर्य के साथ किया जा रहा है |
  • भैंसों की स्थानीय वर्णित नस्लों का उपयोग कर वर्णनातीत भैंसों का उन्नयन |
  • किसी भी जानवर को बिना जानवर के मालिक और चिकित्सक के उचित विवरण दर्ज करें बगैर प्रजनन नही किया जाना चाहिए |

कृत्रिम गर्भाधान (एआई)

ग्रामीण स्थितियों के अंतर्गत पशुओं की कम उत्पादकता का मुख्य कारण कम आनुवंशिक क्षमता है | प्रजनन के प्रबंधन पर ध्यान देकर इस पर काबू पाना संभव है | यह कृत्रिम गर्भाधान (एआई) के माध्यम से संभव हो सकता है | इस तकनीक को हर किसान के दरवाजे पर उपलब्ध कराया जा सकता है |

कृत्रिम गर्भाधान (एआई) हमारे देश में विशेष रूप से उपयोगी है जहाँ गुणवत्ता युक्त नरों (पशुओं) की कमी नस्ल सुधार में मुख्य बाधा बनी हुई है | यह मादा पशुओं के प्रजनन मार्ग में अभिजात वर्ग के नर (पशुओं) के वीर्य को कृत्रिम रूप से प्रविष्ट कराने की तकनीक है |

डेयरी पशुओं के प्रजनन में कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के कई फायदे हैं | ये हैं:

  • एआई के इस्तेमाल से (वीर्य को कई उपयोगों में प्रयोग करने के लिए विभाजित किया जा सकता है) एक ही बैल के बछड़ों की संख्या में वृद्धि करना संभव होता है |
  • एआई संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने में मदद करता है |
  • एआई आनुवंशिक सुधार की दर को बढाता है |
  • एआई से विभिन्न आकार के पशुओं के संभोग की समस्या पर काबू पाया जा सकता है |
  • एआई सेवा से पहले वीर्य के नमूने के चरित्र का निर्धारण करने का एक आसान तरीका प्रदान करता है |
  • एआई से अच्छी गुणवत्ता के बैल की व्यवस्था की कठिनाई पर काबू पाया जा सकता है |
  • बेहतर पशु सेवाओं को बढ़ाया जा सकता है |
  • बैल के रखरखाव पर होने वाले खर्च को नहीं उठाना पड़ता |

राज्य प्रजनन नीति के बारे में जागरूकता और उसका अनुपालन

वांछित परिवर्तन लाने के लिए पशुधन रखवाले की प्रजनन के बारे में जागरूकता महत्वपूर्ण है | इस दिशा में, निम्नलिखित सुनिश्चित करने के लिए ग्राम पंचायत सदस्यों को सामूहिक रूप से काम करना होगा |

  • मवेशी/भैस/भेड़/बकरी की भारतीय नस्लों को उसी नस्ल के विशिष्ट/बेहतर नर के साथ मादाओं के गर्भाधान से उन्नत किया जाना चाहिए |
  • गैर-वर्णित पशुओं को बेहतर भारतीय नस्लों के नर या विदेशी नस्लों के द्वारा गर्भाधान करा कर नस्ल सुधार कराना चाहिए |
  • प्रयोग की जाने वाली विदेशी नस्ल का जलवायु की परिस्थितियों और मालिक की आर्थिक क्षमता जैसे कारकों के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए | उदाहरण के लिए, होलस्टेइन को उन क्षेत्रों में प्रोत्साहित किया जा सकता है जहाँ सिंचाई की सुविधाएँ मौजूद हैं और मालिकों के पास वित्तीय ताकत है | जबकि जर्सी नस्ल वहाँ प्रोत्साहित किया जा सकता है जहाँ कठोर वातावरण में जहाँ उपलब्धता दुर्लभ है और मालिक की वित्तीय क्षमता सीमित हो |

राज्य प्रजनन नीति के आधार पर ग्राम पंचायत ग्राम की पशु पालन समिति से ग्राम पंचायत के पशुओं की नस्ल सुधार के लिए एक वार्षिक योजना विकसित करने के लिए कहेंगे | पंचायत के अध्यक्ष ने अन्य वार्ड सदस्यों के साथ ग्राम पंचायत अपने कार्यकाल के पूरा होने से पहले 60 प्रतिशत नस्ल सुधार सुनिश्चित करने का संकल्प लिया | पिछली बैठक में की गई चर्चा के अनुसार पोषण में सुधार के माध्यम से, बांझपन की समस्या को भी संबोधित किया जाएगा |

मवेशी/भैस/बकरी और भेड़ का प्रजनन कैलेंडर

प्रजनन पैमाना गायें भैंसे बकरी भेड़
देशी विदेशी संकर देशी विदेशी
एक साथ पैदा हुए 01 01 01 01 01 03.04 02
जन्म के समय वजन (किलो) 20 28 24 32 22 1.5 1.5
पहली कामोत्तेजना के 15 09 12 18 24 09 12
पहली कामोत्तेजना के 250 250 250 275 275 20 20
प्रजनन के बीच अंतराल 12 12 12 14 14 08 08
प्रजनन जीवनकाल 16 18 18 15 13 12 12
प्रसवोत्तर कामोत्तेजना (दिन) 60 60 60 90 90 30 30
प्रजनन का मौसम पूरे कैलेंडर वर्ष फरवरी-जुलाई
प्रजनन के अवधि पूरे कैलेंडर वर्ष अगस्त-सितंबर जनवरी-जून
गर्भावस्था की अवधि (दिन) 275 275 275 310 310 150 150

सफल प्रजनन में शामिल है

  • स्वस्थ बछड़े का जन्म के समय अधिकतम वजन
  • सामान्य और आसान प्रसव
  • प्रसवोत्तर चक्र की शीघ्र बहाली
  • दूध उत्पादन का जल्दी बढना
  • शून्य प्रसवोत्तर जटिलताएं और उपापचयी समस्याएं
  • सकारात्मक प्रसवोत्तर ऊर्जा संतुलन
  • प्रजनन के बाद शरीर के वजन का शीघ्र लाभ |

एक मिशन के रूप में नस्ल सुधार

नस्ल सुधार के उपायों के महत्व और जरूरत के बारे में सीखने के बाद, दुधिया ग्राम पंचायत ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले सभी पशुओं के 60 प्रतिशत के नस्ल सुधार का कार्य करने का संकल्प लिया | इसके लिए ग्राम पंचायत ने प्रत्येक प्रकार के पशुओं के लिए राज्य की नीति का पालन किया | ग्राम सभा ने मानदंड निर्धारित किए जिनका ग्राम पंचायत द्वारा पशुपालन विभाग के अभिसरण और समर्थन से ग्रामीणों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित किया गया |

पंचायत में पशुपालन की महत्वपूर्ण गतिविधियाँ

कृषि की तरह पशुपालन में भी विभिन्न सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों की एक बड़ी संख्या संलग्न है । ग्राम पंचायत में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए, बुनियादी ढांचे को अच्छा समर्थन देने के प्रयास शुरू किए जाने चाहिए । इसके लिए एक उत्पादक और अच्छी तरह से प्रबंधित चरागाह, और पर्याप्त संदूषण मुक्त सार्वजनिक पीने के पानी की सुविधा और ऋण, पशुपालन विभाग, प्रशिक्षित संसाधन व्यक्तियों की सेवाओं और बाजार तक पहुंच शामिल है। इस दिशा में ग्राम पंचायत को एक सुनियोजित तरीके से कार्य आरंभ करने की जरूरत है । इन सभी गतिविधियों का क्रियान्वयन करते समय यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हम सामाजिक और समानता के मुद्दों को पर्याप्त रूप से संबोधित कर रहे हैं । यह समाज के सभी वर्गो और क्षेत्रों से परिवारों की भागीदारी की जरूरत है इसलिए इसमें समाज के सभी वर्गों और सभी परिवारों का भाग लेना आवश्यक है ।

पशुपालन के लिए समग्र योजना

ग्राम पंचायतों को आरंभ की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के लिए सभी हितधारकों के साथ योजना बनाने की जरूरत है । ग्राम पंचायत द्वारा लिए गए सामूहिक निर्णय और मानदंडों का पालन करते हुए चारा सुरक्षा, आनुवंशिक और नस्ल सुधार, टीकाकरण, डीवर्मिग और पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल की दिशा में प्रयास कर सबसे अच्छा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है । समुदाय की प्रभावी सहभागिता सुनिश्चित की जानी जरूरी है ।

चरागाह भूमि प्रबंधन

ग्राम पंचायतों में उपलब्ध चरागाह भूमि या साझा भूमि का पशुओं की चराई के लिए उपयोग किया जाता है । देश भर में इन आम संसाधनों पर अतिक्रमण देखा गया है । इसके अलावा, खुली चराई के लिए उपलब्ध आम भूमि को कम कर इस भूमि में से कुछ को फिर से वितरित किया गया है । ग्राम पंचायत चरागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने और चरागाह भूमि के विकास की गतिविधियों को शुरू कर सकता है । अतिक्रमण हटाए जाने के दौरान, ग्राम पंचायत को प्रारंभिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है । इसलिए ऐसे किसी भी उपाय पर कार्रवाई को शुरू करने से पहले ग्राम सभा में चर्चा की जाना आवश्यक है ।

रुकावटों को पार करते दुधिया ग्राम पंचायत के अनुभव

चरागाह भूमि के अतिक्रमण हटाने के प्रयासों का विरोध किया गया था । किसी ने भी विनियमित चराई नियम का पालन नहीं किया । ग्राम सभा को फिर से बुलाया गया था और पशुपालन में सुधार के लिए आवश्यक विभिन्न गतिविधियों को शुरू करने के लिए सर्वसम्मती से निर्णय लिया गया । ग्राम सभा के सदस्यों ने ग्राम पंचायत को अपने समर्थन और भागीदारी का आश्वासन दिया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रयास समावेशी होने चाहिए । इसी तरह यह भी निर्णय लिया गया की ग्राम पंचायत की इस पहल से सभी घरों विशेषकर महिलाओं की चिंताओं का समाधान व लाभ सुनिश्चित किया जाएगा ।

ग्राम पंचायतें मनरेगा और वन विभाग के कार्यक्रमों के अंतर्गत सामाजिक वानिकी सहित वनीकरण गतिविधियों को शुरू कर सकती हैं । सभी हितधारकों को शामिल कर एक उचित चारा विकास और वितरण तंत्र विकसित किया जाना चाहिए ।

जल निकायों का रखरखाव और कायाकल्प

पीने के पानी की उचित सुविधा के अभाव में जहाँ पशुओं को पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सकता है पशु अक्सर दूषित स्त्रोतों से पानी पीते है जो आमतौर पर रुग्णता और फलस्वरूप उत्पादकता में नुकसान का कारण बनता है । ग्राम पंचायत मौजूदा जल निकायों के रखरखाव और कायाकल्प के साथ-साथ पीने के पानी (प्लेटफार्मों आदि) के नए स्त्रोतों के निर्माण के लिए कार्य कर सकती हैं । साथ ही, ग्राम पंचायत जल स्त्रोतों को दूषित होने से रोकने में ग्राम सभा के सदस्यों में कर्त्तव्यों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रयास आरंभ कर सकते हैं । खुले में शौच और जल निकायों के पास अपशिष्टों और मृत पशुओं के निपटान पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत कुछ उपाय आरंभ कर सकती है ।

अभिसरण (वित्तीय संस्थानों, पशु चिकित्सा विभाग और दुग्ध सहकारी संघ)

ग्राम पंचायतें वित्तीय संस्थान तक ग्रामीणों की पहुंच बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । वे पशुपालन विभाग, परिवारों के लिए अधिक सुलभ दुग्ध सहकारी समितियों और प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण संस्थानों का निर्माण कर सकती हैं । कभी-कभी परिवारों को स्थानीय दूध विक्रेताओं के चंगुल में फंसा पाया जाता है, जो उन्हें कम दर पर दूध बेचने के लिए मजबूर करते हैं । इसी तरह, संकट के समय, कुछ घरों अपने पशुओं को बेचने के लिए मजबूर हो जाते है ।

अक्सर, संकट और ऋणग्रस्तता के कारण, इन परिवारों में अच्छी सौदेबाजी की शक्ति नहीं होती और ये प्रचलित बाजार दर से कम कीमत पर दूध बेचते हैं । बैंकों और सहकारी समितियों से जुड़ाव इन परिवारों की स्थिति को मजबूत कर सकता है ।

प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और जागरूकता निर्माण

जागरूकता की कमी पशु पालन से कम लाभ होने के कारणों में से एक है । लोगों में पशुओं के पोषण, रोग नियंत्रण, टिकाकरण, प्रजनन और सामान्य स्वास्थ्य देखभाल के बारे में अपर्याप्त जागरूकता और समझ है। पशुपालन प्रथाएं भी मिथकों और अंधविश्वासों से प्रभावित हैं। इससे कई बार आर्थिक नुकसान के साथ ही पशुओं के स्वास्थ्य और जीवन का भी नुकसान होता है । इसलिए, ग्राम पंचायत को जागरूकता सुनिश्चित करने की योजना बनाने के प्रयास करने चाहिए। ग्राम पंचायत के इच्छुक व्यक्तियों का प्रशिक्षण शुरू करने के लिए पशु पालन विभाग से संपर्क किया जा सकता है ।

सुश्री आशा किरण, वार्ड सदस्य और ग्राम पंचायत में तैनात पशुपालन विभाग पदाधिकारी सहित 15 सदस्यों की एक स्थायी समिति का गठन किया गया था । सुश्री आशा किरण, और श्री किशन गोपाल को पशुपालन पर प्रशिक्षण के लिए भेजने के ग्राम पंचायत के प्रस्ताव की ग्राम सभा द्वारा मंजूरी व अनुशंसा की गई ।

प्रशिक्षण के बाद गाँव में वापसी पर उन्होंने पशुपालन के विभिन्न पहलुओं पर ग्रामीणों की जागरूकता और क्षमता निर्माण का कार्यक्रम चलाया । बैठक के लिए सप्ताह में एक दिन तय किया गया था और परिवारों को इन बैठकों में भाग लेने (सभी बैठकों में एक ही सदस्य) के लिए सूचित किया गया, जिनमें पशुपालन विभाग के प्रतिनिधि भी नियमित रूप से भाग लेते हैं। प्रत्येक बैठक में चर्चा करने के बाद ग्राम पंचायत ने निर्णय लिया और पिछली बैठकों की कार्रवाई के अनुपालन की समीक्षा की ।

समता और पहुंच सुनिश्चित करना

पशुपालन गतिविधियों को सफल बनाने के लिए, ग्राम पंचायत को अपनी सभी गतिविधियों में समता और पहुंच सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है ।

  • ग्राम पंचायत को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके हस्तक्षेप से समाज के सभी वर्गो को लाभ हो । उदाहरण के लिए, ग्राम पंचायत को चरागाह विकास, पशुओं के लिए पेयजल की सुविधा, टीकाकरण और प्रशिक्षण आदि गतिविधियों को सभी के लिए समान रूप से सुलभ कराने के प्रयास करने चाहिए । घर के अधिक दूरी, या कोई भी अन्य सामाजिक या आर्थिक आयाम किसी भी परिवार के लिए वित्तीय संस्थानों, दुग्ध सहकारी संघों या पशुपालन विभाग से लाभ प्राप्त करने में बाधित न करें । ग्राम पंचायत को पशुपालन से संबंधित सभी फैसलों और गतिविधियों में सभी की पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए ।
  • पशुओं से रोजमर्रा की रखरखाव की जिम्मेदारी अक्सर महिलाओं पर डाल दी जाती है । उन्हें बकरियों या अन्य जानवरों की देखभाल करनी होती है, जिसके लिए कुछ लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती है । लेंकिन निर्णय लेने, विपणन और प्रशिक्षण में महिलाओं को उपयुक्त भूमिका नहीं दी जाती है । इसलिए ग्राम पंचायत द्वारा गतिविधियों पर निर्णय लेने, पशुपालन पर हस्तक्षेप और प्रशिक्षण में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
  • पशुपालन पर ग्राम पंचायत का प्रयास अन्य सभी उपायों की तरह सभी जाति समूहों के लिए समावेशी होना चाहिए । यह पशुपालन हस्तक्षेपों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ जाति समूह विशेष प्रकार के पशुओं के पालन में शामिल हैं । इसलिए ग्राम पंचायत का डेयरी, मुर्गी पालन, मछली पालन और सुअर पालन जैसे पशुओं के विभिन्न प्रकारों पर एक साथ काम करना महत्वपूर्ण है ।

महामारी के दौरान ग्राम पंचायत की भूमिका

संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने, बड़े पैमाने पर मृत्यु होने और प्राकृतिक आपदाओं जैसी महामारी के दौरान ग्राम पंचायतों को एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है । ऐसे समय में, ग्राम पंचायत को सुनिश्चित करना चाहिए –

  • संक्रमित/बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग किया जा रहा है ।
  • मृत पशुओं के शवों के उचित निपटान के माध्यम से यह सुनिश्चित करें कि कुत्ते, कौवे आदि मृत पशुओं को खा न सकें। इससे रोग फ़ैल सकता है ।
  • लोगों द्वारा मरे हुए पशुओं का उपभोग नहीं किया जाए।
  • सुनिश्चित करें कि मृत पशु के चारे और सुखी घास को जला दिया गया है ।
  • कीड़े, मक्खियों, पिस्सुओं, घुनों और मच्छरों को नियंत्रित करें क्योंकि वे संक्रामक रोगों का प्रसार कर सकते हैं ।
  • अगर पड़ोसी ग्राम पंचायतों में प्रकोप की सूचना मिलती है तो तत्काल निवारक टीकाकरण करें ।
  • क्षेत्र में स्थानिक रोगों और इनकी रोकथाम के बारे में जानकारी का प्रसार ।

स्थायी समिति

उपरोक्त गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायत द्वारा पशुपालन/पशु सुधारक समिति पर एक स्थायी समिति का गठन किया जा सकता है । स्थायी समिति का ततं राज्य के पंचायती राज अधिनियम के अनुसार किया जा सकता है ।

उदाहरणार्थ महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1958 के अनुसार, ग्राम पंचायत एक पशु पालन/सुधार समिति गठित कर सकती है । समिति में सदस्यों की संख्या 12-24 तक हो सकती है। समिति में कम से कम तीन निर्वाचित सदस्यों के साथ-साथ सरकारी पदाधिकारी तथा ग्राम पंचायत के स्वयंसेवक समिति के सदस्य हो सकते हैं ।

समिति को विभिन्न कार्य सौंपे जा सकते है और समय-समय पर ग्राम पंचायत द्वारा इसके कार्यों की समीक्षा की जाएगी।

पशुपालन को लाभकारी कैसे बनाएं

उत्पादकता में वृद्धि से लाभप्रदता बढ़ जाती है। इसलिए, निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने की आवश्यकता है –

  • स्वस्थ शावक का जन्म
  • नवजात शावक का शीघ्र विकास
  • लगातार दो प्रजनन/शावक/मेमने का जन्म के बीच कम अंतराल
  • अधिकतम प्रजनन/शावक/मेमने का जन्म जीवनकाल
  • न्यूनतम विर्यारोपण के साथ गर्भाधान

पशु स्वास्थ्य देखभाल

 पशु स्वास्थ्य देखभाल पशुपालन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। पशु के स्वास्थ्य पर अपर्याप्त ध्यान कम उत्पादकता, स्थायी विकलांगता और जानवर के जीवन की हानि के रूप में पशुपालन करने वाले परिवारों के लिए भारी नुकसान का कारण हो सकता है। इसलिए मनुष्यों की तरह पशुओं के लिए भी समय पर टीकाकरण और डीवर्मिग(कृमिनाशक)जैसे स्वास्थ्य देखभाल के उपाय करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा जब भी पशु बीमारी के लक्षण दिखाता है, तत्काल पशु चिकित्सक की सलाह लेना चाहिए।

संक्रामक रोग एवं आंतरिक रोग

संक्रामक रोगों के फैलने और आंतरिक/बाहिरी परजीवी पशुधन की मृत्यु के दो प्रमुख कारण होते हैं। संक्रामक रोग वर्ष के दौरान नियमित समय पर महामारी के रूप में होते हैं। टीकाकरण के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। अब लगभग सभी प्रमुख संक्रामक रोगों के लिए टीके उपलब्ध हैं ।

परजीवी वर्ष भर रहने वाली समस्या है जिसे डीवर्मिग/कृमिनाशक से नियंत्रित किया जा सकता है । पशुओं के रक्त, आंतरिक अंगों (आँतों, जिगर, आमाशय और फेफड़ों) और त्वचा पर अनेक जीव, कीड़े और कृमि रहते हैं। ये परजीवी पशुओं की उत्पादकता को कम कर देते हैं। इसलिए हर पशु मालिक को पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार इन परजीवियों से अपने पशुधन की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए। बाहिरी परजीवियों (चिचड़ी, मक्खियों, पिस्सुओं, घुन और आंतरिक (गोल कृमि, हुक कृमि, और फ्लक्स) के लिए भी प्रभावी दवाएं उपलब्ध हैं।

जानवर में बीमारी की पहचान कैसे करें?

पशु बात नहीं कर सकते, लेकिन वे संवाद कर सकते हैं। देरी से उपचार आरंभ करने से उत्पादकता और जीवन की भी हानि हो सकती है, इसलिए उनके संवाद की पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण है।

एक बीमार पशु में उपरोक्त लक्षणों में से एक या एक से अधिक दिखाई देता है तो,वह बीमार माना जा सकता है और पशु चिकित्सक की सलाह मांगी जा सकती है।

इन लक्षणों में से कुछ है:

स्वस्थ पशु के लक्षण बीमार पशु के लक्षण
  • गोल घूमता है, चुस्त लगता है, अच्छी तरह से खाता पीता है, जुगाली करता है और हमेशा साथी जानवरों के साथ रहने की कोशिश करता है ।

 

  • सिर उठा रहता है, कान खड़े और आगे की ओर रहते है ।

 

  • त्वचा चमकती है, बाल चमकदार और रेशमी होते हैं। त्वचा को छूने पर कंपन होती है। त्वचा से मक्खियों को दूर भगाने के लिए लगातार पुंछ का प्रयोग करता है।

 

  • अपने चारों पैरों पर खड़ा होता है, बिना किसी असुविधा के आसानी से खड़ा होता, चलता और बैठता है।

 

  • गोबर में चिकनाइट और अर्ध-तरल निरंतरता रहती है। भेड़ और बकरियों के मलमूत्र छर्रेदार होते हैं। मूत्र हल्का पीला होता है।

 

  • आँखें उज्ज्वल, थूथन ठंडी और नम रहती हैं। प्राकृतिक छिद्रों से कोई असामान्य और बदबूदार स्राव नहीं होता है।

 

  • दुधारू पशु मात्रा और गुणवत्ता के लिहाज से सामान्य दूध का उत्पादन करते हैं ।
    • झुंड से दूरी बना लेता है ।
 

  • लगातार नीचे बैठता-उठता रहता है, हवा में पैर चलाता है, अपनी पूंछ उठाता है,अपने सिर को चरनी, दीवार या पेड़ पर दबाता है। ये पशुओं की परेशानी के संकेत है ।

 

  • लेट सकता है, अपने पैरों को फैला सकता है। अगर लेटा हो तो उठने की कोशिश नहीं करता है, जब खड़ा हो चलने की कोशिश नहीं करता है । ध्वनि कमजोर या कठोर हो जाती है।

 

  • एक पैर को ऊपर उठाकर अपनी पीठ को झुकाकर या उस पर दबाव डाल कर खड़े हो सकते हैं।

 

  • जुगाली या तो पूरी तरह से बंद हो जाती है या इसकी आवृत्ति कम हो जाती है।
  • श्वसन त्वरित या धीमा हो जाता है।

 

  • मलमूत्र (मल) सख्त या पानी जैसा हो सकता है ।

टीकाकरण और डीवर्मिग/कृमिनाशक के बारे में ध्यान देने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बिंदु

  • टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार निर्धारित रूप में प्रदान किया जाना चाहिए ।
  • सभी जानवरों को टीकाकरण से कम से कम एक सप्ताह पूर्व कीटनाशकों का छिड़काव और डीवर्मिग/कृमिनाशक की दवा दी जानी चाहिए। यह जानवर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है ।
  • सभी जानवरों को एक साथ (छोटे बड़े स्वस्थ या कमजोर) टीका लगाया जाना चाहिए ।
  • टीके के नाम, बीमारी का नाम जिसके लिए इसका उपयोग किया गया हो, उत्पादन करने वाली फर्म, बैच नंबर, निर्माण और समाप्ति की तिथि सहित टीके के बारे में सभी जानकारी बनाए रखी जानी चाहिए।
  • टीकाकरण के बाद भूख, बुखार और दूध उत्पादन में कमी आम लक्षण हैं। या प्रभाव अस्थायी है और इनके लिए किसी इलाज की आवश्यकता नहीं होती है ।
  • टीकाकरण के तुरन्त बाद पशु को तनाव में नहीं रखा जाना चाहिए। उन्हें ठीक के खिलाना और विश्राम करने देना चाहिए।
  • पशु को टीका लगाए जाने तक टीके को ठंडी श्रृंखला में बनाए रखा जाना चाहिए ।

नियमित रूप से कृमि निवारक और समय पर टीकाकरण द्वारा, उत्पादकता घाटे के एक प्रमुख कारण से बचा जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी पशु बीमारी के लक्षण दिखाता है पशुओं के स्वास्थ्य देखभाल के लिए समय पर कार्रवाई करने की जरूरत है। पशुपालन/पशुधन संबंधी स्थायी समिति बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान और पशुपालन विभाग के सहयोग से लोगों को जागरूक बनाने की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है ।

पशुओं के लिए टीकाकरण अनुसूची

रोग किस जानवर को टीका लगाया जाना चाहिए टीका कब लगाया जाना चाहिए
रक्तस्रावी पूति (हैमरेजिक सेप्टिसीमिया) (एचएस) मवेशी, भैंस, भेड़ और बकरियां

 

हर साल बरसात के मौसम से पहले
ब्लैक क्वार्टर्स (बीक्यू) मवेशी, भैंस, भेड़ और बकरियां

 

हर साल बरसात के मौसम से पहले
बिसहरिया मवेशी, भैंस, भेड़ और बकरियां

 

केवल जब रोग उभरे
इंट्रोटोक्सेमिया भेड़ और बकरियां हर साल बरसात के मौसम से पहले
पीपीआर (पेटिस डेस पेस्टिस रुमिनन्ट्स)

 

भेड़ और बकरियां बरसात के मौसम से पहले
खुर और मुँह के रोग (एफएमडी) मवेशी, भैंस, सुअर, भेड़ और बकरियां

 

  • बछड़ों के लिए पहली खुराक 3 महीने की उम्र के बाद, 6 महीने के बाद समर्थक (बूस्टर) खुराक
  • संकर नस्ल के पशु को हर छह महीने पर, देशी वयस्क पशुओं को हर साल एक बार प्रतिरक्षित किया जाना चाहिए

 

स्वाइन फीवर सुअर साल में एक बार

हम पशुओं को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं?

  • सफाई और स्वच्छता बनाए रख कर
  • पर्याप्त हरा और सूखा चारा उपलब्ध करा कर
  • पूरक पोषण (यहाँ तक कि घर का बना) और खनिज पदार्थ प्रदान कर
  • स्वच्छ चारा उपलब्ध करा कर (दूषित और कवक से पीड़ित नहीं)
  • साफ़ और पीने योग्य पानी उपलब्ध करा कर
  • नियमित और समय पर डीवर्मिग/कृमिनाशक और टीकाकरण करने के द्वारा
  • पर्याप्त और समय पर चिकित्सा सहायता के द्वारा

दुधिया को एहसास हुआ स्वास्थ्य ही धन है

दुधिया ग्राम पंचायत के लोगों को इस बात का एहसास करने में अधिक समय की आवश्यकता नहीं पड़ी कि केवल स्वस्थ पशुओं से ही सफल और लाभदायक पशुपालन किया जा सकता है । इसके लिए बाड़े में स्वच्छता, पीने का सुरक्षित पानी और पशु की सफाई और स्वच्छता बनाए रखना अत्याधिक महत्वपूर्ण है । ग्राम सभा में यह संकल्प लिया गया कि गाँव में प्रत्येक पशु का समय पर टीकाकरण और नियमित रूप से डीवर्मिग/कृमिनाशक किया जाएगा। ग्राम पंचायत ने स्थायी समिति, दुधिया पशु पालन समिति से पशुओं की गणना करने और विभाग से टीकाकरण और स्वच्छ दवाओं के लिए एक मांग रखने के लिए कहा। इस तरह के एक छोटे से उपाय से, रुग्णता और पशुओं की मृत्यु से होने वाला घाटा काफी कम हो गया था। बेहतर पोषण ने भी काफी हद तक पशुओं की कम उत्पादकता की समस्याओं का समाधान किया ।

पशुपालन और दुधिया ग्राम पंचायत की कहानी

आमतौर पर लोगों को लगता है की पशुधन एक निजी आर्थिक गतिविधि है इसलिए ग्राम पंचायत (ग्राम पंचायत) की इसमें कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं हो सकती | दुधिया ग्राम पंचायत के नव निर्वाचित सदस्यों के सामने यही सवाल था |

जनवरी 2009 में ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों के रूप में निर्वाचित होने के बाद सरपंच और नौ अन्य वार्ड सदस्य सरकारी पदाधिकारियों के साथ मिलकर ग्राम पंचायत के परिवारों के आर्थिक विकास के लिए योजना बना रहे थे | कृषि और पशुपालन पंचायत में परिवारों के प्राथमिक व्यवसाय हैं लेकिन गंभीर नुकसानों ने इस व्यवसाय को अलाभकारी बना दिया था | परिणामस्वरूप, कई परिवारों ने काम की तलाश में गाँव छोड़ दिया | पिछले वर्ष पंचायत के 20 परिवार काम की तलाश में स्थायी रूप से शहर पलायन कर गए | इस प्रकार पिछले पाँच वर्षो में कुल 143 परिवार गाँव से शहरों को चले गए थे | ऐसी स्थिति में परिवारों पर कर्ज का औसत बोझ बढ़ रहा था, खेत परती छोड़े जा रहे थे और जानवरों को बेचा जा रहा था |

ग्राम पंचायत के सदस्यों ने खुद को एक कठिन परिस्थिति में पाया | उन्होंने ब्लॉक पंचायत से सम्पर्क करने का फैसला किया और उनसे मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया | ब्लॉक पंचायत के अध्यक्ष ने समस्या को हल करने के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों की एक बैठक बुलाई| इस बैठक में यह महसूस किया गया कि दुधिया ग्राम पंचायत को कृषि और पशुपालन दोनों पर काम करने की जरूरत है | ग्रामीणों के आर्थिक विकास के लिए उत्पादक खेतों की और उत्पादक खेतों के लिए पर्याप्त पशुधन की आवश्यकता थी | लेकिन दुधिया ग्राम पंचायत में अक्सर सूखा पड़ता था और हरे चारे की कमी सामान्य वर्षा वाले सालों में भी एक बड़ा मुद्दा था| तो प्रश्न यह था कि पशुपालन को लाभदायक कैसे बनाया जा सकता है और चारा, पशु आहार और पानी की उपलब्धता को किस तरह से सुनिश्चित किया जा सकता है?

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए ग्राम पंचायत ने अगले सप्ताह ग्राम सभा की एक बैठक आयोजित की जिसमें एक अस्थायी समिति का गठन किया गया था | समिति में तेरह सदस्य शामिल किये गये | ग्राम पंचायत ने समिति से पशुपालन विभाग के कर्मचारियों की मदद से पंचायत में पशु-पालन व्यवसाय के विभिन्न मुद्दों और इस संबंध में आवश्यक प्रयास का आकलन से पता चला कि पशुपालन जो परिवारों की आय का मुख्य जरिया था, पिछले एक दशक में नष्ट चुका था | पशुओं के दूध का विपणन और पशु स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवश्यक समर्थन संरचना धीरे-धीरे अप्रभावी होती जा रही थी | पशु चिकित्सा पर खर्च बढ़ गया था, जिसका पशु स्वास्थ्य देखभाल पर नकारात्मक असर पड़ा था | चारे की अनुपलब्धता के कारण सीमांत परिवार बकरी पालन करने लगे थे | काम की तलाश में लोगों के गाँव से पलायन करने की वजह से गाय और भैंसों की संख्या में भी काफी कमी आई थी |

ग्राम पंचायत की भूमिका

दुधिया गाँव में, इस परिदृश्य और पशुधन की स्थिति को ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया|  चर्चा के बाद ग्राम सभा ने निर्णय लिया कि ग्राम पंचायत को निम्नलिखित पहलुओं पर प्राथमिकता पर काम करना चाहिए:

  • चराई की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराना और उनके कायाकल्प के प्रयास
  • सरकारी योजनाओं में पहुंच और समानता के मुद्दों को संबोधित करना
  • पोषण प्रबंधन (चारा, पूरक आहार, खनिज पदार्थ)
  • पशु स्वास्थ्य देखभाल (टीकाकरण सहित)
  • नस्ल सुधार, प्रजनन और उत्पादकता
  • बीमा और अन्य समर्थन सेवाएँ
  • स्वच्छता, सफाई और मवेशियों का दैनिक रखरखाव
  • पशु पालन समिति का सशक्तिकरण
  • योजना और अभिसरण
  • डेयरी को बढ़ावा देना
  • छोटे पशुओं, मुर्गी और सुअर पालन इत्यादि गतिविधियों को प्रोत्साहित करना

पशुपालन विभाग की ओर से समर्थन की मांग की और ग्राम पंचायत में स्वयं सहायता समूह(एसएचजी) के साथ सहयोग किया तथा पाँच साल में पशुपालन का परिदृश्य बदल दिया | अब 2015 में औसतन 1200 लीटर से अधिक के दैनिक दुग्ध उत्पादन के साथ पशुपालन, परिवारों की औसत वार्षिक आय में लगभग 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे रहा

प्रत्येक ग्राम पंचायत इस तरह का परिवर्तन ला सकती है | लेकिन इसके लिए पशुपालन के मुख्य मुद्दों और समस्याओं को समझना और इन्हें संबोधित करने के लिए रणनीतियाँ और गतिविधियाँ बनाना आवश्यक हैं |

किस प्रकार एक ग्राम पंचायत द्वारा वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से लाभप्रद पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए की जाने वाली रणनीतियों और गतिविधियों के बारे में हम आगे के लेखों में सीखेंगे | हम दुधिया ग्राम पंचायत द्वारा शुरू की गई गतिविधियों में से कुछ को जानेंगे |

पोषाहार प्रबंधन (चारा, आहार और खनिज पदार्थ)

पोषण पशुओं की उत्पादकता का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है । इसलिए किसी भी पशुपालन हस्तक्षेप को पशुओं के लिए पीने के पानी सहित पोषण के लिए योजना बनाने के साथ शुरू करना होगा । पर्याप्त पोषण अच्छा स्वास्थ्य, एक उचित प्रजनन चक्र और उत्पादकता (दूध और अन्य उत्पादों दोनों के लिए) सुनिश्चित करता है । इसलिए लागत प्रभावी पोषण प्रदान करना लाभप्रदता के लिए महत्वपूर्ण है ।

ग्राम पंचायतों में पशुओं के लिए चारे की खुराक सहित पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म पोषण तत्वों को सुनिश्चित करने, चारे के प्रबंधन की योजना को शामिल किया जाना आवश्यक है ।

चारा

कृषि अवशेष, निजी चरागाह की घास और खुली चराई पशुओं के चारे के मुख्य स्रोत हैं । इसके अलावा, सूखे के दौरान चारा खरीदा जाता है । चारा खरीदना बहुत महंगा पड़ता है । सूखे के दौरान नकदी के अभाव में अक्सर परिवारों के पास मवेशी को घर से बाहर निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता । ऐसे आवारा पशु समुदाय और घरेलू दोनों के लिए नुकसान हैं । इसलिए चारे की उपलब्धता (सूखा दौरान सहित) के लिए उपयुक्त योजना बनाना ग्राम पंचायत की प्राथमिकता होनी चाहिए । हम देखेंगे कि यह कैसे किया जा सकता है ।

साझा संपत्तियों (चारागाह) का प्रबंधन

सभी ग्रामीणों को पता है कि अगर मानसून के दौरान चरागाह को तीन से चार महीने के लिए बंद कर दिया जाए तो घास के उत्पादन में वृद्धि होगी । लेकिन पूरी चरागाह भूमि को बंद नहीं किया जा सकता इसलिए चरागाह विकास चरणों में किया जा सकता है व शेष को चराई के लिए खुला छोड़ा जा सकता है । बंद चरागाह से, काटो और ले जाओ प्रणाली के माध्यम से, प्रत्येक परिवार चरागाह में अपने सीमांकित क्षेत्र से घास काट सकता है ।

चारा उत्पादक कृषि फसलें

चारा या तो एक चारा फसल के रूप में उगाया जा सकता है या इसे फसल अवशेष के रुप में प्राप्त किया जा सकता है । चारा उत्पादक कृषि फसलों की खेती भी अनाज उपजाने वाली फसलों की खेती की तरह आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकती है । चारा उपजाने वाली फसलों को कम आदानों की आवश्यकता होती है और ये जोखिम और विफलताओं से कम ग्रस्त होती हैं । केवल अनाज की पैदावार पर विचार करने की बजाय अनाज और चारा दोनों की उपज के लिये कई प्रकार की फसलों (सिंचित और असिंचित दोनों स्थितियों में) की खेती की जा सकती है । इसलिए, अनाज की फसलों की वेराइटी (विविधता) का चयन करते समय किसान को अनाज की पैदावार के साथ-साथ अपनी चारा उपज का भी आकलन करना चाहिए ।

सिंचित भूमि से चारा

किसान भूमि की उपलब्धता के आधार पर सिंचित जोत पर चारा देने वाली फसलों और केवल चारा फसलों की मिश्रित खेती कर सकते हैं । ल्यूसर्न (आरएल88) और बरसीम (वरदान, मेसकावी, जेबी-1, बीएल-1 व 10) कुछ अधिक उपज देने वाली चारा किस्में हैं जिन्हें पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध होने पर बोया जा सकता है ।

शुष्क भूमि क्षेत्रों से चारा

असिंचित परिस्थितियों में, केवल अनाज की पैदावार पर विचार करने के बदले चारे की उपज देने वाली फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।

ज्वार (अमृता, मलदंडी -35, रुचिरा, एमपी चरी, प्रो- एग्रोचारी पुसाचिरी -9), मक्का (अफ्रीकन टाल, लंबा, मंजरी कम्पोजिट, विजय, गंगा सफेद, गंगा – 2  5), जई (केंट आरओ -19, जेएचओ – 822), हरिता, वेस्टर्न -11 एचएफओ -114, अल्जीरियाई) और बाजरे (जाएंट बाजरा, राजको बाजरा, बीएआईएफ बाजरा, बी.जे. -104, श्रद्धा) की चारा उत्पादक किस्मों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है ।

नीचे दिया गया चारा कैलेंडर सूखी और सिंचित भूमि की चारा फसलों का ब्यौरा देता है ।

चारा कैलेंडर

खेतों की मेड पर चारा उपज देने वाले पेड़ों की (जैसे सुबबूल या शहतूत) प्रजातियों को लगाया जा सकता है । पेड़ के पत्तों का हरे चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता हैं । हरी कलमों के टुकड़ों की छंटाई की जानी चाहिए, इसे फूल निकलने के चरण में काटा जाना चाहिए और अगर हरा चारा अधिक मात्रा में उपलब्ध है, तो इसे सिलेज में परिवर्तित किया जा सकता है (अध्याय में बाद में चर्चा की जाएगी) ।

चारा कैलेंडर

फसल खेती विविधता कटाई प्रति हेक्टेयर उत्पादन
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मौसमी अनाज चारा

 

 

 

 

ज्वार

अक्टूवर अमृता, मालदंडी -35 60 दिन 35-40

मीट्रिक टन

जून-जुलाई रुचिरा, एमपी चरी,    प्रो-एग्रोचरीपुसाचिरी -9 60-70 दिन 30 -40

मीट्रिक टन

फरवरी-मार्च एसएसजि -59-3

एम-35-1

65-70 दिन 30-40

मीट्रिक टन

 

 

मक्का

अक्टूबर-नवम्बर अफ्रीकन टाल 60 दिन 65-70

मीट्रिक टन

जून-जुलाई

मार्च-फरवरी

मिश्रित मंजरी, गंगा सफेद, विजय, गंगा-25 65 दिन 40-50

मीट्रिक टन

 

 

जई

अक्टूबर-नवम्बर केंट, आरओ-19, जेएचओ-822, हरिता, वेस्टर्न-11, एचएफओ -114, अल्जीरियाई पहली कटाई 55 दिन पर अगली 25 दिन में 45-50

मीट्रिक टन

 

 

बाजरा

जून-जुलाई

 

जाएंट बाजरा, राजको बाजरा, बीएआईएफ बाजरा, बीजे-104, श्रद्धा  

65-70 दिन

 

30-45

मीट्रिक टन

फरवरी-मार्च
मकचरी पूरे साल टीएल-1, टीओ-सिंट 65-70 दिन 35-40

मीट्रिक टन

 

 

 

 

 

फली चारा फसल

 

ल्यूसर्न

 

अक्टूबर-नवम्बर

आरएल-88, आनंद-2, सिरसा-9, एएल-3 पहली कटाई 55 दिन पर और अगली 30 दिन में 80-100

मीट्रिक टन

 

बरसीम

 

अक्टूबर-नवम्बर

वरदान, मेसकावी, जेबी-1, बीएल-1 एवं 10 पहली कटाई 60 दिन में और फिर 30-35 दिन में 70-90

मीट्रिक टन

स्टाइलो जून-जुलाई एसटी-स्केबेरा,

फुले क्रांति

साल में दो कटाई 30

मीट्रिक टन

 

मौसमी फली चारा

 

लोबिया

 

मार्च-जुलाई

यूपीसी-287/5286,

ईसी-4216, सीओ-1,

सीएस-88, सी- 14,

श्वेता, एफाओएस-10

60-80 दिन 30

मीट्रिक टन

 

 

 

 

 

बारहमासी चारा घास

 

 

नेपियर (हाथी घास) और संकर नेपियर

जून यशवंत (आरबीएन-9) अगस्त और उसके बाद 150 मीट्रिक टन प्रति वर्ष
जून-अगस्त फरवरी-मार्च जयवंत (आरबीएन-13) 65-70 दिन और फिर हर 6 में 150 मीट्रिक टन प्रति वर्ष
पूरे साल डीएचएन-6, सिओ-4 70-75 दिन और फिर हर 7 में 175 मीट्रिक टन प्रति वर्ष
पैरा-घास जून-जुलाई —- 75-90 दिन 175 मीट्रिक टन
मारवेल जून-जुलाई मारवेल 7, 8, 93 या 40 90 दिन 25-30

मीट्रिक टन

अजोला की खेती

अजोला पानी पर (मिट्टी के बिना) उगने वाला एक फर्न है, जो शैवाल (एल्गे) जैसा होता है । अजोला उथले जलाशयों में उगाया जता है । अनुकूल परिस्थितियों में फर्न बहुत तेजी से फैलता है । यह प्रोटीन, विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध है । अजोला को मिक्चर सप्लीमेंट/ पोषण मिक्चर के साथ मिलाया जा सकता है या पशुओं को सीधे दिया जा सकता है । इसे पचाना आसान है और यह मुर्गी, भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश की खिलाया जा सकता है ।

अजोला कैसे तैयार किया जा सकता है?

चरण 1: सबसे पहले क्षेत्र की मिट्टी से खरपतवार निकाल कर उसे समतल किया जाता है । जमीन पर दो मीटर गुणे दो मीटर के गड्डे या इसी आकार की ईटों की एक संरचना का निर्माण किया गया ।

चरण 2: गड्डे या ईटों से बनी इस संरचना पर दो मीटर गुणे दो मीटर आकार की एक यूवी से स्थिर की गई सिलपाउलीन चादर को इस तरह फैलाया जाता है ताकि यह ईटों से बना आयत को भी ढक ले ।

चरण 3: छानी हुई 10-15 किग्रा मिट्टी को सिलपाउलीन चादर पर समान रूप से फैलाया जाता है । 10 लीटर पानी में 2 किग्रा गोबर और 30 ग्राम सुपर फ़ॉस्फेट मिला कर बनाए गए घोल को चादर पर डाल दिया जाता है । जल स्तर को लगभग 10 सेमी तक बढ़ाने के लिए और पानी डाला जाता है ।

चरण 4: अजोला क्यारी में मिट्टी और पानी को हल्के से हिलाने के बाद, लगभग 0.5-1 किलोग्राम शुद्ध मदर अजोला कल्चर्ड बीज सामग्री को पानी के ऊपर समान रूप से फैला दिया गया । अजोला पौधों को सीधा खड़ा करने के लिए रोपण के तुरन्त बाद अजोला पर ताजा पानी (एक कल्चर्ड माध्यम में या पर सू क्ष्मजीवों) या संक्रामक सामग्री के प्रत्यारोपण के लिए छिडका जाना चाहिए ।

चरण 5: एक सप्ताह के समय में, अजोला पूरी सतह पर फ़ैल जाता है और एक मोटी चटाई की तरह विकसित होता है । अजोला के तेजी से बढ़ने और 500 ग्राम की दैनिक उपज बनाए रखने के लिए पाँच दिन में एक बार 20 ग्राम सुपर फ़ॉस्फेट और लगभग एक किलोग्राम गाय के गोबर का एक मिश्रण डाला जाना चाहिए । अजोला में खनिज पदार्थ को बढ़ाने के लिए साप्ताहिक अंतराल पर मैग्नीशियम, लोहा, तांबा और गंधक आदि से युक्त सूक्ष्म पोषक मिश्रण भी मिलाया जा सकता है ।

चरण 6: क्यारी में नाइट्रोजन के जमाव को रोकने के लिए हर 10 दिन में एक बार 25 से 30 प्रतिशत पानी को ताजे पानी से बदलने की जरूरत होती है ।

चरण 7: नाइट्रोजन के जमाव से बचने और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को रोकने के लिए, 30 दिनों में एक बार क्यारी की मिट्टी को लगभग पाँच किलो मिट्टी से बदला जाना चाहिए ।

क्यारी को साफ़ किया जाना चाहिए । पानी और मिट्टी को बदलना चाहिए और हर छह महीने में एक बार नया अजोला प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए । यदि अजोला क्यारी कीट और रोगों से संक्रमित हो जाता है, तो नई क्यारी तैयार कर अजोला के एक शुद्ध कल्चर से रोपित करें ।

अजोला की कटाई कैसे करें?

  • अजोला तेजी से बढ़ता है और 10-15 दिन में गड्ढा भर जाएगा । तब से प्रतिदिन 500-600 ग्राम अजोला काटा जा सकता है ।
  • 15 दिन के बाद से हर दिन तले में छेद वाली एक प्लास्टिक की छलनी या ट्रे की मदद से फसल की कटाई की जा सकती है ।
  • गोबर की गंध से छुटकारा पाने के लिए काटे हुए अजोला को ताजे पानी में धोया जाना चाहिए ।

आहार

बाजार से आहार खरीदने की बजाय उपलब्ध पशु आहार सामग्री का उपयोग समृद्ध पोषाहार तैयार करने के लिये किया जा सकता है । यह प्रत्येक जानवर के लिए पर्याप्त घर का बना पोषाहार सुनिश्चित करेगा । चारा फसलें, सूखा चारा और सांद्र और स्तनपान कराने वाले मवेशी और भैंसों को त्वरित पूरक पोषाहारों की जरूरत होती है । चारे को समृद्ध करने के लिए सिलेज तैयार किया जा सकता है या चारे को प्रतिरक्षित (फोरटिफाय) किया जा सकता है । अब हम इन दोनों तरीकों पर चर्चा करेंगे ।

सिलेज

सिलेज हरे चारा के संरक्षण करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है । इसके पोषक मूल्य को बरकरार रखते  हुए वायु रहित स्थितियों में हरे चारे के संरक्षण की प्रक्रिया को सिलेज कहा जाता है । गर्मियों में हरे चारे की कमी को दूर करने हेतु इस विधि का उपयोग किया जा सकता है । यह पर्याप्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज की उपलब्धता सुनिश्चित करता है । सिलेज प्रोटीन (16.87 प्रतिशत) और कार्बोहाइड्रेट (6.96 प्रतिशत) से समृद्ध है । इसलिए, गर्मियों के दौरान पशुओं के लिए सिलेज से पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान किया जा सकता है । सिलेज बैगों (500 किग्रा) में और एक निर्मित की टंकी में 36 मीट्रिक टन तक सिलेज बनाया जा सकता है। इसका स्वाद पके हुए फलों जैसा होता है और जानवर इस स्वाद को पसंद करते है । कल्चर का प्रयोग करने पर 21 दिनों के भीतर सिलेज बनाया जा सकता है । इसे दो साल तक के लिए संरक्षित किया जा सकता है । मक्का, ज्वार, बाजरा, जई, चना, सोयाबीन, ल्यूसर्न, बरसीम और घास जैसी कई फसलों के हरे चारे से सिलेज बनाया जा सकता है ।

निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है:

चरण 1: सुनिश्चित करें कि सिलेज टंकी/ गड्डे/बैग साफ़ हैं । चयनित चारा फसल को फूल लगने के चरण में काटें और फौरन 2 से 2.5 इंच के टुकड़ों में इसकी छंटाई करें ।

चरण 2: तैयार कल्चर या शीरे का प्रयोग करें (एक मीट्रिक टन चारे के लिए 2 किग्रा खनिज मिश्रण, 10 किग्रा शीरा व एक किलो नमक) ।

चरण 3: चारे की आधे से एक फुट की परतों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाना चाहिए । प्रत्येक परत पर जैविक कल्चर रखें ।

चरण 4: प्रत्येक परत को दबाएँ और सुनिश्चित करें कि उसमें हवा नहीं रहे । बिना कोई फासला रखे पॉलिथीन की चादर को ढक दें।

चरण 5: बड़े सफाई से पॉलिथीन की चादर को खोलें और ढकें तथा आवश्यकता के अनुसार सिलेज निकाल सकते है ।

ग्राम पंचायत पशुपालन विभाग से सिलेज इकाई निर्माण के लिये आर्थिक सहयोग के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकता है ।

चारे की सुरक्षा

थोड़े उपचार के साथ कृषि अवशेषों को प्रतिरक्षित (फोरटिफाय) कर इसे संतुलित राशन में परिवर्तित किया जा सकता है । हम देखेंगे कि चारे को कैसे सुरक्षित किया जा सकता है:

आवश्यक सामग्री

  • 100 किग्रा अपशिष्ट चारा (गेहूँ की भूसी, बाजरे के अवशेष, गन्ना का ऊपरी भाग, चावल की भूसी, अरहर और चने की फसल के अवशेष और भूसे को अनुपात में मिलाएं)
  • 100 किग्रा चारे के लिए – 2 किग्रा यूरिया, 1 किलो रवेदार नमक, 1 किलो खनिज मिश्रण और 40-50 लीटर पानी ।
  • एक छलनी, 15 लीटर क्षमता की एक बाल्टी, एक 50 लीटर का कंटेनर, 20×20 फीट की पॉलिथीन शीट और एक लकड़ी का मिक्सर ।

प्रक्रिया

चरण 1: 100 किग्रा अपशिष्ट चारे को पॉलिथीन शीट पर 3-4 बराबर भागों में रखें ।

चरण 2: 2 किग्रा यूरिया और 1 किलो नमक को 50 लीटर पानी में घोलें ।

चरण 3: भूसी के पहले भाग को 6 इंच की मोटाई में जमीन के समानांतर फैलाएं । भूसी की इस परत को दबाएँ और इस पर 15 लीटर घोल का समान रूप से छिड़काव करें ।

चरण 4: अब इस परत पर अपशिष्ट चारे के दूसरे हिस्से को डाल दें । इस परत पर 15 लीटर घोल और 1 किलो खनिज मिश्रण का समान रूप से छिड़काव करें और इसे अच्छी तरह से दबाएँ।

चरण 5: तीसरे और चौथे भाग के लिए यही प्रक्रिया दोहराएं । अच्छी तरह से मिश्रित करें ।

चरण 6: यह सुनिश्चित करने के लिए कि इसमें हवा न रहे,  प्लास्टिक शीट के सभी चार कोनों को दबाएँ और पॉलिथीन पर एक उचित वजन के साथ इसे सील करें ।

चरण 7: 21 दिनों के बाद चारा उपभोग करने के लिए तैयार हो जाएगा ।

उपरोक्त प्रक्रिया चारे में प्रोटीन मूल्य को बढाती है ।

प्रतिरक्षित (फोरटिफाय) चारा खिलाते समय सावधानी

घरेलू मिश्रण

क्र.सं. करणीय (करें) अकरणीय (न करें)
1 छोटी मात्रा उदाहरण के लिये 200 ग्राम से प्रारंभ करें चार महीनों से कम उम्र के बछड़ों/मेमनों को न खिलाएं
2 धीरे-धीरे दो किलोग्राम तक बढ़ाएं प्रतिरक्षण (फ़ोरटिफिकेशन) प्रक्रिया में सोयाबीन अवशेषों को शामिल न करें
3 खिलाने से पहले इस चारे को फैला दें ताकि यूरिया की तेज गंध दूर हो जाए

पोषाहार की लागत को कम करने के लिए, घरों में घरेलू स्तर पर पोषण की तैयारी की जा सकती है । इस पोषण को इस प्रकार से तैयार किया जा सकता है:

नमूना 1 (प्रतिशत) नमूना 2 (प्रतिशत) नमूना 3 (प्रतिशत)
दला हुआ अनाज (मक्का, बाजरा, गेहूँ, ज्वार) 25 दला मक्का 30 कपास के बीज की खली 1`2
भूसा (गेहूँ, ज्वार, बाजरा) 15 मूंगफली की खली 20 अरहर की चुन्नी 30
डली हुई दालें (उड़द, अरहर, चना, मूंग) 12 गेहूँ का चोकर 25 गेहूँ का चोकर 25
खली (मूंगफली, कपास के बीज, सोयाबीन, नारियल) 25 अरहर की चुन्नी 22 मक्का गुलताने 10
ड. तैलीय खली (सोयाबीन, सूर्यमुखी) 20 खनिज मिश्रण 1.5 गेहूँ का दलिया 20
खनिज मिश्रण (उच्च गुणवत्ता का) 1.5 नमक 1.5 खनिज मिश्रण 1.5
नमक 1.5 नमक 1.5

यह याद रखना महत्वपूर्ण है

  • चारा फसलों, सूखा चारा और सांद्र पशुओं के लिए खनिजों के स्रोत हैं ।
  • स्तनपान कराने वाली गायों/भैंसों को फास्फोरस और कैल्शियम जैसे खनिजों की आवश्यकता होती है जिसे पर्याप्त रूप से पूरा किया जाना चाहिए ।
  • अच्छी गुणवत्ता के 30-35 ग्राम खनिज मिश्रण की एक दैनिक पूरक खुराक दी जानी चाहिए ।
  • खनिजों की कमी देर से यौवन, कमजोर कामोत्तेजना, प्रजनन में दोहराव, गर्भपात, बांझपन, कमजोर प्रतिरक्षा, हड्डी की विकृति और दूध बुखार जैसी बीमारियों की आवृत्ति की ओर ले जाती है ।
  • अगर पशु को अधिक मात्रा में गन्ने का ऊपरी हिस्सा खिलाया जाता है तो गन्ने के ऊपरी हिस्से में अधिक मात्रा में ऑक्सेलेट सामग्री होने के कारण, यह कैल्शियम को बांधता है और परिणाम स्वरूप शरीर की कैल्शियम की आपूर्ति रोकता है और इस तरह कमजोर यौन स्राव तथा गर्भाशय मांसपेशियों में ढीलेपन सहित प्रजनन समस्याएं उत्पन्न करता है ।

खनिज और विटामिन की कमी से:

दुग्ध उत्पादन में कमी

  • वसा और एसएनएफ (ठोस वसा नही) सामग्री में कमी
  • बीमारियों के खिलाफ प्रतिरक्षा की कमी
  • प्रजनन दोहराया जाता है
  • उपचार पर व्यय बढ़ जाता है
  • रोगों में वृद्धि

पानी

पीने का पानी पोषण का हिस्सा है । पीने के पानी की अपर्याप्त मात्रा पशु के शरीर में सभी चयापचय गतिविधियों के निलबंन की ओर ले जाती है । वयस्क जानवरों के लिए 30-40 लीटर पानी की आवश्यकता होती है और दूध उत्पादन करने वाले डेयरी पशुओं के लिए यह आवश्यकता प्रति लीटर दूध पर पाँच लीटर के हिसाब से बढ़ जाती है । जुगाली करने वाले छोटे पशुओं को प्रति दिन औसत पाँच लीटर पानी की आवश्यकता होती है ।

दुधिया से सीख तेजी से अपनाने के लिए व्यावहारिक प्रदर्शन

सुश्री आशा किरण और श्री किशन ने जानकारी साझा की और चारे की तैयारी का व्यावहारिक रूप से प्रदर्शन किया । इसके लिए ग्राम पंचायत ने कुछ फसल अवशेषों, पानी, बाल्टी, यूरिया, कुछ औजारों, पॉलिथीन शीट, दले हुए अनाज, मूंगफली की खली और कुछ डिब्बों की व्यवस्था की थी । बैठक में उपस्थित लोग पोषक तत्वों की कमी और पशुओं की उत्पादकता पर उनके प्रभाव के बारे में जानकार चकित थे । श्री किशन और सुश्री आशा किरण द्वारा साझा की गई विधियां बहुत आसान थीं और इनके लिए घरेलू स्तर पर उपलब्ध सस्ते संसाधनों की आवश्यकता थी । बैठक के बाद सभी निर्वाचित वार्ड सदस्यों ने सिलेज और घर पर बने चारे का उत्पादन आरंभ करने के लिए संकल्प लिया । दो सदस्यों ने अजोला की खेती करने का भी संकल्प लिया । उन्होंने अपने-अपने वार्डो में इन तकनीकों को साझा करने का वचन दिया ।

 बकरियां और भेड़ें

बकरियों और भेड़ों का पालन गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है | भूमिहीन और सीमांत परिवारों के लिए बकरियों की देखभाल आसान है इसलिए ऐसे परिवार गायों की बजाय बकरियों को पालना पसंद करते है | बकरी पालन में प्रारंभिक निवेश भी कम है | कुछ परिवारों द्वारा निम्नलिखित कारणों से डेयरी पशुओं की तुलना में बकरियों को ज्यादा तरजीह दी जाती है:

  • कम पूंजी की आवश्यकता होती है
  • रखरखाव पर कम लागत आती है
  • महिलाओं, वृद्ध व्यक्तियों और यहाँ तक कि बच्चों के द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है
  • अधिक लचीला
  • फसल के अवशेष पर अच्छी तरह से बढ़ सकते हैं (हरे चारे की आवश्यकता नहीं होती है)
  • आसानी से बेचा जा सकता है
  • निवेश के लिए कम जोखिम

पशुपालन/पशुधन सुधार समिति बकरी पालन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता का निर्माण करने के लिए उपाय शुरू कर सकती हैं | इससे उन्हें घाटा कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी | अब हम देखते हैं कि बकरी पालन को और अधिक लाभदायक कैसे बनाया जा सकता है |

प्रजनन के लिए बकरे का चुनाव

बकरी पालन को और अधिक लाभदायक बनाने का एक महत्वपूर्ण पहलू है प्रजनन के लिए उचित बकरे का चयन | प्रजनन के लिये बकरे का चयन करते समय, निम्नलिखित को सुनिश्चित करना जरूरी है:

  • बकरा जुड़वां या तीन (तिडवा) बच्चों में से एक होना चाहिए |
  • बकरा उचित वजन का स्वस्थ और सक्रिय होना चाहिए |
  • 25 से 30 बकरियों के बीच एक बकरा होना चाहिए |
  • बकरे को पूरे दिन और रात बकरियों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए |
  • प्रजनन के बकरे को हर 2 से 3 वर्ष पर बदल देना चाहिए |
  • प्रजनन के लिए एक अस्वस्थ बकरे का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए |
  • बकरे को खनिज मिश्रण और खनिजों के साथ-साथ न्यूनतम 450-500 ग्राम अच्छी गुणवत्ता का सांद्र खिलाया जाना चाहिए |
  • अगर जुड़वां या तीन बच्चों का प्रतिशत कम होता है तो प्रजनन के लिये उपयोग हो रहे बकरे को बदला जाना चाहिए |

बकरियों का चयन

बकरियों का चयन भी समान रूप से महत्वपूर्ण है | चयन करता है, निम्नलिखित बातों पर विचार करने की आवश्यकता है:

  • केवल उन बकरियों का चयन करना चाहिए जो अधिक दूध देती हों, नियमित प्रजनन करती हों और जिनमें जुड़वां/तीन मेमनों को जन्म देने की क्षमता हो |
  • बकरियों का चेहरा पतला होना चाहिए, आँखें, स्वच्छ और चमकदार, कान और सींग नस्ल के अनुसार होने चाहिए |
  • गर्दन पर कम वसा होनी चाहिए | गर्दन पर वसा वाली बकरियों को अच्छा दूध देने वाली नहीं माना जाता है | कंधे अच्छी तरह से जुड़े हुए हों और पीठ सीधी होनी चाहिए |
  • चौड़ी छाती उचित रक्त परिसंचरण और दूध उत्पादन का प्रतीक है |
  • सामने के पैर कंधे के साथ सीधी रेखा में होने चाहिए और ऊँचाई समान होनी चाहिए | खुरों का विकास बराबर होना चाहिए |
  • पेट सीने से श्रोणि तक चौड़ा होना चाहिए | श्रोणि छाती के स्तर से एक स्तर ऊँची होनी चाहिए |
  • त्वचा का रंग उज्ज्वल औ नस्ल के समान सच्चा होना चाहिए | त्वचा लोचदार और लचीली होनी चाहिए |
  • थन मुलायम और बिना बाल के होने चाहिए | बराबर आकार और मध्यम लंबाई के तथा चूची के साथ पिछले पैरों के बीच में अच्छी तरह से लटके होने चाहिए |
  • अगर बकरी पालन मांस के उत्पादन के लिए है, तो चयनित नरो/मादाओं को औसत की तुलना में भारी वजन का होना चाहिए |
  • जुड़वां/तीन मेमनों को जन्म देने वाली बकरियों का चुन कर और ध्यान से प्रजनन किया जाना चाहिए |

संतुलित आहार

संतुलित आहार के माध्यम से बकरियों की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है | इन पर विचार करना महत्वपूर्ण है:

  • हरे और सांद्र के साथ मिश्रित काट कर सुखाया गया चारा/घास संतुलित आहार प्रदान करता है |
  • वयस्क बकरियों को प्रति दिन 4 से 6 किग्रा हरे और 1 किलो सूखे चारे की जरूरत होती है |
  • सभी आवश्यक खनिजों और तत्वों के साथ सांद्र मिश्रण प्रति दिन 200-250 ग्राम की दर से दिया जाना चाहिए | गर्भवती बकरियों और प्रजनन बकरों को प्रति दिन 200 ग्राम की एक अतिरिक्त मात्रा दी जानी चाहिए |
  • भ्रूण के बेहतर विकास के लिए गर्भवती बकरियों को डाईकौट (द्विबीजपत्री) हरा चारा दिया जाना चाहिए |
  • छोटे मेमनों को प्रति दिन 50 से 100 ग्राम तक सांद्र देना चाहिए जिसे चार महीनों के बाद 200 ग्राम तक बढ़ाया जाना चाहिए |
  • कमी की अवधि के दौरान बबूल के पत्ते और फली बकरियों के लिए चारे का अच्छा स्रोत हैं |

बकरियों के स्वास्थ्य की देखभाल

बकरी अन्य जानवरों से अधिक रोग प्रतिरोधी हैं | समय से और आवधिक टीकाकरण और डीवर्मिग/कृमिनाशक करना उन्हें संक्रामक रोगों और कृमि संक्रमण से बचाता है |

मेमनों में मृत्यु की रोकथाम

मेमनों की मृत्यु दर बकरियों में एक प्रमुख समस्या है | अधिकांश मौतें जन्म के पहले महीने में होती हैं | सर्दी और बरसात के मौसम में मृत्यु दर अधिक रहती है | गर्भावस्था के दौरान बकरियों के लिए अनुचित पोषण, कमजोर मेमनों का जन्म, देरी से कोलोस्ट्रम पिलाना, संक्रमित और मैले परिसर और विषम मौसम (गर्मी, बारिश या ठंड) में बाहर निकालना मेमनों की मृत्यु के कारण हैं:

  • उन्नत गर्भावस्था में बकरियों को (उन्हें हर समय चारा उपलब्ध होना चाहिए) उस को हर समय सूखा चारा और हरी पत्तियाँ, 200-300 ग्राम सांद्र मिश्रण और काफी मात्रा में पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध होना चाहिए | उन्हें दूसरी बकरियों से अलग, एक स्वच्छ वातावरण में रखा जाना चाहिए |
  • बाड़े और आहार संक्रमित हो सकते हैं, इसलिए दूषित चारा और मौजूद मिट्टी प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए | मिट्टी में चूना मिलाया जाना चाहिए | बाड़े में नादों और चरनियों को साफ़ किया जाना चाहिए | दीवारों पर सफेदी की जानी चाहिए |
  • मेमने को जन्म देने के तुरन्त बाद, बकरियों के पिछले भाग को पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से साफ़ किया जाना चाहिए |
  • नवजात मेमने को सूखे कपड़े से साफ़ किया जाना चाहिए | गर्भनाल को काटना चाहिए और आयोडीन टिंचर का उपयोग किया जाना चाहिए |
  • मेमने को उसके जन्म के बाद 10-15 मिनट के भीतर कोलोस्ट्रम चूसने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह तुरन्त प्रतिरक्षा निर्माण करने में मदद करता है |
  • बच्चा 2-3 दिनों के अपनी माँ के साथ रखा जा सकता है और उसके बाद मेमनों के खांचे में रखा जा सकता है | अगले तीन महीनों के लिए मेमने को एक दिन में 2 से 3 बार दूध पिलाने की अनुमति दी जानी चाहिए |
  • मेमने का बिस्तर गर्म होना चाहिए | इसे सूखी घास से ढका जा सकता है |
  • तीव्र नमी और ठंड से रक्षा की जानी चाहिए क्योंकि मेमने जीवन के पहले दो या तीन सप्ताह के दौरान निमोनिया और आंत्रशोथ के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं |
  • तीन सप्ताह के भीतर मेमनों में रूमेण (पेट के उस हिस्से में जहाँ आधा पचा खाना संग्रहित किया जाता है) का विकास शुरू होता है और अगले तीन महीनों के भीतर पूरा हो जाता है | इसलिए उम्र के तीन सप्ताह बाद हरा चारा प्रदान किया जाये |
  • मेमनों को जन्म के 15वें दिन से छोटी मात्रा में मिश्रित सांद्र (लगभग 50 ग्राम) दिया जाना चाहिए | मात्रा में धीरे-धीरे वृद्धि की जानी चाहिए और 4 महीने के बाद यह खनिज मिश्रण के साथ 250 ग्राम होना चाहिए |
  • मेमनों को तीसरे महीने में इंट्रोटंक्सीमिया टीका और चार माह की उम्र में पेटिस डेस पेस्टिस रुमिनांटा (पीपीआर) का टीका लगाया जाना चाहिए |
  • मेमने कम उम्र से कृमि संक्रमण के लिए अति-संवेदनशील होते हैं | डीवर्मिग की पहली खुराक एक महीने की उम्र में दी जाती है और उसके बाद हर दो महीने में उन्हें बेचने तक इसे दोहराया जाना चाहिए |

उपरोक्त बिन्दुओं के अनुसार पालन करने पर 10 महीने के भीतर मेमने 25 से 30 किग्रा का वजन पा लेते हैं और बिक्री के योग्य हो जाते हैं |

बकरियों के लिए सिफारिश की गई टीकाकरण अनुसूची इस प्रकार है

क्र.सं. रोग खुराक माह दूसरी खुराक टिप्पणी
1 एच.एस. 2.5 मिली एस/सी मई-जून छ: महीने बाद
2 बी.क्यू 2.5 मिली एस/ सी जुलाई 1 वर्ष बाद
3 बिसहरिया (एंथ्रेक्स) 0.5 मिली एस/सी 1 वर्ष बाद
4 इनटेरोटॉक्सेमिया 2.5 मिली 14 दिन के बाद 2.5 मिली एस/सी मई 1 वर्ष बाद हर साल दिया जाना चाहिए
5 प्लीयरोनिमोनिया 2 मिली एस/सी जनवर 1 वर्ष बाद
6 बकरी का चेचक (गोट पॉक्स) 0.5 मिली एस/ सी कान के पीछे अप्रैल 1 वर्ष बाद स्थानिक क्षेत्र में लगातार तीन साल के लिए दिया जा सकता है
7 पी.पी.आर 1 मिली एस /सी 3 वर्ष बाद पहली डोस 4 माह की उम्र में दी जाती है

 

 मत्स्य पालन

तटीय क्षेत्रों में मत्स्य पालन आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत रहा है । मधुर जल/ मीठे जल में मत्स्य पालन भी आजीविका के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभर रहा है । मधुर जल/मीठे जल मत्स्य पालन में जबरदस्त आर्थिक क्षमता है क्योंकि इसमें कृषि आधारित आजीविका के अन्य स्त्रोतों से अधिक फायदे हैं, जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों के परिवार कार्यरत हैं ।

देश में मधुर जल/मीठे जल के मत्स्य पालन के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं-

  • मछली पानी का उपभोग नहीं करती ।
  • आदानों की लागत कम होती है (कृषि की तुलना में नगण्य) ।
  • मछलियाँ में प्रजनन क्षमता अधिक होती है ।
  • बहुत कम श्रम की आवश्यकता होती है ।

उपभोक्ता की दृष्टि से, मछली कोलेस्ट्रोल मुक्त विटामिन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस और मानव स्वास्थ्य और विकास के लिए आवश्यक अन्य पोषक तत्वों से समृद्ध उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन प्रदान करती है । पानी के अतिरिक्त मछली को केवल पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन, भोजन और जगह की जरूरत होती है, जिसमें वे बढ़ सकती हैं ।

प्रजातियाँ

ताजा पानी में सबसे अधिक उपज देने वाली मछलियों में तीन भारतीय प्रजातियों (कतला, रोहू और मृगल) और तीन चीनी (ग्रास, सिल्वर और कॉमन) की मिश्रित प्रजातियों का संयोजन किया जाता है ।आम तौर पर इन्हें तालाब में मौजूद भोज्य जीवों का सबसे अधिक उपयोग करने के लिए साथ में पाला जाता है ।

चारा

कृषि, बागवानी, मछली पालन, डेयरी और पोल्ट्री की एक एकीकृत खेती उपयोगी जैविक अपशिष्ट प्रदान करता है और केवल एक ही आजीविका गतिविधि की तुलना में कम जोखिम युक्त होता है। मवेशी, मुर्गी पालन, सुअर पालन और भेड़/बकरी पालन के अपशिष्ट मछली उत्पादन के लिए अच्छा चारा है ।

पानी की टंकी

मछली पालन के लिए पानी की टंकी या तालाब के निर्माण के दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार किया जाना चाहिए –

  • मिट्टी की पानी प्रतिधारण क्षमता और इसमें निहित उर्वरता उच्च होनी चाहिए ।
  • चिकनी मिट्टी तालाब निर्माण के लिए सबसे उपयक्त है । अच्छी तरह से जमा बलुई मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है ।
  • तालाब में पानी की आपूर्ति जहाँ तक संभव हो प्राकृतिक जैसे बारिश के पानी से होनी चाहिए ।
  • पानी की आपूर्ति विशेष रूप से शुष्क अवधि के लिए वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
  • तालाब की सतह नदियों से दूर और नीची होनी चाहिए ताकि आसपास के जलग्रहण क्षेत्र से सतही अपवाह को तालाब में जमा किया जा सके।
  • अत्यधिक बाढ़ से बचने के लिए उचित तटबंध होना आवश्यक है ।
  • हैचलिंग और फ्राई के चरण के पालन के लिए नर्सरी तालाब का प्रावधान होना चाहिए ।
  • तटबंधों को अच्छी तरह से जमा, रिसाव से मुक्त और मौसम की सभी स्थितियों में स्थिर रहने के लिए काफी मजबूत होना चाहिए ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

एक मछली टैंक का निर्माण कहां किया जाना चाहिए?

आम तौर पर जहाँ भी भूमि उपलब्ध हो एक मछली टैंक का निर्माण किया जा सकता है हालांकि, साइट पर निम्नलिखित होना चाहिए-

  • अच्छी जल धारण क्षमता – बहुत गहरी मिट्टी, काली कपास मिट्टी या गहरी कीचड़ युक्त भूमि ।
  • पानी की बारहमासी उपलब्धता ।
  • मिट्टी के पीएच की सीमा 7.5-8.5 के बीच ।
  • टंकी का निर्माण करते समय औसत वार्षिक वर्षा, बाढ़ के पानी का प्रवाह, जल निकासी आदि कारकों पर विचार किया जाना चाहिए ।

मछली संरक्षण टैंक के लिए कितने क्षेत्र की आवश्यकता होती है?

लगभग 2-4 हेक्टेयर जगह की आवश्यकता होती है । आर्थिक रूप से लाभकारी और तकनीकी रूप से व्यवहार्य होने के लिए प्रत्येक मच्छली टैंक के लिए न्यूनतम 0.4 हेक्टेयर से 1.0 हेक्टेयर का स्थान होना चाहिए ।

मछली संरक्षण टैंक का आकर क्या होना चाहिए?

  • मछली संरक्षण टैंक का आकार चौकोर या आयताकार होना चाहिए ।
  • बांध की ऊँचाई को जल स्तर की गहराई से एक मीटर ऊपर बनाए रखा जाना चाहिए | एक मीटर ऊँचे बांध के निर्माण के लिए नींव की चौड़ाई 1.5 मीटर होनी चाहिए, 1:1.5 की ढलान होनी चाहिए |
  • 100 मीटर की लंबाई के लिए 40 मीटर की चौड़ाई हो सकती है । आदर्श रूप में, मछली संरक्षण टैंक की गहराई 1-2 मीटर होनी चाहिए |

मछली और झींगे की किस्म का चयन करने से पहले किन कारकों पर विचार किया जाना चाहिए?

  • स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुसार मछली की उपयक्त किस्मों का चयन किया जाना चाहिए ।
  • चयनित किस्म की विकास दर (इलाके की अन्य किस्मों की तुलना में) उच्च होनी चाहिए ।
  • टैंक के सभी हिस्सों के फिटोप्लैंक्टानो और जूप्लैक्टानो को खाने वाली किस्मों का चयन किया जाना चाहिए ।
  • मछली और झींगे की मांस खाने वाली प्रजातियों से परहेज किया जाना चाहिए ।
  • मछली और झींगे की ऐसी किस्मों का चयन किया जाना चाहिए जिनके लिए बाजार में मांग हो ।

मछली की खेती शुरू करने से पहले क्या सावधानियां बरती जानी चाहिए?

मांसभक्षी मछलियों और प्लैंक्टानो की नियंत्रण को हटाने के लिए टैंक को पूरी तरह से सुखाया जाना चाहिए । अम्लता और क्षारीयता को बनाए रखने और विषाक्त गैसों को हटाने और रोग नियंत्रण के लिए टैंक में चूना डाला जाना चाहिए ।

घासपात और प्लैंक्टानो को कैसे साफ़ किया जा सकता है?

  • तैरने वाले प्लैंक्टानो को हाथ या जाल से हटाया जा सकता है ।
  • गावटिया (मराठी नाम) जैसी मछली एक दिन में लगभग एक किलोग्राम घास-पात खा लेती है ।
  • जलमग्न पौधों को उपकरणों की मदद से हटाया जा सकता है ।
  • उचित मात्रा में गोबर और मिट्टी मिलकर ।

मछली बीज का परिवहन कैसे किया जा सकता है?

प्रत्यारोपण के लिए मछली बीज को एक पॉलिथीन बैग में डालकर 20 लीटर क्षमता के एक टिन में रखा जाना चाहिए । पॉलिथीन बैग के एक तिहाई भाग में पानी और शेष में हवा होनी चाहिए । प्लास्टिक पॉलिथीन में मत्स्य बीज को खिलाया नहीं जाता है क्योंकि इससे मलमूत्र उत्पन्न हो सकता है । इस प्रकार पानी 2-3 दिनों के लिए स्वच्छ रहता है, और बीज का समर्थन करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन भी बनी रहती है ।

मछलियों के रोग और उनका नियंत्रण

प्रकार रोग लक्षण और उपचार
जीवाणु गलफड़ और पुंछ सड़ांध यह भारतीय मछलियों का सबसे आम संक्रामक रोग है

पूरे पंख को विखंडित कर देता है

कॉपर सल्फेट के घोल के साथ उपचार

 

जलशोध
  • कतला मछली में इससे प्रभावित होने की सबसे अधिक संभावना होती है ।
  • शल्कों में फैलाव, पेट में सूजन, आँखों में उभार और शोफ़।मछली शरीर के छिद्रों में पानी के संचय से पीड़ित रहती है और शल्क ढीले होकर गिर जाते हैं ।
  • पोटेशियम परमैंगनेट घोल द्वारा उपचार ।
नेत्र रोग
  • यह कतला की दृष्टि तंत्रिका और मस्तिष्क पर हमला करता है ।
  • प्रारंभिक चरण उपचार 3-4 दिनों के लिए 5-10 मिलीग्राम/ लीटर क्लोरो माइसीटीन घोल में स्नान ।
  • शेष मछलियों को पोटेशियम परमैंगनेट 1 मिग्रा/ लीटर का रोग निरोधक घोल दिया जाना चाहिए ।
कवकीय संक्रमण
  • गलफड़ में सड़ांध और त्वचा में छाले ।
  • संक्रमित मछली के गलफड़ में तुरन्त सफेद हो जाते है और अंत में गिर जाते है। ऐसी मछलियों को मरने से पहले सतह पर हवा के लिए हांफते हुए देखा जा सकता है ।
  • संक्रमित मछलियों को 5-10 मिनट के लिए 3-5 प्रतिशत सामान्य नमक के घोल में या 5 पीपीएम पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में स्नान कराया जाना चाहिए ।

 

प्रोटोजोआ रोग इचिऑपथिराइसिस
  • संक्रमित मछली के शरीर, गलफड़ और पंख पर लगभग 1 मिली व्यास के छोटे-छोटे घाव दिखाई देते हैं ।
  • मछलियों को 6-7 दिनों तक 2-3 मिनट के लिए 2-3 प्रतिशत आम नमक के घोल में डुबोया जाना चाहिए।
  • तालाब में 2 से 3 किस्तों में 300-500 किलो/हेक्टेयर बुझाया हुआ चूना डाला जा सकता है ।

 

ट्राइकोडिनोसिस
  • खाल और गलफड़ के प्रभावित होने के कारण संक्रमित मछलियों में जलन और सांस की परेशानी के लक्षण दिखाई देते हैं।
  • वे पानी की सतह पर आती हैं और अपने शरीर को तालाब के किनारे पर रगड़ती हैं । त्वचा पर नीली-सफेद कोटिंग दिखाई देती है ।
  • 3-4 दिनों के लिए 5 से 10 मिनट तक 2-3 प्रतिशत आम नमक में डुबकी उपचार दिया जाना चाहिए । इसके अलावा, संक्रमित मछलियों को 1:1,000 एसिटिक ऐसिड घोल में डुबाकर उनका उपचार किया जाना चाहिए |

 

माइक्सो रिडियासिस
  • छोटे सफेद या काले लाल धब्बे के रूप में घाव (सिस्ट) दिखाई देते हैं |
  • मछलियाँ सतह पर आती हैं और कमजोरी, दुर्बलता, बेचैनी और शल्कों के गिरने का लक्षण दिखाती हैं |
  • घाव किसी भी रसायन के विरुद्ध उच्च प्रतिरोधी होते हैं | इसलिए, संक्रमित मछली को आम तौर पर मार दिया जाता है और दूसरी मछलियों का कुछ मिनट के लिए 2-3 प्रतिशत सामान्य नमक के घोल से उपचार किया जाता हैं |
  • तालाब का पानी बदला जाना चाहिए ।
परजीवी
  • कीड़ा रोग भी मछलियों में होने वाली आम बीमारी है| परजीवी डियोडेक्टीलस एसपीपी और डेक्टीलोजिरस एसपीपी मछली की त्वचा और गलफड़ पर हमला करते है और उसके खून पर जीते हैं ।
  • 0.2 पीपीएम की सघनता के साथ गेमेक्सीन द्वारा तालाब का उपचार किया जाना चाहिए और इसे साप्ताहिक अंतराल पर दो या तीन बार दोहराया जाना चाहिए |

मवेशी, भैंस और डेयरी

मवेशी और भैंसों को दूध के लिए पाला जाता है | इन दोनों पशुओं की उत्पादकता सुनिश्चित करें के  लिए उच्च प्रारंभिक निवेश के रूप में अच्छी तरह से उचित देखभाल और रखरखाव की आवश्यकता है | इसलिए, डेयरी पशुओं के दैनिक के प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के बारे में परिवारों में जागरूकता के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत द्वारा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है | इस अध्याय में पशुओं के चयन के बारे में जानकारी प्रदान की गई है और मवेशी और भैंस की लिए प्रबंधन और पोषक तत्वों की आवश्यकता के संबंध में बताया गया है |

डेयरी पशुओं का चयन

खरीदने के समय डेयरी पशु के चयन में दुग्ध उत्पादन का आकलन करना और प्रजनन विशेषताओं के बारे में जानना दो महत्वपूर्ण कारक हैं | पशु खरीदने से पहले, इनके बारे में पता लगाए:

  • नस्ल चरित्र और दूध उत्पादन क्षमता
  • जानवर का पूरा इतिहास (वंशावली)
  • क्या पशु युवा है, अधिमानत: दूसरे स्तनपान पर

इसके अलावा निम्नलिखित भी करें

  • गाय/भैंस को खरीदने से पहले दूहा जाना चाहिए | दूध उत्पादन का पता लगाने के लिए डेयरी पशु को दो से तीन बार (लगातार) दूहा जाना चाहिए |
  • दूधारु गाय/भैंस को पहली बार थन खाली करने तक दूहा जाना चाहिए | बाद में इसे कम से कम तीन बार दूहा जाना चाहिए | पशु की कीमत 24 घंटों के दौरान औसत दुग्ध उत्पादन के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए |
  • चुनाव अधिमानत: प्रसव के एक महीने के बाद (पहले या दूसरे स्तनपान के दौरान) किया जाना चाहिए |

अन्य सकारात्मक लक्षण

एक गाय, अनुकूल लोगों के प्रति विनम्र, और देख-भाल करने तथा दूध दूहनेवालों के परिवर्तन को स्वीकार करने वाली होनी चाहिए:

  • आकर्षक शारीरिक संरचना और सभी भागों के सामंजस्यपूर्ण सम्मिश्रण, प्रभावशाली शैली और संचरण
  • जानवर का शरीर एक पत्ती के आकार का होना चाहिए |
  • इसकी आँखें उज्ज्वल, गर्दन दुबली और त्वचा चमकदार होनी चाहिए |
  • इसकी पूंछ सीधी, पतली, मजबूत और रोएंदार होनी चाहिए |
  • थन पेट में से अच्छी तरह से जुड़े होने चाहिए |
  • थन की त्वचा का रक्त वाहिकाओं से एक अच्छा संपर्क होना चाहिए |
  • थन अच्छी तरह से बराबर स्थापन और छोटे चूची के साथ शरीर से लगा होना चाहिए |
  • थन बनावट में कोमल रेशमी हो और बोरी जैसी आकृति का हो |
  • थन के सभी चार भागों को अच्छी तरह से स्थापित चूची के साथ सीमांकित होना चाहिए|
  • गाय के पैर मजबूत हो |
  • विस्तृत, अच्छी तरह से उभरी  पसलियों के साथ एक गहरे, लंबे शरीर वाली गाय को एक बड़ी शारीरिक क्षमता वाली कहा जता है |
  • सीधे पुठ्ठो या पीछे के पुठ्ठो वाली गायों की उपेक्षा की जा सकती है (सीधे पुठ्ठे या पीछे के पुठ्ठे जानवर की एक विकृति है जो भार शन नहीं कर सकते और समान रूप से आदर्श प्रजनन या स्तनपान कराने के लिए इनकी सिफारिश नहीं की जाती है)|
  • एक संकीर्ण साइन वाली गाय सामान्य रूप से अच्छा दूध नहीं देती है |

पशु की जाँच

  • अगर गर्भवती पशु को खरीदा जा रहा है, तो एक पशु चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था की जाँच की जानी चाहिए |
  • प्रजनन की स्थिति और नैदानिक टिप्पणियाँ आवश्यक है |
  • पशु खरीदने से पहले टीबी, जेडी और ब्रुसिला की जाँच की जानी चाहिए |
  • टीकाकरण और स्वच्छता रिकॉर्ड को सत्यापित किया जाना चाहिए |

दुधारू पशुओं के पोषण की आवश्यकता

(क) 400 किग्रा वजन और 12 लीटर दूध देने वाली गाय को खिलाया जाना चाहिए:

  • सूखा चारा 7 किलोग्राम
  • हरा चारा (एकबीजपत्री) – 10-12 किलोग्राम या हरा चारा (द्विबीजपत्री) – 15-18 किग्रा
  • मोटा चारा – 1500 ग्राम
  • सांद्र (प्रति लीटर दूध के लिए 300-350 ग्राम) – 3.6 किग्रा

(ख) 500 किलोग्राम वजन और 10 लीटर दूध वाली भैंस (7: वसा)

  • सूखा चारा – 10 किग्रा
  • हरा चारा (एकबजपत्री) – 15-18 किग्रा या हरा चारा (द्विबीजपत्री) – 20-22 किग्रा
  • मोटा राशन – 1500 ग्राम
    • सांद्र (प्रति लीटर दूध के लिए 300-350 ग्राम) – 3 किग्रा

इसके अलावा, गर्भवती गायों/भैंसों को गर्भावस्था के 7, 8 और 9 माह के दौरान क्रमश: 0.5 किलो, एक किलो और 1.5 किग्रा सांद्र मिश्रित भोजन दिया जाना चाहिए | कोई भी सांद्र चारा स्वादिष्ट होना चाहिए और इसमें 70 से 75 प्रतिशत पाचक पोषक तत्वों और 16 से 20 प्रतिशत प्रोटीन शामिल करना चाहिए |

पशु बाड़ा

एक पशु बाड़े का निर्माण करते समय निम्नलिखित बातों का पालन किया जाना चाहिए:

  • बाड़ा एक ऊँचे स्थान पर होना चाहिए |
  • पशु को खड़े होने और चारों ओर घूमने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए |
  • छत की ऊँचाई 12-14 फुट होना चाहिए | इससे गर्म हवा के कुशलता से फैलाव की सुविधा होगी और गर्म दिनों में जानवरों के लिए सुविधा मिलेगी |
  • दीवारों की ऊँचाई 5-6 फीट होनी चाहिए और पक्की और दीवार की ईटों पर सीमेंट का प्लास्टर होना चाहिए | दीवारों के कोनों को गोल किया जाना चाहिए |
  • बाड़े का फार्श दरारों और गढढ़ों से रहित होना चाहिए और फिसलन नहीं होनी चाहिए |
  • फर्श में पीछे की ओर एक क्रमिक ढलान होनी चाहिए |
  • वहाँ एक पर्याप्त जल निकासी प्रणाली (तश्तरी के आकार की नाली) होनी चाहिए ताकि पानी, मूत्र और गोबर आसानी से बह जाए |
  • अधिक जली ईटों या सीमेंट कंक्रीट का फर्श भी एक अच्छा विकल्प है |
  • तश्तरी के आकार की नाली 9-10 इंच चौड़ी होनी चाहिए और इसमें पर्याप्त ढलान होनी चाहिए |
  • चरनी (खिलाने का स्थान) ऊँचाई में 3-3.5 फीट होनी चाहिए | सामने की दीवार की ऊँचाई 20-25 इंच होनी चाहिए और चरनी की गहराई 10-12 इंच होना चाहिए | आवश्यक आकार की सीमेंट की आधी खुली पाइपें भी इस उद्देश्य को पूरा कर सकती हैं | चरनी के सभी कोनों को गोल किया जाना चाहिए |
  • जानवरों की संख्या अधिक होने पर पानी पीने के लिए एक अलग पानी के गढढे की आवश्यकता होगी |
  • पानी का गढ्ढा पक्का होना चाहिए, और इसका आकार प्रति दिन प्रति पशु 125-150 लीटर पानी समायोजित करने लायक होना चाहिए |
  • पानी का ठंडा और धूल और गंदगी से सुरक्षित होना सुनिश्चत करने के लिए इसे एक ढंके क्षेत्र में होना चाहिए |
  • यदि संभव हो, सर्दियों में पशुओं के लिए गुनगुना पानी उपलब्ध कराएं |
  • उपयोग करने से पहले भीतरी दीवारों की भट्टी के चूने (चुनें) से सफेदी की जानी चाहिए |
  • अगर वहा एक या दो जानवर हों तो बड़ी बाल्टी में पानी उपलब्ध कराया जा सकता है |
  • खाद का गड्ढा बाड़े से 100 फीट से अधिक दूरी पर होना चाहिए |
  • पेड़ बाड़ों के सभी किनारों पर नीम (जाडिरेक्ता इंडिका) जैसे पेड़ लगाए जा सकते है |
  • खराब मौसम से पशु की रक्षा के लिए बाड़े को पर्दे/बोरे से ढका जाना चाहिए |
  • यदि संभव हों, जानवरों को अपने आयु समूहों के अनुसार रखा जाना चाहिए |
  • दूध भंडारण/संग्रह का स्थान बाड़े से अलग जगह पर होना चाहिए |

निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर इस बात की पुष्टि करना संभव है कि गौशाला में पशु आराम से हैं:

  • हर जानवर प्रति दिन 16-18 घंटे आराम से बैठने में सक्षम होना चाहिए |
  • हर जानवर को कम से कम 12-14 घंटे जुगाली करनी चाहिए |
  • अपेक्षित तारीख पर जानवर द्वारा कामोत्तेजना का प्रदर्शन |
  • मल और मूत्र की गुणवत्ता सामान्य होनी चाहिए |
  • बाड़े को कीड़े, परजीवी और मक्खियों से मुक्त किया जाना चाहिए |
  • दूसरों के द्वारा साझा बाड़े में कोई बीमार पशु नहीं होना चाहिए |
  • पहले ही प्रयास में सफल गर्भाधान (यह गर्भाधान की लागत, प्रजनन अवधि को कम करता है इसलिए उत्पादन की वृद्धि में मदद करता है) |

एक अच्छा बाड़ा जानवर पर तनाव कम कर देता है | इसलिए बाड़े की स्थितियां सीधे उत्पादकता से संबंधित हैं |

गर्भवती पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल

  • पहले बछड़ों को दिन-रात विशेष देखभाल की जरूरत होती है | प्रसव के नजदीक आने पर, गर्भवती पशु को झुंड से अलग किया जाना चाहिए और एक शांत जगह पर रखा जाना चाहिए |
  • गर्भवती पशु को गर्भावस्था के अंतिम दो महीनों के दौरान 1 से 1.5 किग्रा अतिरिक्त सांद्र मिश्रण प्राप्त करना चाहिए |
  • गर्भवती पशु को कुत्तो का पीछा करने, छोटी पहाड़ियों पर चढ़ने जैसे तनावों से दूर रखा जाना चाहिए |
  • डीवर्मिग/कृमिनाशक करना और टीकाकरण जारी रखना चाहिए |
  • आस-पास के इलाकों में गर्भपात की घटनाएं देखी जाती हैं तो संक्रमण से सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है |
  • कैल्शियम और फास्फोरस के साथ दृढ़ खनिज मिश्रण प्रदान किया जाना चाहिए |
  • गर्भवती पशु स्तनपान में हिया तो इसे कम से कम अगले प्रसव के दो महीने पहले सूखा किया जाना चाहिए | यह पहले एक समय दूहने, भोजन और चारा का कोटा अस्थायी रूप से कम करने और एक दिन के अंतराल पर दुहने के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है | जब पशु पूरी तरह से सुख जाए, तब अगले स्तनपान के दौरान थन संक्रमण को रोकने के प्रत्येक चूची में एक एंटीबायोटिक मलहम लगाना चाहिए |

नवजात के रोगों का नियंत्रण और उपचार

यह आवश्यक है कि नवजात का पर्याप्त रूप से और समय पर इलाज किया जाए | नीचे दी गई तालिका में नवजात के कुछ प्रमुख रोगों के और रोकथाम की जानकारी दी गई है:

नवजात की बीमारी

(गर्भनाल का संक्रमण)

  • पके हुए फोड़े को खोला जाना चाहिए और गड्ढे को दो से तीन दिन के लिए आयोडीन के फाहे से भरा जा सकता है |
  • अगर नवजात का ठीक से इलाज नहीं किया जाता है तो संक्रमण सदा बना रहता है और जोड़ों के दर्द, निमोनिया और कमजोरी में समाप्त होता है |
सफेद या रक्त मिश्रित दस्त (बछड़े की आँतों में कुछ बैक्टीरिया और प्रोटोजोआ का प्रवेश)
  • नवजात को कोलोस्ट्रम खिलाना सुनिश्चित करें |
  • मृत्यु से बचने के लिए पशु चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करें |
  • पशु चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराए जाने तक दूध में जायफल का एक फल (मिरिस्टिका फ्रेग्रेंस) इलेक्टयुरी दस्त नियंत्रित करने के लिए उपयोगी है |
निमोनिया
  • छोटे बछड़ों को किसी नम या ठंडे स्थानों में न रखे |
  • उचित और समय पर चिकित्सा उपचार के साथ प्रभावी रूप से निमोनिया का इलाज किया जा सकता है |
  • गंभीर दस्त, निमोनिया या कमजोरी नवजात में निर्जलीकरण पैदा कर सकता है |
निर्जलीकरण (आँखों में सूखापन, त्वचा में लोच का न होना, खड़े वालों के साथ शरीर के रोओ का कड़ा होना निर्जलीकरण के सामान्य लक्षण हैं)
  • पशु चिकित्सक के मार्गदर्शन में नसों में खारे तरल पदार्थ को प्रशासित किया जा सकता है |
  • हर दो घंटे पर घर में बना घोल दिया जा सकता है (चीनी-50 ग्राम, सोडियम बाइकार्बोनेट -5 ग्राम, आम नमक -10 ग्राम, पानी-1 लीटर)
कृमि प्रकोप
  • असंक्रमित चारा प्रदान करें |
  • कृमि नाश – एक माह की आयु में पहली खुराक, बाद में छह महीने तक महीने में एक खुराक, और बाद के वर्षो के दौरान एक वर्ष में दो बार |
बढ़ती उम्र के दौरान स्वास्थ्य समस्याएं
  • उनकी बढ़ती उम्र में बछड़ों के लिए पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करना |
  • स्वच्छता और टीकाकरण सुनिश्चित करना |

प्रजनन

जानवरों के प्रजनन के लिए, दो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं | ये पशुओं में बांझपन और कामोत्तेजना की पहचान करते हैं |

बांझपन

यदि प्रबंधन, पोषण, स्वास्थ्य और पर्यावर्णीय कारक अनुकूल हैं तो पशु नियमित रूप से पुन: प्रजनन कर सकते हैं | उचित रखरखाव की कमी और उच्च तनाव, प्रजनन की संभावना को कम कर देता है यानि पशु जन्म नहीं दे सकते | इस हालत को बांझपन कहा जाता है | गर्भधारण करने की सेवाओं को तीन या अधिक बार दोहराना गायों/भैसों की विफलता है | जब तक कि पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल का हस्तक्षेप नहीं किया जाता है, बांझपन की अवधि, कई दिनों से महीनों तक जारी रह सकती है |

कामोत्तेजना प्रबंधन

इष्टतम प्रजनन के लिए पशु चिकित्सा सलाह के अंतर्गत कामोत्तेजना प्रबंधन का कार्य शुरू किया जा सकता है | इन तकनीकों का मानकीकरण किया गया है और इन्हें किसानों के दरवाजे पर उपलब्ध कराया जा सकता हैं | विभिन्न तकनीकें हैं:

  • कामोत्तेजना प्रवर्तन – हार्मोनल प्रोटोकोल की मदद से किसी भी पूर्व निर्धारित दिन पर कामोत्तेजना को प्रवर्तित किया जा सकता है | पूर्व नियोजित समय पर प्रेरित कामोत्तेजना का प्रदर्शन करने वाले पशु का समय पर कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकता है |
  • कामोत्तेजना का तुल्यकालन – पशुओं के एक चक्रीय या गैर चक्रीय समूह को किसी भी पूर्व निर्धारित दिन पर कामोत्तेजित किया जा सकता है और इस तकनीक को कामोत्तेजना तुल्यकालन कहा जाता है | यह तकनीक एक ही दिन पर बड़े पैमाने पर गर्भाधान की योजना बनाने में मदद करती है |
  • नियंत्रित प्रजनन – नियंत्रित प्रजनन सफल गर्भावस्था के लिए अन्डोत्सर्ग पर नियंत्रण सुनिश्चित करता है |
  • समय पर गर्भाधान – एक समय पर कई मवेशी में गर्भाधान किया जा सकता है |

क्या आप जानते है

  • पुटीय अंडाशय (यह ऐसी स्थिति है जिसमें गाय या भैंस अंडाशय की झूठी कामोत्तेजना दर्शाते हैं जो गर्भावस्था की ओर नहीं ले जा सकती हैं)|
  • कामोत्तेजना न होना (यह ऐसी स्थिति हिया जिसमें पशु कामोत्तेजना प्रदर्शित नहीं करता है)|
  • अंत: गर्भाशय की जीर्णता (गर्भाशय का संक्रमण जो गर्भावस्था को रोकता है) से होने वाले प्रजनन विकार है |
  • कामोत्तेजना न होना (गर्मी का प्रदर्शन न करना) एक प्रमुख प्रजनन विकार है |
  • कामोत्तेजना चक्र के पूर्ण अभाव से जानवरों में यौन वैराग्य की अवधि दिखाई देती है|

निदान और प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दों के इलाज के लिए पशु चिकित्सक से तुरन्त संपर्क किया जाना चाहिए | चिकित्सा उपचार, साथ-साथ पर्याप्त प्रबंधन और पोषण की देखभाल आवश्यक है|

पशु में कामोत्तेजना का पता लगाना

कामोत्तेजना का पता लगाना डेयरी पशुओं को गर्भाधान का अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक है और पता लगाने की जिम्मेदारी पशु मालिक की है | दुधारू पशु बहुत कम घंटो के लिए कामोत्तेजना का प्रदर्शन करते है इसलिए मालिक द्वारा कामोत्तेजना का सही पता लगाना उचित समय पर गर्भाधान की व्यवस्था के लिए उपयोगी है | इसमें विफलता पशु से एक लम्बा प्रजनन अंतराल और कम आर्थिक लाभ का कारण बनता है | गायों और भैसों से क्रमश: प्रसव के 60 और 90 दिनों के बाद पहली बार कामोत्तेजना का प्रदर्शन करने की उम्मीद की जाती है ताकि 90 और 120 दिन में गर्भावस्था को फिर से स्थापित किया जा सके |

पशुओं में कामोत्तेजना के आम लक्षण इस प्रकार हैं |

लक्षण पहला चरण दूसरा चरण तीसरा चरण
स्राव पानी जैसा और कम मात्रा में चिपचिपा और मात्रा बढ़ जाती है गाढ़ा चिपचिपा और मात्रा कम हो जाती है
यौन व्यवहार सामने से चढना नर की तरह चढना ग्रहणशील और चढ़ाने के लिए खड़ी होती है
समूह व्यवहार अलग और बेचैन झुंड में शामिल लेकिन बेचैन शांत और स्थिर
स्वरोच्चरण निरंतर, आवाज में लंबा चढ़ाव आवाज में अंतराल, कम चढ़ाव कभी-कभी आवाज में उतार
मूत्र विसर्जन निरंतर अंतराल के साथ आवृति में कमी
योनि टमिफिकेशन नमूदार/प्रत्यक्ष स्पष्ट कम होता है
प्रवेश पूरी तरह लापरवाह पूरी तरह लापरवाह बस फैलता है
टेल कैरिज संचलन (घूमना-फिरना) संचलन (घूमना-फिरना) बगल में हो जाता है
अन्य चेतावनी नर की ओर आकर्षित जननांग दिखाई देता है

पशु में कामोत्तेजना और गर्भाधान के लिए उचित समय अवधि इस प्रकार है

पशुधन की नस्ल कामोत्तेजना का प्रकार अवधि एआई का समय
गैर-विशिष्ट गाय और भैंसें कमजोर/मूक अप्रत्यक्ष 12 से 18 घंटे पता लगने के 6 घंटे के भीतर या सूचना मिलने पर तुरन्त
देशी गाय और भैंसें मध्यम और मध्यवर्ती 18 से 24 घंटे एएम-पीएम नियम- कामोत्तेजना के पहले लक्षण के दिखाई देने के 12 घंटे बाद
संकर गायें साफ़ और प्रत्यक्ष स्पष्ट 30 से 36 घंटे कामोत्तेजना के पहले लक्षण के दिखाई देने के 36 घंटे के अंदर
विदेशी गायें बहुत साफ़, प्रत्यक्ष और स्पष्ट 36 से 48 घंटे कामोत्तेजना के पहले लक्षण के दिखाई देने के 36 घंटे के अंदर

डेयरी पशुओं में कामोत्तेजना का पता लगाने की कई तकनीकें और व्यवस्थाएं हैं | सर्तक निरीक्षण के साथ सुबह और शाम के समय के दौरान दैनिक आधार पर प्रत्येक जानवर का एक दृश्य अवलोकन कामोत्तेजना का पता लगाने का एक सफल तरीका है |

डेयरी –स्वच्छ दूध

स्वच्छ दूध ऐसा दूध है जिसमें कोई अवांछनीय रंग न दिखाई दे, गंदगी से मुक्त हो और बैक्टीरिया की कम मात्रा होती है  | स्वच्छ दूध में प्रति मिलीलीटर लैक्टिक एसिड 0.15 प्रतिशत और बैक्टीरिया गिनती 100000 (1 लाख) से कम होनी चाहिए | स्वच्छ दूध सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित आवश्यक है:

  • पर्याप्त स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सहित साफ़ और स्वच्छ स्थिति बनाए रखना
  • स्वस्थ पशु
  • दूध दुहनेवाले की व्यक्तिगत स्वच्छता
  • स्वच्छता और थन की सफाई
  • स्वच्छ स्टेनलेस स्टील के दूध के बर्तन

स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किए जाने वाले अन्य वांछनीय बिंदु

  • दूध दुहनेवाले को अक्सर बदला नहीं जाना चाहिए |
  • दुधारू जानवरों को खिलाने और प्रबंधन की दिनचर्या को बदला नहीं जाना चाहिए |
  • दूध दुहने और दूध को संभालने में स्वच्छ ब्यवहार का पालन किया जाना |
  • 15 लीटर से अधिक दूध देने वाली सभी गायों/भैंसों को छह घंटे के अंतर पर एक दिन में तीन बार दूहा जाना चाहिए |
  • सर्दियों में चूची पर मक्खन, घी, विसंक्रमित मलाई इत्यादि जैसी कुछ स्नेहक लगाया जाना चाहिए |
  • समय-समय पर दूध दूहने से पहले सीएमटी अभिकर्मक का उपयोग कर कैलिफोर्निया स्तन परीक्षण (सीएमटी) किया जा सकता है |
  • हर 15 दिन पर दूध का प्रयोगशाला परीक्षण किया जाना चाहिए |
  • दूध पार्लर और भंडारण कमरा अलग और पशु बाड़े से दूर होना चाहिए |

दूध में मिलावट

दूध में मिलावट सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है | दूध सामग्री में मिलावट रोकने के लिए संग्रह, स्थानों पर वसा और एसएनएफ (ठोस पर वसा नहीं) का परीक्षण किया जाना चाहिए | यहाँ तक कि कुछ डेयरी समाज भी प्रत्येक दूध देने वाले के लिए अलग-अलग नमूना परीक्षण नहीं करते, केवल एक सामूहिक नमूना लिया जता है और उसका परीक्षण किया जाता है| कुछ लोगों के मिलावट करने से गाँव की छवि खराब होती है | पानी, नमक, चीनी, माल्टोज, स्टार्च, न्युट्रालाइजर, सोडा और यूरिया का उपयोग कर मिलावट की जा सकती है | एक मिलावट किट की मदद से दूध में मिलावट का पता लगाने के लिए परीक्षण किया जा सकता है|

क्षमता बढ़ाने में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका

प्रशिक्षण सत्र के दौरान, सुश्री लक्ष्मीबाई, एक ग्रामीण और कामधेनु समूह के सदस्य ने गाय की खरीदारी के दौरान अपने समूह के सदस्यों के अनुभव को साझा किया | उन्होंने कहा कि वे बैंक ऋण का उपयोग कर डेयरी गतिविधि की शुरुआत कर रहे है | उन्होंने इस कार्य को आर्थिक रूप से अधिक लाभप्रद बनाने के लिए वैज्ञानिक पशुपालन के बारे में और अधिक जानने की इच्छा व्यक्त की | समूह के सदस्यों का मानना था कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण का एक साधन है| सुश्री लक्ष्मीबाई ने कहा कि चूँकि ग्राम पंचायत ने पशुपालन पर बैठक का आयोजन किया गया है, इसलिए उसने अपने स्वयं सहायता समूह के सभी सदस्यों को बैठकों में भाग लेने के लिए तैयार किया है, उन्होंने समूह की बैठकों में उनकी सीखों पर चर्चा की |

इन विचारों पर सोचा गया और बाद में सहायता समूह की बैठकों के दौरान इस पर चर्चा की गई और इस पर तुरन्त अमल भी किया गया था | पशुओं के स्वास्थ्य में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था | पशुओं के उपचार की लागत को कम करने और उत्पादकता में वृद्धि हुई थी| उसके अनुरोध पर, ग्राम पंचायत ने उनके स्वयं सहायता समूह को अपने गाँव में एक सहकारी डेयरी आरंभ करने के लिए अनुमति दे दी है | इस प्रकार दुधिया में दूध क्रांति की शुरुआत हुई|

मुर्गी मुर्गीपालन एक महत्वपूर्ण आजीविका अतिविधि है, साथ ही यह परिवार के लिए पोषण का एक स्रोत है | सभी पशुओं की तरह सही समय पर पोल्ट्री का टीकाकरण सुनिश्चित करना आवश्यक है |

मुर्गियों (चिकन) के प्रकार

ब्रॉयलर चिकन (मुर्गी): यह एक विशेष मुर्गी है जिसे मांस के लिए विकसित किया जाता है और 2.4 से 2.6 किग्रा का शारीरिक वजन प्राप्त करने के लिए लक्षित होता है | 42 दिन (6 सप्ताह) में मुर्गी लगभग 4.2-4.6 किग्रा आहार का सेवन करती है |

लेयर चिकन: यह एक विशेष प्रकार का पक्षी है जो वर्ष में लगभग 300-320 अंडे देता है | लेयर मुर्गी को अंडो के लिये पाला जाता है |

पोल्ट्री में संक्रामक रोगों की रोकथाम

पोल्ट्री के बैक्टीरियल/वायरल रोग सबसे गंभीर प्रकृति के हैं और बड़े पैमाने पर पक्षियों की मृत्यु की संभावना के कारण इनसे भारीवित्तीय नुकसान हो सकता है | निम्नलिखित उपायों के द्वारा ऐसे नुकसानों को कम किया जा सकता है:

  • संक्रामक रोग के लक्षण दर्शाने वाले पक्षी या ऐसे लक्षणों की वजह से मृत पक्षी को तुरन्त पोस्टमार्टम निदान के लिए स्थानीय पशु चिकित्सक के पास ले जाएं |
  • पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार टीकाकरण करें |
  • जब तक पशु चिकित्सक सलाह न दे किसी भी एंटीबायोटिक दवा का प्रयोग न करें |
  • टीकाकरण अनुसूची का पालन करें |

ग्रामीण बाड़े में मुर्गीपालन

संसाधन रहित ग्रामीण परिवारों के लिए ग्रामीण बाड़े का मुर्गीपालन आजीविका का एक स्रोत है | समर्थन सेवाओं के अभाव में मुर्गीपालन प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है |मुर्गीपालन में न्यू कासल एवं फाउल पॉक्स जैसी बीमारियाँ से बहुत अधिक संख्या में पक्षियों की मृत्यु होती है | इन सभी कमियों के बावजूद मुर्गीपालन अन्य पशु पालन गतिविधियों की तुलना में गरीब परिवारों के लिए ज्यादा लाभकारी है |

इनमें से कुछ लाभ हैं, जैसे:-

  • कम लागत में अधिक लाभ |
  • मुर्गीपालन केवल दो पक्षियों से शुरुआत किया जा सकता है |
  • चारे की लागत कम है क्योंकि बचे हुए दाने व चारे का उपयोग किया जा सकता है |
  • अण्डों व मुर्गियों को आसानी से बाजार में बेचा जा सकता है |
  • अंडे और मीट का बाजार में अच्छा भाव मिलता है |
  • विकलांग व्यक्तियों को सम्मानजनक रोजगार का अवसर प्रदान करता है |

मॉडल

मुर्गीपालन को प्रारंभ करने के लिए मूल-भूत आवश्यकता काफी कम होती है जिससे इस व्यवसाय को पंचायत के अनेक परिवारों के साथ प्रारंभ किया जा सकता है | शुरूआती लागत और समयावधि कम होती है |

मूलभूत आवश्यकता

  • परिवार को मुर्गीपालन और बकरीपालन का पूर्व अनुभव होना चाहिए
  • कम से कम पचार डिसमल बाड़े की भूमि होनी चाहिए
  • मुर्गियों के लिए पर्याप्त और सुरक्षित जगह
  • टीकाकरण और डीवर्मिग की सुविधा की उपलब्धता
  • थोड़ी सी कार्यकारी पूंजी
  • शावकों से सुरक्षा

गतिविधि की लागत आय

1 मुर्गियों की संख्या 4
2 प्रतिवर्ष प्रजनन की संख्या 3
3 अंडे प्रति प्रजनन 15
4 बिक्री तक जीवित चूजों की संख्या 7
5 दाम प्रति मुर्गी (7-8) 300/-
6 आय प्रति प्रजनन 2100/-
7 आय प्रति मुर्गी प्रति वर्ष 6300/-
8 4 मुर्गियों से आय प्रति वर्ष 25,200/-

प्रत्येक मुर्गीपालक चार मुर्गी और दो मुर्गी से शुरुआत कर सकता है | तीन प्रजनन प्रतिवर्ष से एक वर्ष में 70 मुर्गियां हो जाती हैं | 8-9 माह में हर चूजा 1.5 किलो वजन का हो जाता है और बेचा जा सकता है | हर माह सात मुर्गियों को बेच कर प्रतिवर्ष 18000/-रु. की आय प्राप्त की जा सकती है |

ब्रॉयलर के लिए टीकाकरण अनुसूची

क्र.सं. आयु दिनों में टीका खुराक तरीका
1 एस दिन की उम्र में

(हैचरी पर)

एस डी (मार्के रोग) 0.2 मिली/चूजे एस/सी (त्वचा के नीचे)
2 एक दिन की उम्र में आई बी (संक्रामक ब्रोंकाइटिस) 0.2 मिली/चूजे चोंच डुबा कर
3 पांचवें दिन बी1/लासोटा + एन.डी. किल्ड 0.03 मिली/चूजे 0.25 मिली/चूजे आई/ओ (इंट्राओक्यूलर) एस/सी (त्वचा के नीचे)
4 बारहवें से चौदहवें दिन तक आईबीडी इंटरमीडिएट प्लस 0.03 मिली/चूजे आई/ओ या डी/ डब्ल्यू
5 इक्कीसवें से अठ्ठाइसवें दिन लासोटा बूस्टर 1.5 अधिक खुराक डी/ डब्ल्यू

उन्नत पक्षियों के साथ ग्रामीण बाड़े में मुर्गी पालन

देसी नस्लों के साथ पिछवाड़े मुर्गीपालन की अवधारण शुरू की गई है | राज्य विभाग द्वारा उन्नत उत्पादन क्षमता (अंडे और मांस) के साथ रंगीन पंखों वाले पक्षियों को बढ़ावा दिया जा रहा है | उपलब्ध पक्षियों की विभिन्न नस्लें हैं | नीचे दी गई तालिका नस्लों और उनकी औसत मांस और अंडा उत्पादन की सूची प्रदान करता है |

तालिका: पोल्ट्री की विभिन्न नस्लों से उत्पादन

क्र.सं. नस्ल का नाम उद्देश्य मांस उत्पादन 72 सप्ताह में अण्डों का उत्पादन
1 वंजारा दोहरे 10 सप्ताह में 1.2 से 1 120-140
2 ग्रामप्रिया दोहरे (मुख्य रूप से अण्डों के लिए) 15 सप्ताह में 1.2 से 1.5 किलोग्राम 230-240
3 कृषिब्रो ब्रॉयलर 42 दिन में 1.44 किलोग्राम 49 दिन में 1.92
4 कृषि लेयर लेयर 280
5 श्रीनिधि दोहरे 49 दिन में 750 ग्राम 255
6 श्वेतप्रिया लेयर 200
7 करी प्रिया लेयर 298
8 करी सोनाली लेयर 280
9 करी देवेंद्र दोहरे 8 सप्ताह में 1.2 200
10 कृषिब्रो विशाल ब्रॉयलर 42 दिन में 1.6 से 1.7
11 कृषिब्रो ब्रॉयलर 42 दिन में 1.5 से 1.7
12 कृषिब्रो ब्रॉयलर 42 दिन में 1.4 से 1.5
13 करी ब्रो ट्रॉपिकाना ब्रॉयलर (नंगी गर्दन) 7 सप्ताह में 1.8 किलोग्राम
14 निर्भीक लेयर 1998
15. श्यामा लेयर 210
16. उपकारी लेयर 220
17 हितकारी लेयर 200

राष्ट्रीय पशुधन मिशन और पशुधन के बीमा के लिए प्रावधान

इस अध्याय में हम राष्ट्रीय पशुधन (एनएलएम) और पशुधन बीमा के प्रावधानों के बारे में जानेंगे| पशुधन बीमा आवश्यक होता जा रहा है क्योंकि पशु के असामयिक मृत्यु के कारण परिवार को भारी आर्थिक हानि होती है |

राष्ट्रीय पशुधन मिशन के उद्देश्य निम्रवत है

  • कुक्कुट पालन सहित पशुधन क्षेत्र का सतत विकास और उन्नयन |
  • चारा और आहार का उत्पादन और उपलब्धता को बढाना |
  • किसानों के लिए गुणवत्तापूर्ण विस्तार सेवाओं को सुनिश्चित करना |
  • प्रौद्योगिकियों पर कौशल आधारित प्रशिक्षण और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना |
  • किसानों, कृषक समूहों, सहकारी समितियों, आदि के सहयोग से पशुधन की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए पहल और नस्ल उन्नयन को बढ़ावा देना |
  • छोटे और सीमांत पशुधन मालिकों को किसान समूह, सहकारी समितियों, उत्पादक कंपनी (प्रोडूसर कंपनी) समूहों के गठन के लिए प्रोत्साहित करना |
  • विपणन, प्रसंस्करण और मूल्य वर्धन के लिए बुनियादी ढांचा और संपर्क उपलब्ध कराना |
  • किसानों के लिए पशुधन बीमा सहित जोखिम प्रबंधन के उपायों को बढ़ावा देना |

एनएलएम किसान को पशु की मौत से होने वाले जोखिम और अनिश्चितता से बीमा के माध्यम से सुरक्षा प्रदान करता है | इसके अंतर्गत:

  • स्वदेशी और संकर दुधारू पशुओं, ढ़ोने वाले जानवरों (घोड़े, गधे, खच्चर, ऊंट, टट्टू और नर मवेशी और भैंस) तथा अन्य पशुधन (बकरी, भेड़, सुअर और खरगोश) सभी का बीमा किया जा सकता है |
  • भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश को छोड़कर सभी जानवरों के लिए प्रति परिवार प्रति लाभार्थी के लिए अनुदान का लाभ पाँच पशुओं के लिए प्रतिबंधित है |
  • भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश के मामले में सब्सिडी का लाभ मवेशी यूनिट के आधार पर प्रतिबंधित है और एक मवेशी इकाई 10 पशुओं के लिए बराबर है | भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश के लिए अनुदान का लाभ घर के प्रति लाभार्थी प्रति पाँच “मवेशी यूनिट” के लिए प्रतिबंधित किया जा रहा है | इस प्रयोजन के लिए ‘घर’ को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के सामान रूप में परिभाषित किया गया है |
  • पॉलिसी के अंतर्गत बीमा राशि (बॉक्स में उल्लेख किया है) जानवर का बाजार मूल्य है | हालांकि, ढ़ोने वाले जानवरों (घोड़े, गधे, खच्चर, ऊंट, टट्टू और मवेशी/भैंस) तथा अन्य पशुधन (बकरी, भेड़, सुअर और खरगोश) की बाजार की कीमत का एक पशु चिकित्सक की उपस्थिति में पशु के मालिक और बीमा कंपनी के प्रतिनिधि के बीच संयुक्त रूप से बातचीत द्वारा आकलन किया जाना है |

जानवरों के मूल्य की गणना कैसे करें?

एक जानवर का उसके वर्तमान बाजार मूल्य के लिए बीमा किया जाता है | बीमा करने के लिए पशु के बाजार मूल्य का लाभार्थी और पशु चिकित्सा अधिकारी या बीडीओ की उपस्थिति में अधिमानत: बीमा कंपनी के प्रतिनिधि संयुक्त रूप से आकलन करते है |

  • गाय के लिए प्रति दिन उत्पादित दूध के प्रति लीटर के लिए रु.3000 और
  • भैंस के प्रति दिन उत्पादित दूध के प्रति लीटर के लिए रु.4000

या स्थानीय बाजार में प्रचलित कीमत प्रति लीटर के रूप में (सरकार द्वारा घोषित) |

दुधारू पशु की कीमत की गणना इसकी उत्पादकता के आधार पर की जाती है |

अगर गाय प्रति दिन 4 लीटर दूध देती है तो, बीमा राशि 12000 रूपये या सरकार द्वारा निर्धारित बाजार मूल्य के अनुसार होगी |

  • नीति के अंतर्गत क्षतिपूर्ति बीमा राशि या बीमारी से पहले बाजार मूल्य जो भी कम हो | अगर एक उत्पादक पशु गैर उत्पादक बन जाता है तो स्थायी पूर्ण विकलांगता (पिटीडी) दावा के मामले में, क्षतिपूर्ति बीमा राशि के 75 प्रतिशत तक सीमित है |
  • सामान्य क्षेत्रों के लिए महाराष्ट्र पशुधन विकास बोर्ड द्वारा निर्धारित प्रीमियम दर क्रमश: एक और तीन साल के लिए क्रमश: 2.45 और 6.40 प्रतिशत है | वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के लिए वार्षिक और तीन साल की प्रीमियम दरें क्रमश: 2.90 और 8.1 प्रतिशत हैं | एक साल की बजाय कम से कम तीन साल के लिए पशुओं का बीमा करने के प्रयास किए जाने चाहिए |
  • इस योजना में केंद्र सरकार, राज्य और लाभार्थी का योगदान क्रमश: 40, 30 और 30 प्रतिशत है |

बीमा राशि

पॉलिसी निम्न कारणों से मृत्यु के लिए क्षतिपूर्ति देगी:

  • दुर्घटना (आग, बिजली, बाढ़, आंधी, तूफ़ान, हरिकेन, भूकंप, चक्रवात, टार्नेडो, टेम्पेस्ट और अकाल समावेशी) |
  • बीमा की अवधि के दौरान होने वाले रोगों से |
  • शल्यक्रिया (आपरेशन) |
  • दंगे और हडताल |

जानवर की पहचान

जानवर की पहचान बीमा में महत्वपूर्ण है | इस संबंध में निम्नलिखित पहलू महत्वपूर्ण हैं:

  • बीमा दावे के समय पर बीमाकृत पशु की ठीक से और विशिष्ट पहचान करनी होती है | इसलिए जहाँ तक संभव हो, कान को छेदना का पूर्ण प्रमाण होना चाहिए | पॉलिसी लेने के समय कान छेदने की पारंपरिक विधि या हाल ही में विकसित माइक्रोचिप्स लगाने की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा सकता है |
  • पहचान चिह्न लगाने के लागत का बीमा कंपनी द्वारा वहन किया जाएगा और इसके रखरखाव की जिम्मेदारी संबंधित लाभार्थियों की होगी |
  • बीमा प्रस्ताव को तैयार करते समय मालिक के साथ जानवर की एक तस्वीर और स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले कान टैग से साथ जानवर की एक तस्वीर की आवश्यकता होगी |
  • पशु चिकित्सक को पशु का बीमा करते समय 50 रुपए प्रति पशु और बीमा के दावे के मामले में पोस्टमार्टम के संचालन और पोस्टमार्टम प्रमाण पत्र जारी करने के लिये 125 रुपए के मानदेय का भुगतान किया जाता है | किसान को राशि का भुगतान करने की जरूरत नहीं है, इसका भुगतान सरकार द्वारा किया जता है (यह योजना में अंतर्निहित है) |
  • जानवर की पहचान, पशु चिकित्सक द्वारा उसकी जाँच, उसके मूल्य का आकलन और टैगिंग के साथ बीमा कंपनी को प्रीमियम का भुगतान जैसी बुनियादी औपचारिकताओं को पूरा किया जाना चाहिए |

दावा प्रक्रिया

जानवर की मौत की घटना में बीमा कंपनी को तत्काल सूचना भेजी जानी चाहिए और निम्नलिखित सुनिश्चित किया जाना चाहिए:

  • दावे के निपटाने के लिए बीमा कंपनियों को चार दस्तावेजों अर्थात बीमा कंपनी को सूचना, बीमा पॉलिसी के कागज, दावा प्रपत्र और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की आवश्यकता होती है |
  • बीमा पॉलिसी जारी करते समय जानवर की परीक्षा पंजीकृत पशु चिकित्सक द्वारा की जाती है|
  • मृतक पशुओं का पोस्टमार्टम पंजीकृत पशु चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए |
  • विधिवत भरा गया दावा प्रपत्र |
  • दावे का मामला बनने पर, अपेक्षित दस्तावेज प्रस्तुत करने के 15 दिनों के भीतर बीमित राशि का भुगतान किया जाना चाहिए | अगर बीमा कंपनी दस्तावेज प्रस्तुत करने के 15 दिनों के भीतर दावे का निपटान करने में विफल रहती है, तो वह लाभार्थी को प्रति वर्ष 12: चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान करने के दंड के लिए उत्तरदायी होगी |
  • दावे के निपटान में देर या बीमा कंपनियों की ओर से सेवाओं में किसी भी प्रकार की कमी को बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए), जो देश में एक प्रमुख प्राधिकरण है, की जानकारी में लाया जाना चाहिए |
  • विवाद की स्थिति में कीमत निर्धारण ग्राम पंचायत/ बीडीओ द्वारा तय किया जाता है |
  • पंजीकृत दुग्ध समितियों/यूनियनों को पशुओं के बीमे में शामिल किया जाना चाहिए |
  • जानवरों की बिक्री या बीमा पॉलिसी की समाप्ति से पहले एक मालिक से दूसरे मालिक को अन्य प्रकार से जानवर के हस्तान्तरण के मामले में, नीति की शेष अवधि के लिए लाभार्थी के अधिकार नए मालिक को हस्तांतरित हो जाएँगे |

सुअर पालन

ग्राम में सबसे निचले सामाजिक और आर्थिक स्तर के परिवारों द्वारा सुअर पालन किया जाता है| आमतौर पर इन परिवारों में पशु चिकित्सा सेवाओं की पहुंच नहीं है |

विभिन्न पशुधन प्रजातियों में से सुअर पालन में मांस उत्पादन की सबसे अधिक संभावना है | सुअर पालन की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • सुअर में उच्चतम आहार रूपांतरण दक्षता है |
  • सुअर आहार की व्यापक विविधता अर्थात अनाज, दाने, खराब आहार और कचरे का उपयोग कर सकते है |
  • इमारतों और उपकरणों पर छोटे निवेश की आवश्यकता होती है |
  • औद्योगिक इकाइयों की ओर से सुअरों की वसा की मांग की जाती है |
  • सुअर पालन जल्दी लाभ देता है |
  • सुअर के मांस की मांग में वृद्धि हुई है |
  • इस व्यवसाय को लाभदायक बनाने के लिए सुअरों को रोगों से संरक्षित करने की आवश्यकता है, गर्भावस्था के दौरान और छौनों की देखभाल सुनिश्चित करने की जरूरत है |

रोगों से संरक्षित

निम्नलिखित द्वारा सुअरों को रोगों से संरक्षित किया जा सकता है:

  • खाने की सम मात्रा, बुखार, असामान्य स्राव, असामान्य व्यवहार और आम बीमारियों के लिए समय पर उपचार उपलब्ध कराना |
  • संक्रामक रोगों के फैलने के मामले में तुरन्त बीमार और स्वस्थ पशुओं को अलग करना और रोग नियंत्रण के आवश्यक उपाय करना |
  • नियमित रूप से जानवरों को डीवर्मिग/कृमिनाशक करना |
  • आंतरिक परजीवी के अंडे का पता लगाने के लिए वयस्क जानवरों के मल की जाँच करना और उपयुक्त दवाओं के साथ पशुओं का इलाज करना |
  • स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर पशुओं को धोना/नहलाना |

क्या आपको पता है?

सुअर कम पीढ़ी अंतराल के साथ विपुल संख्या में हैं | एक सुअर मात्र 8-9 महीने की उम्र में प्रजनन आरंभ कर सकती है और एक वर्ष में दो बार सुअरों को जन्म दे सकती है | प्रत्येक बार में 6-12 सुअर के छौनों को जन्म देती है |

  • सुअरों को उनके मांस उत्पादन के लिए जाना जता है, जो ड्रेसिंग में 65 प्रतिशत से 80 प्रतिशत की सीमा में है | अन्य पशुओं की ड्रेसिंग उपज 65 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है |
  • सुअर के मल का व्यापक रूप से कृषि फार्मो और मछली तालाबों के लिए खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है |

रोग और टीकाकरण

उत्पादकता को प्रभावित करने और जानवर की असामयिक मौत का कारण बन सकने वाली विभिन्न बीमारियों से सुअरों की रक्षा के लिए निम्नलिखित टीके प्रदान किए जाने चाहिए |

क्र.सं. रोग का नाम टीके का प्रकार टीकाकरण का समय प्रतिरक्षा की अवधि टिप्पणी
1 बिसहरिया (एंथ्रेक्स) स्पोर टीका साल में एक मानसून –पूर्व टीकाकरण एक मौसम
2 हॉग हैजा क्रिस्टल वायलेट टीका दूध छुड़ाने के बाद एक साल
3 खुर और मुँह की बीमारी पॉलीवेलेंट टिशु कल्चर टीका लगभग छह महीने की उम्र में चार महीने के बाद बूस्टर के साथ एक मौसम हर साल अक्टूबर/नवंबर में टीकाकरण दोहराएं
4 स्वाइन इरिसिपेलास फिटकिरी में उपचारित टीका दूध छुड़ाने के बाद 3-4 सप्ताह के बाद एक बूस्टर खुराक के साथ लगभग एक साल
5 तपेदिक बी सी जी टीका लगभग छह महीने की उम्र में एक से दो साल हर 2 या 3 साल में दोहराया जाना चाहिए

गर्भावस्था में देखभाल

जन्म देने से एक सप्ताह पहले गर्भवती सुअर को पर्याप्त स्थान, चारा, पानी उपलब्ध कराके उसका विशेष ध्यान रखा जा सकता है | जन्म देने की अपेक्षित तारीख से 3-4 दिन पहले गर्भवती सुअर और साथ ही जन्म देने के स्थान को विसंक्रमित किया जाना चाहिए और अच्छी तरह से बिस्तर बनाने के बाद उसमें सुअर को रखा जाना चाहिए |

सुअर के छौनों के देखभाल

  • बाड़ उपलब्ध कराके नवजात सुअर के छौने का ख्याल रखना |
  • नाल के कटते ही आयोडीन के टिंचर से उसका उपचार/विसंक्रमण किया जाना चाहिए |
  • पहले 6-8 सप्ताह माँ के दूध के साथ घोंटा आहार (एक क्रीप आहार उसी समय आरंभ करना चाहिए जब वे अपनी माँ का दूध पी रहे हों) दें |
  • विशेष रूप से पहले दो महीनों के दौरान विषम मौसम की स्थिति में सुअर के छौने को सुरक्षित रखें |
  • सुअर के छौने माँ के थन को नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिए जन्म के बाद शीघ्र ही उनके सुई दांतों को छांट दें |
  • मजबूत छौना अपने लिए वह थन सुरक्षित रखता है जिसमें अधिक दूध होता है और किसी भी अन्य छौने को उस चूची से दूध नहीं पीने देता |
  • सिफारिश किए गए टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार सुअर के छौनों का टीकाकरण करें |
  • सुअर के छौनों में एनीमिया को रोकने के लिए आईरन के पूरक की आवश्यकता होती है |
  • प्रजनन करने वाले सुअर के रूप में बेचे जाने वाले छौने को ठीक से पाला जाना चाहिए |
  • प्रजनन के लिए चयनित नहीं किए गए सुअर के छौनों की अधिमानत: 3-4 सप्ताह की आयु में बधिया की जानी चाहिए जिससे पके मांस में सुअर की गंध को रोका जा सके |
  • सभी नवजात सुअर के छौनों के उचित उपचार के लिए स्तनपान कराने वाली सुअर की अतिरिक्त आहार की आवश्यकताओं को पूरा करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए |

स्वच्छता, स्वास्थ्य और पशुजन्य रोग

पशुओं का स्वास्थ्य और उत्पादकता इस बात पर निर्भर है कि पशुओं की देखभाल कितनी अच्छी तरह से की जाती है | अगर किसी तरह से पशुओं की स्वच्छता और सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो, उत्पादकता में कमी होती है | बाड़ों का आवास से सटा होना या कभी-कभी छोटे पशुओं को लोगों के रहने की जगह में बाँधना हमारे गाँवों में एक आम बात है | इसके अलावा, कई बार पशु शेड में मलमूत्र और मूत्र के लिए पर्याप्त जल निकासी प्रदान नहीं की जाती है | गोबर घर के पास खुले ढेर के रूप में एकत्र किया जाता है | ये सभी गंदी स्थितियां केवल पशुओं के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है |

स्वच्छता की स्थिति पैदा करने की आवश्यकता पर चर्चा की और कहा कि हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है:

  1. गोबर का संग्रह और मूत्र के लिए उचित जल निकासी
  2. पर्याप्त आवास प्रबंधन
  3. खाल और शवों का उचित निपटान
  4. आम/साझा तालाब या पशुओं के लिए पीने के पानी की सुविधा का रखरखाव

अस्वच्छ स्थितियों से उत्पन्न विभिन्न रोगों से पशुओं की रक्षा के लिए उपरोक्त उपाय महत्वपूर्ण हैं | उचित और पर्याप्त आवास जानवर में तनाव को कम करता है और उत्पादकता में वृद्धि होती है | इसी तरह, पीने के पानी को स्वच्छ बनाए रखने से जानवरों के बीच रुग्णता को कम करने में मदद मिलती है |

कम्पोस्ट (कचरा-खाद)

ग्राम पंचायत स्तर के कृषि विभाग के पदाधिकारियों के सहयोग से कम्पोस्ट के संबंध में जानकारी का प्राप्त कि जा सकती है | इसी प्रकार ग्राम पंचायत कम्पोस्टिंग उद्योग को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंर्तगत स्थापित कर प्रचार कर सकती है | ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र से उत्पन्न हो रहें पूरे कचरे को कम्पोस्ट कर खाद में परिवर्तित कर सकती है |

खाद हो उद्देश्यों को पूरा करता है | यह कचरा प्रबंधन की समस्यां के लिए एक समाधान प्रदान करता है और दूसरे, यह कृषि भूमि के लिए खाद प्रदान करता है | आमतौर पर, गोबर और अन्य कार्बनिक अपशिष्ट का उपचार करने पर यह जैविक खाद प्रदान करता है | खाद बनाने की दो प्रमुख तकनीकें हैं कृमि खाद और नारायण देवताव खाद (नाड़ेप) |

जैव खाद

जैव खाद कीड़े, जीवाणु और कवक के उपयोग के माध्यम से जैविक सामग्री को तोड़ने की प्रक्रिया है | कृमि खाद का अंतिम उत्पाद कीड़ा-खाद या “कृमि कास्टिंग” नामक एक पदार्थ हैं|

लाभ

  • पौधों के विकास के लिए आवश्यक मूल्यवान पोषक तत्व (नाइट्रोजन (1-1.5 प्रतिशत), फास्फोरस (0.8 प्रतिशत), पोटेशियम (0.7 प्रतिशत), सूक्ष्म पोषक, एंजाइमों, पौध हार्मोन, और एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं) |
  • पौधों का तेजी से विकास को बढ़ावा देता है और फसल की पैदावार बढ़ जाती है |
  • मात्रा बढ़ जाती है और फल, सब्जियों और फूलों की गुणवत्ता में सुधार होता है |
  • मिट्टी के धारण सामग्री को बनाए रखता है |
  • आराम से उत्पादन और कम लागत खर्च होता है |
  • सेलिनाइजेशन और अम्लीकरण कम कर देता है |
  • मिट्टी का कटाव कम कर देता है |
  • कीटों के हमले कम कर देता है |

किसानों को लाभ

  • मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि |
  • कम सिंचाई के साथ उपज में वृद्धि |
  • कीटों के हमले की वजह से फसल नुकसान के जोखिम में कमी |
  • जहरीले अवशेषों के बिना फसल के उत्पादन से गुणवत्ता, बेहतर स्वाद, चमक बनी रहती है, और एक उच्च कीमत मिलती है |

नाड़ेप (नारायण देवताव खाद)

परंपरागत रूप से खाद का निर्माण ढेर/कचरे के गड्डे (उकिरन्दा) विधि से किया जता है | अगर हम नाड़ेप गड्ढे के लिए बदलाव करते है, तो यह खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ सफाई के मुद्दों को बेहतर बनाने में मदद करता है | नाड़ेप खाद, खाद बनाने का आसान और सस्ता तरीका है | इसमें कम निवेश की आवश्यकता होती है और कम रखरखाव और संचालन लागत आती है |

खाद के लिए कच्चा माल

  • प्लास्टिक, सिलिका और पत्थरों को छोड़कर कचरा, फसल अवशेष, खर-पतवार, जड़ का भाग, मूंगफली के छिलके, सड़े फल और घर का कचरा आदि लगभग 1400-1500 किलोग्राम |
  • गोबर, गोबर गैस का घोल 90-100 किलोग्राम, यदि उपलब्ध हो तो, उपयोग किया जा सकता है |
  • खेत से सूखी मिट्टी (1750 किलोग्राम) |
  • सभी सामग्री के कुल वजन का 25 प्रतिशत अर्थात लगभग 1500-2000 लीटर पानी | छिड़काव के लिए पशुओं के मूत्र का इस्तेमाल किया जा सकता है |

नाड़ेप खाद के लिए गड्ढे की खुदाई का आकार क्या है?

सीमेंट से गड्ढे की ठोस नींव रखने के साथ 03 मीटर लंबाई गुणे 1.80-2 मीटर चौड़ाई और 0.90-1 मीटर ऊँचाई के साथ ईट की दीवार का निर्माण (गड्ढे का आकार 10 फुट x 6 x फुट x 3 फुट) | दीवार का आकार 22.5 सेमी (9 इंच) है |

दीवार को समर्थन प्रदान करने के लिए दीवार को लोहे की जाली (जाली) से घेरा जा सकता है | ईटों का नीचे की दो परतें तैयार करने के बाद, तीसरी परत और उसके ऊपर की परतों का निर्माण इस तरह के किया जाना चाहिए कि हर दो ईटों के बीच है कि 17.5 सेमी (7 इंच) का फासला रहे |

पशुजन्य रोग

पशुजन्य रोग की रोकथाम का मुख्य उद्देश्य पशुओं और मनुष्यों को संक्रमित होने से रोकना है | पशुजन्य रोग ऐसे रोग है जो जानवर से मनुष्यों को हो सकतें है जैसे टीबी, रेबीज औत कुष्ठ रोग | इनमें से कुछ बीमारियाँ धातक भी हो सकतीं हैं | इसलिए पशु को स्वस्थ्य रखना व उसका समय पर उपचार कराना पशुजन्य रोगों से बचने का सबसे बेहतर तरीका है |

स्वच्छता, सफाई, स्वास्थ्य देखभाल और समय पर टीकाकरण पशुजन्य रोगों की घटना की संभावना को कम कर देता है |

ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा एक प्रतिज्ञा ली जा सकती है कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि ग्राम पंचायत के प्रत्येक घर में स्वच्छता बनाए रखे और पशुओं के लिए पर्याप्त उपचार प्रदान करे | पशुजन्य रोगों के बारे में समुदाय की जागरूकता से मनुष्यों के इन संक्रमित होने की संभावना को रोका जा सकता है इसलिए, पशु पालन समिति को इन रोगों के लक्षणों के बारे में जागरूकता फैलाने का कार्य सौंपा जा सकता है |

मुंबई (पशुओं के रोग) अधिनियम, 1948

मुंबई अधिनियम, 1948 पशु के रोग, रोगों के उन्मूलन, रोकथाम और नियंत्रण से संबंधित है | यह अधिनियम, राज्य सरकार को रोगों के प्रकोप या प्रसार को रोकने के उद्देश्य से, संक्रमित पशुओं के आयात, निर्यात या बाजारों, मेलों, आदि में परिवहन और यातायात को निषेध या विनियमित करने का अधिकार देता है |

विभिन्न पशुजन्य रोग और मनुष्यों में उनके लक्षण

क्र.सं. रोग का नाम पशु(ओं) से होने वाले संक्रमण मनुष्यों में लक्षण
1 बिसहरिया (एनथ्रैक्स) मवेशी, भैंस, बकरियां खूनी दस्त, बुखार, गले में खराश
2 सूखी खाँसी कुत्ते, खरगोश बुखार, जोड़ों में दर्द, निमोनिया
3 बेचैनी के साथ बुखार (ब्रुसिलोसिस) मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर बुखार, जोड़ों में दर्द, ऑरकाइटिस
4 कोली सेप्टिसीमिया (हैजा) मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर, मुर्गी (कच्चे दूध या मांस के माध्यम से) गंभीर दस्त, मूत्र में रक्त, बुखार
5 ग्लैंडर्स घोड़े/गधे/खच्चर त्वचा पर छाले और बलगम झिल्ली
6 कुष्ठ बंदर त्वचा पर धब्बे, पैरों क घिसना
7 लेप्टोस्पायरोसिस कुत्ते, मवेशी, भैंस, चूहे पीलिया, मूत्र संक्रमण, दिमागी बुखार
8 लिस्टिरिओसिस मवेशी, भैंस, मांस उत्पादन करने वाले पशु (दूध/मांस के माध्यम से) जाला, नेत्र रोग, दिमागी बुखार, गर्भपात
9 टीबी सभी घरेलू जानवरों से निरंतर तेज बुखार, निमोनिया
10 प्लेग चूहे, खरगोश, गिलहरी (पिस्सू के काटने की वजह से) तेज बुखार लसिका ग्रंथियों की सूजन
11 खाज (सिटकोसिस) पिंजरे के पक्षी बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, सूखी खाँसी, निमोनिया
12 चूहा काटने का बुखार (रैट बाइट फीवर) चूहे, चूहे द्वारा काटे गए कुत्ते, खरगोश बुखार, मांसपेशियों और जोड़ों में गंभीर दर्द, सिर दर्द
13 गोल कृमि सभी घरेलू जानवर त्वचा पर अत्यधिक खुजली गोल घाव
14 लीशमनियासिस कुत्ते, बिल्ली, जंगली मांसाहारी चढ़ता-उतरता बुखार, यकृत/तिल्ली में संक्रमण, दस्त
15 मलेरिया सभी बंदर समूहों को (एनोफिलीज मच्छरों के माध्यम से) ठंड के साथ बुखार, उल्टी
16 फीताकृमि अल्सर विशेष कर कुत्ते जिगर/फेफड़ों पर तरल पदार्थ भरा बड़ा सिस्ट
17 गिनी कृमि घरेलू और जंगली मांसाहारी त्वचा पर अल्सर, जिसके माध्यम से कीड़े बाहर आते है, एलर्जी
18 खाज खुजली ग्रस्त सभी घरेलू जानवर उंगलियों के बीच खुजली घाव
19 चेचक मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट चेहरे पर फुंसी, हाथ और पैर में पपड़ी
20 एन्सेफिलाइटिस सुअर (मच्छरों के माध्यम से) बुखार, सिरदर्द, गले में खराश, कम-संवेदनशीलता, पक्षाघात
21 बर्ड फ्लू घरेलू जंगली पक्षी फ्लू जैसे लक्षण, कई अंगों की विफलता के कारण मौत
22 स्वाइन फ्लू सुअर फ्लू जैसे लक्षण, बुखार, शरीर दर्द
23 क्यसनूर वन रोग चूहा, बंदर बुखार, अत्यधिक कमजोरी, दिमागी बुखार, मौत
24 ज्लातंक/रैबीज घरेलू और जंगली कुत्तों और किसी भी पागल जानवर से बुखार, मांसपेशियों में दर्द, स्वभाव में परिवर्तन, अतिसंवेदनशीलता, पक्षाघात, मौत

 

स्रोत: पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार

Compiled  & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 

Image-Courtesy-Google

 

Reference-On Request.

 

सभार - लाइवस्टोक इंस्टीट्यूट आफ ट्रेंनिंग एंड डेवलपमेंट (LITD), टेक्निकल टीम
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