एक धरती एक स्वास्थ को साकार करने में पशु चिकित्सकों तथा पशु पालकों कि भूमिका

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एक धरती एक स्वास्थ को साकार करने में पशु चिकित्सकों तथा पशु पालकों कि भूमिका

डॉ धर्मेन्द्र कुमार , डॉ नीलम टान्डिया , डॉ प्रिया सिंह एवं  डॉ योगेश अगस्त्जी चतुर 

   कॉलेज ऑफ़ वेटेरिनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी,  रीवा (म.प्र.)

सार 

 हमारी संस्कृति में  पेड़ पोधों पशु पक्षिओं एवं मनुष्य को एक परिवार के रूप में दर्शाया  गया है | किसी एक इकाई का न होना हमारी परिकल्पना से परे है | स्वास्थ्य को अगर हम परिभषित करना चाहें तो यह किसी जीव का शारीरिक मानसिक और सामाजिक सेहत को दर्शाता है | अगर कोई व्यक्ति इन तीनों विशेषताओं को परिपूर्ण करता है तो हम उन्हें स्वस्थ जीव की संज्ञा दे सकते हैं |  जुनोसिस एक संक्रामक रोग है  जो जानवरों से मनुष्य में या मनुष्यों से जानवरों में फैलता है | इस रोग की श्रृंखला में इबोला, सालमोनेलोसिस, एच् आई वी, जानवरों का इन्फ्लुएंजा,  वर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू ,रेविज इत्यादी हैं | यह पशु से मनुष्य में या मनुष्य से पशु में किसी वेक्टर के माध्यम से फेलता है| जुनोटिक बीमारियों का उद्गम जानवरों के पालतू करण के पश्चात् उत्पन्न हुआ | धरती पर रहने वाले समस्त पशुओ  का पालन पोषण एवं उनका रख रखाव में पशु पालकों तथा पशु चिकित्सको की अहम्  भूमिका रहती है |  पशु चिकित्सक इन सभी संक्रमण से भली भांति परिचित होता है, पर अकेले वह इसे नियंत्रण नहीं कर सकता | इस कारण  पशु चिकित्सको को समाज के हर एक इकाई को लेकर  एक समूह बनाना पड़ेगा जिसमे मनुष्य के चिकित्सक, वनस्पति के चिकित्सक,  किसान, आमजन समाज के प्रभावी व्यक्ति एवं अन्य  हितधारकों को जोड़ना पड़ेगा |

 कुंजी ब्द- अतिक्रमण, जुनोसिस ,मनुष्य, पशु, रोग,  स्वास्थ,

धरती पर रहने वाले  सभी जीव जंतु पेड़ पोधे मनुष्य, एक दुसरे के पूरक है और सभी एक दुसरे पर निर्भर रहते है| धरती के पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए सभी  जीव जंतुओं की सहभागिता जरुरी है | किसी भी जीव या जंतु की कमी या अधिकता प्रकृति को असंतुलित कर देती है | जिसके परिणाम सभी प्राणियों को भुगतने पड़ते है| आज प्रकृति पर होने वाले असंतुलन के दुष्परिणाम सामने आने लगे है जिसके कारण मनुष्यों एवं पशुओं में कई जीवाणु विषाणु जनित रोग फैलने लगे हैं, जिसके कारण पशु चिकित्सक एवं पशु पालकों में आपसी सामंजय की आवश्यकता महसूस होने लगी है |

स्वास्थ को अगर हम परिभषित करना चाहें तो यह किसी जीव का शीरीरिक ,मानसिक और सामाजिक सेहत को दर्शाता है | अगर कोई व्यक्ति इन तीनों विशेषताओं को परिपूर्ण करता है तो हम उन्हें स्वस्थ जीव की संज्ञा दे सकते हैं | अब प्रश्न यह उठता है कि मनुष्यों में यह तीन विशेषताए तो परिलिक्षित  हो सकती हैं, पर पशु पक्षी एवं पेड़ पोधों में एक सामान्य मनुष्य सिर्फ शारीरिक स्वास्थ ही देख पायेगा, पर मानसिक एवं सामाजिक बंधन एक सामान्य  मनुष्य को दिखना अत्यन्य ही दुर्लभ है  | अगर हम प्रकृति को एक समाज के रूप में देखें तो पेड़ पोधे पशु एवं मनुष्य  एक दूसरे से एक मजबूत बंधन से बंधे हुए हैं | यही बंधन पशुओं  और पेड पौधों के लिए  सामाजिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को संधर्भित करता है | प्रख्यात वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र बोस ने क्रिश्कोग्राफ का अविष्कार किया  एवं उन्होंने यह प्रमाणित किया कि अगर हम पड़े पोधों को प्यार से सहलाये  या उसमे जल या खाद अर्पण करें तो ग्राफ कि ऊंचाई बढ़ जाती है, जो उनके प्रसन्न होने का प्रमाण है |

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हमारी संस्कृति में भी पेड़ पोधों एवं मनुष्य को एक परिवार के रूप में दर्शाया  गया है | किसी एक इकाई का न होना हमारी परिकल्पना से परे है | दन्त कथाओं के अनुसार अगर हम दो पोधे को प्रयोग के रूप में लेते हैं और एक से हम रोज अच्छी अच्छी बातें करते है, उसे प्यार से छूते हैं और दुसरे पोधे को एक ही खाद पानी देने के बाबजूद अगर रोज हम कठोर वाणी का प्रयोग करते है तो हम पायेगे कि कुछ समय अन्तराल वह पौधा धीरे धीरे मुरझाता चला जाता है | अगर कोई मनुष्य दो दुधारू पशु को पालता है और दोनों को एक ही तरह का खानपान देता है एवं एक को वह खुशहाल वातावरण में रखता है उसे प्यार से खिलाता पिलाता एवं पुचकारता है और दुसरे पशु को अत्यंत ही कुत्सित वातावरण में रखता है और अनमने ढंग से भोजन एवं पानी देता है तो पहले वाला पशु स्वस्थ रहेगा और ज्यादा दुग्ध का उत्पादन  करेगा | आधुनिक काल में पशुओं एवं पेड़ पौधों की मनोविज्ञानिक दशा का  भी अध्यन होता है |

अगर हम इस विवेचना को अंतःकरण करते हैं तो हम मनुष्य पेड़ पौधे एवं पशुओं के स्वास्थ्य को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं इसका प्रथम भाग शारीरिक स्वास्थ्य द्वीतीय भाग मानसिक एवं तृतीय भग सामाजिक स्वास्थ्य है | ये तीनो ही स्वास्थ्य आपस में एक चटाई की भांति गुंथे हुए है | किसी भी एक अवयव को हम किसी भी समय काल या परिशतिथि में एक दुसरे से अलग नहीं कर सकते है |

अगर हम मानव संस्कृति का अवलोकन करते है तो हम पाएंगे कि पेड़ पौधे, मनुष्य एवं पशु  एक दुसरे के पूरक हैं | किसी एक का अस्तित्व दुसरे के अभाव में नष्ट हो जाता है | पेड़ पौधे, मनुष्य एवं पशु   अनंतकाल से एक दुसरे के साथ जीवन यापन कर रहे हैं इस कारणवश किसी एक घटक का स्वास्थ्य दुसरे घटक को प्रभावित करता है | जुनोसिस एक संक्रामक रोग है  जो जानवरों से मनुष्य में या मनुष्यों से जानवरों में फैलता है | इस रोग की श्रृंखला में इबोला, सालमोनेलोसिस, एच् आई वी, जानवरों का इन्फ्लुएंजा,  वर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, रेविज इत्यादी हैं | यह पशु से मनुष्य में या मनुष्य से पशु में किसी वेक्टर के माध्यम से फेलता है| जुनोटिक बीमारिओं का उद्गम जानवरों के पालतू करण के पश्चात् उत्पन्न हुआ | अब प्रश्न यह उठता है कि जुनोटिक बीमारियाँ प्रकृति के दो घटक मनुष्य एवं पशुओं को संक्रमित करता है तो तीसरे घटक  की भूमिका हमें शंशय में डाल देती है | इस शंशय का निवारण आधुनिक शोध के द्वारा होता है जिसमे शोध करताओं ने अनगिनत बेक्टीरिया एवं वाइरस की खोज किया है जो कि एक दुसरे को संक्रमित कर सकता है और इस संक्रमण का मुख्य करण जलवायु परिवर्तन असंतुलित कृषि जंगलों की कटाई एवं उनका शोषण वन्य जीवों का दमन एवं असंतुलित भूमि उपयोग है| मनुष्य लौलुपताबस पर्यावरण का दोहन आदि काल से करता आया है जो कि इस सदी में अपने चरम पर पहुँच गया है | प्रकृति का दोहन विभिन्न संक्रमण को अपने नैसर्गिक अवयव को छोड़ कर दुसरे अवयव में फैलने के लिये मजबूर हो जाता है |  पशुओं के संपर्क में आने से ब्रुसेलोसिस, ग्लैंडर्स, एन्थेक्स, क्लेमिडिया, गर्भपात, एवियन इंफ्लुएंजा, हिपेटाईटिस, स्पेनिश फ्लू इत्यादि बीमारियाँ मनुष्यों में हो जाती है इसके विपरीत पशुओं में ट्युबरकुलोसिस, फंगल संक्रमण, टीनिया सोलियम क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस , हिपेटाईटिस आदि बीमारियाँ हो जाती है | अधपका मांस खाने के कारण भी मनुष्यों में पशुओं की बहुत सारी बीमारियाँ हो जाती है| पशुओं से आने वाली दूध भी अगर अच्छे से उबाला नहीं गया हो तो ये भी मनुष्यों को अनेको रोग से संक्रमित करता है| कच्चे अंडे को भी अगर सही से ना उबाला गया हो तो ये भी संक्रमण का एक कारण हो सकता है| सारांस में अगर कहना चाहे तो पशुओं से प्राप्त होने वाली बहुत सारे पदार्थ संक्रमण का एक स्रोत है| अब प्रश्न ये उठता है की समुचित स्वस्थ की प्राप्ति कैसे होगी| समुचित स्वस्थ के लिए हमें प्रकृति के तीनो स्तम्भ मनुष्य , पशु एवं पेड़ पौधों पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा| तीनो घटक को स्वस्थ करने के लिए हमें प्रकृति में संतुलन लाना होगा| प्रकृति का अत्यधिक दोहन बंद करना होगा | सबसे प्रथम हमें जंगलों, समुद्र, हिमखंड , पर्वत एवं समस्त इकाइयों पर ध्यान देना होगा | अगर मनुष्य खुद को इस श्रृष्टि का सबसे उन्नत इकाई मानता है तो मनुष्य को जलवायु परिवर्तन पर विशेष ध्यान देना पड़ेगा | अंधाधुंध जंगलों की कटाई बंद करना पड़ेगी नदियों का दमन बंद करना पड़ेगा | अमूमन यह देखा गया है कि जंगलों की कटाई के करण अतिवृष्टि एवं महामारी  की  समस्या उत्पन्न होती है| कोरोना महामारी इसका जीता जागता उदाहरण है | अगर हम नदियों  को देखें तो नदी हमेशा जीवन दायनी रही है अनेकों सभ्यताएँ और संस्कृति नदियों के इर्द गिर्द ही पनपती है | मनुष्यों के अतिक्रमण एवं दमनकारी नीतियों के कारण अनेकों नदी मृत प्राय हो गए है एवं ये इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है | नदियाँ से  पीने के लिए पानी, मछली के रूप में भोजन, कृषि भूमि को सिंचित करने के लिए जल एवं अवागमन का मुख्य स्त्रोत है इनके अतिक्रमण से सुखा एवं बाढ़ की परिस्तिथि बन जाती है | अगर हम लुप्त प्राय नदी के बारे में सोचते है तो हमारे सामने सरस्वती नदी अनायास ही कोंध जाता है | अतिक्रमण ही सिर्फ नदियों के क्षरण का एक मुख्य कारण नहीं है अपितु नदी किनारे बसे असंख्य उद्दोग अपने जहरीले अपशिष्ट को इन नदियों में प्रवाहित करते है जिनके कारण नदियों का  क्षय   एवं मछलियों को अनेक रोग से संक्रमित होना पड़ता है जो कि भोजन द्वारा मनुष्यों में फैलता है | इसका जीता जगता उदहारण मिनीमाटा बीमारी है | नदियों के अतिक्रमण के कारण महानगरों में प्राय बाढ़ की स्तिथि बन जाती है इसके उपरांत महामारी फ़ैल जाती है | इन विवेचनाओ को पढ़ कर यह प्रतीत होता है कि मनुष्य की लोलुपता ही विनाश का कारण है | आधुनिक काल में मनुष्य अपने को श्रेष्ठ सावित करने हेतु प्रकृति पर नियंत्रण के होड़ में लग जाता है | जिसके कारण वह पहाड़ पर्वत जैसे दुर्गम स्थल को  अपने नियंत्रण में लेना चाहता है | जिसके फलस्वरूप अनेकों बार भू स्खलन जैसी घटनाये देखने को मिलती है |   अब प्रश्न यह उठता है कि पशु पालकों एवं पशु चिकित्सकों  का एक धरती एक स्वास्थ्य की परिकल्पना में क्या भूमिका है | अगर हम उपरोक्त चर्चा का अवलोकन करें तो हम पाएंगे कि पशु पालक एवं पशु चिकित्सक इस परिकल्पना का सबसे मजबूत कड़ी है अगर हमें इस परिकल्पना को साकार करना है तो इन दोनों घटकों को एक महत्वपूर्ण योगदान करना पडेगा | किसान पशुओं के संसर्ग में सबसे ज्यादा आता है और पशु पालक जुनोटिक बीमारियों से सबसे ज्यादा संक्रमित होता है | अगर हम इसके कारण को तलाशे तो अज्ञानता एक मुख्य कारण है | पशु चिकित्सक इन सभी संक्रमण से भली भांति परिचित होता है पर अकेले वह इसे नियंत्रण नहीं कर सकता | इस कारण  पशु चिकित्सको को एक समूह बनाना पड़ेगा जिसमे  मनुष्य के चिकित्सक, वनस्पति के चिकित्सक,  किसान, आमजन समाजके प्रभावी व्यक्ति एवं अन्य हितधारकों को जोड़ना पड़ेगा और इन संक्रमण के बारे में समाज में एक जागरूकता फैलानी पड़ेगी| ये जागरूकता छिटपुट नहो अपितु एक क्रांति की भांति हो जो कि समाज में बदलाव लाने  के लिए ततपर  हो | इसका जीता जागता उदहारण सुन्दर लाल बहुगुणा  का चिपको आन्दोलन है |

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निष्कर्ष- वर्तमान में पशु उत्पादों जैसे दूध, दही, लस्सी,मांस मछली आदि की मांग दिन –प्रतिदिन बढती जा रही है|  इस तरह  पशुपालक एक उद्यमी की तरह सोच रखकर पशुपालन व्यवसाय  से अधिकतम लाभ ले सकते है, पर बदलते परिवेश में पशुओ  में नए – नए प्रकार के रोग एवं समस्या हो रही है | जुनोटिक रोग से बचाव हेतु, पशु चिकित्सको को  समाज में  जागरूकता की  एक अलख जगानी पड़ेगी,जिससे हमारी  वसुन्धरा पर होने वाले विपरीत परिस्थितियों को  भी अनुकूल बनाया जा सके  |

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