जूनोसिस के खिलाफ लड़ाई में पशुचिकित्सकों और एक स्वास्थय की भूमिका
डा0 अमित कुमार
पशुचिकित्साधिकारी, राजकीय पशुचिकित्सालय, मोहनचट्टी-249304 जिला पौड़ी उत्तराखण्ड
मो0 9411501832 ईमेल-ं amitbhojiyan@gmail.com
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आज के समय में इंसान प्रगति के चरम पर है। और उसके अन्दर निरन्तर आगे बढ़ने की जिज्ञाशा रहती है। इस रफ्तार में हम जाने अनजाने में प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे है व साथ ही अपने व पर्यावरण के प्रति गम्भीर नही रह पाते है। जिस कारण बहुत सी जानी अनजानी बीमारियो का हो जाना स्वाभाविक है। बीमारीयों का होना और जाना लगा रहता है। पर बीमारीयों को हम तभी मिटा और कम कर पायेंगें, जब हम सभी को एक साथ मिलकर और सभी दिशाओं में सोचकर नये नये कार्य व परिक्षण करनें होगें।
एक स्वास्थय की जरूरत क्यों पड़ी इसे समझने के लिए सबसे पहले जूनोसिस को समझना होगा।
जूनोसिसः-
कुछ बीमारी किसी जानवर से इंसानों में जाती है। यह बीमारी कुछ जानवरों को बीमार नही करते, लेकिन इंसानों को बीमार कर देते है। यह एक साधारण अल्पकालिक से लेकर एक प्राण घातक तक होती है। यह बीमारियां विषाणु जनित, जिवाणु जनित, फंगस, व परजीवी से हो सकती है। जैसे- बर्ड फ्लू, डेंगू, एन्थेक्स, बुसेलोसिस आदि और वर्तमान में विषाणु जनित कोरोना कोविड-19.
एक स्वास्थयः-
यह अपने आप में एक बहुत ही बड़ा शब्द है। और गम्भीर भी। इसको साधारण भाषा में एसे समझ सकते है- ‘‘ यह इंसानों, जानवरों और पर्यावरण के बेहतरी के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर एक सहयोगात्मक प्रयास करना है। जिसमें हम विभिन्न विषयों को समानता देनी है।‘‘ हम सभी को मिलकर एक अच्छे स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि के लिए कार्य करने है ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ अच्छा छोड़कर जा पायेें।
उभरती हुई जूनोसिसः-
यह निष्कर्ष निकला है कि 75ः उभरती हुई बीमारीयों में एक जूनोटिक उत्पत्ति होती है जैसे- स्पैनिश फ्लू, H1N1, SARS, MERS, Ebola जैसी महामारी। इन महामारियों में शामिल मूल कारक जानवरों में पाये गये और मनुष्यों में फैल गये। सभी अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं ने मिलकर एक स्वास्थय का मंत्र दिया। इसमें FAO, UNEP, OIE, WHO ।
सभी उभरते संक्रामक रोगों में से तीन चैथाई जानवरों में उत्पन्न होते है। इन सब को जानने व समझने के लिए विष्वस्तरिय संस्थानों को एक स्वास्थय पर विचार करना पड़ा। इंसानों, जानवरों आर पर्यावरण के बीच संम्बधों और उन पर पड़ने वाले खतरों को दूर करने और कृषि खाद्य प्रणालियों में उत्पन्न कठिनाइयों को रोकने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की जरूरतों पर प्रकाश डालेगा।
एक स्वास्थय की जरूरत क्योंः-
आज के इस तेज रफ्तार समय में यह एक जरूरी हो गया है। एक ही तरह के बहुत से रोगाणु जानवरों और मनुष्यों को संक्रमित करते है। और एक ही तरह के ईको-सिस्टम को साझा करते है। केवल एक क्षेत्र में कार्य करने से रोग को रोक या समाप्त नही कर सकते है। जैसे इंसानों में रेबीज एक वायरस विषाणु जनित रोग है। इसका मूल óोत पशु है। तो इस óोत को टारगेट कर ही हम रेबीज को प्रभावी ढ़ंग से रोक सकते है।
जैसे- मनुष्यों में इन्फलूएंजा महामारी के टीको के लिए वायरस चयन हेतू पशुओं में इन्फलूएंजा वायरस की जानकारी होना महत्वपूर्ण है।
पशुचिकित्सकों का रोलः-
पशुचिकित्सक एक स्वास्थय प्रोग्राम का एक अभिन्न अंग है। क्योंकि जानवरों, मनुष्यों और पर्यावरण दोनो को प्रभावित करते है। और स्ंवय भी प्रभावित होते है। चाहे वह एक चिकित्सक, रिसर्चरस, जाँच, पब्लिक हेल्थ आदि किसी भी रूप में कार्य करते है वह पशुओं/जानवरों, मनुष्यों तथा पर्यावरण को सभालने का कार्य करते हो।
भारतीय समाज में आज भी पशुचिकित्सकों को उचित सम्मान नही दिया जाता है। यहाँ पर हम पशुचिकित्सकों द्वारा कैसे योगदान दिया जा रहा है। उसको छोटी व सरल भाषा में बताते है।
पशुकल्याणः-
किसी भी पशु के वेलफेयर कल्याण की अगर हम बात करत है। तो सबसे पहले उसकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थय पर ध्यान देने की आवश्यकता है। मनुष्य जो कुछ भी करता है। उसका प्रभाव सभी प्रकार के जानवरों पर पड़ता है। चाहे घरेलू हो या जंगली। और एक पशुचिकित्सक से बेहतर पशु कल्याण के बारे में कार्य करना कोई कैसे सोच सकता है। उनकी देखभाल, चिकित्सा, रख-रखाव, पोषण भोजन आदि सही हो ताकि वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहे। जब भी कोई प्रयोग उन पर हो तो हमें अच्छे रिजल्ट प्राप्त हो सके।
लैब एनीमल/पशुओं की देखभालः-
नई नई उभरती हुई चुनौतियों से लड़ने के लिए हमें नये नये अनुसंधान करने पड़ते है। जिसको सर्वप्रथम लैब एनीमल पर किया जाता है। जिनको करने हेतू पशुचिकित्सकों के दिशा निर्देशों पर आवश्यकता पड़ती है। जिससे लैब एनीमल को ज्यादा परेशानीयों का सामना ना करना पड़े और बेहतर रिजल्ट मिल पायें। जब भी जूनोटिक रोग का प्रसार होता है। तो उस समय प्रशिक्षित और अनुभवी पशुचिकित्सकों की भुमिका बढ़ जाती है।
जैव चिकित्सा अनुसंधानः-
सार्वजनिक स्वास्थय निगरानी के आधार पर हम परजीवी, जीवाणु, विषाणु और पर्यावरण को बेहतर समझ सकते है। मानव और पशु रोग के बीच में एक संम्बध है। उसको हम विभिन्न अनुसंधान का प्रयोग कर उसको अच्छे से जाना जा सकता है। इन सभी कार्यो को बेहतर तरीकों से करने में पशुचिकित्सकों की प्रमुख भुमिका होती है। क्योंकि बहुत सी जूनोटिक बीमारी है। जिनका फैलने का सही कारण अभी तक ज्ञात नही है। विश्व स्वास्थय संगठन ने इसके लिए एक स्वास्थय प्रोग्राम शुरू किया है। जिसमें एक साथ मिलकर सभी दिशाओं में कार्य कर उनकी उत्पत्ति व फैलने का रास्ता पता चले जिससे सभी मिलकर एक उचित कदम उठा पायें।
स्वास्थय शिक्षा और पशु स्वास्थयः-
पशुचिकित्सक अपने सम्पूर्ण जीवन काल में हमेशा अपने ज्ञान को शिक्षा के रूप में प्रसार करते रहते है। जब भी पशु पालकों के द्वार पर जाते है। साथ ही जूनोटीक बीमारियों से बचाव के उपाय से भी अवगत कराते रहते है। यह जरूरी सूचना समय-समय पर गोष्ठी, बैठकों, सभाओं आदि में जनसमूहों को दी जाती है। जैसे- रैबीज, बर्ड फ्लू, ब्रुसेला आदि
सरकारी गतिविधिः-
राज्य सरकार व भारत सरकार ने पशुचिकित्सकों को सभी बड़े विभागों में जरूर नियुक्त करते है। क्योंकि सरकार को नई योजनाओं, परिक्षणों को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बताना पड़ता है और अपने देश का पक्ष रखना होता है। जैसे- आर्मी और वायु सेना में, एफ0डी0ए0, एन0आई0ए0, डी0आर0डी0ओ0 आदि। सभी राज्यों में पशुपालन विभाग होता है। जो राज्य के पशुओं को चिकित्सा, जाँचों परिक्षणों, योजना विस्तार आदि का कार्य करते है। इनमें बड़ी संख्या में पशुचिकित्सकों की आवश्यकता होती है।
एक स्वास्थय प्रोग्राम आज के समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है और इसमें भी पशुचिकित्सको का योगदान अतिआवश्यक है। जिसको विश्व स्तरिय संस्थानों व संगठनों द्वारा भी माना गया है।
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