पशुजनित रोगों के विरुद्ध युद्ध में पशु चिकित्सकों एवं एक स्वास्थ्य की भूमिका
डॉ ललित शर्मा, प्रबंधक न्यासी, विज्ञान सेतु फाउंडेशन
यदि हमें पशुजनित रोगों के विरुद्ध युद्ध में पशु चिकित्सकों एवं एक स्वास्थ्य की भूमिका का आकलन करना है तो हमें इसे तीन आयामों को ध्यान में रख कर आंकना होगा। पहला पशुजनित रोग, दूसरा पशु चिकित्सक, और तीसरा एक स्वास्थ्य। इन आयामों को हम बारी बारी से समझने का प्रयास करते हैं।
आधुनिक विकृति विज्ञान के जनक रुडोल्फ विर्को ने वर्ष १८५६ में इस बात पर ज़ोर दिया था कि मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा में कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं है। मनुष्यों तथा पशुओं के मध्य साझा होने वाले रोग जो एक दुसरे को संक्रमित करने में सक्षम हैं, पशु जन्य रोग कहलाते हैं। इन दिनों, पशुजनित रोगों के विरुद्ध युद्ध काफी हद तक एक बहु-विषयक एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, जिसमें कहा गया है कि मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य का अटूट संबंध है।
पशुजनित रोग का संचरण अतिक्रमित और अवक्रमित वन्यजीव आवासों और मानव-वन्यप्राणी संबंधों में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन से और अधिक गतिमान हो गए हैं। पशुजनित रोग विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य खतरे का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जहां वे स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्रों के लिए काफी व्यय और आर्थिक व जीव हानि का कारण बन रहे हैं। पशु स्रोतों पर नियंत्रण और अंततः उन्मूलन के कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता है। इसके अलावा, जैसे-जैसे पशु उत्पादों का व्यापार और मानव आबादी की आवाजाही बढ़ती जा रही है, वैसे ही कुछ क्षेत्रों में पशुजनित रोगों के प्रारम्भ होने या पुनरावृत होने का जोखिम भी बढ़ रहा है।
पिछले अनेक वर्षों में, कई पशुजनित रोग या तो नए विकृतिपूर्ण अस्तित्व या ज्ञात कारकों के रूप में नए क्षेत्रों में या नए उपभेदों के रूप में उभरे हैं। अपने समन्वय और सूचना एकत्र करने के कार्यों के माध्यम से, विश्व स्वास्थ्य संगठन का घटक (इमर्जिंग डिजीज सर्विलांस एंड कंट्रोल डिवीजन) व्यावहारिक और तकनीकी मार्गदर्शन दोनों का एक स्रोत प्रदान करते है जो पशुओं द्वारा मानव स्वास्थ्य के लिए इन और इन जैसे अन्य खतरों का समाधान खोजने में मदद करते हैं।
स्थानीय रूप से, पशु चिकित्सकों द्वारा स्थानिक पशुजनित रोगों का अक्सर सामना किया जाता है, पशु और मानव आबादी के साथ-साथ सक्रिय व्याधि की पहचान और प्रबंधन के लिए जोखिम को कम करने के लिए साक्ष्य-आधारित रणनीतियों की आवश्यकता होती है। पशु चिकित्सक, रेबीज जैसे पशुजनित रोगों के विरुद्ध सहचर पशुओं का टीकाकरण करके पशुजनित रोग के प्रसार को सीधे रोकते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि पशु-आधारित भोजन मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है, और जैव-सुरक्षा सिद्धांतों पर आम जन को शिक्षित करते हैं। पशु स्वास्थ्य और कल्याण के अधिवक्ताओं के रूप में उनकी भूमिका में, पशु चिकित्सकों की पर्यावरणीय स्वास्थ्य की रक्षा करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्रवाई की मांग करने की भी जिम्मेदारी रहती है।
पशु स्वास्थ्य में व्यावहारिक अनुभव और महामारी विज्ञान और रोगों के पर्यावरण चालकों के ज्ञान सहित उनके विविध प्रशिक्षण के साथ पशु चिकित्सकों को सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और पारिस्थितिक क्षेत्रों में अन्य एक स्वास्थ्य पेशेवरों के सहयोग से बढ़े हुए पशुजनित रोगों के जोखिम का उत्तर देने के लिए आदर्श रूप से रखा गया है।
किसी भी वस्तु की उपयोगिता का भास तक अधिक होता है जब उसका अभाव होता है। इसे सन्दर्भ में रखकर यदि हम पशु चिकित्सक की उपयोगिता का आकलन करना चाहते हैं तो हमें पहले उसके नहीं होने पर क्या संभव है, को जानना होगा।
क्या होगा यदि पशु चिकित्सक ही ना हों – आज बहुत सारे व्यवसाय हैं जो हमारे जीवन और अर्थव्यवस्था दोनों को सुचारू रूप से चलाने में सहायता करते हैं। हम इन सेवाओं को बिना दो बार विचार किये सहज में लेते हैं, लेकिन हमारी भाग दौड़ भरे जीवन में जब कुछ ऐसा होता है जिससे हमारी व्यवस्तता में विघ्न पड़ जाता है, तब हमें एहसास होता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमारे पास ये सेवाएं हैं।
जब लोग पशु चिकित्सकों के बारे में सोचते हैं तो उनका पहला विचार घरेलू पालतू जानवरों के बारे में होता है। हालांकि, पशु चिकित्सक केवल बिल्लियों और कुत्तों की देखभाल करने से कहीं अधिक करते हैं। उनका योगदान हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है जिसकी हम उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं और इस व्यवसाय का अभाव हमारे सम्पूर्ण विश्व के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
पालतू या घरेलू पशु: सर्वप्रथम आरम्भ करते हैं जो हमारे सबसे निकट है, घर के पालतू पशु-पक्षी। यहां तक कि जो लोग अपनी बिल्ली या कुत्ते को प्यार करते हैं वे भी जानते हैं कि उन्हें समय-समय पर देखभाल की आवश्यकता होती है। इसमें उनके नियमित टीकाकरण या घावों को ठीक करने में मदद करना शामिल हो सकता है। लेकिन अगर आपके कुत्ते को कोई संक्रमण या किसी प्रकार की व्याधि हो जाए तो आप क्या करेंगे। आपकी मदद करने के लिए एक योग्य पेशेवर के बिना, पशु के जीवन की गुणवत्ता अत्यधिक घट सकती है, और समय पूर्व ही मृत्युमुखी हो सकता है।
पशुधन और खाद्य सुरक्षा: कई मोर्चों पर पशुधन के स्वास्थ्य का बहुत महत्व है। जो लोग मांसाहारी हैं या दुग्ध उत्पाद का सेवन करते हैं, उनके लिए अनिष्ट की सम्भावना बढ़ जाएगी यदि पशुओं की भली-भांति देखभाल नहीं की गई और वे रोग के शिकार हो गए। यदि किसी भी प्रकार का गंभीर, संक्रामक विषाणु हो और हस्तक्षेप नहीं किया गया तो संभव है पूरा रेवड़ या पशु समूह का सफाया हो सकता है।
दुर्व्यवहार के शिकार पशु: न्याय-सम्बन्धी विशेषज्ञ पशु चिकित्सक दुर्व्यवहार के शिकार पशुओं का अध्ययन करते हैं ताकि अधिकारियों के पास अपराधियों को आरोपित करने के लिए आवश्यक प्रमाण हों। इस सेवा के बिना, पशुओं के साथ दुर्व्यवहार करने वाले मनुष्य ऐसा करना जारी रख सकते हैं और कई अन्य निर्दोष जीव पीड़ित होकर मृत्युमुखी हो सकते हैं।
पशुजनित रोगों का संयोधन: पशु-जन्य रोग वे हैं जो पशुओं व मनुष्यों के मध्य संचारित होते हैं। मनुष्यों के लिए चिकित्सक अपनी भूमिका निभाते हैं, किन्तु पशु विशेषज्ञों के बिना, अनुसंधान रुक जाएगा और मनुष्यों तथा पशुओं दोनों के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। बर्ड फ्लू जैसी पशुजनित रोग से बहुत अधिक खतरा उत्पन्न हो सकता है, जबकि पहले से नियंत्रित तपेदिक और अनियमित ज्वर जैसे रोग फिर से उभर सकते हैं।
उभरती व्याधियां: पशुजनित रोगों को यदि हाशिये में भी रख दें तब भी प्रभावी महामारी वैज्ञानिक अनुसन्धान के बिना मानव जाति का स्वास्थ्य अधिक अनिष्टता की ओर अग्रसर हो जायेगा। विज्ञान की इस शाखा को जिन माध्यमों से लाभ होता है उनमें से एक पशुओं से जुड़े अनुसंधान भी है।
हालांकि पशु सक्रियतावादी चिकित्सा अध्ययन में पशुओं के दुरुपयोग का सही विरोध करते हैं, फिर भी पशुओं के साथ किए गए मानवीय शोध ही हैं जो नए विषाणुओं के विरुद्ध चल रही लड़ाई में बहुत लाभकारी होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था के घोषणापत्र में, कोविड-१९ से हरित व स्वस्थ पुनःस्थापित पर्यावरण से सम्बंधित, एक स्वास्थ्य (वन हैल्थ) पर अधिक ध्यान केन्द्रित करने की बात कही गई है, यह एक विरोधाभास ही है कि कोविड-१९ हमें वास्तविक परिवर्तन लाने का एक अनूठा अवसर प्रदान कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने ध्यान दिलाया है कि मनुष्यों, पशुओं और पारिस्थितिकी तन्त्रों के स्वास्थ्य के बीच अंतरंग सम्बन्ध है। नई पशुजनित बीमारियों के उभरने और लोगों को उनका शिकार होने से बचाने के लिये एक स्वास्थ्य व्यवस्था को अपनाया जाना अत्यावश्यक है। एक स्वास्थ्य के सिद्धान्त से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है, जहाँ उत्तम सार्वजनिक स्वास्थ्य सम्बन्धी परिणामों को पाने के लिये, विभिन्न क्षेत्र एक साथ मिलकर प्रयास व सम्वाद करते हैं।
महानिदेशक घेबरेयेसस ने पशु स्वास्थ्य संगठन के वार्षिक कार्यकारी समिति की २७वीं त्रिपक्षीय बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा, अतीत में, सरल नज़र आने वाला यह एक स्वास्थ्य सिद्धान्त ऐसा नहीं है। हम भावी महामारियों की रोकथाम, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये एकीकृत एक स्वास्थ्य पद्धति को अपनाते हुए ही कर सकते हैं. यह समय हमारी साझेदारी को नए स्तर पर ले जाने का है।
संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं के प्रमुख ने बल देकर कहा है कि लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये एक स्वास्थ्य को स्थानीय स्तर पर प्रणालियों में भी सम्भव बनाया जाना होगा। उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि मौजूदा समय में उभर रहे लगभग ७० प्रतिशत विषाणु पशुजनित हैं, जोकि पशुओं के माध्यम से, मनुष्यों को संक्रमित करते हैं।
महानिदेशक घेबरेयेसस ने सचेत किया है कि अभी नहीं मालूम कि अगला ख़तरा, अगली व्याधि कब उभरेगी, लेकिन यह स्पष्ट है कि एक स्वास्थ्य को पशुजन्य रोगों से निपटने के उद्देश्य से कहीं आगे रखना होगा। हम मानव स्वास्थ्य की रक्षा, उन मानव गतिविधियों के प्रभाव पर विचार किये बिना नहीं कर सकते, जिनसे पारिस्थितिकी तन्त्रों में व्यवधान आता है, पर्यावासों का अतिक्रमण होता है, और जलवायु परिवर्तन आगे बढ़ता है। इन गतिविधियों में, प्रदूषण, व्यापक स्तर पर वनों की कटाई, सघन मवेशी उत्पादन, और जीवाणुनाशक औषधि (एंटीबायोटिक) के ग़लत उपयोग और भोजन को उगाने, खपत व व्यापार में मौजूदा तरीक़े हैं।
इसी दृष्टिकोण को एक स्वास्थ्य कहा जाता है। इसके अंतर्गत पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों का समावेश किया जाता है। एक स्वास्थ्य में पर्यावरण, पशु तथा मानव स्वास्थ्य व परिस्थितिकी तंत्र से उत्पन्न खतरों को संबोधित करने के लिये बहु-आयामी युक्ति शामिल की जाती है।
एक स्वास्थ्य क्या है?
एक स्वास्थ्य एक ऐसा दृष्टिकोण है जो यह मानता है कि लोगों का स्वास्थ्य जानवरों के स्वास्थ्य और हमारे साझा पर्यावरण से निकटता से जुड़ा हुआ है। यद्यपि एक स्वास्थ्य कोई नई अवधारणा नहीं है, किन्तु हाल के वर्षों में यह और भी महत्वपूर्ण बन गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई कारकों ने लोगों, जानवरों, पौधों और हमारे पर्यावरण के बीच संवाद को परिवर्तित कर दिया है।मानव लोकसंख्या लागतार बढ़ रही है और नए भौगोलिक क्षेत्रों में विस्तार कर रही है। परिणामस्वरूप, अधिक से अधिक जन वर्तमान में वन्यप्राणियों और घरेलू पशुओं, पशुधन और पालतू पशुओं, दोनों के निकट संपर्क में रहते हैं। पशु हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, चाहे भोजन, तंतु या रेशा, आजीविका, यात्रा, क्रीड़ा, शिक्षा, या सहचर के रूप में। पशु-पक्षियों और उनके वातावरण के साथ निकट संपर्क इन प्राणियों और मनुष्यों के मध्य रोगों को संचारित करने के अधिक अवसर प्रदान करता है।
पृथ्वी ने वनों की कटाई और गहन कृषि पद्धतियों जैसे जलवायु और भूमि उपयोग में परिवर्तन का अनुभव किया है। पर्यावरणीय परिस्थितियों और आवासों में व्यवधान, व्याधियों को पशुओं को संक्रमित करने के नए अवसर प्रदान कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय यात्रा और व्यापार से मनुष्यों, पशुओं और पशु उत्पादों की आवाजाही बढ़ी है। नतीजतन, रोग तीव्र गति से भौगोलिक सीमाओं के परे और सम्पूर्ण विश्व भर में फैल सकती हैं। इन परिवर्तनों ने मौजूदा या ज्ञात (स्थानिक) और नए या उभरते पशुजनित रोगों के प्रसार को जन्म दिया है, जो कि ऐसी व्याधियां हैं जो पशुओं और मनुष्यों के मध्य प्रसारित हो सकती हैं।
पशु-जन्य रोगों के उदाहरणों में शामिल हैं: रेबीज, साल्मोनेला संक्रमण, वेस्ट नाइल विषाणु संक्रमण, क्यू फीवर (कोक्सीला बर्नेटी), एंथ्रेक्स, ब्रुसेलोसिस, इबोला, इत्यादि
पशु भी कुछ रोगों और पर्यावरणीय खतरों के प्रति हमारी संवेदनशीलता को साझा करते हैं। इस कारण से, वे कभी-कभी संभावित मानव बीमारी के प्रारंभिक चेतावनी संकेतों के रूप में काम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मानव में वेस्ट नाइल विषाणु के संक्रमण से पूर्व उसी क्षेत्र के पक्षी अक्सर वेस्ट नाइल विषाणु के संक्रमण से मृत पाए जाते हैं।
एक स्वास्थ्य की दूरदर्शिता को प्राप्त करने के मार्ग में कई चुनौतियां हैं, जैसे पशु चिकित्सकों की कमी, मनुष्य एवं पशु चिकित्सा संस्थानों के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान में कमी,पशुगृह में पशुओं को प्रदान की जाने वाली खाद्य सामग्री में उनके स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही, खाद्य श्रृंखला में शामिल करते समय पशुओं के मांस के वितरण में असावधानी आदि आदि।
एक स्वास्थ्य के बारे में मूल बातें
एक स्वास्थ्य मनुष्यों, पशुओं और उनके साझा पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध को पहचानने के लिए इष्टतम स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर काम करने वाला एक सहयोगी, बहुक्षेत्रीय और परायमी दृष्टिकोण है।
एक स्वास्थ्य संकल्पना क्या है
एक स्वास्थ्य की संकल्पना में पशुजनित रोग, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, खाद्य सुरक्षा, रोगवाहक-जनित रोग, पर्यावरण संदूषण, और मनुष्यों, पशुओं तथा पर्यावरण द्वारा साझा किए गए अन्य स्वास्थ्य खतरे शामिल हैं। यहां तक कि चिरकालिक रोग, मानसिक स्वास्थ्य, अभिघात, व्यावसाय सम्बंधित स्वास्थ्य और गैर-संचारी रोगों के क्षेत्र भी एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण से लाभान्वित हो सकते हैं जिसमें सभी विषयों और क्षेत्रों में सहयोग शामिल है।
एक स्वास्थ्य प्रतिमान क्या है?
एक स्वास्थ्य का सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन तथा विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन की पहल है।
इसका उद्देश्य मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, मिट्टी, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र जैसे विभिन्न विषयों के ज्ञान को कई स्तरों पर साझा करने के लिये प्रोत्साहित करना है, जो सभी प्रजातियों के स्वास्थ्य में सुधार, रक्षा और बचाव के लिये अत्यावशयक है। वर्ष २००७ में वन्यजीव संरक्षण संस्था ने मैनहट्टन सिद्धांतों की १२ सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए एक विश्व-एक स्वास्थ्य के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। यह महामारियों को रोकने एवं पारिस्थितिकी तंत्र की अक्षुण्णता को बनाए रखने के आदर्श दृष्टिकोण पर अवलम्बित है।
विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन
विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन एक अंतर-राजकीय संगठन है जो विश्व में पशु स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने हेतु उत्तरदायी है। इसे विश्व व्यापार संगठन द्वारा एक संदर्भ संगठन के रूप में मान्यता दी गई है। वर्ष २०१८ तक इस संगठन में कुल १८२ सदस्य देश शामिल थे। भारत भी इसका सदस्य है। इस संगठन का मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में स्थित है।
एक स्वास्थ्य प्रतिमान की आवश्यकता
वैज्ञानिकों के अनुसार, वन्यजीवों में लगभग १७ लाख से अधिक विषाणु पाए जाते हैं, जिनमें से अधिकतर के द्वारा पशुजन्य रोगों के संचारित होने की संभावना है। इसका तात्पर्य है कि समय रहते अगर इन विषाणुओं का पता नहीं चलता है तो भारत जैसे देशों को आने वाले समय में कई महामारियों का सामना करना पड़ सकता है। रोगों की एक अन्य श्रेणी एंथ्रोपोज़ूनोटिक है जिसमें पशुओं से मनुष्यों में संक्रमण फैलता है।
हाल के वर्षों में विषाणुओं के प्रकोपों जैसे कि निपाह वायरस, इबोला, सार्स (सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम), मार्स (मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) और बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लुएंजा) का संक्रमण यह अध्ययन करने की और इंगित करता है कि हम पर्यावरण, पशु एवं मानव स्वास्थ्य के अंतर्संबंधों की जांच करें और समझें।
एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण कैसे काम करता है?
एक स्वास्थ्य, संयुक्त राज्य अमेरिका में और विश्व स्तर पर मानव-पशु-पर्यावरण अंतराफलक पर स्वास्थ्य संबंधी अवधारणाओं से लड़ने के प्रभावी तरीके के रूप में मान्यता प्राप्त कर रहा है, जिसमें पशुजनित रोग भी शामिल हैं। रोग नियंत्रण व निवारण केंद्रों (सीडीसी) के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों की निगरानी और नियंत्रण में मानव, पशु, पर्यावरणीय स्वास्थ्य, और अन्य प्रासंगिक विषयों और क्षेत्रों में विशेषज्ञों को शामिल करके एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण का उपयोग करता है और यह जानने के लिए कि मनुष्यों. अन्य प्राणियों, और पर्यावरण में रोग कैसे प्रसारित या संचारित होते हैं।
सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप के लिए मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य भागीदारों के सहयोग की आवश्यकता होती है। मानव स्वास्थ्य (चिकित्सक, परिचारिका, सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक, महामारी विज्ञानी), पशु स्वास्थ्य (पशु चिकित्सक, कृषि कार्यकर्ता), पर्यावरण (पारिस्थितिकी विज्ञानी, वन्यजीव विशेषज्ञ) और अन्य विशेषज्ञता के क्षेत्रों में पेशेवरों को संवाद करने, सहयोग करने और गतिविधियों का समन्वय करने की आवश्यकता है। एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण में अन्य प्रासंगिक भागीदारों में कानून प्रवर्तन, नीति निर्माता, कृषि, समुदाय और यहां तक कि पालतू पशु मालिक भी शामिल हो सकते हैं। केवल पशु-मानव-पर्यावरण अंतराफलक पर कोई एक व्यक्ति, संगठन या क्षेत्र मुद्दों का समाधान नहीं कर सकता है। सभी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देकर, एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण साझा वातावरण में मनुष्यों, पशुओं, और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सर्वोत्तम स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त कर सकता है।
भारत का एक स्वास्थ्य कार्यक्रम
दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारत ने १९८० के दशक में पशुजन्य रोग (जूनोज़िस) पर एक राष्ट्रीय स्थायी समिति की स्थापना की। इसके अतिरिक्त पशुपालन और दुग्ध उत्पादन विभाग ने पशु रोगों के प्रसार को कम करने के लिये कई योजनाएँ शुरू की हैं। यह विभाग शीघ्र ही अपने मंत्रालय के भीतर एक एक स्वास्थ्य इकाई स्थापित करेगा। इसके अलावा, सरकार ऐसे कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने के लिये प्रयासरत है जो पशु चिकित्सकों के लिये क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगी एवं पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली के अंतर्गत राज्यों को पशु रोग नियंत्रण हेतु सहायता प्रदान करेगी। नागपुर में एक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने के लिये धनराशि स्वीकृत की गई।
भावी योजना
रोगों की निगरानी को समेकित करना: मौजूदा पशु स्वास्थ्य और रोग निगरानी प्रणाली, जैसे-पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिये सूचना जालतन्त्र (नेटवर्क) एवं राष्ट्रीय पशु रोग सूचना प्रेक्षण प्रणाली को समेकित करने की आवश्यकता है।
विकासशील दिशा-निर्देश: अनौपचारिक बाज़ार और बूचड़खानों का संचालन (जैसे निरीक्षण, रोग प्रसार आकलन) के लिये सर्वोत्तम दिशा-निर्देशों का विकास करना और ग्रामीण स्तर पर प्रत्येक चरण में एक स्वास्थ्य के संचालन के लिये तंत्र बनाना।
समग्र सहयोग: एक स्वास्थ्य के अलग अलग आयामों को संबोधित करना, इसे लेकर मंत्रालयों से लेकर स्थानीय स्तर तक की भूमिका को रेखांकित कर आपस में सहयोग करना, इससे जुड़ी सूचनाओं को प्रत्येक स्तर पर साझा करना इत्यादि पहल की आवश्यकता है। एक स्वास्थय के लिये राजनीतिक, वित्तीय और प्रशासनिक जवाबदेही के संदर्भ में नवाचार, अनुकूलन और लचीलेपन को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
संस्थागत तंत्र की स्थापना: भारत में पहले से ही कई प्रयास चल रहे हैं, जो कि पशुजन्य रोगों में अनुसंधान के डेटाबेस के लिये संलेखन विकसित करने से जुड़े हैं। हालाँकि, कोई एकल संगठन या ढांचा नहीं है जो एक स्वास्थ्य कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिये छत्रछाया की तरह कार्य कर सके। अतः एक स्वास्थ्य अवधारणा को लागू करने के लिये एक उचित संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
https://www.pashudhanpraharee.com/response-role-of-veterinary-field-during-covid-19-crisis/
निष्कर्ष
भारत कोविड-१९ जैसी पशुओं से फैलने वाली खतरनाक महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहा है, और तीसरी लहर मुँह बाएं खड़ी है। इसे देखते हुए भारत को एक स्वास्थ्य सिद्धांत के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिये तथा इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास हेतु निवेश करना चाहिये। यदि हमें पशुजनित रोगों पर इस युद्ध में विजय प्राप्त करनी हैं तो हमारे दोनों शस्त्रों, पशु चिकित्सक एवं एक स्वास्थ्य, का सदुपयोग करना होगा। तब हमारी विजय अवश्यम्भावी होगी।
सन्दर्भ सूत्र:
https://www.who.int/news-room/q-a-detail/one-health/
https://www.cdc.gov/onehealth/
https://www.oie.int/en/what-we-do/global-initiatives/one-health/