विकसित भारत @ 2047 के साकार होने में पशुधन की भूमिका एवं महत्त्व
डॉ वंदना भगत, डॉ क्रांति शर्मा, डॉ सोनाली प्रुष्टि एवं डॉ नागेन्द्र कुमार
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, दाऊ श्री वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय, दुर्ग, छत्तीसगढ़
प्रस्तावना
भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत को सन् “2047 तक विकसित राष्ट्र ” बनाने की संकल्पना एवं आव्हान,भारत को उन्नत बनाने की दूरदर्शी खोज का प्रतीक है । इस समावेशी विकास के लिए न केवल प्रति व्यक्ति सकल रास्ट्रीय आय में उल्लेखनीय वृधि की आव्यश्कता है, बल्कि स्थायी सुधार की भी आव्यश्यकता है । भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन अपरिहार्य भूमिका निभाता रहा है । पशुपालन सांस्कृतिक और आर्थिक रूप सेसमान भारतीय समाज में एकीकृत है। पशुधन प्रोटीन, आजीविका और भरवाहक शक्ति का स्रोत है। वर्तमान जलवायु परिवर्तन के समय में भारत की बड़ती जनसख्या का खाद्य उत्पादन प्रणालियो पर बोझ बढ़ता जाएगा जिससे एवं भविस्य में पशुधन एवं पशु उत्पाद खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण कुंजी होंगे। देश की अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग में पशुधन की भूमिका, आसीविक एवं खाद्य सुरक्षा में पशुधन का महत्व के संधर्भ के भारत अग्रणी है। पशुधन भारत ग्रामीण अर्थव्यव्स्था की रीड की हड्डी, वर्ष भर आय व पौष्टिक भोजन प्रदानकर्ता एवं फसल की विफलताओं के विरुद्ध महत्वपूर्ण बीमा के रूप में कार्य करता है । भारत का विश्व दुध उत्पादन 2021 वे 1.1% बढ़ कर लगभग 887 क्विंटल हो गया, साथ ही 23.67 % के साथ वैस्विक स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है। डेयरी क्षेत्र भारतीय अर्थ व्यवस्था में 5% का योगदान एवं 8 करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोज़गार देती है। वैश्विक अंडा उत्पादन में भारत का योगदान लगभग 7% , मांस उत्पादन में 2.42%, और वैश्विक मछली उत्पादन में 7.56% है. लगभग 20 करोड़ लोग आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर है। गाय, भेड़ और बकरी के अलावा याक, ऊट और मिथुन जैसे विभिन्न प्रकार के पशुओं का पालन करना भारत में पशुपालन की अनूठी विशेषता है। तकनीकी पिछड़ापन, वित्तीय बाधाये और अपर्याप्त पशुचिकत्सा सेवाए कुछ ऐसे मुददें है जो पशुधन क्षेत्र की प्रगति में बाधक है। सन् 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उद्यिमता विकास, इकॉमर्स प्लेटफ़ार्म, पर्याप्त पशु चिकित्सा सेवाएं, मूल्य श्रृखला विकास व जलवायु स्मार्ट दृष्टिकोण पर ध्यान देने की आव्यश्कता व कृषि नवापार केंद्रों की स्थापना लचीली कृषि व पशुपालन पद्धितियों का विकास इत्यादि रणनीतियों के विकास की आव्यश्कता है जिससे कृषि व पशुपालन को बढ़ावा, उत्पादकता एवं स्थिरता के वृद्धि के साथ ही 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की मुहिम में महत्वपूर्ण योगदान व भूमिका निभा सकता है।
1.ग़रीबी उन्मूलन और रोज़गार सृजन
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 70% आबादी आजीविका के लिए कृषि एवं पशुपालन ( गाय, भैंस, बकरी, भेड़ व मुर्गीपालन) पर निर्भर है। पशुधन भूमिहीन मजदूरो और सीमिक किसानों को आजीविका प्रदान करती है एवं 20 मिलियन परिवार पशुपालन मिश्रित खेती मछली पकड़ने और जलीय कृषि की गतिविधियों में लगे हुए है एवं पशुधन वर्ष भर अतिरिक्त आय प्रदान करने वाले स्रोत है। आपात क़ालीन स्थिति जैसे सामाजिक कार्यक्रम (विवाह) बीमारियो का इलाज की आवयश्कताए , बच्चों की शिक्षा, घरों की मरम्मत आदि आव्यश्कतों की पूर्ति के फलस्वरूप पशुधन को चलता फिरता बैंक है एवं सामाजिक आर्थिक सुरक्षा प्रदानकर्ता माना गया है। शिक्षित बेरोज़गार युवाओ को आजीविका प्रदान करने का महत्वपूर्ण साधन है।
2.महिला सशक्तिकरण
सशक्त महिला सशक्त समाज की प्रतीक है, एवं सशक्तिकरण के लिए वितीय स्वतंत्रता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ग्रामीण क्षेत्र के पुरषों द्वारा अजीविका व अन्य कार्य के लिए शहरी प्रवास में वृद्धि के कारण कृषि कार्य में महिलाओं की भूमिका में वृद्धि हुई है, कृषि मूल्य शृंखला के उत्पादन, कृषि फ़सलो के कटाई से पहले व बाद के प्रसंस्करण, पैकेसिंग और विपठान के सभी स्तरों पर महिलाओं की प्रधानता की सराहना अनिवार्य है। ग्रामीण महतारियों पशुधन के खाद्य, आवास, स्वाश्त्य एवं प्रजनन प्रबंधन से संबंधित अधिकांश कार्यों की ज़िम्मेदारी निभाने की वजन से पशुओं की पालन पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- भारतीयआहारके प्रमुख हिस्सेदार
वर्तमान भारत में घरेलू ख़र्च एवं खाद्य का पैटर्न भी बदला है। वर्तमान में भारत के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में भोजन की कुल मात्रा का 20% व 25% तक का हिस्सा पशुधन व पशुत्पदों का है। पशुधन उत्पाद दूध, मांस, अंडे प्रोटीन के महत्वपूर्ण स्रोत है। सन् 2023 में प्रतिव्यक्ति दूध व अंडे की आपूर्ति 459 ग्राम व 101 थी। पशुधन क्षेत्र आवश्यक प्रोटीन प्रदान करने के साथ ही अखाद्य कृषि उप उत्पादों का उपयोग में लाने का भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
- 4.एकीकृतकृषि प्रणाली और आर्थिक विश्लेषण
भारत में एकीकृत व मिश्रित खेती के रूप में फसल की खेती के साथ ही गाय, भैंस व बकरी के छोटे झुंड के साथ पशुपालन किया जाता है। एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने से प्राकृतिक प्रभावी पुनचक्रण द्वारा उत्पादन संसाधन में सुधार, लाभ व स्थायित्व भी प्राप्त होती है। बड़ते शहरीकरण, आवासीय क्षेत्र के निर्माण के कारण कृषि भूमि कम हो गयी है एवं एकीकृत कृषि इन सभी समस्याओ का समाधान है। फसल की खेती, सब्ज़ी उत्पादन, डेयरी फार्मिंग, प्रसंस्करण एवं बायोगैस इकाई की स्थापना पूर्ण कृषि एकीकरण का उदाहरण है। एकीकृत कृषि प्रणाली उत्पादन लागत कम करती है, आय व उत्पादकता बढ़ाती है। एक अनुसंधान के अनुसार एकीकृत कृषि प्रणाली 58360 रुपए भी आय एवं 573 दिनों का रोज़गार छोटे से क्षेत्र (1.25 हे.) में उत्पादन कर छोटे व सीमांत कृषकों को अच्छी जीवन स्तर प्रदान कर सकता है। पशुगोबर अपशिष्ट का उपयोग मछली पालन के तालाब में कर प्रकृति मछली उत्पादन में वृद्धि एवं उर्वरक एवं खाद्य की लागत को 50% तक कम कर सकता है।
- ऊर्जाऔरखाद्य के स्रोत
भारत मवेशियों की आबादी में विश्व के प्रथम स्थान पर होने की वजह से परिणाम स्वरूप बायोगैस में ऊर्जा उत्पादन की क्षत्र में अपार सभावनाये है। बायोगैस स्वच्छ ऊर्जा के साथ ही ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम कर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने का उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है। प्राचीन काल से गोबर का उपयोग ईंधन के रूप में एवं उपले बनाने के लिए किया जाता रहा है परंतु इसे वायु प्रदूषण होता है । अतः बायोगैस के रूप गोबर का आधुनिक उपयोग सहायक एवं महत्वपूर्ण है।
भविष्य में पशुधन क्षेत्र के विकास हेतु संभावित महत्वपूर्ण कदम
(1)प्रशंस्करण एवं मार्केटिंग को बढ़ावा देना
2015-16 और 2016-17 के दौरान दुग्ध उत्पादन क्रमशः 155.5 मि. टन एवं 165.4 मि टन था जो 6.37% की वृद्धि दर्शाता है। इसी तरह मांस, घी, दही, अंडे इत्यादि के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है।पशुधन उत्पादों के निर्यात से आय 2001-02 में 1500.93 करोड़ से बढ़ कर 2004-05 के दौरान 2253.33 करोड़ हो गई। इसमें से पोल्ट्री एवं मांस उत्पादों की हिस्सेदारी 83% थी, इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दूध, पनीर, घी, दही इत्यादि उत्पादों के उत्पादन में वृद्धि कर भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के उपयुक्त बनाकर निर्यात किया जा सकता है एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करण प्राथमिकता क्षेत्र ऋण अन्तर्गत आते है और उद्यमी सूक्ष्म, लघु और लघु उत्पादक के कर लाभ और सब्सिडी वाले ऋण लाभ का भी लाभ उठा सकते है। पशुधन उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें विनिर्माण क्षेत्र में शामिल करने से भारतीय अर्थव्यव्स्था में सुधार हो सकता है।
(2) स्वाष्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार –
भारत में अधिकांश पशुधन भूमिहीन और सीमांत किसानों के पास है एवं पशुधन के रखरखाव एवं स्वास्थ्यगत देखभाल पर बहुत खर्च होता है। कभी कभी सही इलाज न मिल पाने की वजह से वे अनुपयोगी एवं अनुत्पादक हो जाते हैं।अतः इस नुकसान से बचने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ व्यवस्था करनी होनी चाहिए। पशुओं की उत्पादन क्षमता मुख्य रूप से भोजन की गुणवत्ता, आनुवांशिक क्षमता और पशु स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर निर्भर करती है और इन सभी क्षेत्रों में आवश्यक सुधार करने एवं इन सुविधाओं को सभी पशुपालकों को उपलब्ध कराने के लिए भारत को व्यापक स्तर पर सुधार करने की आवश्यकता है।
(3) डिजिटलीकरण
किसी भी प्रकार के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग जिससे ग्रामीण,गरीब एवं किसान विकसित विकासशील पशुपालकों की आजीविका में वृद्धि करती है, पशुधन उत्पादन में वृद्धि करती है। सकारात्मक डिजिटलाइजेशन का हर एवं माना जा सकता है। पशु संजीवनी योजना के तहत दुधारू पशुओं को विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान की जाती है एवं डेटा पशु स्वास्थ्य और उत्पादकता की सूचना नेटवर्क पर अपलोड किया जाता है। इ पशु हार्ट पोर्टल किसानों और नस्लों को जोड़ने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल ऑनलाइन पोर्टल के लिए ऑनलाइन बाजार की तरह की तरह काम करती है। इसी प्रकार डिजिटलाइजेशनग्रामीण क्षेत्रों की व्यवस्था, व्यवहार और ज्ञान दोनों पर प्रभाव डालती है। ऐसा माना जाता है कि आईसीटी पशुधन उद्योग के भविष्य के आर्थिक विकास का प्रमुख आधार बन जाएगा और इसे अपनाने में विफलता बड़ी समस्याएं पैदा कर सकती है । डेयरी मालिकों द्वारा उपयोग की जाने वाली कंप्यूटर आधारित सूचना प्रणाली जिसे पशु स्वास्थ्य सूचना प्रणाली mकहा जाता है, स्थानीय भाषा में पाठ के रूप में पशु स्वास्थ्य प्रबंधन विशेष रूप से बीमारियों पर वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करती है। यह सभी िडिजटलाएजेशन के सकारात्मक उपयोग है, इसमे वृिद्ध एवं िवकास की आव्यश्कता है।
निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इसकी विशेषताएं विविध और क्षेत्र-विशिष्ट हैं। पशुधन महिला सशक्तिकरण में मदद करता है और कई सीमांत किसानों को आजीविका प्रदान करता है।कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में पशुधन को मुख्य घटक के रूप में पालने वाले कृषक समुदाय को विकसित करके ही वास्तविक विकास प्राप्त किया जा सकता है। इस क्षेत्र का भविष्य आशाजनक है, बशर्ते चुनौतियों का समय पर और प्रभावी तरीके से समाधान किया जाए। सरकारों को आवश्यक बुनियादी ढांचा और विपणन सहायता प्रदान करके इस क्षेत्र में निवेश करने की आवश्यकता है, और अनुसंधान संस्थानों को भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त बेहतर प्रौद्योगिकियों और पशुधन नस्लों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत का वास्तविक विकास तभी होगा जब कृषि-पशुधन क्षेत्र को उच्चतम निवेश प्राप्त होगा ।