खाद्य पदार्थों की पाचकता निकालने की रुमेन फिस्टुलेशन तकनीक….
आप सबको पता ही है कि किसी भी जुगाली करने वाले पशु के चार पेट होते हैं। इनमें से ही एक पेट का नाम होता है रुमेन। इसी भाग में खाये गए चारे का पाचन होता है। खाया गया चारा और दाना यहीं पड़ा रहता है और उसमें फ़र्मण्टेशन होता रहता है और पाचन होता रहता है।
अब प्रश्न उठता है कि जो चारा या दाना हमने पशु को खिलाया उसमें से कितना पचा और कितना नहीं पचा यह कैसे जाना जाए???
इसके लिए प्रयोग की जाती है नायलॉन बैग टैक्नीक।
नायलॉन बैग तकनीक क्या है?
इस तकनीक में नायलॉन के छोटे छोटे बैग्स बनाते हैं जिनका मुँह उसी तरह बंद किया जा सकता है जैसे पुराने जमाने में रुपये पैसों की थैली का किया जा सकता था। इन्हीं बैग्स में जो चारा पशु खा रहा है उसी चारे में से कुछ निश्चित मात्रा भरकर पशु के पेट में रख देते हैं। फिर एक निश्चित अंतराल पर इन बैग्स को निकालकर उसके अंदर मौजूद चारे और दाने को तौलकर और जो कमी आई उसे पता लगाकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि जो चारा बैग्स के अंदर रखा गया था उसमें से कितना पच गया और कितना नहीं पचा।
अब प्रश्न आता है कि इन बैग्स को पशु के पेट में कैसे रखें?
तो उस काम के लिए कुछ एक्सपेरिमेंटल पशुओं के रुमेन में छेद करके उस पर फिस्टुला फिट कर दिया जाता है। हर एक फिस्टुला का एक ढक्कन होता है जिसे जब चाहे खोलकर उसके अंदर कुछ भी डाला जा सकता है। फिर उस फिस्टुला के ढक्कन से इन बैग्स को अंदर डालकर फिर से ढक्कन बन्द कर दिया जाता है।
तो रुमेन के अंदर ये जो नायलॉन बैग्स हैं ये भी तो डाइजेस्ट हो जाते होंगे?
ना। रुमेन के अंदर नायलॉन बैग्स डाइजेस्ट नहीं हो सकते इसलिए ये बच जाते हैं मगर नायलॉन के कपड़े के छेदों से पाचक रस बैग्स के अंदर घुसकर उस चारे या दाने का उसी तरह पाचन कर देते हैं जैसे वह पेट के अंदर पचता है।
इस फिस्टुला से पशु को कोई कष्ट नहीं होता??
जब फिस्टुला लगाया जाता है तो फिस्टुला लगाई जाने वाली जगह को एनेस्थीसिया देकर सुन्न करके ही यह ऑपरेशन किया जाता है। एक बार घाव भरने के बाद पशु को कोई कष्ट नहीं होता।
यह जो तकनीक है यह हर पशुपोषण प्रयोगशाला में प्रयोग की जाती है। मैंने खुद इसी तकनीक का प्रयोग डॉ अशोक कुमार जी के दिशा निर्देशन में वर्ष 1994-95 में किया था धान की विभिन्न किस्मों के पुआल की पाचकता का अध्ययन करने के लिए।
——डाक्टर संजीव वर्मा