ग्रामीण कुक्कुट पालन : महिलायों के आर्थिक स्वावलंबन का सशक्त माध्यम
सुधांशु शेखर 1, शिव मंगल प्रसाद2, शशि भूषण सुधाकर 3, संजय कुमार 4 ,एवं रजनी कुमारी5
1कृषि विज्ञान केन्द्र (भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक), कोडरमा ,झारखण्ड, 2केन्द्रीय वर्षाश्रित उपराउं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र, हजारीबाग, झारखण्ड, 3 भा.कृ.अनु.प.-राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान, मध्य प्रदेश, 4 पशु पोषण विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय,पटना ,बिहार
5वैज्ञानिक, आई.सी.ए.आर – आर.सी.ई.आर, पटना, बिहार
हमारे देश में पोल्ट्री उत्पादन के वर्तमान परिदृश्य ने शहरी एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में अंडे और मुर्गियों के मांस की खपत में वृद्धि की है। लेकिन ग्रामीण / जनजातीय क्षेत्रों में ये उत्पाद मुख्य रूप से इनके अनुपलब्धता के कारण महंगे हैं। ग्रामीण / जनजातीय क्षेत्रों में हमें वैसे मुर्गी पालन को अपनाना चाहिए, जिसमें पोषण और प्रबंधन में कम लागत हो और इन क्षेत्रों में उपलब्ध देशी मुर्गी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करे। ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ.) दूरदराज के क्षेत्रों में कुक्कुट उत्पादों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए एक विकल्प है जो ग्रामीणों एवं आदिवासीयों के स्वास्थ्य एवं आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आई.सी.ए.आर.) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों ने ग्रामीण कुक्कुट पालन के लिए कुक्कुटो की अनेक किस्मो को विकसित किया है जो हमारे देश के विविध जलवायु परिस्थितियों में भलीभांति जीवित रहती हैं और अच्छा प्रदर्शन करती हैं। मुर्गियों के प्रकार, संसाधनों की उपलब्धता और लोगों की पसंद के आधार पर, ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ.) को तीन तरीकों से किया जा सकता है जैसे पूर्ण मुक्त विधि, अर्ध गहन विधि और गहन विधि । ग्रामीण कुक्कुट पालन की अवधारणा को बेहतर ढंग से समझने के लिए, पोल्ट्री फार्मिंग की वर्तमान स्थिति, गहन पोल्ट्री फार्मिंग के परिदृश्य की सीमाएं, गहन पोल्ट्री फार्मिंग के संभावित विकल्प, ग्रामीण कुक्कुट पालन के फायदे, ग्रामीण कुक्कुट पालन के लिए आहार, आवास एवं स्वास्थ्य-सुरक्षा और ग्रामीण कुक्कुट पालन इकाई की स्थापना के लिए वित्तीय विवरण की जानकारी काफी आवश्यक है।
ग्रामीण कुक्कुट पालन: भारत में सघन कुक्कुट पालन (आई.पी.एफ.) में प्रभावशाली वृद्धि हासिल की गई है, लेकिन ग्रामीण कुक्कुट पालन का क्षेत्र लगभग स्थिर रहा है। हमारे देश में चिकन की कुल आबादी 835 मिलियन है जिसमे ग्रामीण क्षेत्रों में चिकन की आबादी 231 मिलियन है जो कुल अंडा उत्पादन में सिर्फ 14.5% का योगदान करती है। पोल्ट्री उत्पादों की अनुपलब्धता के कारण, शहरी और अर्ध-शहरी बाजारों की तुलना में ग्रामीण / आदिवासी क्षेत्रों में इनकी कीमतें 25% तक अधिक रहती हैं। इसलिए जरूरी है कि ग्रामीण कुक्कुट पालन को प्रोत्साहित किया जाए जिससे ग्रामीण आबादी को उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और पूरक आय प्रदान की जा सके एवं कम विकसित क्षेत्रों में अंडे और मांस की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके तथा अतिसंवेदनशील (महिलाएं, बच्चे, गर्भवती माताएं, आदि) समूहों में प्रोटीन की कमी को कम करने में मदद हो सके । सदियों से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों द्वारा आंगन या घर के पिछवाड़े मे, घरेलू श्रम और स्थानीय उपलब्ध दाना-पानी का उपयोग कर छोटे स्तर पर पूर्ण मुक्त (फ्री-रेंज) विधि से स्थानीय देशी चिकन किस्में द्वारा कुक्कुट पालन किया जा रहा है। देशी कुक्कुटो में अंडे और मांस का उत्पादन क्षमता काफी कम होती है जिसके कारण बैकयार्ड कुक्कुट पालन से कम आमदनी होती है तथा देश के कुल अंडा उत्पादन में इनका योगदान भी सिर्फ 14.5 % है जो कि पिछले कुछ दशकों से लगभग स्थिर है। इसलिए, ग्रामीण क्षेत्रों में अंडे और मांस का उत्पादन को बढानें के लिये यह आवश्यक है कि स्थानीय देशी चिकन किस्मों की आनुवंशिक क्षमता को बढ़ाया जाय। किसानों द्वारा अपनाए जा रहे वर्तमान चयन और प्रजनन कार्यक्रम (प्राकृतिक चयन) से देशी मुर्गे की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो सकती है। गहन कुक्कुट पालन (आई.पी.एफ.) में उपयोग की जा रही चिकन की किस्में, मुक्त-सीमा, प्रतिकूल और कठोर जलवायु परिस्थितियों में जीवित नहीं रह सकती हैं, जहां रोग चुनौती बहुत अधिक है। ग्रामीण/जनजातीय क्षेत्रों में छोटे पैमाने पर गहन कुक्कुट पालन को अपनाना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं हो सकता है क्योंकि प्रबंधन में सीमाएं, उच्च लागत और ग्रामीण/जनजातीय क्षेत्रों में इनपुट (चुज्जों,दाना,दवाओं) की अनुपलब्धता होती है। इसलिए, ग्रामीण कुक्कुट पालन के लिये ऐसे कुक्कुट के किस्मों का चयन करना चाहिए, जिसका पंख रंगीन हो, जिसमे शिकारियों से बचने की क्षमता, रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक हो एवं कठोर और विविध जलवायु परिस्थितियां में रहकर तथा रसोई अवशिष्ट, टूटे हुए अनाज के दाने, कीड़े- मकोड़ों आदि को खाकर घर के पिछवाड़े की मुक्त सीमा में रहकर अधिक अंडा एवं मांस का उत्पादन कर सके। ग्रामीण कुक्कुट पालन के लिए पक्षियों की विशिष्ट किस्में मांस या अंडे के उत्पादन के लिए उपलब्ध हैं और कुछ किस्में दोनों (दोहरे उद्देश्य) के लिए उपलब्ध हैं। अंडे देने वाली किस्मों को हमेशा फ्री-रेंज के तहत पाला जाना चाहिए। लेकिन मांस देने वाली किस्मों को या तो गहन या मुक्त श्रेणी की परिस्थितियों में पाला जा सकता है, जो पक्षियों की संख्या और पिछवाड़े के आस-पास के प्राकृतिक चारा संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। जहां प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक चारा संसाधन (कीड़े, सफेद चींटियां, गिरे हुए दाने, हरी घास आदि) उपलब्ध हैं, वहां पक्षियों की एक छोटी संख्या (10-20 पक्षीयों) को फ्री-रेंज के तहत मांस के लिए पाला जा सकता है। यदि स्थानीय मांग बड़ी मात्रा में पोल्ट्री मांस के लिए है, तो दोहरे उद्देश्य (वनराजा) या रंगीन पंख वाले ब्रॉयलर चिकन (कृष-ब्रो) को सभी आवश्यकतायों को पूर्ति करके गहन परिस्थितियों में पाला जा सकता है। ग्रामीण कुक्कुट पालन के लिए विकसित अधिकांश किस्मों को प्रबंधन और आहार (फीड) के रूप में लगभग 25-30% कम लागत की आवश्यकता होती है।
ग्रामीण कुक्कुट पालन (रूरल पौल्ट्री फार्मिंग) के लाभ–
- गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं, बच्चों में प्रोटीन कुपोषण को कम करता है।
- अपशिष्ट पदार्थ (कीड़े, सफेद चींटियाँ, गिरे हुए दाने, हरी घास, रसोई का कचरा आदि) को कुशलतापूर्वक उपयोग कर मानव उपभोग के लिए अंडे और चिकन मांस में परिवर्तित किया जा सकता है।
- ग्रामीण परिवारों खासकर महिलाओं को अतिरिक्त आय प्रदान करता है।
- 8-10 प्रति यूनिट पोल्ट्री उत्पाद पर्यावरण प्रदूषण को कम करता है, जो सघन कुक्कुट पालन की एक बड़ी समस्या है।
- ग्रामीण कुक्कुट पालन अन्य कृषि कार्यों के साथ अच्छी तरह से एकीकृत हो जाता है।
- घर के पिछवाड़े में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होता है। 15 मुर्गी प्रति दिन 1 से 2 किलो खाद का उत्पादन करती है।
- सघन कुक्कुट पालन में उत्पादित उत्पादों की तुलना में ग्रामीण कुक्कुट पालन के उत्पाद से अधिक कीमत प्राप्त करते हैं।
- मुक्त श्रेणी की परिस्थितियों में पाले गए पक्षियों के अंडे और मांस में सघन कुक्कुट पालन के तहत उत्पादित की तुलना में कम कोलेस्ट्रॉल सांद्रता होती है।
- ग्रामीण / आदिवासी लोगों को रोजगार प्रदान करता है और शहरी क्षेत्रों में लोगों के पलायन को रोकने में मदद करता है।
ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ) को मुख्यरूप से दो प्रमुख प्रबंधन चरणों में विभाजित किया जा सकता है।
- नर्सरी प्रबंधन या ब्रूडिंग
- पूर्ण मुक्त (फ्री–रेंज) प्रबंधन
- 1. नर्सरी प्रबंधन– पक्षियों को अंडे या मांस उत्पादन के लिए पूर्ण मुक्त (फ्री-रेंज) फार्मिंग के लिए आंगन या घर पिछवाड़े में छोड़ने से पहले शुरुआती 6 सप्ताह की उम्र के दौरान ब्रूडिंग की आवश्यकता होती है। नर्सरी अवधि के अंत में अर्थात 6 सप्ताह की आयु में अच्छी गुणवत्ता वाले चूजे प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।
अ. पोल्ट्री हाउस की सफाई
- पोल्ट्री हाउस से सभी उपकरण जैसे फीडर, ड्रिंकर, बिजली की फिटिंग, पार्टीशन और पर्दों को साफ कर दे ।
- पोल्ट्री हाउस से पुराने कूड़े को हटाकर परिसर से दूर फेंक दें।
- पोल्ट्री हाउस के छत, दीवाल एवं फर्श को ब्रश से खुरच कर साफ करें।
- पोल्ट्री हाउस के आसपास कम से कम 5 फीट तक साफ करें
- पोल्ट्री हाउस के छत, दीवाल, फर्श, फुटपाथ और जाली को कीटाणु रहित करने के लिये फलेम गन की मदद से जलाएं।
- प्रेशर स्प्रेयर का उपयोग करके पोल्ट्री हाउस को गर्म पानी से अच्छी तरह धो लें।
- पोल्ट्री हाउस को व्यापक स्पेक्ट्रम कीटाणुनाशक से स्प्रे करें।
- पोल्ट्री हाउस की साइड की दीवारों और जाली को बोरियों से ढक दें।
आ. उपकरणों की सफाई
उपकरण (फीडर, ड्रिंकर और होवर इत्यादि) में लगी गंदगी को हटाने के लिए को स्क्रैप कर, डिटर्जेंट युक्त या कीटाणुनाशक घोल के टैंक में रात भर के लिए में भिगोएँ तथा उपकरण को स्क्रब कर साफ करे और धूप में सुखाएं एवं सूखे उपकरणों पर कीटाणुनाशक स्प्रे करें।
नर्सरी यूनिट की तैयारी– पोल्ट्री हाउस को अच्छी तरह साफ़ कर एक सप्ताह के लिए बंद कर रखें। पोल्ट्री हाउस में कीटाणुरहित लिटर (धान की भूसी / लकड़ी की भूसी) को लगभग २ से ३ ईच की मोटाई में समान रूप से फैलाएं। फीडर और ड्रिंकर को अच्छी तरह से सजा कर रखे। चूजों को लिटर खाने से रोकने के लिए अखबार पर रखे। इष्टतम ब्रूडिंग तापमान प्राप्त करने के लिए चूजों के आने से कम से कम दो घंटे पहले ब्रूडर को चालू कर दें।
ब्रूडर्स– ब्रूडर के लिये इलेक्ट्रिक / गैस / कोयला ब्रूडर का उपयोग किया जा सकता है। ताप स्रोत के लिए 2 वाट प्रति चूजे की दर से बल्ब लगाये जो की 6 सप्ताह की आयु तक के चूजे के लिए पर्याप्त होता है। भीषण ठंड के मौसम या स्थानों में, अतिरिक्त कोल हीटर / बुखारी को उपलब्ध कराए जा सकता हैं। ब्रूडर हाउस के सही तापमान होने पर चूजों ब्रूडर हाउस में समान्य रूप से वितरित रहता है। जब ब्रूडर हाउस का तापमान पक्षियों की आवश्यकता से अधिक होता है तो चूजे अधिक गर्म हो जाते हैं और ऊष्मा स्रोत से दूर चले जाते हैं। यदि ब्रूडर हाउस का तापमान कम रहता है तो चूजे ऊष्मा स्रोत के पास झुण्ड लगा देते हैं। चिक गार्ड की मदद से चूजों को ऊष्मा स्रोत के पास सीमित किया जा सकता है। आमतौर पर, 15 -18 ईच की ऊंचाई के धातु गार्ड का उपयोग ब्रूडिंग के लिए किया जाता है। चिक गार्ड हॉवर के किनारे से 3 फीट की दूरी पर स्थित होना चाहिए।
वेंटिलेशन और प्रकाश व्यवस्था– 8-10 दिनों की उम्र तक के चूजों को बहुत कम वायु संचलन की आवश्यकता होती है, लेकिन उसके बाद ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के संतुलन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त वायु संचलन आवश्यकता होती है। चूजों को तेज गति की सीधी ठंडी हवा से बचना चाहिए। तापमान के अलावा, चूजों को फीडर और ड्रिंकर का पता लगाने के लिए ब्रूडिंग क्षेत्र को पर्याप्त प्रकाश मिलना चाहिए।
पानी– पानी चूजों के विकाश के लिये एक महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह कयी आवश्यक कार्य करता है। पानी की खपत को बढ़ाने के लिए, कुछ चूजों की चोंच को पानी में डुबोएं और उन्हें ब्रूडर में छोड़ दें। चूजों को हमेशा साफ और ताजा पानी देना चाहिए। दिन में कम से कम ३ बार पानी बदल देना चाहिए। चूजों को फीडर और ड्रिंकर खोजने के लिए 2 मीटर से अधिक नहीं चलना चाहिए। ड्रिंकर को मुख्य ताप स्रोत के एक मीटर के भीतर स्थित रखना चाहिए। उम्र के पहले सप्ताह में 100 चूजों के लिए एक ड्रिंकर प्रदान करें। पीने के पानी में इलेक्ट्रोलाइट्स और विटामिन के साथ एक हल्का एंटीबायोटिक भी देनी चाहिए।
फीड / दाना – चूजों को ब्रूडर हाउस में समान रूप से फैले फीडर में दाना देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि झुंड के छोटे से छोटे चूजों को भी दाना आसानी से मिल जाए। दिन में कम से कम ३ बार दाना दिया जाना चाहिए और हर बार फीडर का ¾ भाग ही भरा जाना चाहिए। जिससे की चूजों द्वारा फ़ीड / दाने को गिराया या बर्बाद ना किया जा सके। फ़ीड बैग को सूखे और हवादार कमरे में और चूहे से बचाकर संग्रहित किया जाना चाहिए। चूजों के अच्छे विकास दर और फ़ीड रूपांतरण प्राप्त करने पर्याप्त मात्रा में फीडर उपलब्ध कराना चाहिए। फीडरों की सफाई नियमित रूप से रोज करनी चाहिए। जैसे-जैसे चूजे बढ़ते हैं उसे अधिक भोजन की जरुरत होती है इसलिए प्रत्येक सप्ताह फीडर की संख्या को बढ़ानी चाहिए। फीडर को इस तरह रखना चाहिए कि फीडर का ऊपरी सतह, औसत पक्षियों की पीठ के स्तर के बराबर हो। जिससे की चूजों को फ़ीड/ दाने को खाने में कठिनाई ना हो।
स्वास्थ्य देखभाल– ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ) के लिए विकसित की गयी किस्मों में सघन कुक्कुट पालन (आई.पी.एफ.) के तहत पाले गए किस्मों की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता / प्रतिरक्षा क्षमता होती है। हालाँकि, इन पक्षियों को रानीखेत रोग और फाउ जैसी कुछ बीमारियों से सुरक्षा की आवश्यकता होती है। चेचक टीकाकरण का कार्यक्रम पाले गए पक्षियों की किस्मों पर निर्भर करता है। हालांकि, चूजों के 6 सप्ताह की उम्र यानी नर्सरी अवधि तक पहुंचने से पहले न्यूनतम आवश्यक टीकाकरण पूरा किया जाना चाहिए। पक्षियों को पूर्ण मुक्त (फ्री-रेंज) कंडीशन में रानीखेत रोग के वचाब के लिये हर 6 महीने के अंतराल पर R ₂B स्ट्रेन का टीका लगाया जाना चाहिए। टीकाकरण से एक सप्ताह पहले पक्षियों को कृमि नाशक दवाई देनी चहिये ।
लिटर का प्रबंधन: 2 से 3 ईच मोटी कीटाणुरहित लिटर (धान की भूसी / लकड़ी की भूसी) को समान्य रूप फैलानी चाहिए एवं समय- समय केकिंग से बचने के लिए लिटर को पलटते रहना चाहिए। गीले लिटर को तुरंत हटा देना जाना चाहिए और इसे नये लिटर से बदल दिया जाना चाहिए।
पक्षियों का अवलोकन: चूजे के झुंड को उनकी गतिविधि, चारा और पानी की खपत, किसी भी बीमारी के लक्षण और मृत्यु दर के लिए समय – समय पर अवलोकन करना चाहिए।
2.पूर्ण मुक्त (फ्री–रेंज) प्रबंधन– 6 से 7 सप्ताह की आयु में, पक्षियों के शरीर का न्यूनतम वजन 500 ग्राम तक हो जाता है और उनमें समान्य कुक्कुट रोग यानी (रानीखेत रोग) से प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है। इन बड़े चूजों को परिवहन के दौरान तनाव से बचने के लिए बांस की टोकरियों का उपयोग करके नर्सरी इकाई से विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में ले जाया जाना चाहिए। इन बड़े हो चुके पक्षियों को घर के पिछवाड़े में प्राकृतिक खाद्य आधार के आधार पर 10 – 20 पक्षियों के झुण्ड में रखा जाता है। पक्षियों को दिन के समय चारागाह के लिए छोड़ दिया जाता है जबकि रात में उन्हें बांस, लकड़ी या मिट्टी से बने आश्रय में रखा जाता है। पक्षियों को घर पिछवाड़े में चारागाह में जाने से पहले प्रतिदिन स्वच्छ पेयजल देना चाहिए। कुक्कुट दिन में रसोई के बचे हुए अपशिष्ट, स्थानीय रूप से उपलब्ध अनाज, कीड़े-मकोड़े, कोमल पत्ते और उपलब्ध सभी सामग्री का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में करता है जिससे ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ) में आहार पर काफी कम खर्च होता है। शाम को कुछ मात्रा में अतिरिक्त फीड जैसे घरेलू अनाज या कम घनत्व वाला मिश्रित फीड मौसम और उपलब्ध प्राकृतिक चारा के अधार पर देना चाहिए। चूजे उत्पादन हेतु 10 मादा पक्षियों के लिए 1 नर पक्षी की अवश्यकता होती है। इसलिए अतिरिक्त नर को 12 से 15 सप्ताह की उम्र में जब उसका न्यूनतम शरीर भार 1200 ग्राम हो जाये तो उसे बेच देना चाहिए, जबकि मादाओं को अंडा उत्पादन के लिए आगे पालन किया जाता है। अच्छी संख्या में अंडे प्राप्त करने के लिए मुर्गियों के वजन इष्टतम रखना चाहिए। बीमारी के किसी भी लक्षण को देखे जाने पर इलाज किया जाना चाहिए। बेहतर अंडा एवं अच्छी शेल क्वालिटी के लिए शैल ग्रिट अथवा मार्बल के छोटे छोटे टुकड़े प्रतिदिन 5-7 ग्राम / पक्षी देना चाहिए ।
रोग प्रबंधन– फ्री-रेंज और बैकयार्ड चिकन में बीमारियों की घटनाओं को नियंत्रित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि वे प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे मौसम परिवर्तन, खराब गुणवत्ता वाले फ़ीड, दूषित पानी और हवा, शिकारियों आदि के संपर्क में आते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कुक्कुट उत्पादन को प्रभावित करने वाले रोग रानीखेत रोग और फॉल पॉक्स हैं। विभिन्न घरों के झुंडों और पशुओं के झुंडों के बीच संपर्क रोग संचरण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। फ्री-रेंज और बैकयार्ड में एक ही स्थान पर कई आयु समूहों के मुर्गियों का पालन-पोषण किया जाता है जिससे रोग नियंत्रण लगभग असंभव हो जाता है। इसके अलावा एक ही परिसर में मुर्गियों, बत्तखों, टर्की, गिनी मुर्गी आदि की विभिन्न प्रजातियों भी पली जाती है इसके अलावा, मृत पक्षियों के शव भी पिछवाड़े के मुर्गे के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। रात में उन्हें बांस, लकड़ी या मिट्टी से बने आश्रय में रखने से शिकारियों के कारण होने वाली मृत्यु दर को नियंत्रित करने में मदद मिलता है। लेकिन रात्रि आश्रय के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री जैसे लकड़ी और बांस बाहरी परजीवियों के लिए एक अच्छा छिपने का स्थान प्रदान करती है जिसके कारण बैकयार्ड मुर्गियों में बाहरी परजीव के संक्रमण का खतरा बना रहता है जिसके कारण बैकयार्ड मुर्गियों की उत्पादन क्षमता काफी प्रभाबित होती है। इससे वचाब के लिए मेलाथियान(2-5%) या डी. डी.टी.(1-5%) प्रयोग बालू में मिलकर करना चाहिए। बैकयार्ड मुर्गियों अन्तः परजीवी के संक्रमण का भी काफी खतरा बना रहता है ईससे वचाब के लिए एल्बेनडाजोल (5 मिली ग्राम / किलोग्राम शारीरिक भार) या पिपराजीन (50-100 मिलीग्राम /पक्षी) पीने के पानी के साथ देनी चाहिए।
ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ) के लिए उपलब्ध किस्में–
भारत में ग्रामीण कुक्कुट पालन (आर.पी.एफ) के महत्व को समझने के बाद, कई शोध संस्थानों ने मुर्गियों की विभिन्न अंडादेय किस्मों को विकसित किया हैजिनकी अंडा उत्पादन क्षमता देसी मुर्गिओं के तुलना में कई गुणा अधिक है साथ ही साथ शारीरिक वजन भी ज्यादा होता है :
क्रम संख्या
|
नस्ल
|
विकसित करने वाला संस्थान
|
प्रकार |
1. | वनराजा | कुक्कुट शोध निदेशालय, हैदराबाद | अंडा एवं मांस |
2. | ग्रामप्रिया | कुक्कुट शोध निदेशालय, हैदराबाद | अंडा |
3. | कृष- ब्रो | कुक्कुट शोध निदेशालय, हैदराबाद | मांस |
4. | ग्रिराजा | यूएएस, , बंगलुरु | अंडा एवं मांस |
5. | ग्रिरानी | यूएएस, बंगलुरु | अंडा |
6. | कृष्णा- जे. | जेएनकेवीवी.,जबलपुर | अंडा |
7. | ग्राम लक्ष्मी | के. ऐ.यू, केरला | अंडा |
8. | कलिंगा ब्राउन | कुक्कुट शोध निदेशालय, भुवनेश्वर | अंडा |
9. | कैरी निर्भीक | सी ए आर आई, इज्जतनगर | अंडा एवं मांस |
10. | कैरी देवेन्द्रा | सी ए आर आई, इज्जतनगर | अंडा एवं मांस |
11. | कैरी गोल्ड | सी ए आर आई, इज्जतनगर | अंडा एवं मांस |
12. | कैरी श्यामा | सी ए आर आई, इज्जतनगर | अंडा |
13. | उपकारी | सी ए आर आई, इज्जतनगर | अंडा एवं मांस |
14. | हितकारी | सी ए आर आई, इज्जतनगर | अंडा |
15. | निशबारी | सी ए आर आई, पोर्टब्लैयेर | अंडा |
16. | नंदनम 99 | तनवासु, चेन्नई | अंडा |
17. | झारसीम | बी ए यु कांके ,रांची | अंडा एवं मांस |
बैकयार्ड कुक्कुट मे टीकाकरण–
बैकयार्ड कुक्कुट मे निम्नलिखित बीमारियों का टीकाकरण करवाना चाहिए।
क्रम संख्या
|
उम्र (दिन) | टीका का नाम
|
डोज़ | रूट |
1 | 1 | मरेक्स | 0.20 मि. ली. | खाल मे |
2 | 7 | रानीखेत (लासोटा) | एक बूंद | आँख मे |
3 | 18 | रानीखेत (लासोटा) | एक बूंद | आँख मे |
4 | 28 | रानीखेत(आर.टू.वी.) | 0.50 मि.ली. | खाल मे |
5 | 42 | फाउल पॉक्स | 0.20 मि. ली. | मांस में |
रानीखेत (आर.टू.वी.) प्रत्येक 6 महीने के अन्तराल पर दे |
अर्ध गहन विधि से 10 वनराज एवं 10 देशी पक्षियों के पालन पोषण का वित्तीय विवरण–
आइटम
|
वनराज पक्षी | देशी पक्षी |
एक दिन पुराने चूजे की कीमत
क. वनराज चूजे की दर – 30 रु./ चूजा ख. देशी चूजे की दर- 20 रुपये प्रति चूजा |
30.0 x 10.0 = 300.00
|
20.0 x 10.0= 200.00
|
30 दिन की उम्र तक फ़ीड की लागत
क. 1.25 किग्रा ब्रॉयलर वनराज के लिए स्टार्टर फीड प्रति पक्षी चारा की दर- 35 रुपये/किलोग्राम ख. देशी पक्षी के लिए प्रति पक्षी 500 ग्राम टूटे चावल टूटे चावल की दर- 10 रुपये/किलोग्राम |
43.75 x 10.0 = 437.50
|
5.0 x 10.0 =50.00
|
टीके, दवा, पूरक आहार आदि की लागत। | 100.00 x 10.0 =1000.00 | 75.00 x 10.0= 750.00
|
पूरक आहार की लागत
क. नर पक्षी 250 दिनों तक 30 ग्राम/पक्षी/दिन = 7.5 किग्रा/पक्षी फ़ीड की दर से भोजन करते हैं- 20 रु. /किग्रा ख. मादा पक्षी 470 दिनों तक 30 ग्राम/पक्षी/दिन -14.1 किग्रा/पक्षी की दर से भोजन करती हैं। फ़ीड की दर-20 रु./किग्रा |
क. 7.5 किग्रा x 20.00 x 4 पक्षी = 600.00
ख. 14.1 किग्रा x 20.00 x 5 पक्षी = 1410.00
|
क. 7.5 किग्रा x 20.00 x 4 पक्षी = 600.00
ख. 14.1 किग्रा x 20.00 x 4 पक्षी = 1128.00
|
ए. उत्पादन की लागत
|
3747.10 | 2728.00 |
अंडों की बिक्री से आय
(वनराज की 5 संख्या और देशी मुर्गियों की 4 संख्या) अंडे की कीमत- रु. 8/अंडा |
170 अंडे/मुर्गी x 8.0 x 4 = 6800.00
|
60 अंडे/मुर्गी x 8.0 x 4 = 1920.00
|
मुर्गा की बिक्री से आय
(4 वनराज और 4 स्थानीय मुर्गों की) मांस की कीमत- 250 रु. / किग्रा |
3.17 किग्रा x 250 x 4 = 3170.00
|
1.35 किग्रा x 250 x 4 = 1350.00
|
स्पेंट मुर्गियों की बिक्री से आय
(5 वनराज और 4 देशी मुर्गियाँ) वनराज की कीमत- रु. 300 रुपये/मुर्गी देशी की कीमत- 200 रुपये/मुर्गी |
300 रु. x 5 मुर्गियाँ = 1500.00
|
200 रु. x 4 मुर्गियाँ = 800.00
|
बी. कुल सकल आय
|
11470.00 | 4070.00 |
शुद्ध आय (बी–ए)
|
7722.50 | 1342.00 |