मादा पशु जनन हेतु पृथक्कृत वीर्य से कृत्रिम गर्भधारण करवाएं
लेखकः डॉ. पूजा तम्बोली1, डॉ. अमित चौरसिया2 और डॉ.पवन चौरसिया3
1वैज्ञानिक, भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झाँसी उत्तरप्रदेश 284003
2पी.एच.डी.स्कॉलरः नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्यप्रदेश 482001
3पशुचिकित्सा विशेष्ज्ञ, रीवा, मध्यप्रदेश 486001
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है यहां पर निवास करने वाली ज्यादातर आबादी कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है। इससे उनके जीवन निर्वाह के लिए भोजन तथा आमदनी प्राप्त होती है। पशुपालन से संबंधित ज्यादातर लोग दुग्ध उत्पादन से जुड़े हुए होते हैं और यही कारण है कि हमारा देश आज विश्व भर में दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। जैसा कि हम सब लोग जानते हैं कि दुग्ध उत्पादन मादा पशुओं द्वारा किया जाता है इसीलिए सभी पशुपालक केवल मादा पशुओं के जन्म की कामना करते हैं। नर पशुओं का उपयोग सामान्यता खेती या प्रजनन के काम में होता है परंतु विज्ञान के लगातार विस्तार के कारण पशुओं का खेती में उपयोग न्यूनतम रह गया है। जिसके कारण पशुपालक नर पशुओं को पालने में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं दिखाते हैं क्योंकि पशुपालकों को इन नर पशुओं से किसी भी प्रकार की आमदनी नहीं होती है। अतः नर पशुओं को या तो मार दिया जाता है या यूं ही छोड़ दिया जाता है जिसके कारण नर पशु आवारा घुमते है तथा फसलों या खेतों को नुकसान पहुंचते हैं और कई बार जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं के भी कारण बन जाते हैं।
जन्म के समय किसी भी पशु का नर या मादा होना प्रकृति पर निर्भर करता है जिसके कारण मादा पशुओं के साथ-साथ नर पशु भी जन्म ले लेते हैं परंतु उपयोगिता ना होने के कारण उपेक्षित जीवन व्यतीत करते हैं। वैज्ञानिकों के लगातार प्रयासों से आज यह संभव हो गया है कि हम आवश्यकतानुसार किसी निश्चित लिंग के पशु को पैदा करा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने केवल मादा पशुओं को जन्म देने की तकनीकी विकसित कर ली है। परंतु वर्तमान में पशुपालक इससे अनजान है। हम इस लेख में आप सभी पशुपालकों को इसकी विस्तृत जानकारी दे रहे हैं यह निश्चित ही आपके लिए अति महत्वपूर्ण होगी।
बैल के वीर्य में दो प्रकार के शुक्राणु होते हैं एक वाई गुणसूत्र धारक और दूसरे एक्स गुणसूत्र धारक शुक्राणु जबकि मादा के अंडाणु सदैव एक्स गुणसूत्र धारक होते है। जब नर का एक्स गुणसूत्र धारक शुक्राणु, मादा के अंडाणु से निशेचित होता है तो मादा पशु का जन्म होता है। इसके विपरीत जब नर का वाई गुणसूत्र धारक शुक्राणु मादा के अंडाणु से निशेचित होता है तो नर पशु का जन्म होता है।
वैज्ञानिकों ने कठिन परिश्रम करके एक्स गुणसूत्र धारक शुक्राणु एवं वाई गुणसूत्र धारक शुक्राणु को अलग-अलग करने में सफलता प्राप्त कर ली है और एक्स गुणसूत्र शुक्राणु वाला वीर्य तैयार कर लिया है। जिसे पृथक्कृत वीर्य कहते हैं ऐसी स्थिति में पृथक्कृत वीर्य के प्रयोग से पशुपालक मादा पशुओं (गायों) का उत्पादन कर सकते है। पृथक्कृत वीर्य अब व्यापक रूप से हमारे देश में उपलब्ध है और इसका प्रयोग बेहतर बछिया प्राप्त करने के लिए किया जा रहा हैं। इसके प्रयोग से केवल बछियों का जन्म होता है अतः दूध के उत्पादन में वृद्धी होती है और पशुपालकों को नर बछ्डों को पालने में अनावश्यक खर्च भी नहीं करना पड़ता।
100ः सफल गर्भाधान के उपाय
सफल गर्भाधान हेतु पृथक्कृत वीर्य के साथ-साथ मादा पशु का स्वास्थ, उच्च गुणवत्ता का वीर्य तथा कृत्रिम गर्भाधारण का सही समय अति महत्वपूर्ण होते हैं कृत्रिम गर्भधारण हेतु निम्न बिंदुओं का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिएः
ऽ सफल गर्भाधान के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि मादा पशु स्वस्थ्य होनी चाहिए जिसके लिए उसे पर्याप्त भोजन के साथ साथ आवश्यक खनिज और विटामिन मिलना आवश्यक होता है आवश्यक पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, बी, ई, डी एवं खनिज जैसे आयरन, कॉपर, जिंक, कैल्सियम इत्यादि गर्भाधान के लिए अति महत्वपूर्ण होते हैं इनका भोजन में संपूरक के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए या इसके लिए पशुपालक, क्षेत्र विशेष खनिज मिश्रण का उपयोग कर सकते हैं।
ऽ पशुओं को जन्म से ही सही पोषण प्रदान करें। पर्याप्त मात्रा में खनिज मिश्रण प्रदान करें। हर समय स्वच्छ पेयजल और पर्याप्त छाया या शीतलन प्रणाली प्रदान करके पशु पर गर्मी के तनाव को कम करें। इससे पशुओं की प्रजनन क्षमता में वृद्धि होती है।
ऽ एक स्वस्थ संकरित बछिया को 18 महीने या उससे पहले गर्मी में आना चाहिए। जबकि भैंस और स्थानीय नस्लों को परिपक्व होने में लगभग 24 से 30 महीने का समय लग सकता है।
ऽ यह पता लगाएं कि क्या कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रदान करने वाले कार्मिक पर्याप्त रूप से योग्य हैं या नहीं। सामान्य वीर्य की तुलना में पृथक्कृत वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम होने के कारण गर्भाधारण की सम्भावना कुछ कम हो सकती है। अतः कुशल एंव अनुभवी व्यक्ति से ही कृत्रिम गर्भाधान करवायें।
ऽ वीर्य का उचित संचालन (ठंडक), गर्भाधान का उचित समय, उचित कृत्रिम गर्भाधान तकनीक और वीर्य के जमाव का स्थान इत्यादि, सफल गर्भाधान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
ऽ गर्मी में आने के सही समय का पता लगाना पशुपालकों के हाथ में होता है। इसलिए अवश्यक है की पशुपालकों को गर्मी में आने के लक्षणों का सही ज्ञान होना चाहिए। गर्मी के उचित समय पर ही पृथक्कृत वीर्य से कृतिम गर्भाधान करें। गर्भाधान का सबसे उचित समय गर्मी में आने के लक्षणों के दिखने के १२ घंटे बाद का होता है। एक उत्तम विधि अनुसार यदि गर्मी के लक्षण सुबह दिखे तो शाम को कृतिम गर्भाधान कराये और जब गर्मी के लक्षण शाम को दिखे तो अगले दिन सुबह कृतिम गर्भाधान कराने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते है।
ऽ भैंस में अस्पष्ट गर्मी का पता लगाने के लिए सूक्ष्म अवलोकन की आवश्यकता होती है।
ऽ जिन पशुओं में गर्मी का समय अधिक हो उनमें दो बार कृतिम गर्भाधान, गर्भधारण की सफलता को बढ़ाता है।
ऽ यदि नियमित रूप से गर्मी में आने वाले पशु ने 3 गर्भाधान के बाद भी गर्भधारण नहीं किया है तो समस्या को पहचानने के लिए पशु चिकित्सक से परामर्श लें। क्योंकि बार-बार गर्भाधान से प्रजनन अंगों को नुकसान हो सकता है।
ऽ प्रजनन पथ के संक्रमण या बीमारियों से भी बांझपन हो सकता है। उचित सलाह और उपचार के लिए पशु चिकित्सक से परामर्श ले।
ऽ शारीरिक विकृति वाले पशु गर्भधारण नहीं कर सकते हैं। इसलिए उन्हें गर्भाधान नहीं कराना चाहिए।
ऽ कृत्रिम गर्भाधान कराने से पहले पृथक्कृत वीर्य के बारे में आवश्यक जानकारी जैसे किस ब्रीड का है, कब बना है और द्रवित नाइट्रोजन में संधारण की स्थिति जरूर जाँच लें।
मादा पशु जनन हेतु पृथक्कृत वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराने के लिए अपने निकटतम पशुपालन विभाग कार्यालय, पशु चिकित्सक या कृतिम गर्भाधान करने वाली संस्थाएं जैसे BAIF से संपर्क करें और अपना डेयरी व्यवसाय बढ़ाकर कर लाभ कमाएं।