पशुओं में चर्म रोग (डर्मेटाइटिस) के कारण , लक्षण, उपचार एवं बचाव

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पशुओं में चर्म रोग (डर्मेटाइटिस) के कारण , लक्षण, उपचार एवं बचाव

डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा

डर्मेटाइटिस अर्थात त्वचा की ऊपरी डरमिस, व एपिडर्मिस की परतों में सूजन का आ जाना। यह किसी संक्रमण के कारण भी हो सकता है और उसके बिना भी हो सकता है।
कारण:
१. जीवाणु जनित डर्मेटाइटिस : स्टेटफाइलों कोकस एवं स्ट्रैप्टॉकोक्कस जीवाणु की विभिन्न प्रजातियां।
२. विषाणु जनित
डर्मेटाइटिस:ब्लू टंग, गाय की चेचक और अन्य।
३. फंगल / कवक जनित डर्मेटाइटिस: रिंगवर्म
४. पैरासिटिक डर्मेटाइटिस: मेंज, क्यूटेनियस फ़ाइलेरियोसिस
५. भौतिक कारण: धूप द्वारा जलने से, ज्यादा ठंडा और गर्म घाव।
६. रासायनिक कारण: इरिटेंट केमिकलस।
७. एलर्जीक डर्मेटाइटिस: पित्ती उछलना, मुख्यता घोड़ों में।
लक्षण:
रोग के कारणों के आधार पर लक्षण भी अलग-अलग तरह के होते हैं। चमड़ी पर जगह-जगह लाल चकत्ते, खुजली, दर्द व सूजन। जगह-जगह छोटे-छोटे फफोले, जिनमें से पानी निकलना।
निदान या पहचान:
पशुओं को दिए जाने वाले आहार के बारे में व वातावरण के आधार पर।
त्वचा की स्क्रेपिंग अथवा स्वाब की जांच परजीवी जीवाणु कवक आदि के लिए।
रक्त परीक्षण – डीएलसी, टीएलसी, विषाणु , जीवाणु या कवक जनित संक्रमण।
उपचार:
डर्मेटाइटिस का संपूर्ण इलाज करना एक मुश्किल काम होता है इसके लिए सही निदान किया जाना बहुत आवश्यक है। इसके लिए स्किन स्क्रेपिंग, स्वाब, व रक्त की जांच बहुत आवश्यक है।
जीवाणु, विषाणु या कवक जनित डर्मेटाइटिस के लक्षण काफी मिलते जुलते होते हैं। इसलिए बिना जांच किए लंबे समय तक भी उपचार करने से विशेष फायदा नहीं होता है।
रोग के कारणों को चमड़ी के आस पास से समाप्त करना बहुत आवश्यक है।
जीवाणु जनित डर्मेटाइटिस:
इसमें त्वचा पर प्रतिजैविक घोल या प्रतिजैविक मलहम लगाएं। पोवीडीन घोल भी उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही नस में या मांस में आईवी या आई एम विधि से प्रतिजैविक औषधि लगाएं।
कवक जनित डर्मेटाइटिस:
इसमें कवक/ दाद रोधी मल्हम त्वचा पर लगाएं ।
कवक जनित संक्रमण के उपचार के लिए कम से कम एक माह तक नियमित उपचार करें अन्यथा लक्षण थोड़े दिनों के पश्चात फिर से प्रकट हो सकते हैं।
अकोता/ अपरस:
पशु के शरीर के अंदर तथा बाहर वातावरण में ऐसे कई पदार्थ होते हैं जिसके संपर्क में आने से त्वचा में रिएक्शन होते हैं जिसे एक्जिमा/ एलर्जी कहते हैं । एलर्जी के कारण सूजन होती है। इसके अलावा त्वचा में पाए जाने वाले कई प्रकार के, बाहरी परजीविओं के कारण भी एक्जिमा होता है।
लक्षण:
जिस तरह एक्जिमा मनुष्य में पाया जाता है वैसा वास्तविक एक्जिमा पशुओं में नहीं मिलता है। पशुओं में हल्के लक्षण प्रकट होते हैं ।
खुजली, बाल झड़ना, त्वचा की ऊपरी परत का उतरना। सूजन के कारण त्वचा का मोटा हो जाना। लक्षण त्वचा पर या कुछ जगह या फिर सभी जगह पर पाए जा सकते हैं। अधिक समय हो जाने पर त्वचा सूज कर मोटी एवं सख्त हो जाती है।
उपचार:
एलर्जी के कारणों को दूर करें।
पशुओं को जहां बांधा जाता है वहां की मिट्टी व बिछावन को बदल दें।
पशु के पेट के अंदर व बाहरी परजीवीयों को समाप्त करने के लिए उपयुक्त औषधि का प्रयोग करें।
एस्ट्रिजेंट मल्हम, जब त्वचा सूखी हुई सी हो तो यह मल्हम अधिक लाभकारी होते हैं।
सैलिसिलिक एसिड एवं टैनिक एसिड को बराबर मात्रा में 600 मिलीलीटर अल्कोहल में मिलाएं तथा यह लोशन त्वचा पर लगाएं।

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आईवरमेकटिन 100 से 150 मिलीग्राम की टेबलेट खिलाएं अथवा आईवरमेकटिन इंजेक्शन 1 मिलीलीटर प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार के अनुसार खाल के नीचे लगाएं एवं १० दिनों के अंतराल पर कम से कम 2 बार पुनः लगाएं। इससे आशातीत लाभ प्राप्त होगा।
द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए यदि आवश्यक हो तो प्रतिजैविक औषधि का इंजेक्शन भी लगाएं।
बचाव:
पशुओं के आवास गृह को साफ सुथरा रखें एवं साथ ही साथ पशुओं को भी स्वच्छ रखें।
रोग से प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखें ताकि अन्य स्वस्थ पशुओं में होने वाले संक्रमण को रोका जा सके।

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