सांपों का पालन तथा एंटीवेनम का निर्माण : एक व्यवसायिक पहलू

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सांपों का पालन तथा एंटीवेनम का निर्माण : एक व्यवसायिक पहलू

यह अपने आप में ही एक हैरान कर देने वाली बात है कि जो सांप का ज़हर इंसान की जान लेता है उसी से ही सांप के काटे की दवा बनाई जाती है. वैसे बता दें कि सभी सांप ज़हरीले नहीं होते हैं. जानकारी के अनुसार सांप की लगभग साढ़े तीन हज़ार प्रजातियां हैं, जिनमें से लगभग 600 प्रजातियां ही ज़हरीली होती हैं.

वहीं, सांप के काटे का इलाज करने के लिए सांप के ज़हर से ही दवा का निर्माण किया जाता है. यह दवा कैसे बनती है और इसकी क्या प्रक्रिया होती है, इसकी जानकारी हम आपको इस लेख के ज़रिए देंगे. पूरी जानकारी के लिए लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ें.

प्रतिवर्ष सांप के ज़हर से मरने वालों की संख्या  

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व भर में प्रतिवर्ष 81 हज़ार से लेकर 1 लाख 38 हज़ार लोग सांप के काटने से मरते हैं. सबसे ज़्यादा जोखिम में खेतों में काम करने वाले लोग और बच्चे होते हैं. वहीं, सांप के काटे का प्रभाव बड़ों से ज़्यादा छोटे बच्चों को प्रभावित करता है, क्योंकि उनका शरीर बड़ों की तुलना में उतना विकसित नहीं हुआ होता है.

सांप के काटे का प्रभाव

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अगर कोई जह़रीला सांप किसी व्यक्ति को काटता है, तो उसे लकवा मार सकता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ़ हो सकती है. वहीं, ज़हर रक्त विकार का कारण बन सकता है, जिससे भारी ब्लीडिंग हो सकती है, टिशू डैमेज हो सकता है और साथ ही किडनी फ़ेलियर का जोखिम बढ़ सकता है. ये सभी चीज़ें त्वरित इलाज़ के अभाव में व्यक्ति को मौत में मुंह में ढकेल सकती हैं.

सांपों का पालन  

जैसा कि हमने बताया कि सांप के ज़हर से ही सांप के काटे की दवा बनाई जाती है, जिसे एंटी वेनम कहा जाता है. इस काम के लिए देशों में बड़े स्तर पर सांपों का पालन किया जाता है. सांपों को सही ख़ुराक जैसे उनके पसंदीदा चूहे खिलाए जाते हैं. फिर बीच-बीच में सांपों का ज़हर निकाल कर स्टोर किया जाता है और दवा बनाने के लिए आगे भेजा जाता है.

 

ज़हर निकालने की प्रक्रिया   

एंटीवेनम का निर्माण कैसे किया जाता है

 

पहले यह जानना उचित होगा कि सांपों के ज़हर को निकालने की विधि क्या है : प्रयोगशालाओं में अनगिनत प्रयोग करने पर यह पाया गया है कि यदि किसी जानवर के खून में थोड़ा थोड़ा करके सांप का ज़हर सुई देकर प्रविष्ठ कराया जाए और रोज इस विष की मात्रा क्रमश: बढ़ाई जाए, तो कुछ ही दिनों में उस जानवर के खून में यह गुण आ जाएगा कि यदि उसे सचमुच कोई सांप काट ले, तब भी उसे कुछ न हो। ऐसी दशा में पहुंचे जानवर के खून से ही सांप का जहर मारने वाला ‘सीरम’ (Snake Antivenom) तैयार किया जाता है।

इस सीरम को तैयार करने के लिए वास्तव में सैंकड़ों स्वस्थ सांपों की जरूरत होती है। इन सांपों को शीशे के हवादार बक्सो में पाला जाता है और समय—समय पर उनका जहर निकाल कर आगे की प्रक्रिया सम्पन्न करने के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है।

भारत में इस प्रकार की एकमात्र प्रयोगशाला मुम्बई में है, जिसे ‘हाफकिन इंस्टीट्यूट’ (Haffkine Institute, Mumbai) के नाम से जाना जाता है। यहां पर लगभग 200 प्रकार के सांपों को पाला जाता है और सावधानीपूर्वक उनका जहर निकाला जाता है। इस इंस्टीट्यूट में यूं तो भारत में पाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के जहरीले सांप पाले जाते हैं, किन्तु ‘करैत’ सांप (Krait Snake) नहीं मिलता है। क्योंकि करैत सांप की प्रकृति इस तरह की होती है कि यदि उसे कैद करके पिंजड़े में रखा जाए, तो वह कुछ ही दिनों में मर जाता है।

सांप का जहर निकालने के लिए उसे एक छड़ी की मदद से बाहर निकाला जाता है और फिर उसे सावधानी से मुंह के पास पकड़कर एक बारीक झिल्‍ली चढ़े शीशे के प्‍याले के पास लाया जाता है। सांप गुस्‍सते में जोरों से प्‍याले में अपने दांत गड़ाने की कोशिश करता है, जिससे उसका जहर प्‍याले में इकट्ठा हो जाता है। इस प्रक्रिया से जहर निकालने पर प्‍याले में सांप के मुंह का फेन भी इकट्ठा हो जाता है, जिसे बाद में अलग कर दिया जाता है।

अमेरिका में वैज्ञानिकों ने विद्युत धारा के द्वारा सांप का जहर निकालने की विधि ईजाद की है। इस विधि में सांप के सिर पर 10 वोल्‍ट की शॉक दिया जाता है, जिससे उसके विष ग्रन्थि सम्‍बंधी स्‍नायु प्रभावित होते हैं और उनमें संकुचन होने के कारण जहर अपने आप सांप के मुंह से बाहर आ जाता है। इस विधि का आविष्‍कार करने वाले डॉक्‍टर जान्‍सन का मानना है कि इससे सांपों को कोई तकलीफ नहीं होती, जबकि शीशे के प्‍याले में जहर निकालने की परम्‍परागत विधि में उन्‍हें बेहद तकलीफ सहनी पड़ती है।

प्रयोगशाला में सांप के विष को दुहने के बाद उसे कसौली, हिमांचल प्रदेश स्थित गवर्नमेन्‍ट प्रयोगशाला ‘सेन्‍ट्रल रिसर्च इंस्‍टीट्यूट’ (Central Research Institute, Kasauli) भेज दिया जाता है, जहां पर उसे शोधित करके एंटीवेनम का निर्माण किया जाता है।

अब समझते है कि सांप के जहर से एंटीवेनम का निर्माण किस प्रकार किया जाता है : ज़हर को निकालने के बाद उसे मानइस 20 डिग्री सेल्सियस पर जमा दिया जाता है। उसके बाद वेनम से पानी को निकाल कर अलग कर दिया जाता है। इससे सांप का वेनम सूख कर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है और उसे स्‍टोर करने और आवश्‍यकतानुसार इधर से उधर ले जाने में सुविधा होती है।

एंटीवेनम के निर्माण के लिए इसके बाद इम्‍यूनाइजेशन की प्रक्रिया प्रारम्‍भ होती है, जिसमें उचित जानवर का चुनाव करके उसके शरीर में सूक्ष्‍म मात्रा में ज़हर का प्रवेश कराया जाता है। इस क्रिया के लिए घोड़े को सबसे उचित माना गया है। हालांकि कभी-कभी बकरी और भेड़ भी इस कार्य के लिए उसयोग में लाई जाती हैं, लेकिन सर्वाधिक उपयोग घोडों का ही किया जाता है।

इम्‍यूनाइजेशन क्रिया को प्रारम्‍भ करने के पहले वेनम में डिस्टिल्‍ड वाटर और कुछ अडजुवन्‍ट केमिकल को मिला दिया जाता है। इससे उस जानवर का इम्‍यून सिस्‍टम बेहद सक्रिय हो जाता है और तेजी से एंटीबॉडीस का निर्माण करने लगता है।

तैयार वेनम के घोल की बेहद सूक्ष्‍म मात्रा (एक या दो मिलीलीटर) को घोडे के रम्‍प (rump) अथवा गर्दन के पिछले हस्‍से पर इंजेक्‍शन के जरिए उसकी त्‍वचा में प्रवेश करा दिया जाता है और उसे सघन चिकित्‍सीय परीक्षण में रखा जाता है।

लगभग 8 से 10 सप्‍ताह में घोड़े रक्‍त में भरपूर मात्रा में एंटीबॉडीस का निर्माण हो जाता है। ऐसी अवस्‍था में घोड़े का रक्‍त निकाल कर उसे प्रयोगशाला में संवर्धित करके उसमें से एंटीबॉडीड को पृथक कर लिया जाता है और उससे एंटीवेनम इंजेक्‍शन का निर्माण किया जाता है। यह इंजेक्‍शन शुष्‍क रूप में होते हैं, जिन्हें फ्रिज में बेहद निम्‍न तापमान पर रखा जाता है और आवश्‍यकता पडने पर saline solution मिलाकर उपयोग में लाया जाता है।

प्रचलित मान्यता के विपरीत साँपों के कान नहीं होते। वो अपनी सामने हिलती बीन को शत्रु समझ उसके मूवमेंट के हिसाब से खुद को ऐडजस्ट करते रहते हैं, जो दर्शकों को उनके नृत्य सी अनुभूति देता है। अल्पायु में पकड़े गए साँप प्रशिक्षण के क्रम में बीन पर वार भी कर देते हैं, मगर इस क्रम में उन्हे लगातार लगती चोट उन्हे अपनी इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखने पर भी विवश कर देती है।

 सांप का ज़हर आम इंसान नहीं निकाल सकता है. इसके लिए प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है. सांपों का एक्सपर्ट ख़ास छड़ी का इस्तेमाल कर सांप को उनकी जगह से निकालता है और फिर उसके मुंह को पकड़कर ख़ास बनाए गए पात्र (जिसके ऊपर पन्नी लगी रहती है) के ऊपरी भाग को कटवाता है. इसी बीच सांप ज़हर छोड़ता है और ज़हर पात्र में जमा हो जाता है.

ज़हर निकालने का अन्य तरीक़ा  

ज़्यादा सावधानी के लिए सांप को कार्बन डाइऑक्साइड से भरे ड्रम में डाल दिया जाता है. सांप कुछ ही देर में सो जाता है. फिर सांप को स्टेनलेस स्टील की बेंच पर लिटा दिया जाता है. वहां का तापमान लगभग 27 डिग्री सेल्सियस होता है. फिर सांप का ज़हर निकाला जाता है. इसे कम दर्दनाक ज़हर निकालने का तरीक़ा माना जाता है.

ऐसे बनाया जाता है Antivenom   

जानकर हैरानी होगी की सांप की काटे की दवा एंटी वेनम बनाने के लिए सांप के ज़हर की थोड़ी मात्रा घोड़े के शरीर में डाली जाती है. ये ख़ास घोड़े होते हैं. जानकारी के अनुसार, घोड़े के शरीर में ज़हर जाते ही इम्यून सिस्टम एंटी बॉडी बनाने लगता है और ज़हर ख़त्म हो जाता है. इसके बाद घोड़े के शरीर से ख़ून निकाला जाता है, फिर उस ख़ून से ही ‘सीरम’ तैयार किया जाता है. बता दें कि घोड़ों के अलावा, अन्य पालतू जानवरों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें ऊंट, गधे, बकरी व भेड़ आदि शामिल हैं.

एंटीवेनम निर्माण प्रक्रिया

स्‍नेक एंटीवेनम के उत्‍पादन के लिए सर्वप्रथम सांपों के ज़हर को निकाला जाता है।

ज़हर को निकालने के बाद उसे मानइस 20 डिग्री सेल्सियस पर जमा दिया जाता है। उसके बाद वेनम से पानी को निकाल कर अलग कर दिया जाता है। इससे सांप का वेनम सूख कर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है और उसे स्‍टोर करने और आवश्‍यकतानुसार इधर से उधर ले जाने में सुविधा होती है।

एंटीवेनम के निर्माण के लिए इसके बाद इम्‍यूनाइजेशन की प्रक्रिया प्रारम्‍भ होती है, जिसमें उचित जानवर का चुनाव करके उसके शरीर में सूक्ष्‍म मात्रा में ज़हर का प्रवेश कराया जाता है। इस क्रिया के लिए घोड़े को सबसे उचित माना गया है। हालांकि कभी-कभी बकरी और भेड़ भी इस कार्य के लिए उसयोग में लाई जाती हैं, लेकिन सर्वाधिक उपयोग घोडों का ही किया जाता है।

इम्‍यूनाइजेशन क्रिया को प्रारम्‍भ करने के पहले वेनम में डिस्टिल्‍ड वाटर और कुछ अडजुवन्‍ट केमिकल को मिला दिया जाता है। इससे उस जानवर का इम्‍यून सिस्‍टम बेहद सक्रिय हो जाता है और तेजी से एंटीबॉडीस का निर्माण करने लगता है।

तैयार वेनम के घोल की बेहद सूक्ष्‍म मात्रा (एक या दो मिलीलीटर) को घोडे के रम्‍प (rump) अथवा गर्दन के पिछले हस्‍से पर इंजेक्‍शन के जरिए उसकी त्‍वचा में प्रवेश करा दिया जाता है और उसे सघन चिकित्‍सीय परीक्षण में रखा जाता है।

लगभग 8 से 10 सप्‍ताह में घोड़े रक्‍त में भरपूर मात्रा में एंटीबॉडीस का निर्माण हो जाता है। ऐसी अवस्‍था में घोड़े का रक्‍त निकाल कर उसे प्रयोगशाला में संवर्धित करके उसमें से एंटीबॉडीड को पृथक कर लिया जाता है और उससे एंटीवेनम इंजेक्‍शन का निर्माण किया जाता है। यह इंजेक्‍शन शुष्‍क रूप में होते हैं, जिन्हें फ्रिज में बेहद निम्‍न तापमान पर रखा जाता है और आवश्‍यकता पडने पर saline solution मिलाकर उपयोग में लाया जाता है।

एंटीवेनम

साँपों के विष के ख़िलाफ़ पहली बार एंटीवेनम फ़्रांसीसी वैज्ञानिक एल्बर्ट कामेट ने दक्षिणी-पूर्वी एशिया में काम करते समय 1895 में बनाया था।

एंटीवेनम सर्प-विष के खिलाफ़ उसी तरह काम करता है जिस तरह से टीका काम करता है। लेकिन एक मौलिक अन्तर भी है , जिसे समझना ज़रूरी है। आम तौर पर जब डॉक्टर आपको किसी भी संक्रमण का टीका लगाते हैं , तो उसी के जीवाणु या विषाणु को किसी-न-किसी रूप में आपके शरीर में प्रविष्ट कराते हैं। कभी मरे हुए जीवाणु-विषाणु , कभी जीवित लेकिन तनिक बदले हुए जीवाणु-विषाणु , कभी जीवाणुओं-विषाणुओं के अंश तो कभी उनके कुछ रसायन। इसी तरह से लगभग हर टीका बनाया जाता है , जिसे वैक्सीन भी कहते हैं।

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लेकिन एंटीस्नेक वेनम में डॉक्टर आपको सीधे-सीधे साँप के ज़हर का इंजेक्शन नहीं देते और न दे सकते हैं। क्यों ? कभी सोचा आपने ?

आपको दिया गया बीसीजी का टीका या फिर पोलियो का टीका सक्रिय प्रतिरक्षण या ऐक्टिव इम्यूनाइज़ेशन है। जिसके ख़िलाफ़ इम्यूनिटी या प्रतिरक्षा चाहिए , उसे शरीर में दाख़िल करा दो। बाक़ी काम शरीर को खुद करना होगा। शरीर की कोशिकाएँ उससे परिचित होकर लड़ने के लिए तैयार हो जाएँ और फिर उसे या उससे मिलते-जुलते जीवाणुओं-विषाणुओं को भीतर पनपने न दें।

लेकिन साँप का ज़हर देकर सक्रिय प्रतिरक्षण पैदा करने में कई झंझट और तकलीफ़ें हैं। पहली यह कि जहाँ सुई लगेगी वहाँ असह्य और भयानक दर्द उठेगा। ऐसा टीका फिर भला कौन लगवाएगा ! दूसरी यह कि इस तरह से थोड़ा-थोड़ा विष व्यक्तियों में प्रविष्ट कराने में भी ख़तरा है : कहीं उसका असर अधिक हो गया , तो लेने-के-देने पड़ सकते हैं। तीसरा यह कि जब साँप किसी इंसान को काटता है , जो जितना ज़हर उसके शरीर में दाखिल होता है , उसके लिए अच्छी-ख़ासी प्रतिरक्षक क्षमता की ज़रूरत तुरन्त पड़ती है , जो बहुधा इस तरह बार-बार के ज़हरीले इंजेक्शनों से हर बार मिल नहीं पाती। इम्यूनिटी ही है : बनी कभी तो कभी नहीं बनी। और अगर नहीं बनी , तो आदमी तो गया ! ख़त्म !

कोबरा का विष चूँकि तन्त्रिकाओं पर प्रभाव डालता है और वाइपर का रक्तस्राव कराता है , इसलिए यह सीधे मनुष्य को बार-बार विष का टीका देना कोबरा में इस्तेमाल कभी-कभी किया जाता है। वाइपर का ज़हर ख़ून के रास्ते तेज़ी से फैलेगा और उसमें ख़तरा अधिक है , जबकि कोबरा का लसीका-तन्त्र से थोड़ा धीमे फैलता है। इस पद्धति को चिकित्सा-विज्ञान की भाषा में पॉण्टस के प्राचीन राजा मिथ्रीडैटीज़ के नाम पर मिथ्रीडैटाइज़ेशन नाम दिया गया है। तमाम राजाओं के आपको ऐसे क़िस्से सुनने को मिल जाएँगे जो थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष खाते या उसके टीके लगवाते थे , ताकि एकदम से बड़ी मात्रा शरीर में अगर कभी प्रवेश कर जाए तो वे मरें नहीं।

लेकिन जनसामान्य के लिए ये पद्धति नहीं इस्तेमाल होती। उनके लिए किसी जानवर जैसे घोड़े-इत्यादि में पहले बार-बार सर्पविष देकर प्रतिरक्षा देने वाले तत्त्व विकसित किये जाते हैं और फिर उन्हें शोधित करके मनुष्य को साँप के काटने के बाद चढ़ा दिया जाता है। इस तरह से सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को ख़ूब सारी मात्रा में वे रक्षक तत्त्व प्राप्त हो जाते हैं और उसकी जान बच जाती है।

एंटीस्नेक-वेनम को अमूमन कोबरा-वाइपर-करैत-इत्यादि कई साँपों के विषों के ख़िलाफ़ एक साथ तैयार किया जाता है , ताकि किसी भी स्थिति में उसका इस्तेमाल किया जा सके। बहुधा यह पता ही नहीं होता मनुष्य को कि उसे किस प्रजाति के सर्प ने काटा है , तब कैसे तय हो ! इसलिए एंटीस्नेक-वेनम में सभी सामान्य सर्पों के खिलाफ़ रक्षण हो , तभी भलाई है। इस तरह मनुष्य के शरीर में घोड़ों में बने तत्त्वों को प्रविष्ट करा कर सर्पदंश से जान बचाना पैसिव इम्यूनाइज़ेशन कहलाता है , जिसमें रेडीमेड तत्त्व सीधे दाखिल करा दिये जाते हैं। (न कि सीधे-सीधे सर्प-विष !)

अन्त में एक बार सर्पविष और प्रतिविष का सार फिर से। तमाम क़िस्म के विषैले साँपों को पकड़ना और उनका विष एकत्र करना। घोड़ों अथवा भेड़ों में उस विष को थोड़ी मात्रा में नियमित इंजेक्शन के रूप में दे-देकर इन जानवरों में विष के खिलाफ़ प्रतिविष ( अर्थात् प्रतिरक्षक तन्त्र के रक्षक तत्त्वों ) का निर्माण किया जाना। यही तत्त्व एंटीवेनम हैं। फिर किसी ज़हरीले साँप द्वारा काटे जाने पर इन तत्त्वों का व्यक्ति को दिया जाना।

आपको हुए सर्प-दंश से बचाने के लिए घोड़े या भेड़ें न जाने कितने सुई में भरे कोबरा-वाइपर-करैत के ज़हर के डंक रोज़ झेलते हैं।

व्यावसायिक तौर पर लाभप्रद और जीवनदायक साबित होता है सांपों का जहर

हम सभी के मन में साँपों के प्रति इतना अधिक डर बैठ गया है, अथवा बैठा दिया गया की भले ही वह जहरीले हो अथवा न हो, लेकिन यदि कहीं पर दिख जाए तो एक पल के लिए मृत्यु साक्षात समीप नज़र आती है। कई लोग तो यह स्वीकार ही नहीं कर पाते की, कुछ सांप जहरीले भी नहीं होते। हालांकि कई मायनों में यह डर बिल्कुल जायज़ है, लेकिन क्या इस डर के अँधेरे में हम सापों की उपयोगिता को भी नहीं देख पा रहे हैं?
सांप हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण जीव हैं, हालांकि कई सांप जहरीले भी होते हैं, लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में ये जीवनदायक साबित हो सकते हैं, जहां इनका योगदान अतुलनीय है। दुनियांभर में मुख्यरूप से साँपों के विष का प्रयोग कई घातक बिमारियों के इलाज तथा एंटीवेनम (Anti-venom) के निर्माण के लिए किया जाता है। इसके अलावा विश्व की अनेक संस्कृतियों में यह कई मायनों में बेहद जरूरी जीव माना जाता है। इनके बहुपयोगी होने के कारण ही विभिन्न देशों में सांपों की खेती करना एक आम अवधारणा है।
दरअसल स्नेक फ़ार्म (snake farm) एक ऐसी जगह है, जो कई प्रजातियों के साँपों का घर होती है, और जहां इनका प्रजनन भी किया जाता है। अक्सर अनुसंधान के उद्देश्य और एंटीवेनम के निर्माण के लिए इनके विष का संग्रह किया जाता है। कई स्नेक फार्म मुख्य रूप से पर्यटक की दृष्टि से भी प्रमुख आकर्षण होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), थाईलैंड (Thailand), चीन(China), ब्राजील(Brazil), फ्रांस(France), जर्मनी(Germany), कोस्टारिका (Costa Rica) और रूस (Russia) में उल्लेखनीय सांप फार्म मौजूद हैं।
चीन में महंगे रेस्तरां में जीवित सांपों की भी आपूर्ति की जाती है। चीन के ज़िसीकियाओ ( zisiqiao) गाँव, को साँपों के गांव “स्नेक विलेज (Snake Village)”के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ के स्थानीय लोग 1980 के दशक से सांपों को पाल रहे हैं। आज यहां के लगभग 800 लोग सांप की खेती के व्यवसाय में संलिप्त हैं, जहां प्रीतिवर्ष लगभग 3 मिलियन सांपों का उद्पादन किया जाता है, जिस कारण यह क्षेत्र चीन के प्रमुख सांप पालन केंद्र के तौर पर प्रसिद्द है। दवा निर्माण क्षेत्र के अलावा यहां से देशभर के विभिन्न होटलों और रेस्तरां (Restaurants) में भी जीवित साँपों को बेचा जाता है, जहां सांपों को मुख्य भोजन के रूप में खाया जाता है अथवा इनसे शराब का भी निर्माण किया जाता है।
साथ ही चीन का डेकिंग स्नेक कल्चर (Decking Snake Culture) संग्रहालय को स्थानीय पर्यटक आकर्षण के रूप में विकसित किया गया है। यहां के कुछ किसान सांप के कारोबार से लगभग $12 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष भी अर्जित करते हैं।अंतर्राष्टीय स्तर पर जापान , दक्षिण कोरिया, अमेरिका और यूरोप जैसे देश इनके प्रमुख ग्राहकों में से एक हैं।
चीन में हजारों सालों से सांपों को औषधीय माना जाता रहा है, चीन सहित दुनियाभर के लोग सांप से निर्मित दवाइयों और शराब का सेवन करते हैं, क्यों की ऐसा माना जाता है की , यह दवाईयां रीढ़ की हड्डी की बीमारी को ठीक करने में मदद करती है, साथ ही सांप से निर्मित शराब पीने से ह्रदय रोग नहीं होते। व्यावसायिक स्तर पर सांप के जहर का एक ग्राम 3,000-5,000 युआन (लगभग $450- $750 अमेरिकी डॉलर) तक बिक सकता है। सांपों के स्वरोजगारी लाभ ने लोगों में इनके प्रति डर और घृणा की भवना को शून्य कर दिया है। इस ज़िसीकियाओ इलाके के 170 परिवारों में से नब्बे प्रतिशत आय के लिए सांप के व्यवसाय पर निर्भरहैं।

अन्य देशों की भांति ही हमारे देश में भी सापों की खेती का व्यवसाय अपनी जड़ें जमाने लगा है। उदाहरण के लिए झारखण्ड के रायकेला खरसावां जिले के कुचाई क्षेत्र में अट्ठाईस वर्षीय एन.के. सिंह द्वारा एक सांप फार्म संचालित किया जाता है। हालांकि यह बेहद बड़े क्षेत्र में नहीं फैला है, किंतु इसमें विभिन्न प्रकार के जहरीले कोबरा रहते हैं। इस फार्म के संचालक मानते हैं की, उन्हें इस काम को करने में सांपों से किसी भी प्रकार का भय नहीं हैं। वे इन सांपों के भोजन हेतु हर महीने 2.5 लाख रुपये खर्च करते हैं। इस फार्म में सिंगापुर, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के गोल्डन कोबरा भी हैं। हालांकि भारत में भोजन अथवा मदिरा के लिए साँपों के इस्तेमाल का प्रचलन इतना अधिक नहीं है, किंतु चिकित्सा के क्षेत्र में यह व्यवसाय लाभप्रद होने के साथ-साथ कई लोगों की जान भी बचा सकता है, क्यों की इनका जहर कई असाध्य रोगों की दवाओं के निर्माण में प्रयुक्त किया जा सकता है। भारत में यदि कोई व्यक्ति निर्भयता से सांपों के व्यवसाय रूचि रखता है, अथवा स्नेक फार्म खोलना चाहता है तो, वह सांपों का व्यवसायिक लाइसेंस (commercial license) प्राप्त करने के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधिकारियों से संपर्क कर सकता है। साथ ही इस व्यवसाय के संदर्भ में भारत सरकार द्वारा अलग नियम और कानून भी सूचीबद्ध किए गए हैं।

सांप पालन या सांप की खेती

खेती-किसानी को ग्रामीण अर्थव्यावस्था (Rural Economy) का अटूट अंग कहते हैं. इसी के जरिये दुनियाभर में खाद्य आपूर्ति (Food Supply) सुनिश्चित होती है और गांव के लोग अपना जीवनयापन करते हैं. वैसे तो पुराने समय से ही खेती में विविधता को बढ़ावा दिया जा रहा है. किसान जहां-तहां फल, फूल, सब्जी, अनाज और औषधीय पौधों की खेती के साथ-साथ पशुपालन (Animal Husbandry)  करते हैं, लेकिन आधुनिक समय में दुनिया की डिमांड को पूरा करने के लिये अजीबोंगरीब खेती-किसानी करने का चलन बढ़ते लगा है. इसी में शामिल है सांप पालन या सांप की खेती (Snake Farming). जानकारी के लिये बता दें कि चीन के झेजियांग प्रांत के जिसिकियाओ गांव (Snake Farming in Zisiqiao Village of Zhejiang Province, China) में लोग सांप पालकर अपना जीवनयापन कर रहे हैं. यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस गांव (Snake Village of China) के सांपों की अमेरिका,  रूस, दक्षिण कोरिया, जर्मनी जैसे देशों में काफी डिमांड रहती है.

सांप पालन या सांप की खेती
भारत में सांप का जैव विविधता के साथ-साथ और धार्मिंक महत्व भी है, लेकिन दुनिया के सबसे खतरनाक और जानलेवा जानवरों में सबसे पहले सांपों की ही गिनती होती है. सांपों का सिर्फ एक ही डंक इंसानों को हमेशा के लिये सुला सकता है, लेकिन चीन के झेजियांग प्रांत में स्थित जिसिकियाओ गांव के लगभग 30 लाख से ज्यादा सांपों का पालन या सांप की खेती की जा रही है, जिससे कुछ पैसा कमाकर इस गांव के लोग अपना भरण-पोषण करते हैं. बता दें कि चीन में सांपों को पालने की काफी पुरानी पंरपरा है. खासकर जिसिकियाओ गांव में 1980 से ही खेती की जगह सांप पालन व्यवसाय किया जा रहा है.

100 से भी ज्यादा स्नेक फार्म

रिपोर्ट्स की मानें तो जिसिकियाओ गांव में करीब 100 से भी ज्यादा स्नेक फार्म मौजूद है, जहां कोबरा, अजगर, वायपर, रैटल जैसे जहरीले और बिना जहर वाले 30 लाख सांपों की खेती की जा रही है. इस गांव के करीब 1000 से ज्यादा लोग अब सांप की खेती से अपनी आजीविका कमाते हैं. सबसे खास बता यह है कि ये लोग सिर्फ सांप पालन ही नहीं करते, बल्कि सापों की ब्रीडिंग भी करवाते हैं.
सांप की खेती के लिये सांप के बच्चों को शीशे या लकड़ी के छोटे-छोटे बक्सों में पाला जाता है. सर्दियों तक सांप के अंडों से सपोले निकल आते हैं और कुछ समय बाद वयस्क हो जाते हैं, जिसके बाद प्लास्टिक के थैलों में इनकी पैकेजिंग करके अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, जर्मनी जैसे देशों को बेच दिया जाता है.

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किस काम आता है सांप

आश्चर्य की बात है कि जहां सांप को देखकर लोग थर-थर कांपने लगते हैं, उसी सांप को पालकर चीन को लोग अच्छा पैसा कमा रहे हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो चीन के झेजियांग प्रांत के जिसिकियाओ गांव में सांप के विभिन्न अंगों को बाजार में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है, जिससे चीनी लोग को मोटा पैसा मिलता है. इस गांव में सांप का बूचड़खाना भी मौजूद है. यहां सांप पालन का व्यवसाय इस कदर तरक्की कर रहा है कि लोगों ने खेती-किसानी छोड़कर इसी काम में निवेश करना शुरू कर दिया है. बता दें कि सांप के जहर से ही कैंसर की दवाई या कीमो बनाई जाती है, जिससे कैंसर का जहर तक पिघल जाता है. इसके अलावा कई त्वचा संबंधी समस्या और चीन में बीमारियों का उपचार करने के लिये भी सांप के जहर का इस्तेमाल किया जाता है.

इस सांप से चीनियों को खतरा

वैसे तो चीन में सांप को पालने (Snake Farming) की खास परंपरा रही है, लेकिन इस काम में काफी सावधानियां बरतने की जरूरत होती है, क्योंकि सांप के डसते ही इंसान मौत के घाट उतर जाता है. ऐसा ही एक जहरीला और खतरनाक सांप है फाइव स्टेप, जिससे आज भी जिसिकियाओ गांव(Zisiqiao Village of Zhejiang Province, China), चीन और दुनिया के सभी देश काफी डरते हैं. दरअसल इस सांप के बारे में कई मान्यतायें है कि फाइव स्टेप सांप (Five Step Snake) के डंसने के बाद पांच कदम चलते ही आदमी मौत की नींद सो जाता है. ऐसे खतरों के बीज चीन के झेजियांग प्रांत के जिसिकियाओ गांव (Snake farming China)  में सांप पालन का काम खरतनाक और अद्भुत है.

सांप का काटना

भारत में हर साल करीब २.५ लाख सांप के काटने की घटनाएं होती हैं। इनमें से करीब ४६ हज़ार में मौत हो जाती है। इसके अलावा बहुत से मामलों की रिपोर्ट ही नहीं की जाती। बहुत से लोग गॉंव में ही सांप के काटने का इलाज करते हैं क्योंकि इलाज की सही सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं। सांप के काटने की घटनाएं गॉंवों में ज्यादा होती हैं। महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के साथ सांप काटने की घटनाएं ज़्यादा होती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पुरुष बाहर ज़्यादा काम करते हैं।

गर्मियों और बारिश के दौरान ये घटनाएं ज़्यादा होती हैं क्योंकि इस मौसम में सांप गर्मी या बारिश के कारण अपने बिलों में से बाहर निकल जाते हैं। असमतापी के होने के कारण सांप सर्दियॉं सहन नहीं कर पाते और अपने बिलों में रहना ही पसंद करते हैं।

सांप के काटने के बारे में कुछ तथ्य

सांप ज़्यादातर पैरों और बाहों पर ही काटते हैं। करीब ७० प्रतिशत बार पैर के निचले भाग में सांप काटता है क्योंकि सांप के लिए इस भाग तक पहुँचना आसान होता है। इसलिए सही जूतों (लंबे वाले जूतों) से कई जानें बचाई जा सकती हैं। सांप आमतौर पर सुबह या अंधेरे में काटते हैं यानी कि उस समय जब वो अपना भोजन खोजने बाहर निकलते हैं। इसलिए इस समय में ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत होती है। एक टॉर्च या रोशनी के लिए किसी और तरीके का इस्तेमाल करें। सांप के काटने में से केवल २० प्रतिशत घटनायें जहरीले सांपों के काटने का होता है। अगर ज़हरीले सांप के काटने के तुरंत बाद ही सही उपचार उपलब्ध हो तो ज़्यादातर जाने को बचाई जा सकती हैं।

ज़हरीले और बिना ज़हर वाले सांप

जहरीला सांप कांटने पर दॉंतों के दो निशान होते है, ज्यादा निशान हो तो समझे की सांप जहरीला नहीं। सांप की बहुत सारी जातियॉं होती हैं। भारत में मिलने वाली सांप की ३०० जातियों में से ५० जहरीली होती हैं। इनमें से भी केवल ४ आम तरह के और सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। जहरीले सांपों में से नाग और करैत एक तरह के सांप हैं और वायपर एक अन्य तरह के। कई एक समुद्री सांप भी ज़हरीले होते हैं।

ज़हरीले सांपों की चौकड़ी

ज़हरीले सांपों द्वारा काटे जाने की घटनाओं में से आधी से ज़्यादा नाग और करैत के काटने की होती हैं। इसके बाद हराफिसी का नम्बर आता है और उसके बाद रसलस वाइपर का। कोबरा और करैत के ज़हर से खासकर दिमाग पर असर होता है। जबकी वाइपर से खून में ज़हर फैलता है।

ज़हरीले सांपों में से मण्यार सबसे ज़्यादा गुसैल सांप होता है। वाइपर उतना गुसैल नहीं होता। हांलाकि ज़्यादातर सांप तभी काटते हैं जब उन्हें छेड़ा जाता है पर यह हमेशा ही सच नहीं होता। सांप किसी भी चीज़ को ठीक से देख नहीं पाते इसलिए कोई भी हिलती डुलती चीज़ उनका ध्यान खींच लेती है। अगर कोई भी पैर सांप का रास्ता काटे तो सांप उस पर हमला करनेकी संभावना होती है। इसी तरह से घास आदि काटने के समय हाथों पर सांप काट लेते हैं। सांप के काटने से बचाव के लिए हाथों और पैरों को ठीक से सुरक्षित रखना बेहद ज़रूरी है।

आहत व्यक्ति के द्वारा दिए गए विवरण के आधार पर किसी सांप (कोबरा के अलावा) को पहचानना काफी मुश्किल होता है। क्योंकि जिस समय सांप काटता है तब अक्सर कम रोशनी होती है। इसके अलावा सांप बहुत तेज़ी से दौड़ते हैं। उन्हें ठीक से देख पाना संभव हो पाए इससे पहले ही वो भाग जाते हैं। डर और आघात सॉंप पहचानने में और भी मुश्किल पैदा कर देते हैं। इसलिए अगर व्यक्ति को सांपों के बारे में जानकारी न हो तो उसके द्वारा दिए गए विवरण के आधार पर सॉपका पता नहीं लगाया जा सकता। अगर सांप को मारकर लाया गया हो तो उसे पहचानना संभव होता है। सॉपका सिर पहचान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। ऊपरी जबड़े में ज़हर के दांत होना सांप के ज़हरीले होने की निशानी होती है। दांतों की जांच करने में सावधानी बरतें, उन्हें नंगे हाथों से छूने से बचें। सभी चार या पॉंच ज़हरीली तरह के सांप एक दूसरे से अलग तरह के होते हैं।

सांप का विष खून से कम लेकिन लसिका मार्ग से ज्यादा चढता है। सांप का ज़हर असल में प्रोटीन होता है। यह सांप के ऊपरी जबड़े में स्थित एक थैली में मौजूद रहता है। ऊपरी जबड़े के दोनों ओर स्थित एक एक थैली ज़हरीले दांतों की जड़ों में खुलती है। वाइपर के ज़हरीले दांत अंदर से नलीनुमा होते हैं (इन्जैक्शन की सूई की तरह) इसलिए ज़हर ठीक शरीर के अंदर चला जाता है। कोबरा और मण्यार के दांतों में एक खाली नली होती है जिससे होकर ज़हर काटे जाने वाली जगह में चला जाता है। सांप अपने दुश्मन को मारने के लिए ज़हर का इस्तेमाल करते हैं। मेढक या चूहे को मारने के लिए यह ज़हर काफी ज़्यादा होता है। परन्तु दूसरी ओर इंसानों या मवेशियों को मारने के लिए एक डंख के ज़हर की मात्रा लगभग पर्याप्त होती है। करैत का ज़हर किसी भी और सांप के ज़हर से ज़्यादा खतरनाक और विषैला होता है। छोटा वायपर के एक बार काटने से औसतन जितना ज़हर निकलता है उसकी मात्रा किसी मनुष्य को मारने के लिए जितना ज़हर चाहिए होता है उससे आधी होती है। सांप के निचले भाग की खाल से भी सांप को पहचानने में मदद मिलती है। ज़हरीले सांपों में शल्क एक तरफ से दूसरी तरफ बिना टूटे हुए फैले होते हैं। बिना ज़हर वाले सांपों में ये शल्क बीचमें विभाजित होते हैं।

सांप के ज़हर का असर

सांप के ज़हर में चार तरह के विषैले पदार्थ होते हैं –

  • तंत्रिका-विष मस्तिष्क पर असर करते हैं।
  • खून के जमने पर असर करते हैं।
  • हृदय पर असर करते हैं।
  • आस पास के ऊतकों को खतम कर देते हैं। मस्तिष्क विषों से दिल और श्वसन तंत्र के दिमागी केन्द्रों पर असर करते है। इससे जल्दही मृत्यु हो जाती है। इसी तरह से हृदय के रुक जाने से तुरंत मृत्यु हो जाती है। सांप के काटने से अचानक होने वाली मौतें दिल के जीवविषों के कारण होती हैं। परन्तु कुछ मौतें हद से ज़्यादा डर जाने के कारण होती हैं।

मस्तिष्क विष

करैत का जहर तंत्रिका तंत्र को बाधा करता है। डोमी या कोबरा का जहर तंत्रिका तंत्र को बाधा करता है। करैत और कोबरा में मस्तिष्क विष होते हैं। सांप के काटने पर ये ज़हर लसिका और खून में पहुँच जाते हैं। इनके द्वारा ये मस्तिष्क के केन्द्रों तक पहुँच जाते हैं। जीवन को सम्भालने वाले हृदय और श्वसन तंत्र काम करना बंद कर देते हैं। सौभाग्य से निओस्टिगमाइन नाम की दवा मस्तिष्क के लकवा करने के असर से बचाव कर देती है। इसका इंजेक्शन होता है।

खून के जीवविष

वाइपर वाला विष चंद मिनटो में खून के जमने की प्रक्रिया प्रभावित करता है। इससे मसूड़ों, गुर्दों, नाम, फेफड़ों, पेट, मस्तिष्क, दिल आदि में से खून निकलने लगता है। एक बार शुरु होने के बाद यह रक्त स्त्राव एक दो घंटों में जानलेवा हो सकता है।

सांप के काटने के लक्षण

ज़हरीले सांपों के काटने पर दांतों के दो निशान अलग ही दिखाई देते हैं। गैर विषैले सॉंप के काटने पर दो से ज्यादा निशान होते है। मगर यह निशान न दिखने से सॉंप नहीं काटा है, ऐसा सोचना गलत है। सॉंप विषके अन्य असर ज़हर के प्रकार और सांप के काटने के बाद बीते समय पर निर्भर करते हैं।

तंत्रिका तंत्र के असर

न्यूरो जीवविष से पलकें भारी होने लगती हैं – करीब ९५ प्रतिशत मामलों में यह सांप के काटने का पहला लक्षण होता है। इस लिए नींद आना सबसे पहला लक्षण होता है। इसके बाद निगलने और सांस लेने में मुश्किल होनी शुरु हो जाती है। सांस की दर नापने का तरीका एक उपयोगी तरीका है। (आहत व्यक्ति से कहना कि वो एक बार के सांस लेकर उंगलियों पर गिने) अगर हर अगली सांस के साथ गिनती कम और कम होती जाए तो इसका अर्थ है कि सांस लेने की क्षमता पर असर हो रहा है। अगर डंक जहरीला हो तब असर ज़्यादा से ज़्यादा १५ घंटों में दिखने लगता है। लेकिन सबसे पहले असर कुछ मिनटों में दिखाई देना शुरु हो सकता है। पर आमतौर पर यह असर आधे घंटे के बाद ही दिखना शुरु होता है।

खून के जीवविष के लक्षण

जहरीला सांप कांटने पर दॉंतों के दो निशान होते है, ज्यादा निशान हो तो समझे की सांप जहरीला नहीं। जहरीले सांप के डंक से या तो पलके झपकने लगती है, या मसुडों से खून रिसने लगता है।

रक्त के कारण डंकसे और मसूड़ों और फिर अन्य जगहों से खून बहना शुरु हो जाता है। मसूड़ों से खून आना सबसे आम लक्षण है जो कि करीब ९५ प्रतिशत मामलों में दिखाई देता है। आमतौरपर लक्षण एक घंटे के अंदर अंदर दिखाई देने लगते हैं। ज़्यादातर असर २४ घंटों में दिखने लगते हैं। मैंने एक अपवाद भी देखा है जिसमें काटने के करीब तीन दिन बाद पेशाब में खून आना शुरु हुआ। शायद ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि डंकमें ज़हर की मात्रा कम गई थी। दोनों तरह के ज़हरीले सांप द्वारा काटने पर काटे जाने वाली जगह के ऊतकों में ऊतकक्षय होने और फिर उससे होने वाले ज़ख्मों का सड़ने लगना आम है। पर ऐसा वाइपर के काटने पर ज़्यादा होता है।

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हृदयविष के लक्षण

हृदयविष से तुरंत दिल पर असर होता है। इससे हार्ट फेल होकर कुछ ही मिनटों में मृत्यु हो जाती है।

सांप के काटने पर इलाज के प्रचलित लोकपरंपरागत तरीके

  • सांप के काटने के इलाज के लिए कई सारे स्थानीय परंपरागत उपाय किये जाते हैं। सभी जहरीले सॉंप के विष के प्रति विफल है, मगर मरीज को थोडी तसन्नी देते है। इनपर समय व्यर्थ जाया न करे।
  • कुछ लोग एक खास तरह के पत्थर का इस्तेमाल करते हैं जिसे सांप पत्थर कहा जाता है। इससे कोई फायदा नहीं होता।
  • सबसे आमतौर पर लोग आहत व्यक्ति को कुछ घंटों के लिए मंदिर में रखते हैं। ८० प्रतिशत से ज़्यादा बार जो सांप का काटना ज़हरीला नहीं होता, इसलिए ज़्यादातर लोगों तो वैसे भी ठीक हो ही जाते हैं। लेकिन यह तरीका गलत है। मंदिर ले जाना इतनाही उपयोगी है क्योंकि इससे आहत व्यक्ति को थोड़ा सा दिलासा मिल जाता है। क्योंकि ज़्यादातर मामलों में आहत व्यक्ति की मौत तो डर के ही कारण होती है।
  • सांप डसने के ऐसे उपचार के तरीकों की कड़ी जांच करने की ज़रूरत है। क्योंकि सांप के काटने पर खतरा बहुत ही ज़्यादा होता है। सांप के काटने पर किसी भी तरह का जादुई इलाज भरोसेमंद नहीं होता है। सांप पालने वाले लोगों की भी सांप के काटने से मौत होने की बहत सी रिपोर्ट मौजूद हैं।
  • एक परंपरागत तरीका सांप के काटे वाली जगह पर चूज़ा लगाने का भी है। चूज़े की गुदा काटे वाली जगह पर लगाया जाता है। इसके लिए पहले काटे वाली जगह और चूज़े की गुदा दोनों पर कट लगाया जाता है। शायद चूज़े की गुदा आहत व्यक्ति के शरीर में से ज़हर खींच लेती है। ज़हर चूसने के बाद चूज़ा मर जाता है। इसके बाद दूसरे चूज़े का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यह तरीका अब त्यागना चाहिये। न उससे जान बचेगी ना चूजे! वैसे पट्टियों का इस्तेमाल करके पैर को बांध देना मानक प्राथमिक उपचार है।

सांप के डंक के लिये प्राथमिक उपचार

  • हमें उपलब्ध सुविधाओं, आहत व्यक्ति की हालत और परिस्थिति से निपटने की अपनी तैयारी के अनुसार ही प्राथमिक उपचार के तरीके ढूंढने होते हैं। कुछ बुनियादी उपाय यह हैं –
  • कुछ लोग एक खास तरह के पत्थर का इस्तेमाल करते हैं जिसे सांप पत्थर कहा जाता है। इससे कोई फायदा नहीं होता।
  • आहत व्यक्ति को दिलासा दिलाएं और घटना के तथ्य पता करें।
  • गीले कपडे से डंक की जगहकी चमडी पोछ ले, लेकिन दवाऍ नही। पोछनेसे सांप का वहॉं पडा विष निकाला जाएगा।
  • घायल को करवटपर सुलाएँ, जिससे उलटी हो तब भी श्वसन-तंत्र में न चली जाएँ।
  • पैर या हाथपर जहॉं डंक हो एक खपच्ची बांध दें ताकि उसका हिलना डुलना बंद हो जाए। इससे उस भाग में संचरण कमद हो जाता है।
  • शरीर का उंचवाला अंग हृदयकी अपेक्षा नीचे के स्तर पर रखे इससे विष संचरणमें आनेसे बचाव होगा।
  • अगर काटने में ज़हर हो तो उसके लक्षणों की भी जॉंच करें। अक्सर जिस सांप ने काटा है वो नुकसान रहित होता है।
  • टूर्निके का इस्तेमाल नहीं करें। इससे पैर में से काटे हुए स्थान से खून निकल सकता है और इससे पैर काला भी पड़ सकता है (कोथ)। काटी हुई जगह पर कट न लगाएं। दबा कर ज़हर निकालने के लिए पहले ऐसा किया जाता था। यह तरीका काम तो करता नहीं है पर इससे काटे हुए स्थान पर संक्रमण होने की संभावना ज़रूर बढ़ जाती है।
  • जिस व्यक्ति को सांप ने काटा है उसे तुरंत अस्पताल पहुँचाएं।
  • रस्सी बांधना या ब्लेड से काटना असल में हानीकारक है  रस्सी बांधना या ब्लेड से काटना असल में हानीकारक है

ये न करे

  • डंक की जगह काटना, चूसना, दबाना बिल्कुल न करे।
  • डोरी कसकर बांधना बिल्कुल न करे। ईससे ज्यादा खून बहकर खतरा संभव है।
  • प्रेशर पट्टी बांधना जरुरी या उपयोगी नही।

प्राथमिक उपचार में दवाएँ

अक्सर काफी कुछ इस पर निर्भर करता है कि आसपास कोई अच्छा इलाज का केन्द्र है या नहीं। अगर मस्तिष्क के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो निओस्टिगमाइन और एट्रोपिन के इन्जैक्शन देने शुरु कर दें। इससे आप उस व्यक्ति को खतरे से बचा सकेंगे और आपको एक घंटा और का समय मिल जाएगा। एक घंटे के बाद आप ये इन्जैक्शन फिर से दे सकते हैं। प्राथमिक उपचार के रूप में ए.एस.वी. की उपयोगिता के बारे में थोड़े से सवाल हैं क्योंकि इससे घातक एनाफाईलैक्टिक क्रिया होने का खतरा होता है। इससे मौत भी हो सकती है। इसलिए इसे प्राथमिक उपचार के रूप में न प्रयोग करे।

अस्पताल में उपचार

अगर ज़हर के लक्षण हों, तो प्रति सांप ज़हर और अन्य प्रतिकारक दिए जाते हैं। अगर सांस लेने में मुश्किल होने लगी है तो जीवन बचाने वाले तरीकों की ज़रूरत पड़ेगी।

सांप ज़हर प्रतिरोधी दवा (ए.एस.वी)

ए.एस.वी. में भारत में पाए जाने वाले सभी ज़हरीले सांपों के ज़हर के विरुद्ध सीरम होता है। सांप के ज़हर को इन्जैक्शन को देकर और उनके खून में से प्रोटीन निकाल कर इसे बनाया जाता है। ए.एस.वी. एक सफेद रंग के चूर्ण के रूप में छोटी सी शीशी में मिलता है। इस्तेमाल करने से पहले इसे जीवाणु रहित किए हुए पानी में मिला लिया जाता है। इसकी तीन या उससे ज़्यादा खुराक चाहिए होती हैं। ए.एस.वी. अंत:शिरा या अंत:पेशीय ढंग से दिया जाता है। ए.एस.वी. से सांप का ज़हर कट जाता है। परन्तु अगर मस्तिष्क के केन्द्रों तक कोई ज़हर पहुँच जाए तो वो इससे नहीं कट पाता है। इसलिए ए.एस.वी. जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी देना चाहिए।

ए.एस.वी. से घातक प्रतिक्रिया भी हो सकती है

ए.एस.वी. से मौत तक हो सकती है क्योंकि यह किसी और जानवर (घोड़े) से लिया हुआ प्रोटीन होता है। यह प्रतिक्रिया कुछ कुछ पैन्सेलीन से होने वाली प्रतिक्रिया जैसी होती है। इसलिए इसका इलाज भी कुछ कुछ वैसा ही होता है। इसी प्रतिक्रिया के कारण से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए इसे देना थोड़ा खतरे वाला होता है। पर अगर ज़हरीले सांप ने ही काटा हो और कहीं से भी कोई भी मदद नहीं मिल रही हो तो ए.एस.वी. देने का खतरा उठाना ही पड़ता है। देरी होने पर मौत होने की तुलना में प्रतिक्रिया होने की संभावना कम होती है। ऐसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता को ज़रूर पता होना चाहिए कि ऐनाफिलेक्टिक प्रतिक्रिया का इलाज कैसे काना होता है।

सांप के काटने पर काटी हुई जगह पर होने वाला नुकसान

कभी कभी सांप काटने की जगह में लंबे अर्से तक घॉंव बन जाते है। सभी तरह के सांप के काटने में गंभीर ऊतक क्षति (ऊतकों की मौत) होने की संभावना होती है। यह विष कोशिकाओं को बडा नुकसान पहुँचा देते हैं। एक या दो दिनों में गंभीर सूजन, दर्द, खून बहने, संयोजक ऊतिशोथ और त्वचा के काला पड़ना आदि प्रभाव दिख सकते हैं। ऐसे घाव में अल्सर भी हो जाता है और इसके ठीक होने में कई हफ्ते लग सकते हैं। नियमित रूप से घाव की देखभाल करने और प्रतिजीवाणु दवाएँ देने से फायदा होता है। करैत के काटने से ऐसे स्थानीय प्रभाव बहुत कम होते है। गॉंवों में सांप का काटना एक गंभीर दुर्घटना होती है। परन्तु गॉंव में इलाज की सुविधा नहीं के बराबर होती है। अच्छी प्राथमिक चिकित्सा अगर सही समय पर मिल जाए तो ६० से ७० प्रतिशत लोगों की जान बच सकती है।

सर्पदंश

सॉंप डसने का डर हर किसी को होता है। सर्पदंश घातक है या विषहीन यह पहेचानने के लिये कुछ जानकारी जरुरी है। हमारे देश में सिर्फ ४ या ५ सांप विषैले है। इनको हम देखकर आसानी से पहचान सकते है। विषैले सापों के दो लंबे उपरी दांत विषेले होते है। शरीर में यह विष धमनियों से नही तो लसि का संस्थानसे फैलता है। इसिलिये सौम्य दबाव से भी हम उसको रोक सकते है। प्राथमिक इलाज देकर हम बाधित व्यक्ति को अक्सर बचा सकते है। इसके लिये आगे चलकर कुछ विवरण दिया है।

वैज्ञानिक प्राथमिक इलाज

पीडीत व्यक्तिको लेटे रहने को कहिये। काटी हुएँ अंग को गीले कपडे से हल्के से साफ किजिये। पीडीत व्यक्ति को धीरज के साथ लेटे रहने से कहिये। इससे विष कम फैलता है। अब ४-६ इंच चौडी इलॅस्टिक क्रेप बँडेज लिजिये। यह बँडेज नही है तो ओढनी या साडी या धोती आदि की पट्टी इस्तेमाल कर सकते है। कांटे हुए हाथ या पैर को निचे से उपर तक यह पट्टी हलके दबाव के साथ बांधिये। हल्के दाब का निशान ये है की उसमें हम उंगली प्रविष्ट कर सकते है। अब २-३ फीट लंबी एक लाठी या प्लॅस्टिक पाईप लेकर इस अंग को बांध दे। इससे उस अंग की हलचल कम होगी। अब पीडित व्यक्तिको बांबू और चद्दर के स्ट्रेचर पर लेकर अँब्युलन्समें रखे। डॉक्टरोंको फोन पर पूर्वसूचना देनी चाहिये।

घबराहट हानीकारक होती है। इससे शरीरमें विष जल्दी फैलता है। दंश की जगह जख्म ना करे। इससे संक्रमण की आशंका बढती है। अपने मुँहसे विष चूसनेका प्रयास मत किजीये। पिडीत अंगपर रस्सी न कसे। यह बहुत नुकसानदेह होता है। मंदिर या झांड फूंकमें व्यर्थ समय नही गवॉंना चाहिये। अस्पताल पहुँचनेके पहले पट्टी नही छोडना चाहिये। यह भूल जानलेवा हो सकती है। अस्पतालमें इंजेक्शन देनेके बाद डॉक्टर पट्टी छोडेंगे।

अन्य जानकारी

हमारे देश में चार प्रमुख जाती के साथ विषेले होते है। उसमे नाग, क्रेट याने बंगारस, दुबोइया और फुरसा ये जातीयॉं है। अगर सॉंप मारा है तो अस्पताल ले चलीये।

कुछ व्यक्ति केवल डरसे ही बेहोश होते है। सर्पविष के लक्षण देखने के लिये कम से कम आधा घंटा अवधी लग सकता है।

ध्यान में रखे

कुछ लक्षण घातक है जैसे की पीड़ित व्यक्ति को सुस्ती या निद्रा आना, बोलने में लडखडना या भारीपन, श्वसन के समय तकलीफ, मसुडोंसे खून चलना या कही भी रक्तस्त्राव।

सही प्राथमिक इलाज से हम रोगी को बचा सकते है। सही प्राथमिक इलाज से डॉक्टरी इलाज भी ज्यादा आसान होते है।

ज्यादा कुशल आरोग्यकर्मीयों के लिये जानकारी

नाग या क्रेट सॉंप कॉंटनेपर मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव होता है। इस दुष्प्रभाव को रोकने के लिये निओस्टिगमिन और ऍट्रॉपिन इंजेक्शन की जरुरी है। ये इंजेक्शन हर आधे घंटे को देना चाहिये। सॉंप के विष पर सिरम का इंजेक्शन सिर्फ अस्पताल में ही देना चाहिये। इस इंजेक्शनको भी ऍलर्जी का खतरा संभव है।

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. www.pashudhanpraharee.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

 

IMAGE -CREDIT GOOGLE

PROF.DR SK SIKARI, CG

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