महिला सशक्तिकरण के लिए सामाजिक सहभागिता जरूरी

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महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण के लिए सामाजिक सहभागिता जरूरी

डॉ रेखा शर्मा, प्रधानाचार्य,
महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज सौंख मथुरा

समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार होती है। देश के सशक्तिकरण व उन्नति के लिए गांव, समाज एवं प्रदेश का विकास आवश्यक है। गांव के विकास के लिए समुदाय व समाज व परिवार का संतुलित विकास आवश्यक है। अतः देश का पूर्ण विकास परिवार के विकास पर निर्भर है। महिलाएं विशेषकर ग्रहणियां, परिवार के विकास की मुख्य धुरी हैं। यदि परिवार की महिलाएं शिक्षित, जानकार व समझदार होती हैं तो परिवार स्वत: ही चमक जाता है एवं उन्नति करता है। अत: उस केंद्र बिंदु परिवार की महिला, बिना परिवार, समाज एवं गांव के सहयोग से उन्नति नहीं कर सकती। महिला सशक्तिकरण हेतु परिवार के पुरुष सदस्यों का विशेष योगदान आवश्यक है। अधिकांश महिलाएं पुरुषों से अनुमति मिलने के बाद ही अपने विकास के कार्यक्रमों में भाग लेकर लाभान्वित हो पाती है। जन सहभागिता से परियोजनाओं के नियोजन, क्रियान्वयन में सहायता मिलती है। समाज के सहयोग से ही महिलाओं का सशक्तिकरण पूर्णरूपेण संभव है। विकास कार्यक्रमों का लाभ महिलाओं तक जन सहयोग या सामाजिक सहभागिता के बिना नहीं पहुंच सकता है क्योंकि परिवार की महिलाओं व बेटियों से संपर्क करने हेतु परिवार, समाज के पुरुषों की अनुमति आवश्यक है। अतः महिला सशक्तिकरण का पहला द्वार वहां के पुरुषों की अनुमति का ही होता है।

समाज की सहभागिता एवं महिला सशक्तिकरण:

घर, समाज, गांव और देश के विकास में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। हमारे देश की महिलाओं की कुल संख्या का अधिकांश भाग गांव में ही निवास करता है। महिलाओं द्वारा ही अधिकतर घर के आवश्यक कार्य बच्चों का लालन पालन, पोषण खाना बनाना, गृह सज्जा एवं व्यवस्था, वस्त्रों की धुलाई एवं सिलाई, रखरखाव व अनाज भंडारण, खाद्य संरक्षण पशुपालन, खेती से संबंधित कार्य किए जाते हैं। जैसा कि हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने भी कहा था ” देश को जगाने के लिए महिलाओं को जगाओ जब महिला जग कर खड़ी हो जाएगी तो घर जगेगा गांव जगेगा और पूरा देश जाग जाएगा”।
यहां पर जगाने का तात्पर्य महिलाओं के संपूर्ण विकास व सशक्तिकरण से है। आज के ग्रामीण व शहरी दोनों समाजों में महिला अभी वास्तविक रूप में पुरुषों की तुलना में कम सशक्त है। इसीलिए महिलाओं के पूर्ण विकास हेतु उनके सशक्तिकरण की महती आवश्यकता है। अनेक अध्ययनों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि बच्चों के सर्वांगीण विकास में परिवार व समाज की महिलाओं का विशेष योगदान होता है। जो एक सशक्त महिला होगी वह अपनी बात, अपनी सोच बिना किसी शर्म या झिझक के लोगों से बोल पाएगी। वह अपनी क्षमता और अक्षमता को समझ सके और उसे दूर कर सकें। अपनी इच्छा सपनों को पूरा करने का प्रयास कर सके। अपने उद्देश्य को पाने का दृढ़ निश्चय कर ले। 2019-20 में विभिन्न सर्वेक्षणों व अनुसंधानों से, यह स्पष्ट हो गया है कि कृषि क्षेत्र का भारत के सकल मूल्य संवर्धन (जी वी ए )में लगभग 16.5% का योगदान है उस में महिलाओं की भूमिका का बहुत महत्व है। डेयरी व्यवसाय एक ऐसा क्षेत्र है जिस में महिलाओं का योगदान सबसे अधिक है। हमारे देश में लगभग 7.50करोड़ महिलाएं डेयरी के कार्य से जुड़ी हैं जबकि केवल 1.50 करोड पुरुष डेरी संबंधी कार्य करते हैं। इसके बावजूद महिलाओं को उनके खेती, पशुपालन व उनसे संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने पर भी कुछ वर्षों पहले तक उचित महत्त्व नहीं दिया जाता था।
1970 के दशक से महिला किसानों के विकास के लिए पूरे विश्व में प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में इस प्रकार के प्रयास विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा किए जा रहे हैं। लेकिन इस विशाल देश में यह प्रयास अभी पर्याप्त नहीं है। इसलिए विभिन्न स्तरों पर चर्चा करके प्रशिक्षण द्वारा जनसाधारण में जागरूकता लाना आवश्यक है। सशक्तिकरण के कई तरीके होते हैं शिक्षा द्वारा सामाजिक सशक्तिकरण आर्थिक सशक्तिकरण तकनीकी सशक्तिकरण। इसके अतिरिक्त राजनीतिक, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक सशक्तिकरण भी आवश्यक है।
शिक्षा द्वारा सशक्तिकरण के लिए बालिकाओं को प्राथमिक स्तर से शिक्षा दिलाना आवश्यक है जिससे कि वह पूर्ण साक्षर व जानकार हो सके व विभिन्न स्तरों पर लिखित व मौखिक कार्यवाही कर सकें।
सामाजिक सशक्तिकरण के लिए घर व समाज की सोच का प्रगतिशील होना जरूरी है महिलाओं को आगे बढ़ाने में परिवार व गांव के पुरुष वर्गों को भी उन्हें पूर्ण सहयोग करना होगा। सामाजिक रुप से सशक्त होने के लिए महिलाओं को शारीरिक रूप से भी सशक्त होना आवश्यक है। इसके लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य व स्वच्छता का ध्यान रखने के साथ परिवार के सभी सदस्यों के साथ स्वयं भी पौष्टिक आहार लेना आवश्यक है।
आर्थिक सशक्तिकरण के लिए आवश्यक है कि ग्रामीण बहने अपने घर व अन्य कार्यों के साथ आय के लिए भी कुछ कार्य करें। परिवार की आर्थिक स्रोतों पर उनका नियंत्रण बढे़ व, जब उन्हें अपनी कृषि या डेरी के लिए धन की आवश्यकता हो तो यथासंभव उपलब्ध करवाया जाए। इसके लिए महिलाओं को कोऑपरेटिव व स्थानीय महिला स्वयं सहायता समूह मैं सक्रियता बढ़ाना लाभदायक होगा।
तकनीकी सशक्तिकरण के लिए पुरुषों के साथ महिलाओं को भी खेती व पशुपालन से संबंधित आधुनिक तकनीक से अवगत कराना आवश्यक है। तकनीकी महिलाओं को समय व सुविधा के अनुसार ही फसल से पहले प्रशिक्षण दिया जाए और बाद में भंडारण व रखरखाव के विषय में जानकारी दी जाए।

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महिलाओं के सशक्तिकरण में स्वयं का प्रयास:

महिलाएं खेती, ऋण, श्रम, बाजार की वृद्धि के क्षेत्र में जानकारी बढ़ाने का प्रयास करें। खेती की संपूर्ण उत्पादन प्रणाली की बाधाओं को प्रत्येक स्तर पर दूर करना सीखें।
महिला स्वयं सहायता समूह बनाएं। विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन मे योजना के प्रत्येक स्तर पर सक्रिय भाग ले।
शिक्षण व प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर अपनी जानकारी बढ़ाएं। खेती के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकी जानकारी प्राप्त करना जिससे उनका खेती में कार्य का बोझ कम हो तथा गृह कार्य में भी श्रम व समय की बचत के उपकरणों का उपयोग करें।
स्वरोजगार द्वारा आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाना।
खेती व घर के कामों की आधुनिक तकनीकी जानकारी के लिए उपलब्ध साहित्य का अध्ययन समाचारपत्र, पत्रिका, टीवी, आकाशवाणी और उपलब्ध स्रोतों से जानकारी लें व उपयोग करें।
खाली समय का उपयोग क्रियात्मक और कलात्मक कार्यों में करें जिससे खेती पशुपालन के साथ-साथ अन्य साधनों से धन कमा सकें।
महिला दल बनाकर स्वयं समय-समय पर विभिन्न योग्य व्यक्तियों को अपने दल में बुलाएं और रचनात्मक कार्य समूह में करें।
टीवी रेडियो आकाशवाणी के उपयोगी प्रोग्राम समूह में देखें व उन पर चर्चा कर लाभ उठाएं।
स्वास्थ, परिवार नियोजन आदि क्षेत्रों में सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों में भी भाग ले व उनसे लाभ उठाएं।
स्वयं जागृत हो व अपने आसपास की अनेक महिलाओं को जागृत करें।
स्थानीय स्तर पर कार्यरत संस्थाएं जो महिलाओं के विकास हेतु कार्य कर रही है उनसे संपर्क करके लाभ उठाएं।

महिला सशक्तिकरण में कृषि विज्ञान केंद्र का योगदान:

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कृषि विज्ञान केंद्र पर महिलाओं को केंद्र पर व केंद्र के बाहर लघु अवधि के व दीर्घ अवधि के प्रशिक्षण दिए जाते हैं और सर्वेक्षण द्वारा उनकी आवश्यकता जानी जाती है। इसके बाद उनकी रूचि समय सुविधा, शैक्षिक स्तर व अवधि को ध्यान में रखकर कृषि, पशुपालन बागवानी, गृह विज्ञान व इनसे संबंधित क्षेत्रों में व्यावहारिक प्रशिक्षण क्रियात्मक अनुभव के आधार पर दिया जाता है। प्रदर्शन, प्रदर्शनी, भ्रमण व महिला गोष्टी द्वारा भी विषय का सरलता से ज्ञान कराया जाता है। महिलाओं के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन, प्रकाशन व वितरण भी किया जाता है। महिलाओं द्वारा ही महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है।

महिला सशक्तिकरण के प्रयासों का प्रभाव:

यद्यपि लक्ष्य पूर्णरूपेण प्राप्त नहीं हुआ है लेकिन विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी व अन्य संगठनों द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों से महिलाओं के प्रारंभिक जीवन व कार्यशैली में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। शिक्षा, ग्रामीण विकास कार्यक्रम, यातायात सुविधाओं में वृद्धि के परिणाम स्वरूप महिलाओं, बालिकाओं में बदलाव आया है। इन प्रयासों में महिलाएं स्वयं जागृत हो व अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ाएं तो वह दिन दूर नहीं कि उनके हाथों में पूर्ण शक्ति क्षमता आ जाएगी किंतु इसके साथ-साथ सशक्तिकरण के लिए परिवार के पुरुष सदस्यों को भी महत्वपूर्ण योगदान देना पड़ेगा। जागरूकता, शिक्षा, सामाजिक बाधाओं को दूर करना विकास हेतु आगे आने की आवश्यकता है। मंजिल दूर सही लेकिन सभी मिलकर प्रयास करें तो उसको पाना असंभव नहीं है।

महिला सशक्तिकरण: पशुपालन के माध्यम से

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