वर्तमान तथा भविष्य को देखते हुये वेटनरी प्रैक्टिस रेगुलेशंस तथा भारतीय पशु चिकित्सा परिषद 1984 अधिनियम के प्रावधानों में सुधार हेतु सुझाव

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SUGGESTIONS FOR IMPROVEMENT OF VETERINARY PRACTIVE REGULATIONS & VCI REGULATIONS

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वर्तमान तथा भविष्य को देखते हुये वेटनरी प्रैक्टिस रेगुलेशंस तथा भारतीय पशु चिकित्सा परिषद 1984 अधिनियम के प्रावधानों में सुधार हेतु सुझाव

डा. दीप नारायण सिंह

पशुधन उत्पादन एवं प्रबन्धन विभाग,

दुवासू,मथुरा।

 

हमारे भारत वर्ष में पशुधन ही भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदंड है। पशुपालन एक आर्थिक उद्यम है और इसे भारत में लाखों लोगों के लिए “उत्तरजीविता उद्यम“ के रूप में जाना जाता है। पशुपालन भारतीय कृषि का सबसे महत्वपूर्ण घटक है जो हमारे देश के ग्रामीण, विशेष रूप से सीमांत, छोटे और भूमिहीन किसानों की दो तिहाई से अधिक की आजीविका एवं आय अर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में 85 प्रतिशत पशुधन रखने वाले छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। छोटे ग्रामीण परिवारों की आय में पशुधन का योगदान 16 प्रतिशत है, जबकि सभी ग्रामीण परिवारों का राष्ट्रीय औसत 14 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, पशुधन क्षेत्र देश की 8.8 प्रतिशत आबादी को रोजगार प्रदान करता है जिसमें बड़े पैमाने पर भूमिहीन और अनपढ़ आबादी शामिल है। पशुधन क्षेत्र ने सदैव देश एवं किसानों की उन्नति एवं समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

श्री नंदा कुमार, अध्यक्ष राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (राष्ट्रीय दूध विकास बोर्ड, आनन्द, गुजरात) के शब्दों से यह स्पष्ट है कि “2022 तक किसानों की आय दुग्ध उत्पादन, पशुपालन एवं कृषि के बिना असंभव है। जो यह परिलक्षित करता है कि हम अपने पशुधन की मद्द  से समृद्धि के मार्ग को प्रशस्त कर सकते हैं। किसी देश की विकास एवं उन्नति का सीधा संबंध ऊर्जा, नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों से है। पशु उपोत्पाद जैसे कि संशोधित पशु प्रोटीन, पशु वसा, दूध और अंडे के उत्पाद, और पूर्व खाद्य उत्पाद पशुधन को खिलाने एवं उनका मूल्य संवर्द्धन करने से भी पशुपालक बन्धु अत्यधिक आय का अर्जन कर स्वावलम्बी बन सकते हैं, साथ ही पशुधन से समृद्धि की तरफ अग्रसारित हो सकते हैं।

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वर्तमान परिदृश्य में हमारे भारत देश में किंचित ही छात्र/छात्रा पशुचिकित्सा प्रोफेसन को अपनाने के लिये प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करता है, और ना ही अपने देश में पशु चिकित्सा हेतु कोई कोचिंग संस्थान है। देश में मानव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के प्रति लोगों का झुकाव एवं समर्पण अत्याधिक है, जिसे हमें बदलने की आवश्यकता है। पशुचिकित्साविद् एवं पशुचिकित्सकों के प्रति आदर एवं श्रद्धा के भाव जागृत करने की आवश्यकता है।

वर्तमान तथा भविष्य को देखते हुये वेटनरी प्रैक्टिस रेगुलेशंस तथा भारतीय पशु चिकित्सा परिषद 1984 अधिनियम के प्रावधानों में सुधार हेतु आवश्यक संशोधनो की जरूरत है, जिससे इस प्रोफेसन एवं पशुचिकित्सा से जुड़ने वाले चिकित्सकों के प्रति आम जनमानस में एक श्रद्धा एवं आदर का भाव जागृत हो सके।

  1. वेटनरी प्रैक्टिस रेगुलेशंस में पाठ्यक्रम को सरल एवं ज्ञानोपरक बनाया जाये साथ ही व्यवहारिक ज्ञान पर अत्यधिक ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।
  2. वर्ष 2008 से पूर्व के पाठ्यक्रम को अपनाना उचित होगा।
  3. समेस्टर प्रणाली के अनुसार पाठ्यक्रम पढ़ाया जाय तथा समेस्टर के अंत में परीक्षा सम्पादित कराया जाय। दो समेस्टर के आंतरिक मूल्यांकन के बाद एक वाह्य परीक्षा कराई जाये तथा प्रयोगात्मक परीक्षा एवं थ्यौरी उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन वाह्य परीक्षक के द्वारा कराया जाये।
  4. निरन्तर पाठ्यक्रम में हो रहे बदलावों पर अंकुश लगाया जाये।
  5. उद्यमशीलता अर्थात एक अच्छा ईंटरप्रेन्योर बनाने के प्रति अधिक अभिरूचि हो।
  6. प्रयोगात्मक जानकारी एवं पशु कल्याण हेतु मृत पशुओं एवं जीवित पशुओं में अनुसंधान की पूर्ण छूट देनर चाहिये।
  7. कुक्कुट पालन विज्ञान विभाग, पशु महामारी विज्ञान विभाग एवं पशु जैव रासायन विभाग को पुनः एक अलग विभाग माना जाये।
  8. पशुचिकित्साविद् एवं पशुचिकित्सकों को ज्ञान का प्रसार करने हेतु विभिन्न प्रसार माध्यमों का प्रयोग करने की पूर्ण आजादी मिले।
  9. पशुचिकित्सा पाठ्यक्रम को उद्योग से जोड़ा जाये जिससे कि पशुचिकित्सा के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढे़गें।
  10. रोजगारन्वोषी पाठ्यक्रम के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना होगा।
  11. पशुचिकित्साविद्एवं पशुचिकित्सकों की योग्यताधारिता को तकनीकीयुक्त अर्थात टेक्नीकल करने हेतु आवश्यक सुधार करना होगा, जिससे हमारे पशुचिकित्साविद् एवं पशुचिकित्सकों को मानव चिकित्सक के समान वेतनमान एवं नान प्रैक्टिस एलाउंस प्राप्त हो सके।
  12. डिग्रीधारक पशुचिकित्सकों को ही पशु चिकित्सा हेतु अनुमन्य किया जाये, डिप्लोमा धारक अथवा झोलाछाप व्यक्तियों को पशु चिकित्साके लिये पूर्णतया प्रतिबन्धित करने के लिये कड़ा कानून बनाना उचित होगा।
  13. पशुचिकित्सा के क्षेत्र में आवश्यकतानुसार पशु उत्पादों का मूल्य संवर्द्धन, विपणन एवं भंडारण के प्रति आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है।
  14. गुणवत्तायुक्त पशु उत्पादों के विपणन हेतु एक नियामक एजेन्सी गठित हो।
  15. नर बछडा़ के सम्यक निष्पादन हेतु आवश्यक योजना लागू करने की आवश्यकता है।
  16. फसल अवशेषों का समुचित उपयोग, पूरे वर्ष रसीले हरे चरागाहों या हरे चारे की उपलब्धता के साथ फसल अनुक्रमण, फसल रोटेशन और एकीकृत कृषि प्रणालियों को अपनाने वाले गैर-पारंपरिक फीड संसाधनों और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति भी आवश्यक एडवाईजरी जारी करना आवश्यक है।
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अतः वर्तमान तथा भविष्य को देखते हुये वेटनरी प्रैक्टिस रेगुलेशंस तथा भारतीय पशु चिकित्सा परिषद 1984 अधिनियम के प्रावधानों में सुधार हेतु मेरे विचार से उपरोक्त सुझाव को अपनाने से पशुचिकित्साविद् एवं पशुचिकित्सकों के लिये सहायक सिंद्ध होगा साथ ही पशुपालक बन्धुओं को भी अधिकतम लाभ मिलेगा तथा डेयरी, मांस और त्वचा उद्योग से संबन्धित पदार्थों के मूल्य संवर्धन और पशु उपोत्पाद के समुचित उपयोग से  किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी।

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