पशुओं में होने वाला एक खतरनाक रोग गलघोटू : लक्षण, बचाव एवं निदान

0
1093

 

पशुओं में होने वाला एक खतरनाक रोग गलघोटू : लक्षण, बचाव एवं निदान

 

पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुँचाने वाला व पशुओं के स्वास्थ्य को बहुत अधिक हानि पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण रोग गलघोटू है. इसे धुरखा, घोटुआ, असडिया व डकहा आदि नामों से भी जाना जाता हैं. देशभर में हर वर्ष 40,000 से अधिक जानवर इस रोग के शिकार हो जाते हैं और उन में से अधिकांश की मृत्यु हो जाती है.

गलाघोंटू रोग (Galghotu Disease) मुख्य तौर से गाय तथा भैंस होता है. यह बीमारी मई-जून में होती है. इसको गलाघोंटू, गलघोंटू और घूरखा आदि नामों से भी जाना जाता है. यह पशुओं में होने वाली छूतदार बीमारी है. यह एक जीवाणु जनित रोग है. आईए जानते हैं कि यह बीमारी कैसे होती है. इसके लक्षण क्या हैं और इसका निदान कैसे होगा.

कैसे होती है बीमारी

यह बीमारी उन स्थानों पर अधिक होती है जहां बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है. इस रोग के जीवाणु अस्वच्छ स्थान पर रखे जाने वाले पशुओं तथा लंबी यात्रा अथवा अधिक कार्य करने से थके पशुओं पर शीघ्र आक्रमण करते हैं. रोग का फैलाव बहुत तेजी से होता है.

गलघोटू (Hemorrhagic Septicemia ) एक घातक संक्रामक बीमारी है ! जो मुख्यत: गाय भैंस में मानसून के मौसम के दौरान होती है साधारण भाषा में गलघोटू रोग “घुरखा” , ” घोटुआ ” , ” डहका ” आदि के नाम से जाना जाता है ! यह रोग भेड़,बकरियों एवं सूअरों को प्रभावित करता है !

पशुओ के इस रोग में पशुपालको को अत्याधिक नुक्सान का सामना करना पड़ता है ! गलघोटू रोग के कारण पशुओ की मृत्यु दर अधिक होती है यह रोग छह से दो वर्ष की आयु के जानवरो में होती है !

READ MORE :  An Insight on the Control and Managemental Strategies of Major Parasitic Infections of Goats

गलघोटू रोग कारक : –

यह रोग ‘पस्तुरिल्ला मल्टोसीदा” नामक जीवाणु से होता है ! गलघोटू रोग का जीवाणु अधिक आद्रता वाले मौसम में सक्रिय होता है ! और यह 2 से ३ सप्ताह तक मिट्टी एवं घास में सक्रिय रह सकता है !

गलघोटू रोग संक्रमण :-

यह रोग अस्वस्थ पशु से स्वस्थ पशु में उनके सांस एवं स्त्राव से फैलता है ! ख़राब पानी एवं संक्रमित भोजन कराने से पशुओ को यह बीमारी लग जाती है !

गलघोटू रोग लक्षण :-

गलघोटू रोग में अचानक से तेज़ बुखार {१०३ -१०५ } हो जाता है! ठण्ड लगने लगती है! ! अत्यधिक लार का बहना , आँखों में सूजन आना , गले में सूजन होने से सास लेते समय दर्द होता है! पशु खाना पीना बंद कर देता और पशु सुस्त हो जाता है ! समय पर इलाज न होने की वजह से पशु की मृत्यु हो जाती है ! नैदानिक संकेतो के शुरुआत में 6 से ४८ घंटो के बाद पशु की मृत्यु हो सकती है !

गलघोटू रोग की रोकथाम :-

  • गलघोटू रोग की पुख्ता जांच होने पर सर्वप्रथम संदेहात्मक वस्तु जैसे की दुघ एकत्र करने का पात्र , वाहन एवं अन्य यन्त्र को हल्के अम्ल क्षार या जीवाणु नाशक द्रव्य से साफ़ करना चाहिए !
  • प्रभावित क्षत्रो में वाहनों एवं पशु की आवाजाही पूर्णतयः रोक देना चाहिए !
  • अस्वस्थ पशु को स्वस्थ पशुओ से अलग स्थान पर रखना चाहिए ताकि रोग स्वस्थ पशुओ में ना फ़ैल सके।
  • गाय एवं भैस इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील है !
  • पशु आवास को स्वच्छ रखें रोग की संभावना होने पर तुरंत पशुचिकित्सक से संपर्क करें !
  • ०.५ % फिनाइल को १५ मिनट तक रखने पर इस रोग के जीवाणु मर जाते है !
  • जिस स्थान पर पशु मरा हो उस स्थान को कीटनाशक दवाइयों से धोना चाहिए !
READ MORE :  VETERINARY AYURVEDA FOR MANAGEMENT OF BOVINE MASTITIS

गलघोटू रोग से बचाव

  • इस रोग से बचाव करने के लिए पशुओ का टीकाकरण एक मात्र उपाय है! वर्षा ऋतू से दो महीने पूर्व {मई – जून } में टीका लगा देना चाहिए !
  • पशुओ को उचित मात्रा में जगह प्रदान करें !
  • एक ही बाड़े में जरुरत से अधिक जानवर न रखें !
  • बाड़े को सूखा एवं साफ़ रखें !

हेमोरेजिक सेप्टिसेमिया टीकाकरण : –

Haemorrhagic Septicaemia टीकाकरण करने से यह रोग बरसात के मौसम में नहीं फैलता, टीकाकरण से यह रोग नियंत्रित किया जा सकता है ! एक बार टीकाकरण से पशु में छह महीने से एक साल तक प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है ! यह वैक्‍सीन बाजार में रक्षा एच .एस , रक्षा एच.एस + बी.क्यू एवं रक्षा त्रयोवेक नाम से उपलब्ध है ! गाय तथा भैंस में मे वैक्‍सीन की  2 मिली मात्राा  त्वचा के नीचे दी जाती हैैै। ।

टीकाकरण अनुसूची –

पहली खुराक –  महीने की आयु के जानवरो को
बूस्टर खुराक – प्रथम टीकरण के 6 महीने बाद
पुनः टीकाकरण – वार्षिक

गलघोटू रोग का उपचार :-

एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परिक्षण विशेष रूप से आवश्यक है जिसके बाद ही पशु में एंटीबायोटिक दिया जाना चाहिए ! पेनिसिलिन , अमोक्सीसीलीन ,टेट्रासाइक्लिन आदि इस रोग के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक दवा है

डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON