नई दिल्ली, 25 जून 2020,
पशुधन प्रहरी नेटवर्क
यह किसी से छिपा नहीं है कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान सबसे अधिक नुकसान डेयरी सेक्टर और दुग्ध उत्पादक किसानों को ही हुआ है। सरकार डेयरी सेक्टर की मजबूती के लिए कई कदम तो उठा रही है, लेकिन उसके एक ताजा फैसले ने कोरोना महामारी के दौरान नुकसान झेल रहे डेयरी किसानों और डेयरी इंडस्ट्री का गुस्सा और बढ़ा दिया है।
दरअसल, भारत सरकार ने 23 जून को अधिसूचना जारी कर टैरिफ रेट कोटा (TRQ) के तहत 15 फीसदी सीमा शुल्क की रियायती दर पर 10,000 टन स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) के इंपोर्ट की अनुति दी है। आपको बता दें कि देश में मिल्क पाउडर पर सीमा शुल्क की मौजूद दर 50% है। डेयरी एक्सपर्ट्स के मुताबिक सरकार के इस फैसले से डेयरी उद्योग और डेयरी किसानों को जबरदस्त झटका लगेगा। क्योंकि इस फैसले से जहां देश में स्किम्ड मिल्क पाउडर के दाम 80 रुपये प्रति किलो तक गिर सकते हैं, वहीं दूध के दामों में 7 से 8 रुपये प्रति लीटर की कमी आ सकती है।
आपको बता दें कि इससे पहले 30 जून, 2017 की वित्त मंत्रालय की अधिसूचना में 10,000 MT मिल्क पाउडर के आयात पर टैरिफ रेट कोटा (TRQ) को 15 प्रतिशत सीमा शुल्क की दर पर निर्धारित किया गया था। लेकिन इसी साल फरवरी में सरकार ने इस प्रावधान को अधिसूचना से हटा दिया था। पर 23 जून का जारी नई अधिसूचना में सरकार ने 2017 की स्थिति को फिर से बहाल कर दिया गया है।
इतना ही नहीं सरकारी नोटिफिकेशन के मुताबिक निजी डेयरी कंपनियां सीधे तौर पर मिल्क पाउडर का आयात नहीं कर सकती हैं। सरकार ने मिल्क पाउडर के आयात के लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी), नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (एनसीडीएफ), एसटीसी, एमएमटीसी, पीईसी, नेफेड और स्पाइसेज ट्रेडिंग कारपोरेशन लिमिटेड को अधिकृत किया है।
सरकार द्वारा इस फैसले के पीछे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की शर्तों को पूरा करने की मजबूरी बताया जा रहा है। जाहिर है कि लॉकडाउन के दौरान मांग में भारी गिरावट से सबसे ज्यादा नुकसान दूध किसानों का ही हुआ है। खाने पीने की दुकानों, मिठाई और रेस्टोरेंट व होटल बंद होने के चलते दूध की मांग में जबरदस्त गिरावट आई थी। इसके चलते दूध खरीद की कीमतें 15 रुपये लीटर तक गिर गई। नतीजा किसानों को हर रोज सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
देश के करीब 50 करोड़ लीटर प्रतिदिन के दूध उत्पादन में से करीब 20 फीसदी संगठित क्षेत्र द्वारा खरीदा जाता है। करीब 40 फीसदी किसानों के खुद के उपयोग में लाया जाता है और बाकी 40 फीसदी असंगठित क्षेत्र द्वारा खरीदा जाता है। लॉकडाउन के दौरान असंगठित क्षेत्र के साथ ही संगठित क्षेत्र की प्राइवेट कंपनियों ने दूध की खरीद में भारी कटौती की। वहीं सहकारी क्षेत्र ने सामान्य दिनों के मुकाबले करीब 10 फीसदी अधिक खरीद की।
कोरोना लॉकडाउन की वजह से चीज, फ्लेवर्ड मिल्क और आइसक्रीम समेत तमाम डेयरी उत्पादों की मांग में जबरदस्त गिरावट आई। जिसके चलते अधिकांश दुग्ध सहकारी फेडरेशन और यूनियन ने खरीदे गए दूध के एक बड़े हिस्से का उपयोग मिल्क पाउडर बनाने में किया। यानि आज की सच्चाई यह है कि इस वक्त सहकारी डेयरियों के पास बड़ी मात्रा में मिल्क पाउडर का स्टॉक जमा है। एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में करीब सवा लाख टन मिल्क पाउडर का स्टॉक है। जाहिर है कि इस स्थिति में सस्ती दरों पर मिल्क पाउडर आयात का सीधा असर दूध की खरीद कीमत पर पड़ने वाला है।
हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एनडीडीबी के चेयरमैन दिलीप रथ का कहना है कि 10,000 टन एसएमपी के आयात से घरेली डेयरी उद्योग पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उनका कहना है 2018-19 में भारत में जितना दुग्ध उत्पादन हुआ था, उसकी तुलना में यह मात्रा महज 0.059% ही बैठती है।
वहीं डेयरी उद्योग के एक बड़े एक्सपर्ट का कहना है कि देश में इस समय एसएमपी और व्हाइट बटर का बहुत ज्यादा स्टॉक है। ऐसे में सरकार द्वारा 15 फीसदी सीमा शुल्क दर पर मिल्क पाउडर के आयात की अनुमति का सीधा असर यह होगा कि स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) की कीमतें गिरकर 80 से 90 रुपये किलो पर आ जाएंगी। उसके चलते किसानों को मिलने वाली दूध की कीमत में सात से आठ रुपये प्रति लीटर की गिरावट आ सकती है। डेयरी सेक्टर की मांग है कि एसएमपी के सस्ते आयात का यह फैसला सरकार को वापस लेना चाहिए। अहम बात यह है कि देश में मानसून दस्तक दे चुका है और मानसून के दौरान दुग्ध उत्पादन काफी बढ़ जाता है। ऐसे में सरकार ने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया तो यह कदम डेयरी किसानों के लिए घातक साबित होने वाला।