मुर्गी के अंडे के निर्माण की प्रक्रिया
डॉ संजय कुमार मिश्र, एमवीएससी, पीवीएस
पशु चिकित्सा अधिकारी, चौमूहां मथुरा, उत्तर प्रदेश
स्वास्थ्य के लिए अंडा कितना लाभदायक है यह बात अब पूरा विश्व जानता है इससे होने वाले स्वास्थ्य और सौंदर्य लाभ के बारे में आज पूरे विश्व में चर्चा हो रही है और इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के सार्वभौमिक प्रयास किए जा रहे हैं। अंडे में प्रोटीन के अतिरिक्त पाए जाने वाले कई पोषक तत्वों और उससे होने वाले लाभ के बारे में चर्चा करने के लिए अक्टूबर माह के दूसरे शुक्रवार के दिन विश्व अंडा दिवस मनाया जाता है। विश्व अंडा आयोग ने प्रतिवर्ष अक्टूबर के दूसरे शुक्रवार को इस दिवस के आयोजन की घोषणा अंडे के पौष्टिक गुणों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से की है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंडे खाने को प्रोत्साहित करना है। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा अंडा उत्पादक देश है लेकिन आधिकारिक जानकारी के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष अंडे की उपलब्धता केवल 80 के आसपास है। राष्ट्रीय पोषाहार संस्थान की सिफारिश के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में 180 अंडो का सेवन करना चाहिए क्योंकि अंडा अपने आप में पूरी तरह से पौष्टिक आहार है।
पक्षी के अंडो के निर्माण की प्रक्रिया–
एक अंडा जनन कोशिका होता है जिसमें निषेचन के पश्चात बच्चा तैयार होता है। इसमें पाए जाने वाले योक, का निर्माण अंडाशय में पूरा होता है तथा अन्य भागों का निर्माण अंडाशय से बाहर गर्भाशय नाल में होता है। अंडे का निर्माण निम्नांकित चरणों में पूर्ण होता है-
१. अंड पीत का निर्माण –
सर्वप्रथम ऊसाइट मैं वृद्धि होती है जो बाद में एक हल्के या गहरे रंग की परत में परिवर्तित हो जाती है। जब धीरे-धीरे योक का निर्माण समाप्त हो जाता है तो यह परत योक के ऊपर जमती रहती है जिससे योक की वृद्धि होती है। व्यास में 5 मिलीमीटर होने के बाद अंडे की वृद्धि शीघ्रता पूर्वक होती है और एक पूर्ण विकसित अंडे का व्यास 40 मिलीमीटर होता है। योक के ऊपर जो परत बनती है उसके रंग व निर्माण पर मुर्गी द्वारा खाए गए आहार का प्रभाव होता है और लगभग 24 घंटे में इस प्रकार की एक परत का निर्माण होता है।
२. अंडे का अंडाशय से निकलना –
जब संपूर्ण योक का निर्माण हो जाता है तो अंडा,अंडाशय से गर्भाशय नाल मैं आ जाता है और आगे की ओर बढ़ना प्रारंभ कर देता है। इस क्रिया को अंडोत्सर्ग कहते हैं। यदि मुर्गी किसी मुर्गे के संपर्क में आई होती है तो इसी स्थान पर निषेचन होता है, अन्यथा की स्थिति में भी अंडे का निर्माण जारी रहता है।
३. सफेदी का श्रावण –
एक अंडा मैग्नम भाग में पहुंचने के बाद लगभग आधी सफेदी प्राप्त कर लेता है। यह मैग्नम, गर्भाशय नाल का ही एक भाग होता है। शेष सफेदी गर्भाशय में प्राप्त कर लेता है। इस दूसरी सफेदी में जल की मात्रा अधिक होती है। अंडआवरणी झिल्ली बनने के बाद ही सफेदी के शेष भाग का निर्माण होता है। अंडे को यहां से गुजरने में लगभग 3 घंटे का समय लगता है।
४. अंडे की आवरण परत बनना –
अंडे के इसथस में पहुंचने के पश्चात ही सेल मेंब्रेन बनती है ।इस कार्य में अंडे को लगभग एक घंटा लगता है।
५. चलाजा का बनना –
योक से अंडे की बाहरी तरफ को सफेद रंग की रचनाएं फैली रहती है जिन्हें कार्ड कहते हैं जो चलाजा से संबंधित हैं। इसका निर्माण गर्भाशय नाल में ही इसके सबसे पहले भाग में हो जाता है लेकिन अंडे से गर्भाशय मैं पहुंचने के पश्चात यह कॉर्ड दिखाई देते हैं।
६. आवरण का निर्माण –
अंडे के कठोर आवरण में 90 से 96% कैलशियम कार्बोनेट होता है। इसका 10 से 40% बाद भोजन द्वारा तथा शेष भाग हड्डियों द्वारा मिलता है। कैल्शियम कार्बोनेट का निर्माण गर्भाशय में होता है। इसी स्थान पर अर्थात गर्भाशय एवं योनि में अंडा तकरीबन 20 घंटे व्यतीत करता है। आवरण की झिल्ली के बनाने में आहार का बहुत महत्व होता है। उचित आहार न मिलने पर अंडो का बनना बंद हो जाता है। यदि आहार में कैल्शियम कार्बोनेट की कमी है तो सेल मेंब्रेन नहीं बनेगी या बहुत पतली बनेगी और इस प्रकार 10 से 15 दिन में अंडों का बनना बिल्कुल बंद हो जाएगा।
७. अंडे का बाहर निकलना –
अंडे को अंडाशय से होकर शरीर के बाहर निकलने में लगभग 25 से 30 घंटे लग जाते हैं। अन्य पशुओं की भांति मुर्गी को भी अंडा देने के समय कुछ पीड़ा महसूस होती है ।
सामान्य अवस्था में पहले अंडे का पतला भाग बाहर आता है और फिर चौड़ा भाग। लेकिन कभी-कभी जब चौड़ा भाग पहले निकलता है तो यह असामान्य अवस्था होती है और इसके कारण समय पर बाहरी सहायता न मिलने के कारण मुर्गी की मृत्यु तक हो सकती है।
अंडों के संबंध में कुछ उपयोगी जानकारी:-
१. अंडे के बाहरी छिलके के रंग का इसकी पौष्टिकता पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। भारी नस्ल की मुर्गी जैसे आसटरलोप, आईलैंड रेड का अंडा रंगीन और हल्की नस्ल जैसे व्हाइट लेगहारन का अंडा सफेद होता है।
२. अंडे की जर्दी का रंग पक्षी के आहार पर निर्भर करता है। जब मुर्गी को हरा चारा जैसे बरसीम एवं गोभी की पत्ती आदि खिलाई जाती है तो जर्दी का रंग गहरा पीला हो जाता है अन्यथा यह हल्का पीला या सफेद रंग का होता है। इससे इसके पौष्टिक गुणों में कोई भी अंतर नहीं आता है।
३. मुर्गी से अंडा उत्पादन होना एक प्राकृतिक क्रिया है तथा यह क्रिया सदैव चलती रहती है चाहे मुर्गियों के साथ मुर्गे रखे जाएं या नहीं। यदि झुंड में मुर्गे रहेंगे तो उत्पादित अंडे उर्वरक अर्थात निषेचित होंगे और बिना मुर्गी के अंडे उर्वरक नहीं होते हैं। अनुउर्वरक अंडों में जीव अर्थात प्राण नहीं होता है तथा उर्वरक अंडों की तुलना में इन्हें अधिक समय तक रखा जा सकता है। दोनों प्रकार के अंडों की पौष्टिकता में कोई अंतर नहीं होता है।
४. कभी-कभी उबले हुए अंडे की जर्दी के चारों तरफ हरा रंग दिखाई पड़ता है। यह हरा रंग अंडे में उपलब्ध लौह तत्व तथा उबालने से उत्पन्न हाइड्रोजन सल्फाइड गैस के संयोग से हो जाता है। इस प्रकार के अंडे खाने के लिए पूर्णत: उपयुक्त होते हैं।
५. ताजे अंडो को उबालने से उसका छिलका उतारने में कठिनाई होती है।
६. कुछ लोगों को भ्रम होता है की देसी अंडे फार्म की मुर्गियों की तुलना में पौष्टिक होते हैं जबकि वास्तविकता यह है की फार्म के अंडे देसी मुर्गियों के अंडे की तुलना में बड़े एवं अधिक पौष्टिक पदार्थ वाले होते हैं क्योंकि फार्म की मुर्गियों को संतुलित आहार एवं खनिज मिश्रण खिलाया जाता है।
७. गर्भवती महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए अंडो का सेवन अत्यंत लाभदायक है। अंडा बहुत ही सुपाच्य अर्थात आसानी से पचने वाला होता है और यह अॉतो द्वारा पूरी तरह अवशोषित कर लिया जाता है।