उत्तम क्वालिटी का साइलेज बनाने की विधि

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उत्तम क्वालिटी का साइलेज बनाने की विधि

हर समय पशुओं को उचित चारा उपलब्ध कराना सबसे कठिन कार्यो में से एक है। इसके साथ ही सब जानते हैं कि दुधारू पशुओं को संतुलित आहार के रूप में हरा चारा खिलाना पशुओं की स्वास्थय की दृष्टि से बेहद ही आवश्यक व महत्वपूर्ण हैं। किसान भाईयों को यह बात जानना बेहद आवश्यक है कि हरा चारा पशुओं के लिए पौष्टिक आहार होने के साथ – साथ यह आपके पशुओं को निरोग रखता है। पशुपालक हरे चारे के रूप में बरसीम, नैपियर घास, जई, मक्का, बाजरा, लोबिया, उड़द व मूंग आदि का इस्तेमाल पशुओं को खिलाने के लिए करते हैं। लेकिन इस तरह का हरा चारा साल भर नहीं मिल पाता है। गरमी के मौसम में पशुपालक अपने पशुओं को सिर्फ सूखा चारा व दाना खिलाने पर मजबूर होते है इस से दुधारू पशु कम दूध देने लगते हैं। ऐसी स्थिति में किसान यह सोच कर परेशान होते हैं कि अपने पशुओं को हरे चारे की जगह क्या खिलाएं।

हम आपको बताने जा रहा है हरे चारे के विकल्प साइलेज के बारे में। हरे चारे की तरह इसमें सभी पोषक व जरूरी तत्व मौजुद होते हैं। इसकी सहायता से पशुपालक अपने पशुओं के आसानी से साल भर हरे चारे की कमी के बाद भी पौष्टिक आहार दे सकता है। जिससे पशुओं के दुध उत्पादन औऱ स्वास्थ्य दोनों पर सकारात्मक प्रभाव रहता है। वहीं साइलेज के रूप में हरे चारे का भंडारण भी लंबे समय तक किया जा सकता है.

सबसे पहले बात करते हैं कि साइलेज क्या है

साइलेज ज्वार, मक्का, नैपियर घास, बरसीम आदि हरे चारों को छोटे – छोटे टुकड़ो में काट कर उसे नमक व अन्य जरूरी पोषक तत्वों के मिश्रण से बनाया जाता है। साइलेज में भी हरे चारे की तरह ही उचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट व सूक्ष्म पोषक मात्रा सही हो, इसलिए पशुपालक को मक्का, ज्वार, जई, लूटसन, नेपियर घास, लोबिया, बरसीम, रिजका, लेग्यूम्स, जवी, बाजरा, गिन्नी व अंजन का खासा ध्यान रखना जरूरी हैं। ये दाने दूधिया हों तो तभी इसे काटना चाहिए। अगर पानी अधिक है, तो चारे को थोड़ा सुखा लेना चाहिए ताकि नमी की मात्रा 60 से 65 फीसदी तक आ जाए, क्योंकि अधिक नमी न होने से साइलेज सड़ता नहीं है।

सुरक्षित भंडारण के बारे में

साइलेज बनाने के लिए साइलोपिट का निर्माण किस तरह से किया जाए और इस के लिए जगह चुनने में किन चीजों का ध्यान रखा जाना चाहिए। वहां बरसात के पानी के अच्छे निकास का इंतजाम होना चाहिए और जमीन में जल स्तर काफी नीचे होना चाहिए। कोशिश करें कि साइलोपिट पशुओं को चारा खिलाने के स्थान के नजदीक बनाया जाए। साइलेज बनाने के लिए साइलोपिट का साइज चारे की मात्रा व मौजूदगी के हिसाब से होना चाहिए। वैसे 20 किलोग्राम चारे के लिए 1 घन फुट जगह की जरूरत पड़ती है। साइलोपिट कई प्रकार के हो सकते हैं। 8 फुट गहराई वाले गड्ढे में 4 पशुओं के लिए 3 महीने तक का साइलेज बनाया जा सकता है। गड्ढा ऊंचा होना चाहिए और उसे अच्छी तरह से कूट कर सख्त बना लेना चाहिए।

गुणवत्ता की जांच कैसे करें?

साइलेज की तैयार होते समय आक्सीजन न मिलने की वजह से पशुओं के पोषक व आवश्यत सूक्ष्म जीवाणूओं का निर्माण होते हैं। अच्छी गुणवत्ता की परख पशुपालक साइलेज के रंग से किया जाता है। यदि इसका रंग हरा, सुनहरा, हलका सोने के रंग जैसे या हरेभूरे रंग का हो तो वो साइलेज पशुओं को खाने व पचने में आसानी होती है।

साइलेज का जानवरों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। अच्छे साइलेज में खास तरह की खुशबू होती?है और जायका तेजाबी होता है। बरसीम, रिजका और लोबिया में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा मक्का और ज्वार की तुलना में कम होती है और नमी व प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए इन से अपनेआप साइलेज नहीं बनता।

लिहाजा बरसीम, रिजका और लोबिया का साइलेज बनाने के लिए 4 भाग हरे चारे में 1 भाग धान का पुआल मिला कर साइलेज बनाया जा सकता है। ऐसा करने से धान का पुआल हरे चारे की नमी को सोख लेता है, जिस से हरा चारा सड़ता नहीं है और पुआल का पचनीय तत्त्व भी बढ़ जाता है। बनाए जा रहे साइलेज चारे में शीरा 2 फीसदी के हिसाब से मिला दें ताकि घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाए. बरसीम, रिजका, लोबिया आदि के चारे को मक्का, ज्वार, जई वगैरह के चारों के साथ मिला कर बनाए गए साइलेज का रंग पीला हो, तो यह सब से अच्छा साइलेज माना जाता है।

पशुओं को इसे पचाने में आसानी होती है। अगर साइलेज की पाचकता ज्यादा हो, तो दूध उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा पशुपालक को ध्यान रखने की जरूरत साइलेज को बनाने के बाद तीन महीनें बाद ही उस गड्ढ़ों को खोलना चाहिए। गड्ढा खोलने के बाद साइलेज को जितनी जल्दी हो सके पशुओं को खिला कर खत्म करना चाहिए। कई दफा उचित साफ-सफाई के अभावों में गड्ढे के ऊपरी भागों और दीवारों के पास में अकसर फफूंदी लग जाती है। यह ध्यान रखें कि ऐसा साइलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि साइलेज हरे चारे का अच्छा विकल्प है व इसका कोई नकारात्मक असर भी पशुओं पर नहीं पड़ता तो अब देर किस बात की सभी पशुपालक जल्द से जल्द हरे चारे के रूप में साइलेज अपने पशुओं को दे सकते हैं।

पशुओं की नाद में डाली गई साइलेज के बचेखुचे हिस्से को हर बार हटा कर साफ कर देना चाहिए। चूंकि साइलेज की पूरी मात्रा पचनीय होती है, लिहाजा इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से भूसे के पचने की उम्मीद भी बढ़ जाती है। एक दुधारू पशु जिस का औसत वजन 550 किलोग्राम हो, उसे 25 किलोग्राम की मात्रा में साइलेज खिलाया जा सकता है।अधिक उत्पादन के लिए साइलेज को गाय के चारे में करे शामिल

 

पशु चराने की प्रथा

किसानों द्वारा अपनाई गई चराने की प्रथा दूध उत्पादन के लिए जानवरों की क्षमता और फलस्वरूप, डेयरी फार्मिंग की लाभप्रदता को बहुत प्रभावित करती है। ज्यादातर किसान चारे की सही मात्रा और गुणवत्ता की खेती के साथ संघर्ष करते हैं। आमतौर पर, डेयरी किसान प्रतिदिन आवश्यकतानुसार हरा चारा काटकर खिलते है।

इस प्रणाली के तीन अलग-अलग नुकसान हैं।

  1. चारे की फसल को काटने में एक महीने तक का समय लग सकता है, इस दौरान खेत में बिना कटा हुआ चारा भी रह जाएगा।
  2. चारे का पोषक मूल्य समय के साथ कम हो जाएगा।
  3. इसमें मजदुरी ज्यादा लगती हैं। और किसी भी तरह की लापरवाही या दूध पिलाने के समय में देरी फलस्वरूप दूध के उत्पादन को प्रभावित करेगी। इसके बजाय पूरी फसल को काटकर भविष्य के लिए संरक्षित करना अधिक फायदेमंद है जब यह नमी और पोषक तत्वों से भरपूर है। यह दैनिक श्रम लागत बचाता है, यह सुनिश्चित करता है कि चारा खिलाने के समय में कोई विविधता नहीं है और अगली फसल लेने के लिए खेत उपलब्ध है। आपको पशु चारा प्रबंधन और इसकी आवश्यकता का पता होना चाहिए कटाई के बाद, चारे की फसल को घास के रूप में धूप में सुखाकर संरक्षित किया जा सकता है। हरे चारे को साइलेज के रूप में भी सरंक्षित किया जा सकता है। दुनिया भर में, साइलेज पशु आहार का मुख्य घटक है और इसका उपयोग पशुओं की आहार ऊर्जा, प्रोटीन और फाइबर आवश्यकताओं का एक बड़ा प्रतिशत आपूर्ति करने के लिए किया जाता है।

साइलेज कैसे तैयार करें?

साइलेज बनाने का सिद्धांत बहुत सरल है: यह रुमेन फर्मेंटेशन/किण्वन (Fermentation) प्रक्रिया की नकल करता है। साइलेज को “प्री-डाइजेस्टेड फीड” के रूप में भी जाना जाता है। अधिकांश चारा फसलों में चीनी के रूप में लगभग 6-10% घुलनशील कार्बोहाइड्रेट होते हैं। संपूर्ण प्रक्रिया का मुख्य कारक ‘एनारोबिक किण्वन’ है; ऑक्सीजन की उपस्थिति मुरघास (साइलेज) को खराब कर देती है क्योंकि यह वायुजीवी पुटरिफाईंग बैक्टीरिया और कवक के विकास को बढ़ाता है। जब फसलों में 65% तक नमी होती है और अभी-अभी अनाज विकसित करना शुरू किया है, तो वे आदर्श कटाई के चरण में हैं। नमी सामग्री के लिए एक क्षेत्र परीक्षण चारे की पत्तियों को जकड़ना और निचोड़ना है; उन्हें नरम महसूस करना चाहिए और थोड़ी नमी जारी करनी चाहिए। दो दिनों के भीतर पूरी फसल काटनी चाहिए। यदि चैफिंग के बाद नमी की मात्रा अधिक है, तो इसे रात भर सूखने के लिए छोड़ा जा सकता है और फिर संरक्षित किया जा सकता है।

कटे हुए चारे को स्टोर कैसे करें?

कटे हुए चारे को एक भूमिगत साइलो, एक साइलो टॉवर, साइलो रूम या साइलेज बैग में संग्रहित किया जा सकता है। आपकी पसंद काफी हद तक उत्पादित मात्रा, इनवेस्टमेंट क्षमता और साइलेज उत्पादन की आवृत्ति पर निर्भर करेगी।

साइलेज बनाते समय क्या जोड़ा जा सकता है?

वास्तव में, अतिरिक्त कुछ भी जोड़ने की आवश्यकता नहीं है जब तक कि आपको संदेह न हो कि चारा की फसल घुलनशील कार्बोहाइड्रेट से समृद्ध नहीं है, जिस स्थिति में गुड़ या गुड़ का घोल डाला जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से साइलेज गुणवत्ता में समझौता हो सकता है। कुछ किसान खनिज मिश्रण या यूरिया डालते हैं, लेकिन ये उपयोगी नहीं हैं और इसलिए इनसे बचना चाहिए।

कॉम्पैक्ट कैसे करें?

  • चूँकि चारे वाले चारे को ऑक्सीजन रहित वातावरण में संरक्षित करना महत्वपूर्ण है, इसलिए चारे को रखने के बाद उसे जमा देना महत्वपूर्ण है। यह मैन्युअल रूप से स्टैम्पिंग या हैंड कॉम्पेक्टर का उपयोग करके किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से, बड़ी मात्रा में साइलेज के लिए, एक यांत्रिक रोलर या ट्रैक्टर का उपयोग किया जा सकता है।
  • फर्मेंटेशन को बनाए रखने के लिए, मशीन को प्लास्टिक की चादरों से चारों ओर से कवर करना जरूरी है। कॉम्पैक्ट दबाव बनाए रखने के लिए, खर्च किए गए टायर या पत्थर को साइलो के शीर्ष पर रखा जा सकता है।
  • छोटे किसानों के लिए, जिनके पास जगह की कमी है, साइलेज बैग बाजार में उपलब्ध हैं जो 50 किलो से लेकर एक टन तक की क्षमता प्रदान करते हैं। छोटे बैग्स से ढुलाई में आसानी होती है। सस्ते प्लास्टिक उर्वरक बैग भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं क्योंकि ये सस्ते में उपलब्ध हैं। इन बैगों को कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है ओर प्रत्येक उपयोग के बाद बोरे को पलटाकर उपयोग में लाये।

पशु चारा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक समय:

आमतौर पर यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को पूरा करने में एक महीने का समय लगता है। एक बार प्रक्रिया पूरी हो जाने पर, साइलेज की मीठी गंध दूर से भी स्पष्ट हो जाएगी।

साइलेज क्वालिटी का आकलन कैसे करें:

साइलेज की गुणवत्ता का मूल्यांकन शारीरिक परीक्षा, पोषण संबंधी विश्लेषण और माइक्रोबियल परीक्षणों द्वारा किया जा सकता है। अच्छी क्वालिटी का साइलेज मीठी सुगंध का होता है।, जबकि खराब साइलेज से दुर्गंध आएगी। जब फफूंदी द्वारा साइलेज संक्रमित होता है, तो यह काला हो जाता है। साइलेज की जांच करना महत्वपूर्ण है ताकि गाय उसे अच्छी तरह खा सकेगी।

कोनसी चारा फसलों को साइलेज बनाने के लिए सुनिश्चित किया जा सकता है?

7-10% घुलनशील कार्बोहाइड्रेट और अनाज से युक्त कोई भी चारा या चारा फसल, साइलेज उत्पादन के लिए आदर्श है। आमतौर पर, मक्का, ज्वार, गन्ना (Sugarcane) और संकर नेपियर चारा अच्छा साइलेज बनाते हैं। जौ, सब्जी या फलों के कचरे का भी साइलेज बनाने में शामिल किया जा सकता है।
मके से बने साइलेज का पोषक मूल्य:

ड्राई-मैटर (शुष्क पदार्थ)  23.5 – 25.0%
क्रूड प्रोटीन  6.5- 8.0 %
क्रूड फाइबर  23.5 – 25.0%
एनडीएफ 49.3%
एडीएफ 25-27 %
ईथर का अर्क 2.5-2.6%
ऐश 4.8%
सकल ऊर्जा 18.9 MJ /Kg शुष्क पदार्थ
एम. इ 10.5 MJ /Kg शुष्क पदार्थ

 

 

हरे चारे को साईलेज (अचार) बनाकर संरक्षित करना

अधिकतर डेयरी किसान अपने पशुओं को खिलाने के लिए खेतों में चारा फसलें उगाते हैं परन्तु मौसमी परिवर्तनों के कारण सारा साल हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती. ऐसे में किसान अपने पशुओं को गेहूं का भूसा एवं विभिन्न फसलों के सूखे अवशेष खिला कर ही काम चलाते हैं. इस प्रकार पशुओं को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती तथा इनकी उत्पादकता कम होने लगती है. सम्पूर्ण वर्ष पौष्टिक चारे की उपलब्धता बनाए रखने हेतु या तो चारे को सुखा कर ‘हे’ बनाई जा सकती है अथवा गीली अवस्था में ही ‘साइलेज’ के रूप में भंडारित कर सकते हैं. उल्लेखनीय है कि ‘भूसा’ पकी हुई फसल के अवशेष से प्राप्त होता है जबकि ‘हे’ में चारे को दीर्घावधि संग्रहण हेतु सुखाया जाता है जिसमें पोषक तत्त्वों के नष्ट होने की संभावना अधिक होती है. परन्तु ‘साइलेज’ तैयार करने से चारे के सभी पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते. ‘हे’ बनाने के लिए विशेष प्रकार की मशीनरी की आवश्यकता पड़ती है जबकि ‘साइलेज’ तैयार करना कहीं आसान व सस्ता विकल्प है. ‘हे’ बनाने के लिए मोटे तने वाली फसलें जैसे मक्का आदि को पूर्ण रूप से सुखाने में काफी समय भी लगता है. ऐसे में ‘साइलेज’ द्वारा चारे के पोषक तत्त्वों को लंबे समय तक संग्रहीत करना कहीं अधिक सरल है. साइलेज बनाने की विधि छोटे एवं मझोले किसान आसानी से ‘अपना’ सकते हैं तथा हरे चारे की उपलब्धता न होने पर भी सारा साल अपने पशुओं को चारा आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं.

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साइलेज क्या है?

‘साइलेज’ अचार की तरह एक ऐसा उत्पाद है जिसमें हरे चारे को दीर्घावधि तक संभाल कर रख सकते हैं. डेयरी किसानों के लिए साइलेज बनाना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि इससे शुष्क मौसम के दौरान भी चारे की उपलब्धता बनी रहती है. चारे की फसल को काटने का समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि पौधे के अधिक परिपक्व होने पर इसके पोषक तत्त्व कम होने लगते हैं. चारे को काट कर ऑक्सीजन रहित वातावरण में किण्वन हेतु भंडारित किया जाता है ताकि इसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणु लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करके पोषक तत्त्वों को दीर्घावधि तक संरक्षित कर सकें. चारे का परिरक्षण अम्लीय वातावरण में होना चाहिए. क्षारीय वातावरण में तैयार की गई साइलेज का स्वाद अच्छा नहीं होता तथा इसमें शर्करा एवं प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है.

साइलेज कैसे बनती है?

खेत से चारा काटने के बाद भी इसके पत्तों में श्वास क्रिया चलती रहती है. पौधों की कोशिकाएं वायुमंडल से ऑक्सीजन गैस लेकर शर्करा को कार्बनडाईऑक्साइड, उष्मा एवं जल में अपघटित कर देती हैं. परन्तु जब ये पौधे ‘साइलो-पिट्स’ या गड्ढों में दबे होते हैं तो इन्हें ऑक्सीजन नहीं मिलती तथा ये वायु की अनुपस्थिति में ही किण्वन करने लगते हैं जिससे लैक्टिक अम्ल बनता है जो ‘साइलो-पिट’ में अम्लीय वातावरण उत्पन्न करके चारे को लंबे समय तक संरक्षित करने में सहायक होता है.

किण्वन कैसे होता है?

‘साइलेज’ तैयार करने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका सूक्ष्म जीवाणुओं की ही है. ये जीवाणु केवल ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही पनप सकते हैं. यदि चारे में ऑक्सीजन रह गई तो कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु भी पनपने लगते हैं जो इसे नष्ट कर सकते हैं. ऑक्सीजन की उपस्थिति में पादप एन्जाइम एवं अन्य जीवाणु चारे के पोषक तत्त्वों को नष्ट कर देते हैं. जैसे ही साइलेज के गड्ढे में ऑक्सीजन की मात्रा घटने लगती है वैसे ही लैक्टिक एसिड पैदा करने वाले जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ने लगती है. अम्लता बढ़ने से शर्करा का अपघटन थम जाता है तथा घास दीर्घावधि तक भंडारण हेतु सुरक्षित हो जाती है.
इस प्रकार तैयार ‘साइलेज’ लगभग 5 वर्ष तक खराब नहीं होती तथा इससे पशुओं को बहुत लाभ हैं. पर्याप्त जानकारी के अभाव एवं अशिक्षा के कारण हमारे किसानों द्वारा इसका उपयोग अधिक लोकप्रिय नहीं हो पाया है. हालांकि ‘हे’ बनाने पर सकल शुष्क पदार्थ के लगभग 30% पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं जबकि ‘साइलेज’ बनाने में केवल 10% पोषक तत्त्व ही व्यर्थ होते हैं. ‘साइलेज’ बनाने से खेत में सालाना 2-3 फसलें उगाना भी सम्भव है. साइलेज बनाते समय किण्वन के कारण पौधों द्वारा मिट्टी व खाद से अवशोषित ‘नाइट्रेट’ के स्तर भी कम हो जाते हैं. इसके भंडारण हेतु बहुत कम स्थान की आवश्यकता पड़ती है. मक्की के बीजों एवं भूसे की तुलना में इसके चारे से ‘साइलेज’ बनाने पर 30-50% तक अधिक पोषण प्राप्त होता है. अधिक नमी के कारण दो किलोग्राम ‘साइलेज’ की पोषण क्षमता लगभग एक किलोग्राम ‘हे’ के बराबर आंकी गई है. जिस स्थान पर ‘साइलेज’ तैयार होती है, उसके आस-पास ही इसे उपयोग में लाना लाभकारी होता है. इसे लम्बी दूरी तक ढोना सम्भव नहीं है क्योंकि लैक्टिक अम्ल के साथ बहुत से पोषक तत्त्व बाहर आ कर व्यर्थ हो सकते हैं. यह चारे की तुलना में भारी होती है, अतः पशुओं को परोसने में कुछ अधिक मेहनत करनी पड़ती है.

साइलेज हेतु साइलो-पिट्स कहाँ बनाएँ?

साइलेज हेतु पिट्स बनाने के लिए उपयुक्त स्थान का चयन करना आवश्यक है. इसके लिए ऎसे स्थान का चयन करना चाहिए जो पशुओं के आवास के निकट हो ताकि ‘साइलेज’ परोसने हेतु अधिक दूरी न तय करनी पड़े. ‘साइलो-पिट्स’ के स्थान पर जल-भराव की स्थिति नहीं होनी चाहिए. वर्षा के मौसम में पानी का बहाव इससे यथासम्भव दूरी पर होना चाहिए. ‘साइलो-पिट्स’ पर सूरज की किरणें सीधे नहीं पड़नी चाहिएं क्योंकि तापमान अधिक होने पर भी साइलेज खराब हो सकती है.

साइलेज हेतु चारा फसलें

किसी भी फसल को काटने का उपयुक्त समय इसके पकने से कुछ दिन पूर्व का होता है क्योंकि इस स्थिति में पोषक तत्त्वों की मात्रा अधिकतम स्तर पर होती है. परिरक्षण के दौरान कुछ पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, इसलिए साइलेज हेतु प्रयुक्त चारे में पोषक तत्त्वों की मात्रा अधिकतम होनी चाहिए. चारे को कुछ समय के लिए खुली हवा में फैलाया जाता है ताकि इसमें नमी की मात्रा 60-75% के बीच सीमित हो जाए. इतनी नमी पर उपयुक्त किण्वन सुनिश्चित होता है. यदि नमी की मात्रा इससे अधिक अथवा कम हो तो किण्वन पर दुष्प्रभाव पड़ता है. सर्वप्रथम चारे को बारीक टुकड़ों में काट लिया जाता है. खेत में से फसल काटने के बाद भी पौधों की पत्तियों में श्वसन क्रिया चलती रहती है जिससे इनके पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं. अतः चारे को कटाई के तुरंत बाद ही ‘साइलो’ पिट्स में स्थानातरित कर देना चाहिए. यदि बारिश के कारण फसल गीली हो गई हो तो इसकी कटाई एक या दो दिन बाद ही करनी चाहिए.
चारे की कटी हुई फसल को इकठ्ठा करके दबाया जाता है ताकि इसके बीच की सारी हवा को बाहर निकाला जा सके. ध्यान रहे कि ‘लैक्टिक’ अम्ल उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही किण्वन द्वारा लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं. यदि साइलेज किसी बड़े गड्ढे में बनाई जानी है तो उसमें चारा भर के ट्रेक्टर चला देना चाहिए ताकि अधिकतम दाब द्वारा इसकी सारी हवा बाहर आ जाए. अब इस चारे को पोलीथीन अथवा प्लास्टिक शीट से ढक कर कुछ वजन जैसे टायर आदि रख दिए जाते हैं ताकि घास दबी रहे. साइलेज निर्माण हेतु विभिन्न प्रकार के ‘साइलो पिट्स’ का उपयोग किया जा सकता है जैसे सुरंगनुमा, ट्रेंच, ‘कोरिडोर’ तथा ‘टावर-साइलो’ आदि. ये सभी ‘साइलो’ वायुरोधी होने चाहिएं ताकि इनमें किण्वन द्वारा उपयुक्त गुणवत्ता की साइलेज प्राप्त की जा सके. साइलो-पिट्स में दबाई जाने वाले चारा-फसल साफ़ सुथरी एवं मिट्टी रहित होनी चाहिए. मिटटी से बचाव हेतु गड्ढे के तल पर एक ‘पोलीथीन शीट’ बिछानी चाहिए. इसके कारण साइलो-पिट में उत्पन्न होने वाला लैक्टिक अम्ल मिट्टी में अवशोषित नहीं होता तथा इस प्रकार बेहतर गुणवत्ता की ‘साइलेज’ बनाई जा सकती है.

मक्का के चारे से साइलेज बनाएँ:

आजकल डेयरी किसान पशुओं को मक्का चारे के रूप में खिला रहे हैं क्योंकि इसकी पैदावार काफी अच्छी है. इसकी पाचन क्षमता बेहतर है तथा यह पशुओं को स्वादिष्ट भी लगता है. मक्का की साइलेज से अन्य फसलों की अपेक्षा प्रति एकड़ अधिक मात्रा में खाद्य ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है जो आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है. मक्का साइलेज द्वारा इसके पोषक तत्त्वों जैसे नाइट्रोजन एवं फोस्फोरस का पुनःचक्रण सुगमता से हो जाता है. जब मक्की के पौधे में शुष्क पदार्थों की मात्रा लगभग 30-35% हो जाए तो इसे साइलेज हेतु उपयोग में लाया जा सकता है. मक्के के पौधे को धरती से लगभग 10-12 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर काटना चाहिए.
यदि एक से अधिक चारे की फसलें उपलब्ध हों तो इन सबको मिला कर भी साइलेज बनाई जा सकती है. ऐसा करने से अपेक्षाकृत कम गुणवत्ता वाले चारे को भी उपयोग में लाया जा सकता है. यदि मक्का बोने के बाद सिंचाई हेतु पर्याप्त जल न मिले तो मक्के के छोटे पौधों को भी साइलेज बनाने हेतु उपयोग में लाया जा सकता है, हालांकि इन परिस्थितियों में इसकी पोषण क्षमता सामान्य से 10 या 15% तक कम हो सकती है. रेशों की पाचकता अधिक होने के कारण इसे दाने के साथ दुधारू पशुओं को खिलाया जा सकता है. उच्च तापमान एवं अकाल की स्थिति के कारण पौधों में नाइट्रेट का स्तर बढ़ जाता है किन्तु साइलेज बनाने से इसकी मात्रा को 50% तक कम किया जा सकता है. जो मक्के की फसल पाले से खराब हो रही हो, उसे भी साइलेज बनाने में प्रयुक्त किया जा सकता है.

थैलों में साइलेज बनाएँ:

खेतों में बड़े साइलो पिट्स बनाने की तुलना में प्लास्टिक के बड़े-बड़े थैले कहीं सस्ते पड़ते हैं. इन थैलों में आवश्यकतानुसार वांछित मात्रा में साइलेज बनाई जा सकती है. इन थैलों में अन्य जीवाणुओं अथवा कवक का प्रवेश न होने से प्रोटीन एवं अन्य पोषक तत्त्व व्यर्थ नहीं हो सकते. डेयरी किसान अपनी आवश्यकतानुसार इन थैलों को कहीं भी ले जा कर उपयोग कर सकता है. थैले पूर्णतः बंद होने के कारण लैक्टिक अम्ल बाहर नहीं निकलता तथा इसकी गुणवत्ता अच्छी रहती है. गड्ढों में से साइलेज निकालने हेतु अतिरिक्त मजदूरी खर्च होती है जबकि थैलों से साइलेज निकालना एक दम आसान है. जितनी साइलेज की आवश्यकता हो उतने ही थैले खोलने पड़ते हैं जबकि अन्य बंद किए गए थैलों की साइलेज सुरक्षित रहती है. चारे को थैलों में भरने से पहले लगभग 3 सेंटीमीटर के छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है ताकि हरी पत्तियों से अधिकतम शर्करा बाहर आ कर किण्वन में सहायक हो सके. चारे की पट्टियों आदि पर कोई मिट्टी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे थैलों को बंद करने से पूर्व दबाया जाता है ताकि अंदर की सारी वायु बाहर निकल जाए. इस प्रकार हवा निकाल कर थैलों को ‘सील’ करके रख दिया जाता है ताकि इसमें लैक्टिक अम्ल पैदा होने से किण्वन क्रिया निरंतर चलती रहे. चारे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने के लिए अधिक समय तक प्रतीक्षा करना उचित नहीं है क्योंकि जीवाणु अथवा कवक नमी को आवश्यकता से अधिक घटाने हेतु सक्रिय हो सकते हैं. अतः घास काट कर यथाशीघ्र ‘साइलो-पिट्स’ या ‘प्लास्टिक’ थैलों में स्थानांतरित कर देनी चाहिए.
‘साइलेज’ के थैलों को चूहों आदि से बचा कर रखना चाहिए ताकि इनमें लैक्टिक अम्ल की मात्रा वांछित स्तर पर बनी रहे. प्लास्टिक थैलों की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए ताकि इनमें कोई सुराख या ‘लीकेज’ न हो सके. आमतौर पर साइलेज हेतु खाद के पुराने प्लास्टिक थैले उपयोग में लाए जाते हैं जिन्हें दो या तीन बार इस उद्देश्य हेतु उपयोग में ला सकते हैं. चारा फसल काटने के 24 घंटों के भीतर ही साइलेज प्रक्रिया संपन्न हो जानी चाहिए अन्यथा चारे की पोषण क्षमता में कमी आने लगती है. जिस चारे में शर्करा की मात्रा अधिक होती है वह बेहतर साइलेज बनाने में समर्थ होता है. शर्करा की मात्रा कम होने से चारा सड़ने लगता है तथा साइलेज बनाना असंभव हो जाता है. साइलेज बनने में लगभग तीन सप्ताह का समय लगता है.

साइलेज’ कैसी हो?

‘साइलेज’ का रंग आमतौर पर पीला होता है परन्तु चारे के सड़ने से इसका रंग भूरा भी हो सकता है जो ठीक नहीं है. इसमें लैक्टिक अम्ल की मात्रा 4-6% तक हो सकती है तथा पी.एच. 4 के आस-पास होती है जिसकी जांच पी.एच. पेपर की सहायता से की जा सकती है. साइलेज में फफूंद का होना अधिक शुष्क पदार्थों का परिचायक है जिससे इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है. यह फफूंद रुमेन में जा कर विषाक्त पदार्थों को जन्म देते हैं जिससे किण्वन एवं सामान्य पाचन क्रिया प्रभावित होती है. ‘साइलेज’ को फफूंद से यथासम्भव बचाना चाहिए तथा फफूंदयुक्त साइलेज पशुओं को नहीं खिलानी चाहिए क्योंकि यह स्वास्थ्य एवं उत्पादन की दृष्टि से हानिकारक होती है. यदि साइलेज का तापमान अधिक हो तो यह ऑक्सीजन की उपस्थिति दर्शाता है. यदि इसमें से ‘सिरके’ जैसी महक आए तो यह उच्च एसिटिक अम्ल की मात्रा इंगित करता है. इसका स्वाद सामान्यतः खट्टा होता है, कड़वी साइलेज’ पशुओं को खिलने के लिए उपयुक्त नहीं है. आजकल 10 मेगा-जूल प्रतिकिलोग्राम शुष्क पदार्थ अथवा इससे अधिक ऊर्जा से भरपूर साइलेज बनाना सम्भव है, क्योंकि साइलेज में संपूरक मिलाने से इसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है. अच्छी साइलेज की गुणवत्ता इसकी उपचय ऊर्जा अर्थात पाचकता पर निर्भर करती है. यदि साइलेज की पाचकता अधिक हो तो पशुओं के दुग्ध-उत्पादन में भी वृद्धि होती है.

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साइलेज कैसे खिलाएं?

पशुओं को ताज़ी ‘साइलेज’ ही खाने हेतु देनी चाहिए. बची-खुची साइलेज को ‘फीडर’ से हटा कर साफ़ कर देना चाहिए. इसकी खाद्य मात्रा पशुओं की शारीरिक आवश्यकता एवं उत्पादन क्षमता पर निर्भर करती है. ‘साइलेज’ में सकल पचनीय पोषक तत्त्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है तथा इसे ‘हे’ या भूसे के साथ खिलाया जा सकता है. एक औसत पशु जिसका भार लगभग 550 किलोग्राम हो, वह प्रतिदिन 25 किलोग्राम तक साइलेज खा सकता है जबकि एक भेड़ या बकरी लगभग 5 किलोग्राम साइलेज आसानी से खा सकती है. पशुओं को इसके स्वाद की आदत लगने में कुछ समय लग सकता है. कुछ पशु आरम्भ में कम साइलेज खाते हैं तथा बाद में इसे सामान्य मात्रा में ग्रहण करने लगते हैं. यदि एक किलोग्राम में शुष्क पदार्थ के आधार पर 200 ग्राम स्टार्च हो तो वह अच्छी गुणवत्ता की ‘साइलेज’ मानी जाती है. अनुसन्धान द्वारा ज्ञात हुआ है कि मक्के एवं घास से तैयार साइलेज को बराबर मात्रा में मिला कर गायों को खिलाने से अधिक दुग्ध-उत्पादन प्राप्त होता है. घास से तैयार साइलेज की तुलना में फलीदार पौधों की साइलेज खिलाने पर आहार ग्राह्यता एवं दुग्ध-उत्पादन बढ़ जाता है. इस प्रकार उत्पादित दूध में पोली-अनसेचुरेटिड अथवा असंतृप्त वसीय अम्लों की मात्रा भी अधिक होती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं.

साइलेज

 

हरे चारे को हवा की अनुपस्थिति में गड्ढे के अन्दर रसदार परिरक्षित अवस्था में रखनें से चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है जो हरे चारे का पीएच कम कर देता है तथा हरे चारे को सुरक्षित रखता है। इस सुरक्षित हरे चारे को साईलेज (Silage) कहते हैं.
अधिकतर किसान भूसा या पुआल का उपयोग करते हैं जो साईलेज की तुलना में बहुत घटिया होते हैं क्योंकि भूसा या पुआल मे से प्रोटीन, खनिज तत्व एवं उर्जा की उपलब्धता कम होती है.

साईलेज बनाने के लिए फसलों का चुनाव:

दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि साईलेज बनाने के लिए उतम फसले हैं क्योंकि इनमेंकार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधधिक होती है. कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से दबे चारे में किण्वन क्रिया तीव्र होती है. दलहनीय फसलों का साइलेज अच्छा नहीं रहता परन्तु दलहनीय फसलों को दाने वाली फसलों के साथ मिलाकर साईलेज बनाया जा सकता है. अन्यथा शशीरा या गुड़ के घोल का उपयोग किया जाए जिससे लैक्टिक अम्ल की मात्रा बढाई जा सकती है.

साईलेज बनाने के लिए फसल की कटाई की अवस्था :

दाने वाली फसलों जैसे मक्का, ज्वार, जई आदि को साईलेज बनाने के लिए जब दाने दूधि्या अवस्था हो तो काटना चाहिए, इस समय चारे में 65-70 प्रतिशत पानी रहता है। अगर पानी की मात्रा अधिक है तो चारे को थोडा सुखाा लेना चाहिए.

साईलेज के गड्ढों के लिए जगह का चुनाव:

साईलेज बनाने के लिए गड्ढो के लिए जगह का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है

  • गड्ढे हमेशा उॅंचे स्थान पर बनाने चाहिए जहां से वर्षाा के पानी का निकास अच्छी तरह हो सके.
  • भूमि में पानी का स्तर नीचे हो.
  • साईलेज बनाने का स्थान पशुशााला के नजदीक हो.

गड्ढे बनाना

साईलेज बनाने के लिए गड्ढे कई प्रकार के होते हैं। गॉंवों में साईलेज बनाने के लिए खत्तियॉं काफी सुविधाजनक और उपयोगी होती है। गड्ढो का आकार उपलब्ध चारे व पशुओं की संख्या पर निर्भर करता है। गड्ढों के धरातल में ईंटों से तथा चारों और सीमेंट एवं ईंटो से भली भांति भराई कर देनी चाहिए जहॉं ऐसा सम्भव न हो सके वहॉं पर चारों और तथा धरातल की गीली मिटटी से खुब लिपाई कर देनी चाहिए। और इनके साथ सूखे चारा की एक तह लगा देनी चाहिए या चारों और दीवारों के साथ पोलीथीन लगा दें.

गड्ढो को भरना तथा बन्द करना:

जिस चारे का साईलेज बनाना है उसे काट कर थोडी देर के लिए खेत में सुखाने के लिए छोड देना चाहिए। जब चारे में नमी 70 प्रतिशत के लगभग रह जाये उसे कुट्टी काटने वाली मशीन से छोटे-छोटे टुकडों में काट कर गड्ढों में अच्छी तरह दबाकर भर देना चाहिए। छोटे गड्ढों को आदमी पैरो से दबा सकते हैं जबकि बडे गड्ढे ट्रैक्टर चलाकर दबा देने चाहिए। जब तक जमीन की तह से लगभग एक मीटर उचॉं ढेर न लग जाये भराई करते रहना चाहिए। भराई के बाद उपर से गुम्बदाकार बना दें और पोलिथीन या सूखे घास से ढक कर मिट्टी अच्छी तरह दबा दें और उपर से लिपाई कर दें ताकि इस में बाहर से पानी तथा वायु आदि न जा सके।

गड्ढों का खोलना:

गड्ढे भरने के तीन महीने बाद गड्ढों को खोलना चाहिए। खोलते समय ध्यान रखें कि साईलेज एक तरफ से परतों में निकाला जाए और गडढे का कुछ हिस्सा ही खोला जाए तथा बाद में उसे ढक दें। गडढा खोलने के बाद साईलेज को जितना जल्दी हो सके पशुओं को खिलाकर समाप्त करना चाहिए। गड्ढे के उपरी भागों और दीवारों के पास में कुछ फफूंदी लग जाती है। यह ध्यान में रखें कि ऐसा साईलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।

पशुओं को साईलेज खिलाना:

सभी प्रकार के पशुओं को साईलेज खिलाया जा सकता है। एक भाग सूखा चारा, एक भाग साईलेज मिलाकर खिलाना चाहिए यदि हरे चारे की कमी हो तो साईलेज की मात्रा ज्यादा की जा सकती है। साईलेज बनाने के 30-35 दिन बाद साईलेज खिलाया जा सकता है। एक सामान्य पशु को 20-25 किलोग्राम साईलेज प्रतिदिन खिलाया जा सकता है। दुधारू पशुओं को साईलेज दूध निकालने के बाद खिलायें ताकि दूध में साईलेज की गन्ध न आ सके। यह देखा गया है कि बढिया साईलेज में 85-90 प्रतिशत हरे चारे के बराबर पोषक तत्व होते हैं। इसलिए चारे की कमी के समय साईलेज खिलाकर पशुओं को दूध उत्पादन बढाया जा सकता है।

साइलेज बनाने के बाद की सावधानियाँ:-

  • अच्छी तरह से बना हुआ साइलेज का रंग हल्का भूरा और गोल्डन होता है।
  • अच्छे साइलेज मे एक विशेष प्रकार की खुशबु आती है।
  • साइलेज पशुओं को पचाने मे और खाने मे आसानी होती है।
  • गड्डे का मुँह खोलने के बाद साइलेज को लगातार पशुओं को खिलाना चाहिए।
  • फफूंद लगा हुआ साइलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए।
  • अच्छे साइलेज मे कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की मात्रा होती है जो दूध का उत्पादन बढ़ती है।

 

साइलेज बनाने के लिए कुछ आवश्यक बातें

 

  1. जिनफसलोंमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक हो, जैसे – ज्वार, मक्का व जई, उनसे उत्तम किस्म की साइलेज बनाई जा सकती है।

 

  1. जिनफसलों से साइलेज बनानाहो उनमें शुष्क पदार्थ 30-40% से अधिक नहीं होना चाहिए।

 

  1. साइलोमें चारा अच्छी प्रकार से दबाया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि चारे की कुट्टी काट ली जाए।

 

  1. मिट्टी मेंसाइलोकी दीवारों व फर्श पर पुआल या सूखे भूसे की पर्त बिछा देनी चाहिए।

 

  1. साइलोमें चारा भरने में कम से कम समय लगाना चाहिए।

 

  1. साइलो भरते समय कटे हुएचारेको पूरे क्षेत्र में पतली व एक समान पर्तों में फैलाकर अच्छी प्रकार से दबा-दबाकर भरना चाहिए जिससे हवा बाहर निकल आए।

 

  1. साइलोभूमि के धरातल से काफी ऊपर तक भरना चाहिए जिससे बाद में किण्वन क्रिया के बाद बैठने पर भी भूमि धरातल से ऊपर ही रहे।

 

  1. साइलोभरने के बाद उस पर भूसे की मोटी तह या पॉलीथीन की चादर बिछाकर ऊपर से 30 सेंमी. ऊपर से मिट्टी की मोटी परत डालकर फिर इसके ऊपर लीप देते हैं।

 

  1. साइलोमें कहीं भी छेद नहीं होना चाहिए जिससे वर्षा का पानी अंदर न जा सके।

 

  1. फसलोंको साइलेज बनाने के लिए फूल आने की अवस्था में ही काट लेना चाहिए।

 

  1. साइलेजबनाने वाले चारे के तने काफी ठोस होने चाहिए।

 

साइलेज बनाने के लिए उपयोगी फसलें

साइलेज बनाने के लिए चारों वाली फसलों की आवश्यकता होती है। साइलेज बनाने वाले चारे में काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पथा नमी होना आवश्यक है। हमारे यहां मक्का एवं ज्वार साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम चारे हैं। फलीदार फसलों से भी साइलेज बनाई जाती है। परन्तु इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है, अतः ऊपर से शीरा अथवा खनिज ( Mineral acid ) अम्ल छिड़कना पड़ता है।

 

कार्बोहाइड्रेट की कमी पूरा करने से, फलीदार फसलों से भी अच्छी किस्म की साइलेज बन जाती है। इसके अतिरिक्त बाजरा, लोबिया, पुआल, लूसर्न, बरसीम, जई, घास-पात, अगौले इत्यादि हरे चारे से भी साइलेज बनाई जाती है। साइलेज बनाने के लिए फसलों को फूल आते समय ही काट लेना चाहिए क्योंकि इस समय इनमें पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं।

 

सुबह ओस छूटने के बाद चारे को काटकर, दोपहर तक के लिये खेत पर फैलाकर छोड़ देते हैं, जिससे कि कुछ नमी इसमें से सूख जाती है। दोपहर के बाद इस चारे के बण्डल बांधकर एक क्रम से लगा लिए जाते हैं।

साइलेज बनाने की विधियां अथवा साइलेज बनाने की निर्माण विधि

साइलेज गड्ढों में बनाया जाता है उन्हें साइलो कहते हैं। जमीन के नीचे बनाए गये साइलो अच्छे रहते हैं और आसानी से बन जाते हैं। जमीन के नीचे साइलो को गोल बनाऐं  तो अच्छा रहेगा।

 

  1. साइलेजबनाने के लिए एक अच्छा व सूखा स्थान छाँट ले जो पशुशाला के पास हो, लेकिन यह स्थान पशुशाला के ज्यादा पास भी न हो नहीं तो साइलेज की बदबू दूध में आ जाएगी।

 

  1. शुरू में जमीन के तल में कुछघासफूंस बिछा दें और कुछ आसपास लगा दें। जिससे चारे में मिट्टी नहीं लगेगी।

 

  1. एक गोल गड्ढा खोदें जो 8 फुट से ज्यादा गहरा न हो, उसका घेरा इस पर निर्भर करता है कि आप कितनासाइलेजबनाते हैं।

 

  1. गड्ढे में रखने से पहलेचारेकी कुटी बना ले।

 

  1. कुटी को परतों में एक के ऊपर एक करके बिछाते जाएं। हर परत को खूँदकर अच्छी तरह दबा दें ताकि बीच में हवा न रहे। उसे तब तक भरें जब तक गड्ढे के मुंह से दो-तीन फुट ऊंची पढ़ते न चली जाए।

 

  1. ढेर को भूसे से ढक दें और बाद में मिट्टी पोत दें।

 

  1. चाराजैसे-जैसे बैठता जाएगा परतों में दरार पड़ती जाएगी, इन दरारों को मिट्टी से बंद करते जाएं।

 

  1. अगरचारागड्ढा के मुंह के नीचे तक बैठ जाए तो गड्ढे के मुंह से कुछ ऊंचाई तक मिट्टी भर देनी चाहिए तथा इसे पलस्तर करके ढक दें।

 

  1. साइलेज3 महीने में मवेशियों को खिलाने लायक तैयार हो जाता है तो उसके बाद गड्ढे को कभी भी खोल सकते हैं।

 

  1. अपने मवेशियों को खिलाने के लिए आपको जितनेसाइलेजकी जरूरत पड़े उतना ही गड्ढे में से बाहर निकाले।

 

  1. अगरसाइलेजअच्छा तैयार हुआ है तो उसका रंग चमकदार हरा होगा। अगर साइलेज बिगड़ गया होगा तो उसका रंग भूरा और मटमैला हो जाएगा। अच्छा बना साइलेज प्रति घन फुट 15 से 18 किलो तक वजन का होगा।

 

साइलो Silo किसे कहते हैं

जिन गड्ढों, नालियों अथवा बुर्ज में हरा चारा दबाकर भरा जाता है उन्हें साइलो Silo कहते हैं।

 

साइलो Silo निम्न प्रकार के होते हैं –

 

  1. साइलो बुर्ज ( silo tower ) – इसे जमीन के ऊपर बनाते हैं।

 

 

  1. साइलो खाई ( silo trench ) – इसे भूमि के नीचे बनाते हैं।

 

 

  1. साइलो गड्ढे ( silo pits ) – इसको गोल या चौकोर गड्ढों में बनाया जाता है।

 

  1. साइलो बुर्ज ( silo tower ) – इसमें जमीन के ऊपर बुर्ज लकड़ी, ईट, सीमेन्ट की बनाई जाती है। इसका आकार पशुओं की संख्या के ऊपर निर्भर करता है। इसको बनाते समय यह विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए कि इसमें हवा अन्दर न जाए, क्योंकि इसमें जगह-जगह दरवाजे बनाए जाते हैं तथा ऊपर से छप्पर डाल दिया जाता है। जिन स्थानों पर पानी कम गहराई पर होता है, वहां परबुर्जका ही प्रयोग करना चाहिए।
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  1. साइलो खाई ( silo trench ) – यह जमीन के अंदर बनाई जाती है। इसकी लंबाई, चौड़ाई व गहराई पशुओं की संख्या के आधार पर निर्भर होती है। इसकी गहराई पानी के तल पर निर्भर करती है। इसमें एक सिरे से दूसरे सिरे तक ढाल भी दी जाती है।

 

  1. साइलो गड्ढे ( silo pits ) – साइलोबनाने के कई तरीके हैं, किन्तु पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों और लघु किसानों के लिए इसे गड्ढे के रूप में तैयार करना सबसे उपयुक्त है। 2.44 मी. ( 8 फुट ) व्यास के 3.66 मी. ( 12 फुट ) गहरे गड्ढे से चार डेरी पशुओं के लिए 3 माह का संरक्षितचारा मिल जाता है। गड्ढे की दीवारें धरातल से थोड़ी ऊपर उठी होनी चाहिए जिससे कि वर्षा का जल गड्ढे में प्रवेश न कर सके। इसके नजदीक पशुशाला भी हो तो पशुपालक को लाभकारी होगा।

 

साइलेज बनाने वाले गड्ढों में निम्नलिखित गुण वांछनीय है –

 

  1. गड्ढे की दीवारें हर तरफ से हवा बंद होनी चाहिए, जिससे कि चारे में हवा न पहुंचकरसाइलेजको नष्ट न कर पाए।

 

  1. दीवारें लम्बवत् तथा चिकनी होनी चाहिए।

 

  1. दीवारें काफी सुदृढ़ होनी चाहिए, ताकि वे किण्वन ( Fermentation ) के समय पैदा हुए दबाव को भली-भांति सहन कर सकें।

 

  1. गड्ढे की ऊंचाई उसके व्यास से दुगुनी होनी चाहिए, जिससेसाइलेजके ऊपर से हवा निकलने के लिए काफी दबाव पड सकें।

 

गड्ढे को भरना Filling of silo pit

गड्ढे को चारे से भरते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि चारा खूब दबा दबाकर भरा जाए, जिससे गड्ढे में हवा न रहने पाए। अतः जो चारा भरना हो उसको गड्ढे में सतह में लगाकर पैरों से खूब दबाते जाते हैं। इस प्रकार चारे की सतह लगाकर तथा खूब दबाकर कई बार में गड्ढे को पूरा भर लेते हैं। जब काफी मात्रा में चारा काटकर साइलेज बनाना होता है, तो कुट्टी काटने वाली मशीन को गड्ढे के ऊपर एक किनारे पर लगा देते हैं ताकि चारा कट-कट कर स्वयं ही गड्ढे में गिर जाए।

 

ऐसे गड्ढे एक दिन में नहीं भरे जा सकते, बल्कि इनको भरने में कई दिन लग जाते हैं। नित्य भरे हुए चारे की सतह को तिरपाल से ढक देते हैं, ताकि यह सूख न जाए। ऐसे गड्ढे को विशेषकर धूप तथा वर्षा से बचाना पड़ता है। अतः गड्ढा भरते समय यदि मौसम खराब जान पड़े तो उस समय उस पर अस्थाई छप्पर या टीन डालकर छाया कर लेनी चाहिए। कभी-कभी वर्षा का पानी गड्ढा भरने में रुकावट डालता है, जैसा कि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देखा गया है। ऐसे समय में पानी से भीगा हुआ चारा भूसे की एक के बाद एक तह लगाकर भरते हैं, जब तक कि मौसम साफ न हो जाए।

 

गड्ढे का बहुत धीरे-धीरे बरना बहुत हानिकारक है। यदि गड्ढा शीघ्र भरा जाता है तो, चारा भली-भांति दब नहीं पाता और उसमें हवा रह जाती है, जो साइलेज को खराब कर देती है। गड्ढे को अधिक धीरे-धीरे भरने से चारा सूखने का भय रहता है, जिसके कारण अच्छी साइलेज नहीं बन पाती। गड्ढे को इतना भरना चाहिए कि उसमें दबने के बाद चारा पृथ्वी के धरातल से कम से कम 1/2 मीटर ऊंचा रहे।

 

अतः जब गड्ढा भर जाए तो उसके ऊपर 1 मीटर की ऊंचाई तक चारा भरकर ऊपर से घास-फूस या पुआल की तह बिछाकर, अंत में मिट्टी और पत्थरों से इसको ढक देते हैं। जब यह पूर्णतया दबकर नीचा हो जाता है, तो ऊपर से गीली मिट्टी और गोबर का लेप कर दिया जाता है, ताकि हवा अन्दर प्रवेश ना कर सके।

 

गड्ढे को खोलना 

लगभग 50 से 80 दिन गड्ढे में बंद रखने के पश्चात यह सारा अचार का रूप धारण कर लेता है, जो हरे चारे से बिल्कुल भिन्न होता है। इसी को साइलेज कहते हैं। जब साइलेज बनकर तैयार हो जाए तो इस गड्ढे से लगभग 5-10 सेंमी. नित्य निकालकर पशुओं को खिलाना चाहिए। पूरा गड्ढा न खोलकर, उससे एक किनारे से ही साइलेज निकालनी चाहिए। ऐसा न करने से गड्ढे की साइलेज के सड़ने-गलने का भय रहता है।

साइलेज का वर्गीकरण अथवा साइलेज की किस्में ( Classification of silage )

अ. अमेरिकन डेयरी एसोसियेशन द्वारा साइलेज का निम्न   प्रकार से वर्गीकरण किया गया है –

 

  1. बहुत अच्छी साइलेज ( very good silage ) –वहसाइलेज जिसमें स्पष्ट अम्ल की गंध तथा स्वाद हो । फफूंदी व ब्युटायरिक अम्ल बिल्कुल न हो, इसका पी.एच. 3.4 से 4.2 हो।

 

  1. अच्छी साइलेज ( good silage ) – अम्लत्व का स्वाद तथा महक मामूली पी.एच. 4.2 से 4.5, अमोनिया नाइट्रोजन 10 से 15% ।

 

  1. कुछ अच्छी साइलेज ( Fair silage ) –थोड़ा ब्युटायरिक अम्ल, पी.एच. 4.5 से 4.8, अमोनिया नाइट्रोजन 15 से 20% ।

 

  1. खराब साइलेज ( bad silage ) –अधिक ब्युटायरिक अम्ल के कारण बुरी महक ,पी. एच. 4.8 से अधिक तथा अमोनिया नाइट्रोजन 20% से ऊपर।

 

ब. स्वाद के आधार पर साइलेज का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया होता है –

 

  1. मीठी साइलेज –इसमें दुग्धाम्ल की मात्रा अधिक तथा ऐसिटिक अम्ल की मात्रा कम होती है ।

 

  1. अम्लीय साइलेज –इसमें ऐसीटिक अम्ल की मात्रा अधिक एवं दुग्धाम्ल की मात्रा कम होती है।

 

स. रंग के आधार पर साइलेज का वर्गीकरण निम्न प्रकार  से होता हैं –

 

  1. बादामी गहरी मीठी साइलेज ( sweet, dark, brown silage )

 

  1. अम्लीय कम बादामी रंग की साइलेज ( Acid, light silage or yellow brown silage )

 

  1. हरी साइलेज ( green silage )

 

  1. अधिक खट्टी साइलेज ( sour silage )

 

  1. फफूंदीयुक्त साइलेज ( musty silage )

 

  1. बादामी गहरी मीठी साइलेज ( sweet, dark, brown silage )

 

यदि चारे को गड्ढे में ठीक प्रकार से नहीं भरा जाता है तो उसमें उपस्थित वायु के कारण किण्वन होने पर तापक्रम अधिक बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप ऐसी साइलेज बन जाती है। इसमें ऑक्सीकरण होने के कारण आवश्यक तत्त्वों का ह्रास हो जाता है। इस प्रकार की साइलेज में प्रोटीन की पाचकता भी कम हो जाती है। अतः यह अच्छी साइलेज नहीं मानी जाती।

 

  1. अम्लीय कम बादामी रंग की साइलेज ( Acid, light silage or yellow brown silage )

 

यह उन कच्ची फसलों से तैयार होती है, जिनमें शुष्क पदार्थ की मात्रा 30% होती है। इसमें तापक्रम 100° फारेनहाइट से अधिक नहीं होने पाता। चूंकि पशु इसको बड़े चाव से खाते हैं, अतः यह सर्वोत्तम साइलेज मानी जाती है।

 

  1. हरी साइलेज ( green silage )

 

इस प्रकार की साइलेज बनाने में तापक्रम 90 डिग्री फारेनहाइट से अधिक नहीं होना चाहिए। इनमें कैरोटीन की मात्रा भी काफी होती है। चूंकि तापक्रम कम रखा जाता है, अतः आवश्यक तत्व भी अधिक नष्ट नहीं हो पाते। इसमें पशुओं को लुभाने वाली महक आती है, जिससे पशु इसे खूब चाव से खाते हैं।

 

  1. अधिक खट्टी साइलेज ( sour silage )

 

जब अधपकी हरी फसलें साइलेज बनाने के लिए प्रयुक्त होती हैं, तो वे गड्ढे की तली में दबकर बैठ जाती हैं तथा बहुत कम हवा अपने में शोषित कर पाती हैं। अतः किण्वन भली-भांति न होकर तापक्रम भी कम रह जाता है। इस प्रकार बनी हुई साइलेज अधूरी रह जाती है और खाने में इसका स्वाद खट्टा होता है।

 

  1. फफूंदीयुक्त साइलेज ( musty silage )

 

इस तरह का साइलेज साइलो की सबसे ऊपरी सतह पर साधारणतया पाया जाता है, जब साइलेज को अच्छी तरह से नहीं दबाया जाता है तो अधिक हवा के कारण साधारण किण्वन नहीं हो पाता है और फफूंदी वाला हो जाता है तथा इसमें एक प्रकार की अमोनिया की गंध उत्पन्न हो जाती है, जिससे पशुओं के लिए इस प्रकार का चारा अस्वादिष्ट हो जाता है।

 

भारत में साइलेज के कम प्रचलन के कारण

  1. अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में किसानसाइलेजका नाम तक नहीं जानते हैं तो साइलेज बनाएंगे क्या।

 

  1. जो किसानसाइलेजके बारे में जानते हैं तो वे किसान सीमित साधनों के कारण साइलेज नहीं बना पाते हैं।

 

  1. किसान अशिक्षित होते हैं, अतः उन्हेंसाइलेजबनाने का ज्ञान नहीं है।

 

  1. किसानचारेको खराब होने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है।

 

  1. मौसम की आवश्यकता के कारण भी किसानसाइलेजनहीं बनाता है।

 

  1. हमारे देश में हरे चारों की उपलब्धता भी सीमित मात्रा में ही होती है।

 

  1. किसानों को अभी तक पशुओं कोसाइलेजखिलाने की आदत नहीं बन पायी है।

 

  1. साइलेजके प्रयोग के प्रकार के लिए पशुपालन विभाग के प्रयास नगण्य रहे हैं।

 

 

साइलेज बनाने से लाभ Advantages of silage

 

  1. हरे चारेके अभाव में साइलेज से कमी पूरी की जा सकती है तथा खर्चा भी कम होता है।

 

  1. वर्षा ऋतु में जबहे “बनाना कठिन होता है, तो साइलेज आसानी से बनाई जा सकती है।

 

  1. साइलेज सूखे चारोंकी अपेक्षा कम स्थान घेरती है। इस प्रकार डेरी फार्म पर स्थान की अधिक बचत होती है।

 

  1. साइलेजपौस्टिक अवस्था में अधिक समय तक रखा जा सकता है। यह जाड़े के दिनों में तथा चारागाहों के अभाव में पशुओं को खिलाया जा सकता है।

 

  1. साइलेजकी फसल के साथ-साथ खरपतवारों को भी नियंत्रण किया जा सकता है।

 

  1. साइलेजके लिए फसल को फूल आने से पहले काट लेने के कारण अगली फसल की तैयारी के लिए समय मिल जाता है।

 

  1. फसलपकने से पहले काट लेने से उसमें लगने वाले रोग व कीड़ों से सुरक्षा हो जाती है।

 

  1. साइलेजपशुओं को सालभर खिलाया जा सकता है।

 

  1. फसलके सड़ने व गलने तथा आग लगने का डर नहीं रहता।

 

  1. साइलेजअन्य चारों की अपेक्षा अधिक पाचक और पौष्टिक होने के कारण पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाता है। इसके साथ ही पशुओं को स्वस्थ भी रखता है।

 

साइलेज बनाने से हानियां Disadvantages from silage

 

  1. साइलेजबनाने के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।

 

  1. साइलेजखराब हो जाने से धन और श्रम की हानि होती है।

 

  1. इसमें विटामिन डीहै “की अपेक्षा कम होती है।

 

  1. साइलेजबनाते समय उसमें कोई कमी आ जाने से उसमें दुर्गंध आने लगती है।

 

  1. साइलेजबनाने के लिए परिरक्षकों पर पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।

 

  1. साइलेजबनाने के लिए आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था करनी पडती है।

 

  1. साइलोपिट के लिए उपयुक्त स्थान की आवश्यकता होती है।

 

  1. साइलेजमें पानी की अधिकता रह जाने पर इसका भार अधिक हो जाता है।

 

साइलेज ( silage ) से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1. अच्छी साइलेज का pH मान कितना होना चाहिए?

उत्तर – अच्छी साइलेज का pH मान 3.5 – 4.2 होना चाहिए।

 

प्रश्न 2. साइलेज बनाते समय चारे में शुष्क पदार्थ की कितने प्रतिशत मात्रा होनी चाहिए?

उत्तर – साइलेज बनाते समय चारे में शुष्क पदार्थ की 40 प्रतिशत मात्रा होनी चाहिए।

 

प्रश्न 3. साइलेज में कितने प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाया जाता है?

उत्तर – साइलेज में 25 प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाया जाता है।

 

प्रश्न 4. साइलेज बनाने के लिए कौन सी फसल उत्तम होती है?

उत्तर – साइलेज बनाने के लिए ज्वार की फसल उत्तम होती है।

 

प्रश्न 5. साइलेज बुर्ज का व्यास कितने फीट का रखते हैं?

उत्तर – साइलेज बुर्ज का व्यास 8 – 10 फीट का रखते हैं।

 

प्रश्न 6. चारा कितने प्रकार का होता है?

उत्तर – चारा दो प्रकार का होता है :-

  • सूखा चारा
  • हरा चारा

उत्तम क्वालिटी का साइलेज बनाने की विधि से संबंधित विशेष जानकारी के लिए आप निम्नलिखित पुस्तकों को पीडीएफ में डाउनलोड कर सकते हैं

पशुओं को साईलेज खिलाना

 

पशुओं के लिए साइलेज कैसे बनाये

Text Fodder Production and Animal Nutrition

Leaflet Silage (1)

डॉ जितेंद्र सिंह
पशुचिकित्सा अधिकारी
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

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