आधुनिक भेड़ और बकरी पालन हेतु वैज्ञानिक परामर्श एवं सुझाव
भेड़ और बकरी उत्पादन में उत्पादन के लिए परामर्शी
(i) लघु अवधि में, उत्पादन बढ़ाने के लिए हानियों को रोकना ही कार्यनीति होनी चाहिए। बहुत सारे पशु रोग से मर जाते हैं और बहुत सारे पशु पैरासाईटिक संक्रमण के कारण अपना अपेक्षित विकास नहीं कर पाते हैं। एक बार दूध छुड़ाने के पश्चात, एक बार गर्भावस्था के अंतिम माह के दौरान तथा मीट की बिक्री से पहले सार्वभौमिक डी-वार्मिंग की कार्यनीति अपनाने से उत्पादन संबंधी हानियां काफी कम हो जाएगी। ऐसे अध्ययन उपलब्ध है जो यह दर्शाते हैं कि ऐसी पद्धतियों को अपनाने से वजन में आठवें माह में लगभग तीन किलों वृद्धि किए जाने की संभावना है। इसका अर्थ है कि दूध छुडाए गए बकरी और भेड़ के बच्चों के साथ-साथ गर्भवती माताओं को केवल एन्थेमेंटिक्स दिए जाने संबंधी कार्यक्रम को अपनाने के ही प्रति पशु डेढ़ किलो मीट के उत्पादन में वृद्धि होगी। ऐसी डी-वार्मिंग की लागत अनुमानतः प्रति पशु 40 रू. से भी कम होने की आशा है जबकि प्रत्याशित लाभ 500 रू. से भी अधिक होगा। प्रत्येक राज्य अपने निकट के एसएयू/आसीएआर संस्थानों की मदद से अपने संगत क्षेत्रों में “एक एकीकृत पैरासाईटिक संक्रमण कार्यक्रम” विकसित करें। पशुओं में बेतरतीब/विवेकशून्य डी-वार्मिंग को बढ़ावा न दिया जाए तथा एंथेलमेंटिक्स को विवेकपूर्ण प्रयोग को अपनाया जाए, जिसमें नियमित आवर्तन के साथ-साथ एंथेलमेंटिक्स की बिक्री पर नियंत्रण भी शामिल हो। इसे विशेषकर पीपीआर, एचएस तथा एंटेरोटाक्जिमिया, एफएमडी, भेड़ चेचक इत्यादि से संबंधित टीकाकरण कार्यक्रमों के द्वारा सुदृढ़ किया जाना होगा। इनकी लागत अनुमानतः प्रति पशु 25 रू. से अधिक नहीं होगी (अनुबंध-I)। केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविका नगर, टोंक, राजस्थान (अनुबंध-II)/केन्द्रीय बकरी संबंधी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, मथुरा, उत्तर प्रदेश (अनुबंध-III) द्वारा अपनाई गई माडल स्वास्थ्य अनुसूची को अपेक्षित आशोधनों के साथ पश्चात् राज्य द्वारा अपनाया जा सकता है।
(ii) जुगाली करने वाले छोटे पशुओं की चराई संबंधी संसाधन लगातार कम होते जा रहे है। अतः सम्पूर्ण आहार ब्लॉको की आपूर्ति संबंधी व्यवस्था से ईष्टतम उत्पादन विशेषकर सूखे जैसी पौषणिक कमी की अवधियों के दौरान अपेक्षित पौषणिक आदान संपूरित होंगे। अनुसंधान संगठनों के पास उपलब्ध खनिज मैपिंग दस्तावेजों के अनुसार जिस विशिष्ट क्षेत्र में जिस ट्रेस तत्व की कमी है उससे आहार ब्लॉकों को और संपूरित किया जा सकता है। पंचायतों को इसमें शामिल करना लाभप्रद रहेगा तथा कच्ची सामग्री खरीदने के लिए निधियां मनरेगा से लिया जाना भी लाभप्रद रहेगा जिससे नियमित तरीके से संपूर्ण आहार ब्लॉकों का उत्पादन और वितरण सरल बनाया जा सकेगा।
(iii) इस विभाग द्वारा जुलाई, 2012 में एक परामर्शी पहले ही जारी की जा चुकी है, जिसमें देश के विभिन्न पारिस्थितिकी-कृषि क्षेत्रों के लिए उपयुक्त झाड़ियों और वृक्षों की सूची दी गई है। जुगाली करने वाले छोटे पशुओं के लिए चराई संबंधी संसाधनों को बढ़ाने के लिए इसे भूमि उपयोग का एक अभिन्न हिस्सा बनाया जाए (अनुबंध-IV)।
(iv) भेड़ और बकरी के बच्चों की उत्तरजिवीता को अच्छे प्रजनन पूर्व प्रबंधन कार्यक्रम को अपनाकर, गर्भावस्था के उत्तरार्द्ध में भेड़/हिरणियों के पौषणिक तथा स्वास्थ्य स्थिति पर निकटता से ध्यान देकर, आवासन सुविधाओं को साफ तथा हवादार रखकर, भेड़/बकरियों के बच्चों द्वारा पर्याप्त मात्रा में कोलेस्ट्रम लेकर तथा ऐसी भेड़/बकरियों का चयन करके जिनमें प्रजनन आसान हो, अच्छी माताएं, अच्छा दूध हो तथा जन्म के समय तंदरूस्त हो, प्राप्त किया जा सकता है।
(v) मेढ़ा/हिरण “अपने झुंड का आधा हिस्सा” होता है उसकी आनुवंशिकी भेड़/हिरण से कहीं अधिक संततियों में फैली हुई होगी। अन्तः प्रजनन से बचने के लिए उपयुक्त आदान-प्रदान कार्यक्रम/प्रजनन नीति के माध्यम से किसानों में हिरण/मेढ़ों का आदान-प्रदान अपनाया जाए।
(vi) प्रजनन के लिए दूध छुड़ाए जाने के पश्चात अधिकतम विकास दर वाले मेढ़ों/हिरणों को चुना जाए। जिन मेढ़ों/हिरणों में कोई पैदाईशी असामान्यताएं अथवा कोई अन्य टेस्टिस् संबंधी असामान्यताएं हो तो उन्हें मार दिया जाए।
(vii) भेढ़ और बकरियां सूखी सामग्री के मुकाबले चार गुना पानी पीती हैं परन्तु दूध पिलाने वाली बकरियों को प्रति लीटर उत्पादित दूध के हिसाब से 1.3 लीटर अतिरिक्त पानी दिया जाए। पशुओं को पर्याप्त स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
(viii) एक बाहरी पैरासाइटिक मुक्त पालन से संक्रमण में कमी आएगी तथा उत्पादन में वृद्धि होगी। अतः पैरासाइटिक के नियंत्रण के लिए उपयुक्त चारागाह/चराई प्रबंधन लाभकारी हो सकता है।
(ix) केंद्र सरकार/आईसीएआर के निम्नलिखित संस्थान किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक भेड़/बकरी प्रबंधन पद्धतियों संबंधी प्रशिक्षण देते हैं जिनका उपयोग किसानों के साथ-साथ तकनीकी स्टॉफ द्वारा किया जा सकता हैः
- केन्द्रीय भेड़ प्रजनन फार्म, पोस्ट बाक्स सं. 10, हिसार, पिन- 125001, हरियाणा। दूरभाषः +91-1662-264329, फैक्स: +91-1662-264263।
- केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविका नगर, तहसील-मलपुरा, जिला टोंक, राजस्थान पिन-304501। दूरभाष:+91-1437-220162, फैक्स: +91-1427-220163।
- केन्द्रीय बकरी संबंधी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, मथुरा, उत्तर प्रदेश, पिन-281122। दूरभाष: +91-565-2763380, फैक्स: +91-565-2763246।
केन्द्रीय भेड़ प्रजनन फार्म, हिसार, हरियाणा द्वारा अपनाया गया वार्षिक स्वास्थ्य कैलेण्डर (भेड़ और बकरी) | ||||||||
1 | टीकाकरण | |||||||
क). | भेड़ चेचक टीका | जीवित तनुकृत | दिसम्बर/ | सभी नस्लें | ||||
लागत प्रति खुराक 1.00 रू. | जनवरी | चार माह पर | ||||||
वार्षिक रूप से | ||||||||
ख). | बकरी चेचक टीका | जीवित तनुकृत | अक्टुबर / | सभी बकरियां | ||||
लागत प्रति खुराक 2.00 रू. | नवम्बर | चार माह पर | ||||||
वार्षिक रूप से | ||||||||
ग). | बहु घटक क्लासट्रीडियल टीका | निष्क्रिय | अगस्त/अक्टूबर | पूरा स्टॉक, (भेड़ और बकरी के) नवजात बच्चे | ||||
1. एक माह पर और बूस्टर खुराक 21 दिन के पश्चात | ||||||||
लागत प्रति खुराक 1.97 रू. | ||||||||
2. 9 माह पश्चात दोबारा | ||||||||
घ) | बायोवैक (एफएमडी+एचएस) | तेल में डाले जाने वाले | अक्टूबर/जून | भेड़ और बकरी | ||||
1. तीन माह पर | ||||||||
लागत प्रति खुराक 5.21 रू. | 2. 9 माह पश्चात दोबारा | |||||||
ङ) | तैयार | फरवरी/मार्च | भेड़ और बकरी के बच्चे | |||||
संक्रामक एस्थिमा टीका (फार्म उत्पाद) | 1. दो माह पर | |||||||
च) | पीपीआर | जीवित तनुकृत | अक्टूबर / | सभी भेड़ और बकरी | ||||
लागत प्रति खुराक 1.00 रू. | नवम्बर | 1. छः माह पर और तीन वर्ष पश्चात दोबारा | ||||||
छ) | रीवरीन 1
बीआर.मेलिटेंसिस |
जीवित तनुकृत | प्रजनन से पहले | सभी भेड़ और बकरी | ||||
1तीन से छः माह पर और बूस्टर खुराक की आवश्यकता नहीं है। | ||||||||
लागत प्रति खुराक 46.00 रू. | ||||||||
2. | डीवार्मिंग | |||||||
क). | ब्राड स्पेक्ट्रम | इवरमैक्टन/क्लोजेंटाल/आलबेडाजोल | महीनों/दवाईयों के प्रत्येक दो आवर्तनों पर | |||||
एंथेलमेंटिक | ||||||||
ख). | नैरो स्पेक्ट्रम | पारकिंजेटाल | अप्रैल/मई | भेड़ और बकरी के सभी बच्चे तथा दूध पिलाने वाली भेड़ और बकरी | ||||
एंथेलमेंटिक | ||||||||
1. दो माह पर और चार से छः माह पर दोबारा | ||||||||
ग). | एंटीकोसिडियल
उपचार |
सल्फामेथाजिन+ट्राईमेथोप्रिम | जून/जुलाई | नवजात पशुओं तथा डायरिया के समय | ||||
1. दो से तीन माह पर आहार के साथ मिलाकर | ||||||||
3) | एक्टोपैरासाईटिक इंफेसटेशन | |||||||
क). | डिपिंग | एक्टोमिन/बुटोक्स | सितम्बर/अक्टूबर/मार्च/अप्रैल | बाल उतारने के पश्चात | ||||
. | ||||||||
4) | भेड़/बकरी के बच्चे की देखभाल | |||||||
क). | जन्म के तुरन्त पश्चात पोविडीन/बीटाडीन से नाभि की मरहम पट्टी | |||||||
ख) | संपूर्ण नवजात स्टॉक को पहला दूध पिलाना | |||||||
ग). | मौसम बदलने के दौरान एंटीबायोटिक उपचार | |||||||
5) | इम्यूनोस्टिम्यूलेंट | इन.लेमासाल | टीके के साथ (वर्ष में दो बार) | |||||
अनुबंध-II
केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविक नगर,टोक, राजस्थान द्वारा अपनाई गई मॉडल स्वास्थ्य अनुसूची
अनुबंध-III
केन्द्रीय बकरी संबंधी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, मथुरा, उत्तर प्रदेश द्वारा अपनाया गया वार्षिक बकरी स्वास्थ्य कैलेण्डर
(बकरी संबंधी महत्वपूर्ण रोगों के निवारण और प्रबंधन के लिए) क. टीकाकरण:
रोग | प्राथमिक टीकाकरण | दोबारा टीकाकरण | ||
पहला इंजेक्शन | बूस्टर इंजेक्शन | |||
1. | पेस्टे डेस पेस्टिस | तीन माह की आयु पर | आवश्यकता नहीं | प्रत्येक 3 वर्ष पर |
रूमिनेंट्स (पीपीआर) | ||||
2. | खुरपका और मुहपकारोग (एफएमडी) | तीन से चार माह की आयु पर | पहले इंजेक्शन के 3-4 सप्ताह पश्चात् | प्रत्येक 6/12 माह के अन्तराल पर* |
3. | बकरी चेचक (जीपी) ** | तीन से चार माह की आयु पर | पहले इंजेक्शन के 3-4 सप्ताह पश्चात् | प्रत्येक 12 माह के अन्तराल पर * |
4. | एंटेरोटाक्जेमिया | तीन से चार माह की आयु पर | पहले इंजेक्शन के 3-4 सप्ताह पश्चात् | प्रत्येक 6/12 माह के अन्तराल पर * |
(ईटी) | ||||
5. | हेमेरोजिक सेक्टिसिमिया | पहले इंजेक्शन के 3-4 सप्ताह पश्चात् (दूसरी खुराक एक माह के अन्तराल पर) | प्रत्येक 6/12 माह के अन्तराल पर * | |
(एचएस) | तीन से चार माह की आयु पर |
*विर्निमाताओं की सिफारिशों पर
जन्म के पश्चात् कोलास्ट्रम के उपयुक्त अनुपान से बकरी के नवजात बच्चे तीन माह तक प्राकृतिक रूप से इस रोग से बचे रहते हैं.इस टीके के स्टतम लाभ के लिए टीका लगाने से 15 दिन पहले अपने पशुओं की डी-वार्मिंग करवाएं
**भेड़ के लिए- बकरी चेचक टीके के स्थान पर भेड़ चेचक टीका लगाएं
ख. ड्रेंचिंग, डीवार्मिंग तथा डिपिंग
रोग | आयु वर्ग | उपचार अवधि | आहार में मिश्रित किए जाने के लिए संस्तुत |
1. डेंचिंग | 1 – 6 माह | 5-7 दिनों के लिए एन्टीकेासिडियल औषधी | 50-100 मिलीग्राम/किग्रा शरीर भार की दर से एम्प्रोलियम |
कोसिडियोसिस | |||
2. डीवार्मिंग | 3 माह और इससे ऊपर | वार्षिक रूप से दो बार डीवार्मिंग | 7.5-10 मिलीग्राम/किग्रा शरीर भार की दर से फेनबैंडाजोन। |
एन्डोपेरासाइटिक संक्रमण | (मानसून के पहले और पश्चात्) | अत्यधिक पैरासाइटिक संक्रमण अथवा लम्बी वर्षा ऋतु के मामलों में अतिरिक्त डीवार्मिंग की आवश्यकता हो सकती है | |
3. डिपिंग*/ एक्टोपेरासाइटिक इन्फेसटेशन | कोई भी आयु | शीत ऋतु के पहले ओर पश्चात् | जब और जहां अपेक्षित हो |
दोबारा संक्रमण को रोकने क लिए शेड/मृदा की सघन मॉनीटरी आवश्यक है | |||
*डिपिंग के लिए ठण्डे, बादलों वाले तथा वर्षा के दिनों से बचें।
ग. जॉंच :
रोग | अवधि | सिफारिशें | |
1. | ब्रुसेलोसिस+ | वर्ष में एक बार | बीमारी ग्रस्त पशुओं को मारकर दबा दिए जाने की आवश्यकता है |
2. जॉने की बीमारी* | 6 माह/वर्ष में एक बार | बीमारी ग्रस्त पशुओ को पशुयूथ/झुण्ड में से हटाया जाना होगा | |
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3. | माइकोप्लासमोसिस | वर्ष में एक बार | विशिष्ट औषधियों द्वारा उपचार |
4. | मैसटिटिस | प्राथमिक दुग्ध स्तर | विशिष्ट औषधियों द्वारा उपचार |
5. | एण्डो पैरासाइटिस | मल के नमुनों की नियमित जांच | डीवार्मिंग के समय का निर्णय लेने के लिए पशुओं में कीड़ों की संख्या (ईपीजी/ओपीजी) को मॉनीटर करना |
+ वयस्क बकरियों विशेषकर प्रजनक हिरणों तथा प्रजनन योग्य मादाओं की जांच। गर्भपात किए गए पशुओं से सीरम के दो नमूने प्रस्तुत किए जाएं (शून्य दिवस अर्थात् गर्भपात/मरे हुए पशु के जन्म दिन तथा गर्भपात/मरे हुए पशु के जन्म के 21 दिन पश्चात्)
*बच्चे के जन्म के एक माह पश्चात्