डॉ. शशि प्रधान, डॉ. दीपिका डी. सीज़र, डॉ. ज्योत्सना शक्करपूड़े, डॉ. सुमन संत, डॉ. कविता रावत एवं डॉ. माधुरी धुरवे
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर
१- उचित तरीके से उपयोग करने पर टीके की कारगरता वैज्ञानिक रुप से सिद्ध होनी चाहिए।
२- वह टीका बाजार में उचित मात्रा एवं समान गुणवत्ता में उपलब्ध होना चाहिए।
३- सामान्य रख-रखाव एवं उपयोग में वह निष्क्रीय नहीं होना चाहिए।
४- टीकाकरण की कार्य प्रणाली सरल एवं सुगमता से किए जाने योग्य होनी चाहिए एवं इसमें उपयोग आने वाले उपकरण भी बाजार में सरलता से उपलब्ध होने चाहिए।
५- किसान पशुपालक को भी टीकाकरण की प्रक्रिया विधि की जानकारी होनी चाहिए।
६- मुर्गियों में ऐसी किसी भी प्रकार की बीमारी नही होनी चाहिए जो टीकाकरण से होने वाली शारीरिक प्रक्रिया में अवरोध पैदा करे।
७- टीकाकरण के समय टीके की मात्रा एवं टीके को दोहराने की प्रक्रिया का भी अवलोकन होना चाहिए। इन सभी का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए ताकि दूसरे प्रबंधन कार्यों के साथ सतप्रतिक्रिया को बढ़ावा मिले एवं दूसरे टीके के साथ मिलकर होने वाली दुष्प्रतिक्रिया की रोकथाम हो सके।
८- फार्म प्रबंधन में टीकाकरण की प्रतिक्रिया को मापने के उचित एवं संभावित तरीकों का समावेश होना चाहिए।
९- कीटाणु जीवाणु अत्यधिक चुनौती से होने वाले दुष्प्रभाव के द्वारा प्रतिरोधक क्षमता में क्षीणता के बचाव के लिए उचित जैन सुरक्षा नियमों को कार्यान्वित करना चाहिए।
१०- मुर्गी पालन के क्षेत्र में टीकाकरण, बीमारी से बचाव के लिए सामान्यत: प्रयोग में लाया जाता है। हालाकि यह पशुधन के भावी मालिकों के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर एक दिन के चूजों का टीकाकरण जो भविष्य में किसी और को बेचे जाने वाले है। इसे भावी संतति के लाभ के लिए भी उपयोग किया जाता है जैसे वंशवृद्धि के लिए प्रयोग में आने वाली मुर्गियों के टीकाकरण उनके चूजों में जीवन के पहले कुछ हफ्तों तक प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। ऐसी हर स्थिति में अनुरक्त पक्षों से सम्वाद कर उचित टीकाकरण का पालन करना चाहिए।
११- पोल्ट्री में टीकाकरण के विभिन्न तरीके हैं, जैसे- आंखो या नाक में बूंद से, इंजेक्शन या टीके से और पीने के पानी में मिलाकर।
१२- पानी के माध्यम से टीकाकरण सबसे आसान हो जाता है। क्योंकि इसके लिए किसी विशेष उपकरण की जरुरत नहीं होती है और काफी पक्षी कम समय में सुरक्षित हो जाते हैं। परंतु इस प्रणाली की काफी सीमाएं हैं। क्योंकि सफल टीकाकरण लगातार देखरेख पर निर्भर करता है। विशेषकर पक्षियों द्वारा पानी की मात्रा का पीना। ऐसे टीकाकरण में ध्यान रखें कि पानी के बर्तन साफ हों व पानी में कोई दवाई, खासकर जीवाणुनाशक दवा न डली हो।
१३- हमेशा स्वस्थ मुर्गियों का ही टीकाकरण करें। मुर्गियों की सही बढ़ोत्तरी के लिए समय पर टीकाकरण के साथ आहार का विशेष ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
१४- टीकाकरण के द्वारा मुर्गियों मे विषाणु जनित बीमारियों को रोका जाता है। विषाणु जनित बीमारी एक बार मुर्गियों मे आ गई तब मुर्गियाँ मरने लगती है, इसलिए विषाणु जनित बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण ही एक मात्र उपाय है।
१५- टीका खरीदते समय इसकी एक्सपायरी तिथि आवश्यक रूप से देख लेना चाहिए।