स्वस्थ पशु की पहचान एवं बीमार पशु की देखभाल
डॉ शरदेन्दु नारायण गिरि M.V.Sc. (पशुधन उत्पादन प्रबंधन) टीचिंग असोसिएट, दुवासु मथुरा
Author- Dr. Shardendu Narayan Giri, dr.shardendu007@gmail.com
अगर हमारा जानवर स्वस्थ होगा तो उससे प्राप्त होने वाले उत्पाद भी अच्छी गुणवत्ता के होंगे जिनसे पशुपालक अच्छा मुनाफा कमा सकते है एवं बीमारिओं में होने वाले अनावस्यक खर्च को बचाकर लाभकारी रूप से पशुपालन कर सकते है। पशु के अस्वस्थ होने के मुख्य कारण उनका गलत रखरखाव, असंतुलित आहार, परजीवीओ का प्रकोप एवं विभिन्न तरह के जीवाणुओं, विषाणुओ का संक्रमण आदि प्रमुख है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ ) परिभाषित करता है कि स्वास्थ्य “पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति है, न कि केवल बीमारी और दुर्बलता की अनुपस्थिति”। प्रत्येक जीव में कुछ पैरामीटर (भौतिक या शारीरिक हो सकते हैं) होते हैं जिनके आधार पर हम उस विशेष जीव की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में बता सकते हैं। भौतिक मापदंडों में आंख, कान, नाक, मुंह, शरीर की स्थिति, चाल और शारीरिक मापदंडों में नाड़ी, श्वसन, तापमान और रूमिनल मूवमेंट आदि शामिल हैं।
सामान्य स्वास्थ्य के लक्षण–
दिखावट– पशु को अपने आसपास के वातावरण के प्रति सदैव सजग, सर्तक और उत्तरदायी होना चाहिए।
आंखें– ये बिना किसी असामान्य निर्वहन/ डिस्चार्ज के उज्ज्वल और सतर्क होनी चाहिए।
कान– ये सीधे होने चाहिए, किसी भी ध्वनि स्रोत के प्रति उत्तरदायी होने चाहिए।
नाक– यह बिना किसी असामान्य डिस्चार्ज के साफ होनी चाहिए।
थूथन– सामान्य स्वस्थ जानवर में थूथन नम होता है।
मुँह– यह किसी भी घाव से मुक्त होना चाहिए और लार की दर सामान्य होनी चाहिए।
त्वचा और शरीर के बाल– त्वचा और बाल चिकने और चमकदार होते हैं
चाल– जानवर बिना किसी कठिनाई या दर्द के ठीक से चलता है और अपने चारों पैरों पर खड़ा होता है।
आहार व्यवहार और रूमिनल गतिविधि– पशु को अपनी पोषण संबंधी आवश्यकता के अनुसार सामान्य रूप से खाना और पीना चाहिए। जब चारा पेश किया जाता है तो पशु सक्रिय रूप से भोजन करने में रुचि दिखाते हैं।
श्वसन – यह सामान्य और लयबद्ध होना चाहिए। कुछ मामलों में जैसे भारी काम या प्रतिकूल गर्म जलवायु परिस्थितियों में श्वसन की दर में वृद्धि हो जाती है। श्वसन की दर को नासिका के सामने नम/गीली मुट्ठी रखकर और पेट की गति को देखकर भी मापा जाता है। स्वस्थ पशु (गोवंश) की श्वसन की दर 26-50 प्रति मिनट होती है।
नाड़ी– गोवंश में नाड़ी पूंछ के आधार पर मौजूद अनुत्रिक (कोक्सीजिअल) धमनी से मापी जाती है। पूंछ को अपने अंगूठे और तर्जनी से हल्के से पकड़कर इसे मापें। स्वस्थ पशु (गोवंश) की नाड़ी की दर 50-80 प्रति मिनट होती है।
तापमान– थर्मामीटर की सहायता से मलाशय से तापमान मापा जाता है। यह अपनी सामान्य सीमा (38.0–39.3 फॉरेनहाइट अथवा 100.4–102.8 डिग्री सेंटीग्रेट ) में होना चाहिए|
प्रजनन पथ– यह किसी भी असामान्य निर्वहन/ डिस्चार्ज से मुक्त होना चाहिए और बिना किसी विकृति के पूरी तरह से विकसित होना चाहिए।
दूध– दुधारू पशुओं के थन सही स्थिति और आकार में होने चाहिए और निपल को कोई चोट या संक्रमण नहीं होना चाहिए। इसकी गुणवत्ता और मात्रा में त्वरित बदलाव के बिना दूध उत्पादन सामान्य होना चाहिए।
गोबर– अर्ध-ठोस, गहरे हरे रंग का और परजीवी अंडे, रक्त के थक्कों आदि से मुक्त।
मूत्र — यह साफ और भूसे के रंग का होना चाहिए और बिना किसी कठिनाई या दर्द के निकल जाना चाहिए।
बीमार पशु की देखभाल–
बीमारी के समय बीमार पशु की उचित देखभाल और प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण पहलू है और यह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से बीमारी को ठीक करने में बहुत सहायक है। आमतौर पर यह देखा गया है कि यदि किसी बीमार पशु को अच्छा स्वच्छ आरामदायक वातावरण, बेहतर देखभाल आदि प्राप्त होता है तो बीमारी से उसकी रिकवरी अच्छी और तेज होती है क्योंकि उचित देखभाल और प्रबंधन प्रदान करने से हम पशु की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार करते हैं। बीमार पशु की देखभाल के संबंध में कुछ बिंदु नीचे दिए गए हैं-
बीमार पशु को उसके झुंड से अलग कर आइसोलेशन वार्ड/अलग शेड में शिफ्ट करें। आइसोलेशन वार्ड साफ और हवादार होना चाहिए और वार्ड में साफ-सफाई और स्वच्छता के उपायों का सख्ती से पालन करना चाहिए। रोगी पशु को अधिक गर्मीं एवं अधिक सर्दी से बचाया जाना चाहिए तथा अधिक ठंडी एवं तेज हवाएं रोगी को न लगने पाए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्वच्छ और आरामदायक बिस्तर सामग्री प्रदान करें। ताजे एवं स्वच्छ जल की व्यवस्था करें। बीमारी के समय यदि संभव हो तो पशु के शरीर को सहलाना चाहिए क्योंकि इस क्रिया से शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और पशु अच्छा महसूस करता है।
बीमार पशु का खान– पान–
हल्का, पौष्टिक और आसानी से पचने वाला चारा दें और पशु को खिलाने के लिए मजबूर न करें। ताजे व हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करें। बरसीम, जई, दूब घास एवं हरे चारे तथा जौ का दाना जाना ठीक होता है।
- भूसी का दलिया – गेहूं की भूसी को उबालने के पश्चात् ठंडा करके इसमें उचित मात्रा में नमक व शीरा मिलाकर पशु को दिया जा सकता है।
- जई का आटा – 1 किलो ग्राम जई के आटे को लगभग 1 लिटर पानी में १० मिनट तक उबालकर धीमी आंच में पकाकर इस दूध अथवा पानी मिलाकर पतला करके उसमें पर्याप्त मात्रा में नमक मिलाकर पशु को दिया जाता है। जई के आते के पानी में सानकर इसमें उबलता पानी पर्याप्त मत्रा में मिलाकर, जब ठंडा हो जाए तो उसे भी पशु को खिलाया जा सकता है।
- उबले जौ – 1 किलोग्राम जौ को लगभग 5 लिटर पानी में उबालकर उसमें भूसी मिलाकर पशु को खिलाया जा सकता है।
- जौ का पानी – जौ का पानी में लगभग 2 घंटे उबालकर तथा छानकर जौ का पानी तैयार किया जाता है, यह पानी सुपाच्य एवं पौष्टिक होता है। इसके अतिरिक्त रोगी पशु को हरी बरसीम व रिजका का चारा तथा लाही या चावल का मांड आदि भी दिया जा सकता है।