टोक्सोकेरिएसिस-एस्केरिस प्रजाति के अन्तः परजीवी का संक्रमणः कम उम्र के दुधारू पशुओं के जीवन क्षति का प्रमुख कारण

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टोक्सोकेरिएसिस-एस्केरिस प्रजाति के अन्तः परजीवी का संक्रमणः कम उम्र के दुधारू पशुओं के जीवन क्षति का प्रमुख कारण 

डॉ० सोनिका वर्मा1 डॉ० जितेन्द्र तिवारी डॉ० मुकेश कुमार श्रीवास्तव एवं डॉ० संजय कुमार मिश्र 

 . परास्नातक, पशु औषधि विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसन्धान संस्थान, मथुरा

. सह आचार्य, पशु परिजीवी विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसन्धान संस्थान, मथुरा  

. सह आचार्य, पशु औषधि विज्ञान विभाग, उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसन्धान संस्थान, मथुरा

  1. उपनिदेशक (पशुधन विकास) निदेशालय, पशुपालन विभाग उत्तर प्रदेश लखनऊ

टोक्सोकेरिएसिस एक परजीवी संक्रमण है जो आमतौर पर बछड़ों, कुत्तों और बिल्लियों की आंत में पाए जाने वाले गोल कृमि टोक्सोकैरा प्रजाति के कारण होता है। यह पशुओं से मनुष्यों में भी फैल सकता है। टोक्सोकैरा क्रमि के लार्वा से कोई भी व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। इस परजीवी से छोटे बच्चों और कुत्तों या बिल्लियों के मालिकों को या फिर डेरी सेक्टर में काम करने वाले मनुष्यों के संक्रमित होने की संभावना अधिक होती है। बछड़े, कुत्ते और बिल्लियां जो टोक्सोकैरा से संक्रमित हैं, उनके मल में टोक्सोकैरा के अंडे समय समय पर निकलते रहते हैं। संक्रमित पशु के मल से दूषित किसी भी खाद्य पदार्थ को वयस्क या बच्चे गलती से निगल लेते है और संक्रमित हो जाते है। कभी-कभी टोक्सोकैरा प्रजाति के लार्वा से संक्रमित अधपका मांस खाने से भी संक्रमण हो जाता है।

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वयस्क परजीवी लगभग 40 सेमी लम्बे एवं 7 मिमी मोटे होते है। मादा परजीवी की लम्बाई नर परजीवी से ज्यादा होती है अंडे लगभग 70-80 माइक्रोमीटर आकर के गोलाकार होते हैं, जिनके ऊपर  एकल कोशिका मोटी और छिद्रित झिल्ली का आवरण होता है।

जीवन चक्रः टोक्सोकैरा परजीवी से संक्रमित पशु अपने मल के साथ अंडे निकालते है और मिट्टी एवं वातावरण को संक्रमित करते है। अंडे लगभग 10 से 21 दिनों बाद लार्वा युक्त होकर संक्रामक हो जाते है इसलिए ताजा पशु के मल से कोई तात्कालिक खतरा नही होता है। यद्यपि अंडे मिट्टी में मिल जाने के बाद कई महीनों तक जीवित रह सकते है। अगर यह प्रदूषित मिट्टी किसी भी प्रकार कोई खा लेता है तो वह संक्रमित हो जाता है। शरीर के अन्दर अंडे जाने के बाद अंडे का विकास होता है। जिससे लार्वा विकसित होता है एवं अंडे से बाहर आ जाता है। यह लार्वा शरीर के विभिन्न भागों में भ्रमण करता हुआ रक्त प्रवाह में आ जाता है और किसी भी अंग में सुप्त अवस्था में पडा रहता है अर्थात उनका विकास रुक जाता है।  जब मादा गर्भावस्था में आती है तो इस परजीवी के लार्वा सक्रिय होकर उस मादा की आंत्र में संक्रमण फैलाते है एवं उस मादा के गर्भ में पल रहे बच्चे या फिर उस को दूध पिलाते समय संक्रमण बच्चे में फैला सकता है। विकसित बच्चे में लार्वा उसकी आंत्र में पहुँचकर रक्त प्रवाह में होते हुये फेंफड़ो एवं आहारनाल को संक्रमित करता हुआ पुनः आंत्र में आ जाता है। यहाँ नर और मादा पुनः प्रजनन कर इस परजीवी के अंडे पशु के मल में निकालते रहते है और वातावरण एवं मिट्टी को संक्रमित कर देते है। पांच सप्ताह से कम आयु के कुत्तों के बच्चों में इसका संक्रमण बहुत अधिक एवं जानलेवा होता है।

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कम उम्र के दुधारू पशुओं में संक्रमण

टोक्सोकेरिएसिस के लक्षणः टोक्सोकैरा उप प्रजाति के एस्केरिस परिजीवी के संक्रमण के फलस्वरूप,  कम उम्र के बछड़ों में नैदानिक लक्षण जैसे की आंत्रशोथ, रुक-रुक कर दस्त, आंतों में रुकावट और कभी-कभी आंतों में छिद्र शामिल हो सकते हैं जिससे आंतो में भरा पदार्थ शरीर के भीतरी अंगों में रिस कर चला जाता है जिससे शरीर के अंदरूनी हिस्सों में अत्यधिक सूजन तथा शॉक की परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है फलस्वरूप कम उम्र के पशुओ की मृत्यु हो जाती है। परजीवियों के पित्त या अग्न्याशय नलिकाओं में प्रवास से पित्त रुकावट और पित्तवाहिनीशोथ हो सकता है। भैंस प्रजाति के पशु विशेष रूप से इस बीमारी से ग्रस्त होकर  गंभीर एनीमिया, दस्त, एनोरेक्सिया और वजन घटने के कारण मृत हो जाते हैं। टोक्सोकारा विटुलोरम संक्रमण के परिणामस्वरूप अक्सर युवा भैंस के बछड़ों में उच्च मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान, अन्य पशुओ की अपेक्षा अधिक देखा गया है।

टोक्सोकेरिएसिस का निवारण एवं रोकथाम:

आंतों के विषाक्तता का इलाज एंटीपेरासिटिक दवाओं जैसे अल्बेंडाजोल या मेबेंडाजोल के साथ किया जा सकता है। नवजात पशु को अल्बेंडाजोल की पहली खुराक जल्द से जल्द दे देनी चाहिए, क्युकी जितनी देरी से ये दवा दी जाएगी उतना ही इन परिजीवियो को बढ़ने और आंतो में विकसित होने तथा खून चूस कर युवा पशु को निर्बल करने का समय मिलता रहेगा। अतः नए नियमानुसार चिकित्सक एक हफ्ते से दो हफ्ते के बीच में ही कीड़े की दवा पिलाने की सलाह देते है जिससे शुरू में ही इस परजीवी की रोकथाम की जा सके।  

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चित्र संख्या १। दूधारु पशु के ब्याने के पश्चात् माँ और बच्चे दोनों को कीड़े की दवा देना उपयुक्त होता है।

टोक्सोकैरा लार्वा का मनुष्यों के आतंरिक अंगों में प्रवेश (विसरल लार्वा माइग्रेन्स)

टोक्सोकैरा की कुछ प्रजातियां जो सामान्यतः कुत्तो व बिल्लियों में पाई जाती हैं। इनके लार्वा मनुष्यों के शरीर में प्रवेश कर जाते है। यह एक आसामान्य परिस्थिति है जिसमे टोक्सोकैरा का लार्वा मनुष्यों खासकर बच्चो के आतंरिक अंगों में प्रवेश कर जाते है। संक्रमित बच्चों में सर में दर्द, बुखार, खांसी एवं पेट दर्द जैसी समस्याएं देखी गयी हैं। बचाव के लिए अभिवावकों को चाहिए की वे अपने बच्चों में भोजन ग्रहण करने के पूर्व नियमित रूप से हाथ धोने की आदत डलवाएं तथा बच्चो को नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह पर कृमि नाशक दवाएं दिलवाते रहे। हालाँकि ऐसे लोग जिनके घर में कुत्ते या बिल्लियां पाली गयी है को भी अपने पालतू पशु को नियमित रूप से वेटनरी डॉक्टर की सलाह पर कृमि नाशक दवायें देनी चाहियें।

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