पशुओ में ट्रामेटिक रेटिकुलो पेरिटोनिटिस /  फॉरेन बॉडी सिंड्रोम या हार्डवेयर डिसीज

0
1488

पशुओ में ट्रामेटिक रेटिकुलो पेरिटोनिटिस /  फॉरेन बॉडी सिंड्रोम या हार्डवेयर डिसीज

पशुओ में फॉरेन बॉडी सिंड्रोम (Foreign Body Syndrome)/ ट्रामेटिक रेटिकुलो पेरिटोनिटिस (TRP) या हार्डवेयर डिसीज, यह रोग पशु चिकित्सा में सबसे आम आपात स्थितियों में से एक हैं, इस रोग में पशु आमतौर पर धातु के नुकीली अखाद्य सामग्री (कील, तार का टुकड़ा, सुई, आलपीन आदि) को निगल लेते है, क्योंकि वे आहार में धातु सामग्री के साथ भेदभाव नहीं कर पाते हैं और निगलने से पहले आहार को  को पूरी तरह से चबाते नहीं हैं। यह बीमारी उस समय होती है जब साइलेज और घास उन खेतों की होती है जिनमें पुराने जंग खाए हुए बाउनड्री तार पड़े रह जाते हैं, या जब चारागाह उन क्षेत्रों पर होते हैं, जहां हाल ही में इमारतों का निर्माण कार्य  हुआ है।

कारण

गाय व भैस अपना आहार पहले चबाते नहीं है, केवल निगलते है तथा बाद मे फुसरत मे जुगाली करके चबाते है , इसलिए उस चारे के साथ कील, तार, सुई, आलपीन व कॉच आदि के टुकडे भी चले जाते है। बीमारी उन पशु में ज्यादा होती है, जो सड़को आवारा घूमते है। यह अखाध पदार्थ या तो सीधे या फिर रुमेन से होते हुए रेटिकूलम मे साधारणतया इकठा रहता है क्योकि रेटिकूलम की मधुकोश की तरह जालीदार श्लेष्मा इन वस्तुओ को फँसा लेती है  रेटिकूलम के संकुचन इन विदेशी वस्तुओ को  दीवार के अन्दर प्रवेश को बढ़ावा देते हैं। गर्भावस्था  के अंतिम दौर में गर्भाशय द्वारा रुमेनो- रेटिकूलम का संपीड़न और प्रसव के दौरान होने वाले संकुचनो से रेटिकूलम में इन वस्तुओ की पैठ की संभावना बढ़ जाती है।

READ MORE :  अफारा पशुओं का एक जानलेवा रोग

रेटिकुलम की दीवार के छिद्र से वंक्षण और बैक्टीरिया के निकलने  की संभावना बढती है, जो वक्ष गुहा को दूषित करते है। परिणामस्वरूप आंतरिक वक्ष आवरण का संक्रमण जो आमतौर पर स्थानीयकृत होता है और अक्सर आसंजनों (चिपकाव) को बनाता है। कभी कभी, आंतरिक वक्ष आवरण का संक्रमण अधिक गंभीर और  प्रसारित हो सकता है। ये बस्तुये  मध्यपट (वक्ष गुहा और उदर गुहा के बीच) में प्रवेश करके, वहाँ से वक्ष गुहा में प्रवेश कर सकता है (जिससे फुफ्फुसशोथ और कभी-कभी फुफ्फुसीय फोड़ा हो जाता है) और ह्रदय आवरण की थैली में प्रवेश से ह्रदय आवरण के संक्रमण और कभी-कभी ह्रदय पेशियों के प्रदाह का कारण बनता है। कभी-कभी, ये बस्तुये यकृत या प्लीहा में  भी छेद कर सकती है और इन्हें  संक्रमित कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप इन अंगो में फोड़ा या सेप्टीसीमिया विकसित हो सकता है।

लक्षण

नुकीली बस्तुयो के रेटिकुलम में प्रारंभिक पैठ की शुरुआत में ही रुमेन और रेटिकूलम की गति का रुक जाना, बार-बार अफरा बनना, दूध उत्पादन में तेजी के साथ गिरावट होना, भोजन ग्रहण करना बंद कर देना, गोबर की मात्रा का  घटना और  शरीर  का तापमान अक्सर हल्का बढ़ जाना शामिल है। हृदय गति सामान्य या थोड़ी बढ़ी हुई है (90/ मिनट), और श्वसन आमतौर पर मुह खोलकर और तेजी से होता है। बीमारी की बाद की अवस्था में फुफ्फुस ध्वनि कम सुनाई देती है। अभिघातजन्य पेरिकार्डिटिस की विशेषता आमतौर पर ह्रदय की आवाज़ों से होती है; हालाँकि, रोग प्रक्रिया की शुरुवात में ह्रदय आवरण के घर्षण की आवाज और तरल पदार्थ की छपछपाहट जैसी आवाज़ सुनाई देती है (वॉशिंग मशीन चलने जैसी)। इसके अलावा जुगुलर नस में फुलाव, अगले पैरो के बीच, गर्दन के सबसे निचले हिस्से में पानी भी भर जाता है और सूजन दिखाई देती है.

READ MORE :  INDUCED LACTATION TECHNOLOGY IN DAIRY CATTLE

रोग से ग्रसित पशु प्रायः खडा रहते है तथा बैठते समय बहुत सावधानी से बैठते है इन जटिलताओं के साथ पूर्वानुमान गंभीर ही होता है। प्रारंभ में पशु  एक धनुषाकार पीठ (पेट दर्द के कारण), एक चिंतित अभिव्यक्ति, चलने में अनिच्छा, और एक असहज और सावधान चाल दिखाता है। बलपूर्वक हिलाने-डुलाने, पेशाब करने, लेटने, उठने-बैठने आदि के समय पशु असहज महसूस करता और कराहता है। कशेरुकीय दंड के आगे वाले हिस्से (जिफोइड) पर दबाव डालने  से एक कराहट हो सकती है। श्वासनली के ऊपर स्टेथोस्कोप लगाकर विदर के ऊपर चुटकी से दबाव डालकर को भी श्वशन के अंत में कराहना सुना जा सकता है। रोगी पशु अपने अगले पैरो को ऊपर से चौड़ें करके खडा रहता।

निदान

रोग के इतिहास और ऊपर वर्णित लक्षणों के आधार पर।

  • रक्त की जाँच से निदान में थोड़ी मदद मिल सकती है (बाईं ओर शिफ्ट के साथ न्युट्रोफिल का बढ़ना)।
  • उदर के पार्श्व रेडियोग्राफ से भी निदान में कुछ मदद मिल सकती है ।
  • 3-मेगाहर्ट्ज ट्रांसड्यूसर का उपयोग करके उदर की अल्ट्रासोनोग्राफी निदान का सबसे सटीक तरीका है।

उपचार

रोग की दोनों ही परिस्थितियों  (तीव्र और दीर्घकालिक) में किसी भी प्रकार के उपचार से अच्छे परिणाम नही मिलते है, इस रोग की प्रारंभिक अवस्था शल्य  या औषधीय उपचार हो सकता है। उस्क्मे भी मुश्किल से  60%  रोगी पशुओ के ठीक होने की संभावना रहती  है।

  • शल्य चिकित्सा में रूमेन को खोलकर रेटिकुलम से इन वस्तुओं को हटाया जा सकता है।
  • चिकित्सा उपचार में के लिए पेरिटोनिटिस के लिए रोगाणुरोधी और पुनरावृत्ति रोकने हेतु  एक चुंबक को नियंत्रित को प्रयोग किया जा सकता है ।
  • घाव में कई जीवाणु के संक्रमण के द्रष्टिगत, एक व्यापक रोगाणुरोधी जैसे ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन (16 मिलीग्राम / किग्रा / दिन) का उपयोग किया जाना चाहिए। पेनिसिलिन (22,000 IU / kg, IM, प्रतिदिन एक से दो बार) सीमित स्पेक्ट्रम के बावजूद भी कई मामलों में उपयोगी और प्रभावी है।
  • पशु को ऐसी जगह बाँधना चाहिए जिससे उसके अगले पैर पिछले पैर की तुलना मे ऊँचाई पर रहे एवं प्राणी ज्यादा हिल-डुल नही सके।
  • पशु को सूखा चारा सामान्य से आधी मात्रा मे देना चाहिए।
READ MORE :  NEUROLOGICAL DISORDERS IN DOGS

बचाव

  • मवेशियों को नए निर्माण के स्थलों से दूर रखना और पुरानी इमारतों और बाड़ को पूरी तरह से हटाना शामिल है।
  • इसके अतिरिक्त, बार मैग्नेट को रूमेन में डाला जा सकता है (अधिमानतः 18-24 घंटे के उपवास के बाद)। आमतौर पर, चुंबक रेटिकुलम में रहता है और इसकी सतह पर कोई भी लोहे की वस्तु चिपक जाएगी। एक वर्ष की आयु में सभी पशुओ में बार मैग्नेट प्रतिस्थापन कर  देने से रोग  की घटना को कम किया जा सकता है।

 

डॉ. मुकेश श्रीवास्तव

प्रभारी पशु औषधि विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय एवं गो अनुसन्धान संस्थान, मथुरा – उ. प्र.

डॉ. बरखा शर्मा

प्रभारी, जानपदिक एवं पशुरोग निवारक आयुर्विज्ञान विभाग, दुवासु, मथुरा

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON