शरद ऋतु में बकरियों में होने वाले प्रमुख रोग तथा उनकी रोकथाम

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शरद ऋतु में बकरियों में होने वाले प्रमुख रोग तथा उनकी रोकथाम

डॉक्टर आनंद कुमार सिंह एवं डॉक्टर दिव्या पाठक

पशु चिकित्सा एवं औषधि विज्ञान विभाग, पंतनगर

 

बकरियों को स्वस्थ रखकर बीमारियों से उनका बचाव करना रक्षा की पहली पंक्ति है । पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए एक आदर्श प्रबंधन कार्यक्रम आवश्यक है। पशुपालकों को पशुओं का बारीक़ी से निरीक्षण करना चाहिए और रोगो के नैदानिक संकेतो को पहचान कर झुण्ड का आकलन करना चाहिए।

एक अस्वस्थ जानवर झुण्ड के बाकी पशुओं से अलग तथा अन्य पशुओं से असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करता है। अन्य महत्वपूर्ण प्रबंधन कार्य जैसे वेंटीलेटर (एयर टर्नओवर), उचित स्टॉक डेंसिटी (जानवर घनत्व दर) तथा अच्छा पोषण कार्यक्रम (बैलेंस्ड राशन) भी रोगो की रोकथाम में सहायक है। उच्च विशिष्ट रोग जैसे की ब्लैक लेग, टिटनेस तथा अन्य क्लोस्ट्रिडियल रोगो के लिए टीकाकरण  कार्यक्रम के द्वारा सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। यह टीके सस्ते है और ठीक से उपयोग किये जाने पर नुकसान को रोकने में एक बहुत प्रभावशाली माध्यम है।                शरद ऋतु में बकरियों का ठण्ड से बचाव करना चाहिए अन्यथा वे हाइपोथर्मिया का शिकार हो सकते है। हाइपोथर्मिया वह अवस्था है जिसमें शरीर का तापमान उस बिंदु तक जाता है जहां जीवन खतरे में हो सकता है। मुख्तयः बकरी के शावक इससे ज्यादा प्रभावित होते है। इसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका एक अच्छा गर्म शुष्क आश्रय क्षेत्र है, जिसमें प्रसव हो सके तथा उन्हें कोलोस्ट्रम दिया जाएं।शवास सम्बन्धी समस्याएं: शवास संक्रमण या निमोनिया बकरियों में एक गंभीर बीमारी है। विभिन्न वायरस तथा बैक्टीरिया एवं वीनिंग, मौसम में परिवर्तन, ट्रांसपोर्ट, बुख़ार, झुण्ड आवास में हवा की गुणवत्ता इत्यादि तनाव के परिणामस्वरूप फेफड़ो को संक्रमित करते है। निमोनिया के नैदानिक संकेतो में शामिल है: बुखार, खांसी , सांस लेने में तकलीफ, एनोरेक्सिया (भूख न लगना) तथा अवसाद।

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निमोनिया के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग कारगर है, चूंकि निमोनिया के विभिन्न प्रकार है इसलिए इसकी पहचान महत्वपूर्ण है, जिससे प्रभावी उपचार किया जा सके। निमोनिया की घटना को कम करने के लिए स्वछता और झुण्ड आवास में वायु गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। कोई भी पर्यावरणीय स्थिति फेफड़ो में परेशानी कर संक्रामक एजेंटो को मौका देती है जो की पशुओं को प्रभावित कर सकती है। अच्छा पोषण, शुद्ध पानी, परिवहन तनावों में कमी तथा प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि के लिए ट्रेस खनिजों का उपयोग करना चाहिए।

  • आंतरिक तथा बाहरी परजीवी: बकरियों के स्वास्थ्य के लिए परजीवी एक महत्वपूर्ण खतरा है। यह पशु के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते है और उनकी प्रजनन प्रदर्शन, विकास दर में कमी, मांस तथा उत्पादन में कमी आ जाती है। परजीवी से संक्रमित पशु के नैदानिक संकेत है: दस्त, कम वजन, भूख में कमी इत्यादि। परजीवी पशुओं की संवेदना अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। आमतौर पर बकरिया आंतरिक परजीवियों के लिए अधिक संवेदनशील होती है।
  • आंतरिक परजीवी: कई प्रकार के आंतरिक परजीवी बकरियों को प्रभावित करते है। अत्यधिक उच्च परजीवी स्तर अक्सर पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है। आंतरिक परजीवी में मुख्यत: राउंडवर्म जैसे: हेमौंकस कंटोर्टस, ट्राइकोस्टरोंगाइल है जो की बकरियों की छोटी आंत में रहते है, बकरियों को प्रभावित करने वाला सबसे खतरनाक परजीवी (राउंडवर्म) हैं हेमौंकस जिसे पॉलवर्म भी कहा जाता है। यह एक रक्तस्त्रावी परजीवी है। नैदानिक संकेतो में अनिमिया (रक्त की कमी), प्रोटीन की कमी तथा मृत्यु देखी जाती है। इससे प्रभावित पशु सुस्त तथा कमजोर हो जाता है और अक्सर झुण्ड से अलग रहता है। निचले जबड़े में सूजन/ बोतल जॉ भी इसका एक मुख्य लक्षण है। टेपवर्म के कारण भी वजन घट सकता है तथा आंत संबंधी परेशानिया भी होती है। टेपवर्म की पहचान के लिए नियमित मल की जांच (मल में पीले सफ़ेद सेगमेंट) की जा सकती है। बकरी के शावकों में यह सबसे आम है।
  • बाहरी परजीवी: बकरियों में विशेष रूप से सर्दियों में बंद कोठार में रखा जाना आम हैं। बाहरी परजीवी खून चूसते है और त्वचा पर अंडे देते है। इनके रोकथाम के लिए विशिष्ट: कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।
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प्रेगनेंसी टोक्सिमिआ/ केटोसिस: यह मुख्यत: वसा या पतले पशुओं में जिन में दो या अधिक भ्रूण होते है उनमें पाई जाती  है। यह स्थिति तब विकसित होती है जब पशु में बढ़ते भ्रूण और अपने दोनों के शरीर की आवश्यकता को पूरी करने के लिए ऊर्जा (ग्लूकोस) की कमी हो जाती है। प्रारंभिक लक्षण जैसे बढ़ी हुई भूख (पोषण तत्वों की बढ़ती जरूरतों की भरपाई के लिए) शामिल है। कंसन्ट्रेट फीड प्रदान न करना भी एक कारण है। ऐसी अवस्था में शरीर वसा को मेटाबोलाइस करता है ,खुद की पोषक अवक्षेक्ताओं और कीटोन बॉडीज का उत्पादन करता है जो उच्च स्तर में खतरनाक हो सकता है। गर्भावस्था में बढ़ते भ्रूण पेट में अधिक जगह लेने लगते है जो माता की पर्याप्त रूप से खाने में शारीरिक रूप से असक्षम बना देती है।

इसकी रोकथाम के लिए प्रजनन तथा गर्भा धारण के समय बकरियों का वजन प्रबंधन आवश्यक है। ऊर्जा घनत्व में वृद्धि के साथ आखिरी तिमाही में अनाज खिलाना चाहिए ।

सारांश

बकरियों के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए

Dr. ANAND KUMAR SINGH
ASSISTANT PROFESSOR
DEPT. OF VETERINARY MEDICINE
IIVER, ROHTAK
HARYANA 124001
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