देसी गाय से प्राप्त A2 दूध की उपभोक्ताओं के बीच अधिक मांग : A2 दूध का ब्रांडिंग कर शहरी क्षेत्र के पशुपालक कमा रहे हैं अप्रत्याशित मुनाफा
दूध एक संपूर्ण पौष्टिक आहार है जिसे अधिकतर हर वर्ग के लोग पीते हैं. इसमें कैल्शियम और प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत होता है. इसके अंदर और भी विभिन्न तत्व पाए जाते हैं जैसे लैक्टोज, फैट, अन्य विटामिन्स और मिनरल्स. क्या आप जानते हैं कि दूध में दो प्रकार के प्रोटीन होते हैं: वेह (whey) प्रोटीन और केसीन (casein) प्रोटीन.
केसीन प्रोटीन भी दो तरह का होता है: अल्फा केसीन और बीटा केसीन. दूध में पाए जाने वाले प्रोटीनों का सबसे बड़ा समूह केसीन का ही होता है जो कुल प्रोटीन का 80% होता है.
यहीं अगर हम बात करें तो बीटा केसीन भी दो रूपों में पाया जाता है एक A1 और दूसरा A2. आपने A1 और A2 मिल्क के बारे में तो सुना ही होगा. ये किस प्रकार का दूध होता है, क्या अलग-अलग गाय A1 और A2 दूध देती हैं, इस दूध की क्या विशेषता है, क्या नुक्सान हैं, A1 और A2 दूध में क्या अंतर होता है, इत्यादि. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.
A1 और A2 दूध में क्या अंतर होता है?
आज के टाइम में इंटरनेशनल मिल्क मार्किट में है और पूरी दुनिया में रिसर्च हो रही है की आखिर A1 और A2 मिल्क है क्या. इन दोनों मिल्क में क्या अंतर होता है. किसी भी देश की अगर हम बात करें तो दूध सभी पीते हैं चाहे वो रूस हो, अमेरिका, भारत इत्यादि. दूध बच्चों के न्यूटरीशन का बहुत इम्पोर्टेन्ट हिस्सा माना जाता है.
मार्किट में दो प्रकार का दूध मिलता है; A1 दूध और A2 दूध. A1 मिल्क A1 टाइप की गाय देती हैं और A2 मिल्क A2 किस्म की गाय देती हैं. अगर मेजोरिटी की बात करें तो भारत में और दुनिया भर में आजकल A1 दूध को ही पीया जा रहा है. A2 दूध की खपत कम होती है.
A2 दूध मिलता है प्राचीन ब्रीड की गाय से या जो काफी लंबे समय से गाय की ब्रीड चलती आ रही है या फिर देसी गाय से. कुछ हद तक जो ईस्ट अफ्रीकन जगहों में जो गाय मिलती हैं और उनसे जो दूध मिलता है उसको A2 मिल्क कहते है. वहीं A1 दूध मिलता है फॉरेन ब्रीड गाय से या जो मिक्स्ड रेस की गाय होती हैं उनसे.
जैसे की ऊपर देखा हमने की दूध में कैल्शियम और प्रोटीन होता है. प्रोटीन कई प्रकार के होते हैं उसमें से एक प्रकार है केसीन. ये सबसे ज्यादा मिल्क प्रोटीन में होता है. यानी दूध में 80% केसीन प्रोटीन ही पाया जाता है. मगर जो देसी गाय A2 दूध देती हैं उसमें केसीन प्रोटीन के साथ-साथ एक खास प्रकार का अमीनो एसिड भी निकलता है जिसे हम प्रोलीन (prolin) कहते हैं. क्या आप जानते हैं कि दूध में जो प्रोटीन होता है, वह पेप्टाइड्स में तब्दील होता है. बाद में यह अमीनो एसिड्स का स्वरूप लेता है. देखा जाए तो अमीनो एसिड काफी इम्पोर्टेन्ट होता है हमारी सेहत के लिए परन्तु ये अमीनो एसिड जो A2 गाय में मिलता है ये आगे जा कर एक बहुत अहम भूमिका निभाता है.
A1 गाय भारत में सबसे ज्यादा पाई जाती हैं, बाहर के देशों में भी अधिकतर ये ही गाय मिलती हैं, इन्हें हाइब्रिड गाय भी कहते हैं. A1 गाय के दूध में एक अलग प्रकार का अमीनो एसिड होता है जिसे हिस्टीडाईन (histidine) कहते है.
A1 और A2 दूध क्या है ?
दूध में लगभग 85% पानी होता है। शेष 15% लैक्टोज, प्रोटीन, वसा और खनिज होते है । बीटा-केसिन दूध में कुल प्रोटीन सामग्री का लगभग 30% होता है । बीटा-केसिन दो प्रकार का होता है A1 बीटा-केसिन और A२ बीटा-केसिन ।
A2 दूध वह दूध होता है जिसमें केवल A2 प्रकार का बीटा-केसिन प्रोटीन होता है । जबकि A1 दूध में केवल A1 बीटा केसिन होता है । संकरित और यूरोपीय नस्लों की गायों में A1 प्रकार का दूध पाया जाता है । A2 दूध मूल रूप से देसी गायों और भैंसों में पाया जाता है ।
A1 और A2 दोनों ही बीटा केसिन प्रोटीन के प्रकार है, दोनों के बीच प्रोटीन श्रृंखला में 67 वें स्थान पर एक एमिनो एसिड का अंतर होता है, इस 67 वें स्थान पर A1 में एक हिस्टिडाइन एमिनो एसिड होता है, जबकि A2 में एक प्रोलीन एमिनो एसिड होता है।
इस एक एमिनो एसिड के परिवर्तन के कारण जब A1 प्रोटीन टूटता है, तो यह एक पेप्टाइड बीसीएम -7 (BCM- 7 बनता है, जिसकी रासायनिक संरचना अफीम के समान होती है जो को मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है ।
इस कारण से A1 दूध पिने वालो में मधुमेह, कोरोनरी हृदय रोग, धमनीकाठिन्य, अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम, आटिज्म, सिज़ोफ्रेनिया अदि बिमारिओं के होने का खतरा बढ़ जाता है ।
देशी गायों, भैंस और विदेशी गायों पर किए गए शोध से यह पता चला है कि विदेशी पशुओं में A1 एलील अधिक बार होता है जबकि भारतीय देशी गायों और भैंसों में केवल A2 ही होते हैं ।
संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अन्य विकसित देश में लोग A2 दूध का उपयोग करते है क्यूंकि A2 दूध स्वास्थ्य केर लिए हानिरहित है जबकि A1 दूध हानिकारक होता है । A2 कॉर्पोरेशन जैसी दूध कंपनी ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अन्य देशो में A2 दूध बाज़ार में बेचती है ।
इन सबमें अमीनो एसिड का काफी बड़ा रोल होता है. पर कैसे? आइये अध्ययन करते हैं.
A2 दूध में जो प्रोलीन मिलता है वो हमारो बॉडी में BCM 7 को पहुचने से रोकता है. परन्तु क्या आप जानते हैं कि BCM 7 ( Beta- Casomorphin-7) क्या है.
BCM 7 एक ओपीओइड पेप्टाइड (opioid peptide) होता है. यह एक छोटा-सा प्रोटीन है, जो हमारी बॉडी में नहीं पचता है. इससे अपच ( indigestion) हो सकता है और कई शोध से भी पता चला है कि और भी कई तरह की परेशानियाँ या बीमारियाँ हो सकती हैं जैसे मधुमेह इत्यादि. यानी हम कह सकते हैं कि A2 दूध में प्रोलीन अमीनो एसिड BCM 7 को हमारे शरीर में जाने से रोकता है. मगर जो A1 गाय हैं वो प्रोलीन नहीं बनाती हैं तो इससे जो BCM 7 है वो हमारे शरीर में जाता है और बाद में ब्लड में भी धीरे-धीरे घुल जाता है.
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि BCM 7 प्रोटीन A2 दूध देने वाली गायों के यूरीन, ब्लड या आंतों में नहीं पाया जाता है, लेकिन यही प्रोटीन A1 गायों के दूध में पाया जाता है, इस कारण से A1 दूध को पचाने में तकलीफ होती है.
अब हम जानेंगे की BCM 7 हमारे शरीर के लिए कितना खतरनाक है और इस पर हुई रिसर्च क्या कहती हैं.
कुछ रिसर्च से ये भी ज्ञात हुआ है कि A2 दूध को पचाना ज्यादा आसान होता है. US National Library of Medicine National Institutes of Health की रिपोर्ट के अनुसार A1 बीटा केसीन वाले दूध में ज्यादा मात्रा में BCM 7 होता है. अगर ये बच्चों को दिया जाए तो उनमें मधुमेह की समस्या बढ़ जाएगी. इस रिसर्च को स्कॅन्डिनेवियन और नीदरलैंड में किया गया था. यहां पर ये पाया गया कि लोगों को मधुमेह की ज्यादा समस्या है. इसके लिए लाइफस्टाइल वगेरा तो कई कारणों मे से है ही साथ ही A1 दूध भी कुछ हद तक ज़िम्मेदार है. हार्ट की बिमारी का होना भी कुछ हद तक इस दूध के साथ जोड़ा गया है.
कुछ रूस के शोधकर्ताओं के अनुसार BCM 7 बच्चों के ब्लड में पास हो जाता है और ये ब्रेन से मांसपेशियों के बीच में होने वाले विकास को भी कुछ हद तक बाधाएं पैदा करता है. इस रिसर्च को इंटरनेशनल जर्नल पेप्टाइडस में पब्लिश किया था.
एक और रिपोर्ट Indian Journal of Endocrinology and Metabolism 2012 के अनुसार मधुमेह टाइप 1 का कुछ A1 दूध से कनेक्शन है और इसके अलावा हार्ट की समस्या, मेंटल डिसऑर्डर, ऑटिज्म, एलर्जी से बचाव न कर पाने जैसी कमियां और schizophrenia का होना भी क्योंकि BCM 7 ब्लड से ब्रेन में चला जाता है. साथ ही कुछ और भी रिसर्च हैं जिनके अनुसार A1 दूध को लेने से कोई नुक्सान नहीं होता है. ये किसी भी प्रकार की शरीर में हानि नहीं पहुंचाता है. इसलिए सही तरह से ये कहना गलत होगा कि A1 दूध नुक्सान दायक है. ऐसा पूर्ण रूप से अभी तक प्रूव नहीं हो सका है.
अब अध्ययन करते हैं ऑपरेशन फ्लड के बारे में ये क्या है और क्यों लाया गया था?
वर्ष 1970 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने ऑपरेशन फ्लड की भारत में शुरुआत की थी ताकि भारत में आबादी के बढ़ने से जो दूध की कमी हो रही है उससे निपटा जा सके. इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य था दूध के उत्पादन में व्रद्धी, ग्रामीण उत्पादन को बढ़ावा देना और उपभोगताओं को उचित मूल्य प्रदान करना. इन उद्देश्य की आपूर्ति के लिए यूरोपीय प्रजातियों और उच्च संव्रद्धि के लिए विदेशी संकर प्रजातियों के आयात के साथ क्रॉस-प्रजनन का उपयोग किया गया. जिसके कारण भारत में देसी गायों की कमी हो गई.
तो अब आपको ज्ञात हो गया होगा कि A1 और A2 दूध में क्या अंतर होता है, किसमें किस प्रकार का प्रोटीन पाया जाता है और सबसे ज्यादा किस दूध का उत्पादन पूरी दुनियां में हो रहा है इत्यादि.
गाय के दूध को प्रकृति का सबसे अच्छा भोजन माना गया है, जो उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है। दूध कैल्शियम और प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है। दूध हमारे लिए मूल और मुख्य भोजन है।
गाय के दूध को माँ के दूध के बाद सबसे अच्छा स्रोत कहा जाता है। गाय के दूध के लाभों में आसान पाचन, विकासको बढ़ावा देना, कैल्शियम और आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करना शामिल है। गाय के दूध में 87.7% पानी, 4.9% लैक्टोज (कार्बोहाइड्रेट), 3.4% वसा, 3.3% प्रोटीन और 0.7% खनिज होते है ।
दूध में कुल प्रोटीन का 82% केसिन और शेष 18% सीरम प्रोटीन होता है । केसिन दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन का सबसे बड़ा समूह है जो की चार प्रकार का होता है α-S1, α-S2, β‐1(बीटा केसिन)और k-केसिन (कापा केसिन) । केसिन का महत्वपूर्ण कार्य कैल्शियम और फास्फोरस जैसे खनिजों के अवशोषण की क्षमता को बढाना है ।
मानव स्वास्थ्य पर A1 और A2 दूध का प्रभाव –
कई चिकित्सकीय प्रकाशन में यह पता चलता है की जो लोग होलस्टीन और जर्सी नस्ल गायों के दूध (A1) का सेवन कर रहे थे उनमे हृदय रोग पाया गया, जबकि जो लोग स्वदेशी गायों के दूध (A2) उपयोग कर रहे थे उनमे कोई हृदय रोग नहीं था । खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार A1 दूध के सेवन से कई पुरानी बीमारियों में वृद्धि हुई है।
डेयरी उत्पादों के बढ़ते सेवन के साथ अन्य आवश्यक पोषक तत्वों जैसे जस्ता, विटामिन ए, मैग्नीशियम, फोलेट, और राइबोफ्लेविन की खपत मानव शारीर के लिए बढ़ रही है । कई अन्य खाद्य स्रोतों में कैल्शियम की मात्रा कम होती है।
जबकि दूध में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जो ऑस्टियोपोरोसिस और कोलन कैंसर के जोखिम को कम करती है । मानव शरीर के लिए आदर्श कैल्शियम मैग्नीशियम अनुपात 2 : 1 होना चाहिए जो की A1 दूध में इसका अनुपात 10 : 1 होता है।
इस कारण से A1 दूध का सेवन करने वालो लोगो में कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा का असंतुलन रहता है, लेकिन A2 दूध इस तरह के असंतुलन का कारण नहीं बनता है । मैग्नीशियम हमारे पाचन में सुधार करने में मदद करता है तथा यह एंटीइन्फ्लेमेटरी भी होता है और शरीर में ऊर्जा का उत्पादन और संचय करने में भी इसकी आवश्यकता होती है ।
इसके आलावा A1 दूध का अधिक सेवन करने से मुँहासे, श्वसन संक्रमण, अस्थमा और एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है और यह पाचन समस्याओं का कारण बनता है ।
A2 गाय के दूध का किसानों की आय में योगदान –
भारत दो दशकों में दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है, जो दुनिया के दूध की आपूर्ति का लगभग 19 प्रतिशत योगदान देता है । A2 दूध अपने पोषण तत्वों के कारण लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, जिससे A2 गाय के दूध का महत्त्व A1 गाय के दूध की तुलना में बढ़ गया है
A2 गाय के दूध का मूल्य A1 गाय के दूध तुलना में अधिक हो गया है । हाल ही में अमूल ने बाजार में देसी गायों के दूध को A2 ब्रांड के नाम बेच रहा है ।
इसके आलावा देशी गायों का दूध उत्पादन संकर गायों की तुलना में कम होता है, इस कारण से भारत में अधिकतर किसान संकर गायें ज्यादा रखते है लेकिन वह यह नही जानते है की देशी गायों के रखरखाव की लागत बहुत कम है।
संकर गायों की तुलना में देशी गायें के चारे पर लागत कम आती है। देसी गाय साधारण स्थानीय चारे पर भोजन करती हैं, जबकि अन्य नस्ल के गायों को विशेष चारे की आवश्यकता होती है तथा देशी नस्ल की गायें यहाँ के वातावरण के अनुकूल होती है जिससे उनमे बीमारियाँ होने का खतरा संकरित नस्ल की गायों से कम होता है ।
इन सब बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए देशी गायों पर लागत कम आती है जिससे किसान को देशी गायों के दूध से ज्यादा मुनाफा हो सकता है ।
हमारी देशी डेयरी पशु A2 दूध का उत्पादन करते हैं और भारत प्राचीन सभ्यता से ही A2 दूध उत्पादन जानवरों से संपन्न है, जो की A1 दूध के बुरे प्रभाव से रक्षा करता है । अतः हमें A2 दूध ही पीना चाहिए क्योंकि यह हमें दूध से संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं से बचाता है विशेष रूप से A1 दूध से ।
ए-1 व ए-2 बीटा केसीन की पहचान कैसे हो?
दूध में पाये जाने वाले 80% प्रोटीन केसीन होते हैं जबकि 20% भाग व्हे प्रोटीनों का होता है। दूध के सकल प्रोटीन का 30% भाग बीटा केसीन प्रोटीन होते हैं। गायों द्वारा आरम्भ से ही दूध में ए-2 बीटा केसीन का निर्माण होता आया है तथा इसे स्वास्थ्य हेतु बेहतर भी माना जाता है। यूरोप की गायों में एक प्राकृतिक ‘म्यूटेशन’ होने के कारण दूध की ए-2 बीटा केसीन के गुण बदल गए। ए-2 बीटा केसीन के जीन में परिवर्तन आने से 229 अमीनो अम्लों की शृंखला में 67वाँ अमीनो अम्ल प्रोलीन के स्थान पर हिस्टीडीन हो गया जिसके फलस्वरूप ए-1 बीटा केसीन का निर्माण हुआ।
दूध को देखकर इसके ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीनयुक्त होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता परन्तु ‘पीसीआर’ अर्थात पॉलीमरेज चेन रीएक्शन आधारित परीक्षण द्वारा इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इस विधि में दूध के नमूनों से डीएनए या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड निकाला जाता है तथा ए-1 या ए-2 ‘प्रोब’ द्वारा उपयुक्त जीन की पहचान की जाती है। यह परीक्षण महंगा होने के कारण आसानी से सुलभ नहीं है।
जब तक देश में ए-1 तथा ए-2 दूध को प्रमाणित करने हेतु कोई संस्था नहीं बनती तब तक लोग इस विषय में जागरूक नहीं हो सकते। यह दुग्ध व्यवसायियों के विवेक पर ही निर्भर करता है कि वे किस दूध को ए-1 या ए-2 बताकर बेचें! पाचन क्रिया से सम्बन्धित एंजाइम 7 अमीनो अम्लों की शृंखला को ए-1 दूध में हिस्टीडीन की उपस्थिति के कारण अलग करने में सफल रहते हैं परन्तु ए-2 दूध में प्रोलीन होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाते। 7 अमीनो अम्लों की यह शृंखला बीटा केसोमॉर्फिन-7 या बीसीएम-7 कहलाती है जिसकी संरचना ‘मोर्फीन’ जैसी होती है। यह मादक पदार्थ प्राकृतिक रूप से नहीं मिलता तथा पाचन तंत्र को प्रभावित करने में सक्षम होता है।
पश्चिमी देशों में रहने वाले कई लोगों को ए-1 दूध हजम नहीं होता परन्तु ए-2 दूध आसानी से पचा लेते हैं। इसके बावजूद भी ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के बहुत से गो पालक अपनी गायों को केवल ए-2 दूध उत्पादित करते हुए नहीं देखना चाहते क्योंकि इससे यह सिद्ध हो जाएगा कि ए-1 दूध स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। प्रत्येक गाय में बीटा केसीन के कोड की दो प्रतियाँ होती हैं जो ए-1/ए-1, ए-1/ए-2 अथवा ए-2/ए-2 प्रकार की हो सकती हैं परन्तु इन दोनों में से कोई भी जीन ‘डोमिनेट’ नहीं कर सकता। अतः ए-1/ए-2 दूध उत्पन्न करने वाली होल्स्टीन गाय में ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीन बराबर मात्रा में पाई जाती है जबकि जर्सी गायों में एक तिहाई जीन ए-1 तथा दो तिहाई जीन ए-2 हो सकते हैं।
ए-1/ए-2 दूध पर गहराता विवाद
ए-1/ए-2 दूध के विषय में सर्वप्रथम विवाद तब हुआ जब वर्ष 1993 में ऑकलैंड विश्वविद्यालय के बॉब इलियट ने बताया कि ए-1 दूध से बच्चों को टाइप-1 का मधुमेह रोग हो सकता है। ऐसे ही अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि स्नायु तंत्र से सम्बन्धित विकारों से ग्रस्त बच्चों के रक्त में बीटा केसोमॉर्फिन-7 या बीसीएम-7 की औसत से अधिक मात्रा पाई गई है जो ए-1 दूध ग्रहण करने से सम्भव है।
परखनली आधारित परीक्षणों से पता चलता है कि पाचन क्रिया के दौरान बीसीएम-7 केवल ए-1 दूध से ही बन सकता है, परन्तु ए-2 दूध से ऐसा सम्भव नहीं है। बोस्टन के एक विश्वविद्यालय ने पाया है कि पाचन नली की कोशिकाओं में बीसीएम-7 की अधिक मात्रा होने से स्नायु कोशिकाओं में ‘एंटी-ऑक्सीडेंट’ की कमी हो जाती है जिसे ऑटिज्म जैसे विकारों से जोड़कर देखा जाता है परन्तु इस दिशा में अधिक अनुसन्धान करने की आवश्यकता है।
कहा जाता है कि ए-1 दूध से प्राप्त बीटा केसोमॉर्फिन-7 रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करती है जिससे टाइप-1 का मधुमेह रोग हो सकता है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसन्धान संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार चूहों को ए-1 बीटा केसीन खिलाने से ऐसे एंजाइम एवं प्रतिरक्षी नियंत्रकों की मात्रा बढ़ गई जो हृदय रोग एवं दमे से सम्बन्धित हैं। नवजात शिशुओं में बीसीएम-7 की अपेक्षाकृत अधिक मात्रा उनकी अचानक मृत्यु का कारण बन सकती है। ऐसे ही कुछ अनुसन्धानों से प्रेरित होकर न्यूजीलैंड की एक कम्पनी ने ए-2 दूध से निर्मित ‘इन्फेंट फूड’ बाजार में बेचना शुरू कर दिया। उल्लेखनीय है कि बीसीएम-7 प्रोटीन की अमीनो अम्ल शृंखला मानव दूध में पाई जाने वाली बीटा केसीन से मिलती जुलती है तथा इसमें केवल एक ही अमीनो अम्ल का अन्तर है।
कई अन्य अध्ययनों के अनुसार माँ के दूध तथा टाइप-1 के मधुमेह रोग में कोई परस्पर सम्बन्ध नहीं है हालांकि अपरिपक्व भोजन नली के कारण शिशु बीसीएम-7 प्रोटीन अवशोषित कर सकते हैं। बीसीएम-7 स्नायु, अन्तः स्रावी एवं प्रतिरक्षा तंत्र की अनेकों ग्राहियों को प्रभावित कर सकता है परन्तु ए-2 दूध के लाभकारी होने के विषय में अभी और अनुसन्धान करने की आवश्यकता है। अभी यह ज्ञात नहीं है कि बीसीएम-7 कितनी मात्रा में पाचन तंत्र द्वारा अवशोषित हो सकता है। कुछ परीक्षणों में तो ए-1/ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध में कोई अन्तर नहीं पाया गया है।
अभी तक मनुष्य में ए-1 बीटा केसीन के मधुमेह पर पड़ने वाले प्रभाव का कोई अध्ययन नहीं किया गया है। केवल एक परीक्षण किया गया है जिसमें ए-1 बीटा केसीन के कारण हृदय रोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। ए-1 तथा ए-2 बीटा केसीन का रक्त-चाप, धमनियों एवं अन्य रक्त-प्राचलों पर लगभग एक जैसा प्रभाव ही देखा गया है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि ए-1 बीटा केसीन के सेवन से हृदय रोग होने का खतरा होता है। हालांकि ऑटिज्म जैसे रोगों में बीसीएम-7 जैसे पेप्टाइड की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता परन्तु अधिकतर अध्ययनों में निकले परिणामों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस दिशा में अभी बहुत से अनुसन्धान करने की आवश्यकता है ताकि किसी तर्कसंगत परिणाम तक पहुँचा जा सके।
ज्यादातर भारतीय गौवंश ए2 दूध देने वाले
हांलाकि ये बात भी सही है कि ज़्यादातर भारतीय गौवंश ए2 टाइप दूध देते हैं. लेकिन सभी ऐसा किसी गौवंश के साथ नहीं होते। हर गौवंश चाहे वो देसी हो या विदेशी उनमें ए1 और ए2 टाइप दूध देने वाले दोनों पाए जाते हैं। जर्सी और एचएफ जैसी प्रजातियों में ए1 दूध देने वाले गायों की संख्या ज़्यादा होती है और देसी नस्लों में ए2 ज़्यादा। लेकिन पिछले 50 सालों में क्रास ब्रीड जिस तादाद में पूरी दुनिया में हुए हैं उससे ये स्थिति पैदा हुई है। लेकिन ए1 या ए2 दूध का पता केवल लैब जांच के बाद ही चल सकता है।
रायपुर में ए1 और ए2 दूध की जांच करने वाली संस्था के प्रमुख राजेंद्र तंबोली भी कहते हैं कि गाय को देखकर ये नहीं बताया जा सकता कि वो ए1 दूध देती है या ए2. केवल लैब में जांच के बाद ही यह बात बताई जा सकती है। आने वाले दिनों में ए2 दूध का उसके फायदे को देखते हुए मार्केट का व्यापक विस्तार होना है। लेकिन इसकी आड़ में लोगों को अवैज्ञानिक बातें बताकर उन्हें भ्रमित करना बेदह खतरनाक है।
निष्कर्ष
दूध में पाये जाने वाले कुछ प्रोटीन मनुष्यों के लिये अधिक असहनीय हो सकते हैं। शायद इसीलिये कुछ लोगों को ए-1 दूध की जगह ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध अधिक रास आता है। आजकल ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अभी तक ए-1 टाइप दूध तथा खराब स्वास्थ्य के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं पाया गया है। न्यूजीलैंड की ए-2 कॉरपोरेशन ने ए-1 व ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध में भेद करने वाले आनुवंशिकी आधारित परीक्षण का पेटेंट करवा लिया है जिससे उनके वाणिज्यिक हित जुड़े हुए हैं।
इस दिशा में होने वाले अधिकतर अनुसन्धानों को मिलने वाली वित्तीय सहायता भी इसी कम्पनी द्वारा दी जाती है। ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड स्वास्थ्य विभाग ने तो इन पर एक बार ए-2 टाइप दूध के तथाकथित लाभों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार करने पर जुर्माना भी लगाया है। ऐसे सभी विरोधों के बावजूद यह कम्पनी अपने उत्पादों का विपणन कई देशों में कर रही है। यह तो अब उपभोक्ता पर ही निर्भर करता है कि वह अपने विवेक से काम लेते हुए किसी भी प्रकार के दूध का सेवन करें क्योंकि दूध एक स्वास्थ्यवर्धक पेय पदार्थ है।
भारत की अधिकतर गाएँ केवल ए-2 टाइप दूध उत्पादित करती हैं जबकि सभी भैंसों का दूध प्राकृतिक रूप से ए-2 ही होता है। ए-2 दूध उत्पन्न करने वाली सभी देशी नस्लें अपने वातावरण के अनुरूप ढली हुई हैं। इनका दूध उत्पादन विदेशी नस्लों की तुलना में कुछ कम हो सकता है जिसे आजकल चयनित प्रजनन द्वारा बढ़ाना सम्भव है। अन्त में यही कहा जा सकता है कि ए-1 व ए-2 बीटा केसीनयुक्त दूध के विषय में छिड़ी बहस तब तक जारी रहने की सम्भावना है जब तक हमें इस दिशा में कोई ठोस वैज्ञानिक परिणाम न प्राप्त हो जाएँ।
डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश