आत्मनिर्भर भारत – पशुधन की क्षमता का खाद्य सुरक्षा एवं वित्तीय सुरक्षा के लिए उपयोग

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आत्मनिर्भर भारत पशुधन की क्षमता का खाद्य सुरक्षा एवं वित्तीय सुरक्षा के लिए उपयोग

डॉ जयंत भारद्वाज,

शोध छात्र, पशु व्याधि विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय , जबलपुर ,

(म. प्र.) I

सारांश :

आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न पशुपालक एवं राष्ट्र दोनों की ही खाद्य सुरक्षा एवं वित्तीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किये गए पशुपालन से ही संभव है I पशुधन प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति का अहम् अंग रहा है I कई कार्यों में पशु व उनके उत्पादों का उपयोग होता है I  एक ओर पशु उत्पादों से मनुष्य की भूख मिटती है , तो वहीँ दूसरी ओर ये आय का भी स्त्रोत हैं I अतः हमें विभिन्न नयी तकनीकों का उपयोग कर पशुओं से उत्पादन बढ़ाना होगा एवं उससे आय में भी वृद्धि करनी होगी I

मुख्य शब्द : आत्मनिर्भर , पशुधन , पशुपालन , ग्रामीण , दूध , मांस I

 

आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न बिना पशुधन के ठीक वैसा ही है जैसा कि बिना आत्मा के शरीर I यह स्वप्न तभी पूर्ण हो सकता है जब हम पशुपालक एवं राष्ट्र दोनों की ही खाद्य सुरक्षा एवं वित्तीय सुरक्षा के लिए पशुधन की असीम क्षमता का समुचित उपयोग करें I पशुधन को पशुधन यूँ ही नहीं कहा जाता I यह न जाने कितने भारतीयों के लिए कुबेर के खजाने के समान है I यह वह धन है जो एक गरीब किसान को हिम्मत देता है कि वो भी अपने परिवार को सुख – सुविधा देने का स्वप्न देख सके I यही तो वो धन है जिस पर विश्वास करके गरीब पशुपालक परिवार के किसी भी सदस्य के बीमार हो जाने पर उपयोग कर सकता है I शादी, समारोह, बच्चों की शिक्षा, घर की मरम्मत इत्यादि आपातकाल स्थिति में पशुधन बेहद ही उपयोगी सिद्ध होता है I पशुधन किसान को एक ओर जहाँ नियमित आय देता है , वहीँ दूसरी ओर आवश्यकता पड़ने पर पशुपालक इसे बेचकर धन प्राप्त कर सकता है I

पशुपालन की आज के समय में अत्यंत ही महत्ता है I हम सभी जानते हैं कि संसार भर में जितनी भी धरती है वह सीमित है और वह पगेगी नहीं I साथ ही बढ़ती जनसंख्या के कारण जंगलों की जगह कंक्रीट के जालों ने ले ली है एवं दिन प्रतिदिन खेती करने योग्य ज़मीन भी घटती जा रही है I  भारत में प्रतिवर्ष लगभग तीस हज़ार हेक्टेयर खेती योग्य ज़मीन घट रही है I हाल ही में हुई एक सर्वे के अनुसार वर्ष २०२१-२२ में ०. ९५ % की दर से भारत की जनसंख्या बढ़ी है I ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के भरण – पोषण में कृषि असमर्थ सिद्ध हो रही है I अतः अब हमें अन्य ऐसे स्त्रोतों की भी आवश्यकता है जिनसे मानवों की क्षुधा मिट सके I पशुधन इसका सर्वोत्तम विकल्प होगा I

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प्रारम्भ से ही हम दुग्ध, मांस, ऊन और न जाने कितने ही उत्पादों के लिए पशुओं पर निर्भर रहते आए हैं I समय आ गया है कि हम पशुपालन वैज्ञानिक पद्धति से करें I हम ऐसे तौर तरीके अपनाएं जिनसे पशु उत्पादों की मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों में ही वृद्धि होवे जिससे हम मानवों की भूख मिटा सकें तथा पशु उत्पादों को देश – विदेश में बेचकर आय भी कर सकें I

हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है I मगर यह भी सर्व विदित है कि भारत में कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती है एवं वर्ष भर में किसानों को अधिकाधिक १८० दिवस का ही रोजगार प्रदान करती है I ऐसे में पशुपालन खाली समय में रोजगार का बेहतर विकल्प है I भारत के ग्रामीण अंचलों की दो तिहाई जनता पशुपालन कर रही है I यह भारत के ८.८% लोगों को रोजगार भी देता है I लगभग २०. ५ मिलियन लोग अपनी रोजी – रोटी के लिए पशुओं पर निर्भर हैं I आज भी भारत के पिछड़े इलाकों में कई कृषि कार्य बैलों से ही संभव हैं I भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ऊँट, घोड़े, गधे, टट्टू, खच्चर इत्यादि का सामान ढ़ोने के लिए उपयोग होता है I पहाड़ी क्षेत्रों में तो सिर्फ खच्चर और टट्टू ही सामान ढ़ोने का एकमात्र सहारा हैं I सेना भी सामान ढ़ोने के लिए इन पशुओं पर निर्भर है I गोबर एवं अन्य पशु अपशिष्ट बेहद ही अच्छे खाद का कार्य करते हैं I कृषि उत्पादों का उपयोग पशुओं के लिए एवं पशु उत्पादों का उपयोग कृषि के लिए किया जाये तो ये बेहद ही लाभकारी होगा I गोबर का ईंधन के रूप में कंडे बनाकर उपयोग होता है I साथ ही इससे गोबर गैस भी बनायीं जा सकती है , जो कि पर्यावरण हितैषी भी है I गोबर से घर की लिपाई – पुताई भी की जाती है I ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं को संपत्ति के तौर पर देखा जाता है एवं संकट की घडी में इनके आधार पर ऋण मिल सकता है I विभिन्न प्रकार के अनावश्यक घास, पौधे, झाडी इत्यादि की जनसँख्या को पशु नियंत्रित करते हैं I दूध एवं मांस पशु प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत हैं और हम जानते हैं कि प्रोटीन हमारी शारीरिक वृद्धि का मुख्य आधार है I

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वर्ष २०२१-२२ में भारत की जीडीपी में कृषि का १८.८ % योगदान रहा I साथ ही पशुधन का जीडीपी में ४. ११ % तथा कृषि जीडीपी में २५. ६ % योगदान रहा I पशुपालन क्षेत्र का जीव्हीए वित्तीय वर्ष २०२१-२२ में ११,१४,२४९ करोड़ रहा जो कि कृषि एवं उससे सम्बंधित क्षेत्रों का ३०. ८७% है एवं कुल जी व्ही ए का ६.१७% है I विश्व में सर्वाधिक पशुपालक (लगभग ५३५. मिलियन) हमारे यहाँ ही बसते हैं I हम पशुओं की जनसँख्या में भी विश्व में प्रथम हैं I हम संसार भर में दुग्ध उत्पादन में प्रथम हैं I वर्ष २०२०-२१ में भारत में २०९.९६ मिलियन टन दुग्ध का उत्पादन हुआ, ८.८० मिलियन टन मांस पशुओं से प्राप्त हुआ एवं ३६. ९ मिलियन कि. ग्रा. ऊन प्राप्त हुई I  यह भारत वर्ष की पशुपालन के क्षेत्र में प्रगति को दर्शाता है एवं भारत की एवं पशुपालक की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करता है I हम कृषि के क्षेत्र में यथासंभव नवीनतम तकनीकों का विकास कर उन्हें ज़मीनी स्तर पर लागू कर चुके हैं I

यह पशुपालन ही है जो ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक संबल देता है I बकरियों से हमें पश्मीना जैसी ऊन प्राप्त होती है जो कि विश्वप्रसिद्ध है एवं उसका निर्यात कर हम विदेशी पूँजी कमाते हैं I एक अनुमान के अनुसार वर्ष २०२२-२३ में हम चमड़े का ४४,८०० करोड़ का निर्यात करेंगे I  हमने वित्तीय वर्ष २०२१-२२ में ४२,२८५ बकरियों का निर्यात भी किया है I दूध, मांस, पशु एवं ऐसे ही न जाने कितने ही पशु उत्पादों का निर्यात कर हम धन कमा रहे हैं I यह धन निश्चित तौर पर भारत की एवं पशुपालक की वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करता है I

पशुपालन और डेयरी विभाग की २०२१-२२ की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार आज हमारे यहाँ ४२७ ग्रा/दिवस/व्यक्ति दूध का सेवन हो रहा है और कुल पशुधन ५३,६७,६१,३४३ है , जबकि फ़िनलैंड जैसे छोटे से देश में कुल पशुधन २३,३७,००० है मगर १.१८० कि.ग्रा. /दिवस/व्यक्ति दूध का सेवन होता है I भारत में ७.७ % बच्चे गंभीर कुपोषण , १९.३ % कमज़ोर एवं ३५. ५ % बच्चों की वृद्धि दर अत्यंत ही कम है I २०१७ की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत के १९ करोड़ लोगों को दो ज़ून की रोटी नहीं मिल पाती I इन समस्याओं का हल पशुपालन के सम्पूर्ण विकास में ही नज़र आता है I भूख से जुडी समस्या और खाद्य सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल १६ अक्टूबर को वर्ल्ड फ़ूड डे मनाया जाता है I

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हमने वित्तीय वर्ष २०२१-२२ में ६०,२३६. ९८ यूनिट दूध पाउडर का आयात किया, जबकि ३,९४,९५० यूनिट स्किम्ड दूध का आयात किया और ६६,०७४ यूनिट स्किम्ड दूध का निर्यात किया I यह बताता है कि भले ही हम दुग्ध उत्पादन में विश्व में नंबर वन हों परन्तु आज भी हम दुग्ध प्रसंस्करण की तकनीकियों में पीछे हैं I तभी तो हमें दुग्ध उत्पादों का अन्य देशों से आयात करना पड़ रहा है I अब समय आ गया है कि हम ऐसी – ऐसी नवीन तकनीकों का विकास करें जिनसे पशुधन की क्षमता का अधिकाधिक लाभ उस पशुपालक तक पहुंचे जो कि देश के सबसे पिछड़े इलाके से सम्बन्ध रखता हो I हमें कृत्रिम गर्भाधान , भ्रूण प्रत्यारोपण इत्यादि पर जोर देना होगा जिससे हमें भविष्य में अच्छी नस्ल के पशु प्राप्त होवें I वैज्ञानिक तरीकों से पशुओं का दाना – पानी , उनके रहने की व्यवस्था इत्यादि को भी सुनिश्चित करना होगा जिससे हमें पशुओं से उत्पाद अधिकाधिक मात्रा में प्राप्त हो सकें I पशु उत्पादों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने की विधियां, उत्पादों को नए रूपों में सहेजने की तकनीकियों इत्यादि का भी विकास करना होगा I हमें पशु उत्पादों को ऐसे नए रूपों में बदलने की तकनीकियों पर भी अनुसन्धान करने होंगे जिनसे उनकी कीमत में वृद्धि हो सके I हमें पशुओं की ऐसी बीमारियों को अवश्यंभावी रूप से रोकने के प्रयत्न करने होंगे जिनसे हमें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है I आज भारत में तेजी से ये सारे ही कार्य किये जा रहे हैं I निश्चित तौर पर एक दिन ऐसा आएगा जब हमारे यहाँ फिर से दूध की नदियां बहने लगेंगी I यदि यह कहा जाये कि ये वही दिन होगा जब पशुधन भारत के हर नागरिक की खाद्य सुरक्षा एवं पशुपालक एवं राष्ट्र की वित्तीय सुरक्षा करने में समर्थ हो जायेगा तो कोई अतिश्योक्ति न होगी I इस दिन चहुँ ओर से आत्मनिर्भर भारत का स्वर गूँज उठेगा I

https://www.pashudhanpraharee.com/atmanirbhar-bharat-harnessing-potential-of-livestock-sector-for-food-safety-and-financial-security/

https://vikaspedia.in/news/atmanirbhar-bharat

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