वैकल्पिक चारे के रूप में सहजन
रामस्वरूप एवं संदीप कुमार
पशु पोषण विभाग
लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार
भारत दुनिया का सबसे अधिक पशुधन आबादी वाला देश है और ये प्रति वर्ष 4.8% की दर से बढ़ रही है। तदनुसार, इतनी बड़ी पशुधन आबादी को खिलाने के लिए देश की फ़ीड आवश्यकता भी बढ़ रही है। पशुधन क्षेत्र के विकास के लिए पर्याप्त पौष्टिक आहार और चारे की नियमित आपूर्ति आवश्यक है। बढ़ती जनसंख्या और घट रही जमीन के कारण गुणवत्ता वाले चारे की कमी, पशुधन की उत्पादकता को कम करने में प्रमुख कारक है। वर्तमान में देश को 35.6% हरे चारे, 10.95% सूखे चारे और 44% दाना फ़ीड की कमी का सामना करना पड़ रहा है। हरे और सूखे चारे की मांग 2050 तक 1012 और 631 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी। इसलिए, इस घाटे को पूरा करने के लिए, पशुपालन को बनाए रखने के लिए चारे की आपूर्ति सालाना 1.69% की दर से बढ़ना जरूरी है। चारे की कमी का हल निकालने के लिये हमें अन्य विकल्प तलाशने होंगे l ऐसा ही एक पेड़ है सहजन जिसका उपयोग मवेशियों के चारे के लिये किया जा सकता हैl इसे मोरिंगा भी कहते है, जो अपनी फलियों के लिए “ड्रमस्टिक ट्री” के रूप में जाना जाता है l ड्रमस्टिक का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है l यह तेजी से बढ़ने वाला पेड़ बहुउद्देश्यीय उपयोग के लिए लगभग पूरे भारत भर में उगाया जा सकता है। भोजन, पशुधन चारा, औषधि मूल्य, डाई इत्यादि में इसका प्रयोग किया जाता है। मोरिंगा की पत्तियों में बीटा-कैरोटीन, प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम और आयरन की अच्छी मात्रा होती है। चूंकि मोरिंगा की पत्तियां प्रोटीन से भरपूर होती हैं, इसलिए इसका इस्तेमाल दुधारू पशुओं के पूरक चारे के रूप में किया जा सकता है। बल्कि, इसके पत्तों में पारंपरिक प्रोटीन सप्लीमेंट्स जैसे बिनौला खल, सूरजमुखी खल, तिल खल आदि की तुलना में बहुत अधिक प्रोटीन होता है। इसके अलावा इसके पते एंटीऑक्सीडेंट और रोगाणुरोधी गुणों से युक्त होते हैं l
पोषक मूल्य
सहजन की पत्तियों में 25.81 फीसद प्रोटीन (जिसमें से लगभग 47 % , बाईपास प्रोटीन होता है), 6.6 फीसद क्रूड फैट, 16.46 फीसद क्रूड फाइबर व 2.88 फीसद अम्ल में न घुलने वाले लवण पाये जाते है, जो बाजार में मिलने वाले कैटिल फीड से कहीं ज्यादा है। इसलिए यह 40 फीसद तक दूध बढ़ाने की क्षमता रखता है।
सहजन में थेओनीन, मेथिओनिन, वेलिन, फिनाइलएलनिन, आइसोल्यूसीन, ल्यूसीन, हिस्टीडीन, लाइसिन और ट्रिप्टोफैन जैसे सभी आवश्यक एमिनो एसिड पाऐ जाते हैं और इसमें गंधक युक्त एमिनो एसिड उच्च मात्रा में होता हैं ।
मिथिओनिन की मात्रा भी सहजन में अल्फा चारे की तुलना में अधिक होती है । बीटा कैरोटीन, विटामिन सी, मैग्नीशियम और आयरन की भी अच्छी मात्रा होती है । इसमें टैनिन की कम मात्रा होती हैं । पत्तियों में ओमेगा 3 फैटी एसिड से भरपूर लिपिड (8-9 %) होते हैं ।
यह एण्टी वैक्टेरियल होने साथ एण्टी वायरल, एण्टी आक्सीडेंट व एण्डी प्रोटोजन गुणो से भरपूर है।
https://www.pashudhanpraharee.com/use-of-moringa-tree-as-green-fodder-for-dairy-cattle/
कटाई एवं उपज
इसे बीज एवं वानस्पतिक तने के टुकडे के माध्यम से लगाया जाता है । बुवाई के 3 महीने बाद फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है । अच्छा चारा उत्पादन , जमाव एंव दुबारा अच्छी वृद्धि के लिए पौधे की जमीन से 30 से.मी. ऊपर से कटाई करें । 3 महीने से पहले कटाई करने पर तना पतला एवं कमजोर रह जाता है और पौधे की पुनः वृद्धि में कमी और मृत्यु – दर अधिक हो सकती है । आगे की कटाई 2 महीने के अन्तराल पर, जब फसल की बढ़वार 5 से 6 फीट हो तब करनी चाहिए । प्रत्येक कटाई के बाद , तेजी से दुबारा बढ़वार हो इसके लिए 30 किलोग्राम नाइट्रोजन उर्वरक प्रति हैक्टेयर की दर से डालें और सिंचाई करें । खरपतवार नियंत्रण के लिए कतारों के बीच हल्की निराई – गुड़ाई करें । प्रतिवर्ष मोरिंगा से लगभग 100 से 120 टन प्रति हैक्टेयर हरे चारे की उपज प्राप्त होती है ।
पशुओं को खिलाना
मोरिंगा हरे चारे को 2-3 सेमी . छोटे टुकड़ों में चारा कटाई मशीन से काट कर दुधारू पशुओं को खिलाया जा सकता हैं । मोरिंगा चारा को धीरे-धीरे आहार में शामिल किया जाना चाहिए । एक पशु को प्रतिदिन से 20 किलोग्राम काटा हुआ मोरिंगा हरा चारा किसी भी सूखे या अन्य हरे चारे के साथ मिलाकर खिलाया जा सकता है ।
http://benisonmedia.com/moringa-indian-perspective-of-an-alternative-source-for-fodder/