पशुओं के उपचार के लिए विभिन्न घोल एवं मलहम की उपयोग
मवेशी या अन्य पशुधन के बीमार हो जाने पर उनका इलाज करने के वनिस्पत उन्हें तंदुरूस्त बनाये रखने का इंतजाम करना ज्यादा अच्छा है। कहावत प्रसिद्ध है “समय से पहले चेते किसान”। पशुधन के लिए साफ-सुथरा और हवादार घर, सन्तुलित खान-पान तथा उचित देख भाल का इंतजाम करने पर उनके रोगग्रस्त होने का खतरा किसी हद तक टल जाता है। रोगों का प्रकोप कमजोर मवेशियों पर ज्यादा होता है। उनकी खुराक ठीक रखने पर उनके भीतर रोगों से बचाव करने की ताकत पैदा हो जाती है। सतर्क रहकर पशुधन की देख – भाल करने वाले पशुपालक बीमार पशु को झुंड से अलग कर अन्य पशुओं को बीमार होने से बचा सकते हैं।
पोटेशियम परमैंगनेट घोल:
कीटाणुनाशक, रंग लाल, 5% का घोल साधारण सफाई में और 0.1-1% का घोल घाव धोने में। सांप काटने पर इसके रवों का प्रयोग किया जाता है। इसे लाल दवा के नाम से भी जाना जाता है। 1-4% का घोल एंटीसेप्टिक के रूप में घाव, फोड़े, गैंग्रीन ओटोरिया , ल्यूकोरिया ,मेट्राइटिस तथा वैजीनाइटिस आदि मैं धुलाई के कार्य में प्रयुक्त होता है। सामान्यता साधारण तथा ताजे घाव मुंह के छाले आदि की चिकित्सा एवं हाथों की धुलाई हेतु एक १:१००० का घोल ही यथेष्ट होता है।
नॉरमल सलाइन घोल:
यह 0.9% की शक्ति का घोल होता है। इसे बनाने हेतु 9 ग्राम सोडियम क्लोराइड एक फ़लासक में लेकर उसमें आसुत जल को मिलाकर 1 लीटर तक बना लिया जाता है। इसे ऑटोक्लेव द्वारा शोधित कर लिया जाता है। इसका प्रयोग पशु की निर्जलीकरण अवस्था में, ग्लूकोस सलाइन बनाने तथा अन्य कई कार्यों में किया जाता है।
सोडियम थायो सल्फेट(हाइपो) :
इसका 20% का घोल पशु की सायनाइड विषाक्तता की चिकित्सा में बहुत ही लाभकारी होता है। इसमें सोडियम नाइट्राइट का 20% का घोल 10 मिलीलीटर अंतः सिरासूचीवेध द्वारा देने के तुरंत बाद हाइपो का 20% का घोल 30 से 40 मिली अंत:सिरासूची वेध द्वारा देकर गौ या महिष वंशीय पशुओं के प्राणों की रक्षा की जाती है।
बोरिक एसिड घोल:
बोरिक एसिड का गुलाब जल में 1% का घोल आंखों के दुखने अर्थात कंजेक्टिवाइटिस की चिकित्सा में बड़ा उपयोगी होता है। मुंह के घाव को, फिटकरी के पानी से धोकर छोआ और बोरिक एसिड का घोल लगाने से फायदा होता है। थन पर घाव होने पर थन को पोटाश से धोकर बोरिक एसिड प्रतिदिन लगाना चाहिए।
लाइम वॉटर:
कैल्शियम हाइड्रोक्साइड 10 ग्राम एक फलासक में लेकर उसने पानी मिलाकर 1 लीटर बनाने के पश्चात बार-बार हिला कर बनाया जाता है। इसका उपयोग एंटीसेप्टिक, पैरासिटीसाइड, एंटासिड तथा एसटिृनजेंट के रूप में किया जाता है।
कैरन आयल:
इसे लाइम वाटर तथा अलसी के तेल की समान मात्रा को मिलाकर बनाया जाता है। इसका प्रयोग पशु के जलने पर प्रभावित भागों पर लगाकर किया जाता है।
बोरोग्लिसरीन:
इसमें बोरिक एसिड 15 भाग लेकर ग्लिसरीन मिलाकर 100 मिली तक बना लेते हैं। मुंह में छाले पड़ जाने की चिकित्सा में यह बड़ा लाभकारी होता है।
एलम-कोलीरियम:
एलम या फिटकरी का 1% का जलीय घोल मुंह में छाले पड़ जाने या मुंह में घाव आदि की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
जिंक मल्हम:
जिंक ऑक्साइड 15 भाग तथा वैसलीन 85 भाग विधिवत मिलाकर यह मल्हम बनाया जाता है। इसका उपयोग एग्जिमा तथा अन्य घावों की चिकित्सा में किया जाता है। इस मलहम मैं 1% कार्बोलिक एसिड मिला देने से इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है।
कलमी शोरा –
पानी में घोलकर पिलाने से खून बन्द करता है। यह बुखार में भी प्रयोग होता है। इनके अतिरिक्त सौंफ पेट की खराबी में, 30-60 ग्राम, हींग अफरा व मरोड़ में 2-4 ग्राम, काला नमक हाजमा ठीक करने के लिए 2-4 ग्राम, सोहागा मुंह का जख्म धोने के लिए (3 भाग सुहागा, 22 भाग ग्लिसरीन), सौंठ ऐंठन कम करता है तथा गर्मी पैदा करता है खुराक 4-8 ग्राम, भाँग दर्द कम करता है खुराक 1-2 ग्राम, ईसबगोल दस्त में 30-60 ग्राम, कुचला बलवर्धक तथा हाजमा ठीक करता है। खुराक 1-2 ग्राम।
बोरो कैलोमेल:
इसमें कैलोमेल एक भाग तथा बोरिक एसिड आठ भाग मिलाया जाता है। यह पाउडर ओपेसिटी आफ कार्निया यानी आंख में फूली पड़ जाना की चिकित्सा में बहुत लाभकारी है।
टिंचर फेरीपर क्लोराइड:
स्ट्रांग सलूशन ऑफ फेरिक क्लोराइड 5 भाग 90% एल्कोहल 25 भाग तथा पानी 50 भाग मिलाकर यह बनाया जाता है। इसका मुख्य उपयोग रक्त के बहाव को बंद करने के लिए किया जाता है।
सल्फर मल्हम:
सल्फर सबलीमेट एक भाग तथा वैसलीन 9 भाग मिलाकर इसे बनाया जाता है। इसका प्रयोग दाद खाज खुजली आदि में होता है।
गोल्डन लोशन:
सबलाइज्ड सल्फर 1 ग्राम क्विक लाइम 2 भाग पानी 10 भाग मिलाकर धीरे धीरे तब तक गर्म करें जब तक इस का रंग गोल्डन येलो यानी सुनहरा पीला ना हो जाए। इससे दो-तीन दिन तक रखकर छोड़ दें,तत्पश्चात इसे छान लें और खुजली या मेंज की चिकित्सा हेतु इसका प्रयोग करें।
एक्रीफ्लेविन सलूशन:
इसका 0.1-0.2% जलीय घोल एंटीसेप्टिक के रूप में घाव ,कटने तथा जलने की चिकित्सा में किया जाता है