वनराजा मुर्गी पालन
अनुपम सोनी, शरद मिश्रा, निष्मा सिंह, रूपल पाठक, नीतू सोनकर, एमडी बोबडे, आशुतोष दुबे, एस. के. यादव, अंकित कश्यप और अरुण सिंह पशुचिकित्सा और पशुपालन महाविद्यालय सीजीकेवी दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001- भारत
देशी मुर्गी के उत्पाद को रंजकता, सवाद, तुनुजा एवं उपयुक्तता के लिए पंसद किया जाता है। लेकिन देशी मुर्गी की कम उत्पादकता होने के कारण इसके पालन में अत्यन्त लाभ है। इन बात को ध्यान में रखते हुए कुक्कुट परियोजना संचनालय हैदराबाद के द्वारा अधि क्षेत्रों फ्री रेज पालन के लिए वनराजा मुर्गी की प्रजाती विकसित की गई है। यह छिकाजी नस्ल है।
- यह बहुवषीय एवं आकर्षक पक्षी है।
- श्रोग प्रतिरोषक क्षमता होने के कारण रोग ग्रस्त होने की सांम्भावना कम है।
- निम्न आहार उपलब्धता पर अच्छी वृद्धि दर
- देशी मुर्गी के अपेक्षा अधिक वृद्धि दर अंड़ा उत्पादन अंड़े के समान होता है।
- वनाराजा का मास स्वादिष्ट एवं कम चर्बी वाला होता है। होने के कारण भार उपेक्षाकृत कम एवं पिण्डली लम्बा होने कारण यह परभक्षी से स्वयं की रक्षा करने मं अधिक सक्षम है।
- वनाराजा मुर्गी फ्री रेंज (खुला विचरण) में उत्तम प्रदर्शन करता है।
वनाराजा मुर्गी का प्रदर्शन
एक दिन के चूजे का वजन 34 से40 ग्राम
6 सप्ताह में शरीर भार 700 से 850 ग्राम
एक कि.गा. शरीर भार प्राप्तकरने का काल 8 सप्ताह
अंड़ा की प्रतिशतता 72
अंड़ा उत्पादन आरम्भ 175 -180 दिन
अंडो से चूजे का उत्पादन 80 प्रतिशत
अंडो का औसत वनज 55 -63 ग्राम
अंडों को देशी मुर्गी के द्वारा सेने से चुजा प्राप्त किया जा सकता है।
ब्रूडिंग – अंडों से चूजा प्राप्त होते ही उसके शरीर का तापक्रम नियंत्रित रखने के लिए गब्रूडिंग की आवश्यकता होती है। ब्रूडिंग इन्फ्रोरेड लैम्प, गैस, ग्रूडर या पंरपरात बल्ब, बूखारी, किरासन तेल ग्रूडर से किया जा सकता है। ग्रूडिंग के लिए पहले सप्ताह तापक्रम 95F रखा जाता है जिसे प्रति सप्ताह तापक्रम कम करते हुए 70F पर ले आया जाता है। चूजों को बिखराव पर नियंत्रण के लिए चिक गार्ड का प्रयोग किया जाता है। चिक गार्ढ के अन्दर चूजो का एक समान फैलाव आर्दश तापक्रम का सुचक है।
आवास – ग्रमिन क्षेत्रों में चूजों को शुरू से बाजार भेजने तक एक शेड में रखा जाता है। इसलिए आवास में प्रति पक्षी सतही क्षेत्रफल संसाधन 1.5 -2.0 वर्ग फीअ रखा जाता है। स्थानिय उपलब्ध संसाधन से आवास का निर्माण कम लागत पर किया जा सकता है। आवास में उचित वायु संचार, प्रकाश एवं परभक्षी से सुरक्षा की व्यवस्था रखी जाती है। रोग रोकथाम में बिछाली बहुत ही सहायक है। अतः फर्श पर 2-3 ईंच बिछालि डाला जाता है जिसे शुष्क रखा जाता है। बिछाली को समय पर उलटते पलटटे रखते हैं। जिसका अन्तराल वायु संचार वातावरण का तापक्रम, आद्रता, विष्ठा में नमी एवंज ल की गुणवता पर निर्भर करता है।
आहार – आरम्भ के 2 – 5 दिनों तक बिछाली तक बिछाली पर अखबार डालकर प्रदान किया जाता है। आरम्भ के 6 सप्ताह तक विटामिन एवं खनिज लवण से परिपूर्ण संतुलित आीार प्रदान किया जाता है। आहार की उपापचयी उर्जा 2400 सहंस सह, प्रोटीन, प्रतिशत लाइसिन 0.77 प्रतिशत, मेथियोनिन 0.36 प्रतिशत फास्फोरस 0.35 प्रतिशत एवं कैलशियम 0.7 प्रतिशत रखा जाता है।
पक्षी पालक स्थानिय उपलब्ध आहार अव्यय को लेवर स्वंय आंरभिक 6 माह तक प्रदान करने वाला आहार बना सकते हैं।
अव्यय प्रतिशत मात्रा
- मक्का/बाजरा/रागी/चावल टूट 80
- चावल चोकर/गेहू चोकर/तेल रहित चावल भूसी 18.60
- सोयाबिन खल/मुंगफली खल/सुर्यूमुखी खल/तीथ खल/अलसी खल 28
- डायकैल्शियम फॉस्फेट 1.20
- चूना पत्थर 1.30
- नमक 0.50
- विटामिन एवं खनिज लवण मिश्रण (प्रिमिक्स) 0.30
बाजार में उपलब्ध ब्रायलर मैस का प्रयाग भी किया जाता है। पक्षी को आंरभिक (4-6 सप्ताह) अवस्था में इच्छाभार आहार प्रदान किया जाता है। ताकि इसका पंख, केकाल तथा प्रतिरक्षा तंत्र का उचित विकास हो। फ्री रेज पालन में 6 सप्ताह के बाद पक्षी को दिन में ताकि खुला विचरण को लिए मुक्त कर देते हैं ताकि वह चरायी कर सके। एक बार चूजे आहार ढूढना सिख लेते हैं तो वह आसानी से खुला विचरण में आहार ग्रहण कर लेते हैं। चरायी के दौरान पक्षी कीट, हरा खरा, गिरा हुआ अनाज, घास की बीज ग्रहण करता है। जिससे वे प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ती कर लेते हैं। उर्जा पूर्ती के लिए अनाज जैसे बाजरा, मक्का, रागी, ज्वार, चावल टूट 10-20 ग्राम प्रति पक्षी प्रतिदिन शाम में मुर्गी के आहार में उजला चिटी शामिल किया जा सकता है जो प्रोटीन विटामिन तथा खनिज लवण का उत्तम श्रोत्र होने के साथ – साथ वसा भी प्रदान करता है। उजला चिटी उत्पादन के लिए पुरानी पटसन की बोरी को गाय के गोबर के घेल में डुबोकर खुली क्षेत्र देते हैं। 1-2 दिनों में पटसन की बोरी में चिटीं उत्पन्न हो जाता है। जिसे मुर्गे बजे चाव से चूगते हैं।
टीकाकरण कार्यक्रम
सघन पालन में पक्षी पालक बाजार में उपलब्ध स्ट्राटर, फिनिथारि, तथा लेयर मैस का उपयोग कर सकते है। मांस उत्पादक या अंड़ा उत्पादक चूनों को आरम्भ के 6 सप्ताह तक स्ट्राटर मैस तत्पश्चात मांस उत्पादक मुर्गी को फिशिथर आहार तथा अंड़ा उत्पादक के लिए मुर्गी को 7-18 सपताह तक ग्रोवर मैस तथा 19 सप्ताह से लेयर मौस दिया जाता है। ध्यान रखा जाता है। कि मुर्गी जिसका पालन अंड़ा के लिए किया जाता है। उनका वनज 6 से 6.5 माह में 2.2 – 2.5 कि.ग्रा. से अधिक न हो इसके लिए सीमित आहार पर इच्छाभार आहार का 40 प्रतिशत कर दिया जाता है। क्योकि शरीर भार बढ़ने से अंडा उत्पादन घट जाता है।
उम्र | रोग | स्ट्रेन | खुराक | मार्ग |
1 दिन | मैरेक्स रोग | एच.मी.टी. | 0.2 मी.ली. | अघोत्वचीय |
5 दिन | रानीखेत रोग | ल्सोटा | एक बून्द | आँख |
14 दिन | ग्मबोरो | —— | एक बून्द | मुँह
|
21 दिन | माता | मुर्गी माता | 0.20 मी.ली. | अंतः मास पेशी/अधोत्तवचीय |
28 दिन | रानीखेत रोग | ल्सोटा | एक बून्द | आँख |
9वा सप्ताह | रानीखेत रोग | टार टू बी | 0.50 मी.ली | अधोत्वचीय |
12 वा सप्ताह | माता | मुर्गी माता | 0.20 मी.ली. | अधोत्वचीय |
उपरोक्त दो टिकोषधि प्रत्येक 6 माह के अन्तराल पर दिया जाता है।
रोधात्मक दवा
तनाव रोधी दवा प्रथम दिन इलेक्ट्रो लाइट जल में मृत्यु दर कम करने के लिए 15 दिन जीवाणु नाशक जल में मिश्रित कर दिया जाता है।