वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) एक उन्नत उत्पादन तकनीक

0
2776

वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) एक उन्नत उत्पादन तकनीक

डॉ.विनय कुमार एवं डॉ.अशोक कुमार

                     पशु विज्ञान केंद्र, रतनगढ़ (चूरु)

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

रासायनिक खाद के बढ़ते प्रयोग से मृदा की उर्वरता बहुत ही कम होती जा रही है एवं इसके साथ-साथ रासायनिक खाद देने से खेतों में पानी की आवश्यकता ज्यादा पड़ती है। इसके अलावा यह किसान के लिए लाभदायक सूक्ष्मजीवों को भी मार देती है तथा पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह होती है। इन्हीं सब कारणों से लोग केंचुआ खाद या जैविक खाद (जिसे वर्मीकंपोस्ट भी कहा जाता है ) का प्रयोग करने लगे हैं,जिससे कि उनकी मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ी है तथा उसके साथ-साथ कम लागत में अच्छी एवं पौष्टिक फसल उपजा रहे हैं। कूड़ा कचरा तथा गोबर को जब केंचुए खाते हैं और खाने के बाद जो मल त्याग करते हैं वही हमें खाद के रूप में प्राप्त होती है, जिसे हम जैविक खाद या केंचुआ खाद अथवा वर्मी कंपोस्ट भी कहते हैं।लोगों में बढ़ती जागरूकता के कारण भी ऑर्गेनिक फसल की डिमांड बहुत ही तेजी से बढ़ती जा रही है ,जिसकी पूर्ति हेतु लोग और भी तेजी से जैविक खाद का इस्तेमाल करने लगे हैं। जैविक खेती करने के लिए वर्मी कम्पोस्ट का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि यह खाद बहुत ही कम समय और कम कीमत में तैयार हो जाती है|

वर्मीकम्पोस्ट क्या है-

वर्मीकम्पोस्ट को केंचुआ खाद के नाम से भी जाना जाता है। केंचुओं के द्वारा जैविक पदार्थों के खाने के बाद उसके पाचन-तंत्र से गुजरने के बाद जो उपशिष्ट पदार्थ मल के रूप में बाहर निकलता है उसे वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद कहते हैं। यह हल्का काला, दानेदार या देखने में चायपत्ती के जैसा होता है ,यह फसलों के लिए काफी लाभकारी होता है। इस खाद में मुख्य पोषक तत्वों के अतिरिक्त दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्व तथा कुछ  हारमोंस एवं एंजाइमस भी पाए जाते हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए लाभदायक होते हैं। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। केंचुआ खाद में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें नाइट्रोजन, सल्फर तथा पोटाश पाया जाता है। इसके अलावा इसमें सूक्ष्म जीव, एन्जाइम्स, विटामिन तथा वृद्विवर्धक हार्मोन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। केंचुआ द्वारा निर्मित खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उपजाऊ एवं उर्वरा शक्ति बढ़ती है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव पौधों की वृद्धि पर पड़ता है। वर्मी कम्पोस्ट वाली मिट्टी में भू-क्षरण कम व मिट्टी की जलधारण क्षमता में भी सुधार होता हैं,जो पर्यावरण के लिए बेहतर है।

READ MORE :  कीटॉसिस/ ऐसीटोनीमियां के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने के लिए उचित स्थान-

हमारे देश की जलवायु के तापक्रम में बहुत उतार-चढ़ाव रहता है। खाद हेतु छायादार व नम वातावरण की आवस्यकता होती है| छायादार पेड़ के नीचे या हवादार टिनशेड व छप्पर के नीचे केंचुआ खाद बनानी चाहिये | नम वातावरण में केंचुआ की बढ़वार ज्यादा तेजी से होती है। स्थान का चुनाव करते समय उचित जल निकास व पानी की समुचित व्यवस्था का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने का उचित समय

वर्मीकम्पोस्ट खाद वर्ष भर बना सकते हैं लेकिन 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर केंचुए अधिक कार्यशील होते हैं।

केंचुआ की प्रजाति का चुनाव-

केंचुआ खाद बनाने के लिए केंचुआ की भारतीय प्रजाति का ही चयन करना चाहिए। प्रजाति की प्रजनन क्षमता, ताप सहनशीलता, वृद्वि, गोबर और जैविक कूड़ा खाने की क्षमता और जैविक खाद की गुणवत्ता में श्रेष्ठ तथा देश के पर्यावरण के अनकूल होनी चाहिए।

वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए उपयोगी तत्व-

केंचुआ खाद या जैविक खाद किचन वेस्ट जैसे सब्जी के छिलके, फलों के छिलके, तथा अनाजों के पराली एवं जीवाश्म जैसे मूत्र, गोबर, कूड़ा कचरा, अनाज की भुसी, राख, फसलों के अवशेष एवं गोबर से तैयार की जाती है जिस कारण यह बहुत ही कम लागत में एवं अच्छी गुणवत्ता के साथ तैयार हो जाती है जो हमारे फसल के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होती है।

केंचुआ :- केंचुआ खाद बनाने में   सबसे ज्यादा जरूरत केंचुओं की होती है, यह जैविक पदार्थो को खाकर मल द्वारा वर्मीकम्पोस्ट निकालता है|

जैविक पदार्थ :- जैविक पदार्थ के लिए सूखा हुआ कार्बनिक पदार्थ, सूखी हरी घास, खेत से निकला कचरा और गोबर का इस्तेमाल करते है| इसमें  ताज़े गोबर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है| इसमें मौजूद पत्थर, कांच और पॉलीथिन को निकाल दिया जाता हैं।

पानी :- केंचुआ खाद तैयार करने में पानी की भी जरूरत होती है| पानी का इस्तेमाल वर्मीकम्पोस्ट खाद तैयार करते समय जैविक पदार्थो में नमी बनाए रखने के लिए किया जाता है|

वातावरण :- खाद तैयार करने में वातावरण का भी विशेष ध्यान रखना होता है| इसमें वर्मीबेड को धूप से बचाकर छायादार जगह पर रखना होता है, क्योकि तेज़ धूप में केंचुए मर जाते है|

वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने की विधि तथा सामिग्री-

वर्मीकम्पोस्ट को चार विधियों से बनाया जा सकता है जैसे टैंक, गड्डे, रिंग और खुले में ढेर लगाकर। इनमें से वर्मी टैंक विधि सबसे श्रेष्ठ है क्योकिं उसमे केंचुओ और सूक्ष्मजीवों के लिए उत्तम वातावरण मिलता है और पादप पोषक तत्वों का हास नहीं होता है। वर्मी टैंक की उँचाई एक फीट, दीवारो के बीच की चौड़ाई तीन फीट और लम्बाई आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है। एक फीट से अधिक टैंक की उँचाई रखने पर वायुवीय जीवाणु और केंचुए अच्छा कार्य नहीं कर पाते हैं। टैंक की दीवारो की तीन फीट की चैडाई रहने पर दोनो ओर से टेंक में भरे पादप अवशेष और गोबर की आसानी से उलट पलट की जा सकती है। एक टैंक से दूसरे टैंक के बीच में 2 फीट की दूरी छोड़नी चाहिये जिससे आवागमन और विभिन्न क्रिया कलापों में आसानी रहती है। टैंक के फर्श का निर्माण पट्ट ईटों से करना चाहिये, उसकी दराजों को सीमेन्ट से प्लास्टर नहीं करना चाहिये क्योंकि पानी के अधिक भरने पर निकास नहीं होता है। वर्मी आवास की दीवारों की ऊँचाई तीन फीट तथा उस पर 4 फीट ऊँचाई की लोहे के मोटे तारों की जाली जिसमें चिड़िया अंदर प्रवेश नहीं कर सके ऐसी जालीलगानी चाहिये। छप्पर या ऐसवेस्टस की छत बनाना उत्तम रहता है। वर्मीशेड की मध्य में ऊचाई 10-11 फीट तथा दीवारो की तरफ 3-4 फीट का ढलान देना चाहिए। शेड में हवा का आवागमन उचित होना चाहिए।

READ MORE :  गोबर खाद से होने वाले लाभ

केंचुओं को उनके शत्रु से बचाना चाहिए:-

चिडियाँ, मेढक, छंछूदर, चूहा और नेवला वर्मी शेडो की तरफ आकर्षित होते हैं। इनसे बचाव के लिये शेड के आस पास सफाई का ध्यान रखें जिससे केंचुओं के शत्रु छिप न सकें। चिड़ियों से बचाव के लिए शेड में उपयुक्त जाली की व्यवस्था करें।

वर्मीकम्पोस्ट में पाये जाने वाले तत्व:-

केंचुआ खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 2.5 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस की मात्रा 1.5 से 2 प्रतिशत, पोटाश की मात्रा 1.5 से 2 प्रतिशत पायी जाती है। इसकी पीएच मान 7 से 7.5 होती है। इनके अलावा वर्मीकंपोस्ट में जिंक, कॉपर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, कोबाल्ट, बोरोन की संतुलित मात्रा पाई जाती है। साथ ही साथ इसमें प्रचुर मात्रा में विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स और ह्युमिक एसिड भी पाये जाते हैं।

अच्छे वर्मीकम्पोस्ट के लक्षण:-

1-यह चाय पत्ती के समान दानेदार होता है।

2-इसका रंग काला होता है।

3-इससे बदबू नहीं आती है।

4-इससे मक्खी मच्छर नहीं पनपते।

5-यह भुरभुरा होता है।

वर्मीकम्पोस्ट से लाभ:-

1) वर्मी कम्पोस्ट खाद प्राकृतिक और सस्ती होती है।

2) लगातार वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से ऊसर भूमि को सुधारा जा सकता है।

3) फलो, सब्जियों एवं अनाजों का उत्पादन बढ़ जाता है और स्वाद, रंग व आकार अच्छा हो जाता है।

4) पौधों में रोगरोधी क्षमता भी बढ़ जाती है।

5) इसके प्रयोग से खेतों में खरपतवार भी कम होती है।

6) पौधों को पोषक तत्वों की उपयुक्त मात्रा उपलब्ध कराता है। पौधों की जडो का आकार व वृध्दि बढाने में सहायक होता है।

7) ग्रीन हाउस गैस के उत्पादन को रोकता है।

READ MORE :  जैविक कीटनाशक एवं औषधियाँ बनाने के नुस्खे

8) रोजगार के अवसर बढ़ाने में सहायक है। रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से खेती की लागत कम होती है।

वर्मीकम्पोस्ट बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें:-

  • अधिक नमी एवं गीला रहने से केचुवें मर जाते हैं।
  • गोबर की मात्रा लगभग 40% एवं हरे एवं जीवित पदार्थों की मात्रा 30-30% होनी चाहिए।
  • केचुओं के लिए चींटी, कीड़े-मकोड़े, पक्षियाँ शत्रु होते हैं। इनसे केंचुओं को बचाना चाहिए।
  • टांके को सीधे धूप और वर्षा से बचाना चाहिए।
  • ताजे गोबर का उपयोग नही करना चाहिए।
  • खाद एकत्र करते समय फावड़ा/खुरपी आदि औजारों का प्रयोग नही करना चाहिए।
  • उपयोग होने वाले कच्चे पदार्थों, गोबर में कांच, पत्थर, प्लास्टिक, धातु के टुकड़े आदि कठोर वस्तुएँ नहीं होना चाहिए।

वर्मीकम्पोस्ट खाद वातावरण के लिए लाभकारी-

  • वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करने से वातावरण में किसी तरह की हानि नहीं होती है|
  • पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहायक होती है।
  • सभी जैविक कचरे की खाद बन जाने की वजह से आस-पास प्रदूषण नहीं फैलता है, जिससे बीमारिया भी कम फैलती है|
  • यह भूमि के गिरते जल स्तर को रोकने में मदद करता है, जिस वजह से प्रकृति के जल असंतुलन में भी कमी आती है|
  • वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग वायु और भूमि प्रदूषण दोनों को ही कम करता है |

वर्मीकम्पोस्ट खाद किसानों के लिए लाभकारी-

  • केंचुआ खाद किसानो के लिए अधिक लाभकारी है क्योकि इसका उपयोग करने से वह रासायनिक उवर्रक में खर्च होने वाले अधिक खर्चे से बच सकेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा|
  • वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल भूमि की उवर्रक क्षमता को बढ़ाने और फसल का अधिक उत्पादन होने के लिए अच्छा होता है|
  • इसके इस्तेमाल से रासायनिक उवर्रक की निर्भरता भी कम होती हैं।
  • वर्मीकम्पोस्ट में मौजूद फास्फोरस, नाइट्रोजन, पोटाश और अन्य सूक्ष्म द्रव्य की अधिक मात्रा पौधों को कम समय में विकास करने में सहायता प्रदान करती है|
  • कम जल वाष्पीकरण होने की वजह से किसानो को अधिक सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती।

वर्मीकम्पोस्ट खाद भूमि के लिए लाभकारी

  • भूमि में उपयोगी जीवाणुओं की संख्या में वृध्दि होती है।मृदा की उर्वराशक्ति को बढ़ाती है।
  • वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करने से भूमि की गुणवत्ता में भी सुधार देखने को मिलता है|
  • भूमि का तापमान सामान्य रहता है, जिससे कम मात्रा में जल वाष्पीकरण होता है|
  • केंचुआ खाद का इस्तेमाल करने से भूमि में जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ती है|

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON