कृत्रिम गर्भाधान में क्या करें और क्या न करें
डॉ. स्वाति कोली1, डॉ. गायत्री देवांगन1, डॉ. जयंत भारद्वाज1 और डॉ. दीप्तिमायी साहू2
1नानाजी देशमुख वेटरनरी साइंस यूनिवर्सिटी, जबलपुर
2पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, किशनगंज, बिहार
परिचय
भारत में मवेशियों के सुधार के लिए अच्छी गुणवता के नर की कमी होना मुख्य बाधा रही है। इस कारण भारत में मवेशियों के कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक बहुत उपयोगी है। पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination – AI) एक ऐसी तकनीक है, जिसमें सांड से वीर्य लेकर उसको विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से मादा प्रजनन मार्ग में छोड़ा जाता है। कृत्रिम गर्भाधान जानवरों में प्रजनन एवं पालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस कारण मवेशियों में कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक बहुत उपयोगी है।
कृत्रिम गर्भाधान का महत्त्व
प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ है जिनमें से मुख्य लाभ इस प्रकार है:-
- प्राकृतिक विधि की अपेक्षा कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा एक सांड के वीर्य से एक वर्ष में हजारों गायों या भैंसों को गर्भित किया जा सकता है क्योंकि इस विधि में वीर्य को लंबे समय तक संग्रहित करना संभव है।
- अच्छे सांड के वीर्य को उसकी मृत्यु के बाद भी प्रयोग किया जा सकता है।
- कृत्रिम गर्भाधान से दूसरे देशों में रखे श्रेष्ठ नस्ल व गुणों वाले सांड के वीर्य को भी गाय व भैंसों में प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता है।
- इस विधि में धन एवं श्रम की बचत होती है एवं पशुओं के प्रजनन सम्बंधित रिकार्ड रखने में आसानी होती है।
- इस विधि में विकलांग या असहाय गायों/भैंसों का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है तथा पशुओं को कई संक्रामक रोगों से बचाया जा सकता है।
- इस तकनीक द्वारा इनब्रडिंग कम होने से आनुवंशिक सुधार की दर में वृद्धि अहोती है।
- कृत्रिम गर्भाधान प्रौद्योगिकियों के उपयोग से वीर्य की गुणवत्ता, प्रजनन सम्बंधि रोग एवं बैल में बांझपन का प्रारंभिक पता लगाना संभव है।
कृत्रिम गर्भाधान के दौरान क्या करें
कृत्रिम गर्भाधान के दौरान कई सावधानियां बरतनी चाहिए जो निम्नानुसार है:
कृत्रिम गर्भाधान के आरम्भ से पहले सावधानियां
- व्यक्ति से सम्बंधित
- पशु से सम्बंधित
- उपकरण से सम्बंधित
कृत्रिम गर्भाधान के समय सावधानियां
- कृत्रिम गर्भाधान के बाद क्या करें (सावधानियां)
- कृत्रिम गर्भाधान के आरम्भ से पहले सावधानियां
व्यक्ति से सम्बंधित
- कृत्रिम गर्भाधान करने के लिए एक प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
- व्यक्ति को साफ और सुरक्षात्मक कपड़े पहनने चाहिए।
- उंगलियों के नाखून कटे होना चाहिए।
- गर्भाधान के लिए उपयोगी सभी सामग्रियां एवं उपकरण पहले से ही तैयार रखना चाहिए।
- गर्भाधान से पहले पशु की जांच कर लेना चाहिए।
- मादा ऋतु चक्र में है या नहीं उसकी पहचान होना ज़रूरी है।
- मादा पशु प्रजनन अंगों की जानकारी एवं संरचना का ज्ञान होना भी महत्तवपूर्ण है।
- रेक्टो-योनि तकनीक की सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
- सफल कृत्रिम गर्भाधान के लिए उचित सीमन गन हैंडलिंग होना चाहिए।
पशु से सम्बंधित
सामान्यतः एक गाय 1.5 से 2.5 वर्ष एवं भैंस 3 से 5 वर्ष की उम्र तक शारीरिक रूप से परिपक्व हो जाती है। गाय के लिए 12-20 घंटे एवं भैंस के लिए 16-24 घंटे के मध्य ताद में होने पर कृत्रिम गर्भाधान किया जाना चाहिए यानी अगर शाम को गर्मी दिखाई देती है, तो अगली सुबह गर्भाधान करें। कृत्रिम गर्भाधान की दर में वृद्धि लाने के लिए पशु से सम्बंधित निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- पशु का प्रजनन रिकार्ड रखें।
- गत ब्यांत के रोग और अन्य जानकारी जैसे गर्भपात, जेर समय पर न गिरने, समय पर ऋतु चक्र में न आना आदि।
- सांड के वीर्य की गुणवत्ता और अनुवांशिक इतिहास।
- वंशावली की जानकारी रखें।
- पशु को तनावमुक्त और बिना मार-पीटे लाना चाहिए।
- स्वच्छ कागज़ के तौलिये से मूलाधार पर लगे गोबर को साफ़ करें।
- उचित वजन होने के बाद ही कृत्रिम गर्भाधान करना चाहिए।
- गर्भाधान के स्थान पर साफ-सफाई रखें।
- वीर्य का संरक्षण और परिवहन सही तरीके से होना चाहिए।
- उच्च श्रेणी के सांड का वीर्य उपयोग में लेना चाहिए।
उपकरण से सम्बंधित
- कृत्रिम गर्भाधान से सम्बंधित सभी उपकरणों को पहले से ही तैयार रखें।
- एआई-गन को अच्छी तरह से लाल दवाई से धोये एवं साफ करें।
- सीमेन स्ट्रॉ को धुप में नहीं रखना चाहिए।
- एआई स्ट्रा को साफ़ कैंची या स्ट्रॉ कटर की सहायता से 90° कोण पर काटना चाहिए।
- स्वच्छ दास्तानें, एआई-गन, सीमेन स्ट्रॉ, शीत आदि का उपयोग करें।
कृत्रिम गर्भाधान के समय सावधानियां
- कृत्रिम गर्भाधान की विधि का सही से अमल करें।
- प्रति पशु एक डिस्पोजेबल प्लास्टिक पैल्पेशन दस्ताने का उपयोग करें।
- गर्भाधान के लिए कम से कम 10-12 मिलियन सक्रिय शुक्राणु जरूरी होते है पशु को गर्भित करने क लिए।
- वीर्य का द्रवीकरण 37°C तापमान पर करना चाहिए।
- एआई गन को तैयार करने के बाद धूप में न रखें।
- एआई गन को योनी में 30-40° कोण पर डाला जाना चाहिए।
- एआई गन से वीर्य को गर्भाशय द्वार में छोड़ें।
कृत्रिम गर्भाधान के बाद क्या करें (सावधानियां)
- कृत्रिम गर्भाधान की तारीख, पशु की उम्र, टैग नंबर आदि रिकॉर्ड में दर्ज करें।
- 21 दिनों के बाद पशु में गर्मी के लक्षणों को देखें।
- 60 दिनों के बाद, गर्भावस्था के लिए पशु की जांच करवाएं।
- तीन गर्भाधान के बाद भी गर्भ धारण नहीं होता तो पशु चिकित्सक का परामर्श लें।
कृत्रिम गर्भाधान के दौरान क्या न करें
कृत्रिम गर्भाधान के दौरान निम्नलिखित बिन्दुओं को न करें ताकी सफल गर्भाधान हो सके।
- इस तकनीक में असावधानी तथा लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए अन्यथा गर्भधारण देर में कमी आ जाती है।
- बिना पशु की जाँच करे कृत्रिम गर्भाधान न करें।
- ए आई गन को ताकत से उपयोग न करें नहीं तो पशु को भी चोट पहुँच सकती है।
- अप्रशिक्षित व्यक्ति से कृत्रिम गर्भाधान न कराएं।
- गर्भाधान के स्थान पर अस्वच्छ परिस्थितियाँ न रखें।
- कई पशुओं में एक ही दस्ताने का प्रयोग न करें।
- ए आई गन से वीर्य तेज़ी से योनी मार्ग में न डालें।
- ए आई गन और सीमेन स्ट्रॉ को कभी भी धुप में न रखें।
- उपकरणों के रखरखाव में अस्वच्छता न रखें नहीं तो कई संक्रामक बीमारियों की भी संभावना हो सकती है।
- योनि से निकलने वाला श्लेष्मा (म्युकस) यदि पारदर्शी, चमकदार न हो तो पहले उपचार करायें तत्पश्चात् कृत्रिम गर्भाधान करायें।
कृत्रिम गर्भाधान के सफलतापूर्वक परेणामों के लिए निरंतर अभ्यास एवं तकनीक में व्यक्ति को प्रशिक्षित होना अतिआवश्यक है। गर्भाधान दर को बढ़ोतरी के लिए पशु में निरंतर गर्मी की लक्षण, ब्याने का रिकॉर्ड, पिछली गर्भावस्था की जानकारी, प्रजनन संबंधी रोग आदि की जानकारी होनी चाहिए। अतः कृत्रिम गर्भाधान पशुओं के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पशुधन क्षेत्र में विकास को समर्थन करने में मदद करता है।