अक्सर पशुपालकों के यह सवाल होते हैं, कि मैंने तो अपने पशुओं के खान-पान, रख-रखाव इत्यादि में कोई कमी नहीं रखी फिर भी वे अधिक दूध क्यों नहीं देते ?
यहां पर कृत्रिम गर्भाधान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि माता-पिता के गुण अपनी संतानों में अवश्य आते हैं, जिसे हम विज्ञान की भाषा में आनुवांशिकीय गुण कहते हैं, ठीक उसी प्रकार अपनी गाय या भैंस को गाभिन करवाते समय यदि हम अच्छे सांड के वीर्य का प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूप से उससे जन्मी बछिया अधिक दूध देने में सक्षम होगी, बशर्ते हमने उसकी खिलाई पिलाई, रख-रखाव, बीमारियों से बचाव इत्यादि में कोई कमी या लापरवाही नहीं बरती हो।
• अच्छे सांड के वीर्य से तात्पर्य यहां ऐसा सांड है जिसकी मां ने अपनी एक ब्यांत में अधिक दूध दिया हो।
• कृत्रिम गर्भाधान के दौरान प्रयोग में लाए गए हिमीकृत वीर्य के उत्पादन हेतु ऐसे सांड ही चुने जाते हैं जिनकी माताओं ने अपनी एक ब्यांत में बहुत अधिक दूध दिया हो।
• इसके अतिरिक्त इन सांडों को सभी प्रकार की आनुवांशिक बीमारियों के लिए भी जांचा जाता है।
• ये सांड सभी प्रकार के संक्रमण से रहित होते हैं, जिससे कि मादा पशु में कृत्रिम गर्भाधान के बाद गर्भपात या संक्रमण जैसी कोई संभावना नहीं होती।
• ऐसे उच्च कोटि के सांड की मृत्यु हो जाने के बाद भी उसका वीर्य तरल नाइट्रोजन में सुरक्षित रखा रहता है, जिसे बाद में उपयोग में लाया जा सकता है।
• पशुपालकों को सांड के खान-पान, रख-रखाव व उनकी बीमारी के इलाज इत्यादि का खर्च भी बच जाता है।
• ऐसे सांडों के वीर्य को हम विदेश या दूरदराज क्षेत्रों में आसानी से ला एवं ले जा सकते हैं किंतु सांडों आवागमन में कई प्रकार की परेशानियां आती है।
• उच्च कोटि के सांड वीर्य द्वारा कृत्रिम गर्भाधान करवाने से पशुओं की उत्पादन दक्षता बहुत तेजी से बढ़ती है, जिससे कि कई नस्लें सुधर जाती है।
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लेखक-
डॉ योगेश कुमार सोनी
*वैज्ञानिक (पशु पुनरुत्पादन)*
*केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ*
*चलभाषः 7417676424*