पशुओं में शीत तनाव का प्रबंधन

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पशुओं में शीत तनाव का प्रबंधन

डॉ. निष्ठा यादव और डॉ. मंजू नेहरा

पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग
पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय,

बीकानेर

गत माह से सर्दी का मौसम शुरू हो गया है, अतः पशुओं का सर्दी से बचाव का उचित प्रबन्ध करना होगा। जब सर्दियों में तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है, खासकर 00C के पास, तो यह दुधारू पशुओं की उत्पादकता और दक्षता पर विपरीत प्रभाव डालता है। हाइपोथर्मिया तब होता है जब मवेशियों के शरीर का तापमान सामान्य से काफी नीचे चला जाता है।

मवेशियों पर गंभीर शीत तनाव के प्रभाव :

  • सर्दियों के दौरान, खराब चारागाह की स्थिति और लंबे समय तक घास खिलाने के कारण, दुधारूपशुओंमें प्रोटीन एवं ऊर्जा कुपोषण से संबंधित समस्याऐं होती हैं।
  • ठंड के कारण दुधारू पशुओं में खराब कोलोस्ट्रम गुणवत्ता, बछड़े की प्रतिरोधक क्षमता में कमी और स्वास्थ्य समस्याएं उत्तपन्न हो जाती हैं। जिससे नवजात का वजन कम हो जाता है।
  • रक्त का प्रवाह कम होने के परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है।
  • प्रजनन संबंधी समस्याएं उत्तपन्न हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था की दर में कमी हो जाती है।
  • जैसे-जैसे हाइपोथर्मिया बढ़ता है, शारीरिक प्रक्रियाएं धीमी हो जाती हैं, और महत्वपूर्ण अंगों की रक्षा के लिए रक्त को चरम सीमाओं से हटा दिया जाता है।
  • निप्पल, कान और वृषण शीतदंश से ग्रस्त हो जाते हैं।
  • चरम सीमा में, श्वसन और हृदय गति में गिरावट से जानवर चेतना खो देते हैं और मर जाते हैं।

एक मवेशी की ठंड को झेलने की क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक :

  • अनुकूलन -शरीर पर अधिक बाल वाले पशु सर्दी के मौसम में बेहतर अनुकूलित होते हैं।पशुओं को अधिकतम सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोट साफ और सूखा होना चाहिए।
  • वसा परत – वसा की अच्छी परत वाले मवेशी अन्य मवेशियों की तुलना में ठंड का सामना करने में बेहतर होते हैं।वसा की परत जानवर के आंतरिक शरीर और पर्यावरण के बीच एक इन्सुलेटर परत के रूप में कार्य करती है।
  • उपापचय दर – यह गर्मी उत्पादन बढ़ाने और शरीर के तापमान को बनाए रखने में मदद करती है। इससे आहार ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है, इसलिए आमतौर पर भूख बढ़ जाती है और पशु अधिक खाते हैं।
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दुधारू पशुओं में ठंडे दबाव के कारण होने वाले अनुकूली परिवर्तन और रोग :

  • भोजन का सेवन और चबाने का व्यवहार – शीत तनाव आमतौर पर भूख को उत्तेजित करता है । ठंड के प्रभाव को चबाने के प्रयास में वृद्धि करके समायोजित किया जाता है।
  • पाचनशक्ति – परिपक्व पशुओं की तुलना में बछड़ों के लिए ठंड के जोखिम का प्रभाव अधिक होता है। बड़े शरीर के आकार के जानवरों को छोटे जानवरों की तुलना में पर्यावरणीय तापमान परिवर्तन से प्रभावित होने की संभावना कम होती है।
  • रक्त प्रवाह और अंतःस्रावी परिवर्तन – ठंड के संपर्क में आने से आहार नली, निचले अंगों जैसे खुर की हड्डी और डायफ्राम में प्रवाहित होने वाले रक्त (कार्डियक आउटपुट) का हिस्सा कम हो जाता है तथा पाचन शक्ति कम हो जाती है।
  • गर्भावस्था कीटोसिस – ठंड के मौसम मेंपाचन अनुकूलन खाद्य आपूर्ति सीमित होने के कारण गर्भावस्था केटोसिस की संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • हाइपोमैग्नेसीमिया – प्लाज्मा मैग्नीशियम के स्तर में कमी के कारण जुगाली करने वाले पशुओं में ठंड के संपर्क में हाइपोमैग्नेसीमिया की घटना, बढ़ जाती है। जिससे पाचन शक्ति कम हो जाती है।
  • वृद्धि दर – ठंड में मवेशियों की वृद्धि दर और चारा रूपांतरण दक्षता स्पष्ट रूप से कम हो जाती है। संश्लेषण की तुलना में प्रोटीन के क्षरण की दर में अधिक वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप मांसपेशियों और मांस की गुणवत्ता में कमी आती है।
  • गर्भावस्था – गायों में स्तनपान क्षमता कम हो जाती है और पुन: प्रजनन में देरी का अनुभव होती है। गर्भावस्था पर हानिकारक प्रभाव तथा कमजोर बछड़ों का जन्म होता है।
  • दुग्धस्राव –  स्तन ग्रंथि के स्थानीय शीतलन और कम स्तन रक्त प्रवाह के कारण ठंड तनाव में दूध पिलाने वाले पशुओं में दुग्धका स्राव कम हो जाता है। लंबे समय तक ठंड में रहने से ग्लूकोज और लैक्टोज स्राव में कमी आ जाती है।
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पशुपालकों के लिए पशुओं को शीत तनाव से बचाव के उपाय:

  • पशुओं को सर्दी से बचाव का उचित प्रबन्ध करें। इस माह में तापक्रम अचानक कम होने की स्थिति में पशुओं को सर्दी से बचाने के उपाय करने होंगे, इसके लिए रात में पशुओं को खुले में ना बांधे, पशुओं को अंदर गर्मी वाले स्थान जैसे कि छत के नीचे या घास-फूस के छप्पर में बांधें ।
  • पशुओं का बिछावन सूखा होना चाहिए। पशुओं को साफ और सूखा रखें। गिलेपन के करना इन्सुलेशन गुणों में कमी आ जातीहै और पशुओं को ठंड के तनाव के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।
  • सर्दी के मौसम में अधिकतर भैंस मद में आती है, अतः भैंस के मद में आने पर समय से ग्याभिन करवाएं।
  • देशी गायें संकर गायों और भैंसों की तुलना में शीत तनाव के प्रति अधिक प्रतिरोधक होती हैं।
  • प्रभावी तापमान निम्न महत्वपूर्ण स्तर से नीचे गिर जाने पर अंतिम तिमाही में पशुओं को एस्ट्रस चक्र के दौरान अतिरिक्त घास और अनाज खिलाने की आवश्यकता होती है।
  • मुँहपका-खुरपका रोग, गलघोंटू, भेड़ों में माता (चेचक), फड़किया रोग आदि के टीके यदि अभी भी नहीं लगवाये हैं तो कृपया समय रहते लगवा लें। मुंहपका-खुरपका रोग होने पर पशु के प्रभावित भाग को लाल दवा 1 प्रतिशत घोल से उपचारित करना चाहिए।
  • दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए पूरा दूध निकालें और दूध दोहन के बाद धनों को कीटाणु नाशक घोल से घो लेवें।
  • ठंड के मौसम की प्रतिक्रिया में पशु के तापमान की निगरानी करें और जानवरों को हवा से बचाएं एवं भोजन में वृद्धि करें।
  • पशुओं को परजीवी नाशक दवा हर बार बदल-बदल कर पिलानी चाहिए।
  • सर्दी में बेहतर पोषण पूरकता के माध्यम से ठंड के तनाव के साथ होने वाली समस्याओं को कम करने के लिए समय रहते प्रभावी योजनाएं बनानी चाहिये।
  • पशुओं को खनिज लवण मिश्रण निर्धारित मात्रा में दाने या बॉर्ट में मिलाकर देवें।
  • चारे की सही समय पर खरीद-फरोख्त व संग्रहण पर पूरा ध्यान दे।
  • राज्य के कई स्थानों पर हरी घास व चारे की उपलब्धता बढ़ने पर पशु आहार में हरे चारे की मात्रा एक सीमा से अधिक न दें व सूखे चारे की मात्रा बढाकर दें। अधिक मात्रा में हरा चारा देने से पशुओं में हरे रंग की दस्त अथवा एसिडोसिस की समस्या हो सकती है।
  • बहुवर्षीय घासों की कटाई करें। इसके बाद ये सुघुप्तावस्था में चली जाती है जिससे अगली कटाई तापमान बढ़ने पर फरवरी-मार्च में ही प्राप्त होती है।
  • यदि इस समय वातावरण में बादल नहीं हैं और पशुओं को खिलाने के अतिरिक्त हरा चारा बचा हुआ है तो उसे छाया में सूखाकर ‘हे’ के रूप में संरक्षित करें।
  • पशुओं के पास हर समय पर्याप्त मात्रा में सामान्य तापमान का पानी उपलब्ध होना सुनिश्चित करे। क्योंकि पानी सीमित करने से चारा का सेवन सीमित हो जाएगा और गायों के लिए अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना अधिक कठिन हो जाएगा।
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