World Environment Day
समझ नही आ रहा आज 5 जून: “विश्व पर्यावरण दिवस” पर क्या लिखूं क्योंकि मानो या ना मानो पानी सर से ऊपर जा रहा है।
विज्ञान की ख्यातनाम वैज्ञानिक शोध पत्रिका नेचर (Nature) में 10 मई,2018 को एक रिव्यु आर्टिकल छपा : “Decadal surface temperature trends in India based on a new high-resolution data set”
जिसमें इस सच्चाई का खुलासा हुआ कि 1950 के दशक के में भारत का अधिकतम तापमान (peak temperature) 40℃ हुआ करता था, और 21वीं सदी के दूसरे दशक यानि वर्तमान में दक्षिणी-मध्य प्रायद्वीपिय भारत का औसतन अधिकतम तापमान (मानसून से पहले) 42℃ हो गया है।
70 साल में भारतीय प्रायद्वीप के तापमान में 2℃ का इज़ाफ़ा क्या चिंता का विषय नही है या इसपर विचार व चिन्ता करना हमारा काम नही है!!
अरे भैयाओं इस पर चिंता करना हमारा ही काम है,
क्योंकि 1950 के लोगों के पास:
1.स्कूटी, बाइक, कार नही थे। बैलगाड़ी, घोड़े, ऊंट आवागमन के साधन थे।
2.घरों में बिजली नही थी, तेल/घी के दिये व लालटेन थे।
- AC/इन्वर्टर, कूलर, पंखे व इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स नही थे। उनके पास घर के आंगन में पीपल, बरगद, नीम, खेजड़ी का पेड़ था।
- वो रेस्टॉरेंट्स या पिज़्ज़ा हट्स में खाना नही खाते थे, घर में चूल्हे पर खाना बनता था, घट्टी (हाथ की चक्की) पर आटा पिसा जाता था।
5.ग्रीन हाउस गैसें, ज़हरीली गैसें छोड़ने वाले उद्योग धंधे नही थे, क्यूंकि दैनिक आवश्यकताओं हेतु ऊर्जा खपत सीमित थी।
मैं विकास का विरोधी नहीं हूं, लेकिन पर्यावरण की क़ीमत पर नही।
👉हमें पृथ्वी के गर्भ में मौजूद ऊर्जा-स्रोतों (हाइड्रोकार्बन अवयव) से अन्यत्र नवीनीकरण ऊर्जा-स्रोतों (सौर, पवन, जल व नाभिकीय ऊर्जा) पर निर्भरता बनानी होगी जिसमें पर्यावरण का ह्यस न्यूनतम हो।
👉दैनिक आवश्यकताओं हेतु ऊर्जा-खपत कम करनी होगी, ग्रीन-तकनीक या पर्यावरणीय मित्र (eco-friendly) तकनीकें इज़ादल करनी होगी और अपनानी होगी।
👉हमें बिजली, पानी बचाना सीखना ही पड़ेगा।
👉हमें बहुत से वृक्ष लगाने ही पड़ेंगे।
👉हमें पारिस्थितकीय तन्त्र के पुनरुद्धार के लिए संकल्पित होना पड़ेगा।
वरना वैज्ञानिक रिपोट्स के अनुसार लाखों समुद्री जीव-जंतु, पादप प्रजातियों को तो छोड़ो मनुष्य जाति पर गहरे संकट आ जाएंगे।
आज हमारे कई शहरों के हवा-पानी में इतना ज़हर है कि प्रदूषण ने मानव स्वास्थ्य पर खर्चे का बजट (Health budget) बड़ा दिया है और औसतन जीवन-काल (Life span) कम कर दिया है।
रही सही कसर रासायनिक खादों, इंसेक्टिसाइडस व पेस्टिसाइड्स ने पूरी कर दी है, नाना प्रकार के कैंसर, स्नायुतंत्र की बीमारियां, भ्रूणों में विकृतियाँ, बांझपन-शुक्राणुओं की कमी सब इन्ही की देन है।
👉सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) मानव जाति द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अनुचित दोहन के फलस्वरूप एक अभिशाप है।
-समुद्री-स्तर में बढ़ौत्तरी मुम्बई जैसे महानगरों को लील जाएगी।
-सूखे, बाढ़, अतिवृष्टि,ओलावृष्टि, साइक्लोन, क्लाउड-बर्स्ट, भूस्खलन, दावानल (forest fire) जैसे प्राकतिक प्रकोपों में बढ़ोतरी होगी।
-किसानों के खेतों में कीटों व पेस्ट्स का प्रकोप बढ़ रहा है, उत्पादकता घट रही है।
-पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव व विपरीत वातावरणीय कारकों की वजह से उत्पादन घट रहा है।
-वाहक परजीवियों की संख्या में बढ़ौतरी व उनके शिफ्ट (migration) की वजह से मनुष्यों में डेंगू, स्वाइन फीवर इबोला, ज़ीका और वर्तमान कोविड-19 जैसी महामारियां बढ़ रही है।
-भूमिगत जलस्तर में कमी की वजह से स्वच्छ पेयजल ने विकट समस्या का रूप ले लिया है।
मेरा उद्देश्य डराना नही था, जगाना है, बाकि हम सब की मर्जी। यह कहने में हम माहिर है, “क्या फर्क पड़ता है, भाड़ में जाये जनता, अपना काम बनता।”
☝️मगर हमें सोच बदलनी होगी, किसी और के लिए नही हमारे बच्चों के लिए।
चाहे ध्रुवीय भालू (POLAR BEER) की फिक्र मत करो, लेकिन अपने नन्हे मुन्नों की तो फिक्र कर लो यारों, क्या हमें उनके लिए वातावरण में ज़हर और 50℃ तापमान छोड़कर जाना चाहिए।
लेखक:
डॉ. भरत सिंह मीणा,
पशुचिकित्सा अधिकारी, पशुपालन विभाग–बारां (राजस्थान सरकार)।
पशुपोषण विशेषज्ञ एवं डेयरी फार्मिंग कंसल्टेंट।